श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है  महाशिवरात्रि पर्व पर आधारित एक भावप्रवण कविता “*हर हर महादेव *”। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 115 ☆

? हर हर महादेव ?

?महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं ?

 

सदियों से चली आई, महाशिवरात्रि की रीत।

जन्मों-जन्मों याद करें, शिव पार्वती संग प्रीत।

 

शिव शंकर का ब्याह रचानें, मचा हुआ है शोर।

धूनी रमाए बैठे भोले, चले किसी का न जोर।।

 

 नंदी अब सोच रहे, दिखे ना कोई छोर।

 कहां उठाऊं भोले को, रात बड़ी घनघोर ।।

 

कठिन परीक्षा की घड़ी,  बसंत छाया चहु ओर।

कोयल कूके डाली डाली,  आमों में आया बौर।।

 

 भांग धतूरे की खुशबू, कामदेव का शोर।

ध्यान से जागे शिव शंभू, नाच उठा मन मोर।।

 

हृदय पटल झूम उठा,  प्रीत ने लिया हिलोर।

मंद मंद मुस्काए शंकर, झूम उठे गण चहूं ओर।।

 

जटा जूट लहराए शंभू, अंग भभूति रम डाला।

भाल चंद्रमा सोह रहा, गले में सर्पों की माला।।

 

दूल्हा बन गए अधिपति, इंद्र देव गण मुस्काय।

अपने अपने गणों को लेकर, संग संग चल चले आए।।

 

देख रूप अवघड दानी का,  गौरा जी मुस्काई।

मैं तो हूं सब रुप  की दासी,  पर कैसे हो सेवकाई।।

 

 रुप भयंकर त्यागों स्वामी,  करो सब पर उपकारी।

 हाथ जोड़ करूं मैं विनती, रूप धरो मनुहारी।।

 

 सजा रूप बना दूल्हे का, सुखो की रात्रि छाई।

 शिव पार्वती विवाह रचाने,  महाशिवरात्रि आई।।

 

स्याम गौर सुंदर छवि,  सभी नयन छलकाए ।

कभी दिखे शिव शंकर शंभू,  कभी गौरी दिख जाए।।

 

आंख मिचौली खेलते प्रभु, मन को बहुत भर माए।

समा गई आधे अंग गौरा, अर्धनारीश्वर कहलाए।।

 

करें जो श्रद्धा से पूजन,  इक्छित वर को पाए।

धन भंडार भरे घर में, प्रीत पर आंच न आए।।

? हर हर महादेव ?

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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