(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत – गीत यह तुमको समर्पित…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 184 – सुमित्र के गीत… गीत यह तुमको समर्पित
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “जोश भरे दरवाजे...”)
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
💥 मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित साधना मंगलवार (गुढी पाडवा) 9 अप्रैल से आरम्भ होगी और श्रीरामनवमी अर्थात 17 अप्रैल को विराम लेगी 💥
🕉️ इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी करें। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना भी साथ चलेंगी 🕉️
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Ministser of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)
We present some couplets from his forthcoming book Eternal Longings (The Bliss of English Shayari). We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji, who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages for sharing this classic poem.
☆ Eternal Longings (The Bliss of English Shayari) # 1 ☆
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।
प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन
ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है पत्रकार, सहियकार “स्व अजित वर्मा जी” के संदर्भ में अविस्मरणीय ऐतिहासिक जानकारियाँ।)
आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –
☆ “आदर्श पत्रकार व चिंतक थे अजित वर्मा” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆
पत्रकार, साहित्यकार अजित वर्मा का स्मरण आते ही उनका चिंतन-मनन और लेखन में डूब हुआ धीर-गम्भीर चेहरा सामने आ जाता है। उन्होंने इले. इंजीनियरिंग की पढाई की थी फिर राजनीति शास्त्र में एम.ए., एल.एल.बी., साहित्यरत्न, कोविद (संस्कृत) एवं पत्रकारिता में पत्रोपाधि की। कुछ समय म.प्र.उच्च न्यायालय में वकालत और शासन के रिवीजन ऑफ़ गजेटियर्स में राजपत्रित अधिकारी के रूप में कार्य किया, किन्तु वे तो सकारात्मक चिंतन करने, जनहित में लिखने और पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों, अपराधियों, भ्रष्टाचारियों पर तीखे प्रहार करके उन्हें समाज के सम्मुख लाने, समाज को दिशा प्रदान करने, प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करते हुए उन्हें उचित मार्गदर्शन देने और कलमकारों के हित में कुछ करने के लिए ही पैदा हुए थे अतः उन्हें राजपत्रित अधिकारी का पद पसंद नहीं आया। उन्होंने जीवन यापन के लिए उद्देश्य पूर्ण पत्रकारिता का कष्ट कंटकों भरा मार्ग चुना। वर्मा जी ने पत्रकारिता की शुरुआत अपने छात्र जीवन से ही प्रतिष्ठित समाचार पत्र ‘युगधर्म’ से कर दी थी। उन्होंने नई दुनिया, नवीन दुनिया, दैनिक नवभास्कर के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हुए नई पीढ़ी के पत्रकारों का मार्गदर्शन किया। अजित वर्मा जी ने 30 वर्ष पूर्व स्वयं के संपादकत्व में सांध्य दैनिक “जयलोक” समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। विशाल ह्रदय के स्वामी अजित भाई ने “जयलोक” को दीवारों और घेरों से मुक्त, बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय की नीति पर आगे बढ़ाया। “जयलोक” के द्वार हर नए-पुराने जरूरतमंद पत्रकार के लिए खोल दिए। उल्लेखनीय है कि सिद्धान्तवादी पत्रकारों का जीवन बहुत अस्थिर होता है। मुझे यह लिखते हुए हर्ष हो रहा है कि भाई अजित वर्मा की इस उदार नीति पर उनके सुपुत्र “जयलोक” के वर्तमान संपादक श्री परितोष वर्मा एवं अजित जी के परम मित्र “जयलोक” के समूह संपादक श्री सच्चिदानंद शेकटकर आज भी चल रहे हैं। अजित वर्मा और “जयलोक” को पत्रकारिता की पाठशाला का विशेषण यों ही नहीं मिला। इधर जहाँ ससम्मान अनेक नामी पत्रकारों ने अपने जीवन की संध्या गुजारी वहीं इन वरिष्ठ पत्रकारों और अजित वर्मा जी के मार्गदर्शन और अनुशासन में अनेक नए पत्रकारों की कलम में धार पैदा हुई जो आज विभिन्न पत्रों में कार्य करते हुए यश-कीर्ति अर्जित कर रहे हैं।
वर्मा जी के द्वारा विविध विषयों पर निर्भीक होकर लिखी लेख मालाएं बहुत चर्चित रहीं। उनकी रचित प्रकाशित पुस्तकों में जीवन दर्शन, लोकतंत्र सूली पर, आहुति (जबलपुर में स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास), अनहर्ड क्राइज (जबलपुर भूकम्प), दिग्विजयी लोकनीति, तहलका और हम, विमर्श और सान्निध्य की अर्द्धशती (जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी के साथ) तथा वीरांगना दुर्गावती प्रमुख हैं। वर्मा जी का प्रमाण पुष्ट लेखन बताता है कि विभिन्न विषयों पर उनका कितना गहन अध्ययन-चिंतन था।
वे 1979 से 83 तक जबलपुर पत्रकार संघ के महामंत्री और फिर अध्यक्ष रहे। उन्हीं के कार्यकाल में पत्रकार भवन का निर्माण हुआ। उन्होंने पांच दशकों से अधिक समय तक पूरी प्रतिबद्धता व निष्ठा के साथ श्रेष्ठतम मूल्यों और आदर्शों के अनुरूप पत्रकारिता को नए आयाम दिए। वे अ.भा.आध्यात्मिक संघ के सक्रिय प्रदेश महामंत्री भी रहे। ऐसा नहीं कि चिंतन-मनन, लेखन, धर्म-आध्यात्म और पत्रकारिता ने उनकी सरसता छीन ली हो। अजित वर्मा जी ने अपने साथियों के साथ 1967 में सांस्कृतिक संस्था “मित्रसंघ” की स्थापना की और नगर के श्रोता-दर्शकों को वर्षों तक उत्कृष्ट कार्यक्रमों की श्रृंखला दी। मित्रसंघ द्वारा प्रारम्भ भूले बिसरे गीतों का कार्यक्रम अति लोकप्रिय हुआ था इसकी सौ से अधिक प्रस्तुतियां हुईं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी स्मृति शेष भाई अजित वर्मा शारीरिक शिथिलता के बावजूद अंतिम सांस तक चैतन्य और बौद्धिक रूप से सक्रिय रहे।
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “ये सब्जी वालियाॅं…“।)
अभी अभी # 340⇒ ये सब्जी वालियाॅं… श्री प्रदीप शर्मा
हमारे रोज के भोजन में सब्जी का बड़ा महत्व है। मुझे सब्जी मंडी और सब्जी मार्केट से विशेष प्रेम है। हरे हरे खेत अब कहां शहरों में नसीब होते हैं, चलो कुछ समय हरी भरी तरकारियों के बीच ही गुजारा जाए। आज भी सुबह सुबह दूध और अखबार वाले के बाद सब्जी वाले की ही आवाज सुनाई देती है।
घर के पास ही सब्जी मार्केट और फ्रूट मार्केट था। तब मैं मां का असिस्टेंट था, साथ में झोला और पैदल मार्च। सड़क के दोनों ओर ठेले अथवा जमीन पर सब्जी वालों की सजी धजी दुकानें, कहीं सब्जी वाला, तो कहीं सब्जी वाली।।
तब कहां घरों में फ्रिज था। रोजाना ताजी सब्जी लाना और बनाना। सभी सब्जी वाले परिचित। अपनेपन में एक अधिकार भी होता है। हर दुकानदार की इच्छा होती थी, कि मां सब्जी उसी से ले। मां के सरल और मृदु स्वभाव के कारण हमें राम राम के अभिवादन के साथ गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता था। मां कहीं से भी सब्जी लेती, कोई बुरा नहीं मानता, क्योंकि मां सबसे हालचाल पूछती रहती थी, बातचीत करती रहती थी। मोल भाव का तो सवाल ही नहीं था।
कुछ सब्जी वालियों को मां नाम से जानती थी। अक्सर उनका पूरा परिवार ही इस पेशे से जुड़ा रहता था। कहीं अम्मा, कहीं बहू तो कहीं बेटी। लगता था सब्जी की सौदेबाजी नहीं, रिश्तों का मेलजोल हो रहा है। मेरी निगाह सस्ती महंगी की ओर रहती थी, लेकिन मां कहती थी, मेहनत मजदूरी करते हैं, इन्हें दो पैसे ज्यादा देने में हमारा क्या जाता है।
सब्जी के साथ मुफ्त में धनिया मिर्ची के साथ अगर थोड़ा प्रेम और सम्मान भी मिल जाए, तो सब्जी अधिक स्वादिष्ट बनती है।।
अब न तो मां है और ना ही पहले जैसी हरी भरी ताजी सब्जियां। मां की जगह आजकल पत्नी का साथ होता है, सब्जियों की गुणवत्ता में भले ही कमी आई हो, लेकिन वही सब्जी वाले और वही सब्जी वालियां। सिर्फ चेहरे बदले हैं, पीढ़ियां बदली है, समय और जगह बदली है।
पत्नी का स्वभाव थोड़ा थोड़ा मां जैसा होता जा रहा है। वह भी इन सब्जी वालियों में घुल मिल जाती है, कहां की हो, कितने बच्चे हैं। बहुत जल्द इंसान खुल जाता है, सुख दुख की बात करने लग जाता है।।
कुछ लोग इन सब्जी वालियों से भाव ताव भी करते हैं और नोंक झोंक भी। चोइथराम मंडी में टमाटर बीस रूपये किलो है और तुम अस्सी में दे रही हो, हद होती है लूट की। आप नहीं जानते, दिन भर में कितना कमा लेते हैं ये लोग। यहां लड़ाई झगड़ा भी होता है और मारपीट भी। यानी असली सब्जी मार्केट।
डी मार्ट, रिलायंस फ्रेश और बिग बास्केट से सब्जी खरीदने वालों की दुनिया ही अलग होती है, वहां न मोल भाव, और ना ही नगद भुगतान। उनकी दुनिया में ना गरीबी प्रवेश करती है और ना ही वे कभी गरीबों की बस्तियों में पांव रखते हैं। उनके लिए हर मेहनत मजदूरी करने वाला गरीब, मुफ्त राशनखोर, परजीवी है, समाज पर बोझ है।।
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है विश्व कविता दिवस परआपकी भावप्रवण कविता “एक सूर्य निकला था ”)
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता ‘गुरु की महिमा…’।)