हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#122 ☆ भूख जहाँ है…..…. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक विषय पर आधारित विचारणीय कविता  “भूख जहाँ है………”)

☆  तन्मय साहित्य  #122 ☆

☆ भूख जहाँ है……… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

भूख जहाँ है, वहीं

खड़ा हो जाता है बाजार।

 

लगने लगी, बोलियां भी

तन की मन की

सरे राह बिकती है

पगड़ी निर्धन की,

नैतिकता का नहीं बचा

अब कोई भी आधार।

भूख जहाँ………….

 

आवश्यकताओं के

रूप अनेक हो गए

अनगिन सतरंगी

सपनों के बीज बो गए,

मूल द्रव्य को, कर विभक्त

अब टुकड़े किए हजार।

भूख जहाँ……………

 

किस्म-किस्म की लगी

दुकानें धर्मों की

अलग-अलग सिद्धान्त

गूढ़तम मर्मों की,

कुछ कहते है निराकार

कहते हैं कुछ, साकार।

भूख जहाँ………….

 

दाम लगे अब हवा

धूप औ पानी के

दिन बीते, आदर्शों

भरी कहानी के,

संबंधों के बीच खड़ी है

पैसों की दीवार।

भूख जहाँ………….

 

चलो, एक अपनी भी

कहीं दुकान लगाएं

बेचें, मंगल भावों की

कुछ विविध दवाएं,

सम्भव है, हमको भी

मिल जाये ग्राहक दो-चार।

भूख जहाँ है,,…………

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से#15 ☆ क्या क्या तुम बाँटोगे ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन। ) 

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय  रचना “क्या क्या तुम बाँटोगे–”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 15 ✒️

?  क्या क्या तुम बाँटोगे – —  डॉ. सलमा जमाल ?

अब क्या क्या तुम बाँटोगे,

है बहुत कुछ पास हमारे ।

आंचल है यह भारत मां का,

सूरज, चांद ,गगन वा तारे ।।

 

अहं में डूबके तुमने किया ,

भाषा, धर्म ,जाति मतभेद ,

खूब लड़ाऐ हिंदू- मुस्लिम,

अब भी तुम्हें नहीं है खेद,

सियासत की आड़ को लेकर,

किए इंसानो के बंटवारे ।

अब——————-।।

 

एक आदम की औलादें ,

है रक्त में नहीं कोई अंतर,

कोरोना को जेहाद बताया,

क्या इसमें है कोई मंतर ,

कु़रान व गीता एक समान,

फिर क्यों खिचतीं तलवारें।

अब———————।।

 

बाहर है बीमारी का डर ,

अन्दर भूख ने पैर पसारे,

आखिर किससे मजदूर मरें,

जवाब नहीं है पास हमारे ,

रोज़ कमाकर रोटी खाएं ,

अब जिऐंगे किसके सहारे।

अब———————।।

 

अंतर्मन दुखता है मेरा ,

नैनों से बहती अश्रु धार,

आपस की नफ़रत से”सलमा”

करो ना लाशों का व्यापार ,

प्यार का परचम फ़हरा दो ,

तुम भारत के राज दुलारे।

अब——————-।।

 

© डा. सलमा जमाल 

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 13 (46-50)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (46 – 50) ॥ ☆

सर्गः-13

अब सुपुत्र वत तरूओं पै है आतिथ्य प्रभार।

जो छाया दे पूजते फल से विविध प्रकार।।46।।

 

गव्हरमुख से गरजता साँड़ सदृश है आज।

श्रृंग-लग्न घन-पंक से चित्रकूट गिरिराज।।47।।

 

शांत स्वच्छ पतली जहाँ मन्दाकिनि की धार।

दिखती जैसे धरा की हो मुक्ता-गल-हार।।48।।

 

यही है वहीं तमाल तरू जिसके गंधी प्रवाल।

से मैंने थी रची तव कर्णफूल की माल।।49।।

 

यह है अत्रि का तपोवन जिसके प्रबल प्रभाव।

बिना दण्ड प्राणी विनत, फल का न कोई अभाव।।50।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 23 – सजल – सामंजस्य रहे जीवन में… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है बुंदेली गीत  “सामंजस्य रहे जीवन में… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 23 – सजल – सामंजस्य रहे जीवन में… 

समांत- अन

पदांत- अपदांत

मात्राभार- 16

 

नारी ही नारी की दुश्मन।

उनसे ही सजता नंदनवन।।

 

गंगा जब बहती है उल्टी,

जीवन में बढ़ जाती उलझन।

 

पांचाली, कैकयी, मंथरा,  

युग में मचा गई हैं क्रंदन।

 

खिचीं भीतियाँ घर-आँगन में,

परिवारों में होती अनबन ।

 

सीता, रुक्मिणी या सावित्री,

होता उनका ही अभिनंदन ।

 

समरसता समभाव बने तो,

जीवन भर महके है चंदन ।

 

सास-बहू, ननदी-भौजाई,

गूढ़ पहेली का है कानन।

 

सामंजस्य रहे जीवन में,

हँसी-खुशी में डूबे तन-मन।

 

पड़ें हिंडोले बाग-बगीचे,

जेठ गया तब आया सावन।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

10 जुलाई 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य#115 – कविता – हर हर महादेव ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है  महाशिवरात्रि पर्व पर आधारित एक भावप्रवण कविता “*हर हर महादेव *”। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 115 ☆

? हर हर महादेव ?

?महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं ?

 

सदियों से चली आई, महाशिवरात्रि की रीत।

जन्मों-जन्मों याद करें, शिव पार्वती संग प्रीत।

 

शिव शंकर का ब्याह रचानें, मचा हुआ है शोर।

धूनी रमाए बैठे भोले, चले किसी का न जोर।।

 

 नंदी अब सोच रहे, दिखे ना कोई छोर।

 कहां उठाऊं भोले को, रात बड़ी घनघोर ।।

 

कठिन परीक्षा की घड़ी,  बसंत छाया चहु ओर।

कोयल कूके डाली डाली,  आमों में आया बौर।।

 

 भांग धतूरे की खुशबू, कामदेव का शोर।

ध्यान से जागे शिव शंभू, नाच उठा मन मोर।।

 

हृदय पटल झूम उठा,  प्रीत ने लिया हिलोर।

मंद मंद मुस्काए शंकर, झूम उठे गण चहूं ओर।।

 

जटा जूट लहराए शंभू, अंग भभूति रम डाला।

भाल चंद्रमा सोह रहा, गले में सर्पों की माला।।

 

दूल्हा बन गए अधिपति, इंद्र देव गण मुस्काय।

अपने अपने गणों को लेकर, संग संग चल चले आए।।

 

देख रूप अवघड दानी का,  गौरा जी मुस्काई।

मैं तो हूं सब रुप  की दासी,  पर कैसे हो सेवकाई।।

 

 रुप भयंकर त्यागों स्वामी,  करो सब पर उपकारी।

 हाथ जोड़ करूं मैं विनती, रूप धरो मनुहारी।।

 

 सजा रूप बना दूल्हे का, सुखो की रात्रि छाई।

 शिव पार्वती विवाह रचाने,  महाशिवरात्रि आई।।

 

स्याम गौर सुंदर छवि,  सभी नयन छलकाए ।

कभी दिखे शिव शंकर शंभू,  कभी गौरी दिख जाए।।

 

आंख मिचौली खेलते प्रभु, मन को बहुत भर माए।

समा गई आधे अंग गौरा, अर्धनारीश्वर कहलाए।।

 

करें जो श्रद्धा से पूजन,  इक्छित वर को पाए।

धन भंडार भरे घर में, प्रीत पर आंच न आए।।

? हर हर महादेव ?

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 13 (41-45)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (41 – 45) ॥ ☆

सर्गः-13

और सुतीक्ष्ण मुनि कर रहे जो चरित्र उद्यात।

पंच-अग्नि तप-साधना सूर्य ताप के साथ।।41।।

 

इंद्र सशंकित हो उठे देख तदोबल ध्यान।

पर न अपसरा कर सकीं पथ से विमुख निदान।।42।।

 

वाम भुजा ऊँची उठा जय माला को धार।

अन्य जो खुजलाती हिरण करती मम सत्कार।।43।।

 

मौन मुनी ने सिर हिला कर प्रणाम स्वीकार।

हटा दृष्टि मम यान से रवि को रहे निहार।।44।।

 

यह आश्रम शरभंग का तपः पूत स्थान।

जिनने समिधा बनाये अपने तन मन प्राण।।45।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 79 – दोहे – शिमला संदर्भ   ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे – शिमला संदर्भ  ।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 79 –  दोहे – शिमला संदर्भ   ✍

 

सुबह धूप घुटनों चली, दोपहर हुई जवान।

शिमला सोयी शाम को, करके कन्यादान।।

 

ऊंचे नीचे रास्ते, उखड़ी उखड़ी सांस।

शिमला तेरी गली में, गड़ी गजब की फांस।।

 

सुंदर सुंदर दृश्य है, सुंदर-सुंदर लोग।

शिमला क्या तुझसे कहें, नदी नाव संयोग।।

 

सुजन सुमन संयोगवश, मिलता है परिवेश।

शिमला तू तो लग रहा, गंध प्रिया का देश।।

 

बैठ पराए देश में, अपने आते याद।

लख शिमला के चांदनी, मन करता संवाद।।

 

सर -सर चलती पवनिया, फर- फर उड़ते केश।

शिमला की सरगोशियां, प्रियतम का संदेश।।

 

घाटी घाटी गूंजती, देवदारू दरबान।

सुनो शिमला राधिके, कान्हा का आव्हान।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 79 – “द्वार के बाहर उँकेरी  स्वस्तिका” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “द्वार के बाहर उँकेरी  स्वस्तिका …।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 79 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “द्वार के बाहर उँकेरी  स्वस्तिका”|| ☆

मूर्ति हो

साकार ज्यों

पाषाण-

अनगढ़ की ।।

 

गगन में बिखरी

हुई सुषमा ।

कौन क्या दे-दे

तुम्हें उपमा।

 

तुम विरह-

रत  लगी हो

राधा किशन-

गढ़ की ।।*

 

द्वार के बाहर

उँकेरी  स्वस्तिका।

स्वर्ण अक्षर में

लिखित सी पुस्तिका।

 

दृष्टि में

आयी हुई-

अनजान,

अनपढ़ की ।।

 

नेत्र से टपके

सहज जल से ।

लौट कर आये

हिमाचल से ।

 

पखेरू जो

कला हैं

निश्चित किसी

गढ़ की ।।

(*किशन गढ़ चित्र कला की एक शैली / राजस्थान कलम)

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

07-02-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 70 ☆ # युद्ध की मानसिकता # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# युद्ध की मानसिकता  #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 70 ☆

☆ # युद्ध की मानसिकता # ☆ 

जब आसमानों में

फायटर प्लेन उड़ते हैं

विनाशकारी बम

उससे गिरते हैं

विध्वंसक मिसाइलें

दागी जाती है

निरपराध लोगों को

मौत आती है

चारो तरफ कोहराम

मच जाता है

जमीन पर प्रलय छा जाता है

प्रश्रय  के लिए

लोग कहाँ कहाँ  भटकते हैं

डर और तबाही देख

अपना सर पटकते है

विभत्स फैली हुई लाशें

तो कहीं रूकती हुई सांसें 

कितना वीभत्स  मंजर

होता है

मानवता के सीने में

चुभता हुआ खंजर होता है

चारों तरफ

रूदन और क्रंदन

बरसते हुए बम दनादन

 

सदियों से यही तो

होता आया है

शक्तिशाली ने

कमजोर को

हमेशा दबाया है

अपनी झूठी जीत पर

अट्टहास लगाते हैं

अपनी गुंडागर्दी पर

खुशियां मनाते हैं

 

विश्व हो या,

देश,

समाज

यही तो हो रहा है आज

युद्ध में दोनों पक्ष

एक दूसरे को

तबाह करते हैं

अपने उन्माद में

यह गुनाह करते हैं

 

क्या शोषण, उत्पीडन,

गुंडागर्दी और हिंसा

समाप्त हो पायेगी ?

क्या विश्वपटल पर

भाईचारा, सद्भभाव

समता और शांति आयेगी /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 13 (36-40)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (36 – 40) ॥ ☆

सर्गः-13

 

और है मुनी अगस्त का यह आश्रम-स्थान।

जिनने इंद्रपद से किया ‘नहुष’ को क्षण में म्लान।।36।।

 

उनके छवि के धूम को छू और पाके गन्ध।

लगता मुझको बढ़ रहा सतोगुण से सम्बंध।।37।।

 

सातकर्णि मुनिका वहाँ पम्पासर तालाब।

मेघ घिरे से चंद्र सम वह दिखते जहाँ आप।।38।।

 

कुश पर ही करते थे ऋषि, वन-मृग सँग निर्वाह।

तब बल से डर इन्द्र ने भेजी पाँच अपस्रायें।।39।।

 

मुनि के जल प्रासाद का वाद्य घोष औं गान।

से हो गया प्रभावित क्षण भर पुष्प विमान।।40।।

            

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares
image_print