हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत #82 – “बहुत दूभर दिन यहाँ …” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “बहुत दूभर दिन यहाँ …।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 82 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “बहुत दूभर दिन यहाँ ”|| ☆

पेड़ अपने साये में

सहमे किनारे के ।

बहुत दूभर दिन यहाँ

पर हैं गुजारे के।।

 

मुश्किलें बढती लगीं

संजीदगी लेकर ।

थक रहा उत्साह है

यह जिन्दगी देकर।

 

इसी मुश्किल वक़्त को

लकवा लगा है

मेम्बर दहशतजदा हैं

इस इदारे के ।।

 

उद्धरण हल क्या बताये

व्याकरण का ।

हर इक कोना व्यस्त है

पर्यावरण का।

 

यह हरापन प्रचुरतम

देता नसीहत।

सभी मानव साक्षी हैं

जिस सहारे के ।।

 

इधर जंगल जान है

मानव जगत की।

जो बचाए चेतना

इसकी परत की ।

 

जहाँ  संस्कृतियां परस्पर

उन्नयन कर।

बचाती नैवेद्य हैं सन्ध्या-

सकारे के ।।

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

23-03-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #73 ☆ # होली # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है होली के पर्व  के अवसर पर आपकी एक भावप्रवण कविता “# होली #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 73 ☆

☆ # होली # ☆ 

बहुत बुरा हुआ कि

कुछ नहीं हुआ

इस सादगी ने तो

दिल को है छुआ

रंगों में ढूंढते रहे

वो लाल रंग

वो मायूस हो गये के

क्यों कुछ नहीं हुआ ?

 

सब साजिशें फेल हो गई

रंगों की सब तरफ

रेल-पेल हो गई

रंगों से पुते चेहरे

मिलते हुए गले

लग रहा था जैसे

सबमें मेल हो गई

 

कुछ पे चढ़ा हुआ था

मदिरा का नशा

कुछ पे चढ़ा हुआ था

भांग का नशा

कुछ डुबे हुए थे

रंगों के हौद में

कुछ पे चढ़ा हुआ था

सियासत का नशा

 

यह रंगों का,

उमंगों का त्योहार है

शिकवे गिले भूलकर

क्षमा का त्योहार है

मीठा मीठा खाओ,

मीठा मीठा बोलो

सबको प्यार से गले लगाने का

त्योहार है /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 14 (51-55)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #14 (51 – 55) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -14

 

रामाज्ञा से सिया का करते वन में त्याग।

रोका गंगा ने उसे बढ़ा लहर सा हाथ।।51।।

 

सारथि रोके अश्वरथ से गंगा के तीर।

उतर, उतारी जानकी, बढ़ी हृदय में पीर।।52अ।।

 

सत्यसंघ पर लखन ने की यों गंगा पार।

जैसे भारी बोझ कोई सिर से दिया उतार।।52ब।।

 

फिर कर संयत वाणि को रोक अश्रु-आवेग।

सुनादी वह राजाज्ञा, जैसे कड़के मेघ।।53अ।।

 

वज्र धात से थे वचन उपलवृष्टि से घोर।

गर्भवती के हृदय को जो गये अति झकझोर।।53ब।।

 

ज्यों आँधी आहत लता तज प्रसून, हो ध्वस्त।

बिछ जाती है भूमि पर त्यों सीता हुई त्रस्त।।54अ।।

 

अलंकार सब तज, दुखित, माँ धरती को पुकार।

जननी पृथ्वी पर विवश खाके गिरी पछाड़।।54ब।।

 

रघुकुल-जनमे इस तरह मर्यादापति राम।

क्यों यों सहसा करेंगे बिन समझे परिणाम।।55अ।।

 

माँ धरती के हृदय में हुआ गहन संदेह।

इससे उससे न दिया उसे गेह और स्नेह।।55ब।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ English translation of Urdu poetry couplets of Pravin ‘Aftab’ # 84 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

English translation of Urdu poetry couplets of Pravin ‘Aftab’ # 84 ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of Pravin Aftab # 84 ☆

(Today, enjoy some of the Urdu poetry couplets written and translated in English by Pravin ‘Aftab’.  Pravin ‘Aftab’ is nick name of Capt. Pravin Raghuvanshi.)

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

रिश्ते सुलगते रहते हैं

कुछ सवाल जेहन में,

आजकल के रिश्ते

बुझे-बुझे से क्यूँ रहते हैं…

 

Some questions keep

simmering in the mind

Why do today’s relationships

remain so low-spirited…

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

वक़्त तो जरूर लगा,

पर मैं संभल गया…

क्योंकि, मैं ठोकरों से गिरा था

किसी की नज़रों से नहीं…!

 

It did take time, but

I managed to hold on

Because, I’d stumbled, and

Not fallen in someone’s eyes…!

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

जिस घड़ी चाहे उलझ जाये

मेरे ख़्यालों से…,

इतनी हिम्मत तेरी यादों

के सिवाय किसकी  है…!

 

Any time that can clash

willfully with my thoughts…

Who else can dare doing

other than your memories…!

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

फुर्सत मिले तो आना कभी

दिल की गलियों तक

हम धड़कनों में अपनी

तुम्हारा नाम सुनायेंगे …!

 

If you get time, come to

the streets of hearts

I’ll make you hear your

name in my heart…!

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

Pravin ‘Aftab’

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह #85 ☆ सॉनेट गीत – स्वागत ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘सॉनेट गीत – स्वागत।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 85 ☆ 

☆ सॉनेट गीत – स्वागत ☆

लाल गुलाल भाल पर शोभित।

तरुणी सरसों पियराई रे।

महुआ लख पलाश सम्मोहित।।

मादकता तन-मन छाई रे।।

 

छेड़ें पनघट खलिहानों को।

गेहूँ की बाली निहाल है।

फिक्र न कुछ भी दीवानों को।।

चना-मटर की एक चाल है।।

 

मग्न कपोत-कपोती खुद में।

आग लगाता आया फागुन।

खोज रहे रे! एक-दूजे के

स्वर में खुद  को बंसी-मादल।।

 

रति-रतिपति हैं दर पर आगत।

आम्र मंजरी करती स्वागत।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१९-३-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता – आत्मानंद साहित्य #114 ☆ होली के रंग ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 114 ☆

☆ ‌होली के रंग ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

भंग की तरंग हो,

होली का रंग हो।

जीजा हो साली हो,

साथ ही घर वाली हो।

हल्ला हुड़दंग हो,

यारों का संग हो।

पुआ मिठाई हो,

गुझिया नमकीन हो।

आंखों में सपने हो,

मौका रंगीन हो।

।। होली का रंग हो।।1।।

 

रंगों की बारात हो,

प्यार की बरसात हो।

खींचा हो तानी हो,

हमजोली से मनमानी हो।

चाहे हाथ तंग हो,

उत्सव उमंग हो।

भरपूर प्यार हो,

जीवन में बहार हो।

चाहत हसीना की,

सपने हसीन हों।

मेल हो मिलाप हो,

गायब संताप हो।

।।होली का रंग हो।।2।।

 

भंग की तरंग में,

सबका मन डूबा हो।

चेहरे ‌रंगीन हो,

लगते अजूबा हों।

भूल कर के दुश्मनी,

गले मिले प्यार से।

गिले शिकवे दूर हो,

होली की बहार से।

अबीर उड़े महफ़िल में,

गाल पे गुलाल हो।

भंग की तरंग हो,

होली का ऱंग हो।।3।।

 

– सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 14 (46-50)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #14 (46 – 50) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -14

 

परशुराम ने किया था माँ पर कठिन प्रहार।

पिता की आज्ञा मात्र थी उस कृति का आधार।।46अ।।

 

गुरूजन के आदेश का बिना सोच हो मान।

इससे आज्ञा का किया लक्ष्मण ने सम्मान्।।46ब।।

 

खुशी खुशी सीता चढ़ी रथ पर मन अनुकूल।

थे सुमंत्र रथ सारथी, लक्ष्मण के मन शूल।।47।।

 

सीता ने यह वन गमन समझा प्रिय का प्यार।

कभी कल्पतरू सा जो था, अब वह था तलवार।।48।।

 

गुप्त रखी थी लखन ने सीता से जो बात।

कही दाहिने नेत्र ने फड़क, किया आघात।।49।।

 

नेत्र-स्फुरण अपशकुन मन में बढ़ा विषाद।

सीता ने, ‘शुभ हो’ कहा, किया राम को याद।।50।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता #133 – “मैं पुत्र वो मेरा पिता है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।

आज से प्रस्तुत है परमपूज्य पिताजी की स्मृति में रचित श्रद्धांजलि स्वरुप एक भावप्रवण कविता “मैं पुत्र वो मेरा पिता है…”)

? कविता – “मैं पुत्र वो मेरा पिता है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

(पिताजी उस्ताद शंकर लाल पटवा ने 18 मार्च 2018 के दिन यमलोक प्रस्थान किया था। उनकी पुण्य तिथि पर सादर नमन ?)

जिस तरह वे जिए

बहुत कम जीते हैं

चषक जी भर पिया

अब प्याले रीते हैं

 

कल आज और कल

ये अतीत का नजारा,

सिमटा इसमें हमारा कल

बीत गया रीत गया,

 

कल कल बहता

काल का झरना,

नही हमेशा किसी को रहना

अटल सत्य

मैं पुत्र वो मेरा पिता है

सामने काल बनकर

खड़ा चिता है

 

बनाया जिसने

काल को वो

सबका पिता है

खुद आया नौ बार

तीन बार दूत भेजे

क्या खुद या दूत

काल के गाल से

गराल से

मार से बचा है !

 

बता

क्यों ये खेल

तूने रचा है ?

 

(केदार नाथ यात्रा के समय का फ़ोटो)

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा#73 ☆ गजल – ’’बन सके जनतंत्र का मंदिर परम पावन शिवाला” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण  ग़ज़ल  “बन सके जनतंत्र का मंदिर परम पावन शिवाला”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 73 ☆ गजल – ’बन सके जनतंत्र का मंदिर परम पावन शिवाला’’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

लोकतंत्र का बना जब से देश में मन्दिर निराला

बड़े श्रद्धा भाव से क्रमशः उसे हमने सम्हाला।

 

किन्तु अपने ढंग से मन्दिर में घुस पाये जो जब भी

बेझिझक करते रहे वे कई तरह गड़बड़ घोटाला।

 

जनता करती रही पूजा और आशा शुभ की

राजनेताओं को पहनाती रही नित फूल माला।

 

पर सभी पंडे-पुजारी मिलके मनमानी मचाये

भक्तों की श्रद्धा को आदर दे कभी मन से न पाला।

 

हो निराश-हताश भी सहती रही जनता दुखों को

पर किसी ने कभी मुँह से नही ’उफ’ तक भी निकाला

 

देखकर दुख-दर्द, सहसा, दुर्दशा कठिनाइयों को

आये ’अन्ना’ लिये दृढ़ता दिखाने पावन उजाला।

 

राज मंदिर से कि जिससें मिले शुद्ध प्रसाद सबकों

कोई मंदिर में न जाये, जिस किसी का मन हो काला।

 

फिर वह मंदिर जिसका रंग मौसम ने कर डाला है धूमिल

नये रंग से नयी सजधज से पुनः जाये सम्हाला।।

 

दिखती है जन जागरण की आ गई है मधुर वेला

बन सके जनतंत्र का मंदिर परम पावन शिवाला ।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 14 (41-45)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #14 (41 – 45) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -14

 

इससे राक्षस हनन का व्यर्थ न मेरा प्रयास।

वह तो सीता हरण का बदला था सायास।।41अ।।

 

पग से दब क्या किसी के भी कोई भी सर्प।

रक्तपान की कामना से डसता सामर्ष?।।41ब।।

 

निंदा बाणों से मेरे अगर बचाना प्राण।

तो कृपालु हो सब करो मम निश्चय का मान।।42।।

 

ऐसा कहते राम से कर पत्नी हित क्रोध।

दे न सका कोई सहमति, न ही कर सका विरोध।।43।।

 

तब उस अग्रज राम ने दे लक्ष्मण पर जोर।

अलग दिया आदेश यों जो था परम कठोर।।44।।

 

‘‘सीता दोहद को है प्रिय वन-दर्शन की चाह।

तो रथ इनको वाल्मीक आश्रम तक ले जाय’’।।45।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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