मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ स्त्री… ☆ प्रस्तुती – सौ. शशी नाईक-नाडकर्णी ☆

सौ.शशी.नाडकर्णी-नाईक

? वाचताना वेचलेले ?

⭐ स्त्री… ☆ प्रस्तुती – सौ. शशी नाईक-नाडकर्णी⭐

जेव्हा विश्वकर्म्याने ब्रह्मदेवाच्या आज्ञेनुसार स्त्री निर्माण करावयास घेतली, तेव्हा त्याने निगुतीने, शांतपणे काम करायला सुरूवात केली.

ब्रह्मदेवाने विचारणा केली.

“स्त्री निर्मितीसाठी एवढा वेळ का लागतो आहे?”

 

विश्वकर्म्याने उत्तर दिले,  “तिची रचना करण्यासाठी मला पूर्ण करावे लागणारे सर्व तपशील तुम्हाला निवेदन करतो.”

  • तिने सर्व प्रकारच्या परिस्थितींमध्ये कार्य केले पाहिजे.
  • ती एकाच वेळी अनेक मुले सांभाळण्यास सक्षम असणे आवश्यक आहे.
  • तिने आलिंगन दिले की दुखापत झालेल्या गुडघ्यापासून, ते तुटलेल्या हृदयापर्यंत ती काहीही बरे करू शकली पाहिजे.
  • तिने हे सर्व फक्त दोन हातांनी केले पाहिजे.
  • ती आजारी असताना स्वत:चे स्वतःला बरे करू शकली पाहिजे. तसेच दिवसाचे १८ तास काम करू शकली पाहिजे.

 

   ब्रह्मदेव प्रभावित झाले. “फक्त दोन हातांनी हे सर्व करणे ….. अशक्य आहे !”

   ब्रह्मदेव जवळ गेले आणि त्या स्त्रीला स्पर्श केला.

   “पण तू तिला खूप मऊ केले आहेस.”

 

   विश्वकर्मा वदले,”ती मऊ आहे, पण मी तिला मजबूत बनवले आहे.  ती काय सहन करू शकते आणि त्यावर मात करू शकते याची तुम्ही कल्पनाही करू शकत नाही”

   “ती विचार करू शकते का?”  देवाने विचारले…

   विश्वकर्मा  उत्तरले “ती नुसता विचार करू शकत नाही, तर ती तर्क करू शकते आणि वाटाघाटीही करू शकते.”

   देवाने तिच्या गालाला स्पर्श केला….

   “हा भाग गळतोय असं वाटतंय! तू या भागावर खूप ओझं टाकलं आहेस.”

“तिथे गळत नाहीये…

ते डोळ्यातील अश्रू आहेत.” 

विश्वकर्माने देवाला सांगितले …

“ते अश्रू आणि कशासाठी?”

देवाने विचारले……

विश्वकर्मा म्हणाले

“अश्रू हे, तिचे दु:ख, तिच्या शंका, तिचं प्रेम, तिचा आनंद, तिचं एकटेपण आणि तिचा अभिमान व्यक्त करण्याचा मार्ग आहे.”  …

त्याचा देवावर चांगलाच प्रभाव पडला,

“विश्वकर्मा, तू अतिशय प्रतिभावान आहेस.

तू सर्व गोष्टींचा विचार केला आहेस.

खरोखर अद्भुत घडण आहे ही एक स्त्री.”

   ■ तिच्यात पुरुषाला चकित करण्याची ताकद आहे.

   ■ ती संकटे हाताळू शकते आणि जड भार वाहून नेऊ शकते.

   ■ तिला आनंद, प्रेम आणि मते आहेत.

   ■ जेव्हा तिला किंचाळावेसे वाटते, तेव्हा ती हसते.

   ■ जेव्हा तिला रडावेसे वाटते, तेव्हा ती गाते, जेव्हा ती आनंदी असते, तेव्हा रडते आणि जेव्हा ती घाबरते, तेव्हा हसते.

   ■ ती ज्यावर विश्वास ठेवते त्यासाठी ती लढते.

   ■ तिचे प्रेम बिनशर्त आहे.

   ■ “एखादा नातेवाईक किंवा परिचित मरण पावल्यावर तिचे हृदय तुटते, परंतु तिला जगण्याची ताकदही मिळते.”

 

   देवाने विचारले:

“तर मग ती एक परिपूर्ण प्राणी आहे?”

 

विश्वकर्माने उत्तर दिले:

“नाही. यात फक्त एकच त्रुटी आहे. तिचे महत्व किती आणि ती किती मौल्यवान आहे हे ती अनेकदा विसरते.”

      स्त्री असणं अनमोल आहे

तिला स्वतःचा अभिमान वाटावा यासाठी तुमच्या आयुष्यातील प्रत्येक स्त्रीला हे कळू द्या.

संग्राहिका :सुश्री शशी नाडकर्णी-नाईक

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – बसंत बहार – ☆ सुश्री ज्योत्स्ना तानवडे ☆

सुश्री ज्योत्स्ना तानवडे

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?– बसंत बहार – ? ☆ सुश्री ज्योत्स्ना तानवडे ☆

वाटेवरती उभी दुतर्फा

झाडे सलामीला सुंदरशी

रंगबिरंगी फुलोऱ्यातूनी

बहरून आली मनभावनशी ||

वाटेवरची आसने ती

वाट पाहती पांथस्तांची

घडीभरीचा देत विसावा

सेवा करती मानवतेची ||

असे वाटते झाडे जणू

भिडुनी खेळती झिम्मा

त्यांच्या खालून आपणही

खेळत जावे हमामा ||

वाटेवरची कमान जणू

साज ल्याली इंद्रधनुचा

पायतळीची  पखरण ती

असे गालिचा भूमातेचा ||

वाट अशी ही सोबतीला

नेते स्वप्नांच्या गावाला

प्रसन्नचित्ते मी ही तिथे

साद घालितसे सख्याला ||

चित्र साभार – सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

© सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

वारजे, पुणे.५८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #174 – परसों वाली रही न बातें… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता  “परसों वाली रही न बातें……”)

☆  तन्मय साहित्य  #174 ☆

☆ परसों वाली रही न बातें… 

बीता वक्त

साथ में बीत गए

स्वर्णिम पल

मची हुई

स्मृतियों में हलचल

 

शिथिल पंख

अनगिन इच्छाएँ

कैसे अब

उड़ान भर पाएँ,

आसपास

पसरे फैले हैं

लगा मुखौटे

छल बल के दल।

 

परसों वाली

रही न बातें

अन्जानी सी

अन्तरघातें,

सद्भावी नहरें

हैं खाली

हुआ प्रदूषित

नदियों का जल।

 

ऋतु बसन्त

अब भी है आती

होली, दीवाली

शुभ राखी,

परंपरागत

करें निर्वहन

पर न प्रेम वह

रहा आजकल।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – नव संवत्सर विशेष – परिवर्तन का संवत्सर ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – नव संवत्सर विशेष – परिवर्तन का संवत्सर🍁 ??

(इस विषय पर लेखक के विस्तृत लेख का एक अंश)

पुराने पत्तों पर नयी ओस उतरती है,

अतीत का चक्र वर्तमान में ढलता है,

प्रकृति यौवन का स्वागत करती है,

अनुभव की लाठी लिए बुढ़ापा साथ चलता है

नूतन और पुरातन का अद्भुत संगम है प्रकृति। वह अगाध सम्मान देती है परिपक्वता को तो असीम प्रसन्नता से नवागत को आमंत्रित भी करती है। जो कुछ नया है स्वागत योग्य है। ओस की नयी बूँद हो, बच्चे का जन्म हो या हो नववर्ष, हर तरफ होता है उल्लास, हर तरफ होता है हर्ष।

भारतीय संदर्भ में चर्चा करें तो हिन्दू नववर्ष देश के अलग-अलग राज्यों में स्थानीय संस्कृति एवं लोकचार के अनुसार मनाया जाता है। महाराष्ट्र तथा अनेक राज्यों में यह पर्व गुढी पाडवा के नाम से प्रचलित है। पाडवा याने प्रतिपदा और गुढी अर्थात ध्वज या ध्वजा। मान्यता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। सतयुग का आरंभ भी यही दिन माना गया है। स्वाभाविक है कि संवत्सर आरंभ करने के लिए इसी दिन को महत्व मिला।

गुढी पाडवा के दिन महाराष्ट्र में ब्रह्मध्वज या गुढी सजाने की प्रथा है। लंबे बांस के एक छोर पर हरा या पीला ज़रीदार वस्त्र बांधा जाता है। इस पर नीम की पत्तियाँ, आम की डाली, चाशनी से बनी आकृतियाँ और लाल पुष्प बांधे जाते हैं। इस पर तांबे या चांदी का कलश रखा जाता है। सूर्योदय की बेला में इस ब्रह्मध्वज को घर के आगे विधिवत पूजन कर स्थापित किया जाता है।

माना जाता है कि इस शुभ दिन वातावरण में विद्यमान प्रजापति तरंगें गुढी के माध्यम से घर में प्रवेश करती हैं। ये तरंगें घर के वातावरण को पवित्र एवं सकारात्मक बनाती हैं। आधुनिक समय में अलग-अलग सिग्नल प्राप्त करने के लिए एंटीना का इस्तेमाल करने वाला समाज इस संकल्पना को बेहतर समझ सकता है। सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा तरंगों की सिद्ध वैज्ञानिकता इस परंपरा को सहज तार्किक स्वीकृति देती है। प्रार्थना की जाती है,” हे सृष्टि के रचयिता, हे सृष्टा आपको नमन। आपकी ध्वजा के माध्यम से वातावरण में प्रवाहित होती सृजनात्मक, सकारात्मक एवं सात्विक तरंगें हम सब तक पहुँचें। इनका शुभ परिणाम पूरी मानवता पर दिखे।” सूर्योदय के समय प्रतिष्ठित की गई ध्वजा सूर्यास्त होते- होते उतार ली जाती है।

प्राकृतिक कालगणना के अनुसार चलने के कारण ही भारतीय संस्कृति कालजयी हुई। इसी अमरता ने इसे सनातन संस्कृति का नाम दिया। ब्रह्मध्वज सजाने की प्रथा का भी सीधा संबंध प्रकृति से ही आता है। बांस में काँटे होते हैं, अतः इसे मेरुदंड या रीढ़ की हड्डी के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया गया है। ज़री के हरे-पीले वस्त्र याने साड़ी-चोली, नीम व आम की माला, चाशनी के पदार्थों के गहने, कलश याने मस्तक। निराकार अनंत प्रकृति का साकार स्वरूप में पूजन है गुढी पाडवा।

कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश में भी नववर्ष चैत्र प्रतिपदा को ही मनाया जाता है। इसे ‘उगादि’ कहा जाता है। केरल में नववर्ष ‘विशु उत्सव’ के रूप में मनाया जाता है। असम में भारतीय नववर्ष ‘बिहाग बिहू’ के रूप में मनाया जाता है। बंगाल में भारतीय नववर्ष वैशाख की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इससे ‘पोहिला बैसाख’ यानी प्रथम वैशाख के नाम से जाना जाता है।

तमिलनाडु का ‘पुथांडू’ हो या नानकशाही पंचांग का ‘होला-मोहल्ला’ परोक्ष में भारतीय नववर्ष के उत्सव के समान ही मनाये जाते हैं। पंजाब की बैसाखी यानी नववर्ष के उत्साह का सोंधी माटी या खेतों में लहलहाती हरी फसल-सा अपार आनंद। सिंधी समाज में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ‘चेटीचंड’ के रूप में मनाने की प्रथा है। कश्मीर में भारतीय नववर्ष ‘नवरेह’ के रूप में मनाया जाता है। सिक्किम में भारतीय नववर्ष तिब्बती पंचांग के दसवें महीने के 18वें दिन मनाने की परंपरा है।

सृष्टि साक्षी है कि जब कभी, जो कुछ नया आया, पहले से अधिक विकसित एवं कालानुरूप आया। हम बनाये रखें परंपरा नवागत की, नववर्ष की, उत्सव के हर्ष की। साथ ही संकल्प लें अपने को बदलने का, खुद में बेहतर बदलाव का। इन पंक्तियों के लेखक की कविता है-

न राग बदला, न लोभ, न मत्सर,

बदला तो बदला केवल संवत्सर

परिवर्तन का संवत्सर केवल काग़ज़ों तक सीमित न रहे। हम जीवन में केवल वर्ष ना जोड़ते रहें बल्कि वर्षों में जीवन फूँकना सीखें। मानव मात्र के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हो, मानव स्वगत से समष्टिगत हो।

चैत्र नवरात्र एवं गुढी पाडवा की बधाई।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित आपदां अपहर्तारं साधना गुरुवार दि. 9 मार्च से श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च तक चलेगी।

💥 इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना तो साथ चलेंगी ही।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नव संवत्सर आ गया… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आप प्रत्येक मंगलवार  उनकी नवीन रचाएं आत्मसात कर सकते हैं। नव संवत्सरआगमन पर आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण रचना  “नव संवत्सर आ गया…। 

☆  कविता ☆ नव संवत्सर आ गया… ✍

नव संवत्सर आ गया, खुशियाँ छाईं द्वार ।

दीपक द्वारे पर रखें, महिमा अपरंपार ।।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को, आता है नव वर्ष।

धरा प्रकृति मौसम हवा, सबको करता हर्ष।।

संवत्सर की यह कथा, सतयुग से प्रारम्भ।

ब्रम्हा की इस सृष्टि की, गणना का है खंभ।।

नवमी तिथि में अवतरित, अवध पुरी के राम ।

रामराज्य है बन गया, आदर्शों का धाम ।।

राज तिलक उनका हुआ, शुभ दिन थी नव रात्रि।

राज्य अयोद्धा बन गयी, सारे जग की धात्रि ।।

मंगलमय नवरात्रि को, यही बड़ा त्योहार।

नगर अयोध्या में रही, खुशियाँ पारावार।।

नव रात्रि आराधना, मातृ शक्ति का ध्यान ।

रिद्धी-सिद्धी की चाहना, सबका हो कल्यान ।।

चक्रवर्ती राजा बने, विक्रमादित्य महान ।

सूर्यवंश के राज्य में, रोशन हुआ जहान ।।

बल बुद्धि चातुर्य में, चर्चित थे सम्राट ।

शक हूणों औ यवन से,रक्षित था यह राष्ट्र।।

स्वर्ण काल का युग रहा, भारत को है नाज ।

विक्रम सम्वत् नाम से, गणना का आगाज ।

मना रहे गुड़ि पाड़वा, चेटी चंड अवतार ।

फलाहार निर्जल रहें, चढ़ें पुष्प के हार।।

भारत का नव वर्ष यह, खुशी भरा है खास।

धरा प्रफुल्लित हो रही, छाया है मधुमास।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 60 ☆ ग़ज़ल – प्रीत का हिंडोला… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण ग़ज़ल – “प्रीत का हिंडोला”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 60 ✒️

?  ग़ज़ल – प्रीत का हिंडोला… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

प्रीत के हिंडोले में

झूलती जवानी है ।

फूल हैं क़दमों तले

निगाहें आसमानी हैं ।।

 

मुझे रोक ना सकेगी दुनियां

रूढ़ियों की जंज़ीरों से।

मैं बहती हुई नदियां हूं

भावना तूफ़ानी है ।

प्रीत —————–।।

 

झर – झर – झरते – झरने

कल-कल करतीं नदियां ।

कर्मरत रहना ही

सफ़ल ज़िदगानी है ।

प्रीत —————–।।

 

चांदी की हों रातें

सोने भरे हों दिन ।

ऐसा स्वर्ग धरती में

हमने लाने की ठानी है ।

प्रीत —————–।।

 

स्वप्नों के पंख पसारे

क्षितिज के पार हम चलें ।

रात भीगी – भीगी है

भोर धानी – धानी है ।

प्रीत —————–।।

 

नेह के आलिंगन में

बांध लो तुम मुझको ।

वर्तमान से वंचित होना

निरीह नादानी है ।

प्रीत —————–।।

 

मेरा प्यार एक इबादत है

मेरे प्यार में शहादत भी है ।

हर हाल में सलमा को

वफ़ा ही निभानी है ।

प्रीत —————–।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – पुस्तक समीक्षा ☆ “नासमझ मन – भज मन” – डॉ. मालती बसंत ☆ सुश्री मनोरमा पंत ☆

सुश्री मनोरमा पंत  

📖 पुस्तक चर्चा 📖

☆ “नासमझ मन – भज मन” – डॉ. मालती बसंत ☆ समीक्षक – सुश्री मनोरमा पंत ☆

पुस्तक चर्चा

पुस्तक – नासमझ मन – भज मन

लेखिका – डॉ. मालती बसंत

प्रकाशक आईसेक्ट पब्लिकेशन

मूल्य – रु 250  

डॉ. मालती बसंत

(एम.ए., एम.एड, पी.एच.डी, डी.सी.एच., एन.डी (योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा) जैसी उपाधियों से विभूषित डॉ. मालती बसंत के दो कहानी-संग्रह, तीन लघुकथा-संग्रह, चौदह बाल कहानी संग्रह, तीन बाल उपन्यास, एक बाल नाटक संग्रह, एक कविता संग्रह, एक हास्य व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हो चुका है।

आकाशवाणी भोपाल, इन्दौर, तथा छतरपुर से निरन्तर रचनाओं का प्रसारण होता रहा है ।

भारत सरकार के विभिन्न विभागों, म.प्र. साहित्य अकादमी द्वारा अनेको महत्वपूर्ण सम्मानों से विभूषित मालती जी को महामहिम राष्ट्रपति अब्दुल कलाम बाल साहित्यकार के रूप में चर्चा हेतु राष्ट्रपति भवन में आमंत्रित कर चुके हैं। इनके साहित्य पर शोधकार्य भी हो चुके हैं। मारीशस और लदंन की साहित्यिक यात्राएँ मालती जी के साहित्य के महत्व को पुष्ट करती हैं।)

☆ “नासमझ मन – भज मन” – डॉ. मालती बसंत ☆ समीक्षक – सुश्री मनोरमा पंत ☆

आज मेरे समक्ष प्रसिद्ध लघुकथाकार, कहानीकार, कवयित्री मालती बंसत का काव्य संग्रह “नासमझ मन-भज मन” है।

पुस्तक के पृष्ठ पलटते ही पढ़ा ”पचास वर्षो की साहित्यिक यात्रा में मिले सह यात्रियों को समर्पित।” किताब का साहित्यिक साथियों को सम्पर्ण मुझे अभिभूत कर गया। यह समर्पण उनके व्यक्तिगत औदार्य को उद्घाटित करता है। उनका आत्मकथ्य भी अर्न्तमन को उद्वेलित कर जाता है, जिसमें वे वेबाकी से लिखती हैं-

साहित्यकार की प्रथम रचना कविता ही होती है। स्वयं को इंगित करती हुई वे कहती है ”मन की पर्वत पीड़ा सी सघन क्षणों की भावों की अभिव्यक्ति कविता के रूप में झरनों से फूट पड़ती है। इस आत्म कथ्य को पढ़ते ही मैं समझ गई कि मालती जी की कविताएं पीड़ा, दुख के संवेदों से परिपूर्ण होगी । जिस प्रकार का वाष्प से घनी भूत बादल अन्ततः बरस ही जाते हैं, वैसे ही वर्षों से उनके मन की पीड़ा भोगे हुए दर्द के घनी भूत बादल अन्ततः इस काव्य संग्रह के रूप में बरस ही गये। इस संग्रह में उनके विगत पचास वर्षों के जीवन के अनुभव की अनुभूति है, निष्कर्ष है दुख-सुख दोनों के हैं। आईये उनकी कविताओं को समझे परखे-

कबीर दास जी ने मन के बारे में लिखा है —

“कबीर, यह तन खेत है, मन कर्म वचन किसान।

पाप पुण्य दो बीज है, क्या बोना है यह तू जान।।”

पाप पुण्य दो बीज है, क्या बोना है यह तो बोने वाला ही जाने। तो मालती जी ने अपने कविता संग्रह में बीज बोए कि उसकी पुण्य फसल से हम सब का जीवन सफल हो गया।

हम सब की जीवन यात्रा मन से ही बातें करती निकल जाती है। मालती जी अधिकांश कविताएं मन को केन्द्र बिन्दु बनाकर लिखी गई है जिसमें दर्द है, उदासी है, वैराग्य है, आध्यात्मिकता है पर दूसरी ओर उनकी कविताओं में बंसत भी छाया है। बंसत पर तो उनकी लगभग दस कविताएं है। बादाम का पेड़, कमलवत रहना, पावस ऋतु  और सखियाँ, धूप के रूप जैसी कविताएं उनके प्रकृति प्रेम को दर्शाती है।

प्रसिद्ध साहित्यकार राय. बेनेट ने कहा है – अपने मन का अनुकरण करो, अपने अंदर की आवाज सुनो और इस बात की परवाह छोड़ दो कि लोग क्या कहेंगे। मालती जी ने यही बात खुले मन और दिमाग से की और निष्कर्ष निकाला इन शब्दों में

      निराशा में रहता था मन

      काँटों में उलझा था मन

      माना अपनों को पराया

      ऐसा था ना समझ मन

      दुख ही तो जीवन का सुख था

      दर्द ही सावन का गीत था

      विरह तो पावन पर्व था।

      कहाँ समझ पाया बौराया मन

सब कुछ अच्छा करने के बाद भी अंत में कुछ नहीं मिलता तो पीड़ा घनी भूत होकर दर्द दर्दीले शब्दों में कह उठती है-

      बहुत अकेला सा है मन

      लिखना चाहता है कहानी अपनी पर लिखे कहां, अब कोई कागज कोरा भी नहीं है।

‘मेरा मन बहुत हारा’ में कवियत्री अपनी घुटन अभिव्यक्त करते हुये कहती है।

      जाने कितने सपने महलों के देखें

      सच में केवल खण्डहर मिले

यही दुख और वेदना उनकी विरह कविताओं में परिलक्षित होती है ।

मालती जी की लगभग नौ कविताएं बिरह का दुःख इतने स्वाभाविक तरीके से बतलाती है कि पाठक स्वयं उस दर्दीले दुख से जुड़ जाता है। बोझ है मन में, वो नहीं आए, बहुत अकेला अकेला सा है मन है, प्रिय तुम्हारे न आने से जैसे कविताओं के शब्द दुख के कांटों के समान मन को विदीर्ण कर देते है।

मन में चुभती यह बात,भावुक मन रोता है, मन योगी हो जाए, जिन्दगी के हिसाब से खुद को ढूंढ रहा हूँ, फूल भी शूल से चुभते है, जैसी कविता के अंश इसके उदाहरण है।

जब उदासी, अवहेलना के बादल छँट जाते है तो कवयित्री बंसत का स्वागत करने जुट जाती है।

”बंसत तुम आना, प्रेम संदेशा लेकर आना तुम्हारा पथ बुहारूंगी।

बसंत खुलकर आओ धरा पर।

मेरे सतरंगी दिन में वे कहती है-

मैं जीना चाहती हूँ आएंगे मेरे दिन, जब मेरे लिये उगेगा सूर्य और चाँद

अपनी कविताओं में उन्होंने स्त्री की जिन्दगी की उठा पटक को दक्षता से दर्शाया है।

औरत के अंदर की छटपटाहट तथा विवशता को बताते हुए उनकी कलम लिखती है।

मैं कहना चाहती हूँ सब बातें।

पर कह नहीं पाती।

बोझ है मन पर कविता में उनका स्त्री मन विकल होकर कह उठता है

      दर्द में डूबा तन हूँ आँसू से भीगा मन है।

      राह चलते चलते थका थका सा है मन

      ठहरे कहाँ, रास्ते में कोई घर भी नहीं।

तस्लीमा नसरीन ने किताब लिखी है औरत का कोई देख नहीं पर मालती जी तो एक कदम आगे बढ़कर कहती है कि राह चलते-चलते थका-थका सा है मन, ठहरे कहां रास्ते में कोई घर भी नहीं?

      काठ की गुड़िया में उनकी मुखर वाणी प्रस्फुटित हो जाती है इस रूप में।

      मैं जननी हूँ कई रूप है मेरे

      फिर भी क्या रह गई।

      मैं क्यों अस्तित्वहीन

      बनकर एक काठ की गुड़िया

पर दूसरे ही क्षण ने आत्म विश्वास से भर कह उठती है-

      एक बौनी लड़की

      छूना चाहती है आकाश

      सारी धरा के शूल समेट

      बिखेर देना चाहती है फूल

वे जानती हैं समस्त पाबंदियों, दबाव, यंत्रणाओं के बावजूद एक औरत के अंदर एक और औरत रहती है। कौन है वह? जाने इन कविता -पंक्तियों में –

      “कविता लिखना बयान है बची है उसके अंदर की औरत

      जो अपनी संपूर्ण भावनाओं के साथ एक इन्द्रधनुष

      मन के क्षितिज पर खींचती है “

जिन्दगी के बारे में सब के अपने-अपने अनुभव होते है पर सभी इस बात में एकमत है कि जिन्दगी एक पहेली है।

मालती जी जिन्दगी के बारे में तराशे गये अलफ़ाजों में कहती है-

“जिन्दगी बड़ी अजब पहेली

सुलझाओ तो उलझ जाती

छोड़ दो तो सुलझ जाती,

आगे की इन पंक्तियों के बेबाकीपन से हर कोई हैरान रह जाता है।

जुड़ जाए तो हीरे मोती, बिखर जाए तो कंकड़ मिट्टी।

आध्यात्मिकता से सरोबार इन शब्दों से जिन्दगी की हकीकत का पता चला जाता है।

जिन्दगी एक सपना,

सपना तो सपना है

बार-बार टूटेगा

फिर इस झूठे सपने से क्या प्यार?

क्षण भंगुर स्वप्नवत जिन्दगी की असलियत समझ वे बोल उठती है।

आओ जिन्दगी सँवारे

भूले दुःख दर्द सारे

कड़वाहट को बुहारे

सुखी रहने का मंत्र बताते हुए वे कहती है –‘रहो निसर्ग के साथ ‘

जिन्दगी का निचोड़ उनसे लिख जाता है – जीवन में एक अभाव दे गया कई भाव ।

अब बात करते है पुस्तक के दूसरे भाग की

मेरा ऐसा मानना है कि काव्य संग्रह का दूसरा भाग ‘भजमन’ प्रथम भाग नासमझ मन का ही निष्कर्ष है। जीवन भर के खट्टे मीठे अनुभवों के पश्चात ही मनुष्य को समझ आता है कि सच में मन नासमझ ही रहा। मालती जी के शब्दों में-

      दुःख ही तो जीवन का सुख था।

      दर्द ही सावन का गीत था।

      कहाँ समझ पाया बौराया मन

      बस अब एकमात्र रास्ता बचा है ईश भक्ति।

वे कहती हैं –

      प्रभु तू सच्चा पथ प्रदर्शक है।

      प्रभु तू ही सही माने में परमात्मा है, परम गुरू है।

आध्यात्मिकता का पुट लिये कविताएं “तुम और मैं ” “प्रभु का उपकार” “श्रीराम कृपा”, “जग को बनाने वाले “मन को ईश भक्ति से सरोबार कर देती है। ईश्वर ही बस एक है तमाम कविताएं बताती है कि ईश्वर सत्य है बाकी सब झूठ है आध्यात्मिक चिंतन, वैराग्य को समेटे जीवन दर्शन का प्राकट्य करती सभी कविताएं मनुष्य की पथ प्रदर्शिका का महती कार्य करती है।

मालती जी सभी कविताएं भाषा शैली के अलंकरण से हीन सीधी सादी भाषा वाली तथा भावमयी एवं संवेदनाओं से ओतप्रोत है, आशा करती हूँ कि वे अवश्य पाठकों को आकर्षित करेगी। चित्ताकर्षक आवरण वाले इस काव्य संग्रह हेतु उन्हें मैं दिल से बधाई देती हॅू।

समीक्षक – सुश्री मनोरमा पंत, भोपाल (मध्यप्रदेश) 

 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ ‘गौरैया’… श्री सूबेदार पांडेय (भावानुवाद) – ‘Sparrow…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Subedar Pandey’s Hindi poem “~ गौरैया ~.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री सुबेदार पांडेय  “आत्मानंद” जी की मूल रचना

? गौरैया दिवस पर विशेष – गौरैया – ??

मेरे घर के मुंडेर पर

   गौरैया एक रहती थी

      अपनी भाषा मे रोज़ सवेरे

          मुझसे वो कुछ कहती थी

 

चीं चीं चूं चूं करती वो

   रोज़ माँगती दाना-पानी

      गौरैया को देख मुझे

           आती बचपन की याद सुहानी…

 

नील गगन से झुंडों में

  वो आती थी पंख पसारे

     कभी फुदकती आँगन आँगन,

          कभी फुदकती द्वारे द्वारे

 

उनका रोज़ देख फुदकना,

   मुझको देता  सुकूँ रूहानी

      गौरैया को देख मुझे

        आती बचपन की याद सुहानी…

 

चावल के दाने अपनी चोंचों में

   बीन बीन ले जाती थी

      बैठ घोसलें के भीतर वो

         बच्चों की भूख मिटाती थी

    

सुनते ही चिड़िया की आहट

    बच्चे खुशियों से चिल्लाते थे

       माँ की ममता, दाने पाकर

          बच्चे निहाल हो जाते थे

       

गौरैया का निश्छल प्रेम देख

     आँखे मेरी भर आती थी

        जाने अनजाने माँ की मूरत

           आँखों मे मेरी, समाती थी

             

माँ की यादों ने  उस दिन

    खूब मुझे रुलाया था।

       उस अबोध नन्ही चिड़िया ने

            मुझे प्रेम-पाठ पढ़ाया था

    

नहीं प्रेम की कोई कीमत

       और नहीं कुछ पाना है

         सब कुछ अपना लुटा लुटाकर

              इस दुनिया से जाना है

 

प्रेम में जीना, प्रेम में मरना

   प्रेम में ही मिट जाना है,

      ढाई आखर प्रेम का मतलब

         मैंने गौरैया से ही जाना है!

© सुबेदार पांडेय  “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

?~ Sparrow…~ ??

At the parapet of my house

There used to live a sparrow

Everyday in morning, she’d tell

me something in her language

 

Chirping ‘chee-chee’ ‘choo-choo’

would she demand food grains

Looking at the lovely sparrow

I’d remember my  childhood…

 

With her flock, she would

descend from the blue sky

Sometimes jumping in patio

Sometimes hopping in yard

 

Seeing her flitter every day

Would give me spiritual bliss

Looking at the lovely sparrow

I’d remember my childhood…

 

Picking rice grains in her beak

She would take them away

Feeding her chics in the nest

Erasing their insatiable hunger

 

The chics would rejoice always

Waiting eagerly for mother’s arrival

With food and her endearment 

Chics would exhilarate madly…

 

Seeing the sparrow’s selfless love

Would make my eyes moist

Unknowingly my mother’s idol

would emerge in glistened eyes

 

Mother’s memories that day

Made me cry inconsolably

That innocent little bird

Taught me the lesson of love

 

Love is priceless, says adage

There’s more to gain; Coz

Everything is to be left behind

While going from this world…

 

Live in love, die in love

Fade in love, is all I learnt

True meaning of selfless love

I learnt from the sparrow only!

~Pravin

English translation: Pravin Raghuvanshi

Original Hindi: Subedar Pandey “Atmanand”

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ गुढी उभारु या ☆ सौ. विद्या वसंत पराडकर ☆

सौ. विद्या वसंत पराडकर

? कवितेचा उत्सव ?

🌷 गुढी उभारु या 🌷 सौ. विद्या वसंत पराडकर ☆

नव‌ वर्षाच्या प्रारंभी गुढी उभारु या

चैत्र शुद्ध प्रतिपदेस गुढी उभारु  या

श्रीराम चंद्राचा देश आमचा

विजयश्रीचे प्रतीक म्हणूनी गुढी उभारु या 🍀

 

गुढी उभारु आनंदाची

गुढी उभारु सौजन्याची

गुढी उभारु नव संकल्पाची

नव राष्ट्राच्या उत्कर्षाची  🍀

 

सृजनतेला वाव देवुनी

ध्येयाचे कंकण बांधुनी

प्रेमभाव मनी धरुनी

समानतेची गुढी उभारु या🍀

 

स्वराज्याचे रक्षण करण्या

देशहिताचे कार्य साधूनी

भ्रष्टाचाराचा त्याग करुनी

 सदाचार करता गुढी उभारु या🍀

 

विज्ञान व अध्यात्म संगम करुनी

माणूसकीची कास धरुनी

निरपेक्ष धर्म‌ पाळूनी

एकात्मतेची गुढी उभारु या 🍀

 

प्रत्यक्ष कृतीचा अवलंब करुनी

मानव्याची निर्मिती करुनी

अंहकाराचे उच्चाटन करुनी

विशाल दृष्टीची गुढी उभारु या 🍀

© सौ विद्या वसंत पराडकर

वारजे पुणे.

ई मेल- [email protected]

मो.नंबर – 91-9225337330 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 174 ☆ माझ्या वर्गातल्या मुली… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 174 ?

💥 माझ्या वर्गातल्या मुली… 💥 सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

किती वर्षांनी भेटल्या

माझ्या वर्गातल्या मुली

आणि मनाची कवाडे

केली सर्वांनीच खुली !

वाट शाळेची सुंदर

आणि हातामधे हात

सरस्वतीची प्रार्थना

होई एकाच सुरात

गणवेश नील – श्वेत

खूप आवडे मनास

कुणी हुषार, अभ्यासू

कुणा वेगळाच ध्यास

एक मुलगी निर्मल

नेहमीच नंबरात

छान करियर झाले

टेलिफोन ऑफिसात

संजू,मंगलची मैत्री

होती खासच वर्गात

अशा मैत्र गाठी सखे

देव बांधती स्वर्गात

लता, हर्षा, सरसही

होत्या माझ्याच वर्गात

अल्प स्वल्प साथ त्यांची

खूप राहिली लक्षात

पुष्पा रेखितसे हाती

मेंदी सुबक, सुंदर

जयू अलिप्त,अबोल

साथ परी निरंतर

मधुबाला, उज्वलाही

सख्या सोबतीणी छान

उद्योजिका म्हणूनही

मोठा मिळविला मान

शशी – शारदा असती

दोन मैत्रीणी जीवाच्या

गुणवंत, कलावंत…

वलयांकित नावाच्या

मुग्ध माधुरी, फैमिदा

होत्या दोघीही हुशार

आठवणीच्या कुपीत

त्यांचे निखळ विचार

अशा वर्गातील मुली

अवखळ, आनंदीत

जिने तिने जपलेले

जिचे तिचे हो संचित

अशा आम्ही सर्वजणी

एका बागेतल्या कळ्या

जेव्हा भेटलो नव्याने

सुखे नाचलो सगळ्या

© प्रभा सोनवणे

१६ मार्च २०२३

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares
image_print