हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लहरें ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

(डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के नोबल कॉलेज में प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, एक कविता संग्रह (स्वर्ण मुक्तावली), पाँच कहानी संग्रह,  एक उपन्यास (फिर एक नयी सुबह) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता लहरें। )  

☆ कविता ☆ लहरें ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

समुंदर के किनारे पैठ

देख मनमोहक दृश्य

अति सुंदर कलोलित करती,

मन होता प्रशांत,

अंगडाई-सी लेती लहर,

दूध से भी सफेद पानी,

निष्कलुष, निष्कपट, बेऐब,

मानो स्त्री-मन की परछाई हो,

तट पर आकर टकराती,

देहावसान-समय में अति मनोहर,

पैठे पानी में नभ के नीचे,

उठते अनेक कम्पन्न,

जैसे मन का रेसा-रेसा खोल

कुछ कहने का कर रही हो प्रयास,

सोचा मन में कभी लगता मानो,

दर्द उसे भी होता है

बहती अश्रु की धारा

लहरें-मन भी तो है एक,

तो फिर क्यों फर्क?

कभी मन तो कभी लहर

उठता तूफां मन में भी

यह तरंगे कैसी ?

कई बार उफान आता

समंदर के किनारे टकराकर

वापिस अपनों से मिलती

कभी न थकती

कभी लगता मानो!

औरत का दूसरा रुप,

सफेद साडी में लिपटी,

किनारे बैठ मात्र सोचती,

झरनों की भाँति बहती,

अश्रु की अविरल धारा,

वह भी तो झेलती दर्द,

न अहसास किसी को होता

पाती स्वयं को लहर-परछाई-सी,

देख लहर पाती मनोबल

पौंछ नैनों को बढती आगे,

लहरें है रूप जिंदगी का,

लहरें हैं मूरत करूणा की,

सूखे तट को पानी पिलाती,

अठखेलियां  करती ठहर कर,

सफेद मोती जैसे लघु लहरें,

मन को मोहती लहरें,

पुलिन को भी महकाती लहरें।

©डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

संपर्क: प्राध्यापिका, लेखिका व कवयित्री, हिन्दी विभाग, नोबल कॉलेज, जेपी नगर, बेंगलूरू।

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 63 ☆ ।।जियो यूँ यह जिन्दगी ईश्वर का अनमोल  उपहार  समझ कर।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।जियो यूँ यह जिन्दगी ईश्वर का अनमोल  उपहार  समझ कर।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 63 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।जियो यूँ यह जिन्दगी ईश्वर का अनमोल  उपहार  समझ कर।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

सफर जारी रखो धूल को रंगोंगुलाल समझ कर।

सफर जारी रखो इसे ना   मलाल समझ कर।।

जीवन की यात्रा  जरा  हंस   कर ही  गुज़ारो।

काम मेंआनन्द लो इसका जलाल समझ कर।।

[2]

मत गुज़ारो   जिन्दगी कोई कारोबार समझ कर।

गुज़ारो जिन्दगी जैसे कोई सरोकार  समझ कर।।

किसीअर्थ को मिला जीवन का अनमोल वरदान।

गुज़ारो यह जिन्दगी ईश्वर का उपहार समझ कर।।

[3]

मत गुज़ारो यह जिंदगी जीत और हार समझ कर।

सहयोग करो सबसे हीअपना संस्कार समझ कर।।

जरूरत से ज्यादा    रोशनी भी बना देती है अंधा।

मत गुज़ारो जिंदगी बस जीने की दरकार समझ कर।।

[4]

नहीं रुको बढ़ो  आगे कोई किरदार समझ कर।

बढ़ो  आगे मुश्किल को भी पतवार समझ कर।।

कठनाई ही संवारती मनुष्य के आत्मविश्वास को।

बढ़ो   आगे इसे जीवन का हिस्सेदार समझ कर।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 127 ☆ “दुनिया बदलती जा रही…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित  ग़ज़ल  – “दुनिया बदलती जा रही …” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #127 ☆ ग़ज़ल – दुनिया बदलती जा रही …” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

चलता तो रहता आदमी हर एक हाल में

पर जलता भी रहता सदा मन के मलाल में।

दुनिया बदलती जा रही तेजी से हर समय

पर मन रहा उलझा कई सपनों के जाल में।

सुनता समझता पढ़ता रहा ज्ञान की बातें

बदलाव मगर आ न सका मन की चाल में।

लालच में ही खोई रहीं नित उसकी निगाहें

बस स्वार्थ  ही पसरा रहा उसके खयाल में

इतिहास है गवाह लड़ी गई लड़ाइयाँ  

क्योंकि नजर गड़ी रही औरों के माल में।

बातें तो प्रेम की किया करता रहा बहुत

पर मुझको दिखा हर समय उलझा बवाल में।

खोजें भी हुई ज्ञान औ’ विज्ञान की कई

पर स्वार्थ की झलक मिली उसके कमाल में।

हर वक्त रही कामना यश और नाम की

धर्मों  के काम तक में औ’ हर देखभाल में।

हर समस्या का मिल गया हल होता शांति से

गर पेंच न डाले गये होते सवाल में।

सद्भावना उसकी ’विदग्ध’ आती नजर कम

बगुला भगत सी दृष्टि है धन के उछाल में।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ राधेचा शेला ! ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

? कवितेचा उत्सव ? 

😅 💃 राधेचा शेला ! 💃 😅 श्री प्रमोद वामन वर्तक ⭐

माता पुसतसे राधेला

येवून तिच्या महाली

तव शेल्यावर ही नवीन

निळाई गं कसली

 

पडली संभ्रमात राधा

आता काय सांगावे

प्राणाहून प्रिय मातेला

कारण काय ते द्यावे

 

आठवून रासरंग क्रीडा

राधा मनोमनी लाजली

धीर करुनी मग मातेला

हसत हसत उत्तरली

 

शेला उडोनी हरीच्या

मुखावरी बघ पडला

बहुदा रंग त्‍या मुखाचा 

त्याने अलगद उचलला

 

उत्तर ऐकून राधेचे

माता गालात हसली

मुख झाकत शेल्याने

राधा अंतःपुरी पळाली

 

© प्रमोद वामन वर्तक

११-०२-२०२३

दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.)

मो – 9892561086 ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #176 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  भावना के दोहे ।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 176 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे … ☆

तीव्र धूप की तीव्रता, करती तीव्र प्रहार।

घायल करे शरीर को, पड़े धूप की मार।।

प्यारे गोल कपोल है, मिला यही आकार ।

देख- देख मन झूमता, हमें हुआ है प्यार।।

पिया गए आखेट पर, बढ़ी आज फिर पीर।

होगा घायल कौन अब, किसे लगेगा तीर।।

करना लालच तुम नहीं, करो हमेशा दान।

तेरे अच्छे कर्म का, मिलता है प्रतिदान।।

भाव भरे निकुंज में,  प्रिये तुम्हारा वास।

पल पल ये रस घोलता, बस तेरी  है आस।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रारब्ध ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – प्रारब्ध  ??

प्रारब्ध के आकाश पर

उनका डाका पड़ता रहा,

कर्म की भूमि का पट्टा, पर

सदा मेरे पास बना रहा…!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9:22 बजे, 28.10.2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि –  ??

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #163 ☆ “संतोष के दोहे…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – संतोष के दोहे ”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 163 ☆

☆ “संतोष के दोहे …” ☆ श्री संतोष नेमा ☆

जीवन के किस मोड़ पर, जाने कब हो अंत

मिलकर रहिये प्रेम से, कहते  साधू संत

 

कोई भी न देख सका, आने वाला काल

काम करें हम नेक सब, रहे न कभी मलाल

कौन यहाँ कब पढ़ सका, कभी स्वयं का भाल

कोई भी न समझ सका, यहाँ समय की चाल

 

ईश्वर ने हमको दिये, जीवन के दिन चार

दूर रहें छल-कपट से, रखिये शुद्ध विचार

जीवन में गर चाहिए, सुख शांति “संतोष”

काम-क्रोध् मद-लोभ् से, दूर रहें रख होश

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “बाबासाहब दोहों में” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

“बाबासाहब दोहों में” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

बाबासाहब श्रेष्ठ थे, किया उच्चतर काम।

जिनके संग हरदम रहें, गौरवमय आयाम।।

संविधान का कर सृजन, दी हमको पहचान।

बाबासाहब दे गए, हमको चोखी शान।।

बाबासाहब ज्ञान थे, रखा हमारा मान।

विधि में हम आगे बढ़े, हुए पूर्ण अरमान।।

संसद के गौरव बने, सामाजिक उजियार।

बाबासाहब ने दिया, मानवता का सार।।

बाबासाहब चेतना, जन-जन के अरमान।

हर जन को आवाज़ दी, किया सकल उत्थान।।

शिक्षा के आलोक से, किया दूर अंधियार।

समरसता का भाव तो, बना मधुर उपहार।।

भीमराव अम्बेडकर, बना गए इतिहास।

ऐसे बंदे ही सदा, हो जाते हैं ख़ास।।

बाबासाहब गीत थे, बने मधुरतम साज़।

करता है हर एक जन, उन पर तो नित नाज़।।

शोषित-पीड़ित पा गए, एक सुखद संसार।

बाबासाहब दिव्य थे, एक अलौकिक प्यार।।

बाबासाहब धन्य हैं, धन्य सभी आचार।

देशभक्ति के भाव से, हर विकार पर मार।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अमर प्रेम ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – अमर प्रेम ??

आँखों में आँखें डालकर

धमकी भरे स्वर में

उसने पूछा,

तुमसे मिलने आ जाऊँ?

उसकी बिखरी लटें समेटते

दुलार से मैंने कहा,

अपने चाहनेवाले से

इस तरह पेश आता है

भला कोई?

जाने क्या असर हुआ

शब्दों की अमरता का,

वह छिटक कर दूर हो गई,

मेरी नश्वरता प्रतीक्षा करती रही,

उधर मुझ पर रीझी मृत्यु

मेरे लिए जीवन की

दुआ करती रही..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 155 ☆ बाल कविता – मीन हैं प्यारी-प्यारी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 155 ☆

☆ बाल कविता – मीन हैं प्यारी-प्यारी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

रंग- बिरंगी मीन घूमतीं

     बड़े जार के अंदर।

ढूँढ़ रही हैं नदियाँ कल- कल

     गहरा नील समंदर।।

 

बार – बार टकरातीं तट से

     दूर कहीं मंजिल है।

चारों ओर लगे है ऐसा

     खड़ी हर तरफ हिल है।।

 

सूरज की किरणों सी चमचम

       मीन हैं प्यारी- प्यारी।

अपनी माँ से बिछुड़ घूमतीं

      नन्ही राजकुमारी।।

 

कैद नहीं मीनों को भाए

     आजादी सबको प्यारी।

शौक पालते अपने सुख को

       गजब है दुनियादारी।।

 © डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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