English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 30 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 30 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 30) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 30☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मैं दिल हूँ, रुकूँगा…

तो  मर  जाऊँगा,

मुझे  सुकून  ना  दे,

बस बेकरार रहने दे…

 

I am just a  heart…

If stopped,  I’ll  die…

Give me no relaxation,

Let me be restless only…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

जिंदगी भी एक

फन है लम्हों का

इसे अपने अंदाज

से  गँवाने  का…

 

Life  is  just  an

artistry of moments

To have them wasted

in  their  own  style…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

अक्सर कुछ अनकही बातें

बहुत कुछ  कह जाती हैं

ज़रूरी नहीँ कि हर चीज़

लफ़्ज़ों  में  ही  बयाँ हो…

 

Sometimes  even  some

Unexpressed things say a lot

It’s not always necessary

Everything be said in words!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

ख्वाहिशों से भरा पड़ा है

मन  इस  कदर  कि…

रिश्ते  भी  तरसते  हैं …

ज़रा सी जगह पाने के लिए…

 

The mind is full of desires

to such an extent that

Relationship also yearns

to  get  a  little space…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 30 ☆ भारत आरती ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  आचार्य जी  द्वारा रचित आरती भारत आरती । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 30 ☆ 

☆ भारत आरती ☆ 

आरती भारत माता की

सनातन जग विख्याता की

*

सूर्य ऊषा वंदन करते

चाँदनी चाँद नमन करते

सितारे गगन कीर्ति गाते

पवन यश दस दिश गुंजाते

देवगण पुलक, कर रहे तिलक

ब्रह्म हरि शिव उद्गाता की

आरती भारत माता की

*

हिमालय मुकुट शीश सोहे

चरण सागर पल पल धोए

नर्मदा कावेरी गंगा

ब्रह्मनद सिंधु करें चंगा

संत-ऋषि विहँस,  कहें यश सरस

असुर सुर मानव त्राता की

आरती भारत माता की

*

करें श्रृंगार सकल मौसम

कहें मैं-तू मिलकर हों हम

ऋचाएँ कहें सनातन सच

सत्य-शिव-सुंदर कह-सुन रच

मातृवत परस, दिव्य है दरस

अगिन जनगण सुखदाता की

आरती भारत माता की

*

द्वीप जंबू छवि मनहारी

छटा आर्यावर्ती न्यारी

गोंडवाना है हिंदुस्तान

इंडिया भारत देश महान

दीप्त ज्यों अगन, शुद्ध ज्यों पवन

जीव संजीव विधाता की

आरती भारत माता की

*

मिल अनल भू नभ पवन सलिल

रचें सब सृष्टि रहें अविचल

अगिन पंछी करते कलरव

कृषक श्रम कर वरते वैभव

अहर्निश मगन, परिश्रम लगन

ज्ञान-सुख-शांति प्रदाता की

आरती भारत माता की

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ अभिन्न ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ अभिन्न

अलग करने की

कल्पनाभर से अस्तित्व

धुआँ-धुआँ हो चला,

लेखन मुझमें है

या मैं लेखन में हूँ,

अबतक पता नहीं चला…!

©  संजय भारद्वाज 

प्रात: 5:58 बजे, 18.11.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Germination ..…☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poem  “अंकुर..”.  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

☆ संजय दृष्टि  ☆ अंकुर..

छिन्न-भिन्न कर दिया

अस्तित्व तुम्हारा,

फिर भी

तुम्हारी हिम्मत

टूटती क्यों नहीं,

आस मिटती

क्यों नहीं..?

झल्लाकर पूछा

कुटिल स्थितियों ने…,

मैं अपलक निहारता रहा

ध्वस्त कर दी गई

इमारत के मलबे से

फूटते अंकुर को…,

कुटिलता मुरझा गई,

स्थितियाँ खिसिया गईं!

©  संजय भारद्वाज 

4.33 दोपहर,17.11.2020

 

☆ Germination .. ☆

Crooked circumstances

asked fretfully,

I’ve shattered apart

your existence,

Nevertheless,

Why doesn’t

your courage ever break…??

Why is that your

hope never fades away..??

Why not…!!

I kept staring intently

at the germinating sprout

rising from the ruins

of the demolished building,

Crookedness paled

embarrassingly,

Circumstances fled away

like a thrashed army!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 16 ☆ अनवरत सेवा हमारे क्लब की जान है ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की  रोटरी क्लब के लिए एक काव्यात्मक प्रस्तुति  अनवरत सेवा हमारे  क्लब की जान है।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 16 ☆

☆ अनवरत सेवा हमारे  क्लब की जान है 

अनवरत सेवा हमारे  क्लब की जान है

क्योकि सेवा ही सही इंसान की पहचान है

दीन दुखियो में ही  रहता है कहीं भगवान भी

सार हर एक धर्म का बस त्याग ,तप, व्रत , दान है

अनवरत सेवा हमारे  क्लब की जान है

 

आये दिन नई आग में जलता विवश संसार है

हर घाव को भरता जो , वो , केवल प्यार है

दवायें तो बिकती हैं कई यों सभी बाजार में

स्नेह ही लेकिन समस्या का सही उपचार है

अनवरत सेवा हमारे क्लब की जान है

 

जी रहे जो लोग जन जन की खुशी के वास्ते

द्वार से उनके ही मिलते प्रेम के कई रास्ते

निस्वार्थ सेवा सात्विक हो धर्म का उपदेश है

कुछ न कुछ सेवा हमें करनी है  हर दिन याद से

अनवरत सेवा हमारे क्लब की जान है

 

स्वस्थ तन मन और धन भगवान का वरदान है

औरो का हित करने में सुख शांति जग कल्याण है

विश्व सेवा व्रत लिये सर्वस्व सेवा के लिये

विश्व व्यापी संगठन का यह सतत अभियान है

अनवरत सेवा हमारे  क्लब की जान है

 

आदमी दुनियां में दो दिन का ही मेहमान है

जुटाता पर हर तरह सौ साल का सामान है

पर सामाजिक हित हो जिससे, हर किसी को लाभ हो

रोटरी इस पर अमल करते, क्लब को यही अभिमान है .

अनवरत सेवा हमारे क्लब की जान है

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ बची रहेगी कविता ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ बची रहेगी कविता

जब नहीं बचा रहेगा,

पाठकों …अपितु

समर्थकों का प्रशंसागान,

जब आत्ममोह को

घेर लेगी आत्मग्लानि,

आकाश में

उदय हो रहे होंगे

नये नक्षत्र और तारे,

यह तुम्हारा

अवसानकाल होगा,

शुक्लपक्ष का आदि

कृष्णपक्ष की इति

तक आ पहुँचा होगा,

सोचोगे कि अब

कुछ नहीं बचा

लेकिन तब भी

बची रहेगी कविता,

कविता नित्य है,

शेष सब अनित्य,

कविता शाश्वत है,

शेष सब नश्वर,

अत: गुनो, रचो,

और जियो कविता!

 

©  संजय भारद्वाज 

प्रात: 8:21 बजे, 2 नवम्बर 2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 60 ☆ माँ ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “माँ । आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 60 ☆

☆  माँ  ☆

बच्चे माँ से कर रहे, बस यह एक सवाल

कब दोगी माँ तुम हमें, रोटी के संग दाल

 

माँ की ममता जगत में, होती है अनमोल

जन्नत चरणों में बसे, समझें माँ का मोल

 

बिन शिक्षक शिक्षा नहीं, गुरु बिन मिले न ज्ञान

जीवन में मिलता सदा, शिक्षा से सम्मान

 

सूर्योदय लाता सदा, खुशी और उत्साह

केसर-सी चमके किरण, जिसका रंग अथाह

 

रखें राष्ट्र हित सामने, हो ऐसा निर्माण

देश-भक्ति जिनके नहीं, उनके दिल पाषाण

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ अंकुर ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ अंकुर 

छिन्न-भिन्न कर दिया

अस्तित्व तुम्हारा,

फिर भी

तुम्हारी हिम्मत

टूटती क्यों नहीं,

आस मिटती

क्यों नहीं..?

झल्लाकर पूछा

कुटिल स्थितियों ने…,

मैं अपलक निहारता रहा

ध्वस्त कर दी गई

इमारत के मलबे से

फूटते अंकुर को…,

कुटिलता मुरझा गई,

स्थितियाँ खिसिया गईं!

©  संजय भारद्वाज 

4.33 दोपहर,17.11.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य #82 ☆ कविता – शब्द तुम्हारे कुछ ले कर के, घर लौटें तो अच्छा हो ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी की एक विचारणीय एवं सार्थक कविता  ‘शब्द तुम्हारे कुछ ले कर के,  घर लौटें तो अच्छा हो‘। इस सार्थक कविता के लिए श्री विवेक रंजन जी  का  हार्दिकआभार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 82 ☆

☆ कविता शब्द तुम्हारे कुछ ले कर के,  घर लौटें तो अच्छा हो ☆

 कवि गोष्ठी से मंथन करते , घर लौटें तो अच्छा हो ।

शब्द तुम्हारे कुछ ले कर के,  घर लौटें तो अच्छा हो ।।

 

कौन किसे कुछ देता यूँ ही,  कौन किसे सुनता है अब,

छंद सुनें और गाते गाते,  घर लौटें तो अच्छा हो ।।

 

शुष्क समय में शून्य हृदय हैं, सब अपनी मस्ती में गुम,

रचनायें सुन हृदय भिगोते, घर लौटें तो अच्छा हो ।।

 

अपनी अपनी पीड़ाओं से सब पीड़ित, पर सब हैं चुप

पर पीड़ा सुन, खुद को खोते, घर लौटें तो अच्छा हो ।।

 

अपनी अपनी कविताओं पर, आत्ममुग्ध हैं सब के सब,

पर के भाव हृदय में ढोते, घर लौटें तो अच्छा हो ।।

 

कविताओं की विषय वस्तु तो , कवि को ही तय करनी है,

शाश्वत भाव सदा सँजोते, घर लौटें तो अच्छा हो ।।

 

रचना  पढ़े बिना, समझे बिन, नाम देख दे रहे बधाई

आलोचक से सहमत होते, घर लौटें  तो अच्छा हो ।।

 

कई डायरियां, ढेरों कागज, भर डाले सब लिख लिखकर,

छपा स्वयं का पढ़ते पढ़ते, घर लौटें तो अच्छा हो ।।

 

पढ़ते लिखते उम्र गुजारी, वर्षों गुजरे जलसों में,

अब जलसों में श्रोता बनके, घर लौटें तो अच्छा हो ।।

 

बड़ा सरल है वोट न देना,  और कोसना शासन को

वोटिंग कर कर्तव्य निभाते, घर लौटें तो अच्छा हो ।।

 

पहली बारिश पर मिट्टी की सौंधी खुशबू से तर हो,

खिले खिले कुछ महके महके, घर लौटें तो अच्छा हो ।।

 

बच्चों के सुख दुख  के खातिर  जीवन जिसने होम किया,

उसका हाथ थाम कर बच्चे , घर लौटें तो अच्छा हो ।।

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ आज़ादी… ☆ श्री जयेश वर्मा

श्री जयेश कुमार वर्मा

(श्री जयेश कुमार वर्मा जी का हार्दिक स्वागत है। आप बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक  अतिसुन्दर भावप्रवण कविता धुँए का दर्द…।)

☆ कविता  ☆ आज़ादी… ☆

आज़ादी ,मिल गयी,

लोंगो ने निकाले, अर्थ, उसके,

कई, अपनी मर्ज़ी के,

खूब, भोगा, उसको,

सरे आम नीलाम किया,

इन गुज़रे, गुज़रते, सालों बाद भी,

बुधुआ, अब भी, वैसा ही,

मज़दूर, किसान, रहा,

इस पीढ़ी के बुधुआ से पूछो,

इन टोपी, झंडों, वालों ने,

इन, नेता, अफसर, दलालों ने

उसे कितना लूटा, बेज़ार किया,

किसान का हक़ मारा,

वो, मौसम से लड़ता,

अपने फ़र्ज़ पे ईमान रहा,

उसके नाम के कई नेता,

बईमानों का बाज़ार रहा,

उसे जो दे इज़्ज़त, रोटी,

लगता नेताओँ को,

मुँह से छिनती बोटी,

जारी है, झूठ को,

सच करने की कोशिश,

अब देखो कब,

इस देश के, बुधुआ, किसान, को,

मिलती है, इनसे, आज़ादी,

मिलती है, इनसे, आज़ादी,

आज़ादी, आज़ादी, आज़ादी,…

 

©  जयेश वर्मा

संपर्क :  94 इंद्रपुरी कॉलोनी, ग्वारीघाट रोड, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
वर्तमान में – खराड़ी,  पुणे (महाराष्ट्र)
मो 7746001236

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
image_print