प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित कविता – “महाकवि तुलसी…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

 

 ☆ महाकवि तुलसी ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

हे राम कथा अनुगायक तुलसी, जन मन के अनुपम ज्ञाता

तुमने जो गौरव ग्रंथ लिखा, भटकों को वह पथ दिखलाता।

 

‘मानस’ हिन्दी का चूड़ामणि, मानवताहित तव अमर दान

संचित जिसमें सब धर्म नीति, व्यवहार, प्रीति, आदर्श ज्ञान।

 

हे व्रती उपासक रामभक्त, अनुरक्त सतत साधक ज्ञानी

तुमने जीवन को समझ सही, भावों को दी मार्मिक वाणी ।

 

जनभाषा में करके व्याख्या लिख दी जीवन की परिभाषा

अनुशीलन जिसका देता है दुख में डूबे मन को आशा ।

 

भौतिक संतापों से झुलसी, जीवन लतिका जो मुरझाई

मानस जल कण से सिंचित हो, फिर पा सकती नई हरियाई ।

 

तुम भारत के ही नहीं, सकल मानवता के गौरव महान

गुरू श्रेष्ठ महाकवि हे तुलसी, तुम अतुल विमल नभ के समान।

 

हे भारत-संस्कृति समन्वयक, नित राम तत्व के गुणगायक

तुम धर्मशील, गुण संस्थापक, सात्विक मर्यादा उन्नायक ।

 

शिव-शक्ति-विष्णु की त्रिधा मिला, शुभ रामभक्ति के उद्‌गाता

हितकर सामाजिक मूल्यों के तुम सर्जक, नव जीवन दाता ।

 

सब अपना लेते यदि उसको, जो पथ है तुमने दिखलाया

तो होता सुख-संसार सुलभ, मन जिसे चाह पा न पाया।

 

पर कमी हमारी ही, हममें हैं कई स्वार्थी संसारी

लेकिन जिन मन तव राम बसे, वे सतत तुम्हारे आभारी।

 

साहित्य जगत के प्रखर सूर्य से आसमान हे ख्यात नाम –

अभिवादन है तव चरणों में शत शत वन्दन, शत शत प्रणाम ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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