हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 204 ☆ जीवन का सच ☆ प्रस्तुति – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – “जीवन का सच)

☆ कविता – जीवन का सच ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय  

अनकहे शब्दों के बोझ से,

थक जाते हैं वे कभी कभी,

इस तरह उनका खामोश रहना, 

समझदारी है या फिर मजबूरी,

एक दिन सपने में उनके कर्म,

उनसे अचानक मिलने पहुंचे, 

बोले हद से ज्यादा अच्छे होने, 

की कीमत नहीं चुका पाओगे,

इसलिए खुद को थोड़ा अच्छा, 

बना लीजिए कुछ लिख डालिए,

महासागर की तरंगें मापने की 

बात तो सोचना भी असंभव है,

जीवन सच में अबूझ पहेली है

जीवन में करुणा है खोजिए,

जीवन में शांति महसूस कीजिए

कुछ भी समझ नहीं आता तो 

जीवन का श्रृंगार लिख दीजिए,

एक सच्ची बात सुन लीजिए,

मुश्किल नहीं है किसी को भी,    

अपना बहुत अपना बनाना, 

लेकिन बहुत ही मुश्किल है 

किसी को अपना बनाये रखना,

क्योंकि जीवन में अच्छी चीजें

चुरा लीं जातीं हैं आसानी से,

जैसे वे चुरा लेते हैं नम आंखें,

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 145 ☆ # तुम जब मिलने आओगी… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# आजादी की पावन बेला में… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 145 ☆

☆ # तुम जब मिलने आओगी#

तुम जब मिलने आओगी

वो पल कितना पावन होगा

मुस्कुराती हुई कलियां होगी

झूमता हुआ सावन होगा

 

भीगा हुआ तन होगा

पुलकित कितना मन होगा

हर तरफ बजेगी शहनाई

मिलन की हो घड़ी आई

कोयल गीत सुनाएगी

जब तुम बाग में आओगी

रिमझिम-रिमझिम फुहारों से

तर-बतर चमन होगा

जब तुम मिलने आओगी

झूमता हुआ सावन होगा

 

फूलों के झूले होंगे

सुध-बुध सब भूले होंगे

तरूणाई झूल रही होगी

मदिरा बूंदों में घुल रही होगी

मतवाले भ्रमर घूम रहे होंगे

कलियों को चूम रहे होंगे

ऐसे मादक मौसम में

कितना मदमस्त पवन होगा

जब तुम मिलने आओगी

झूमता हुआ सावन होगा

 

तुम्हारे पग की आहट सुनकर

तुम्हारे पथ के कांटे चुनकर

राह में कलियां बिछी होंगी

प्रेम रस से सिंची होंगी

तुम्हारा दमकता हुआ रूप

जैसे बादलों से झांकती धूप

सावन में आग लगाता हुआ

बेजोड़ तुम्हारा यौवन होगा

तुम जब मिलने आओगी

झूमता हुआ सावन होगा

 

जब तुम आओगी तो

सावन की घटा बन छाओगी तो

बिजलियां जोर से कड़केगी

बूंदें बारिश बन बरसेगी

काया से मिलेगी जब काया

लगेगा स्वर्ग जमीं पर है आया

यह सावन वहीं रूक जायेगा

जब आगोश में बदन होगा

तुम जब मिलने आओगी

झूमता हुआ सावन होगा/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “हम चंदा पर” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ “हम चंदा पर” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

चंद्रयान पहुँचा चंदा पर,तीन रंग फहराये।

शान बढ़ी,सम्मान बढ़ गया,हम सारे हर्षाये।।

ज़ीरो को खोजा था हमने,आर्यभट्ट पहुँचाया।

छोड़ मिसाइल शक्ति बने हम,सबका मन लहराया।।

सबने मिल जयनाद गुँजाया,जन-गण-मन सब गाये।

शान बढ़ी,सम्मान बढ़ गया,हम सारे हर्षाये।।

मैं महान हूँ,कह सकते हम,हमने यश को पाया।

एक महागौरव हाथों में,आज हमारे आया।।

जिनको नहीं सुहाते थे हम,उनको हम हैं भाये।

शान बढ़ी,सम्मान बढ़ गया,हम सारे हर्षाये।।

जो कहते थे वे महान हैं,उनको धता बताया।

भारत गुरु है दुनिया भर का,यह हमने जतलाया।।

शान तिरंगा-आन तिरंगा,गीत लबों पर आये।

शान बढ़ी,सम्मान बढ़ गया,हम सारे हर्षाये।।

अंधकार में किया उजाला,ताक़त को बतलाया।

जो समझे थे हमको दुर्बल,उन पर भय है आया।।

जोश लिये हर जन उल्लासित,हम हर दिल पर छाये।

शान बढ़ी,सम्मान बढ़ गया,हम सारे हर्षाये।।

ज्ञान और विज्ञान रचे हम,हमने शशि को पाया।

आशाओं का सूरज दमका,हमने नवल रचाया।।

नया और अनुपम-मंगलमय,विजय-ध्वजा फहराये।

शान बढ़ी,सम्मान बढ़ गया,हम सारे हर्षाये।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 154 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 154 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 154) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 154 ?

☆☆☆☆☆

बडी मुश्किल से खुद

को सुलाया है  मैंने,

अपनी आंखों को तेरे

ख़्वाबों का लालच देकर…!

☆☆ 

I’ve put myself to sleep

with great difficulty,

By giving my eyes the

greed of your dreams…

☆☆☆☆☆

ये जाँबाज़ फ़ौजी भी कमाल

के  ज़िगर  वाले  होते  हैं…

बटुए में परिवार और दिल में

सारा हिंदुस्तान छुपा लेते हैं!

☆☆

These brave soldiers also

have amazing   heart  too

They hide their family in the

wallet and India in the heart!

☆☆☆☆☆

वक्त  तो  वक्त  आने

पर  ही  बदलता  है,

मगर इंसान का क्या

कभी भी बदल जाता है…

☆☆

Time changes only when

the  time  comes,

But what to say of mankind

which changes randomly…

☆☆☆☆☆

ये  जिंदगी जो  मुझे

कर्जदार बनाती  रही,

कभी अकेले  में मिले

तो उससे हिसाब करूं…

☆☆

The life that has  kept

me always  indebted

If  ever I meet it alone,

I’ll settle accounts with it…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 152 ☆ नवगीत – “भारत / तकनीक…” ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक नवगीत – भारत / तकनीक…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 152 ☆

☆ नवगीत – भारत / तकनीक… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

भारत

यह देश भारत वर्ष है, इस पर हमें अभिमान है 

कर दें सभी मिल देश का, निर्माण नव अभियान है 

गुणयुक्त हो अभियांत्रिकी, शर्म-कोशिशों का गान है 

परियोजना त्रुटिमुक्त हो, दुनिया कहे प्रतिमान है

तकनीक

नवरीत भी, नवगीत भी, संगीत भी तकनीक है 

कुछ प्यार है, कुछ हार है, कुछ जीत भी तकनीक है 

गणना नयी, रचना नयी, अव्यतीत भी तकनीक है 

श्रम-मंत्र है, नव यंत्र है, सुपुनीत भी तकनीक है 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१२-१२-२०१५, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #204 – 90 – “ना किया अब तक वो तू कर देख …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “ना किया अब तक वो तू कर देख…”)

? ग़ज़ल # 90 – “ना किया अब तक वो तू कर देख…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

अंगारे की तासीर जरा छू कर देख,

ना किया अब तक वो तू कर देख।

ग़रीब हो गया ठंडा आकाश के नीचे,

बँगले में हीटर से गर्माया कूकर देख।

वो जो सुंदर जिस्म पर इतराता था,

ऊँची लपट में जला वह धू कर देख।

लिया गया हाथोंहाथ सत्ता वाला नेता,

चुना जिन्होंने उनसे दगा तू कर देख। 

करते किसे याद तुम भरकर तिजौरी,

‘आतिश’ बन्दों से मुहब्बत तू कर देख।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ युद्ध के बाद ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

श्री हरभगवान चावला

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा  लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता – युद्ध के बाद )

☆ कविता – युद्ध के बाद ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

वे अजनबी ज़मीन पर मर गये

उनके मज़बूत जिस्म तेज़ धूप में

भाप बनकर उड़ गये

उनकी हड्डियाँ जब ज़मींदोज़ होने के लिए

सैलाबों और तूफ़ानों का इंतज़ार करती थीं

कितने ही गाँवों में

माँओं और विधवाओं के विलाप गूँजते थे

खेतों में तबाह हो गई थीं फ़सलें

जानवर मर गए थे, मर रहे थे

औरतों और भैंसों के दूध सूख गए थे

पागलों की तरह गलियों में भटक रहे थे

कर्ज़ में डूबे किसानों के अस्थिपंजर

जब राजधानी में निरंतर

चल रहे थे जीत के जश्न

आसमान आतिशबाज़ियों से बौराया हुआ था

दुश्मन का नामो-निशान मिटा देने की

अहंकारपूर्ण प्रतिज्ञाएँ ली जा रही थीं

ठीक उसी समय अनगिनत लड़कियाँ

अपने गुमशुदा महबूब को याद कर

युद्ध और युद्ध-पिपासुओं को कोस रही थीं।

©  हरभगवान चावला

सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जिजीविषा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – जिजीविषा ??

संकट, कठिनाई,

अनिष्ट, पीड़ादायी,

आपदा, अवसाद,

विपदा, विषाद,

अरिष्ट, यातना,

पीड़ा, यंत्रणा,

टूटन, संताप,

घुटन, प्रलाप,

इन सबमें सामान्य क्या है?

क्या है जो हरेक में समाता है,

उत्कंठा ने प्रश्न किया..,

मुझे इन सबमें चुनौती

और जूझकर परास्त

करने का अवसर दिखता है,

जिजीविषा ने उत्तर दिया..!

© संजय भारद्वाज 

दोपहर 3: 24 बजे, सोमवार 9 मार्च 2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 81 ☆ मुक्तक ☆ ।। धरती से चांद तक भारत ने बना दिया इतिहास है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

☆ मुक्तक ☆ ।। धरती से चांद तक भारत ने बना दिया इतिहास है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

[1]

चांद पर   भारत   ने   परचम    लहराया है।

छूकर दक्षिण  ध्रुव   नया नाम   कमाया है।।

पहला देश बना  इस  छोर   पर जाने वाला।

दूर के चंदा  मामा का  गजब टूर लगाया है।।

[2]

चंद्रयान 3 ने भारत की नई पहचान बनवा दी है।

दुनिया जहान को विश्व  गुरु कहानी सुना दी है।।

विक्रम प्रज्ञान अब  लग गए हैं खोजी काम पर।

आन बान हिंदुस्तान की   आसमान बना दी है।।

[3]

विज्ञान की जीत भारत की कामयाबी बन गई है।

दूर चंदा मामा की सफ़लता  नयाबी बन गई है।।

शानदार जानदार अभूतपूर्व अद्भुत रहा अंजाम।

सारी दुनिया के सवालों की लिए जवाबी बन गई।।

[4]

सोमनाथ ओ उनकी टीम ने रच दिया इतिहास है।

चौथा देश बना भारत ये अवसर  बहुत खास है।।

तिरंगा फहराया  दिया  है चंद्रमा की मिट्टी   पर।

हम मंगल शुक्र भी जीत लेंगे  ऐसा विश्वास है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 145 ☆ महाकवि तुलसी ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित कविता – “महाकवि तुलसी…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

 

 ☆ महाकवि तुलसी ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

हे राम कथा अनुगायक तुलसी, जन मन के अनुपम ज्ञाता

तुमने जो गौरव ग्रंथ लिखा, भटकों को वह पथ दिखलाता।

 

‘मानस’ हिन्दी का चूड़ामणि, मानवताहित तव अमर दान

संचित जिसमें सब धर्म नीति, व्यवहार, प्रीति, आदर्श ज्ञान।

 

हे व्रती उपासक रामभक्त, अनुरक्त सतत साधक ज्ञानी

तुमने जीवन को समझ सही, भावों को दी मार्मिक वाणी ।

 

जनभाषा में करके व्याख्या लिख दी जीवन की परिभाषा

अनुशीलन जिसका देता है दुख में डूबे मन को आशा ।

 

भौतिक संतापों से झुलसी, जीवन लतिका जो मुरझाई

मानस जल कण से सिंचित हो, फिर पा सकती नई हरियाई ।

 

तुम भारत के ही नहीं, सकल मानवता के गौरव महान

गुरू श्रेष्ठ महाकवि हे तुलसी, तुम अतुल विमल नभ के समान।

 

हे भारत-संस्कृति समन्वयक, नित राम तत्व के गुणगायक

तुम धर्मशील, गुण संस्थापक, सात्विक मर्यादा उन्नायक ।

 

शिव-शक्ति-विष्णु की त्रिधा मिला, शुभ रामभक्ति के उद्‌गाता

हितकर सामाजिक मूल्यों के तुम सर्जक, नव जीवन दाता ।

 

सब अपना लेते यदि उसको, जो पथ है तुमने दिखलाया

तो होता सुख-संसार सुलभ, मन जिसे चाह पा न पाया।

 

पर कमी हमारी ही, हममें हैं कई स्वार्थी संसारी

लेकिन जिन मन तव राम बसे, वे सतत तुम्हारे आभारी।

 

साहित्य जगत के प्रखर सूर्य से आसमान हे ख्यात नाम –

अभिवादन है तव चरणों में शत शत वन्दन, शत शत प्रणाम ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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