हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #42 ☆ कविता – “मुर्शिद…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 42 ☆

☆ कविता ☆ “मुर्शिद…☆ श्री आशिष मुळे ☆

मुर्शिद तुमने जाग़ जगाई

आंख में मेरे जान जो आई

रातों की अब नींद गवाई

तुमने एहसास की आग लगाई

मुर्शिद तुमने जाग़ जगाई

इश्क़ की ये आंधी उठाई

नहीं लगता जब दुश्मन कोई

कैसी अजब ये जीत दिलाई

 *

मुर्शिद तुमने जाग़ जगाई

जैसे सियाही ये पिघलाई

लफ़्ज़ों की हद तूने मिटाई

अनहद गवाही ये गुंजाई

 *

मुर्शिद तुमने जाग़ जगाई

रौशन शब अब दे दुहाई

था अंधेरा बड़ा जाहिली

अल-क़मर तूने रात सजाई

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 199 ☆ यह अपना  नूतन वर्ष है ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 199 ☆

☆ यह अपना नूतन वर्ष है ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

शस्य श्यामला धरती पर

हरषे नर्तन की शहनाई

तब अपना नूतन वर्ष है।

मंद-सुगंध चले पुरवाई

तब अपना नूतन वर्ष है।।

 *

यह सर्द कुहासा छँटने दो

रातों का पहरा हटने दो

धरती का रूप निखरने दो

फागों के गीत थिरकने दो

कुछ करो प्रतीक्षा और अभी

प्रकृति को दुल्हन बनने दो

खुशियों में गाए अमराई

तब अपना नूतन वर्ष है

मंद-सुगंध चले पुरवाई

तब अपना नूतन वर्ष है।।

 *

प्रतिप्रदा चैत की आने दो

धरती को सुधा लुटाने दो

चहुँदिश को ही महकाने दो

तन-मन में फाग सुनाने दो

यह कीर्ति सदा है आर्यों की

यह आर्यावर्त की प्रीत रही

जब धरा दुल्हन-सी मुस्काई

तब अपना नूतन वर्ष है

मंद-सुगन्ध बहे पुरवाई

तब अपना नूतन वर्ष है।।

  

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #225 – कविता – ☆ तू चलता चल, अपने बल पर… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “नया पथ अपना स्वयं गढ़ो…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #225 ☆

☆ तू चलता चल, अपने बल पर… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

तू चलता चल, अपने बल पर

संकल्प नहीं सौगंध नहीं, अब जो जैसा है ढलने दें

उस कालचक्र की मर्जी पर, वो जैसा चाहें चलने दें

जो हैं शुभचिंतक बने रहें, उनसे ही तो ऊर्जा मिलती

हैं जो ईर्ष्या भावी साथी, वे जलते हैं तो जलने दें।

हो कर निश्छल, मन निर्मल कर।

तू चलता चल, अपने बल पर।।

*

अब भले बुरे की चाह नही, अपमान मान से हो विरक्त

हो नहीं शत्रुता बैर किसी से, नहीं किसी के रहें भक्त

एकात्म भाव समतामूलक, चिंता भय से हों बहुत दूर,

हो देह शिथिल, पर अंतर्मन की सोच सात्विक हो सशक्त।

मत ले सम्बल, आश्रित कल पर।

तू चलता चल, अपने बल पर।।

*

जीवन अनमोल मिला इसको अन्तर्मन से स्वीकार करें

सत्कर्म अधूरे रहे उन्हें, फिर-फिर प्रयास साकार करें

बोझिल हो मन या हो थकान, तब उम्मीदों की छाँव तले

बैठें विश्राम करें कुछ पल, विचलित मन का संताप हरें

मत आँखें मल, पथ है उज्ज्वल।

तू चलता चल, अपने बल पर।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 50 ☆ आँधियों के राग… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “आँधियों के राग…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 50 ☆ आँधियों के राग… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

नदी कर स्नान

फिर आ घाट पर बैठी

धूप में रेता सुखाती है।

तप रहे हैं पाँव

होंठों पर दहकती आग

हवा के मस्तूल

बजते आँधियों के राग

दोपहर सुलगी

छुपी पेड़ों के नीचे

छाँव,थोड़े पल बिताती है।

श्वेत खद्दर पहन

बगुले चुन रहे हैं मछलियाँ

खाट पर लेटा

दिवस,ले रहा है झपकियाँ

पसीना खारा

मीठी प्यास के मारे

नींद आलस भर सुलाती है।

दिन थका हारा

लिए घर लौट आई साँझ

अँधेरे में लुटा

सब कुछ,हुईं रातें बाँझ

चाँद मटमैला

छुपा जाने कहाँ है

चाँदनी भ्रम को जगाती है।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मनोरोग ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मनोरोग ? ?

वह मिला था,

वह मिली थी..,

वह आया था,

वह आई थी..,

वह हँसा था,

वह हँसी थी..,

वह सोया था,

वह सोई थी..,

कर्ता का लिंग बदलने से

नहीं बदलता क्रिया का अर्थ,

व्याकरण तटस्थ होता है..,

कर्ता का लिंग बदलते ही

कर देता है सारे अर्थ वीभत्स,

आदमी मनोरोग से ग्रस्त होता है..!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित साधना मंगलवार (गुढी पाडवा) 9 अप्रैल से आरम्भ होगी और श्रीरामनवमी अर्थात 17 अप्रैल को विराम लेगी 💥

🕉️ इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी करें। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना भी साथ चलेंगी 🕉️

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मैं रिआया हूँ तुम न कम आंको… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “मैं रिआया हूँ तुम न कम आंको“)

✍ मैं रिआया हूँ तुम न कम आंको… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

जान तुझपे ही मैं निसार करूँ

अय वतन इतना तुझसे प्यार करूँ

 *

पौ है फटने लगी लो शब गुजरी

और कब तक मैं इंतज़ार करूँ

 *

हाथ में हाथ दो न छोडूंगा

कैसे इस दिल पे इख्तियार करूँ

 *

आप तनक़ीद कीजिये खुलकर

अपने किरदार में निखार करूँ

 *

तुम वफ़ा का यकीं दिलाओ तो

मैं तुम्हें अपना राजदार करूँ

 *

गम बँटाने जो मेरे साथ हो तुम

क्यों तलाशे मैं ग़म गुसार करूँ

 *

दुश्मनी कर ले दोस्ती न सही

पीठ पर में कभी न वार करूँ

 *

साथ चल मेरे कारवाँ कर दो

नफरतें सारी तार तार करूँ

 *

मैं बुलंदी पे भी तुम्हें हूँ वही

ये गुजारिश मैं खाकसार करूँ

 *

मैं रिआया हूँ तुम न कम आंको

चाह लूँ रंक ताजदार करूँ

 *

इश्क़ की गलियों में तू रुसवा अरुण

किस तरह तेरा ऐतबार करूँ

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… चैत्र नवरात्र… ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। दोहा संग्रह दोहा कलश प्रकाशित, विविध छंद कलश प्रकाशनाधीन ।राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 200 से अधिक सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… चैत्र नवरात्र☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

चैत्र मास तिथि प्रतिपदा , बहुत हर्ष है आज।

नवसंवत्सर वार है , बनते शुभमय काज।।1!!

*

भजते माँ अम्बे रहे, नवसंवत्सर वार।

जले ज्योति है नौ दिवस,  माँ करती उद्धार।।2!!

*

माँ अम्बे का सज रहा,  खूब बड़ा दरबार।

रखे मात अम्बे कदम, हरती कष्ट अपार।।3!!

*

पूजा घर पर ही करें , भगवा ध्वज फहराय।

चरण शरण मैया पड़े , जीवन का सुख पाय।।4!!

*

धर्म जाति कोई रहे, माने खुश त्योहार।

भक्ति भाव मन में सजे,  सुखद बने संसार।।5!!

*

नव कलिका मन की खिली, अब आनन्द विभोर।

नव संवत्सर की किरण , मन में करती शोर।।6!!

*

चैत्र शुक्ल संवत रहे, सुखमय हो परिवेश।

बुरी बला जग से मिटे,  मिले सुखद संदेश।।7!!

*

भारतीय नव वर्ष में,मना रहे त्योहार।

सत्य सनातन धर्म यह,  नवसंवत शुभ सार।।8!!

*

जले ज्योति हर घर  सजे, हुआ तिमिर का नाश।

कलश स्थापना कर रहे,  करते दूर निराश।।9!!

*

जीवन जीना शुरु करें, करना सदा विशेष ।

धर्म कर्म अरु प्रीत भर, अंतस मत रख द्वेष ।।10!!

 

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 48 – प्यार से जीत लूँ जहाँ सारा… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – प्यार से जीत लूँ जहाँ सारा।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 48 – प्यार से जीत लूँ जहाँ सारा… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

मैं, तेरे नाम का प्याला चाहूँ 

अब, न कोई दूसरी हाला चाहूँ

*

दाग, जिसमें न हों बुराई के 

पुण्य का दिव्य दुशाला चाहूँ

*

मैं भी, अंधा था मोह माया में 

ज्ञान का, सिर्फ उजाला चाहूँ

*

नफरतें बो रहे हैं, सब मजहब 

धर्म, इन्सानियत वाला, चाहूँ

*

नाम, हर साँस में तुम्हारा हो 

जिन्दगी की, वही माला, चाहूँ

*

प्यार से, जीत लूँ जहाँ सारा 

कोई बन्दूक न भाला चाहूँ

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 124 – अपने संस्कारों को हमने… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “अपने संस्कारों को हमने…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 124 – कविता – अपने संस्कारों को हमने… ☆

अपने संस्कारों को हमने,

घर-आँगन में तापा।

पथ से भटके संतानों के,

छिप-छिप रोते पापा।

 *

तन पर पड़ीं झुर्रियां देखीं,

सिर में छाई सफेदी ।

दर्पण ने सूरत दिखलाई

दिल ने खोया आपा।

 *

जोड़-तोड़ कर भरी तिजोरी,

अंतिम समय में लोचा।।

जीवन जीना सरल है भैया,

सबसे कठिन बुढ़ापा।

 *

गलत राह पर चढ़े शिखर में,

गिरते आँखों देखा।

बुरे काम का बुरा नतीजा,

जोगी ने घर नापा।।

 *

बनी हवेली रही काँपती,

वक्त में काम न आई।

साँसों की जब डोर है टूटी,

यम ने मारा लापा।

 *

जिन पर था विश्वास हमारा,

घात लगा धकियाया।

गैरों ने ही दिया सहारा,

अखबारों ने छापा।

 *

देर सही अंधेर नहीं है,

सूरज तो निकलेगा।

दशरथ नंदन हैं अवतारी

रावण ने भी भाँपा।

 *

अपने संस्कारों को हमने,

अपने हाथों तापा।

पथ से भटके संतानों के,

छिप-छिप रोते पापा।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दशरथ मांझी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

।। शुभ गुड़ी पाडवा ।। 

न राग बदला, न लोभ, न मत्सर,
बदला तो बदला केवल संवत्सर।

*

परिवर्तन का संवत्सर
केवल कागज़ों तक सीमित न रहे।
मन मात्र के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हो,
मानव स्वागत से समष्टिगत हो।

।। शुभ गुड़ी पाडवा ।। 

? संजय दृष्टि – दशरथ मांझी ? ?

वे खड़े करते रहे

मेरे इर्द-गिर्द

समस्याओं के पहाड़

धीरे-धीरे….,

मेरे भीतर

पनपता गया

एक ‘दशरथ मांझी’

धीरे-धीरे…!

© संजय भारद्वाज  

रात्रि 8:17 बजे, 7 अप्रैल 2023

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संयोजक – सद्मार्ग मिशन ☆ संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित साधना मंगलवार (गुढी पाडवा) 9 अप्रैल से आरम्भ होगी और श्रीरामनवमी अर्थात 17 अप्रैल को विराम लेगी 💥

🕉️ इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी करें। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना भी साथ चलेंगी 🕉️

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares
image_print