English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 63 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 63 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 63) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 63 ☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

गर किसी से इश्क करते हो

तो फिर खामोश ही रहना

वरना  जरा  सी ठेस लगी

कि ये शीशा टूट जाता है….

 

If you love someone

then keep silence only

Otherwise, just a hurt

and this glass shatters!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

भला ये आईने  क्या बयाँ कर सकेंगे

तुम्हारी  शख्सियत  की  खूबियाँ

कभी आके हमारी आँखों से  पूछो

कि  कितने  लाज़वाब  हो  तुम..!

 

What narration can these mirrors

ever give  of  your  persona…

Come over sometime and ask my

eyes as to how awesome you are!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मुझे उस जगह से भी

मोहब्बत हो जाती है

जहाँ बैठ कर एक बार

तुम्हें सोच लेता  हूँ…!

 

I just fall in love

with that place,  too

where I sit and think

of you even once…!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

न रुकी वक़्त की गर्दिश

न  ही  बदला ज़माना ,

पेड़  सूखा  तो  परिंदों

ने भी  ठिकाना बदला…

 

Neither atrocities of time stopped

nor the world ever changed,

When tree dried up then the

birds also shifted their nests ….!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 63 ☆ मैं नट हूँ  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित भावप्रवण कविता  ‘मैं नट हूँ  । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 63 ☆ 

☆ मैं नट हूँ  ☆ 

मैं नट हूँ,

करतब करती हूँ।

साध संतुलन चढ़ रस्सी पर

बाँस पकड़कर कदम बढ़ाती,

कलाकार हूँ,

कला प्रदर्शन कर जीती हूँ।

भरी हुई संतोष-गर्व से

यह न समझना

मैं रीती हूँ।

गिर, उठ, सम्हली

किंतु न हारी।

जीत हुई मैं

सबकी प्यारी।

हँसकर करतब रोज दिखाती।

कुछ पैसे, कुछ ताली पाती।

मत समझो

मैं दीन-हीन हूँ।

मुझे गर्व

मैं नट प्रवीण हूँ।

पाल पेट सकती मैं अपना

औरों का भी बनी सहारा।

तुम क्या जानो

आँधी-पानी?

हर मौसम ने मुझे दुलारा।

पाठ जिंदगी के पढ़ती हूँ

अपनी किस्मत

खुद गढ़ती हूँ।

नहीं तुम्हारी तरह कभी

बेरोजगार रह भार बनी मैं।

समझ सको तो सत्य समझना

जीवन को उपहार बनी मैं।

तुम साधन पा इतराते हो,

बिन साधन झट कुम्हलाते हो।

मैं निज साधन आप जुटाती

श्रम-कोशिश है मेरी थाती।

नहीं दया की भीख माँगती

नहीं रहम या सीख चाहती।

दे पाओ, दो कुछ अपनापन

कुछ बराबरी, कुछ सपनापन

आओ! टिक्कड़ साग खिलाऊँ।

तीखी चटनी तुम्हें चटाऊँ।

चाहो तो करतब दिखलाऊँ।

सीख सको तो झट सिखलाऊँ।

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य #93 ☆ # मेल – मिलाप # ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की  एक भावप्रवण कविता  “# मेल – मिलाप #। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# #93 ☆ # मेल – मिलाप # ☆

(मेल मिलाप जीवन में सदैव उत्तम परिणाम देता है, सुख का सृजन करता है। सृष्टि संरचना का आधार है। आपसी मेल-मिलाप से व्यवस्था संचालन की शक्ति अपार हों जाती है ,असंभव भी मेल-मिलाप से संभव हो जाता है, मेल  मिलाप के अर्थ बताती यह रचना कवि के मंतव्य को दर्शाती है।)

सीता से जब राम मिलें,     

             तब बन जाते हैं सीता राम।

राधा से जब श्याम मिले,

          तब बन बैठे वो राधेश्याम।

 शिव से जब शंकर मिलते हैं,

             बन जाते हैं शिव शंकर।

 जब नर से नारायण मिलते,

         ‌  बन जाते हैं नरनारायण ।

मेल मिलाप से बन जाते हैं,

          जीवन में सब बिगड़े काम।।

      सीताराम सीताराम,

।।भज प्यारे तूं सीता राम।।1।।

 ☆ ☆ ☆ ☆ ☆ 

नर से नारी जब मिलते हैं,

      सृजन सृष्टि तब होती है।

जैसे सीपी में स्वाती का जल,

   घुलकर कर बन जाता  मोती है।

बांस के भीतर मिल कर वह,

      बंसलोचन बन जाता है।

सर्प जो उसका पान करे तो,

       वही गरल वह बन जाता है।

  मेल मिलाप से बन जाते हैं,

        जीवन में सब बिगड़े काम।

     सीता राम सीता राम,

।।भज प्यारे तूं सीता राम।।2।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆ 

किसी का मिलना दुख का कारण,

    किसी का मिलना सुख  देता है।

 कोई सदा बांट कर खाता,

        कोई हिंसा कर लेता है।

किसी का जीवन जग की खातिर,

 कोई तिल तिल  जल कर मरता है।

   कोई जग में नाम कमाता,

        कोई पाता दुख का इनाम।

    मेल मिलाप सदा सुख देता,

         बन जाते सब बिगड़े काम।

।। सीता राम सीता राम भज ले

       प्यारे तूं सीता राम।।3।। 

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

23-10-2021

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ श्री सुरेश पटवा द्वारा रचित नर्मदा और पलकगाथा पुस्तकों का भव्य लोकार्पण संपन्न ☆

सूचनाएँ/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

? श्री सुरेश पटवा द्वारा रचित नर्मदा और पलकगाथा पुस्तकों का भव्य लोकार्पण संपन्न ?

भोपाल।  “लोकमंगल की नदी है नर्मदा, यह सिर्फ एक नदी नहीं हमारी पूरी सभ्यता है| नदियाँ हमें संस्कार देती हैं, नदियों से ही हमारा जीवन और अस्तित्व है| विकास के नाम पर धनपशु नदियों को निगल रहे हैं| इस आसन्न संकट और इसकी भयावहता को समझ साहित्यकार इस दिशा में कार्य करें।” – यह कथन है पद्मश्री श्री विजयदत्त श्रीधर, संस्थापक-निदेशक, माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्राहलय का जो मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, हिंदी भवन, भोपाल द्वारा साहित्यकार श्री सुरेश पटवा की सद्य प्रकाशित कृतियों ‘नर्मदा’ एवम ‘पलकगाथा’ उपन्यास के लोकार्पण अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार प्रकट कर रहे थे।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यर्पण कर आयोजन का शुभारंभ किया तथा श्रीमती जया केतकी ने सुमधुर सरस्वती वंदना प्रस्तुत की ततपश्चात डॉ सुनीता खत्री,श्रीमती सीमा नेमा,श्री सूर्यप्रकाश जोशी ने मंचस्थ अतिथियों का पुष्प एवम।पुस्तक से स्वागत किया| आयोजन में नर्मदा परिक्रमा करने वाले सुरेश पटवा जी के सहयात्री मित्रों श्री जगमोहन अग्रवाल एवम श्री मुंशी पाटकर ने भी मंचस्थ अतिथियों एवम सुरेश पटवा जी का पुष्पहारों से स्वागत किया।

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति हिंदी भवन के अध्यक्ष सुखदेव प्रसाद दुबे ने कहा कि – “अब साहित्यकार नदियों के संरक्षण हेतु कलम ही नहीं, कुदाल भी चलाएं।  लेखक ने लोकार्पित हुई अपनी कृतियों के माध्यम से नदियों और समाज की रुग्ण दशा का प्रभावी और मार्मिक चित्रण किया है।” कार्यक्रम में समिति के मंत्री संचालक कैलाशचन्द्र पन्त ने पुस्तक के लेखक श्री पटवा का शॉल, श्रीफल और पुष्पहार से सम्मान किया।

इस अवसर पर स्वागत उदबोधन हिंदी भवन के निदेशक डॉ. जवाहर कर्नावट ने प्रस्तुत किया| पुस्तकों के लेखक सुरेश पटवा ने अपनी सृजन यात्रा के बारे में विस्तार से अपनी बात रखी|पुस्तक केंद्रित समीक्षा वरिष्ठ साहित्यकार डॉ, रामवल्लभ आचार्य एवम डॉ. मोहन तिवारी आनन्द ने प्रस्तुत की।

कार्यक्रम का संचालन घनश्याम मैथिल ‘अमृत’ ने किया और अंत में श्रीमती कांता राय ने आभार प्रकट किया| इस अवसर पर श्री विनोद जैन, गोकुल जैन, चंद्रभान राही, बिहारीलाल सोनी, अशोक धमेनियाँ, अशोक दुबे, अशोक तिवारी, मधुलिका, महेश कुमार सक्सेना, विपिनबिहारी बाजपेई, राजुरकर राज, डॉ जयजय राम आनन्द ,जवाहर सिंह सहित नगर के अनेक गणमान्य साहित्यकार एवम पुस्तक प्रेमी उपस्थित थे।

? ई- अभिव्यक्ति परिवार की और से श्री सुरेश पटवा जी का हार्दिक अभिनंदन  ? 

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 6 (16 -20)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (16-20) ॥ ☆

कोई उठा वाम भुज रख के सिंहासन पै लगा अन्य से बात करने

कि जिससे उसके गले की माला सिसंक के पीछे लगी लटकने ॥16॥

 

कोई विलासी प्रिया मिलन के सपन में, केतकी सुमन के दल को

दिखा पिया के नितंब सदृश नखाग्र से था रहा मसल जो ॥17॥

 

रेखा – ध्वजा अंकित कमल पाणि से किसी ने अक्षों को उछाला

कि मुद्रिका मणि की सुप्रभा से दिखी बनी लघु सी एक माला ॥18॥

 

किसी ने समुचित लगे मुकुट समझ सरकता हुआ सम्हाला

दिखी तो ऊँगलीयों बीच मणियों की झिलमिलाती प्रभा विशाला ॥19॥

 

तभी सुनन्दा ने इंदुमति को मगध के नृप के समीप लाकर

सभी नृपों की कुल – शील ज्ञाता प्रतिहारिणी ने कहा सुनाकर ॥ 20॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ २४ ऑक्टोबर – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? २४ ऑक्टोबर  –  संपादकीय  ?

प्रसिद्ध मराठी कथालेखक श्री.अरविंद विष्णू गोखले यांचा 24 ऑक्टोबर हा स्मृतीदिन(1992). त्यांचा जन्म सांगली जिल्ह्यातील इस्लामपूर येथे झाला. शिक्षण पुणे, मुंबई येथे झाले. एम्. एस्सी.बाॅटनी, तसेच अमेरिकेतील व्हिस्काॅन्सिन विद्यापीठात तांत्रिक वृत्तपत्र विद्या अभ्यास पूर्ण करून एम.एस् ही पदवी मिळवली. पुण्याच्या शासकीय कृषी महाविद्यालयात संशोधन आणि अध्यापन केले. नंतर त्यानी मुंबईत धरमसी कंपनीत नोकरी केली.

पण हे सर्व करत असताना त्यांचे लेखन व प्रामुख्याने कथा लेखन ही चालू होते. त्यांची पहिली कथा ‘हेअर कटिंग सलून’ वयाच्या सोळाव्या वर्षी प्रसिद्ध झाली. पुढील आयुष्यात त्यांनी 350 हून अधिक कथा लिहील्या. कातरवेळ, मंजुळा, रिक्ता, कॅक्टस, विघ्नहर्ती या त्यांच्या काही गाजलेल्या कथा. त्यांच्या अनेक कथांचे भारतीय व युरोपीय भाषांमध्ये भाषांतर झाले आहे. त्यांनीही वेचक अमेरिकन कथांचे अनुवाद केले आहेत.

त्यांचे काही कथासंग्रह: अक्षता, कथाई,  कथाष्टके, गंधवार्ता, चाहूल, देशांतर, माणूस आणि कळस, अनामिका, मिथिला इ.

कादंबरी: आय.सी. 814, शपथ

आत्मकथन: शुभा

अनुभवकथन: आले पाक

प्रवासवर्णन: अमेरिकेस जाऊन पहावे, असाही पाकिस्तान.

याशिवाय माहितीपर, संपादित कथा, असे विपुल लेखन त्यांनी केले आहे. त्यांच्या कथासंग्रहाना महाराष्ट्र शासनाचे तीन पुरस्कार मिळाले आहेत. तसेच काही कथांना आंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिळाले आहेत. अशा या चतुरस्त्र लेखकास स्मृतीदिनानामित्त अभिवादन.

 

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ :- विकिपीडिआ साभार.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ मज साद तुझी आली … ☆ प्रा. सौ. सुमती पवार

प्रा. सौ. सुमती पवार

? कवितेचा उत्सव ?

☆ मज साद तुझी आली … ☆ प्रा. सौ. सुमती पवार ☆

बाहेर चांदण्यात ,मज साद तुझी आली

आणि पुन्हा नव्याने ,मी पहा सजुनी आली ….

 

तो चंद्र तो चकोर, मन होई भावभोर

तो शीत शीत वायु, तो गगनी चंद्रमोर

तू शोध मज आता..मी भाव वेल झाली…

                   बाहेर चांदण्यात ……

 

तू मोकळा मुकुंद,मज दूर हाक मारी

मी बैसले रे येथे , बघ कालिंदी किनारी

मज शोध शोधता रे , भूमी धुक्यात न्हाली

                            बाहेर चांदण्यात ….

 

अद्वैत रे मनांचे,उठले पहा तरंग

पाण्यात दर्पणी या, मज भासतो श्रीरंग

मी मनी दर्पणात,तेव्हा तुझीच झाली

                         बाहेर चांदण्यात …

 

हा खेळ जीवनात, प्रीतीत डुंबण्यात

हृदयात बैस माझ्या,ठेवते लोचनात

तू आठवे मनात, चढली पहाच लाली..

                      बाहेर चांदण्यात …

                             मज साद… तुझी…

                                        आली ……

 

© प्रा.सौ.सुमती पवार ,नाशिक

दि: ०२/०२/२०२१, वेळ : रात्री: १२:२४

(९७६३६०५६४२)

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ जुने दिवस ☆ मेहबूब जमादार

? कवितेचा उत्सव ?

☆ जुने दिवस ☆ मेहबूब जमादार ☆ 

गेले ते जुने दिवस

आठवणीत राहीलेले

पुन्हा पुन्हा स्मरूनी

काळजात दाटलेले

 

विश्वासाचं नातं कसं

ठेवूनी होतं मनांत

सोनंही पिकायचं

माळावरच्या रानांत

 

दरोड्याची नसे चिंता

चोरी कधी नसायची

काठीला सोनं बांधून

दिवसा माणसं फिरायची

 

हरे एक घराला कसा

माणूसकीचा वास होता

घराच्या सर्वा भिंतीना

आपुलकीचा श्वास होता

 

कांही कुठे घडले तर

माणसं पळत यायची

सा-या सुख दु:खात

संगत सोबत करायची

 

हल्लीचा पाऊस तर

केंव्हाही पडत असतो

रानांतल्या पिकांसह

शेतक-यांना रडवत असतो

 

आता कांही झालं तरी

जवळ कोण येत नाही

माणूसकीचं दार सुध्दा

शेजारी उगडत नाही

 

आज सारं आठवता

डोळे भरून येतात

गतकालीन स्मृतीनां

मनांत कोंब फुटतात

 

© मेहबूब जमादार

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ बंधन ☆ सौ. सुचित्रा पवार

सौ. सुचित्रा पवार

?  विविधा  ?

☆ बंधन ☆ सौ. सुचित्रा पवार ☆

तसे पहायला गेले तर बंधन, बांध म्हणजे अडवणे, कुंपण घालणे. आपली जागा कुंपणाने किंवा सीमारेषेने बंदीस्त केली की त्यात कुणी अतिक्रमण करत नाही हा बंदिस्तपणा आवश्यक असतो, करावा लागतो.मात्र मनुष्य असो की प्राणी खरेच त्याला बंधन आवडते ?त्याचे उत्तर ‘नाही ‘असेच येईल. पक्षी उन्मुक्त हवेत फिरतो कोणत्याही झाडाच्या फांदीवर बसतो, झोके घेतो, वेगवेगळी फळे चाखतो, घरटे बांधतो अन गाणे गातो. बंध मुक्त जीवन असे असते,  आणि ते असे स्वैर असतात म्हणूनच आनंदाने गातात. पिंजऱ्यातल्या पक्षाला कधी गाताना पाहिलंय ? कारण त्याचे नैसर्गिक वागणे, फिरणे, उडणे आपण कैद करतो आणि म्हणून तो त्याचा आनंद गमावतो. गाईलेच कधी तर ते कदाचित रडगाणेच असेल!

“प्रत्येक मनुष्य जन्मतः स्वतंत्र असतो अन त्याला स्वतंत्र रहाण्याचा अधिकार आहे” फ्रेंच राज्यक्रांतीने मानवास दिलेले एक सूत्र ! जिथे बंधन अर्थात बद्धता असते तिथं हक्कांची, अधिकाराची पायमल्ली होते अन मग अशी बंधने जाचक ठरतात, प्रगतीस मारक ठरतात ;असे असले तरी मनुष्यास अनेक प्रकारची बंधने असतात मनुष्याच्या जीवनास आकार प्राप्त होण्यासाठी त्याला ठराविक बंधने त्या त्या वयात योग्य असतात, त्यालाच मर्यादा म्हणतात. मनुष्याने अमर्याद वागून कर्तव्य विसरू नये म्हणून मग नात्यांची बंधने घातली  त्यातलेच एक रक्षाबंधन ! रक्षा अर्थात रक्षण करण्याची जबाबदारी ! बहिणीचे सर्व परस्थितीत पित्याच्या पश्चात रक्षण, संगोपन, पालन करणे आणि बहिणीने आईच्या पश्चात भावास आईचे निरपेक्ष प्रेम देणे, काळजी घेणे म्हणजेच रक्षाबंधन होय !

कोणतेही  प्रेमाचे बंधन माणसाला हवेहवेसे वाटते, या बंधनात आपुलकी आणि आपल्या माणसाची काळजी,  हीत असते पण बंधनाचा अतिरेक झाला की अन्याय अन गुलामगिरी वाढते, म्हणून बंधन हे धाग्याप्रमाणे असावे ते नाजूक जरूर असावे पण चिवट, लवचिक असावे जेणेकरून कोणत्याही स्वार्थापोटी किंवा गैर समजापोटी तुटू नये ! कोणत्याही नात्यात बंधनातून जबरदस्ती झाली की नाते ताठर बनून तुटते म्हणूनच नात्यात स्वातंत्र्य अबाधित राखून अदृश्य बंध घट्ट व्हावेत की जेणेकरून कुणाचा जीव घुसमटणार नाही.

आज प्रत्येक सण, नाते औपचारिकतेकडे झुकतेय प्रेमाची भेट आनंददायी असते पण सण येताच बहिणीचे मन भावाच्या भेटवस्तुकडे लागणे अन मनासारखी गिफ्ट मिळाली नाही तर रुसवे फुगवे मग भावालाही हे सर्व नकोसे वाटून त्याने हे बंधन टाळणे असेच काहीसे होतेय !

खरे तर हा सण एकदिवसाचा नसून बहीण भावाने आजन्म पाळावयाचा आहे, जसे आपण भावावर हक्क गाजवू पहातो तसेच कर्तवय तत्परताही हवी, भाऊ जसा आपला असतो तशीच वाहिनी ही आपली समजून तिच्यावरही आपल्याला निरपेक्ष प्रेम करता यायला हवे म्हणजे नात्यात कटुता येणार नाही.कोणतेही नात्यांचे बंध जटिल न होता अलवार गुंफण झाल्यास वीण घट्ट होते अन नाते चिवट, अतूट होते.

आजच्या दिवशी प्रत्येक बहिणीचे डोळे भावाच्या वाटेकडे असतात,  राख्या बाजारात येताच  बहीण हौसेने छान छान राख्या भावासाठी निवडते, खरेच ज्याला प्रेमळ बहीण लाभते तो भाऊ भाग्यवान आहे अन जिला खंबीर साथ देणारा पाठीराखा भाऊ लाभतो ती बहीण ही भाग्यवानच !आजच्या दिवशी भावाच्या कपाळावर तीलक अन हातात राखी नसणे किती दुर्भाग्य ! ज्याला सख्खी बहीण नसेल त्याने मानस बहिणीला जीव लावावा व नात्याचे प्रेमळ बंध आयुष्यभर निभवावे, टिकवावे  अन या पवित्र नात्याचे निर्भेळ प्रेम मिळवावे !

 

© सौ.सुचित्रा पवार 

तासगाव, सांगली

8055690240

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ कथा न सुटलेले ग्रहण – भाग – तीन ☆ सौ. सुनिता गद्रे

सौ. सुनिता गद्रे

? जीवनरंग ❤️

 ☆ कथा न सुटलेले ग्रहण – भाग – तीन ☆ सौ. सुनिता गद्रे ☆ 

(एका सत्य घटनेवर आधारित….ती सत्यघटना भाग 6 आणि 7 मध्ये)

*कथा न सुटलेलं ग्रहण  भाग 3 एका सत्य घटनेवर आधारित! ती सत्य घटना भाग 6 आणि 7 मध्ये..(चेरी पत्रात आपल्या  सासर बद्दलचे भयंकर अनुभव सांगत आहे. अस्तित्वातच नसलेले दाम्पत्य जीवन आणि तिचे वांझ हे विशेषण ती निमुटपणे सहन करत असते.) यापुढे…..

पाच वर्षापूर्वी बाबूजी वारले….खरं सांगू ,मला मनातनं  या गोष्टीसाठी आनंद झाला की आता तरी या घरातलं विचित्र कर्मकांड बंद होईल .पण कसलं काय!….एकदा अर्ध्या रात्रीतच दीरांचा जोरजोरात हसण्याचा आवाज बंगला भर पसरला… आणि जावेचा रडण्याचा आवाज पण…. आम्हा सगळ्यांना तिथं बघून खोलीच्या एका कोपर्‍यात कडे बोट करून त्यांनी नमस्कार केला.

पुन्हा जोरात हसून ते सांगू लागले,”माताजी, अहो बाबूजी तिथं बसलेत.ते मला काहीतरी सांगणार आहेत.”… आणि

मग ‘बच्चू’ला दीरांना वडिलांचे ऐकू जाणारे बोलणे ,जे दीर मोठ्या आवाजात रिपीट करत होते, ते सगळे एका डायरीत लिहून काढायचे काम लावले गेले.

माझा आत्मा भटकतोय…. मला सद् गती मिळाली नाहीय…. असं करा, प्रत्येक मंगळवारी माझ्या देवाची पूजा करा ….आणि अन्नदान, वस्त्रदान ,सुवर्णदान, शर्करादान  असं एका पाठोपाठ एक करत रहा .त्यानं मला मुक्ती मिळेल.”

त्याप्रमाणे सगळं सध्या केलं जात आहे .

आणखी सांगायचं तर ,तसं आमचं जीवन पण इतरांहून वेगळं आहे. आमच्या मेहता कुटुंबात स्त्रियांना एकटं बाहेर पडण्यास बंदी आहे .मोबाईल वापरण्यावर बंदी,….लँड लाईन,टीव्ही माताजींच्या खोलीत!…. सगळे नोकर चाकर त्यांचे हेर आहेत… आणि माझ्यावर तर घरातल्या लहानथोर सगळ्यांचंच बारकाईने लक्ष !

आम्हा बायकांचा टाइमपास म्हणजे- किट्टी पार्ट्यांना जाणं…मोठमोठ्या हॉटेलमध्ये आमच्या किट्टी क्लबांच्या पार्ट्या होतात. रमी, तंबोलाचे राऊंड ,सर्वांच्या पर्स   भरण्याचं आणि रिकामं  करण्याचं कामही करतात. शॅंपेनच्या बाटल्या रिकाम्या करणं, जेवताना तोंडी लावण्यासाठी गॉसिप , आपल्या किंमती वस्त्रांचं आणि ज्वेलरीचा प्रदर्शन करणं .हे सगळं ओघानं आलंच. आमचे शॉपिंग ,आमचे वाढदिवस… हे तेवढे सहपरिवार परदेशात साजरे होतात .सिंगापूर, दुबईला  जाणं म्हणजे आम्हा लोकांच्या दृष्टीनं ,घरातून अंगणात जाण्या पैकी प्रकार आहे. हे सगळं असलं बेगडी आयुष्य माझ्या मनाला आनंद देत नाही. तिळ- तिळ तुटत मी जगतेय.

पुढे पत्राचा समारोप करताना तिनं लिहिलं होतं,

“तुला शेजारच्या बंगल्यात पाहिल्यावर आपलं माणूस भेटल्याचा मला आनंद झाला. शेजारी उभ्या असलेल्या नणंदे समोर तुला ओळख दाखवून मला निराधार व्हायचं नव्हतं. खरंच हे पत्र लिहून… माझ्या आयुष्याचं दुःख …माझी कुचंबलेली स्थिती..माझी फरफट तुला सांगून मी बंधन मुक्त झालेय. खरं तर तू मला स्वार्थीच म्हणायला हवंस.आपली कथा- व्यथा सांगताना मी साधं तुझं क्षेमकुशल ही विचारलं नाहीय… पण तुला बागेत प्रसन्न चेहऱ्याने, रिलॅक्स मुडमधे काम करताना मी पाहते ना, तेव्हा माझी खात्री पटते की तुला मनपसंत जीवनसाथी मिळालाय.. आणि तू आपलं जीवन मनसोक्त जगतेस…..

‘अभागी चेरी ‘हा पत्राचा शेवट सीमाच्या अश्रूंनी पुसून टाकला होता,पहिल्या वाचनातच!

अजय दुसऱ्या दिवशी पत्र वाचून म्हणाला,” बाप रे, सुशिक्षित, उच्चभ्रू समाजातील लोकअसेहीअसतात ?….सगळंच भयंकर आणि अघोरी वाटतंय. पुन्हा विचार करून तो म्हणाला ,”सीमा ही तुझी मैत्रीण ऍबनॉर्मल बुद्धीची तर नाहीये ना? नाही तर आपलं म्हणणं लोकांना पटावं म्हणून, त्यांची सहानुभूती मिळावी म्हणून लोक कुठल्याही थराला जाऊन वक्तव्य करतात.

“नाही रे, शाळेत पण ती तशी नव्हती. आता तर तिचं माहेरही संपलय .तिच्या दुःखावर फुंकर घालायला आहे तरी कोण? तिचं आयुष्य कसं रखरखीत वाळवंट आहे बघ. मला तर तिच्यासाठी आपण काहीच करू शकत नाही याचं फार वाईट वाटतंय .”

थोड्या दिवसाने चेरीचा विषय सीमाच्या मनातून उतरून गेला .कारण ती कधी भेटू शकणारही नव्हती त्यामुळे ..पण आपण पत्र वाचले आहे हे कळावे म्हणून चेरीने पत्रात लिहिल्याप्रमाणे एक पांढरा रुमाल जास्वंदीच्या झाडाला बांधून तिने चेरीची खात्री मात्र करून दिली होती.

नंतर मेच्या सुट्टीत मुले आली .त्यांच्या सहवासात दिवस हां हां  म्हणता पळाले. सुट्टी संपली. मुलं परत गेली अन् तिला घरात पूर्वीपेक्षा जास्त एकटेपणा जाणवू लागला.

  क्रमशः…

© सौ सुनीता गद्रे

माधवनगर सांगली, मो 960 47 25 805.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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