(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत –बिछल रही है चाँदनी…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 163 – गीत – बिछल रही है चाँदनी…
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “कुछ कुछ अच्छा ही होगा अब…”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 162 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆
☆ “कुछ कुछ अच्छा ही होगा अब…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
🕉️ 💥 महालक्ष्मी साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी से आपको शीघ्र ही अवगत कराएंगे। 💥 🕉️
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता – “गांव में इन दिनों…”।)
☆ कविता – “गांव में इन दिनों…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “नींद हमारी, ख्वाब हमारे“।)
अभी अभी # 199 ⇒ नींद हमारी, ख्वाब हमारे… श्री प्रदीप शर्मा
वे रोज हमारे ख्वाबों में आते हैं, फिर भी उन्हें पता ही नहीं होता, क्योंकि नींद भी हमारी है और ख्वाब भी हमारे ! और उधर वो बेचारे, रात भर करवटें बदलते, अनिद्रा के मारे।
पहले ऐसा नहीं होता था, क्योंकि हमें इतनी गहरी नींद आ जाती थी, कि हमें ख्वाबों का ही पता नहीं होता था। आज यह आलम है कि, ख्वाबों को नींद का, मानो इंतजार सा रहता है, इधर नींद आई, उधर से ख्वाबों का मच्छरों की तरह हमला शुरू। इन बिन बुलाए मेहमानों का आप ऑल आउट से मुकाबला भी नहीं कर सकते, क्योंकि ये तो ख्वाब ही हैं, कोई हकीकत नहीं।।
ख्वाब और खर्राटे दोनों ही हमेशा नींद का इंतजार करते रहते हैं, ख्वाब देखे जाते हैं और खर्राटे लिए जाते हैं। आपके ख्वाब कोई दूसरा नहीं देख सकता और आपके खर्राटे आप ही नहीं सुन सकते।
खर्राटे को कुछ लोग शुद्ध हिंदी में साउंड स्लीप कहते हैं। कहीं कहीं तो यह साउंड स्लीप इतनी डंके की चोट होती है, कि सबकी नींद हराम कर देती है। हमारे ख्वाब, हमारे रहते, कभी किसी और को परेशान नहीं करते। कभी कभी तो, जब हम ही अपने ख्वाबों से परेशान हो जाते हैं, तो ख्वाब टूट जाते हैं और हम जाग जाते हैं।
सपने तो सपने, कब हुए अपने ! यानी हमारी जाग्रत अवस्था ही जिंदगी की सच्चाई है, चाहे कितनी भी कड़वी हो। सपना कितना भी मीठा हो, उससे कभी मधुमेह नहीं होता। फिर भी न जाने क्यों, इंसान सपनों में जीना नहीं छोड़ता। सोते जागते जो लोग एक ही सपना देखते हैं, कभी कभी उनके सपने सच भी हो जाते हैं। और अगर नहीं होते, तो बस इतनी सी शिकायत ;
मेरा सुंदर सपना टूट गया
मैं प्रेम में सब कुछ हार गई
बेदर्द ज़माना जीत गया …।।
एक स्वस्थ शरीर और मन के लिए छः से आठ घंटे की गहरी नींद जरूरी है। पुराने समय में सभी दैनिक कार्यकलाप, बिजली के अभाव में, सूरज की रोशनी में ही संपन्न कर लिए जाते थे। खेती बाड़ी, मेहनत मजदूरी, चक्की पीसना, पनघट और कुएं बावड़ी से पानी भरने जैसे पापड़ बेलने वाले काम एक व्यक्ति को इतने थका देते थे, कि बिस्तर में पड़ते ही ऐसी नींद आती थी, कि सुबह केवल मुर्गे की बांग ही सुनाई देती थी। पौ फटते ही सभी फिर काम में जुट जाते थे।
स्कूल में पाठ भी कैसे पढ़ाए जाते थे, श्रम की महत्ता, सत्यवादी हरिश्चंद्र और मेरे सपनों का भारत।
हमने अपने सभी सपनों को परिश्रम और पुरुषार्थ से सच किया, और आज हम हमारा देश सफलता, संपन्नता और आधुनिक तकनीक के जिस मजबूत और विकासशील धरातल पर खड़ा है, वह हमें विश्व में सिरमौर और विश्व गुरु बनाने के लिए पर्याप्त है। दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिए।।
आज भी अगर हर व्यक्ति सप्ताह में 70 घंटे काम करे, तो कई सपने सच हो सकते हैं। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:। तगड़ी मेहनत, तगड़ी भूख और घोड़े बेचकर सोने वाली नींद। जब ख्वाब हकीकत बन जाते हैं, तब ही तो इंसान चैन की नींद सो पाता है।
शेखचिल्ली के सपने और दिवा स्वप्न देखना भी किसी मानसिक रोग से कम नहीं। अत्यधिक काम का दबाव भी मानसिक तनाव का कारण बनता जा रहा है। मोटिवेशनल स्पीच का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है स्ट्रेस मैनेजमेंट। अगर नींद हमारी है, तो ख्वाब भी तो हमारे ही होने चाहिए।
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# उत्सव #”)
विशेषतः वैज्ञानिक विषयांवर अतिशय माहितीपूर्ण आणि उत्तम लेख लिहिणारे आपल्या समूहातील लेखक श्री. राजीव पुजारी यांना “मराठी विज्ञान परिषद“ या मान्यवर संस्थेने आयोजित केलेल्या विज्ञान निबंध स्पर्धेत दक्षिण महाराष्ट्र विभागात द्वितीय क्रमांक प्राप्त झाला आहे. या स्पर्धेसाठी “पंचाहत्तर वर्षातील भारताची वैज्ञानिक प्रगती“ हा मोठा आवाका असणारा विषय देण्यात आला होता. श्री. पुजारी यांना मिळालेल्या या यशाबद्दल ई-अभिव्यक्ती समूहातर्फे त्यांचे मनःपूर्वक अभिनंदन आणि त्यांना उत्तरोत्तर असेच यश मिळत रहावे यासाठी हार्दिक शुभेच्छा.
यावर्षीच्या ई-अभिव्यक्ती दिवाळी विशेषांकात त्यांचा हा निबंध लेखस्वरूपात प्रकाशित करण्यात आलेला आहे.