श्री शिखर चन्द जैन

हम ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह प्रतिदिन “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत एक रचना पाठकों से साझा कर रहे हैं। हमारा आग्रह  है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। हमने सहयोगी  “साहित्यम समूह” में “एकता शक्ति आयोजन” में प्राप्त चुनिंदा रचनाओं से इस अभियान को प्रारम्भ कर दिया  हैं।  आज प्रस्तुत है श्री शिखर चन्द जैन जी की एक प्रस्तुति  “सेहत, सुख ,सुकून और खुशहाली का महात्मा गांधी मार्ग”

☆  सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ सेहत, सुख ,सुकून और खुशहाली का महात्मा गांधी मार्ग ☆

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बहुआयामी व्यक्तित्व, सादगी पूर्ण रहन-सहन और उच्च व सुलझे हुए विचारों ने ही उन्हें भारतीय जनमानस का सच्चा नायक बना दिया ।उनकी जीवनशैली व विचारों को ऑब्जर्व करके व उन्हें अपनाकर जीवन को सुखमय,सुकूनपरक,स्वस्थ और खुशहाल बनाया जा सकता है ।उनकी जीवनशैली और समय-समय पर कही गई बातों को देखें तो हमें ये सीख मिलती है—-

मिनिमलिस्ट बनें—–आप कभी दिल्ली स्थित राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय में जाएंगे तो महात्मा गांधी की जिंदगी भर की भौतिक संपत्ति के रूप में एक सूटकेस देखेंगे जिसमें उनकी निजी जरूरत की कुछ चीजें मिलेंगी ।ऐसा नहीं है कि वे चाहते तो ज्यादा चीजें हासिल नहीं कर सकते थे या इकट्ठा नहीं कर सकते थे लेकिन वे जरूरत से ज्यादा चीजें इकट्ठा करने या उनका इस्तेमाल करने के सख्त खिलाफ थे ।गांधीजी अपरिग्रह के सिद्धांत पर चलते थे ।आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि आज की तारीख में चिंता ,अवसाद और अशांति की सबसे बड़ी वजह है ज्यादा से ज्यादा भौतिक सुखों को हासिल करने की अंधी दौड़ ।विज्ञापन जगत और कारपोरेट दुनिया ने लोगों पर अपना प्रोडक्ट थोपने के लिए उनकी जरूरतों को बढ़ा दिया है ।अगर हम अपनी वास्तविक आवश्यकताओं को समझ जाएं और अनावश्यक चीजों हासिल करने की जिद छोड़ दें तो हमारी आधी चिंताएं और बेचैनियाँ तो यूं ही दूर हो जाएंगी।

खानपान का संतुलन और वाकिंग जरूरी —- महात्मा गांधी संतुलित और पूरी तरह प्राकृतिक व शाकाहारी भोजन के पैरोकार थे। अपनी 79 साल की उम्र में उन्होंने 29 बार में कुल 154 दिन अनशन किया। 1921 में उन्होंने व्रत लिया की आजादी मिलने तक हर सोमवार उपवास करूंगा। यानी कुल 1341 दिनों तक उन्होंने उपवास किया ।गांधीजी अपनी डाइट को लेकर तरह-तरह के प्रयोग करते थे ।यही उनकी फिटनेस का राज था। यंग इंडिया और हरिजन समाचार पत्र में उन्होंने अपने प्रयोगों के बारे में भी लिखा है। वह हमेशा साधारण भोजन करते थे ।उनका कहना था कि भोजन सिर्फ भूख शांत करने का साधन नहीं बल्कि मानव चेतना को आकार देने वाला आवश्यक घटक है। उन्होंने शाकाहार के नैतिक आधार पर जोर दिया और स्वास्थ्य के लिए फलों व जड़ी बूटियों का सेवन करने की सलाह दी ।ब्राउन राइस, दाल और स्थानीय सब्जियां उनका पसंदीदा आहार थी। वे बकरी के दूध का सेवन करते थे ।रिफाइंड चीनी की बजाय में गुड़ खाना पसंद करते थे ।चोकर सहित अनाज की रोटी, बाजरा आदि उनके फेवरेट थे।से अपने जीवन में 40 साल तक वे रोजाना 22000 कदम पैदल चले ।संभवत यही उनके माइंड और बॉडी की फिटनेस का राज था ।”इंडियन जनरल ऑफ मेडिकल रिसर्च” में प्रकाशित रिपोर्ट में गांधीजी को सेल्फ मोटिवेटेड वैलनेस गुरु बताया गया है ।

जरा आहिस्ते जीना सीखें —- आज जिसे देखिये वही अनावश्यक हड़बड़ी में है ।इसके कारण ही ज्यदातर लोग बेचैन और परेशान हैं। महात्मा गांधी कहते थे कि जीवन में स्पीड के अलावा भी बहुत कुछ महत्वपूर्ण है ।वे कहते थे कि बाहर की ओर दौड़ लगाने से ज्यादा जरूरी है अपने अंदर की यात्रा। जब तक हम अपने अंतर्मन को नहीं समझेंगे तब तक अपनी पूरी क्षमता के साथ कोई काम नहीं कर पाएंगे। उनके इस जीवन मंत्र में सफलता का सबसे बड़ा सूत्र छिपा हुआ है ।क्योंकि किसी भी कार्य में सफलता के लिए उसे पूरे मन से धैर्यपूर्वक एवं पूरी क्षमता से करना जरूरी है। सक्सेस गुरु और मोटिवेशनल स्पीकर भी हड़बड़ी के काम में गड़बड़ी के प्रति सचेत करते रहे हैं।

दुनिया से पहले खुद को बदलें—- आपने गौर किया होगा कि वर्तमान दौर में हमारी बेचैनी और नाराजगी की सबसे बड़ी वजह है दुनिया से शिकायत। हमें इस बात से चिढ हो जाती है कि लोगों का व्यवहार और आचरण हमारे अनुकूल नहीं ।ऐसे में महात्मा गांधी का यह कथन बहुत उपयोगी और सार्थक है कि आप दुनिया में जो बदलाव लाना चाहते हैं वह सबसे पहले खुद में लाएं ।अगर हम बदल जाएंगे तो दुनिया अपने आप बदल जाएगी ।अगर हम इस कथन को आत्मसात कर ले तो लोगों के प्रति हमारी शिकायत खुद-ब-खुद दूर हो जाएगी ।

हिंसा के पथ से दूर रहें — महात्मा गांधी ने कहा था कि “आंख के बदले आंख” के सिद्धांत पर चले तो एक दिन यह दुनिया अंधी हो जाएगी ।उन्हें हिंसा से सख्त से सख्त नफरत थी। अहिंसा और सत्य पर उन्होंने जीवन भर लोगों को सीख दी ।गांधीजी कहते थे कि धार्मिक ,सांस्कृतिक व राजनीतिक विचारों में अंतर हो सकते हैं लेकिन इसे हिंसा का आधार बनाना बिल्कुल गलत है ।हमें वैचारिक भिन्नता का सम्मान करना चाहिए ।आज के युग में जब हर कोई धार्मिक ,सांस्कृतिक या राजनीतिक मतभेद के कारण एक-दूसरे के खून का प्यासा हो रहा है ऐसे में दुनिया को सुकून और चैन के लिए अहिंसा के पथ पर चलना जरूरी है।।।

© श्री शिखर चंद जैन

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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