ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (8 अप्रैल से 14 अप्रैल 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (8 अप्रैल से 14 अप्रैल 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

पंडित अनिल पाण्डेय की तरफ से आप सभी को नए विक्रम संवत अर्थात हिंदू नव वर्ष की बहुत-बहुत बधाई।

आज मैं आपसे 8 अप्रैल से 14 अप्रैल अर्थात विक्रम संवत 2080 शक संवत 1946 के चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या से विक्रम संवत 2081 के चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में चर्चा करूंगा।

इस सप्ताह प्रारंभ में चंद्रमा मीन राशि में रहेगा 9 अप्रैल को 8:26 दिन से चंद्रमा मीन राशि मेष राशि में प्रवेश करेगा 11 अप्रैल को 11:47 से वह वृष राशि का हो जाएगा 13 तारीख को चंद्रमा 4:50 शाम से मिथुन राशि में गोचर करेगा। इस पूरे सप्ताह मंगल और शनि कुंभ राशि में, गुरु मेष राशि में, शुक्र और वक्री राहु मीन राशि में गोचर करेंगे। सूर्य प्रारंभ में मीन राशि में रहेगा तथा 13 तारीख को 11:18 रात से मेष राशि में प्रवेश करेगा। वक्री बुध प्रारंभ में मेष राशि में रहेगा तथा 9 तारीख को 11:15 रात से मीन राशि में वक्री रहेगा।

हम सभी जानते हैं कि सूर्य ग्रहों का राजा है। एक राजा जब एक जगह से दूसरी जगह जाता है तो राजा के स्थान परिवर्तन के कारण बहुत सारे परिवर्तन होते हैं।

13 अप्रैल को 11:18 रात से सूर्य देव अपने मित्र गुरु की राशि मीन से अपनी उच्च राशि मेष में प्रवेश कर रहे हैं। अपने उच्च की राशि में प्रवेश के कारण सूर्य देव अत्यंत शक्तिशाली हो जाएंगे। उनका असर विभिन्न ग्रहों और राशियों पर ज्यादा तेजी से पड़ेगा। सूर्य देव मेष राशि में 14 मई की रात 9:39 तक रहेंगे। अब मैं आपको सूर्य देव की इस परिवर्तन का विभिन्न राशियों पर पड़ने वाले असर के बारे में बताऊंगा।

वर्तमान सप्ताह में खरमास चल रहा है जिसके कारण कोई भी संस्कार जैसे विवाह आदि के मुहूर्त नहीं रहेंगे। दिनांक 13 अप्रैल को रात 11:18 से सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने के साथ ही खरमास समाप्त भी हो जाएगा। खरमास वर्ष में दो बार आता है। पहली बार जब सूर्य मीन राशि मैं रहते हैं तथा दूसरी बार जब सूर्य धनु राशि में रहते हैं। अपने गुरु के घर में रहने के कारण सूर्य देव गुरु पूजा में व्यस्त रहते हैं अतः उनके तेज में काफी कमी रहती है। इस कारण से इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।

इस सप्ताह 8 अप्रैल को सोमवती अमावस्या है 9 अप्रैल को गुड़ी पड़वा है और चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ भी हो रहा है। इस सप्ताह 9 तारीख से विक्रम संवत 2081 प्रारंभ हो रहा है। इस संवत्सर का नाम पिंगल है। इस संवत्सर के राजा मंगल है तथा मंत्री शनि है। इसी दिन डॉ हेडगेवार की जयंती भी मनाई जाती है। 10 तारीख को चैती चांद का उत्सव मनाया जाएगा और 11 तारीख को गणगौर तीज है।

9 तारीख को 8:29 दिन से रात अंत तक सर्वार्थ सिद्ध योग भी है।

आइए अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

मेष राशि की कुंडली में सूर्य इस अवधि में लग्न में रहेगा। लग्न में उच्च का सूर्य होने के कारण साथ में गुरु का सहयोग व्यक्ति के व्यक्तित्व को अत्यंत बढ़ा देगा। व्यक्ति का आत्मविश्वास बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा। इसकी विपरीत उसके जीवन साथी को मानसिक क्लेश या हड्डियों संबंधी कोई विकार हो सकता है। इस सप्ताह आपके माता जी तथा पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके गर्दन और कमर में दर्द हो सकता है। आपके जीवन साथी को पेट की कोई बीमारी हो सकती है। धन आने के मात्रा में कमी आएगी। कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। आपको अपनी संतान से थोड़ा बहुत सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई सामान्य रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 9 और 10 अप्रैल शुभ फलदायक है। 9 और 10 अप्रैल को आपके द्वारा जो कार्य किए जाएंगे उसमें आप सफल रहेंगे। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप हर शनिवार शनिदेव का पूजन करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

यहां पर सूर्य जातक के खर्चे में बढ़ोतरी करेगा। भूमि संबंधी मामलों में नुकसान हो सकता है। शत्रुओं से हानि हो सकती है। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपके पास धन आ सकता है। व्यापार अच्छा चलेगा। अगर आप प्रयास करेंगे तो भारी मात्रा में आपको लाभ हो सकता है। कार्यालय में आपकी स्थिति पहले जैसी ही रहेगी। माता जी और पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी-थोड़ी खराबी आ सकती है। भाग्य सामान्य रूप से आपका साथ देगा। खर्चों में वृद्धि हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 11, 12 और 13 एप्रिल लाभदायक है। 11, 12 और 13 को आप द्वारा किए गए सभी कार्य सफल होंगे। 9 और 10 तारीख को आपके द्वारा कोई भी कार्य बड़े सावधानीपूर्वक करना चाहिए। अन्यथा कार्य सफल नहीं हो पाएगा। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

जातक को धन की प्राप्ति होगी। व्यापार में लाभ होगा। संतान से सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। छात्रों की पढ़ाई में हानि हो सकती है। इस सप्ताह भाग्य से आपको पहले जैसी ही मदद मिलेगी। धन आने का सामान्य योग है। अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। कचहरी के कार्यों में इस सप्ताह आप रिस्क नहीं लेना चाहिए। भाई बहनों के साथ संबंध अच्छे रहेंगे। माता जी को कुछ मानसिक कष्ट हो सकता है। संतान का सहयोग आपको इस सप्ताह प्राप्त नहीं हो पाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 14 अप्रैल लाभदायक है। 11, 12 और 13 अप्रैल को आपको सावधान रहकर कोई भी कार्य करना चाहिए। 8 और 14 अप्रैल को आप द्वारा किए गए अधिकांश कार्य सफल होंगे। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप रामरक्षा स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

कार्यालय के मामलों में आपको सफलता प्राप्त होगी। अगर आपकी अंतर्दशा और दशा ठीक होगी तो आपका प्रमोशन भी हो सकता है। पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा परंतु माता जी का स्वास्थ्य खराब होगा। आपके सुख में कमी आएगी। जनता में आपकी प्रतिष्ठा में भी कमी आ सकती है। यह सप्ताह आपके लिए ठीक-ठाक है। भाग्य से आपको काफी अच्छी मदद मिलेगी। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक-ठाक रहेंगे। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है। छोटे-मोटे दुर्घटना का योग है। कार्यालय में आपको सावधान भी रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको अपने संतान का से कोई सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 9 और 10 अप्रैल उत्तम और शुभ है। 11, 12 और 13 अप्रैल को आपको धन लाभ हो सकता है। 14 अप्रैल को आपको कोई भी कार्य बहुत सावधानी से करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

सिंह राशि के जातकों को इस अवधि में भाग्य से बहुत कुछ प्राप्त हो सकता है। भाई बहनों के साथ संबंध खराब हो सकते हैं। इस सप्ताह भाग्य आपकी अच्छी मदद करेगा। भाग्य के कारण आपके कई कार्य पूर्ण होंगे। आपको कुछ शारीरिक कष्ट हो सकता है। धन आने की मात्रा में कमी आ सकती है। अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो कार्यालय में आपको परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। भाई बहनों के साथ सामान्य संबंध रहेंगे। इस सप्ताह आपको अपने संतान से कोई विशेष मदद प्राप्त नहीं हो पाएगी। इस सप्ताह आपके लिए 11, 12 और 13 अप्रैल उत्तम लाभदायक है। 11, 12 और 13 को आप जो कार्य करना चाहेंगे उनमें आपको सफलता मिलेगी। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

स्वास्थ्य आपको स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या हो सकती है। परंतु यह समस्या समाप्त भी हो जावेगी। खर्चे में वृद्धि होगी परंतु और आमदनी में कमी भी हो सकती है। यह सप्ताह आपके जीवनसाथी के लिए शुभ है। आपके लिए भी ठीक-ठाक है। अगर आप अविवाहित हैं तो विवाह के उत्तम और कई प्रस्ताव आएंगे। व्यापार में उन्नति होगी। भाग्य से आपको थोड़ी कम मदद मिलेगी। कचहरी के कार्यों में इस सप्ताह आपके रिक्स नहीं लेना चाहिए। भाई बहनों के साथ संबंधों में थोड़ा तनाव हो सकता है। संतान से आपको कोई विशेष लाभ नहीं होगा। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 14 अप्रैल किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। आठ और 14 अप्रैल को आपको कई प्रकार के लाभ हो सकते हैं। 9 और 10 अप्रैल को आपको कोई भी कार्य बड़ी सावधानी से करना चाहिए अन्थथा नुकसान होने की उम्मीद है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह तुला राशि के अविवाहित जातकों के विवाह के उत्तम प्रस्ताव आ सकते हैं। आपके जीवनसाथी के लिए यह समय अच्छा रहेगा। आपका स्वास्थ्य खराब हो सकता है। आपको पेट की थोड़ी बहुत पीड़ा हो सकती है। आपके जीवनसाथी का और माता और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। भाई बहनों के साथ संबंधों में थोड़ी दरार आ सकती है। नौकरी में आपको सफलताएं मिल सकती हैं। कचहरी के कार्यों में सफलता मिलने में बड़ी बाधाएं आएंगी। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 9 और 10 अप्रैल उत्तम है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सतर्क रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। शत्रु पर आपको काफी परिश्रम के बाद विजय मिल पाएगी। मानसिक क्लेश समाप्त होंगे। कचहरी के कार्यों में पराजय हो सकती है। धन आने के कई संयोग बनेंगे। व्यापार में गतिविधि होगी। आपको अपनी संतान से सहयोग मिल सकता है। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। माताजी और पिताजी को थोड़ा बहुत शारीरिक कष्ट होगा। भाग्य सामान्य रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 11, 12 और 13 तारीख उत्तम है। 11, 12 और 13 तारीख को आपके सभी कार्य सफल होंगे। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सतर्क रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपकी संतान की उन्नति होगी। छात्रों की पढ़ाई अच्छी चलेगी। धन लाभ में कमी होगी। आपको अपनी संतान से सहयोग प्राप्त होगा। भाग्य से आपको मदद मिल सकती है। आपके सुख में वृद्धि होगी। जनता में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। माता और पिताजी को मामूली शारीरिक कष्ट हो सकता है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। संतान से आपको बहुत उत्तम सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 14 अप्रैल उत्तम है। 11, 12 और 13 अप्रैल को आपको सावधान रहना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का उत्तम योग है। आपके पराक्रम में वृद्धि होगी। शत्रुओं को आपसे भय लगेगा। आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। आपके सुख में भी वृद्धि होगी। सुख संबंधी कोई सामग्री आप इस वर्ष खरीद सकते हैं। माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी को कष्ट होगा। भाई और बहनों के साथ आपके संबंध ठीक रहेंगे। परंतु किसी एक भाई या बहन के साथ संबंधों में दुराव आ सकता है। आपके सुख में वृद्धि होगी। आप सुख संबंधी कोई वस्तु खरीद सकते हैं। आपके माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी गड़बड़ी हो सकती है। लंबी यात्रा का योग भी बन सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 9 और 10 अप्रैल उत्तम है। 14 अप्रैल को आपको सतर्क रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का उत्तम योग है। भाइयों के साथ प्रेम बढ़ेगा। भाई-बहन आपकी मदद भी करेंगे। आपके पराक्रम में वृद्धि होगी। भाग्य से आपको कोई मदद नहीं मिल पाएगी। व्यापार में वृद्धि होगी। आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा परंतु ब्लड प्रेशर या डायबिटीज में वृद्धि हो सकती है। माता और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक-ठाक रहेगा। जीवनसाथी का स्वास्थ्य भी थोड़ा खराब हो सकता है। भाग्य से आपको कोई विशेष मदद नहीं मिलेगी। आपको अपने परिश्रम पर विश्वास करना होगा। दुर्घटनाओं से बचने का उपाय करना पड़ेगा। इस सप्ताह आपके लिए 11, 12 और 13 तारीख उत्तम है। 11, 12 और 13 तारीख को किए गए सभी कार्य सफल होंगे। इस सप्ताह आपको चाहिए कि घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपके स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। इस अवधि में आपके पास धन की वृद्धि होगी। छोटी-मोटी दुर्घटनाएं भी हो सकती हैं। आपके व्यापार में वृद्धि होगी। धन आने के कई योग बनेंगे। कचहरी के कार्यों में आपको सफलता मिल सकती है। भाई या बहनों के साथ तनाव हो सकता है। आपके जीवनसाथी को थोड़ा बहुत कष्ट हो सकता है। शत्रुओं के ऊपर आप का आक्रमण प्रभावी रहेगा। शत्रु परास्त हो जाएंगे। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 14 तारीख उत्तम है। 8 और 14 को आपके द्वारा किए गए अधिकांश कार्य सफल रहेंगे। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम पांच बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सूर्य के बुरे प्रभाव को समाप्त करने के लिए जातक को चाहिए कि वह आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

आपसे अनुरोध है कि इस पोस्ट का उपयोग करें और हमें इस पोस्ट के बारे में बतायें।

मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ तुझ्या रंगात… ☆ सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर ☆

सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर

? कवितेचा उत्सव ?

तुझ्या रंगात ☆ सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर ☆

पाहिले मी तुला अन मनात रंग सांडले

काळजात माझ्या कधीच मी तुला रे मांडले

*

भाव तुझ्या डोळ्यातून बरसले चिंब असे

होऊनी मी गेले तुझी कळले ना मला कसे ?

*

जवळून तू जाताना , हळुवार मत्त गंध

गंधाळून मन हे माझे, तुझ्यासाठी धुंद-फुंद

*

रंगात तुझ्या रंगूनी जाहले मी वेडीपिशी

ऐकताच मुरलीरव मन रमले तुजपाशी

*

आतुरल्या या मनास तव संगतीची आस

क्षणोक्षणी इथे तिथे रात्रंदिन तुझेच भास

© वृंदा (चित्रा) करमरकर

सांगली

मो. 9405555728

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ – विसावा… – ☆ सौ. रेखा दयानंद हिरेमठ ☆

सौ. रेखा दयानंद हिरेमठ

? कवितेचा उत्सव ?

☆ – विसावा… – ☆ सौ. रेखा दयानंद हिरेमठ

थांबला तो संपला असं जरी असलं

तरी त्या थांब्यावर थोडं विसावून

स्वतःला वेगळ्या चश्म्यातून पहावे

 

आयुष्याच्या प्रश्नपत्रिकेची

अद्ययावत करून उत्तरपत्रिका

व्हावे खुश स्वतः वरच बेफाम

सैल सोडावा कधीतरी स्वतःचा लगाम

 

आयुष्याच्या गणिताची

  नसतात साचेबद्ध उत्तरे

इथे लयलूट करती

 आशेची विविध सुगंधी अत्तरे

 

काय कमावले काय गमवले

ह्या काथ्याकूटात न रमावे

 

अगदी किरकोळ सुखालाही

बंदीस्त करून मनाच्या कुपीत

आपल्या जिवन गाण्याला द्यावे

आपल्याच मनाचे संगीत🎤🎶

🥰दEurek(h)a 😍

🥰दयुरेखा😍

© सौ. रेखा दयानंद हिरेमठ

सांगली

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ गुढीपाडवा अर्थात हिंदू नववर्ष दिन ☆ श्री संदीप रामचंद्र सुंकले ‘दास चैतन्य’ ☆

श्री संदीप रामचंद्र सुंकले ‘दास चैतन्य’

🔅 विविधा 🔅

गुढीपाडवा अर्थात हिंदू नववर्ष दिन ☆ श्री संदीप रामचंद्र सुंकले ‘दास चैतन्य’☆

(सत्य आणि गैरसमज)

भारतीय सौर 9 चैत्र 1946

गुढीपाडव्याच्या दिवशी वर्षारंभ करण्याचे नैसर्गिक, ऐतिहासिक महत्त्व :-

येणाऱ्या वर्ष अमावस्येला कलियुगाच्या एकंदर वर्षातून ५१२५ वर्ष पूर्ण होत आहेत.

“चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे हनी |

शुक्लपक्षे समग्रे तु तदा सूर्योद्ये सति ||”

महत्त्व : इसवी सन १ जानेवारीपासून, आर्थिक वर्ष १ एप्रिलपासून, हिंदु वर्ष चैत्र शुद्ध प्रतिपदेपासून, व्यापारी वर्ष कार्तिक शुद्ध प्रतिपदेपासून, शैक्षणिक वर्ष जूनपासून, सौर वर्ष, चांद्र वर्ष व सौर-चांद्र वर्ष (लुनी सोलर) या वर्षांचेही निरनिराळे वर्षारंभ, इतके वर्षारंभ करण्याचे दिवस आहेत. यांत सर्वत्र बारा महिन्यांचेच वर्ष आहे. `वर्ष बारा महिन्यांचे असावे’, असे प्रथम कोणी सांगितले व जगाने ते कसे मान्य केले ? याचा प्रथम उद्‌गाता `वेद’ आहे. वेद हे अतीप्राचीन वाङ्मय आहे, याबद्दल कोणाचेही दुमत नाही. “द्वादशमासै: संवत्सर:” असे वेदात आहे. वेदांनी सांगितले म्हणून ते जगाने मान्य केले. या सर्व वर्षारंभांतील अधिक योग्य प्रारंभदिवस `चैत्र शुद्ध प्रतिपदा’ हा आहे. १ जानेवारीला वर्षारंभ का ? याला काहीही कारण नाही. कोणीतरी ठरविले व ते सुरू झाले. याउलट चैत्र शुद्ध प्रतिपदेस वर्षारंभ करण्यास नैसर्गिक, ऐतिहासिक कारणे आहेत.

नैसर्गिक :-

ज्योतिषशास्त्रानुसार पाडव्याच्या आसपासच सूर्य वसंत- संपातावर येतो (संपात बिंदू म्हणजे क्रांतीवृत्त व विषुववृत्त ही दोन वर्तुळे ज्या बिंदूत परस्परांस छेदतात तो बिंदू होय.) व वसंत ऋतू सुरू होतो. सर्व ऋतूंत `कुसुमाकरी वसंत ऋतू ही माझी विभूती आहे’, असे भगवंतांनी श्रीमद्‌भगवद्‍गीतेत (१०:३५) म्हटले आहे. या वेळी समशीतोष्ण अशी उत्साहवर्धक व आल्हाददायक हवा असते. शिशिर ऋतूत झाडांची पाने गळून गेलेली असतात, तर पाडव्याच्या सुमारास झाडांना नवी पालवी येत असते. वृक्षवल्ली टवटवीत दिसतात.

ऐतिहासिक :-

या दिवशी

अ. श्रीरामांनी वालीचा वध केला तो हाच दिवस.

आ. सत्ययुगाचा प्रारंभ झाला तो हाच दिवस.

इ. शकांनी हुणांचा पराभव करून विजय मिळवला. या दिवसापासूनच `शालिवाहन शक’ सुरू झाले; कारण या दिवशी शालिवाहनाने शत्रूवर विजय मिळवला.

ई. इंद्राने वृत्रासूरावर विजय मिळवला तोच हा दिवस.

उ. श्री विष्णूने मत्स्यावतार घेतला तोच हा दिवस ( स्मृती कौस्तुभ ग्रंथात याचा उल्लेख आहे.)

सृष्टीची निर्मिती :-

ब्रह्मदेवाने सृष्टी निर्माण केली, म्हणजे सत्ययुगाला सुरुवात झाली, तो हा दिवस असल्याने या दिवशी वर्षारंभ केला जातो.

१ जानेवारी नव्हे, तर गुढीपाडवा हाच पृथ्वीचा खरा वर्षारंभदिन : `गुढीपाडव्याला सुरू होणारे नवीन वर्षाचे कालचक्र हे विश्‍वाच्या उत्पत्तीकाळाशी निगडित असल्याने सृष्टी नवचेतनेने भारित होते. याउलट ३१ डिसेंबरला रात्री १२ वाजता सुरू होणारे नवीन वर्षाचे कालचक्र हे विश्‍वाच्या लयकाळाशी निगडित असते. गुढीपाडव्याला सुरू होणार्‍या नववर्षाची तुलना सूर्योदयाला उगवणार्‍या तेजोमयी दिवसाशी करता येईल.

गुढी उभारण्याची पद्धत :-

चैत्र शुद्ध प्रतिपदा म्हणजे गुढीपाडवा हा हिंदू धर्मियांचा वर्षातील पहिला सण व नूतन वर्षाचा पहिला दिवस. अभ्यंगस्नान करणे, दाराला तोरणे लावणे व पूजा यांबरोबरच घरोघरी गुढी उभारून हा सण साजरा केला जातो. दुष्ट प्रवृत्तींच्या राक्षसांचा व रावणाचा वध करून भगवान श्रीराम अयोध्येत परत आले, तो हाच दिवस. ब्रह्मदेवाने सृष्टीची निर्मिती याच दिवशी केली. अशा या सणाला हिंदूंच्या जीवनात विशेष महत्त्व आहे. सूर्योदयाच्या वेळी प्रक्षेपित होणारे चैतन्य खूप वेळ टिकणारे असल्यामुळे सूर्योदयानंतर ५ ते १० मिनिटांत गुढीची पूजा करावी !

गुढीपाडव्याच्या दिवशी तेज व प्रजापति लहरी मोठ्या प्रमाणात कार्यरत असतात. सूर्योदयाच्या वेळी या लहरींतून प्रक्षेपित होणारे चैतन्य खूप वेळ टिकणारे असते. ते जिवाच्या पेशींत साठवून ठेवले जाते व आवश्यकतेनुसार त्या जिवाकडून ते वापरले जाते. त्यामुळे सूर्योदयानंतर ५ ते १० मिनिटांत गुढीची पूजा करावी.

गुढीचे स्थान : गुढी उभी करतांना ती दरवाजाच्या बाहेर; परंतु उंबरठ्यालगत (घरातून पाहिल्यास) उजव्या बाजूला उभी करावी.

पद्धत :

अ. गुढी उभी करतांना सर्वप्रथम सडासंमार्जन करून अंगण रांगोळीने सुशोभित करावे गुढी उभारण्याच्या जागी रांगोळीने स्वस्तिक काढून त्याच्या मध्यबिंदूवर हळद-कुंकू वाहावे.

आ. गुढी उभी करतांना ब्रह्मांडातील शिव-शक्‍तीच्या लहरींना आवाहन करून तिची स्वस्तिकावर स्थापना करावी. यामुळे गुढीच्या टोकावर अस लेल्या सर्व घटकांना देवत्व प्राप्‍त होते.

इ. गुढी जमिनीवर उंबरठ्यालगत; परंतु थोडीशी झुकलेल्या स्थितीत उभी करावी.

आंब्याच्या पानांचे महत्त्व:-

इतर पानांपेक्षा आंब्याच्या पानांत जास्त सात्त्विकता असल्यामुळे त्यांची ईश्‍वरी तत्त्व खेचून घेण्याची क्षमता अधिक असते. गुढीच्या टोकाला आंब्याची पाने बांधली जातात. कोवळया पानांत तेजतत्त्व अधिक असते, म्हणून पूजेत आंब्याच्या कोवळया पानांचा वापर करावा.

कडूलिंबाच्या पानांचे महत्त्व:-

गुढीला कडूलिंबाची माळ घातली जाते. ईश्‍वरी तत्त्व खेचून घेण्याची क्षमता आंब्याच्या पानांनंतर कडूलिंबाच्या पानांत जास्त असते. या दिवशी कडूलिंबाच्या कोवळया पानांद्वारे वातावरणात पसरलेल्या प्रजापति लहरी खेचून घेतल्या जातात. प्रजापति लहरी ग्रहण करण्यासाठी आवश्यक गुण सर्वसाधारण व्यक्‍तीत ईश्‍वराकडून येणार्‍या लहरी ग्रहण करण्याची क्षमता खूप कमी असते.

गुढी उभारण्यामागची वैज्ञानिक किरणे :

१. गुढीवरील तांब्या उपडा का ठेवतात?

तांब्याचे तोंड जमिनीकडे असल्याने तांब्याच्या कलशाच्या पोकळीतून प्रक्षेपित होणार्‍या लहरींमुळे तांब्यात असलेली कडुलिंबाची पाने आणि रेशमी वसन (गुढीवरील रेशमी वस्त्र) हे सात्त्विक लहरींनी भारीत बनते. भूमीच्या आकर्षणशक्‍तीमुळे हा रूपांतरित सगुण ऊर्जाप्रवाह जमिनीच्या दिशेने संक्रमित होण्यास आणि त्याचे जमिनीवर सूक्ष्म-आच्छादन बनण्यास साहाय्य होते. तांब्याची दिशा सुलट ठेवली, तर संपूर्णतः ऊर्ध्व दिशेने लहरींचे प्रक्षेपण झाल्याने जमिनीलगतच्या कनिष्ठ आणि मध्यम स्तराचे शुद्धीकरण न झाल्याने वायूमंडलातील फक्‍त ठराविक अशा ऊर्ध्व पट्ट्याचेच शुद्धीकरण होण्यास साहाय्य होते. याउलट तांब्याच्या कलशाच्या तोंडाची दिशा भूमीकडे ठेवल्याने त्यातून प्रक्षेपित होणार्‍या लहरींचा फायदा जमिनीच्या लगतच्या आणि मध्यम पट्ट्यातील वायूमंडलाला, याबरोबरच उर्ध्वमंडलाला मिळण्यास साहाय्य होते.

तांब्याच्या कलशाची ब्रह्मांडातील सात्त्विक लहरी ग्रहण आणि प्रक्षेपण करण्याची क्षमता अधिक असणे! गुढीवर असलेल्या तांब्याच्या कलशाची ब्रह्मांडातील उच्च तत्त्वाशी संबंधित सात्त्विक लहरी ग्रहण आणि प्रक्षेपण करण्याची क्षमता अधिक असल्याने या कलशातून प्रक्षेपित होणार्‍या सात्त्विक लहरींमुळे कडुनिंबाच्या (कडुलिंबाच्या) पानातील रंगकण कार्यरत होण्यास साहाय्य होते. या पानांच्या रंगकणांच्या माध्यमातून रजोगुणी शिव आणि शक्‍ती लहरींचे वायूमंडलात प्रभावी प्रक्षेपण चालू होते.

तांब्याच्या कलशातून संक्रमित झालेल्या निर्गुण लहरींचे कडुनिंब आणि रेशमी वस्त्र यांच्याकडून प्रभावी ग्रहण आणि प्रक्षेपण होणे तांब्याच्या कलशातून संक्रमित झालेल्या निर्गुण कार्यरत लहरींचे कडुनिंबाच्या (कडुलिंबाच्या) पानांच्या स्तराला सगुण लहरींमध्ये रूपांतर होते. त्यानंतर या लहरी रेशमी वसनाच्या (गुढीवरील रेशमी वस्त्राच्या) माध्यमातून प्रभावीपणे ग्रहण केल्या जाऊन त्या आवश्यकतेप्रमाणे अधोदिशेकडे प्रक्षेपित केल्या जातात.

कडुलिंब, कलश आणि वस्त्र या तिघांमधून निर्माण होणार्‍या लहरींनी वायूमंडल शुद्ध होणे कडुनिंबाच्या (कडुलिंबाच्या) पानांतून प्रक्षेपित होणार्‍या शिव-शक्‍तीशी संबंधित कार्यरत रजोगुणी लहरींमुळे अष्टदिशांचे वायूमंडल, तसेच तांब्याच्या कलशातून प्रक्षेपित होणार्‍या लहरींमुळे उर्ध्व दिशेचे वायूमंडल आणि रेशमी वसनातून प्रक्षेपित होणार्‍या लहरींमुळे अधोदिशेचे वायूमंडल शुद्ध आणि चैतन्यमय बनण्यास साहाय्य होते.

तांब्याचे तोंड जमिनीच्या दिशेला असूनही उर्ध्व दिशेचे वायूमंडल शुद्ध होणे गुढीतील घटकांना देवत्व प्राप्त झाल्यामुळे तांब्याच्या कलशाच्या पोकळीत घनीभूत झालेल्या नादलहरी कार्यरत होतात. या नादलहरींमध्ये वायू आणि आकाश ही उच्च तत्त्वे सामावलेली असल्याने तांब्याच्या कलशातून प्रक्षेपित होणार्‍या लहरींची गती ही उसळणार्‍या कारंजाप्रमाणे आणि ऊर्ध्वगामी असल्याने या लहरींच्या प्रक्षेपणामुळे उर्ध्व दिशेचे वायूमंडल शुद्ध होते.

गुढीपाडवा म्हणजे नवीन संवत्सराचा आरंभ ! साडेतीन मुहूर्ताच्यापैकी एक महत्वाचा पूर्ण मुहूर्त ! हाच सृष्टीच्या निर्मितीचा दिवस ! सृष्टीचा वर्धापन दिन ! ब्रह्माजीने याच दिवशी सृष्टीच्या निर्मितीस प्रारंभ केला. याच दिवशी सत्ययुगाचा प्रारंभ झाला.

श्रीगणेशयामल तंत्रशास्त्रामध्ये गुढीपाडव्याचे महत्व स्पष्ट केलेले आहे. २७ नक्षत्रांच्यापासून २७ लहरी निर्माण होत असतात. त्या २७ लहरींच्यापैकी प्रजापति लहरी, यमलहरी व सूर्यलहरी या तीन लहरी अत्यंत महत्त्वाच्या आहेत. या तीन लहरींचा संपूर्ण सृष्टीवर व सर्व प्राणिमात्रांच्यावर परिणाम होत असतो. प्रजापति लहरींच्यामुळे अंकुरांच्या निर्मितीसाठी जमिनीची क्षमता वाढते. विहिरींना नवीन पाझर फुटतात. बुद्धीची प्रगल्भता वाढते व शरीरामध्ये कफ प्रकोप निर्माण होतो. यानंतर यमलहरींच्यामुळे पाऊस पडतो. बीजांना नवीन अंकुर फुटतात व शरीरामध्ये वायूचा प्रकोप निर्माण होतो. तसेच, सूर्यलहरींच्यामुळे जमिनीची उष्णता वाढते. त्यामुळे जमिनीची उत्पादन क्षमता कमी होते आणि शरीरामध्ये पित्त प्रकोप निर्माण होतो. याप्रमाणे प्रजापति, यम व सूर्य या तीन्हीही लहरींचे योग्य आणि उपयुक्त प्रमाणात एकत्रीकरण गुढीपाडव्याच्या दिवशी होत असते. यामुळे गुढीपाडव्याला विशेष महत्व आहे. या दिवशी सृष्टीच्या निर्मितीचा आनंद व्यक्त करण्यासाठी गुढी उभारली जाते व सृष्टीकर्त्या ब्रह्माजीचे पूजन केले जाते. पोकळ वेळूच्या काठीला भरजरी खण, नवीन वस्त्र लावून त्यावर तांब्याचा किंवा चांदीचा कलश उलटा ठेवला जातो. गुढीला कडुनिंबाचे, आंब्याचे डहाळे लावले जातात. अशी गुढी घरोघरी गुढीपाडव्याच्या दिवशी सकाळी अभ्यंग स्नान करून, घराच्या उंबऱ्याच्या बाहेर, उजवीकडे जमिनीवर स्वस्तिक रेखून सूर्योदयाच्या वेळी उभारली जाते. गुढीला ‘ब्रह्मध्वज’ असेही म्हणतात.

सूर्योदयाला गुढी उभारल्यानंतर प्रजापति तत्व वेगाने तांब्याच्या कलशामध्ये व वेळूच्या काठी मध्ये येते. सूर्यास्ताच्या वेळी प्रजापति लहरी संपतात. तेव्हा ब्रह्मदेवाची पूजा करून -‘ब्रह्मध्वजाय नम:|’ असे म्हणून नमस्कार करून गुढी उतरविली जाते. गुढी आत आणल्यानंतर कलशामधील प्रजापति लहरी घरामध्ये प्रवेश करतात. यामुळे घरामध्ये सुख, शांति, ऐश्वर्य, आरोग्य नांदते. त्यादिवशी घराच्या दाराला लावलेले आम्रपानांचे तोरण हे मंगलसूचक आहे.

☺️ गुढीपाडव्याच्या दिवशी कडूनिंबाची पाने, फुले, गुळ, साखर, ओवा, चिंच, मिरे, हिंग हे पदार्थ एकत्र करून भक्षण केले जातात. यामुळे शरीरामधील कफ-वात-पित्त यांचा प्रकोप नाहीसा होऊन ते संतुलित होतात. त्यामुळे रक्तशुद्धी होऊन शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होते. कडूनिंब-गुळ-चिंच वगैरे पदार्थांचे आंबट-गोड-कडू असे भिन्न-भिन्न स्वाद आहेत. याप्रमाणेच आपले जीवन म्हणजे सुख-दु:खादि अशा अनेक प्रसंगांचे मिश्रण असून त्यामध्ये मनाची समतोल वृत्ति ठेवावी, हाच संदेश मिळतो.

गुढीपाडव्याच्या दिवशी पंचांगामधील संवत्सरफल जरूर वाचावे. त्यामध्ये ब्रम्हदेवाची सृष्टि, ब्रह्मदेवाचे आयुष्य व त्याप्रमाणे कालगणनेचे वर्णन केलेले असून या संवत्सराचे फल लिहीलेले असते. ते वाचल्यामुळे मनुष्याला समष्टीची, सृष्टीची व अव्याहत अखंड, प्रचंड मोठया कालचक्राची जाणीव होते. त्यामुळे मनुष्यामधील ‘मी कोणीतरी फार मोठा आहे,’ हा अंहकार कमी होऊन ईश्वराच्या अद्भुत निर्मितीच्या सत्तेच्या पुढे त्याचे मन नम्र, विनयशील होते.

गुढी ही दैवी शक्तीचे प्रतीक आहे. त्यामधील कलश हे पूर्णतेचे प्रतीक आहे. गुढीमधून व्यष्टि व समष्टि म्हणजेच विश्व व जीव यांचा संबंध तसेच, सृष्टीच्या विराट स्वरुपाची व अद्भुत शक्तीची, ऊर्जेची संकल्पना केलेली आहे.

गुढीपाडव्यापासून वसंत ऋतूला प्रारंभ होतो. अंकुरांना नवीन पालवी फुटतात. निसर्गामध्ये नवचैतन्य निर्माण होते. सृष्टीमधील नवचैतन्य मनुष्याच्या मनामध्ये प्रविष्ट होते. मनुष्याच्या जीवनामध्ये नवीन स्फूर्ति, चेतना, प्रेरणा, आत्मविश्वास, उत्साह, धैर्य निर्माण होते. मनुष्य हाच सृष्टीचा प्रमुख घटक असल्यामुळे मनुष्यामध्ये स्फूर्ति निर्माण झाली की, आपोआपच सृष्टि बदलते मनुष्याचे कुटुंब बदलते, समाज बदलतो. राष्ट्र, विश्व सर्वांच्यामध्येच नवचैतन्य निर्माण होते. म्हणूनच गुढीपाडवा हा उत्सव विजय व आनंदाचे प्रतीक असून कोणत्याही नवीन कार्याला या दिवसापासुनच प्रारंभ केला जातो. म्हणूनच मानवी जीवन भव्य, दिव्य, उदात्त व परिपूर्ण करणाऱ्या आर्य सनातन वैदिक हिंदु धर्माचा अत्यंत महत्वपूर्ण दिवस आहे गुढीपाडवा ! यावरून लक्षात येते की, सृष्टीची निर्मिती म्हणजे केवळ योगायोग नसून त्यामागे निश्चित नियोजन आहे व आपल्या हिंदू संस्कृतीमधील प्रत्येक सण, परंपरा या महत्वपूर्ण, अर्थपूर्ण असून त्यामागे वैज्ञानिक दृष्टिकोन आहे.

गुडीपाडवा हा सण आधी पासून सुरु आहे याचा आणखी एक पुरावा म्हणजेच खालील चोखामेळांचा अभंग

“टाळी वाजवावी गुढी उभारावी । वाट हे चालावी पंढरीची ॥१॥”

विसर्जन:-

सूर्यास्तानंतर लगेचच गुढी उतरवावी ज्या भावाने गुढीची पूजा केली जाते, त्याच भावाने गुढी खाली उतरवली पाहिजे, तरच जिवाला तिच्यातील चैतन्य मिळते. गोड पदार्थांचा नैवेद्य दाखवून व प्रार्थना करुन गुढी खाली उतरवावी. गुढीला घातलेले सर्व साहित्य दैनंदिन वापरातील वस्तूंच्या शेजारी ठेवावे. गुढीला अर्पण केलेली फुले व आंब्याची पाने यांचे वाहत्या पाण्यात विसर्जन करावे. गुढी सूर्यास्तानंतर लगेचच खाली उतरवावी. सूर्यास्तानंतर १ ते २ तासांत वातावरणात वाईट शक्‍ती कार्यरत होऊ लागतात. सूर्यास्तानंतरही गुढी उभी असल्यास त्यात वाईट शक्‍ती प्रवेश करू शकतात. त्या शक्‍तींचा आपल्याला त्रास होऊ शकतो.

गुढीची पूजा करतांना व गुढी उतरवतांना पुढील प्रार्थना करावी

अ. गुढीची पूजा करताना करावयाची प्रार्थना : “हे ब्रह्मदेवा, हे विष्णू, या गुढीच्या माध्यमातून वातावरणातील सात्त्विक लहरी आमच्याकडून ग्रहण केल्या जाऊ देत. त्यांतून मिळणार्‍या शक्‍तीतील चैतन्य सातत्याने टिकून राहू दे. मला मिळणार्‍या शक्‍तीचा वापर माझ्याकडून साधनेसाठी केला जाऊ दे”.

हीच आपल्याचरणी प्रार्थना !!

आ. गुढी खाली उतरवतांना करावयाची प्रार्थना :

“हे ब्रह्मदेवा, हे विष्णू, आज दिवसभरात या गुढीत जी शक्‍ती सामावली असेल, ती मला मिळू दे , हीच आपल्या चरणी प्रार्थना!!

अशा रीतीने आपण येत्या वर्षात प्रत्येक सण समजून आणि उमजून साजरा करू म्हणजे देश विघातक आणि धर्म विघातक शक्तींचे मनसुबे पूर्णत्वास जाणार नाहीत.

जगातील सर्वात प्राचीन आणि विज्ञानाधिष्ठित धर्मात जन्म मिळाल्याबद्दल आपण त्या परमनियतीचे निरंतर ऋणी असायला हवे आणि याचा सार्थ अभिमान (दुराभिमान नव्हे!)

बाळगायला हवा. चला आपण सर्व सनातन हिंदू धर्माचा जयजयकार करू.

भारत माता की जय।

© दासचैतन्य

मो. – ८३८००१९६७६

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ बिन पैशाचे दिवस… भाग – १ ☆ श्री मेहबूब जमादार ☆

श्री मेहबूब जमादार 

? जीवनरंग ❤️

☆ बिन पैशाचे दिवस… भाग – १ ☆ 🖋 मेहबूब जमादार

तो 1967 चा काळ असावा.  त्यावेळी आमच्या चिंचेच्या बनाशेजारी गुऱ्हाळ घर होतं.  दरवर्षी सुगी संपली की गुऱ्हाळ चालू व्हायचं.  गुऱ्हाळासाठी लागणारा ऊस आमच्या सगळ्या भाऊबंदांचा होता.  तर काही शेजारील शेतकरी तोडायला सांगत.  त्यावेळी तांबडा देशी ऊस असायचा.  तो खायला फारच गोड होता. 

दिवाळी संपली की गुऱ्हाळ चालू व्हायचं. ऊस तोडायला अन तो गाडीतून आणायला सात ते आठ मजूर लागत.  इंजिन वरती दोघं  असायचे. इंजिन चालू झालं की घाणा  चालू व्हायचा.  त्या घाण्यात ऊस घालण्यासाठी दोन मजूर लागायचे.  एक जण ऊस द्यायचा.  एक जण  प्रत्यक्ष घाण्यात ऊस घालायचा. त्याचा रस लोखंडी मांदाणं  होतं त्यात पडायचा.  ते भरलं की रस उंचावरच्या  लोखंडी टाकीत  इंजिनच्या मदतीने  लोखंडी पाईप मधून टाकला जायचा.  ती टाकी भरली की दुपारी चार वाजता काईल चुलवानावर ठेवायची.  त्यात तो रस टाकला जायचा.

गुऱ्हाळात सगळ्यात महत्त्वाचा कामगार म्हणजे गुळव्या. गुळव्या चांगला असला तर गुळ चांगला तयार व्हायचा. काईल  मध्ये रस टाकला की चुलवान उसाचं  वाळल चिपाडं टाकून पेटवलं जायचं.ते  पेटवायला दोन माणसं लागायची. त्यानां  चुलवाण्या  म्हणत. त्याचं काम चार वाजता चालू व्हायचं ते रात्री बारा एक वाजेपर्यंत जवळजवळ तीन आदनं  पूर्ण होईपर्यंत चालायचं. आगीमुळे ती बिचारी घामे घूम होत. त्यांचं  अंग काळ दिसे.  एकूण गुऱ्हाळाला जवळजवळ पंधरा ते सोळा माणसे लागत. त्यावेळी गुऱ्हाळ व्यवस्थित चाले.

गूळ तयार व्हायला लागला की त्याचा वास आमच्या वाडीत पसरत असे.  त्यावेळी लगेच आम्ही सारी मुलं गुऱ्हाळघरा शेजारी जमा होत असू.  पण तिथे एक राखणदार ठेवलेला होता.  तो आमच्या शेजारच्या गावातला होता.  तो काय आम्हाला तिथे येऊ देत नसे.  आम्ही सारी मुलं त्याला फार त्रास देत असू.  शेवटी तो म्हणायचा, गुळ तयार झाला की तुम्हाला थोडा थोडा गूळ खायला देतो तुम्ही चिपाड फक्त घेऊन या म्हणजे झालं.

तो  तयार झालेला मलईदार गुळ आमच्या चिपाडावर ठेवायचा.  तो फार गरम असे. पण त्याची चव इतकी लाजवाब असे की तो सारा गूळ आम्ही तिथेच फस्त करत असू.  ते दिवस मजेचे होते.  बिन पैशानं  हे  सारं आम्हाला मिळायचं. 

तो एखादी दिवशी लिंबू आणा म्हणायचा. आणि सगळ्यांना लिंबू पिळून रस शोधून जर्मन च्या मापातनं प्यायला द्यायचा. त्या उसाचा मालक म्हणायचा,

“घ्या रे पोरांनो रस!  अगदी पोटभर प्या ”

गूळ तयार झाला की काईल उतरायला लागायची. त्यावेळी काईलच्या  एका हूकातुन  समोरच्या दुसऱ्या हुकात एक गोल लाकूड बसवलेलं  असे. असे तीन हुक या बाजूला आणि तीन हुक समोरच्या बाजूला असत. प्रत्येक हूकाकडे दोन ते तीन माणसे लागायची.  प्रत्येक बाजूला सात ते आठ माणसे अशी पंधरा-सोळा माणसे लागायची. तरच ती काईल उचलत असे. ती काईल  उचलताना माणसं श्लोक म्हणायची,

“बोला पुंडलिक वरदा हरी विठ्ठल श्री ज्ञानदेव तुकाराम. पंढरीनाथ महाराज की जय”

असं म्हणत ती सारी काईल फरशीच्या तयार केलेल्या वाफ्यात पालथी केली जायची.  त्यावेळी गुळ पातळ असायचा.  फारच गरम असायचा.  वाफ्यात  टाकला की तो थंड व्हायचा.  हळूहळू तो घम्यात भरला जायचा. घम्यात पहिलंच धुतलेलं पांढरं कापड अंथरलेलं असे. 

गुळ इकडे तिकडे सारायला लांब दांड्याचे  हत्ये  असायचे.  तर भरायला लाकडी लहान हत्ये  असायचे.  एका काईल  मधून गुळाच्या जवळजवळ पाच सहा ढेपा तयार होत. त्या ढेपाच वजन जवळजवळ वीस  किलोच्या आसपास असायचं. प्रत्येक मालकाचा गुळ अलग ठेवला जायचा. काही वेळा गि-हाईक  तिथे येऊन गूळ घेऊन जायचा. समजा नाहीच खपला तर मालक ट्रक सांगून सांगलीच्या किंवा कोल्हापूरच्या बाजारपेठेत तो विकून येत. 

त्या काळात आमच्या ओढ्यात सीताफळ,  पेरू,  आंबा,  जांभळीची झाड होती. दिवाळी संपली की पेरू आणि सीताफळ पाडाला यायची.  पोपटाने झाडावर एखाद्या फळाला टोच मारली की आम्हा मुलांना कुठलं झाड पाडाला आलय  ते समजायचं. ओढा  आमच्या घरापासून हजार बाराशे फूट लांब होता.  तिकडे जाण्यासाठी माणसांना अन गुरानां  एकच वाट होती.

आम्ही चार पाच जण एका वर्गातच शिकत होतो. रविवारी सुट्टी असल्यावर ओढ्यात जाऊन सीताफळ  ठीकं  भरून आम्ही आणत असू.  ती  पिकायला कुणाच्यातरी गोठ्यात ठेवत असू. पिकली की रोज सायंकाळी शाळा सुटली की पोटभर सिताफळ खात असू.

आमच्यातला गण्या तर म्हणायचा,

“शंकरया लेका  थोडी खा ,नाहीतर पोटातच झाड उठल बघ सिताफळीच !”

यावर सारी हसायची. कोण जास्त सीताफळ खातय,   त्याची तर इर्षा लागायची. आम्हाला पोटासाठी या वस्तू केव्हा विकत घ्याव्या लागल्या नाहीत. सारे गणित आमचे बिन पैशाचं होतं. 

काही वेळेला कोकणातल्या बाया बिबे घेऊन यायच्या.  त्यांना मिरच्या दे ऊन ह्या बिब्या विकत घेतल्या जायच्या त्यावेळीही पैसा लागत नसे.  फक्त मालाची आदला बदल केली जायची. 

सुगी चालू असतानाच काही माणसं खळ्यावर धान्य मागायाला येत. त्यात पेठे चा नामदेव मामा दरवर्षी यायचा.  एरवी तो वरकी पाव व तंबाखूची पुडया विकायचा. पेठेत तंबाखू आणि तपकीर प्रसिद्ध होती.  तो खळ्यावर यायचा, त्यावेळी ज्वारीची मळणी चालू असायची. त्याला सूप  भरून धान्य दिलं की तो दहा-बारा वर्की पाव किंवा आठ दहा  तंबाखूच्या पुड्या त्या सुपातच  टाकायचा. त्यावेळी त्याचे पैसे किती होतात हे कोणच बोलत नसे. सार काहीं  अदलाबदलीवर चाले. गड्यांना पगार सुद्धा माणसं ज्वारी देत.  सुगीला दुप्पट ज्वारी मिळे.  त्यामुळे काम करण्यासाठी माणसं खुश असत.   कामावरचे  गडी दिवस मावळला तरी कामावरून घरी जात नसत. काही वेळेला रात्रीला जेवणाचा वकुत होई. तरीपण अर्ध काम सोडून कोण घरी जात नसे. त्यावेळी मालक सुद्धा दुप्पट धान्य गडयानां  मजुरी म्हणून देत असे.   

क्रमश : भाग पहिला 

© मेहबूब जमादार

मु. कासमवाडी,पोस्ट -पेठ, ता. वाळवा, जि. सांगली

मो .9970900243

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ मी मतदार — भाग – ७ ☆ श्री सुनील देशपांडे ☆

श्री सुनील देशपांडे

? मनमंजुषेतून ?

☆ मी मतदार — भाग – ७ ☆ श्री सुनील देशपांडे ☆

मी गोंधळलेला.

मी मत देतो. जेव्हा एखाद्या व्यक्तीला, तेव्हा त्या व्यक्तीच्या विचारांनी आणि त्याच्या वक्तव्याने भारावलेला असतो म्हणून.

मी जेव्हा एखाद्या पक्षाला मत देतो तेव्हा त्या पक्षाच्या वैचारिक आणि राजकीय भूमिकेला माझे विचार अनुरुप असतात म्हणून.

परंतु निवडून आल्यानंतर पुढील काळात वैयक्तिक स्वार्थापोटी किंवा राजकीय स्वार्थापोटी किंवा तात्पुरत्या काळासाठी का होईना त्या काळाची गरज म्हणून स्वतःच्या अथवा पक्षाच्या पूर्वी जाहीर केलेल्या भूमिकांच्या संपूर्ण विरोधी भूमिकेत शिरतो. तेव्हा मतदार म्हणून मी गोंधळून जातो. या माणसाला मी मत दिले ते योग्य की अयोग्य याबाबत मीच निश्चित काही माझ्या मनाशी ठरवू शकत नाही. अशा परिस्थितीत काय व्हायला पाहिजे?

पक्षांतर बंदी कायद्यामुळे फारसा काही फरक पडलेला नाही असे दिसून येते. त्या कायद्यातील पळवटांचा यथेच्छ गैरवापर होत असतो असे दिसते. मला असे वाटते जर एखाद्या व्यक्तीने एका विशिष्ट पक्षाच्या तिकिटावर निवडणूक लढवली असेल तर त्या पक्षाच्या विरोधी भूमिका असलेल्या पक्षाशी हात मिळवणी करायची असेल तर त्याने राजीनामा देऊन पुन्हा निवडून येणे आवश्यक आहे. अशी कायद्यामध्ये तरतूदच हवी. मग जरी सगळेच्या सगळे निवडून आलेले व्यक्ती दुसऱ्या पक्षात जाणार असतील तरी त्या सगळ्यांनी राजीनामे देऊन पुन्हा निवडून यावे. जर पुन्हा निवडून यायचे नसेल तर ज्या पक्षाच्या तिकिटावर निवडणूक लढवली त्याच पक्षामध्ये पुढील निवडणूक होईपर्यंत त्याने असले पाहिजे. अपक्ष आमदाराने सुद्धा जेव्हा सभागृहामध्ये सत्ताधारी किंवा विरोधी पक्षाशी हात मिळवणी केली असेल तर पूर्ण पाच वर्षे त्याच पक्षाबरोबर राहावे. अन्यथा त्यानेही राजीनामा देऊन पुन्हा निवडून यावे. आपली नवी भूमिका मतदारांना पुन्हा समजावून सांगून त्यांची मते मिळवावीत.

एखादी व्यक्ती बहुमताने निवडून आली असेल तर क्वचित १५ टक्के मते मिळवून सुद्धा निवडून आली असेल. आठ दहा उमेदवारांची यादी ज्यावेळेला असेल त्यावेळेला काही डमी उमेदवार मुद्दाम मते खाण्यासाठी उभे केलेले असतात हे आता सर्वांच्याच लक्षात आले आहे. साधारण दोन माणसांच्यातच लढत होणे आवश्यक आहे. अनेक माणसांच्यात लढत होत असेल तर ती निवडणूक दोन वेळेला घ्यावी. पहिल्या निवडणुकीत त्या उमेदवारांना जी मते पडतील त्यापैकी पहिल्या दोन मतसंख्येतील क्रमांकाच्या उमेदवारांमध्ये पुन्हा निवडणूक घ्यावी म्हणजे जरी ६०% मतदान होत असेल तरी किमान त्यातल्या तरी ५० टक्के पेक्षा जास्त लोकांनी निवडून दिलेला उमेदवार हाच बहुमताने निवडून आलेला उमेदवार म्हणण्यास तरी हरकत नाही.

असे होत नसेल तर माझे मत हे योग्य माणसाला दिले असे होणार नाही. मग मी मतदान करावे का न करावे? मतदानावरचा हक्क सोडावा का? पण का सोडावा?

काहीच कळत नाही.

मी पूर्णपणे गोंधळलेला

आणि कन्फ्यूज्ड (?)

© श्री सुनील देशपांडे

नाशिक मो – 9657709640 ईमेल  : [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ विंटेज… लेखक : अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सुश्री सुनिता गद्रे ☆

सुश्री सुनिता गद्रे

? मनमंजुषेतून ?

 ☆ विंटेज… लेखक : अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सुश्री सुनिता गद्रे

माझ्या एकटेपणाच्या दुःखाने आता बाळसं धरायला सुरुवात केली आहे. 

5 वर्षांपूर्वी रिटायर झाल्यावर खरं तर खूप काही प्लॅनिंग केलं होतं, पण आमची ही सहा महिन्यापूर्वी पुढच्या प्रवासाला निघून गेली. एकटीच.

आता मी माझं रुटीन सेट करुन घेतलंय. सकाळी जरा लवकरंच उठतो. त्याचं काय आहे… मुलगा आणि सून दोघेही नोकरी करतात यायला जरा उशीरंच होतो त्यांना… म्हणून सकाळी चहा बरोबर जरा गप्पा पण होतील असं मला वाटायचं. हो वाटायचं. कारण त्यांना माझ्याशी बोलायला वेळंच नाही मिळत. नाही नाही गैरसमज करुन घेऊ नका, सिनेमा किंवा सिरियल मध्ये दाखवतात तसे काही माझे मुलगा किंवा सून नाहीयेत. वडिलांची आणि सासर्‍यांची जेवढी काळजी घ्यायला पाहिजे तेवढी नक्कीच घेतात. माझी तक्रार काही नाही. पण एकदा सकाळी इतरांपेक्षा लवकर जाग आली, म्हणुन चहा करायला घेतला पण नेमकं दूध उतू गेलं, सगळा ओटा खराब झाला. सुन नाराज झाली. मला काही बोलली नाही, पण तीच्या हालचाली मधून ते स्पष्ट जाणवत होत. त्या दिवशी मुलानी लगेच फर्मान काढले. “बाबा उद्यापासून आमचं आवरल्यावर मी तुम्हाला चहा आणून देईन रुममधे !” 

असाच एकदा नातवाला म्हणालो, “ चल तुला स्कूल बस पर्यंत येतो सोडायला.”  

तर म्हणतो कसा “आबा मी मोठा झालोय आता, मी एकटा जाऊ शकतो.  तू आलास तर बाकीच्या मुलांना वाटेल मी घाबरतो एकटा यायला. हसतील मला सगळे.”

म्हणून सध्या उठल्यावर मी माझ्या खोलीतच असतो. बाहेरचा अंदाज घेऊनच हॉल मधे येतो. मला कळून चुकलंय की, मी, त्यांच्या आयुष्यातला फक्त्त एक भाग आहे, कदाचित थोडासा दुर्लक्षित.

आता मी संध्याकाळी फिरायला जातो. तेवढाच माझाही वेळ जातो. रोजचा मार्ग ठरलाय माझा Agricultural College च्या चौकातून सरळ जाऊन विद्यापीठाच्या चौकातून परत घरी. त्या मार्गावर एक दोन शोरुम आहेत चार-चाकी गाड्यांच्या. पहिल्यापासूनच गाड्यांचे आकर्षण होते. म्हणुन मग येता जाता त्या शोरुममधल्या गाड्या बघत बघत जायचो अर्थात बाहेरुनच. 

पण एक दिवस त्या शोरुममधे, एक वेगळीच गाडी दिसली, काहीशी जुनी होती पण त्या गाडीला वेगळी जागा होती, तीला वेगळ्या पद्धतीने सजवलं होतं. कुतुहल वाटलं म्हणून आत गेलो. एक चकचकीत कपड्यातला सेल्समन आला. “Yes Sir कुठली गाडी बघताय ?”

“ नाही… म्हणजे हो बघतोय पण विकत नाही घ्यायची मला. ही एव्हढी जुनी गाडी तुमच्या शोरुममधे कशी काय हा विचार करतोय “ . 

” सर ही Vintage Car आहे. 1965 साली बडोद्याच्या महाराजांनी घेतली होती.”

“ का हो सगळ्या गाड्यांवर किमतीचा कागद लावला आहे. या गाडीवर मात्र तो नाही.”  

” सर ही विंटेज कार आहे, हीची किंमत ठरवता येत नाही. ज्याला या गाडीचं मोल कळेल, तो कस्टमर ही गाडी घेईल. थोडक्यात ही गाडी महाग नाही तर मौल्यवान आहे.” 

मी शोरुम मधून बाहेर पडलो. कसला तरी विचार येत होता मनामधे, पण नक्की कळत नव्हतं काय ते.

असेच मध्ये काही दिवस गेले, रोज मी येता जाता ती गाडी कौतुकाने बघायचो.

गुढी पाडव्याच्या दिवशी सुट्टी असल्याने सगळे घरीच होते. ही गेल्या नंतरचा पाहिलाच गुढी पाडवा. जरा उदासंच होतो मी, पण नातवाशी खेळण्यात वेळ जात होता. ” आबा तुला माहितीये का आमच्या शाळेच्या समोर ना 100 पेक्षा जास्त वर्षे जुने पिंपळाचे झाड होते, रोड वायडींग मधे ते पाडणार होते. मग कुठले तरी लोक आले मोर्चा घेऊन आणि ते झाड दुसरीकडे नेऊन पुन्हा लावलं. आमच्या टीचरनी सांगितलं ते झाड जुनं असलं तरी 24 तास ऑक्सिजन देत म्हणून ते महत्वाचं आहे.”

… त्या गाड्यांच्या शोरुम मधून बाहेर पडल्यावर जसं  वाटलं होतं तसंच काहीसं वाटून गेलं. 

सुनबाई म्हणाली ” बाबा तुम्ही पूजा कराल का गुढीची. इतकी वर्षे आई करायच्या म्हणून वाटतं आज तुम्ही करावी.” मी पण तयार झालो.

आम्ही सगळे जेवायला बसलो सूनबाईने छान तयारी केली होती. जेवायला तांब्याची ताट काढली. मुलगा म्हणाला, “अगं, आज तो काचेचा सेट काढायचा ना”

“अरे असू दे.  आईने पाहिल्या दिवाळसणाला दिला होता हा तांब्याच्या सेट. त्या सेटमधली आता फक्त्त ताटंच उरली आहेत. म्हणून मुद्दाम जपून ठेवली आहेत सणासुदीसाठी …  आईची आठवण म्हणून.” 

आणि सूनबाईने नकळत हातातले फडके खाली ठेवले आणि ती ताटं स्वतःच्या पदराने पुसली. 

अचानक मला त्या शोरुममधून बाहेर पडल्यावर मनात जो विचार आला होता त्याचा अर्थ कळायला लागला….  मौल्यवान या शब्दाचा. ती विंटेज गाडी, ते पिंपळाचे झाड, काही तरी इशारा करत होते.

आता माझे मला समजले होते, मी म्हातारा असलो तरी टाकाऊ नव्हतो. 

आता मुलाच्या आणि सुनेच्या रोजच्या आयुष्याचा भाग होण्याचा अट्टाहास मी सोडून दिलाय …  स्वखुशीने. कारण मला माहितीये त्यांच्या आयुष्यातील माझं स्थान त्या विंटेज कारसारखं आहे. एकदम स्पेशल….. 

लेखक : अज्ञात

संग्राहिका – सुश्री सुनीता गद्रे

माधवनगर सांगली, मो 960 47 25 805.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ शापित आहे श्रीकृष्णाचा गोवर्धन पर्वत – लेखक – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री अनंत केळकर ☆

? इंद्रधनुष्य ?

शापित आहे श्रीकृष्णाचा गोवर्धन पर्वत –  लेखक – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री अनंत केळकर ☆

वृंदावनमध्ये गोवर्धन पर्वताचा खास महिमा आहे. वैष्णव लोक या पर्वताला श्रीकृष्ण समान मानतात. मान्यतेनुसार, गोवर्धन पवर्ताची परिक्रमा आणि पूजा केल्याने सर्व इच्छा पूर्ण होतात. पृथ्वीवर गोवर्धन पर्वत स्वतः श्रीकृष्णाचे धाम गोलोकमधून आला होता. मान्यतेनुसार, एका शापामुळे या पर्वताची हळू-हळू झीज होत आहे.

गोवर्धन पर्वताला का देण्यात आला होता शाप ?? 

कथेनुसार श्रीकृष्णाच्या प्रेरणेने शाल्मली द्वीप मध्ये द्रोणाचल पत्नीच्या गर्भातून गोवर्धन पर्वताचा जन्म झाला. गोवर्धनला परमेश्वराचे रूप मानून हिमालय, सुमेरु इ. पर्वतांनी त्याची गिरीराज रुपात पूजा केली. एकदा तीर्थयात्रा करत पुलत्स्य ऋषी गोवर्धन पर्वताच्या जवळ आले. पर्वताचे सौंदर्य पाहून ऋषी मंत्रमुग्ध झाले आणि द्रोणाचल पर्वताला म्हणाले की, मी काशीला राहतो आणि तुम्ही तुमचा मुलगा गोवर्धन मला द्या. मी त्याला काशीमध्ये स्थापित करून तेथेच त्याचे पूजन करेल.

द्रोणाचल मुलाला देण्यासाठी तयार नव्हते परंतु गोवर्धन ऋषीसोबत जाण्यास तयार झाला. त्यापूर्वी गोवर्धन पर्वताने ऋषींना एक अट घातली. तुम्ही मला ज्या ठिकाणी ठेवाल त्या ठिकाणी मी स्थापित होईल. पुलत्स्य ऋषींनी गोवर्धनची अट मान्य केली. गोवर्धन पर्वत ऋषींना म्हणाला की, मी दोन योजन उंच आणि पाच योजन विस्तीर्ण आहे. तुम्ही मला कसे घेऊन जाल?

पुलत्स्य ऋषींनी सांगितले की, मी तुला माझ्या तपोबलावर हातावर उचलून घेऊन जाईल. त्यानंतर ऋषी गोवर्धनला घेऊन निघाले. वाटेत वृंदावन आले. वृंदावन पाहून गोवर्धनची पूर्वस्मृती जागृत झाली आणि त्याला आठवले की, याठिकाणी श्रीकृष्ण आणि देवी राधा बाल्यावस्था आणि तारुण्य काळात विविध लीला करणार आहेत. हा विचार करून गोवर्धन पर्वताने स्वतःचा भार आणखी वाढवला. यामुळे ऋषींना विश्राम करण्याची आवश्यकता वाटू लागली आणि त्यांनी गोवर्धनला हातावरून खाली ठेवले. गोवर्धन पर्वताला या मार्गात कोठेही ठेवायचे नाही, ही अट ऋषी विसरले.

काही काळानंतर ऋषी पर्वताजवळ आले आणि उचलण्याचा प्रयत्न करू लागले, तेव्हा गोवर्धनने सांगितले की आता मी कोठेही जाऊ शकत नाही. मी तुम्हाला निघतानाच माझी अट सांगितली होती. त्यानंतर ऋषींनी गोवर्धनला सोबत येण्याचा खूप आग्रह केला परंतु गोवर्धनने नकार दिला. त्यानंतर संतप्त झालेल्या ऋषींनी गोवर्धन पर्वताला शाप दिला की, तुझ्यामुळे माझे कार्य अपूर्ण राहिले त्यामुळे आजपासून दररोज तीळ-तीळ तुझी झीज होईल आणि काही काळानंतर तू या जमिनीत सामावाशील. तेव्हापासून गोवर्धन पर्वत झिजत आहे. कलियुगाच्या अंतापर्यंत हा जमिनीमध्ये सामावलेला असेल……. 

लेखक : अज्ञात 

संग्राहक : अनंत केळकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ “भज्यांचे विश्व —” – लेखक : अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री मोहन निमोणकर ☆

श्री मोहन निमोणकर 

? वाचताना वेचलेले ?

☆ “भज्यांचे विश्व —” – लेखक : अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री मोहन निमोणकर

संपूर्ण महाराष्ट्राला एकाच धाग्याने बांधून ठेवणाऱ्या गोष्टी कोणत्या ? असे जर कोणाला विचारले तर कोणी पंढरपूरच्या विठोबाकडे बोट दाखवेल, कोणी लोककला म्हणेल, तर कोणी सहयाद्री पर्वत सांगेल.

माझ्या मते या सगळ्या सांस्कृतिक व भावनिक गोष्टी झाल्या.

पण खऱ्या अर्थाने महाराष्ट्राला जोडणारी एकच गोष्ट म्हणजे धागा नसून भजी हा सर्वमान्य पदार्थ आहे यावर कोणाचे दुमत नसावे. भजी न आवडणारा माणूस अजून तरी मी पाहिलेला नाही.

खूप वर्षांपूर्वी प्रसिद्ध उद्योगपती शंतनुराव किर्लोस्कर यांची मुलाखत T V वर पाहिली होती. 

त्या अर्ध्या तासाच्या मुलाखतीत त्यांच्याकडून अनेकदा भजी या गोष्टींचा उल्लेख व त्या विषयीच्या  उपमा आल्याचे मला आठवते.

..  थोडक्यात काय तर त्यांच्यासारख्या उद्योगपती पासून माझ्यासारख्या उचापती माणसाला भजी ही प्रिय गोष्ट आहे.

भज्यांची पहिली ओळख ही लहानपणी पत्ते खेळताना झाली. 

एक्क्या मध्ये किलवर, बदाम किंवा चौकट चा एक्का हातात आला तर विशेष आनंद होत नसे. पण इस्पिक एक्क्याचे भजे आले की चेहऱ्यावरचा आनंद लपवता येत नसे. त्या पानाचा तो गोलाकार डिझाइन असलेले रंग फार आवडत असे.

भजी दोन प्रकारे खाल्ली जातात. एक म्हणजे  घरात व लग्न , मुंज वगैरे समारंभात. दुसरी म्हणजे हॉटेल, ढाबा , टपरी अशा ठिकाणी.

घरातील भजी थोडा सात्विकपणा घेऊन येतात. त्याला पवित्र कार्यक्रमाची जोड असल्याने कांदा लसूण माफक वापरले जातात. घोसावळी ,कोबी किंवा प्लेन असेच प्रकार केले जातात.

गोड केळ्याची भजी हा मला आवडणारा प्रकार खूप कमी केला जातो व विशेष लोकप्रिय नाही. पण गरम गरम भजीच्या कव्हर मधून जेव्हा गरम केळे डोकावते तेव्हा जिभेला व मनाला दोन्ही प्रकारे चटका देऊन व लावून जाते.  

शाळकरी व कॉलेज वयात स्वयंसेवक म्हणून वाढप्याचे काम करणाऱ्या लोकांसाठी लग्नातील आचारी लोक खास भजीचा घाणा काढत. 

तेव्हाचे आचारी हे व्यावसायिक केटरिंग कॉन्ट्रॅक्टर झालेले नसत. एक पंगत झाली की दुसरी बसे पर्यंत असे भज्यांचे घाणे मी स्वतः अनेकदा रिचवले आहेत.

बाहेरची भजी प्रथम खाल्ली तो दिवस मला चांगला आठवतोय. एक दिवस वडील सकाळी सकाळी आम्हाला बंडगार्डनला घेऊन गेले होते. १९७० च्या सुमारास तिथे बोटिंग चाले.

बोटिंग झाल्यावर एका टपरीवर भजी व चिंच गुळाची चटणी खाल्ली व तेव्हापासून भजी व चिंच गुळाची चटणी हे समीकरण फिक्स झाले.

हॉटेलमध्ये भजीबरोबर टोमॅटो सॉस दिले की माझे पित्त खवळते.

कालानुरूप आपले पुणे बदलले आहे पण तीन भजीवाले अजूनही अढळ ध्रुवपद घेऊन बसले आहेत.

बाजीराव रोडवरील विश्रामबागवाड्या समोरचा, रतन टॉकीज समोरचा व फडके हौदा जवळील रेल्वे बुकिंग ऑफिस जवळचा. शाळकरी वयात यांच्याकडील भजी फक्त गणेशोत्सवात खाल्ली जात. गेल्या काही वर्षांत तर hygene वगैरे मुळे तिकडे लक्ष दिले  जात नाही ही गोष्ट वेगळी.

पुण्यात भजी टिकवून ठेवण्यात वाटा उचलणारे म्हणजे टिळक रोडवरील रामनाथ हॉटेल

आषाढ महिन्यात चातुर्मास सुरु होण्याआधी माझे सासरे नेहमी तिथली भजी आणायला सांगत. कागदाच्या पुडीत ती घरी आणेपर्यंत पिशवी अगदी तेलाने माखून जात असे. पण दोन भजी व त्याबरोबर कडक मिरची पोटात गेली की तबियत एकदम खूष !

गणपती चौकातील आरोग्य मंदिर ची बटाटा भजी ही पण अशीच सुंदर. बेडेकरांनी जरी मिसळीत नाव मिळवले असले तरी त्यांची भजीही उत्तमच.( सध्या देतात की नाही ते जाणकार मित्रांनी सांगावे )

तुळशीबागेत सुध्दा श्रीकृष्ण उपहार गृहातील मिसळीला भजी हवीतच.

सुजाता हॉटेलमध्ये भजी सूप नावाचा प्रकार मिळे. चिंच गुळाचे पाणी त्यावर कांदा, कोथिंबीर, शेव व भजी – -अहा हा ! अजून आठवले तरी तोंडाला पाणी सुटते.

बादशाहीमध्ये सुद्धा एकदा जेवणाबरोबर extra चार्ज लावून भजी खाल्ल्याचे आठवते. गोल भजी, खेकडा भजी हे दोन प्रामुख्याने विकले जाणारे ब्रँड.

महाराष्टाच्या कानाकोपऱ्यात कुठेही जा , एखादे तरी भजीचे हॉटेल मिळणारच. का कोणास ठाऊक पण अशा दुकानात भजी हा पुरुष माणूस करत असतो तर काउंटर वर नेहमी त्यांची पत्नी असते. 

मला या दुकानात जर सर्वात काय आवडत असेल तर पीठ पातेल्यात काढून त्यात पाणी, मसाला , तिखट, कांदा घालून कढईत सोडे पर्यंतची कृती .बहुतेक सर्व मंडळी त्यात इतकी गर्क झालेली असतात की जणू समाधी लागली आहे.

मग हळूहळू कढईच्या टोकावरून किंवा मध्यातून एकेक भजे तेलात सोडणे. मग लाल रंग येईपर्यंत वरखाली करून झाऱ्यावर निथळत ठेवणे. एकदा तो भज्यांचा lot अल्युमिनियमच्या परातीत टाकला की पुढचे काम पोऱ्या करणार.

भजी ही कागदाच्या पुडीत धरून खाल्ली तर जास्त मस्त लागतात. मधूनच पुडी बाजूला करून मीठ लावलेली मिरची दाताखाली चावायची. त्यासारखे स्वर्गसुख नाही.

जोडीला चुरलेली भजी , तिखट व लसूण घातलेली चटणी असेल तर काय विचारायलाच नको.

ज्याप्रमाणे शास्त्रीय संगीतात काही राग हे सर्वकालीन म्हणजेच केव्हाही गायले तरी चालतात तसेच भजी पण सर्वकालीन खाद्य आहे.

भजी खाण्याचे आवडते ठिकाण म्हणजे एखादे हिल स्टेशन, सिंहगड, सज्जनगड , वरंध घाट, ताम्हिणी घाट .

महाबळेश्वरच्या आर्थर सीटला सकाळी सकाळी नऊ वाजता जाऊन भजी खाणे हे माझे आवडते काम.

काही वेळेला तर आदल्या दिवशीचे तेल वापरून केली आहेत हे समजते, पण त्यांची चव न्यारीच आणि कधीच बाधत नाहीत.

लोणावळा येथील भजी पॉइंटची भजी ही नेहमीच किलोवर घ्यावीत नाहीतर कुटुंबात कलह माजू शकतो.

उटी येथे एकदा लांब मिरची घालून केलेले भजे एकट्याने फुल्ल खाल्ले. लग्न नवीन झाले असल्याने बायकोवर इंप्रेशन मस्त मारले गेले.

पुणे कोल्हापूर मार्गावर ज्या बस नॉनस्टॉप जातात त्या कराडच्या अलीकडे अतीत गावाच्या बस स्थानकात फक्त भज्यांसाठी थांबतात. तो आस्वाद मी असंख्य वेळा घेतला आहे.

सुखाच्या कल्पनेत माझे एक सुख म्हणजे कुठलेतरी डोंगरगाव, जांभुळपाडा, बामणोली अशा नावाचे गाव असावे, हवा ढगाळ व रिमझिम पाऊस पडत असावा, डोंगर दऱ्यांवर धुके असावे , एखाद्या पत्र्याच्या टपरी वर भजी चालू असावीत, मग पुडीत भजी, मिरची, लाल चटणी व तिखट लागले की लालबुंद कडक चहाचा घुटका

आयुष्यात दुसरे काही नकोच  मग !

लेखक : अज्ञात

संग्राहक : श्री मोहन निमोणकर

संपर्क – सिंहगडरोड, पुणे-५१ मो.  ८४४६३९५७१३.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆– “नवा हुंकार…” – ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

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? – “नवा हुंकार– ? ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

दगडातील मार्दवता

कलाकृतीत जन्मा येते

तेंव्हा ती सुयोग्य  रचना

आपणाशी संवाद  साधते …. 

*

संवाद  असा जो मानवाचा

मनाचाच आरसा असतो

दगडामधील कणाकणातुन 

 नवाच मग हुंकार जन्मतो …. 

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

मो 8149144177

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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