डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

(डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के नोबल कॉलेज में प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, एक कविता संग्रह (स्वर्ण मुक्तावली), पाँच कहानी संग्रह,  एक उपन्यास (फिर एक नयी सुबह) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता लहरें। )  

☆ कविता ☆ लहरें ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

समुंदर के किनारे पैठ

देख मनमोहक दृश्य

अति सुंदर कलोलित करती,

मन होता प्रशांत,

अंगडाई-सी लेती लहर,

दूध से भी सफेद पानी,

निष्कलुष, निष्कपट, बेऐब,

मानो स्त्री-मन की परछाई हो,

तट पर आकर टकराती,

देहावसान-समय में अति मनोहर,

पैठे पानी में नभ के नीचे,

उठते अनेक कम्पन्न,

जैसे मन का रेसा-रेसा खोल

कुछ कहने का कर रही हो प्रयास,

सोचा मन में कभी लगता मानो,

दर्द उसे भी होता है

बहती अश्रु की धारा

लहरें-मन भी तो है एक,

तो फिर क्यों फर्क?

कभी मन तो कभी लहर

उठता तूफां मन में भी

यह तरंगे कैसी ?

कई बार उफान आता

समंदर के किनारे टकराकर

वापिस अपनों से मिलती

कभी न थकती

कभी लगता मानो!

औरत का दूसरा रुप,

सफेद साडी में लिपटी,

किनारे बैठ मात्र सोचती,

झरनों की भाँति बहती,

अश्रु की अविरल धारा,

वह भी तो झेलती दर्द,

न अहसास किसी को होता

पाती स्वयं को लहर-परछाई-सी,

देख लहर पाती मनोबल

पौंछ नैनों को बढती आगे,

लहरें है रूप जिंदगी का,

लहरें हैं मूरत करूणा की,

सूखे तट को पानी पिलाती,

अठखेलियां  करती ठहर कर,

सफेद मोती जैसे लघु लहरें,

मन को मोहती लहरें,

पुलिन को भी महकाती लहरें।

©डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

संपर्क: प्राध्यापिका, लेखिका व कवयित्री, हिन्दी विभाग, नोबल कॉलेज, जेपी नगर, बेंगलूरू।

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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