॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (46 – 50) ॥ ☆

सर्गः-13

अब सुपुत्र वत तरूओं पै है आतिथ्य प्रभार।

जो छाया दे पूजते फल से विविध प्रकार।।46।।

 

गव्हरमुख से गरजता साँड़ सदृश है आज।

श्रृंग-लग्न घन-पंक से चित्रकूट गिरिराज।।47।।

 

शांत स्वच्छ पतली जहाँ मन्दाकिनि की धार।

दिखती जैसे धरा की हो मुक्ता-गल-हार।।48।।

 

यही है वहीं तमाल तरू जिसके गंधी प्रवाल।

से मैंने थी रची तव कर्णफूल की माल।।49।।

 

यह है अत्रि का तपोवन जिसके प्रबल प्रभाव।

बिना दण्ड प्राणी विनत, फल का न कोई अभाव।।50।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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