हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 64 ☆ रेगिस्तान ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  आपकी एक भावप्रवण कविता “रेगिस्तान। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 64– साहित्य निकुंज ☆

☆ रेगिस्तान ☆

मन के रेगिस्तान में

खिलते हैं जब फूल

मन बावरा हो जाता

उडाता है ख़ुशी से धूल ।

बनने लगा सपनों

का महल ।

करना हैं उसे ख़ुशी

से पहल।

रेगिस्तान बरसों से प्यासा रहा।

अब उसकी तड़प को

जाना है प्रकृति ने

बरसों से सुलगी आग की

अब बुझी है प्यास।

कहीं दूर से आती है

जब

पशु पक्षियों की आवाज

मन मयूरी होता बजने लगते

मन के हर साज।

प्यार की कसक

आ ही जाती है।

चाहे इंसान

हो या रेगिस्तान ।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 56 ☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

(श्री संतोष नेमा “संतोष” के काव्य संग्रह “सपनो के गांव में” का आज 16 अक्टूबर 2020 को ऑनलाइन विमोचन समारोह शाम 7 बजे  साहित्यिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था “पाथेय “ एवं “मंथन”, जबलपुर के सौजन्य से  आयोजित किया गया है।

श्री नेमा जी को ई- अभिव्यक्ति परिवार की ओर से हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 56☆

☆ संतोष के दोहे ☆

सहनशीलता से मिलें,खुद अपने अधिकार

रखें शारदा मातु पर ,श्रद्धा अरु विश्वास

 

कर्तव्यों को भूल कर,अधिकारों की बात

यही आजकल हो रहा,देकर खुद को मात

 

एक दूसरे पर नहीं, रहा विमल विश्वास

आज समय कहता यही, रखें न कोई आस

 

जयति जयति माँ शारदा, सादर करहुं प्रणाम

एक आस विस्वास तुम, तुमहिं संवारो काम

 

कर्म वचन मन से सदा, करिये पूजा पाठ

उत्सुकता नवरात्रि की, बढ़ा रही है ठाठ

 

सहनशीलता अब कहाँ, धीरज धरे न कोय

वैभव की यह लालसा, सबके अंदर होय

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ☆ सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ सेहत, सुख ,सुकून और खुशहाली का महात्मा गांधी मार्ग ☆ श्री शिखर चन्द जैन

श्री शिखर चन्द जैन

हम ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह प्रतिदिन “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत एक रचना पाठकों से साझा कर रहे हैं। हमारा आग्रह  है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। हमने सहयोगी  “साहित्यम समूह” में “एकता शक्ति आयोजन” में प्राप्त चुनिंदा रचनाओं से इस अभियान को प्रारम्भ कर दिया  हैं।  आज प्रस्तुत है श्री शिखर चन्द जैन जी की एक प्रस्तुति  “सेहत, सुख ,सुकून और खुशहाली का महात्मा गांधी मार्ग”

☆  सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ सेहत, सुख ,सुकून और खुशहाली का महात्मा गांधी मार्ग ☆

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बहुआयामी व्यक्तित्व, सादगी पूर्ण रहन-सहन और उच्च व सुलझे हुए विचारों ने ही उन्हें भारतीय जनमानस का सच्चा नायक बना दिया ।उनकी जीवनशैली व विचारों को ऑब्जर्व करके व उन्हें अपनाकर जीवन को सुखमय,सुकूनपरक,स्वस्थ और खुशहाल बनाया जा सकता है ।उनकी जीवनशैली और समय-समय पर कही गई बातों को देखें तो हमें ये सीख मिलती है—-

मिनिमलिस्ट बनें—–आप कभी दिल्ली स्थित राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय में जाएंगे तो महात्मा गांधी की जिंदगी भर की भौतिक संपत्ति के रूप में एक सूटकेस देखेंगे जिसमें उनकी निजी जरूरत की कुछ चीजें मिलेंगी ।ऐसा नहीं है कि वे चाहते तो ज्यादा चीजें हासिल नहीं कर सकते थे या इकट्ठा नहीं कर सकते थे लेकिन वे जरूरत से ज्यादा चीजें इकट्ठा करने या उनका इस्तेमाल करने के सख्त खिलाफ थे ।गांधीजी अपरिग्रह के सिद्धांत पर चलते थे ।आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि आज की तारीख में चिंता ,अवसाद और अशांति की सबसे बड़ी वजह है ज्यादा से ज्यादा भौतिक सुखों को हासिल करने की अंधी दौड़ ।विज्ञापन जगत और कारपोरेट दुनिया ने लोगों पर अपना प्रोडक्ट थोपने के लिए उनकी जरूरतों को बढ़ा दिया है ।अगर हम अपनी वास्तविक आवश्यकताओं को समझ जाएं और अनावश्यक चीजों हासिल करने की जिद छोड़ दें तो हमारी आधी चिंताएं और बेचैनियाँ तो यूं ही दूर हो जाएंगी।

खानपान का संतुलन और वाकिंग जरूरी —- महात्मा गांधी संतुलित और पूरी तरह प्राकृतिक व शाकाहारी भोजन के पैरोकार थे। अपनी 79 साल की उम्र में उन्होंने 29 बार में कुल 154 दिन अनशन किया। 1921 में उन्होंने व्रत लिया की आजादी मिलने तक हर सोमवार उपवास करूंगा। यानी कुल 1341 दिनों तक उन्होंने उपवास किया ।गांधीजी अपनी डाइट को लेकर तरह-तरह के प्रयोग करते थे ।यही उनकी फिटनेस का राज था। यंग इंडिया और हरिजन समाचार पत्र में उन्होंने अपने प्रयोगों के बारे में भी लिखा है। वह हमेशा साधारण भोजन करते थे ।उनका कहना था कि भोजन सिर्फ भूख शांत करने का साधन नहीं बल्कि मानव चेतना को आकार देने वाला आवश्यक घटक है। उन्होंने शाकाहार के नैतिक आधार पर जोर दिया और स्वास्थ्य के लिए फलों व जड़ी बूटियों का सेवन करने की सलाह दी ।ब्राउन राइस, दाल और स्थानीय सब्जियां उनका पसंदीदा आहार थी। वे बकरी के दूध का सेवन करते थे ।रिफाइंड चीनी की बजाय में गुड़ खाना पसंद करते थे ।चोकर सहित अनाज की रोटी, बाजरा आदि उनके फेवरेट थे।से अपने जीवन में 40 साल तक वे रोजाना 22000 कदम पैदल चले ।संभवत यही उनके माइंड और बॉडी की फिटनेस का राज था ।”इंडियन जनरल ऑफ मेडिकल रिसर्च” में प्रकाशित रिपोर्ट में गांधीजी को सेल्फ मोटिवेटेड वैलनेस गुरु बताया गया है ।

जरा आहिस्ते जीना सीखें —- आज जिसे देखिये वही अनावश्यक हड़बड़ी में है ।इसके कारण ही ज्यदातर लोग बेचैन और परेशान हैं। महात्मा गांधी कहते थे कि जीवन में स्पीड के अलावा भी बहुत कुछ महत्वपूर्ण है ।वे कहते थे कि बाहर की ओर दौड़ लगाने से ज्यादा जरूरी है अपने अंदर की यात्रा। जब तक हम अपने अंतर्मन को नहीं समझेंगे तब तक अपनी पूरी क्षमता के साथ कोई काम नहीं कर पाएंगे। उनके इस जीवन मंत्र में सफलता का सबसे बड़ा सूत्र छिपा हुआ है ।क्योंकि किसी भी कार्य में सफलता के लिए उसे पूरे मन से धैर्यपूर्वक एवं पूरी क्षमता से करना जरूरी है। सक्सेस गुरु और मोटिवेशनल स्पीकर भी हड़बड़ी के काम में गड़बड़ी के प्रति सचेत करते रहे हैं।

दुनिया से पहले खुद को बदलें—- आपने गौर किया होगा कि वर्तमान दौर में हमारी बेचैनी और नाराजगी की सबसे बड़ी वजह है दुनिया से शिकायत। हमें इस बात से चिढ हो जाती है कि लोगों का व्यवहार और आचरण हमारे अनुकूल नहीं ।ऐसे में महात्मा गांधी का यह कथन बहुत उपयोगी और सार्थक है कि आप दुनिया में जो बदलाव लाना चाहते हैं वह सबसे पहले खुद में लाएं ।अगर हम बदल जाएंगे तो दुनिया अपने आप बदल जाएगी ।अगर हम इस कथन को आत्मसात कर ले तो लोगों के प्रति हमारी शिकायत खुद-ब-खुद दूर हो जाएगी ।

हिंसा के पथ से दूर रहें — महात्मा गांधी ने कहा था कि “आंख के बदले आंख” के सिद्धांत पर चले तो एक दिन यह दुनिया अंधी हो जाएगी ।उन्हें हिंसा से सख्त से सख्त नफरत थी। अहिंसा और सत्य पर उन्होंने जीवन भर लोगों को सीख दी ।गांधीजी कहते थे कि धार्मिक ,सांस्कृतिक व राजनीतिक विचारों में अंतर हो सकते हैं लेकिन इसे हिंसा का आधार बनाना बिल्कुल गलत है ।हमें वैचारिक भिन्नता का सम्मान करना चाहिए ।आज के युग में जब हर कोई धार्मिक ,सांस्कृतिक या राजनीतिक मतभेद के कारण एक-दूसरे के खून का प्यासा हो रहा है ऐसे में दुनिया को सुकून और चैन के लिए अहिंसा के पथ पर चलना जरूरी है।।।

© श्री शिखर चंद जैन

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचना/Information ☆ निवेदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ निवेदन

साहित्यिक आणि रसिक वाचकहो,

दि.15/08/20  पासून आम्ही ई-अभिव्यक्ती मराठी आवृत्ती नवीन स्वरूपात प्रकाशित करीत आहोत. यामध्ये साहित्याच्या  विविध प्रकारांचा समावेश करून अंक वैविध्यपूर्ण बनवण्याचा आमचा प्रयत्न आहे.

एक वाचक म्हणून आपल्याला अंकाचे स्वरूप कसे वाटते हे आम्ही जाणून घेऊ इच्छितो. तरी आपल्या प्रतिक्रिया, सूचना, अपेक्षा मोजक्या शब्दात आम्हाला कळवाव्यात, ही विनंती.

प्रतिक्रिया विशिष्ट लेख, कविता किंवा एकंदर अंकाबद्दल असाव्यात.आपले नाव व फोन नंबर चा उल्लेखही करावा, ही विनंती.

 

आभार 

सम्पादक मंडळ (मराठी) 

श्रीमती उज्ज्वला केळकर 

Email- [email protected] WhatsApp – 9403310170

श्री सुहास रघुनाथ पंडित 

Email –  [email protected]WhatsApp – 94212254910

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ अधिक मास ☆ सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

 ☆ कवितेचा उत्सव ☆ अधिक मास ☆ सौ.ज्योत्स्ना तानवडे ☆ 

चांद्रवर्ष- सौरवर्ष मापन

करते मराठी रीत खास

तीन वर्षातून मेळ घाली

तेहेतिसावा अधिक मास !!

 

पुरुषोत्तम,धोंडा,अधिक,

मलमास अशी नावे यास

श्रीविष्णूंचे जप-जाप्य,पोथी

आराधना देई फल खास!!

 

पुरुषोत्तम मुरलीधर

स्वामी स्मरावा महिनाभर

करा मनापासुनी पूजन

ठेवी कृपा हस्त शिरावर !!

 

अन्नदान,प्रिय वस्तूदान

लोभ,मोहास जिंकून घेणे

मौनव्रत शिकवी मनाला

योग्य अचूक कैसे बोलणे !!

 

ज्ञानविज्ञान अध्यात्माची ही

सांगड घातली सुयोग्य छान

सत्कर्म, दान, परमार्थाने

देव कृपेचे जोडावे धन !!

 

© सौ. ज्योत्स्ना तानवडे

वारजे, पुणे.५८

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ वेळ झाली भर माध्यान्ह ☆ स्व आत्माराम रावजी देशपांडे (कवी  अनिल)  

स्व आत्माराम रावजी देशपांडे (कवी अनिल) 

☆ कवितेचा उत्सव ☆ वेळ झाली भर माध्यान्ह ☆ स्व आत्माराम रावजी देशपांडे (कवी  अनिल)  ☆ 

(या कवितेचे काव्यानंद मध्ये रसग्रहण.. सौ ज्योती विलास जोशी)

वेळ झाली भर माध्यान्ह माथ्यावर तळपे ऊन

नको जाऊ कोमेजून माझ्या प्रीतिच्या फुला

 

तप्त दिशा झाल्या चारी भाजत असे सृष्टी सारी

कसा तरी जीव धरी माझ्या प्रीतीच्या फुला

 

वाहतात वारे जळते पोळतात फुलत्या तनु ते

चित्त इथे मम हळहळते माझ्या प्रीतीच्या फुला

 

माझी छाया माझ्याखाली तुजसाठी आसावली

कशी करू तुज सावली माझ्या प्रीतीच्या फुला

 

दाटे दोन्ही डोळा पाणी आटे नयना तच सुकुनी

कसे घालु तुज आणुनी माझ्या प्रीतीच्या फुला

 

मृगजळाच्या तरंगात नभाच्या निळ्या रंगात

चल रंगू सारंगात माझ्या प्रीतीच्या फुला

 

गायिका: उषा मंगेशकर

कवी : स्व आत्माराम रावजी देशपांडे (कवी अनिल) 

संगीतकार :यशवंत देव

(चित्र साभार विकिपीडिया)

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ शेखर साहित्य # 10 – खरंतर जाऊच नये ☆ श्री शेखर किसनराव पालखे

श्री शेखर किसनराव पालखे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – शेखर साहित्य # 10 ☆

☆ खरंतर जाऊच नये ☆

 

कोणत्याही कवितेच्या वाटेला

पडू नये तिच्या उगमाच्या फंदात

उसवून टाकेल ती तुम्हाला

तिच्या जन्मदात्यासकट

ते जे काही आहे ते रहावं गुपितच

जे असू शकतं अक्षरशः काहीही

अगदी एखादं जन्मानंदाचं

परम निधान किंवा

मरणजाणिवेचा अथांग खोल

असा डोह देखील…

होऊ नये पंचनामा त्याच्या भावनांचा-

भोगू द्यावं तिचं प्रवाहीपण

त्याचं त्याला एकट्यानं…

आपण व्हावं मूक साक्षीदार

किनाऱ्यावरूनच…

हो-उगाच बुडून जायची भीती नको-

अन जळत्या जिवाचा

चटका देखील नको…

सामाजिक विलगीकरण-

चांगली कल्पना आहे ही…

फक्त येऊ नये कोडगेपण सवयीनं-

दुरूनच का होईना ठेवावी

त्याच्या जाणिवांची जाणीव

एवढसंच केलं तरी

जगतील दोघेही आनंदानं

शेवटापर्यन्त–

त्यांच्या आणि आपल्याही.

 

© शेखर किसनराव पालखे 

पुणे

09/06/20

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ जगन्माता ☆ सौ. गौरी सुभाष गाडेकर

सौ. गौरी सुभाष गाडेकर

 ☆ जीवनरंग ☆ जगन्माता ☆ सौ. गौरी सुभाष गाडेकर ☆ 

“मॅडम अनाथ मुलांच्या आई झाल्या.”

“ज्यांना कोणी वाली नव्हता, अशा मुलांवर यांनी मायेची पाखर घातली.”

“पोरक्या मुलांचा आत्मविश्वास जागा करून त्यांना सन्मानाने उभं राहायला साहाय्य केलं.”

“आपलं उभं आयुष्य यांनी या व्रताला समर्पित केलं.”

“खरं तर हा जगन्माता  पुरस्कार मॅडमना यापूर्वीच द्यायला  हवा होता.”

जगन्माता पुरस्कारप्रदान सोहळ्यातलं कौतुक अजूनही तिच्या कानात घुमत होतं. इतक्या   वर्षांच्या परिश्रमांचं चीज झालं होतं.

घराची बेल वाजवताच मुलाने येऊन दार उघडलं आणि पाठ फिरवून तो तरातरा चालायलाच लागला.

‘विसरला असेल समारंभाचं,’ असं वाटून ती त्याच्या मागोमाग गेली.

“जगन्माता म्हणे !पोटच्या पोराला तर वाऱ्यावरच  सोडलं होतं.  अनाथासारखा वाढलो मी,” तो बायकोला सांगत होता.

 

© सौ. गौरी सुभाष गाडेकर

फोन नं. 9820206306.

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ पु. ल.देशपांडे ☆ डाॅ.मेधा फणसळकर

डॉ. मेधा फणसळकर

☆ विविधा ☆  पु. ल.देशपांडे ☆ डाॅ. मेधा फणसळकर ☆

स्व पुरुषोत्तम लक्ष्मण देशपांडे (पु. ल. देशपांडे)

“क्रियापदाचे मोठेपण त्याच्या कर्त्याने केलेले कर्म किती मोठे आहे त्याच्यावर अवलंबून असते.”

हे वाक्य ज्या कर्तृत्ववान कर्त्याने उच्चारले त्याचे स्वतःचेच कर्तृत्व इतके महान आहे की अवघ्या काही मिनिटात त्याच्यातील व्यक्तीचीच काय पण वल्लीचाही परिचय करुन देणे म्हणजे ‛नस्ती उठाठेव’ करण्यासारखे आहे.

पु. ल., पी.एल्. किंवा भाई या संबोधनाने जी व्यक्ती ओळखली जाते ती म्हणजे महाराष्ट्राचे कोट्याधीश ‛पु. ल. देशपांडे.’! त्यांची जन्मशताब्दी या वर्षात आपण साजरी करत आहोत.

कोट्याधीश या उपाधीबद्दल एकदा पुलना विचारले असता ते म्हणाले,“विनोद हा जीवनाकडे बघण्याचा दृष्टिकोन आहे. माझ्या बाबतीत म्हणाल तर मला अत्यंत गंभीर प्रसंगी देखील नेमकी एखादी विसंगती दिसते आणि विनोदनिर्मिती होते.” याच विसंगतीतून त्यांनी विनोदी लेखन, नाटके, चित्रपटांसाठी पटकथा – संवादलेखन अशा विविध साहित्यप्रकारांची ‛पुरचुंडी’ आपल्या गाठीशी बांधली.

अंमलदार, तुझे आहे तुजपाशी, सुंदर मी होणार, ती फुलराणी, विठ्ठल तो आला आला सारखी नाटके, अपूर्वाई-पूर्वरंग सारखी प्रवासवर्णने, असा मी असामी, बटाट्याची चाळ, हासवणूक, मराठी वाङ्मयाचा ( गाळीव) इतिहास अशी ‛अघळपघळ’ लेखननिर्मिती केली.

१९५६-५७ या कालखंडात त्यांनी नभोवाणी- आकाशवाणीसाठीसुद्धा काम केले. १९७२ मध्ये दूरदर्शनमध्ये नोकरी केली.

आता ‛उरलंसुरलं’ क्षेत्र म्हणजे संगीत! त्याची तर भाईंना आधीच उत्तम जाण आणि ज्ञान असल्याने संगीतकार म्हणूनही त्यांनी अनेक चित्रपटगीतांना संगीत दिले . ‛देवबाप्पा’ चित्रपटातील ‘ नाच रे मोरा’ हे गाणे आजही अनेकांच्या बालपणातील स्मृती चाळवते. ‘गुळाचा गणपती’ या चित्रपटाचे तर भाई सबकुछ होते.कथा-पटकथा-संवाद-संगीत आणि अभिनयसुद्धा!

आयुष्यातील विसंगतीची ‛खिल्ली’ उडवतानाच समाजातील विसंगती नष्ट करण्याचा त्यांनी अंशतः प्रयत्न केला.सक्रिय शक्य नसले तरी अनिल अवचट यांच्या ‛ मुक्तांगण’ व वेश्यांच्या मुलांचे पुनर्वसन करणाऱ्या ‛निहार’ या संस्थेला भरभरुन आर्थिक सहकार्य दिले. हे ‛गणगोत’ मात्र त्यांनी काळजापासून जपले. म्हणूनच मैत्रीची व्याख्या करताना ते म्हणतात-

“ रोज आठवण यावी असं काही नाही

रोज भेट व्हावी असंही काही नाही

पण मी तुला विसरणार नाही

ही झाली खात्री

आणि तुला याची जाणीव असणं ही झाली मैत्री

शेवटी काय हो,

भेटी झाल्या नाहीत तरी

गाठी बसणं महत्वाचं !”

हीच गाठ भाई तुम्ही आम्हा रसिकजनांच्या हृदयात इतकी घट्ट मारली आहेत की ‛ काय वाट्टेल ते होईल’ पण ‘पु.ल.- एक साठवण’ ची आठवण पिढ्यान् पिढ्या कायम राहील.

 

©  डाॅ. मेधा फणसळकर

9423019961

≈  ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ नमस्कार मंडळी ☆ श्रीमती माया सुरेश महाजन

श्रीमती माया सुरेश महाजन

☆ मनमंजुषेतून ☆ नमस्कार मंडळी ☆ श्रीमती माया सुरेश महाजन 

वाल्याकोळ्याची गोष्ट सर्वांनाच माहिती आहे. त्याने अयोग्य जीवनप्रणाली अंगिकारिली होती. परंतु जेव्हा त्याला त्याची जाणीव झाली तेव्हां त्याने प्रायश्चित्त घेतले. परिणामतः वाल्याचा एक महान ॠषि वाल्मिकी झाला. ही गोष्ट परत-परत ऐकताना एका गोष्टीची मला तीव्रतेने जाणीव झाली.   ‘प्रायश्चित्त’! हे एव्हडे सोपे होते का? कि पाप करायचे-प्रायश्चित्त घ्यायचे आणि परत पुण्यवान् व्हायचे!नाही मंडळी!यात खरी विचार करण्याची आणि घेण्याची गोष्ट आहे ती म्हणजे- ‘चुकीची जाणीव होणे- पश्चात्ताप होणे आणि प्रायश्चित्त घेणे; म्हणजेच सुधारणा करणे. चुकीची पुनरावृत्ती न होऊ देणे-हेच खरे प्रायश्चित्त आहे.

आज या कोरोनाच्या धांदलीत ही गोष्ट आणि त्यातील स्व-सुधारणेची गोष्ट परत-परत डोके वर काढत आहे. तुम्ही म्हणाल काय संबंध? तर विचार करता असे लक्षात येते की चूक-जाणीव- पश्चात्ताप-प्रायश्चित्त -ही साखळीच माणसाला सुधारण्याच्या मार्गावर नेते आणि त्यायोगे प्रगती साधली जाते.

कोरोना भारतात प्रवेशला ही काही आपली चूक नाही.  परंतु त्याचा फैलाव इतक्या वेगाने झाला , होतो आहे ही मात्र नक्कीच आपली चूक आहे. कारण आपल्यात स्वयंशिस्त, स्व-अनुशासन या गोष्टींची कमालीची कमतरता आहे. साध्या-साध्या गोष्टींतूनही ही कमतरता जाणवते. फक्त प्रशासनाला दोष देऊन काय ऊपयोग? प्रशासनाने काळजीपूर्वक आखलेल्या योजना कागदावर किती छान वाटतात !पण मग त्यांचे अपेक्षित परिणाम का दिसत नाहीत? तर ऊत्तर परत तेच आहे-स्वयंशिस्त नाही. शिस्त आपण तर पाळायलाच हवी, परंतु इतरांनाही पाळायला लावायला हवी.  आज तर ‘ माझ्यापुरतेच ‘ पहाण्याचा अलिखीत नियमच झाला आहे जणूं!वेगाने पसरणार्या या महामारीचा आवेग एकट्या-दुकट्याला आवरणारा नाही. समूह-संसर्गाला समूहशक्तिच आटोक्यात आणु शकते. विलगीकरण हाच जर उपाय आहे तर तो तितक्याच प्रखरतेने पाळायलाच हवा. विलगीकरण हे आपले प्रायश्चित्त आहे. ते जितक्या काटेकोरपणे पाळले जाईल तितक्या लवकर वाल्याकोळ्याचे पाप नाहीसे होईल. प्रायश्चित्तातील कठोरताच शांत जीवनाचे  फळ देईल.

म्हणूनच स्वयंशिस्तीचा झेंडा फडकवायला हवा.  स्वयंशिस्त हीकाही आताचीच गरज आहे असेही नाही. सदा  सर्वदा सदाचारी समाज घडविण्याची ती एक गुरूकिल्ली आहे किंवा व्यवहारी भाषेत बोलायचे यर असे म्हणता येइल की काही दिल्याशिवाय काही मिळत नसते. म्हणूनच स्वयंशिस्त पाळा, म्हणजेच स्व-संतुलन राखा तरच प्रगती होइल. प्रत्येक गोष्ट जशी मला हवी तशीच ती दुसर्यालाही हवी हे ध्यानात घेतले पाहिजे. माझे सुख मिळवण्यासाठी मी इतरांच्या सुखाला पायदळी तुडवू नये.  ‘स्व’ ला अनुशासित ठेवा तरच निरोगी , सभ्य, स्वच्छ, सदाचारी समाज निर्माण होईल.

©  सुश्री माया सुरेश महाजन 

मो.-९८५०५६६४४२

 ≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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