श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है विश्व कविता दिवस परआपकी भावप्रवण कविता एक सूर्य निकला था ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 173 ☆

☆ # “एक सूर्य निकला था ” # ☆ 

वर्षों पहले आज ही के दिन

एक सूर्य निकला था

तम का काला साया

उसके किरणों से पिघला था

*

जीवन था दुश्वार

कटघरे में परछाई थी

पांव बंधे थे पीठ पर

चलने की मनाही थी

थूक भी अभिशप्त था

पीढ़ियाँ सताई थी

झाड़ू था उपहार

दिनचर्या सफाई थी

वंचितों ने गांव के बाहर

बस्तियां बसाई थी

अत्याचार आम था

नहीं कोई सुनवाई थी

तुमने अपने प्रखर तेज़ से

इस व्यवस्था को बदला था

वर्षों पहले आज ही के दिन

एक सूर्य निकला था

तम का काला साया

उसके किरणों से पिघला था

*

हम तो थे अंधकार में

तुमने हमारी आंखें खोली

हम तो थे पाषाण से

मुंह में डाली तुमने बोली

कलम की ताकत समझाई

शिक्षा हमारी बनी हमजोली

शेरनी का दूध पिलाया

मुके बोलने लगे जैसे गोली

आधिकारों की चेतना जगाई

जनता थी कितनी भोली

अंधों को आंखें दी

रूढ़ियों की जलाई होली

शिक्षा के इस महादान से

अंधविश्वास को कुचला था

वर्षों पहले आज ही के दिन

एक सूर्य निकला था

तम का काला साया

उसके किरणों से पिघला था

*

थोड़ा सा पाया है पर

बहुत कुछ पाना बाकी है

समाज को भूल जाओगे तो

नहीं इसकी कोई माफी है

टूटते संघटन, यह बिखराव

कल की दुर्दशा की झांकी है

मजबूत संघटन की ही

दुनिया ने कीमत आंकी है

मिटानें विरासत को

आंधियां पिस रही चाकी है

बवंडर तो उठाया है पर

अब वो सब नाकाफ़ी है

तुमने संघर्षों से हमारा

भाग्य बनाया उजला था

वर्षों पहले आज ही के दिन

एक सूर्य निकला था

तम का काला साया

उसके किरणों से पिघला था/

*

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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