श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता जिंदगी चलती रही। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 33 ☆

☆ जिंदगी चलती रही ☆

जिंदगी दोजख जीती रही,

मैं जन्नत समझ जिंदगी जीता रहा,

जिंदगी आगे दौड़ती रही,

मैं जिंदगी के पीछे चलता रहा,

जिंदगी हर पल साँस देती रही,

मैं  साँसे यूँ ही उड़ाता रहा,

जिंदगी बिना रुके चलती रही,

मैं रुक-रुक कर उसे झांसा देता रहा,

जिंदगी अच्छा बुरा सब देती रही,

मैं अच्छाई नजरअंदाज कर उसे बुरा कहता रहा,

जिंदगी सम्भलने का मौका देती रही,

मैं ठोकरें खा कर जिंदगी को भला बुरा कहता रहा,

जिंदगी उतार-चढ़ाव दिखाती रही,

मैं जिंदगी की सच्चाई से मुंह मोड़ता रहा,

यह क्या जिंदगी तो मुझे ही छोड़ कर जाने लगी,

मैं रो-रोकर जिंदगी से जिंदगी की भीख मांगता रहा ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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