हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 14 (21-25)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #14 (21 – 25) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -14

कर बनवास समाप्त यों किया राज-पद प्राप्त।

पूरी कर पितृआज्ञा, जो था उनको आप्त।।21अ।।

 

अर्थ धर्म और काम प्रति ज्यों था सम व्यवहार।

अनुजों से भी राम का प्रेम था उसी प्रकार।।21ब।।

 

सब कृतिकाओं से था ज्यों कार्तिकेय को प्यार।

त्यों ही सब माताओं से था समान व्यवहार।।22।।

 

लोभ त्याग कर प्रजा को किया सुखी सम्पन्न।

विघ्न न थे कोई कहीं सब थे मुदित प्रसन्न।।23अ।।

 

प्रजा मानती थी पिता उन्हें, पा सद्-उपदेश।

और पुत्रवत क्योंकि वे हरते उनके क्लेश।।23ब।।

 

नागरिकों का ध्यान रख करते थे सबकाज।

थीं सीता के रूप में राज-लक्ष्मी विराज।।24।।

 

राजमहल में रंगे थे वन के कई प्रसंग।

जिन्हें कभी वे देखते थे सब सुख के संग।।25अ।।

 

दण्डकवन में पाये दुख को भी वे कर याद।

पाते थे सुख, गये दिनों के करते संववाद।।25ब।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ संवाद ☆ कै सुधीर मोघे ☆

? कवितेचा उत्सव ?

☆ संवाद ☆ कै सुधीर मोघे ☆

ना सांगताच तू

मला उमगते सारे

कळतात तुलाही

मौनातील इशारे.

दोघात कशाला मग,

शब्दांचे बंध

‘कळण्या’ चा चाले

‘कळण्या’ शी संवाद.

 

कवी – कै सुधीर मोघे

 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 79 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 79 –  दोहे ✍

लज्जा, ममता, शीलता, साड़ी तीर्थ स्वरूप।

दुल्हन का घूंघट करे, आंचल मां का रूप।।

 

शील और सौंदर्य का, अद्वितीय प्रतिमान ।

धोती या साड़ी कहे, भारतीय परिधान ।।

 

वस्त्र व्यक्ति को सजाते, देते हैं पहचान ।

निर्भर करता व्यक्ति पर, रखे  वस्त्र का मान।।

 

एक नूर है आदमी, कपड़ा नूर हजार।।

व्यक्ति वस्त्र से कीमती, होता है व्यवहार।।

 

रुचि सुविधा के मुताबिक, लोग चुनें परिधान ।

आवेष्ठित सौंदर्य का, जगत करे सम्मान।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 81 – “पूरी पीढी देख रही…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “पूरी पीढी देख रही …।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 81 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “पूरी पीढी देख रही ”|| ☆

आँखों से आँतों तक की

सम्भावित दूरी में।

सारे पैसे चुके मिले जो

मुझे मजूरी में ।।

 

तन ढकने का प्रश्नअभी

तक रस्ते में अटका ।

पूरी पीढी देख रही मैं

कहाँ -कहाँ भटका ।

 

ऐसे चिथड़े जिन्हें आप

अश्लील भले कह लें ।

मगर उन्हीं से ढके

स्वयं को हूँ मजबूरी में।।

 

घर का सधा विचार कभी

आया करता तो है।

पर समझाईश मिली-

“ईश छाया करता तो है ।

 

इतने पेड़,पहाड,गुफा,

कोटर जैसे आश्रय ।

फिर क्यों खोया रहता हूँ

इस साध अधूरी में।।”

 

अगर मिली भर-पेट

कहीं जो चोकर की रोटी ।

जिसके आगे अमरावति

की पंगत है खोटी ।

 

सब, तब दिव्य दिखाई देती

दुनिया की हलचल ।

लगता जैसे टहल रहा हूँ

माल, मसूरी में ।।

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

12-03-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 72 ☆ # स्त्री # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आपकी एक भावप्रवण कविता “# स्त्री #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 72 ☆

☆ # स्त्री # ☆ 

सुबह सुबह मैने पत्नी से कहा –

महारानी जी उठिए

बेहतरीन चाय की चुसकियाँ लीजिये

गरमागरम पकोड़े साथ में खाते हैं

मुझे पत्ता है

तुम्हें हरी मिर्च की चटनी के साथ

खूब भाते हैं

पत्नी ने अलसाये से उठते हुये

घड़ी देख समय का जायजा लिया

मुझपे मुस्कुराते हुये कटाक्ष किया

आज यह सूर्य पूरब की जगह पश्चिम से

कैसे निकला है

एक पत्थर दिल पुरुष का

मन कैसे पिघला है

मैने मुस्कुराते हुये कहा –

तुमने मेरे साथ जीवन बिताया है

हर पल मेरा साथ निभाया है

आज आई है मुझे चेतना

समझ पाया तुम्हारी वेदना

तुम्हारे साथ करता रहा-

जीवन भर पक्षपात

भावनाओं पर आघात

अपने पुरुषत्व पर दर्प

मेरे भीतर छुपा हुआ विषैला सर्प

तुम्हें काटता रहा

दर्द बांटता रहा

फिर भी तुम अजर हो गई

शिवानी की तरह अमर हो गई

महिला दिवस पर

तुम्हारे त्याग, अदम्य साहस

द्रुढ़ इच्छाशक्ति, झूजारु प्रवृति को

श्रद्धा से नमन करता हूँ

अपना अहं छोड़

तुम्हारे समक्ष समर्पण करता हूँ

मैं तुम्हारा सहचर हूँ

तुम्हारा पक्षधर हूँ

तुम्हारी अभिव्यक्ति का

स्त्री शक्ति का

शिक्षा का

अधिकारों की रक्षा का

स्वतंत्रता का

समानता का

क्योंकि,

तुम्हारे ममत्व, स्नेह, संवेदनाऔं से जुड़े

ये रिश्ते, ये घरबार है

तुम्हारे दम पर टिका यह संसार है

प्रिये, तुम ईश्वर का वरदान हो

वाकई “स्त्री” तुम महान हो.

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 14 (16-20)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #14 (16 – 20) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -14

सुखद सत्य-व्रत से पिता जो न कभी गये दूर।

माँ कैकेयी उसमें तेरा ही था योग भरपूर।।16अ।।

 

यों कह माता के हृदय का हर सकल विषाद।

हाथ जोड़ नत राम ने पाया आशीर्वाद।।16ब।।

 

तब सुग्रीव विभीषण आदि को दे उपहार।

उनकी इच्छा सिद्धि हित किया उचित सत्कार।।17।।

 

अगस्तादि मुनि आये थे, जो अभिनंदन हेतु।

उन्हें पूज उनसे सुना, राम-जन्म का हेतु।।18।।

 

तपस्वियों के गमन पर राम ने कर सत्कार।

विदा किया सबको दिये सीता ने उपहार।।19।।

 

‘पुष्पक’ जो नभ पुष्प सा था कामना विमान।

कहा उसे भी कुबेर प्रति करने को प्रस्थान।।20।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 83 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 83 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 83) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 83☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

वो पत्ता आवारा ना

बनता तो क्या करता ..

ना ही हवाओं ने बख्शा,

ना ही टहनियों ने पनाह दी…

 

What else the leaf could’ve done

than turning into a maverick…

Neither did the winds spare it,

nor did branches give it shelter!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

हम दोनों की ही नीयत

कुछ ठीक नहीं लगती

भला इतना वक्त कब

लगता है बिछड़ने में…!

  

Looks like both of us don’t seem

to have good intentions

When does it take so much

of time to get separated..

  ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

तसददुक इस करम के

मैं कभी तन्हा नहीं रहता

जिस दिन तुम नहीं आते

तुम्हारी याद आती है…

 

As a result of this charity,

I never ever feel lonely

The day you don’t come,

Your memory visits me

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

बड़े बुजुर्गों की उँगलियों में कोई

ताकत तो ना थी पर मेरे

झुके सर पे रखते काँपते हाथों ने

जमाने भर की दौलत दे दी…

 

Though the fingers were strengthless,

but the trembling hands of elders

Once placed on my bowed head

bestowed the wealth of lifetime…!

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह #84 ☆ सॉनेट गीत – तुम ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

 

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘सॉनेट गीत – तुम।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 84 ☆ 

☆ सॉनेट गीत – तुम☆

 

ट्रेन सरीखी लहरातीं तुम।

पुल जैसे मैं थरथर होता।

अपनों जैसे भरमातीं तुम।।

मैं सपनों सा बेघर होता।।

 

तुम जुमलों जैसे मन भातीं।

मैं सचाई सम कडुवा लगता।

न्यूज़ सरीखी तुम बहकातीं।।

ठगा गया मैं; खुद को ठगता।।

 

कहतीं मन की बात, न सुनतीं।

जन की बात अनकही रहती।

ईश न जाने क्या तुम गुनतीं।।

सुधियों की चादर नित तहती।।

 

तुम केवल तुम, कोई न तुम सा।

तुम में हूँ मैं खुद भी गुम सा।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

८-३-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 14 (11-15)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #14 (11 – 15) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -14

 

रथ पर धारे छत्र थे भरत सहित सम्मान।

लखन शत्रुहन चँवर ले शोभित थे द्युतिमान।।11अ।।

 

राजाराम विराजते थे सब सहित अनूप।

साम-दाम-दंड-भेद ज्यों चार भाई के रूप।।11ब।।

 

कालागुरू की धूप भी वायु में धूम्र समान।

नगरी की कबरी खुली सी देती पहचान।।12।।

 

सज्जा सज्जित सिया को निरख डोली आसीन।

खिड़की से ललनाओं ने किया नमन मनलीन।।13।।

 

अनुरूपा आशीष के अंगराग से दीप्त।

लगी, हों ज्यों पावन सिया पुनः परीक्षा-दीप्त।।14।।

 

सबको दे आवास गृह सब सुविधा-सम्पन्न।

याद-शेष, पितुगृह गये राम अश्रु आपन्न।।15।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ #132 – आतिश का तरकश – ग़ज़ल-20 – “होली पर बात करेंगे” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “होली पर बात करेंगे…”)

? ग़ज़ल # 20 – “होली पर बात करेंगे” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

दिल खुलने लगे कुछ बात करेंगे,

मोबाइल न लाना कुछ बात करेंगे।

 

दिन बुरे गुजरे कोरोना के संग,

अब बातों बातों में रात करेंगे।

 

निपटे मंदिर-मस्जिद के झगड़े,

प्यार मुहब्बत की बात करेंगे।

 

बहुत हुए फ़ासले लोगों के बीच,

आपस में मिला एक पाँत करेंगे।

 

छँटा आशंका का मनहूस साया,

रंग ओ गुलाल बरसात करेंगे।

 

दिमाग़ी धुँध भी छँटेगी ज़रूर,

दिल से दिल की बात करेंगे।

 

तुम बस चले भर आओ आज,

होली पर ढीले जज़्बात करेंगे।

 

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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