श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि – ग्लेशियर ☆

पाँच माह पूर्व लिखी एक कविता उत्तराखंड में कल हुई त्रासदी के बाद एकाएक स्मरण हो आयी।

? इस दुर्घटना में काल कवलित हुए सभी की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना है। दिवंगत आत्माओं को नमन करते हुए हम सब जीवित देह वालों से चिंतन का अनुरोध भी है।?

कितने प्रवाह

कितनी धाराएँ,

असीम पीड़ाएँ

अनंत व्यथाएँ,

जटा में बंधी आशंकाएँ

जटा में जड़ी संभावनाएँ,

हिमनद पीये खड़ा है

महादेव-सा पग धरा है,

पंचतत्व की देन हो

पंचतांडव से डरो,

मनुज सम आचरण करो,

घटक हो प्रकृति के,

प्रकृति का सम्मान करो,

केदारनाथ की आपदा

का स्मरण करो,

मनुज, इस पारदर्शी

ग्लेशियर से डरो!

©  संजय भारद्वाज

(1.37 दोपहर, 4.9.2020)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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वीनु जमुआर

गहन चिंतन के लिए प्रेरित करती रचना…

अलका अग्रवाल

ऐसा क्यों हुआ उस पर विचार करके भविष्य में न दोहराने को प्रेरणा देती रचना।

माया कटारा

मनुज !
पारदर्शी ग्लेशियर से डरो , प्रकृति का सम्मान करो –
इस संचेतक रचना के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद रचनाकार …..