हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आँखें ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ नवरात्र  साधना सम्पन्न हुई 🌻

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – आँखें ??

देखती हैं वर्तमान,

बुनती हैं भविष्य,

जीती हैं अतीत,

त्रिकाल होती हैं आँखें…!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
image_print

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 103 ☆’’हासिल नहीं होता कुछ भी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक रचना “हासिल नहीं होता कुछ भी…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #103 ☆’’हासिल नहीं होता कुछ भी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

औरों के हर किये की खिल्ली उड़ाने वालो

अपनी तरफ भी देखो, खुद को जरा संभालों।

 

बस सोच और बातें देती नहीं सफलता

खुद को बड़ा न समझों, अभिमान को निकालो।

 

हासिल नहीं होता कुछ भी, डींगे हाँकने से

कथनी के साथ अपनी करनी पै नजर डालो।

 

सुन-सुन के झूठे वादे पक गये हैं कान सबके

जो कर न सकते उसके सपने न व्यर्थ पालो।

 

सब कर न पाता पूरा कोई भी कभी अकेला

मिलकर के साथ चलने का रास्ता निकालो।

 

आशा लगाये कब से पथरा गई हैं ऑखें

चाही बहार लाने के दिन न और टालो।

 

जो बीतती है मन पै किससे कहो बतायें

बदरंग हुये घर को नये रंग से सजालो।

 

कोई ’विदग्ध’ अड़चन में काम नहीं आते

कल का तो ध्यान रख खुद बिगड़ी तो बना लो।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 12 – पोर्टेबल सोलर साइन बोर्ड ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 12 – पोर्टेबल सोलर साइन बोर्ड ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

स्टेट लिबर्टी पार्क एवम अन्य अनेक स्थानों पर देखने मिले ये पोर्टेबल सोलर साइन बोर्ड। जहां आवश्यकता हो वहां , जो सूचना दिखानी हो वह कम्प्यूटर जनित पट्टिका ग्लोइंग लेटर्स में ।

पर फिलहाल मेरी रुचि इसमें नहीं थी कि बोर्ड पर क्या डिस्प्ले हो रहा है , अपने पाठको के लिए मेरी रुचि थी स्वयं इस पोर्टेबल साइन बोर्ड तकनीक पर । ऊपर सोलर पैनल लगे हैं , सूरज की रोशनी बैटरी चार्ज कर रही है , मतलब रात में भी डिस्प्ले बना रहेगा । गार्डन एरिया किसी तरह क्षति ग्रस्त नहीं होगा । यथा आवश्यकता साइन बोर्ड हटाया जा सकता है ।

है न कुछ छोटा पर भारत में बहुत अप्रयुक्त नया सा ।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार # 110 – हुनर और परिश्रम की कीमत ☆ श्री आशीष कुमार ☆

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। 

अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से  सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से  बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।”)

☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #110 🌻 हुनर और परिश्रम की कीमत 🌻 ☆ श्री आशीष कुमार

पिता ने बेटे से कहा, “तुमने बहुत अच्छे नंबरों से ग्रेजुएशन पूरी की है। अब क्यूंकि तुम नौकरी पाने के लिए प्रयास कर रहे हो, मैं तुमको यह कार उपहार स्वरुप भेंट करना चाहता हूँ, यह कार मैंने कई साल पहले हासिल की थी, यह बहुत पुरानी है। इसे कार डीलर के पास ले जाओ और उन्हें बताओ कि तुम इसे बेचना चाहते हो। देखो वे तुम्हें कितना पैसा देने का प्रस्ताव रखते हैं।”

बेटा कार को डीलर के पास ले गया, पिता के पास लौटा और बोला, “उन्होंने 60,000 रूपए की पेशकश की है क्योंकि कार बहुत पुरानी है।” पिता ने कहा, “ठीक है, अब इसे कबाड़ी की दुकान पर ले जाओ।”

बेटा कबाड़ी की दुकान पर गया, पिता के पास लौटा और बोला, “कबाड़ी की दुकान वाले ने सिर्फ 6000 रूपए की पेशकश की, क्योंकि कार बहुत पुरानी है।”

पिता ने बेटे से कहा कि कार को एक क्लब ले जाए जहां विशिष्ट कारें रखी जाती हैं।

बेटा कार को एक क्लब ले गया, वापस लौटा और उत्साह के साथ बोला, “क्लब के कुछ लोगों ने इसके लिए 60 लाख रूपए तक की पेशकश की है! क्योंकि यह निसान स्काईलाइन आर34 है, एक प्रतिष्ठित कार, और कई लोग इसकी मांग करते हैं।”

पिता ने बेटे से कहा, “कुछ समझे? मैं चाहता था कि तुम यह समझो कि सही जगह पर ही तुम्हें सही महत्व मिलेगा। अगर किसी प्रतिष्ठान में तुम्हें कद्र नहीं मिल रही, तो गुस्सा न होना, क्योंकि इसका मतलब एक है कि तुम गलत जगह पर हो।

सफलता केवल अपने हुनर और परिश्रम से नहीं मिल जाती, लोगों के साथ मिलती है, और तुम किन लोगों के बीच में हो, कुछ समय में तुमको स्वतः ही ज्ञात हो जाएगा। तुम्हें सही जगह पर जाना होगा, जहाँ लोग तुम्हारी कीमत जानें और सराहना करें।

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print

Please share your Post !

Shares

ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (10 अक्टूबर से 16 अक्टूबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (10 अक्टूबर से 16 अक्टूबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

बहुत सारे लोग आप को कहते मिलेंगे राशिफल का कोई औचित्य नहीं है । परंतु अगर आप हमारे द्वारा लिखे जा राशिफल को अपने लग्न राशि के हिसाब से देखेंगे तो आपको यह 80% से ऊपर सही मिलेगा । अगर चंद्र राशि से देखेंगे तो यह 60% के ऊपर सही मिलेगा । आधुनिक विज्ञान पढ़ने वाले कई व्यक्ति पुरातन भारतीय संस्कृति को समझ नहीं पाते हैं । जबकि जो समझ में नहीं आए उसको समझना ही विज्ञान है । जो समझ में नहीं आए उसको गलत कहना विज्ञान नहीं है ।मैं पंडित अनिल पाण्डेय आज आप सभी को 10 अक्टूबर से 16 अक्टूबर 2022 अर्थात विक्रम संवत 2079 शक संवत 1944 के कार्तिक कृष्ण पक्ष की प्रथमा से कार्तिक कृष्ण पक्ष की सप्तमी तक के सप्ताह का साप्ताहिक राशिफल आपको बताने जा रहा हूं ।

इस सप्ताह के आरंभ में चंद्रमा मीन राशि में रहेगा । उसके उपरांत मेष और वृष से गोचर करता हुआ दिनांक 15 अक्टूबर को दिन में 10:10 पर मिथुन राशि में प्रवेश करेगा। पूरे सप्ताह सूर्य , बुध और शुक्र कन्या राशि में रहेंगे । मंगल प्रारंभ में वृष राशि में रहेगा तथा 15 तारीख को 5:30 सायं काल से मिथुन राशि में प्रवेश करेगा । गुरु मीन राशि में वक्री रहेगा । इसी प्रकार शनि मकर राशि में वक्री रहेंगे । राहु मेष राशि में रहेंगे। आइए अब हम राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का उत्तम योग है । आपको संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा । संतान की उन्नति होगी । भाग्य साथ देगा । किसी कारणवश जितना धन आना चाहिए था उससे थोड़ा कम आएगा । इस सप्ताह आपके लिए 11 और 12 अक्टूबर उत्तम और लाभकारी है । 10 अक्टूबर को आपको सफलता का योग कम है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनि देव का पूजन करें और शनिवार को पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाकर पीपल के वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके संतान की उन्नति हो सकती है। आपको संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा । धन आएगा । स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है । भाग्य साथ नहीं देगा । इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 अक्टूबर अत्यंत उत्तम है । 13 और 14 को आपको हर कार्य में सफलता प्राप्त होगी । इसके विपरीत 11 और 12 अक्टूबर को आपको बहुत कम कार्य में सफलता प्राप्त होगी । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह काले कुत्ते को रोटी खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपको कचहरी के कार्य में सफलता मिल सकती है । छोटी मोटी दुर्घटना का योग है । जनता में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी । कार्यालय में भी आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी । भाइयों से स्नेह बढ़ेगा । शत्रु परास्त हो जाएंगे । इस सप्ताह आपके लिए 10 अक्टूबर तथा 15 और 16 अक्टूबर उत्तम और फलदायक हैं । 13 और 14 अक्टूबर को कम कार्यों में सफल होंगे । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर हनुमान जी की पूजा करें तथा तीन बार हनुमान चालीसा का जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा । भाग्य आपका साथ देगा । धन थोड़ा कम आएगा । क्रोध की मात्रा बढ़ेगी । व्यापार में उन्नति होगी । संतान से आपको सहयोग प्राप्त होगा । इस सप्ताह 11 और 12 अक्टूबर को आप सभी कार्यों में सफल रहेंगे । 15 और 16 अक्टूबर को आपको बहुत कम कार्य में सफलता प्राप्त होगी । अतः आपको चाहिए कि आप अधिकांश कार्यों को 11 और 12 अक्टूबर को करें । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी का दर्शन करें और उनके सामने बैठकर कम से कम 3 बार हनुमान चालीसा का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपकी कुंडली के गोचर में धन आने का अच्छा योग है । व्यापार में आपके बहुत उन्नति होगी । भाग्य से किसी प्रकार मदद की अपेक्षा न करें । परिश्रम से ही आपको सफलताएं प्राप्त होंगी । नए शत्रु बनेंगे । पेट में पीड़ा हो सकती है । आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । जनता में प्रसिद्धि प्राप्त होगी । इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 अक्टूबर फलदायक हैं । 10 अक्टूबर को आप कई कार्यों में असफल हो सकते हैं । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शुक्रवार के दिन मंदिर में जाकर गरीबों के बीच चावल वितरित करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

कन्या राशि के अविवाहित जातकों के शादी के उत्तम प्रस्ताव आएंगे । आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । प्रेम संबंध बनेंगे । भाग्य कम साथ देगा। । संतान को कष्ट हो सकता है । धन आने का कम योग है । इस सप्ताह आपके लिए 10 अक्टूबर तथा 15 और 16 अक्टूबर बहुत अच्छे हैं । इस दिन आप के अधिकांश कार्य सफल होंगे । 11 और 12 अक्टूबर को सफलता में कमी आएगी । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह राम रक्षा स्त्रोत का जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

तुला राशि

मुकदमे में आपको सफलता प्राप्त होगी। । दुर्घटना से बचने का प्रयास करें । धन आ सकता है । भाई बहनों से संबंध अच्छे होंगे । इस सप्ताह आपकी कुंडली के गोचर के अनुसार 11 और 12 अक्टूबर श्रेष्ठ है । 10 अक्टूबर तथा 13 और 14 अक्टूबर को आपको कम कार्यों में सफलता मिलेगी । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शिवजी का अभिषेक करें एवं प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा । कार्यालय के कार्यों में आपको सफलता प्राप्त होगी । धन आने का उत्तम योग है । संतान से संबंध ठीक रहेंगे । व्यापार में उन्नति होगी । इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 अक्टूबर सफलता के लिए अच्छे दिन है । 11, 12 ,15 और 16 अक्टूबर को सफलता में कमी आएगी । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । आपके सुख में थोड़ी कमी आएगी खर्चे बढ़ेंगे कार्यालय में आपकी स्थिति मजबूत होगी आपको प्रतिष्ठा मिलेगी अगर प्रमोशन होने वाला है तो वह भी हो सकता है शत्रु परास्त होंगे व्यापार उत्तम चलेगा कचहरी के कार्यों में सफलता मिलेगी भाग्य साथ देगा । इस सप्ताह आपके लिए 1015 और 16 अक्टूबर श्रेष्ठ है । 13 और 14 अक्टूबर को आपके कई काम रुक सकते हैं । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप पूरे सप्ताह घर की बनी पहली रोटी गौमाता को दें सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

आपके भाग्य का सितारा इस सप्ताह बुलंद रहेगा । भाग्य से आपके कई कार्य संपन्न होंगे । यात्रा का योग है । व्यापार उत्तम चलेगा । संतान को कष्ट हो सकता है । आपका भी स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 11 और 12 अक्टूबर उत्तम है । 15 और 16 अक्टूबर को आपके काम रुक सकते हैं । आपको चाहिए क्या आप इस सप्ताह मंगलवार को मंदिर में जाकर भिखारियों के बीच में मसूर की दाल का दान दें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है ।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य सामान्य रहेगा । भाग्य साथ देगा । यात्रा हो सकती है । आपके सुख में कमी आएगी । कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी । जीवनसाथी को कष्ट हो सकता है। । इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 अक्टूबर उत्तम है । 13 और 14 अक्टूबर को आप जो भी कार्य करेंगे उनमें से अधिकांश कार्य में आप सफल रहेंगे । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह अपने सुख में वृद्धि के लिए माताजी के स्वास्थ्य के लिए मंदिर में जाकर किसी योग्य ब्राह्मण को गेहूं का दान दें । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा । आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । अविवाहित जातकों के अच्छे विवाह संबंध आएंगे । प्रेम संबंध बढ़ेंगे । व्यापार में उन्नति होगी । इस सप्ताह आपके लिए 10 15 और 16 अक्टूबर अद्भुत है। । इन तारीखों का आप भरपूर उपयोग करें । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौमाता को दें । सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

राजनिति अनिश्चितता ओं का खेल है । अगर आपको इस संबंध में कोई भविष्यवाणी जानना है तो आप मेरे व्हाट्सएप फोन नंबर 89595 94400 पर लिखकर व्हाट्सएप कर सकते हैं । हम परिणाम बताने का प्रयास करेंगे ।

मां शारदा से प्रार्थना है कि आप सभी को सुख समृद्धि और वैभव प्राप्त हो। जय मां शारदा।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 123 – बाळ गीत – रिमझिम पावसाच्या सरी ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 123 – बाळ गीत – रिमझिम पावसाच्या सरी ☆

रिमझिम पावसाच्या सरीवर सरी।

खेळात रंगल्या चिमुकली सारी।।धृ।।

पावसात मारती गरगर फे ऱ्या ।

म्हणती गाऱ्या गाऱ्या भिंगोऱ्या।

मोठ्यांचा चुकवून डोळा सारी।।१।।

थेंब झेलती इवले इवले।

अंगही झाले चिंब ओले।

चिखलात पडती खुशाल सारी।।२।।

छत्रीची नसे कसली चिंता।

भिजू आनंद लूटती आता।

दप्तर घेऊनिया डोक्यावरी।।२।।

पावसात भिजण्याची मजाच न्यारी।

पायाने पाणी उडवूया भारी।

आईला पाहू थबकली सारी।।३।।

पोटात एकदम ऊठले गोळे।

रडून के ले लाल लाल डोळे।

आई ही हसली किमया न्यारी ।।४।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

image_print

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – विविधा ☆ जमापूंजी ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट ☆

सौ कल्याणी केळकर बापट

? विविधा ?

☆ जमापूंजी ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट ☆

माणूस म्हंटला की त्याला “संचय करणं” ह्याची आवड असते,सवय असते आणि त्याचं खूप महत्वही असतं. थोड्याफार जबाबदा-या उरकल्या की आपणच आपला सगळा हिशोब घेऊन बसतो. ह्या सगळ्या उलाढालीतून आपल्या जवळ काय उरलयं ह्याकडे प्रामुख्याने आपण लक्ष देतो.

आपल्याजवळ किती उरलयं वा आपल्याजवळ  शिल्लक किती ह्याकडे वळून बघतांना प्रथम आर्थिक बाबीकडे लक्ष जातं, नव्हे जवळपास त्याच निकषावर आपलं लक्ष केंद्रीत असतं. पण आपण जमा किती केलयं हे माणसं जोडणं, माणसं जपणं ह्या बाबीशी सुद्धा पडताळणं तेवढचं महत्त्वाचं असतं पण दुर्दैवाने तरुणाईच्या, यशाच्या धुंदीत बरेचवेळा ह्याचा विचार देखील आपल्याकडून होत नाही ही खेदाचीच बाब आहे.

माणसं, जोडणं, जपणं  ह्याला पण आपण “जमापूँजी” म्हणूच शकतो. काल एक “जमापूँजी “नावाची खूप मस्त शाँर्टफिल्म बघण्यात आलीयं. अर्थातच ती प्रत्यक्ष बघण्यातच खरी मजा आहे.कथानक तसं नेहमीचचं.बापलेकाच्या जनरेशन गँप मुळे गमावलेल्या खूप काहीबद्दल ही शाँर्टफिल्म सांगून जाते.नेहमीप्रमाणे “आई” नावाचा  हा दोघांना जोडणारा दुवा आपल्या परीने शक्यतोवर समेटाचा प्रयत्न करीतच असतो.

ही शाँर्टफिल्म बघतांना एक गोष्ट प्रकर्षाने जाणवली, संवाद न साधणं, आणि त्यामुळे निर्माण झालेले गैरसमज ह्यामुळे आपण खूप काही गमावून बसतो आणि हे कळतं ते ही वेळ निघून गेल्यावरच ही आणखीनच दुर्दैवाची बाब. परस्परांशी घडघड मनमोकळं न बोलण्याने खरोखरच न भरून निघणारं नुकसान होतं हे ही शाँर्टफिल्म बघून जाणवलं.

मनमोकळे संवाद साधणे ही बाब खास करून  पुरुषांनी आवर्जून शिकून अंमलात आणण्याची बाब आहे कारण घडाघडा न बोलणा-या स्त्रिया ह्या अभावानेच आढळतील.

ह्या शाँर्टफिल्म मध्ये वडिलांबद्दल ओलावा, प्रेम नसलेल्या मुलाच्या डोळ्यातून त्यांच्या बद्दल असलेल्या गैरसमजामुळे त्यांच्या मृत्यू नंतर एकही अश्रुचा टिपूसही येत नाही अर्थातच टाळी एका हाताने कधीच वाजत नसते म्हणा. ही परिस्थिती उद्भवायला वडिलांचे सारखे तुलना करणे, संवाद न साधणे, आतून खूप असलेलं प्रेम मुलासोर अजिबात प्रदर्शित न करणं ह्या बाबी सुद्धा तेवढ्याच कारणीभूत असतात. वडीलांच्या मृत्यूनंतर आई काही प्रमाणात मुलाला वास्तविकतेची जाण देऊन मनातील किल्मीष दूर करण्यास सांगते.परंतु मुलाला ही एक प्रकारची रदबदली वाटते.

परंतु सामान आवरतांना मुलाला जेव्हा वडीलांना त्याच्याबद्दल वाटणा-या प्रेमाचा दाखला जेव्हा नजरेस पडतो तेव्हा मात्र मुलाच्या मनातील कटूता गळून पडते.  मुलाने लहानपणी काढलेलं चित्र, मुलाने वडीलांना गिफ्ट म्हणून पाठवलेलं रिस्टवाँच वडीलांनी जपून ठेवलेलं असतं ही बाब मुलाला एखाद्या इस्टेटीपेक्षाही भारी आणि महत्वपूर्ण वाटते. आणि वर्षानुवर्षे न साधलेली किमया हे चित्र, ते घड्याळ करतं आणि मुलाच्या डोळ्यातून त्याच्याही नकळत टपटप अश्रू ओघळायला लागतात.

कदाचित ह्या गोष्टींचे महत्त्व तरुणाईच्या जोषात लक्षात येत नाही परंतु आपल्या सगळ्यांनाच उत्तरायणाच्या दिशेने केव्हा ना केव्हा वाटचाल ही करावीच लागते. तेव्हा ह्या “जमापूँजी”च्या संकल्पनेत आर्थिक या बाबी बरोबर माणसं जोडणं, ती कायम जपणं ह्या संकल्पनेचा पण  समावेश असतो हे लक्षात घेणं अत्यावश्यक आहे कारण  पुढे मिळणाऱ्या सुख, समाधान, संतोष ह्याची ती  जणू गुरुकिल्लीच आहे. सोबत शाँर्टफिल्म ची लिंक देते आहे.

👉 https://youtu.be/JgvrQCxGepU

©  सौ.कल्याणी केळकर बापट

06/09/2022

9604947256

बडनेरा, अमरावती

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

image_print

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ जगण्याचा तोल ☆ प्रस्तुती – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे ☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

? इंद्रधनुष्य ?

☆ जगण्याचा तोल ☆ प्रस्तुती – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे☆

(एका स्पॅनिश कवितेचा मुक्त अनुवाद)

पाऊस पडून गेला की

आकाशात सुंदर इंद्रधनुष्य उमलतं;

त्याला पाहून मातीनं रुसावं का?

सगळे रंग आकाशात तसेच ठेवून आलास,

मला काय दिलंस?  म्हणून भांडावं का?

*

नाहीच भांडत ती,

मान्य करून टाकते की,

त्याचं रंगहीन होऊन आपल्याकडे येणं,

उगीच मनाला लावून घ्यायचं नाही,

त्या कोरडय़ा सुंदर रंगापेक्षा आपल्याला काय मिळालं हे पहायचं    !

*

तो भरभरून बरसतो, तेव्हा रंगहीन असतो हे खरं;

पण तो तिला जगण्याची,उमलण्याची, 

स्वत:तून रंग फुलवण्याची जादू देतो.

त्या जादूनं,

काळ्या मातीतून किती रंग उमलतात,

आणि रंगच कशाला,

किती गंध, किती आकार,

किती प्रकारचं जगणंही बहरतं !

क्षणभर उजळणाऱ्या रंगापेक्षा

स्वत: अनेक रंगांत उमलण्याची जादू 

म्हणून तर काळ्या मातीला

किती युगं झाली, तरी हवीच असते त्याच्याकडून.

*

जगण्याचा तोल हा असा असतो !

कुणाला क्षणभराचे रंग मिळतात,

कुणाला सुंदर क्षण मिळतात,

कुणाकडे जग सहज मान उंचावून पाहतं,

तर कुणाला मिळतं फक्त जगण्याचं बीज.

त्यातून आपापलं फुलायची जादू मात्र शिकून घ्यायची असते.

एकदा ती जादू आली की,

रंग कुणाकडे मागावे लागत नाहीत,

ते उमलत राहतात,

बहरत राहतात….. 

**

संग्राहिका : मंजुषा सुनीत मुळे

९८२२८४६७६२

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈
image_print

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ कवी मंगेश पाडगावकरांच्या घरात चोरी ☆ प्रस्तुती – सौ. गौरी गाडेकर ☆

सौ. गौरी गाडेकर

📖 वाचताना वेचलेले 📖

☆ कवी मंगेश पाडगावकरांच्या घरात चोरी ☆ प्रस्तुती – सौ. गौरी गाडेकर ☆

कवी मंगेश पाडगावकरांच्या घरात चोरी

पाडगावकर त्या चोराचेच कौतुक करत होते ही हकीगत सांगताना.

इतक्या भर पावसात तो पाईपवरून चढला कसा असेल? दुसऱ्या मजल्यावरच्या आमच्या खोलीत शिरला कसा असेल? खरंच काही कल्पना करवत नाही !

तरी एकाने थट्टेने विचारले ,”कवितांचे हस्तलिखित त्याने नेले नाही ना?”

तेव्हा पाडगावकर म्हणाले, ” माझे दुःख त्यापेक्षा जास्त आहे. मी पोलिस स्टेशनवर गेलो .तक्रार केली. काही दागिने, वस्तू गेल्या होत्या, त्याची माहिती दिली व नंतर उत्सुकतेने त्या पोलिस अधिकाऱ्यास म्हटले,’मला साहित्य अकादमीने दिलेले एक मेडल त्यात होते, तेही चोराने नेले आहे’.

पोलिस अधिकाऱ्याने मान वर करून विचारले ,’ते कशाचे होते?’ ”

पाडगावकर म्हणाले ,”साधेच असते.काही खास मेटल त्यासाठी वापरले जाते असे नाही .”

“मग चिंता कशाला करता? घराजवळच शोधा.चोराने ते निश्चितच रस्त्यावर टाकले असेल”.

पाडगावकर घरी आले.आपल्या घराच्या जवळच्या रस्त्यावर पाहिलं मग गटारात पाहिलं .

साहित्य अकादमीने ‘सलाम’ कवितासंग्रहाला दिलेले ते पदक चोराने खरोखरच गटारात टाकले होते.त्याच्या लेखी त्या पदकाची किंमत शून्य होती.पाडगावकरांनी ते आनंदाने उचलले.

साहित्य अकादमीचे पदक फक्त मिळाले, बाकीचे सर्व गेले, कारण ते मौल्यवान होते!!!!

पाडगावकर म्हणाले, माझा चोराला सलाम

—तेच ते.

लेखक : अज्ञात.

संग्राहिका :सौ. गौरी गाडेकर.

संपर्क – 1/602, कैरव, जी. ई. लिंक्स, राम मंदिर रोड, गोरेगाव (पश्चिम), मुंबई 400104.

फोन नं. 9820206306

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

image_print

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – पुस्तकांवर बोलू काही ☆ नाते लडाखशी… सौ. अरुंधती प्रवीण दीक्षित ☆ परिचय – सौ. उज्ज्वला केळकर☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

?पुस्तकावर बोलू काही?

☆ नाते लडाखशी… सौ. अरुंधती प्रवीण दीक्षित ☆ परिचय – सौ. उज्ज्वला केळकर ☆

पुस्तकाचे नाव – नाते लडाखशी

लेखिका – सौ. अरुंधती प्रवीण दीक्षित

प्रकाशक – राजहंस प्रकाशन प्रा. ली.

मूल्य – १६० रु.

अमेज़न लिंक >> नाते लडाखशी – सौ. अरुंधती प्रवीण दीक्षित

नाते लडाखशी  (एक आस्वादन)

अरुंधती दीक्षित या लडाख इथे दोन वर्षं वास्तव्यास होत्या. तिथली वेगळी भौगोलिक परिस्थिती, त्यातून निर्माण झालेली वेगळी जीवनशैली , तिथले वेगळे अनुभव, याचं यथातथ्य मनोज्ञ दर्शन म्हणजे त्यांनी लिहिलेलं पुस्तक नाते लडाखशी.

प्रवीण दीक्षित हे भारतीय पोलीस सेवेत ऑफिसर आहेत. लडाखला निवडणुका घ्यायचे निष्चित झाल्यावर त्यांची लडाखला बदली झाली आणि ते सपरिवार लडाखला दाखल झाले.

हा काळ ८९- ९० च. त्या काळात, इंटरनेट, गुगल सर्च, सेल फोन, मोबाईल, कॉम्प्युटर, इ मेल हे शब्दही ऐकिवात नव्हते. त्यांचं आधीचं वास्तव्य मुंबईतलं. अरुंधती म्हणते, ‘मुंबई आणि लडाख यात जमीन आस्मानाचं अंतर आहे, हे अनुभवायला मिळालं.’ ( यापुढे लेखामधे लेखिका असा शब्द न वापरता, अरुंधती हे तिचे नावच वापरेन. )

चंदिगडहून विमान लेहला पोचलं. विमानाची चाके जमिनीला टेकली आणि आतील प्रवाशांनी आनंदोत्सव साजरा करत टाळ्या वाजवल्या. यात एवढं आनंदीत होण्यासारखं काय आहे, अरुंधतीला प्रश्न पडला. शेजारचा म्हणाला, ‘मॅडम, ले (लेह) का मोसम बंबईकी फॅशन . सुबह एक शाम को चेंज!’ नंतर कळलं, गेले पंध्रा दिवस वाईट हवामानामुळे इथे विमान उतरूच शकले नाही. स्वत:ला नशीबवान समजत सगळे बाहेर आले. बाहेर येताक्षणी अरुंधतीला लडाखचं पहिलं दर्शन झालं, ते असं – ‘विस्तीर्ण पिवळं पठार…. वर निळं… निळंशार आकाश… आभाळाशी स्पर्धा करणारे, बर्फामधे डोकी बुचकाळून आलेले अती अती उंच उंच डोंगर!… चमचमणारा सोन्याचा सूर्य. अंगाला जाणवणारा सुखद गारवा.’

लडाख हे  ९८००० स्क्वे. कि. मी. क्षेत्र असलेले विस्तीर्ण पठार आहे. याचे दोन जिल्हे. कारागील आणि लेह. लेह जिल्ह्यातील लेह गावात त्यांचे वास्तव्य असणार होतं. हे अतिशय उंचीवरचं थंड गाव.  पण तिथे लेह न म्हणता त्याला ‘ले’ म्हणतात. ले म्हणजे लडाखी भाषेत खिंडींनीयुक्त. तिथे खरडुंगला , झोजीला, तगलाकला, चांगला अशा अनेक खिंडी आहेत. पुढे लडाखचं सौंदर्य, भौगोलिक परिस्थिती आणि वातावरण याचे वर्णन करणारे, ‘लडाख: मुगुटातील हिरकणी’ असं एक स्वतंत्र प्रकरणही आहे.

हळू हळू मंडळी ‘ले’ला रुळू लागली आणि बघता बघता त्यांची ‘ले’ शी दोस्तीही झाली. सकाळी सकाळी पाणीतुकडा बाहेरून आत आणायचा. पाणीतुकडा म्हणजे बाहेरच्या हौदातला बर्फाचा खडा आत आणायचा. तो स्टोवर वितळवून पाणी तयार करायचं, मग स्वैपाकाला सुरुवात. मिळणार्या  आर्मी रेशनमधून चविष्ट जेवण बनवण्याची कला अरुंधतीला त्यांच्या कुकनेच शिकवली. बहुतेक भाज्या डबाबंद यायच्या. गजराच्या भाजीचं तिखट, मीठ, मसाला पाण्यानं धुवून त्यात साखर आणि मिल्क पावडर मिसळली, वर सुकामेवा पसरला की झाला गाजर हलवा तयार. अंड्याच्या पांढर्याा भागात मिल्कपावडर मिसळून त्याचे छोटे, छोटे, गोळे तयार करून वाफवले आणि मिल्कमेडमध्ये घातले की झाली तयार रसमलाई. आशा किती तरी युक्त्या ती कुककडून शिकली. जेवणानंतर बडीशेपेसह सी व्हिटॅमीन आणि मल्टी व्हीटॅमीनच्या गोळ्या आवश्यकच. सार्याक व्हिटॅमीनची कमतरता भरून काढण्यासाठी त्या घ्याव्या लागतातच. इथला प्रसिद्ध गुरगुर नमकीन चहा भरपूर अमूल बटर घालून पण साखर आणि दुधाशिवाय केला जातो.

लडाखमध्ये पेपर नाही पण रेडिओ केंद्र आहे. त्यावरच्या बातम्या, एवढाच बाहेरच्या जगाशी संपर्क. फौजी जवानांसासाठी यावरून गाणी सादर केली जात. इथे भिकारी नाही, याचीही आवर्जून नोंद केलेली आहे. इथे ‘जुले जुले’ म्हणत अभिवादन करायची पद्धत आहे. ‘जुले’ म्हणजे नमस्कार.

मिल्ट्री ऑफिसरपैकी अनेकांची कुटुंबे त्यांच्या त्यांच्या गावी होती. ते सगळे ऑफिसर हळू हळू यांच्या परिवारात सामील झाले आणि यांचा परिवार वाढला.

लेहयेथील थंडीत आलेल्या अनुभवाचे मोठे खुमासदार वर्णन अरुंधतीने केले आहे. पुस्तकांची बाईंडिंग निघून ती खिळखिळी होतात. टिच् आवाज करत ग्लास, बोनचायनाच्या  प्लेट्स तडकतात. दुधाच्या पातेल्याला स्कार्फ गुंडाळून ठेवला नाही, तर सकाळी त्यात शंकराची पिंड तयार होते. एक दिवस कपडे आत आणायचे राहिले, तर सूर्यास्त झाल्यावर त्यांची पाठ आणि पोट चिकटून त्याचं बर्फ तयार झालं होतं. अशीच एक भाकरीची गमतीदार आठवण दिली आहे. त्यांच्या दोस्ताच्या फर्माईशीवरून भाकरी-भाजीचा बेत ठरला. भाकरीचं पीठ आणि वांगी येऊन पडली. १५-२० जण तरी जेवायला येणार. ४० भाकरी तरी हव्या होत्या. मग लक्षात आलं, तूप लोणी काहीच सांगितलं नाही. तशी तिने ठरवलं, अमूल बटर वितळवून भाकरी झाली की लगेच लावून ठेवायचं. त्याप्रमाणे ४० भाकर्यां ची अमूल बटर लावून थप्पी रचली. जेवताना डबा उघडला, तर काय भाकरीच्या थप्पीचा दगड झालेला. भाकरीला लावलेलं बटर घट्ट झालेलं होतं. छिन्नी-पटाशीच्या मदतीने जमतील तसे भाकर्यां चे तुकडे करून ते  मग ओव्हनमध्ये गरम केले. तर असा तिथला हिवाळा.

‘ले’च्या थंडीप्रमाणेच इथल्या वसंत ऋतूचेही मोठे मोहक वर्णन अरुंधतीने केले आहे. हिवाळ्यात गोठलेल्या मृतप्राय जीवनावर, वसंत ऋतू चैतन्याची फुंकर घालतो आणि आळोखे पिळोखे देत  सृष्टी जागी होऊ लागते. अरुंधती लिहिते, ‘ ‘ले’च्या ध्यानस्थ बसलेल्या, निसर्गगरूप शंकराला महापराक्रमी मदनानं फुलांचा सुवासिक बाण मारून ‘उघडी नयन शंकरा, वसंत ये वनांतरी’ म्हणत खडबडून जागं केलं. इथली पानं, फुलं, जर्दाळू, सफरचंदसारखी फळं  या सार्यानचंच मोठं समरसून वर्णन केलय. हाच सीझन पाहुण्यांनी ‘ले’ल भेट देण्याचा. आपल्या ५० पाहुण्यांची व्यवस्था आपण कशी केली, याचीही गमतीदार हकीकत ती सांगते.  

अरुंधती ‘ले’ला आल्यावर तिथल्या लॅमडॉनयेथील शाळेत शिकवायला जायला लागली. ‘मॅडमले जुले’ म्हणत नमस्कार करणारी तिथली, लाल, गुलाबी गालाची, गुलाबाचे ताटवेच आहेत, असे वाटणारी मुले, त्यांचा उत्साह, त्यांचं वागणं, शाळेची ट्रीप, ट्रीपमधील गमती-जमती, यांचं मोठं मनोज्ञ वर्णन तिने केलं आहे. त्याचबरोबर तिथं शिकवताना येणार्याा अडचणींचंही वर्णन केलं आहे. कधीच न पाहिलेल्या, समुद्र आणि जहाज याबद्दल मुलांना कसं सांगायचं? न पाहिलेल्या, झुरळ, बेडूक, साप यांची शरीर रचना कशी समजून द्यायची? असे अनेक प्रश्न तिला पडत. आपल्याला वाचतानाही प्रश्न पडतो, तिने हे आव्हान कसे पेलले असेल?

सियाचीनयेथील सर्वात उंचीवरचे ‘कैद’ हे ठाणे जिंकून ‘गड आला आणि सिंहही परत आला’, असा हा सिंह, परमवीरचक्राचा मानकरी बाणासिंह, याची स्फूर्तिप्रद, प्रेरणादायी कहाणी यात येते. तशीच मेजर सैतानसिंहाचीही येते. खबीर नेतृत्वगुण असलेला आणि रिझांगलाच्या कुशीत आपला देह ठेवणार्याा, मरणोत्तर परमवीरचक्र लाभलेल्या मेजर सैतानसिंहाच्या पराक्रमाचे प्रत्यक्षदर्शी वर्णन तिने केले आहे.

‘लडाखच्या अंतरंगात’मध्ये तिथली भौगोलिक स्थिती, जमीन, वातावरण, पर्वतरांगा, कडेकपारी, डोंगरवाटा, खिंडी, घळया, वन्यजीवन, पशू- पक्षी इ. चं सविस्तर वर्णन येतं. एके ठिकाणी तिने एक लक्षणीय अनुभव दिलाय. तलावाच्या, पाण्याच्या बिलोरी आरशात, मागच्या पिवळट, मातकट पर्वतांचं असं काही प्रतिबिंब पडलं होतं की तो तलाव न वाटता जमीनच वाटत होती. पर्यटकांना दाखवल्या जाणार्याह ठिकाणांचंही वर्णन इथे येतं. हेमीस, आल्या, मूनलॅंड आणी लामायूरू, हे गोंपा (मठ), ‘शे’चा राजवाडा इ च्या वर्णनाबरोबरच हॉल ऑफ फेम ( जिथे तेथील युद्धासंबंधीची माहिती व फोटो जतन केलेले आहेत त्याबद्दल), तसेच सुप्रसिद्ध बोफोर्स तोफ पाहून कसं धन्य झालं, तेही तिने संगीतलय.

होता होता ‘ले’चं वास्तव्य संपलं. शाळेचे मुख्याध्यापक,  सहाशिक्षिका आणि विद्यार्थी- विद्यार्थिनी यांनी केलेल्या निरोप समारंभाचे आतिषय हृद्य आणि काव्यमय वर्णन अरुंधतीने केले आहे. ती म्हणते की आता मनाच्या पुस्तकात इथल्या आठवणींचे मोरपीस ती ठेवेल आणि अधून मधून ते उघडून ती तिथल्या आठवणीत रमून जाईल.                                                                                                                                

लडाखशी नाते जोडत, त्या उंचीवर, थंड हवेत, प्रतिकूल नैसर्गिक परिस्थितीत, विरळ, प्राणवायू असलेल्या जागी लोक राहातात, कसे रहातात, आनंदाने कसे राहतात, हे जाणून घेण्यासाठी वाचायलाच हवे, ‘नाते लडाखशी’ आणि आपणही  शब्दातून जोडायला हवे, ‘नाते लडाखशी’

परिचय – सौ. उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.-  9403310170

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

image_print

Please share your Post !

Shares