आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित भावप्रवण कविता  ‘मैं नट हूँ  । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 63 ☆ 

☆ मैं नट हूँ  ☆ 

मैं नट हूँ,

करतब करती हूँ।

साध संतुलन चढ़ रस्सी पर

बाँस पकड़कर कदम बढ़ाती,

कलाकार हूँ,

कला प्रदर्शन कर जीती हूँ।

भरी हुई संतोष-गर्व से

यह न समझना

मैं रीती हूँ।

गिर, उठ, सम्हली

किंतु न हारी।

जीत हुई मैं

सबकी प्यारी।

हँसकर करतब रोज दिखाती।

कुछ पैसे, कुछ ताली पाती।

मत समझो

मैं दीन-हीन हूँ।

मुझे गर्व

मैं नट प्रवीण हूँ।

पाल पेट सकती मैं अपना

औरों का भी बनी सहारा।

तुम क्या जानो

आँधी-पानी?

हर मौसम ने मुझे दुलारा।

पाठ जिंदगी के पढ़ती हूँ

अपनी किस्मत

खुद गढ़ती हूँ।

नहीं तुम्हारी तरह कभी

बेरोजगार रह भार बनी मैं।

समझ सको तो सत्य समझना

जीवन को उपहार बनी मैं।

तुम साधन पा इतराते हो,

बिन साधन झट कुम्हलाते हो।

मैं निज साधन आप जुटाती

श्रम-कोशिश है मेरी थाती।

नहीं दया की भीख माँगती

नहीं रहम या सीख चाहती।

दे पाओ, दो कुछ अपनापन

कुछ बराबरी, कुछ सपनापन

आओ! टिक्कड़ साग खिलाऊँ।

तीखी चटनी तुम्हें चटाऊँ।

चाहो तो करतब दिखलाऊँ।

सीख सको तो झट सिखलाऊँ।

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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