हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दशरथ मांझी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

।। शुभ गुड़ी पाडवा ।। 

न राग बदला, न लोभ, न मत्सर,
बदला तो बदला केवल संवत्सर।

*

परिवर्तन का संवत्सर
केवल कागज़ों तक सीमित न रहे।
मन मात्र के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हो,
मानव स्वागत से समष्टिगत हो।

।। शुभ गुड़ी पाडवा ।। 

? संजय दृष्टि – दशरथ मांझी ? ?

वे खड़े करते रहे

मेरे इर्द-गिर्द

समस्याओं के पहाड़

धीरे-धीरे….,

मेरे भीतर

पनपता गया

एक ‘दशरथ मांझी’

धीरे-धीरे…!

© संजय भारद्वाज  

रात्रि 8:17 बजे, 7 अप्रैल 2023

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संयोजक – सद्मार्ग मिशन ☆ संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित साधना मंगलवार (गुढी पाडवा) 9 अप्रैल से आरम्भ होगी और श्रीरामनवमी अर्थात 17 अप्रैल को विराम लेगी 💥

🕉️ इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी करें। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना भी साथ चलेंगी 🕉️

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 183 – सुमित्र के दोहे… जीवन  ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपके अप्रतिम दोहे – जीवन।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 183 – सुमित्र के दोहे… जीवन ✍

क्षणभर का सानिध्य ही, तन में भरे उजास।

दर्शन की यमुना हरे, युगों युगों की प्यास।।

*

हृदय और मरुदेश में, अंतर नहीं विशेष।

हरित भूमियों के तले, पतझड़ के अवशेष ।।

*

तन-मन में शैथिल्य है, गहरा है अवसाद ।

एक सहारा शेष है, अपने प्रिय की याद।।

*

यह सांसों की बांसुरी, कब लोगे तुम हाथ ।

प्रश्नाकुल साधे कहें, कब तक रहें, अनाथ।।

*

मरुथल जैसी जिंदगी, अंतहीन भटकाव।

हरित भूमियों से मिले, जीवन के प्रस्ताव।।

*

नील वसन तन आवरित, सितवर्णी छविधाम।

कहां प्राण घन राधिके, अश्रु अश्रु घनश्याम।।

*

मौसम की गाली सुने, मन का मौन मजूर ।

और आप ऐसे हुए, जैसे पेड़ खजूर।।

*

जंगल जंगल घूम कर, मचा रहे हो धूम ।

पंछी को पिंजरा नहीं, ऐसे निकले सूम।।

*

क्या मेरा संबल मिला, बस तेरा अनुराग ।

मन मगहर को कर दिया, तूने पुण्य प्रयाग।

*

सांस सदा सुमिरन करें, आंखें रही अगोर।

अहो प्रतीक्षा हो गई, दौपदि वस्त्र अछोर।।

*

बरस बीत कर यो गया, मेघ गया हो रीत।

कालिदास के अधर पर, यक्ष प्रिया का गीत।।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 185 – “इधर आँख में आँसू…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  इधर आँख में आँसू ...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 185 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “इधर आँख में आँसू ...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

उतर गई सूरज की पीली-

धूप बढ़ी छाया ।

गया‘ , दिहाडी से अब

तक क्यों लौट नहीं पाया?

 

उसकी बेटी कल से भूखी

व कुपोषिता थी ।

ग्राम महाजन के कर्जे की

रुग्ण शोषिता भी

 

उसके सूखे कंठ सिर्फ

अटका था यह जुमला-

माँ कब दोगी रोटी कल

से कुच्छ नहीं खाया ॥

 

पिघले शीशे से उंडेल

कर शब्द अचेत हुई ।

मेरी बेटी बची सिर्फ

क्या जैसे छुईमुई ।

 

ऐसा सोच गयारमवा

की औरत दरवाजे –

आतुर खड़ी प्रार्थना

करती सुन लो रघुराया ॥

 

तनिक देर के बाद कोई

हरकारा चिल्लाया ।

मढ़ पर भण्डारा, हुजूर ने

सबको बुलवाया ।

 

इधर आँख में आँसू मन

में लहर खुशी की रख –

गयाराम की बीबी कहती

धन्य प्रभू माया ॥

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

22-03-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – स्त्रीलिंग ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – स्त्रीलिंग ? ?

नवजात का रुदन

जगत की पहली भाषा,

अबोध की खिलखिलाहट

जगत का पहला महाकाव्य,

शिशु का उंगली पकड़ना

जगत का पहला अनहद नाद,

संतान का माँ को पुकारना

जगत का पहला मधुर निनाद,

प्रसूत होती स्त्री केवल

एक शिशु को नहीं जनती,

अभिव्यक्ति की संभावनाओं के

महाकोश को जन्म देती है,

संभवत: यही कारण है

भाषा, स्त्रीलिंग होती है!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित साधना मंगलवार (गुढी पाडवा) 9 अप्रैल से आरम्भ होगी और श्रीरामनवमी अर्थात 17 अप्रैल को विराम लेगी 💥

🕉️ इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी करें। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना भी साथ चलेंगी 🕉️

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 172 ☆ विश्व कविता दिवस विशेष # “शायद वो कविता कहलाई होगी” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है विश्व कविता दिवस परआपकी भावप्रवण कविता “शायद वो कविता कहलाई होगी”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 172 ☆

☆ # विश्व कविता दिवस विशेष – “शायद वो कविता कहलाई होगी” # ☆ 

हिमखंड जब प्रखर तापसे

टूटकर पिघले होंगे

बर्फ से जल के फौवारे

चारों तरफ निकले होंगे

बर्फ की चट्टानो को चिरकर

जल के धारों को मोड़कर

जल की धारा बहते बहते

अवरोधों को सहते सहते

कहीं कुंड, कहीं झरना

कहीं जलाशय, कहीं नदी

कहलाई होगी

तभी जल के नाद में डूबकर

प्रवाह के गीत बनकर

कोई रचना बन पाई होगी

शायद वो कविता कहलाई होगी

 

वर्षा के रुत में, तपते देह से बुत में

काले काले मेघ, गर्जना करते मेघ

प्रचंड गर्जना से

गिराते चपल तड़ित

शांत वातावरण को कर खंडीत

वर्षा की बूंदें,

पृथ्वी पर है सब आंखें मूंदे

तपते देह को भिगोती होगी

हृदय में आग लगाती होगी

तब अनायास ही

हर देह से

वर्षा से नेह से

जब प्रित लगाई होगी

शायद वो कविता कहलाई होगी

 

सावन के झूलों में

फूलों के मेलों में

झूलती तरूणाई

ले मदमस्त अंगड़ाई

आसमान को छुती हुई

सावन के गीत गाती हुई

प्रियतम को याद कर

मेघों से फरियाद कर

श्रृंगार कर लज्जा ती होगी

रसिक प्रेमी को बुलाती होगी

इनके फुहारों में मिलन से

जो रसधार बहाई होगी

शायद वो कविता कहलाई होगी

 

तपे हुए लोहे पर मारता घन

जलते कोयले सा जलता मन

पसीने से तरबतर शरीर

आंखों के कोने में

छुपे हुए नीर

अंग अंग पर जलने के दाग़

पेट में जलती जन्मोंकी आग

बढ़ती मंहगाई बेहिसाब

रूखी रोटी संग प्याज

जब पानी पिकर

भूख मिटाई होगी

फिर उसने जो

धुन गुनगुनाई होगी

शायद वो कविता कहलाई होगी

 

जब सर पर ना हो किसी का साया

चिथड़ों में लिपटी हुई हो काया

गिद्ध सी घूरती हुई नज़रें

सुनती हर पल छींटों के कतरें

दूर कमाने गया है मालक

छाती से लिपटा हुआ है बालक

सुखे स्तन से दूध चूसता है

दूध ना आने पर वो रूसता है

उसका रूदन मां को रूलाता है

मां के नयनों से आंसू बहाता है

भूखें पेट बच्चे को, मां ने जो

लोरी सुनाकर सुलाई होगी

शायद वो कविता कहलाई होगी

 

उसकी लगन में

अपनी ही मगन में

घूमता हुआ फकीर

खैर मांगता जैसे कबीर

उसका अलख जगाते हुए

प्रित की ज्योति जलाते हुए

भेदभाव को मीटाकर

सबको अपने गले लगाकर

रंगता सबको उसके रंग में

लौ लगाता अंग अंग में

सब कर्मकांडों को तोड़कर

परमात्मा से हाथ जोड़कर

जो प्रार्थना उसने गाई होगी

शायद वो कविता कहलाई होगी/

*

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – प्रतीक्षा… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता ‘प्रतीक्षा…’।)

☆ कविता – प्रतीक्षा… ☆

करे प्रतीक्षा राधा तेरी,

 तेरी राह निहारे,

कब आओगे कान्हा,

कण कण तुझे पुकारे,

यमुना की लहरों ने अब,

चंचलता को छोड़ दिया,

वंशी वट की शाखों पर,

पुष्पों ने खिलना छोड़ दिया,

कुंज गली के लता पुष्प,

 सब तेरी बाट निहारे,

कब आओगे कान्हा…

बिलख बिलख कर,

सूख गई सबकी अखियां,

निधिवन में अब न जाएंगी

तुझसे बिछड़ी सखियां,

मौन हो गई तेरी बंसी

आकर उसे बजा रे,

कब आओगे कान्हा…

जब साथ नहीं देना था,

तो फिर क्यों आया था,

क्यों इतना नेह लगाया,

क्यों इतना तरसाया था,

जोड़ लिए जब सबसे नाते

इनको मत बिसरा रे,

कब आओगे कान्हा,

कण कण तुझे पुकारे.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 182 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 182 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 182) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 182 ?

☆☆☆☆☆

गर यूँही घर में बैठा रहा

मार डालेगी तनहाइयाँ…

चल चलें मैखाने में जरा

ये फ़ना दिल बहल जायेगा…

☆☆

If I keep staying at home like this

The aloofness is going to  kill me

O’ dear  let’s  just  go to the bar…

This dying heart will come alive!

☆☆☆☆☆

इक किस्सा अधूरे इश्क़ का

आज भी है दरम्यान तेरे मेरे…

हैं मौजूद साहिलों की रेत पे

पैरों के कुछ निशान तेरे मेरे…

☆☆

A tale of inconclusive love still

exists between us, even today…

Few of our footprints are still

Present on the sand of shores…

☆☆☆☆☆

मरता तो कोई नही

किसी के प्यार में…

बस यादें कत्ल करती

रहती है किश्तों-किश्तों में…

☆☆

Nobody ever dies in

someone’s  love…

In installments just the

Memories  keep killing you…

☆☆☆☆☆

दीदार की तलब हो तो

नज़रें जमाये रखिये,

क्योंकि नक़ाब हो या नसीब, 

सरकता  तो  जरूर है…

☆☆

If urge of her glimpse is there

Then keep an eye on it patiently

Coz whether it’s the  mask or

luck , it moves for sure…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 181 ☆ त्रिपदियाँ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है त्रिपदियाँ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 181 ☆

☆ त्रिपदियाँ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

प्राण फूँक निष्प्राण में, गुंजित करता नाद

जो- उससे करिये ‘सलिल’, आजीवन संवाद

सुख-दुःख जो वह दे गहें, हँस- न करें फ़रियाद।

*

शर्मा मत गलती हुई, कर सुधार फिर झूम

चल गिर उठ फिर पग बढ़ा, अपनी मंज़िल चूम

फल की आस किये बिना, काम करे हो धूम।

*

करी देश की तिजोरी, हमने अब तक साफ़

लें अब भूल सुधार तो, खुदा करेगा माफ़?

भष्टाचार न कर- रहें, साफ़ यही इन्साफ।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२८.११.२०१४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आदिबीज ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – आदिबीज ? ?

ये ज़मीन मेरी है

इसकी रजिस्ट्री मेरी है,

कोठी, गाड़ी, इज़्ज़त

जायदाद, जेवरात मेरे हैं,

इन्हें छू नहीं सकता कोई,

औरत बनती है

कभी ज़मीन

कभी रजिस्ट्री

इज़्ज़त और ़

जायदाद भी मर्द की,

मुर्दा सम्पत्ति का

ज़िंदा आदिबीज होती है औरत!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ महाशिवरात्रि साधना पूरा करने हेतु आप सबका अभिनंदन। अगली साधना की जानकारी से शीघ्र ही आपको अवगत कराया जाएगा। 🕉️💥

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #231 – 118 – “नुमाइश…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “नुमाइश…” ।)

? ग़ज़ल # 115 – “नुमाइश…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

ज़िंदगी खुशनुमा है जब दिल से दिल मिलता है,

जमाने में दिल को कहाँ सच्चा दिल मिलता है।

*

वक़्त ने बदल कर रख दी तहरीर आशियाने की,

रहते खुद के घर में पता दुश्मन का मिलता है।

*

मुहब्बत में गुमसुम लोगों से पता पूछते हो ?

ढूँढने पर उनको नहीं ख़ुद का पता मिलता है।

*

दोस्ती का खेल भी खूब खेला जा रहा आजकल,

काम निकला फिर कहाँ दोस्त का घर मिलता है।

*

रिश्ते नाते दिखावटी नुमाइश बन कर रह गए हैं,

आतिश प्यार माँगने पर ही अपनों से मिलता है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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