हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४८॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४८॥ ☆

 

ज्योतिर्लेखावलयि गलितं यस्य बर्हं भवानी

पुत्रप्रेम्णा कुवलयदलप्रापि कर्णे करोति

धौतापाङ्गं हरशशिरुचा पावकेस तं मयूरं

पश्चाद अद्रिग्रहणगुरुभिर गर्जितैर नर्तयेथाः॥१.४८॥

 

जिसके सुरंजित प्रभारश्मि मण्डित

स्वयं ही गिरे पंख को श्री भवानी

वात्सल्य के वश , कमल दल अलग कर

बना निज लिया धार अवतंस मानी

शिव शशि प्रभा से त्ा धौत जिसके

नयन, षडानन का शिखि वहां पाना

पर्वत गुहा ध्वनित घन गर्जना से

स्वयं की , उसे तुम वहां पर नचाना

शब्दार्थ    … अवतंस = कान का आभूषण

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शब्दकोश ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि – शब्दकोश ☆

वह लिखती रही विरह,

मैं बाँचता रहा मिलन,

चलो शोध करें,

दृष्टि बदलने से

भाव, नया रूप पा जाता है क्या?

शब्द का अर्थ बदल जाता है क्या?

और पता नहीं कैसे

मेरे पास बदले अर्थों का

एक शब्दकोष संचित हो गया है!

 

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य #93 ☆ कविता – किशोरी बेटियां ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक  विचारणीय कविता  ‘किशोरी बेटियां इस सार्थकअतिसुन्दर कविता के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 93 ☆

☆ कविता – किशोरी बेटियां ☆

मन में ऊँची ले उड़ाने, बढ़ रही हैं ये किशोरी बेटियां

स्कूल में जो वृक्ष पर, संग खड़ी हैं ये किशोरी बेटियां

 

कोई भी परिणाम देखो, अव्वल हैं हर फेहरिस्त में

हर हुनर में लड़कों पे भारी पड़ रही हैं ये किशोरी बेटियां

 

अब्बा अम्मी और टीचर, हौसले ही सब बढ़ा सकते हैं बस

अपना फ्यूचर खुद बखुद ही गढ़ रही हैं ये किशोरी बेटियां

 

तालीम का गहना पहनकर, बुरके को तारम्तार कर

औरतों के हक की खातिर लड़ रही हैं ये किशोरी बेटियां

 

“कल्पना” हो या “सुनीता” गगन में, “सोनिया” या “सुष्मिता”

रच रही वे पाठ खुद जो, पढ़ रही हैं ये किशोरी बेटियां

 

इनको चाहिये प्यार थोड़ा परवरिश में, और केवल एक मौका

करेंगी नाम, बेटों से बढ़कर होंगी साबित ये किशोरी बेटियां

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 76 – हाइबन- नक्शे का मंदिर ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है  “हाइबन- नक्शे का मंदिर। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 76☆

☆ हाइबन- नक्शे का मंदिर ☆

नक्शे पर बना मंदिर! जी हां, आपने ठीक पढ़ा। धरातल की नीव से 45 डिग्री के कोण पर बना भारत के नक्शे पर बनाया गया मंदिर है। इसे भारत माता का मंदिर कह सकते हैं। इस मंदिर की छत का पूरा नक्शा भारत के नक्शे जैसा हुबहू बना हुआ है। इसके पल में शेष मंदिर का भाग है।

इस मंदिर की एक अनोखी विशेषता है । भारत के नक्शे के उसी भाग पर लिंग स्थापित किए गए हैं जहां वे वास्तव में स्थापित हैं । सभी बारह ज्योतिर्लिंग के दर्शन इसी नक्शे पर हो जाते हैं।

कांटियों वाले बालाजी का स्थान कांटे वालों पेड़ की अधिकता के बीच स्थित था। इसी कारण इस स्थान का नाम कांटियों वाले बालाजी पड़ा।  रतनगढ़ के गुंजालिया गांव, रतनगढ़, जिला- नीमच मध्यप्रदेश में स्थित भारत माता के इस मंदिर में बच्चों के लिए बगीचे, झूले, चकरी आदि लगे हुए हैं । इस कारण यह बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

कटीले पेड़~

नक्शे पर सेल्फी ले

फिसले युवा।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

09-09-20

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४७॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४७॥ ☆

तत्र स्कन्दं नियतवसतिं पुष्पमेघीकृतात्मा

पुष्पासारैः स्नपयतु भवान व्योमगङ्गाजलार्द्रैः

रक्षाहेतोर नवशशिभृता वासवीनां चमूनाम

अत्यादित्यं हुतवहमुखे संभृतं तद धि तेयः॥१.४७॥

 

वहाँ पर स्वयं पुण्य घन व्योम गंगा

सलिल सिक्त तुम पुष्प वर्षा विमल से

नियतवास  स्कन्द को देवगिरि पर

प्रथम पूजना मित्र कुछ और चल के

षडानन वही इन्द्र की सैन्य रक्षार्थ

जिनको स्वयं शम्भु ने था बनाया

रवि से प्रभापूर्ण , अति तेज वाले

जिन्होंने अनल मुख से था जन्म पाया

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 82 – गौरैया आती है…. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से  सफलतापूर्वक उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना गौरैया आती है….। )

☆  तन्मय साहित्य  #  82 ☆ गौरैया आती है….  

रोज सबेरे खिड़की पर

गौरैया आती है

और चोंच से टिक-टिक कर

वह मुझे जगाती है।

 

उठते ही मैं उसे देख

पुलकित हो जाता हूँ

पूर्व जन्म का रिश्ता

कोई अपना पाता हूँ,

चीं चीं चीं चीं करते

जाने क्या कह जाती है……..

 

आँगन में कुछ दाने

चावल के बिखेरता हूँ

बाहर टंगे सकोरे में

पानी भर देता हूँ

रोज सुबह इस पानी से

वह खूब नहाती है………..

 

चहचहाहटें घर में

मेरे सुबह शाम रहती

इन पंखेरुओं की किलौल

सब चिंताएं हरती

साँझ, ईश वंदन, कलरव

के मन्त्र सुनाती है…………

 

मिलकर गले लगाएं

इस भोली गौरैया को

और सुरक्षा – संरक्षण

इस सोन चिरैया को

घर आँगन में जो सदैव

खुशियाँ बरसाती है…

रोज सबेरे खिड़की पर

गौरैया आती है।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश0

मो. 9893266014

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 33 ☆ जिंदगी चलती रही☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता जिंदगी चलती रही। ) 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 33 ☆

☆ जिंदगी चलती रही ☆

जिंदगी दोजख जीती रही,

मैं जन्नत समझ जिंदगी जीता रहा,

जिंदगी आगे दौड़ती रही,

मैं जिंदगी के पीछे चलता रहा,

जिंदगी हर पल साँस देती रही,

मैं  साँसे यूँ ही उड़ाता रहा,

जिंदगी बिना रुके चलती रही,

मैं रुक-रुक कर उसे झांसा देता रहा,

जिंदगी अच्छा बुरा सब देती रही,

मैं अच्छाई नजरअंदाज कर उसे बुरा कहता रहा,

जिंदगी सम्भलने का मौका देती रही,

मैं ठोकरें खा कर जिंदगी को भला बुरा कहता रहा,

जिंदगी उतार-चढ़ाव दिखाती रही,

मैं जिंदगी की सच्चाई से मुंह मोड़ता रहा,

यह क्या जिंदगी तो मुझे ही छोड़ कर जाने लगी,

मैं रो-रोकर जिंदगी से जिंदगी की भीख मांगता रहा ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४६॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४६॥ ☆

 

त्वन्निष्यन्दोच्च्वसितवसुधागन्धसम्पर्करम्यः

स्रोतोरन्ध्रध्वनितसुभगं दन्तिभिः पीयमानः

नीचैर वास्यत्य उपजिगमिषोर देवपूर्वं गिरिं ते

शीतो वायुः परिणमयिता काननोदुम्बराणाम॥१.४६॥

 

जलासेक से तब मुदित, धरणि उच्छवास

मिश्रित पवन रम्य शीतल सुखारी

जिसे शुण्ड से पान करते द्विरद दल

सध्वनि , पालकी ले बढ़ेगा तुम्हारी

तुम्हें देवगिरि पास गमनाभिलाषी

वहन कर पवन मंद गति से चलेगा

कि पा इस तरह सुखद वातावरन को

वहां पर सपदि वन्य गूलर पकेगा

 

शब्दार्थ    … जलासेक = पानी की फुहार

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 70 ☆ मस्तानी ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं ।  सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “मस्तानी”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 70 ☆

☆ मस्तानी

हुई थी एक मस्तानी कभी!

मैं भी हूँ एक मस्तानी ही!

रंगी थी वो बाजीराव प्रेम में-

मौला के रंग रंगी हूँ मैं भी!

 

जब झील के पानी में झाँका,

उसमें मैंने अक्स अपना देखा;

किसी पर मर-मिट जाने वाला

जाने कहाँ से मैंने अंश देखा!

 

कई बहाने थे ज़िंदगी में लुत्फ़ के,

इश्क में मस्तानी ने किस्मत बोई!

शहर के चौराहों में क्या रखा था?

पहाड़ पर खड़े दरख्तों में मैं खोई!

`

मुहब्बत मस्तानी ने भी की थी,

मुहब्बत तो में भी करती हूँ;

समाज से उसने जंग थी लड़ी,

किसी से कहाँ मैं भी डरती हूँ!

 

जाने उसने हिम्मत कहाँ से पाई?

उसके पास भला कैसे ताकत थी?

ने’मत है मेरे पास तो मौला की,

इश्क शायद उसकी इबादत थी!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ग्लेशियर ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि – ग्लेशियर ☆

पाँच माह पूर्व लिखी एक कविता उत्तराखंड में कल हुई त्रासदी के बाद एकाएक स्मरण हो आयी।

? इस दुर्घटना में काल कवलित हुए सभी की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना है। दिवंगत आत्माओं को नमन करते हुए हम सब जीवित देह वालों से चिंतन का अनुरोध भी है।?

कितने प्रवाह

कितनी धाराएँ,

असीम पीड़ाएँ

अनंत व्यथाएँ,

जटा में बंधी आशंकाएँ

जटा में जड़ी संभावनाएँ,

हिमनद पीये खड़ा है

महादेव-सा पग धरा है,

पंचतत्व की देन हो

पंचतांडव से डरो,

मनुज सम आचरण करो,

घटक हो प्रकृति के,

प्रकृति का सम्मान करो,

केदारनाथ की आपदा

का स्मरण करो,

मनुज, इस पारदर्शी

ग्लेशियर से डरो!

©  संजय भारद्वाज

(1.37 दोपहर, 4.9.2020)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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