डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  आपकी एक भावप्रवण कविता “रेगिस्तान। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 64– साहित्य निकुंज ☆

☆ रेगिस्तान ☆

मन के रेगिस्तान में

खिलते हैं जब फूल

मन बावरा हो जाता

उडाता है ख़ुशी से धूल ।

बनने लगा सपनों

का महल ।

करना हैं उसे ख़ुशी

से पहल।

रेगिस्तान बरसों से प्यासा रहा।

अब उसकी तड़प को

जाना है प्रकृति ने

बरसों से सुलगी आग की

अब बुझी है प्यास।

कहीं दूर से आती है

जब

पशु पक्षियों की आवाज

मन मयूरी होता बजने लगते

मन के हर साज।

प्यार की कसक

आ ही जाती है।

चाहे इंसान

हो या रेगिस्तान ।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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