हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #185 – कविता – एक पाती वृक्ष की, मानव के नाम… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय पर्यावरण विषयक कविता  एक पाती वृक्ष की, मानव के नाम)

☆  तन्मय साहित्य  #185 ☆

एक पाती वृक्ष की, मानव के नाम☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

(पर्यावरण विषयक)

आदरणीय मानव जी,

तुम को नमस्कार है

लिखने वाला वृक्षों का प्रतिनिधि मैं

जिसका जल जंगल से सरोकार है।

 

खूब तरक्की की है तुमने

अंतरिक्ष तक पहुँच रहे हो

चाँद और मंगल ग्रह से संपर्क बनाए

पहुँचे जहाँ,

वहाँकी मिट्टी लेकर आए

होना तो यह था

धरती की मिट्टी और कुछ बीज

हमारे लेकर जाते

और वहाँ की मिट्टी में यदि हमें उगाते

तो शायद हो जाती परिवर्तित जलवायु

और वहाँ भी तुम उन्मुक्त साँस ले पाते।

 

लगता है वृक्षों का वंश मिटाने का

संकल्प लिया मानव जाति ने

जब कि हमने उपकारी भावों से

मानव जाति के हित

आरी और कुल्हाड़ी के

सब वार सहे हँस कर छाती में।

 

अपने सुख स्वारथ के खातिर

हे मनुष्य! तुम अपनी आबादी तो

निशदिन बढ़ा रहे हो

और जंगलों वृक्षों की बलि

आँख बंद कर चढ़ा रहे हो,

नई तकनीकों से विशाल वृक्षों को

बौने बना-बना कर

फलदाई उपकारी वृक्षों को घर पर

अपने गमलों में लगा रहे हो।

 

भला बताओ बोनसाई पेड़ों से

मनचाहे फल तुम कैसे पाओगे

क्या इन गमलों के पेड़ों से

सावन के झूलों का वह आनंद

कभी भी ले पाओगे,

 

सोचा है तुमने वृक्षों से वनस्पति से

कितना कुछ तुमको मिलता है

औषधि जड़ी बूटियाँ

पौष्टिक द्रव्य रसायन

विविध सुगंधित फूलों से

सुरभित वातायन।

 

अमरुद, अंगूर आम

आँवले केले जामुन

सेब, संतरे, सीताफल

और नीम की दातुन

सबसे बड़ी बात

हम पर्यावरण बचाएँ

और प्रदूषण से होने वाले

रोगों को दूर भगाएँ।

 

हम हैं तो,

संतुलित सभी मौसम हैं सारे

सर्दी गर्मी वर्षा से संबंध हमारे

इस चिट्ठी को पढ़कर मानव!

सोच समझकर कदम बढ़ाना

नहीं रहेंगे हम तो निश्चित ही

तुमको भी है मिट जाना।

 

पानी बोतल बंद लगे हो पीने

रोगों से बचने को,

आगे शुद्ध हवा भी

बिकने यदि लगेगी

तब साँसें कैसे ले पाओगे

मानव! जीवन जीने को।

 

सोचो! जल जंगल वृक्षों की

रक्षा करके

तुम अपने

मानव समाज की रक्षा भी

तब कर पाओगे

और प्रकृति के प्रकोप से

विपदाओं से

खुद को तभी बचा पाओगे।

 

आबादी के अतिक्रमणों से हमें बचाओ

बदले में हमसे जितना भी चाहो

तुम उतना सुख पाओ

नमस्कार जंगल का

सब मानव जाति को

जरा ध्यान से पढ़ना

लेना गंभीरता से इस पाती को

चिट्ठी पढ़ना,

पढ़कर तुम सब को समझाना

और शीघ्र संदेश

सुखद हमको पहुँचाना।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 10 ☆ आदमी तो आदमी है… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “आदमी तो आदमी है।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 10 ☆ आदमी तो आदमी है… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

कुछ पुकारो

नाम कोई भी रखो

आदमी तो आदमी है।

 

जाति मज़हब

दगा दंगे

फसादों में

बँट गया है

अस्मिता से

और अपनी

ज़िंदगी से

कट गया है

 

ख़ालीपन को

लाख कितना ही भरो

लगता कुछ न कुछ कमी है।

 

भीड़ बनकर

हादसों में

जीता मरा

आजकल है

शक्ल ओढ़े

जुलूसों की

चल रहा हो

बेदखल है

 

यहाँ जब भी

मसीहा बनकर चलो

सलीब ढोना लाज़मी है।

 

सिर्फ़ सुनना

कुछ न कहना

चुप्पियों का

ज़हर पीता

भाग पढ़ता

स्वप्न गढ़ता

ले उमीदें

रोज़ जीता

 

सतह छोड़ो

ज़रा गहराई में उतरो

हर तरफ़ काई जमी है।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – वह लिखता रहा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – वह लिखता रहा ??

‘सुनो, रेकॉर्डतोड़ लाइक्स मिलें, इसके लिए क्या लिखा जाना चाहिए?’
…..वह लिखता रहा।

‘अश्लील और विवादास्पद लिखकर चर्चित होने का फॉर्मूला कॉमन हो चुका। रातोंरात (बद)नाम होने के लिए क्या लिखना चाहिए?’
…..वह लिखता रहा।

‘अमां क्लासिक और स्तरीय लेखन से किसीका पेट भरा है आज तक? तुम तो यह बताओ कि पुरस्कार पाने के लिए क्या लिखना चाहिए?’
…..वह लिखता रहा।

‘चलो छोड़ो, पुरस्कार न सही, यही बता दो कि कोई सूखा सम्मान पाने की जुगत के लिए क्या लिखना चाहिए?’
…..वह लिखता रहा।

वह लिखता रहा हर साँस के साथ, वह लिखता रहा हर उच्छवास के साथ। उसने न लाइक्स के लिए लिखा, न चर्चित होने के लिए लिखा। कलम न पुरस्कार के लिए उठी, न सम्मान की जुगत में झुकी। उसने न धर्म के लिए लिखा, न अर्थ के लिए, न काम के लिए, न मोक्ष के लिए।

उसका लिखना, उसका जीना था। उसका जीना, उसका लिखना था। वह जीता रहा, वह लिखता रहा..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 63 ⇒ पंच और पंक्चर… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पंच और पंक्चर”।)  

? अभी अभी # 63 ⇒ पंच और पंक्चर? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

इससे बड़ा पंच और क्या होगा कि, वर्ल्ड बाइसिकल डे, यानी साइकिल दिवस पर बीच सड़क में आपकी साइकिल पंक्चर हो जाए ! चलते चलते साइकिल की हवा निकल जाना, अथवा सड़क पर किसी ट्यूब के भ्रष्ट यानी बर्स्ट होने की आवाज होना, एक ही बात है।

ऐसे साइकिल दिवस हमने बहुत मनाए हैं। साइकिल को हाथ में लेकर चलते हुए, किसी पंक्चर पकाने वाले की दूकान तलाशी जाती है, राहगीरों से मदद ली जाती है, अचानक आशा की किरण जाग उठती है, जब कुछ पुराने टायरों के बीच एक साइनबोर्ड नजर आता है, यहां पंचर सुधारे जाते हैं। भला आदमी पहले तो पंक्चर शब्द को बिगाड़ कर, तू उसी तरह पंचर कर रहा है जैसे कुछ सज्जन व्यंग्य को बिगाड़ कर व्यंग लिख मारते हैं। क्या इसे ही पंक्चर सुधारना कहते हैं। ।

हम बाइसिकल को साइकिल इसलिए कहते हैं, कि इसे आजीवन दुपहिया ही रहना है, इसके नसीब में चार पहिए नहीं !

लोग पहले साइकिल से टू व्हीलर पर आते हैं, और तत्पश्चात् टू व्हीलर से फोर व्हीलर पर। जब कि साइकिल की यात्रा उल्टी चलती है। वह छोटी होकर कभी बच्चे की ट्राइसिकल

बन जाती है, तो कभी और बच्चा होकर चार पहिए की बच्चा गाड़ी बन जाती है। अच्छी विकासशील है साइकिल।

बच्चा गाड़ी में पूत के पांव आसानी से नजर आ जाते हैं। साहब और मैम साहब सुबह बगीचे में मॉर्निंग वॉक के लिए जाते हैं। साथ में एक आया होती है, जो बच्चा गाड़ी में साहबजादे का खयाल रखती हुई पीछे पीछे चलती है। मैम साहब के साथ, रोजाना की तरह, एक चार पांव का प्राणी होता है, जिसे आप कुत्ते के अलावा किसी भी नाम से संबोधित कर सकते हैं। ।

अब पूत के पांव तो आपने बच्चा गाड़ी में देख ही लिए, साहब का पुत्र है, साहब ही बनेगा, कोई संतरी नहीं और अगर यह पूत किसी मंत्री का हुआ तो इसे तो जीवन भर राज ही करना है, क्योंकि दुनिया में आज इसके बाप का ही तो राज है।

हमें इन सबसे क्या लेना देना। भैया तू तो पंचर सुधार दे और अपने पैसे ले ले, अच्छा भला साइकिल दिवस था, वह भी पंचर हो गया। लेकिन उसे भी तो ज्ञान बांटना है। कहां से कबाड़े से उठा लाए इस साइकिल को, आगे का टायर देखो, हवा भरो तो ट्यूब बच्चे जैसे टायर से बाहर निकल आता है, कितने गैटर लगे हैं देखो। मेरी मान लो, इस अटाले को यहीं छोड़ जाओ, बढ़िया ट्यूबलेस टायर वाली, ऑटोमैटिक गियर वाली नई साइकिल ले लो, साइकिल दिवस पर। आज तो साइकिल के पचास रुपए दे भी रहा हूं, वर्ना कल तीन सौ रुपए ले आना, ट्यूब टायर, दोनों बदलेंगे साइकिल के। समझे बाबू जी। ।

शायद इसे ही कहते हैं, एक और पंच ..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 66 ☆ वृक्ष की पुकार… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है पर्यावरण दिवस पर आपकी एक विचारणीय कविता – “वृक्ष की पुकार

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 66 ✒️

?  वृक्ष की पुकार… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

रुकती हुई ,

सांसो के मध्य ,

कल सुना था मैंने ,

कि तुमने कर दी ,

फिर एक वृक्ष की ,

” हत्या “

इस कटु सत्य का ,

हृदय नहीं ,

कर पाता विश्वास ,

” राजन्य “

तुम कब हुए ,नर पिशाच ।।

 

अंकित किया ,एक प्रश्न ?

क्यों ? केवल क्यों ?

इतना बता सकते हो ,

तो बताओ ?क्यों त्यागा ,

उदार जीवन को ?

क्यों उजाड़ा ,

रम्य वन को ?क्यों किया ,

हत्याओं का वरण ?

अनंत – असीम ,जगती में

क्या ? कहीं भी ना ,

मिल सकी ,तुम्हें शरण ? ।।

 

अच्छा होता

तुम ,अपनी

आवश्यकताएं ,

तो बताते ,

शून्य ,- शुष्क ,

प्रदूषित वन जीवन ,

की व्यथा देख ,

रोती है प्रकृति ,

जो तुमने किया ,

क्या वही थी हमारी नियति ?।।

 

शैशवावस्था में तुम्हें ,

छाती पर बिठाए ,

यह धरती ,

तुम्हारे चरण चूमती ,

रही बार-बार ,

रात्रि में जाग – जाग

कर वृक्ष ,

तुम्हें पंखा झलते रहे बार-बार,

तब तुम बने रहे ,

सुकुमार ,

अपनी अनन्त-असीम ,

तृष्णाओं के लिए ,

प्रकृति पर करते रहे

अत्याचार ।।

 

हम शिला की

भांति थे ,

निर्विकार ,

तुम स्वार्थी –

समयावादी,

और गद्दार ,

तभी वृद्ध ,

तरुण – तरुओं,

पर कर प्रहार ,

आयु से पूर्व ,

उन्हें छोड़ा मझधार ,

रिक्त जीवन दे ,

चल पड़े

अज्ञात की ओर ,

बनाने नूतन ,

विच्छन्न प्रवास ।।

 

किस स्वार्थ वश किया ,

यह घृणित कार्य ?

क्या इतना सहज है ,

किसी को काट डालना ,

काश !

तुम कर्मयोगी बनते ,

प्रकृति के संजोए ,

पर्यावरण को बुनते ,

प्रमाद में  विस्मृत कर ,

अपना इतिहास ,

केवल बनकर रह

लगए ,उपहास ।।

 

काश !तुमने सुना होता ,

धरती का ,करुण क्रंदन ,

कटे वृक्षों का ,

टूट कर बिखरना ,

गिरते तरु की चीत्कार ,

पक्षियों की आंखोंका ,सूनापन ,

आर्तनाद करता , आकाश ,

तब संभव था ,कि तुम फिर ,

व्याकुल हो उठते ,

पुनः उसे ,रोपने के लिए ।।

 

अपना इतिहास ,

बनाने का करते प्रयास ,

तब तुम ,वृक्ष हत्या ,

ना कर पाते अनायास ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 69 – किस्साये तालघाट… भाग – 7 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज प्रस्तुत है आपके एक विचारणीय आलेख  “किस्साये तालघाट…“ श्रृंखला की अगली कड़ी।)   

☆ आलेख # 69 – किस्साये तालघाट – भाग – 7 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

अभय कुमार का व्यवहारिक प्रशिक्षण चल रहा था और वो जनरल बैंकिंग में निपुण होने की दिशा में शाखाप्रबंधक जी के मार्गदर्शन में कदम दर कदम आगे बढ़ते जा रहे थे. बॉस गुरु की भूमिका में रुचि लेकर बेहतर परफार्म कर रहे थे और अभय शिष्य की भूमिका में उनकी गुरुता का लाभ प्राप्त कर रहे थे. यद्यपि इस कारण शाखा की बहुत सारी अनियमिततायें भी दूर हो रही थीं पर स्नेह और सम्मान का बंधन दिन प्रतिदिन प्रगाढ़ हो रहा था. इस प्रक्रिया में घड़ी और कैलेण्डर की भूमिका गौड़ होते जा रही थी. स्नेह की पहली शर्त सानिध्य होती है जो कुछ अच्छा सीखने और करने की चाहत और जीवन  के प्रति पॉसिटिव नजरिये से घनिष्ठता की ओर बढ़ता जाता है. अपनों की जरूरत उम्र के हर पड़ाव में महसूस होती है और शाखाप्रबंधक जी भी अपने इस शिष्य को स्नेह के साथ साथ कैरियर में आगे बढ़ने के गुरुमंत्र दे रहे थे. ट्रेनी ऑफीसर बनने का लक्ष्य उन्होंने अभय के लिये गुरु दक्षिणा के रूप में मांग लिया था और इस पदोन्नति के लिये अनिवार्य परीक्षाओं का स्टडी मैटेरियल वो बराबर अपने संपर्क माध्यमों से अभय को उपलब्ध करा रहे थे. एक रविवार को शाखा के महत्वपूर्ण पेंडिंग निपटाने के बाद उन्होंने अभय से वचन लिया कि मेरा तो इस साल या बहुत हुआ तो अगले साल स्थानांतरण हो ही जाना है पर तुम्हें इस शाखा से टी. ओ. बनकर ही निकलना है. उनके बिना इस शाखा में रहने की कल्पना से ही सिहर उठे अभय ने, उन्हें आश्वस्त किया कि वह उनकी आकांक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास पूरी निष्ठा और मेहनत से करेगा पर प्लीज़ आप इस शाखा से जाने की बात मत करिए. आप मेरे लिए, शाखाप्रबंधक से भी ज्यादा मायने रखते हैं.

शाखाप्रबंधक जी ने कहा “ये शाखा और मैं खुद तुम्हारी इस यात्रा के पहले पड़ाव हैं, आगे बहुत से पड़ाव आयेंगे और तुम्हें कदम दर कदम पूरी निष्ठा, मेहनत और अपनी प्रतिभा से अपनी मंजिल पानी है, हर मंजिल को एक पड़ाव ही समझना और मैं कहीं भी रहूं, तुम्हारी हर सफलता की खबर पाकर मुझे बहुत खुशी होगी.

किसे पता था कि अगले दिन वो जहाँ जाने वालें हैं वहाँ इस लोक की खबरें नहीं पहुंचती. वो सोमवार की मनहूस सुबह थी जब शाखाप्रबंधक जी मार्निंग वॉक से वापस आकर शाखा परिसर में ही बैठ गये. थकान और दर्द के कारण ऊपर जाने की उनकी हिम्मत नहीं थी. ड्यूटी पर मौजूद सिक्युरिटी गार्ड ने तुरंत उन्हें पानी का गिलास पकड़ाया पर हाथ से उनके इधर गिलास छूटा और उधर आत्मा ने शरीर का साथ छोड़ा. ये कार्डियक अरेस्ट था, जब तक परिवार नीचे आकर कुछ समझ पाता, निदान कर पाता, वो सबको छोड़कर जा चुके थे. सारे उपस्थित परिजन और प्रियजन स्तब्ध थे और बैंक आने की तैयारी कर रहे अभय कुमार तक जब यह खबर पहुंची तो जैसे हालत थी उसी हालत में बाथरूम स्लीपर्स में ही दौड़कर वो शाखा परिसर में पहुंच गये. पंछी पिंजरा तोड़कर उड़ चुका था और शेष था उनके साथ गुजरा हुआ वक्त जो अब दर्द से कराहती यादों में बदलने की प्रक्रिया आरंभ कर चुका था.   नश्वरता ने फिर शाखा के सारे टॉरगेट्स, परफारमेंस और पेंडिग्स पर विजय पाई और जिम्मेदार सारे सवालों को अनुत्तरित कर अपनी अंतिम यात्रा की ओर अग्रसर हो रहा था. अभय कुमार के लिये ये आघात व्यक्तिगत था, असहनीय था और उसे मालुम था कि अपने परम श्रद्धेय गुरु का विछोह सह पाना उसके लिये असंभव था, कठिनतम था. परिवार भी अपने सूर्य के जाने से जीवन में आने वाले अंधकार की कल्पना से ही व्यथित था. जीवन की नश्वरता न जाने कितने रूप बदल बदलकर सामने आती है पर ये आकस्मिक आघात सहना साधारण बात नहीं होती. सारी आध्यात्मिकता और प्रवचन उस वक्त प्रभावहीन हो जाते हैं जब सुरक्षा, संबल और स्नेह देने वाला अपना कोई प्रियजन अचानक ही बिना बोले शून्य में चला जाता है.

नोट :इतना लिखने के बाद मेरे पास भी आंसुओं के अलावा कुछ शेष नहीं है पर अभय कुमार के समान ही मैं भी वचनबद्ध हूं इस कहानी को जारी रखने के लिये, तो फिर मिलेंगे, नमस्कार !!!

यात्रा जारी रहेगी.

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रकृति ने हमको बहुत कुछ दिया है… ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

डॉ निशा अग्रवाल

☆ कविता – प्रकृति ने हमको बहुत कुछ दिया है ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

प्रकृति ने हमको बहुत कुछ दिया है

तेरा शुक्रिया है प्रभु तेरा शुक्रिया है

प्रकृति ने…

 

रो रो के कहते है वृक्ष ये सारे

हम ही जगत के अंत और सहारे

निर्णय तुम्हारा है, काटो या बचालो

हरा भरा रख कर जीवन संभालो

 

हम ही तुम्हें अमृत पान कराते

औषधि देकर सबकी जान बचाते

फल फूल हवा ताज़ा हम तुम्हें देते

प्रेम रंग की खुशबू हम महकाते।

 

जन जन से रिश्ता है प्यारा हमारा

शुद्ध प्राणवायु देकर जीवन संवारा

कुल्हाड़ी ,कटारी से, हमको ना काटो

सावन के महीना में, हम ही झुलाते

 

बहुत मुश्किलों से तुमने, हमको है पाला

हमें काट कर खुद को, मुसीबत में डाला

मत करो जुल्म अब, धरा रो रही है

प्राकृतिक शीतलता से दुनिया, मुक्त हो रही है

 

दिन रात एक करके काटकर रुलाया

रक्तस्राव से भीगा है तना अब हमारा

तेज आंधियों ने भी हमको है तोड़ा

धरती से अलग करके, दूर हमको छोड़ा

 

आओ बचालो हमको रक्षक हम तुम्हारे

जीने की सांसें हम ही, जीने के सहारे

लेलो प्रतिज्ञा यारो, पर्यावरण सुरक्षा का

यही एक जरिया है खुद को स्वस्थ रखने का।

 

©  डॉ निशा अग्रवाल

(ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)

एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री

जयपुर ,राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 185 ☆ अर्धस्वप्न… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 185 ?

अर्धस्वप्न… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

(मृगचांदणी मधून…)

प्रतिबिंब आरशातले,

दिसते आजकाल,

प्रौढ….निस्तेज!

केसातली पांढरी बट

तारूण्य ढळल्याची साक्षी असते,

डोळ्या भोवतीचे काळे वर्तुळ

वय वाढल्याची नोंद घेते !

मन उदास पुटपुटते,

“गेले ते दिन गेले !”

पण तुझ्या डोळ्यात जेव्हा,

पहाते मी स्वतःला,

तेव्हा मात्र असते मी,

तुला पहिल्यांदा भेटले

तेव्हाची,

तरूण आणि टवटवीत!

या दोन्ही प्रतिबिंबातली

खरी कोण?

प्रसाधनाच्या आरशातली,

की तुझ्या डोळ्यातली ?

तुझ्या माझ्या नात्यातली,

सुकोमल तरुणाई,

बनवते तरुण मला,

तुझ्या डोळ्यातल्या प्रतिबिंबात!

माथ्यावर लिहून जातात

तुझे डोळे—-

“तू अर्धी स्त्री आणि अर्ध स्वप्न”

खरंच की रे —-

स्वप्न कधीच होत नाहीत म्हातारी,

त्यांना नसते मरण कधी,

स्वप्न असतात चिरंजीव,

म्हणूनच ती दोन्ही प्रतिबिंब,

होतात एकजीव!

सनातन….नित्यनूतन!

© प्रभा सोनवणे

(१ जानेवारी १९९९)

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ तूच तू… ☆ श्री शरद कुलकर्णी ☆

श्री शरद कुलकर्णी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ तूच तू… ☆ श्री शरद कुलकर्णी ☆

श्वासाहून प्रिय तू,

सत्य तू अन् भास तू.

 

जीवन-मरण तूच तू,

तूच श्वास,ध्यास तू.

 

घुसमट तू, तूच वारा,

तू नभीचा स्थिर तारा.

 

नीरवता तू, तू कविता,

तूच दर्या जो उसळता.

 

तूच वृक्ष ,तूच सळसळ ,

पालवी तू ,तू पानगळ .

 

तूच वास्तव ,स्वप्न तू,

दृष्टी तू, दृष्टिकोन तू.

 

विसर्जित झालो कधीचा ,

मात्र केवळ तूच तू.

 

माझे-तुझे अद्वैत घडता,

मग,काय मी अन् काय तू? …

© श्री शरद  कुलकर्णी

मिरज

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ क – क करियर… ☆ सुश्री अर्चना दादासाहेब मुळे ☆

सुश्री अर्चना दादासाहेब मुळे

परिचय 

शिक्षण 

  • पदवी –  मानसशास्त्र आणि पत्रकारिता
  • पदव्युत्तर पदवी – एम. एस. डब्ल्यू.
  • डिप्लोमा  – समुपदेशन
  • व्यवसाय: समुपदेशन तज्ज्ञ, संवाद समुपदेशन केंद्र.सांगली.

विद्यार्थी समुपदेशक — पद्मभुषण वसंतदादा पाटील इन्स्टिट्यूट आॅफ टेक्नाॅलाॅजी. इथे महिन्याला ३५ ते ४० विद्यार्थ्यांचं समुपदेशन केलं जातं.

प्रकाशित साहित्य: राज्यातील विविध वृत्तपत्रे, नियतकालिक, मासिक यामध्ये लेख व कवितांना प्रसिध्दी. दै. लोकसत्ता मधून काही लेखाना प्रसिध्दी.

पणती – काव्यसंग्रह प्रकाशित.

वयात येताना – पुस्तक प्रकाशनाच्या वाटेवर

?  विविधा ?

☆ क – क करियर… ☆ सुश्री अर्चना दादासाहेब मुळे☆

हजारो पालकांना, मुलांशी संवाद साधत असताना अनेकवेळा असं वाटत राहतं की, भारतात बाळांचा जन्म होतंच नाही.  इथे जन्मतात इंजिनियर्स, डाॅक्टर्स, वकील, मार्केटिंग गुरू, सरकारी नोकर, खाजगी कंपन्यांमधील कर्मचारी, एच आर, एम आर म्हणजे पैसे मिळवणारी जिवंत मशिन्स. कारण गर्भात असताना बाळाच्या कानावर आई वडिलांची स्वप्नंच पडतात. आपलं बाळ मोठं झाल्यावर प्रथितयश डाॅक्टर होणार. तो आय टी कंपनीत नोकरी करणार. यु एस मधे शिक्षण घेऊन तिकडेच स्थायिक होणार. बाळाच्या चाहुली बरोबरच त्याच्या करियरसाठीचं नियोजन सुरू होतं. बाळाचे डोळे आकाराला येण्यापूर्वीच त्याला स्वप्नं दाखवली जातात. जेंव्हा मुलगा क – क कमळ हाताने गिरवत असतो. त्याचवेळी पालकांच्या डोक्यात मुलाचं क – क करियर एखाद्या वादळासारखं चकरा मारत असतं. 

भारतात स्वत:चं करियर पणाला लावून मुलांचं करियर घडवू पाहणारे पालक मोठ्या प्रमाणात आहेत. पोटाला चिमटा काढून मुलांचं करियर घडवण्याचा प्रयत्न करणारे, मुलांना शिक्षणात काहीही कमी पडू नये म्हणून मुलांच्या सर्व मागण्या पुरवणारे, मुलांच्या मुलभूत शैक्षणिक गरजा भागवण्यासाठी जिद्दीने कष्ट करणारे, वडिलोपार्जित संपत्ती मुलांवर खर्ची घालणारे असे अनेकविध प्रकारातील पालक दररोज भेटतात. आपल्याकडील जवळजवळ सर्वच पालकांना ठराविक क्षेत्रातील उच्च शिक्षण हे पैसे मिळवण्यासाठी, भविष्यात स्थिरस्थावर होण्यासाठी महत्वाचा आणि खात्रीचा मार्ग आहे असंच वाटत असतं. परंतु करियर हे मुलांच्या आवडीच्या क्षेत्रातही होऊ शकतं. त्या क्षेत्रातील उच्च शिक्षण घेता येऊ शकतं. अशा क्षेत्रावर आणि आपल्या मुलांवरही पालकांचा विश्वास नसतो. त्यानी सुचवलेल्या क्षेत्रातच मुलानी करियर करावं असा अट्टाहास बर्‍याच पालकांचा असतो.

मुलांना हव्या त्या क्षेत्रात स्थिर होऊ दिलं तर कदाचीत पैसे कमी मिळतील पण आनंद केवढा मिळेल. समाधान किती मिळेल. या सुखाच्या कल्पनांना कोणत्या पॅकेजमधे कसं बसवता येईल. याचा  थोडातरी विचार पालकांनी करायला हवा. तसेच करियरच्या मागे धावणार्‍या तरूणांनी क क करियर व्यवस्थित समजून घ्यायला हवं. तरच तरुणांमधले मानसिक घोटाळे संपुष्टात येण्यासाठी मदत होईल.

काही क्षेत्रात मिळणार्‍या एखाद्या पॅकेजचा तुलनेने गाजावाजा होत नाही म्हणून त्या पर्यायांकडे दुर्लक्ष केलं जातं. भारतात असे कितीतरी चित्रकार आहेत ज्यांचं एक चित्र लाखाची कमाई करून देतं. अॅनिमेशन पदवीधारक असणारे कितीतरी तरुण वीस बावीस लाखाचं पॅकेज घेत आहेत. फोटोग्राफर्सची कमाई सुध्दा काही कमी नसते. वाईल्ड फोटोग्राफर्स तरी एक वेगळाच थरार अनुभवण्यात यश मानतात. चित्रपट सृष्टीमधे तर विविध तर्‍हेचं कौशल्य असणार्‍यांना अनेक संधी आहेत. करियरची संधी अजमावण्यासाठी हजारो क्षेत्र उपलब्ध आहेत. परंतु विद्यार्थी पालकांची नजर ठराविक क्षेत्रावरुन हलतंच नाही. मुलाना वेगळं काहीतरी करायचं असतं परंतु ते वेगळं काय हे शोधता येत नाही. पालकांचा संकुचित दृष्टिकोन मुलाना त्यांची स्वत:ची पायवाट तयार करु देत नाही. मुलांना करियर निवडीचं स्वातंत्र्य दिलं जात नाही. 

एका महाविद्यालयात पहिल्या वर्षात शिकणार्‍या एका मुलाने माझं भाषण होईपर्यंत माझंच स्केच काढलं. नंतर मला ते गिफ्ट दिलं.तेंव्हा म्हणाला,”स्केच काढणं ही माझी आवड आहे.आतापर्यंत मी १५० पेक्षा जास्त स्केचीस काढल्या आहेत. वडिलांची इच्छा म्हणून मी इकडे आलोय.”

दुसरा एक मुलगा भाषण होईपर्यंत रडत होता. नंतर जवळ बोलावून विचारलं. तेव्हा म्हणाला,” मला बेस्ट कोरिओग्राफर व्हायचंय.इथे माझा जीव गुदमरतोय. अभ्यासात लक्ष लागत नाही. फेल झालो तरी आई बाबा नाराज होणार पण मला हे करायचंच नाही. आई बाबा माझं काहीही ऐकून घेत नाहीत.”

एका मुलीला प्राण्यांचं मानसशास्त्र शिकायचं होतं. तिने पालकाना सांगण्याचा आटोकाट प्रयत्न केला. पण त्यांनी ऐकलं नाही. किती वेगळा आणि वैशिष्ट्यपूर्ण विषय आहे.पण पालकांच्या इच्छेपुढे तिचं काही चाललं नाही.

आज घडीला अशी शेकडो उदाहरणं देता येतील. अशा पालकाना मुलांच्या भविष्याची चिंता असते. परंतु त्यांचा वर्तमान चितेवर ठेवून कसलं भविष्य घडवण्याची भाषा हे पालक करत असतात तेच कळत नाही.  शिक्षण घेतल्यानंतरची आपल्याकडे नोकरीसाठी काय परिस्थिती आहे हे लक्षात यावं याकरता एक उदाहरण पाहूया. तमिळनाडू विधानसभेत १४ सफाई कामगार हवे होते. त्या नोकरीसाठी ४६०० इंजिनियर्स आणि एम बी ए पदवी प्राप्त मुलानी अर्ज केले होते… असं अनेक ठिकाणी घडतंय.

चांगलं शिक्षण घेऊनही जेंव्हा नोकरी मिळत नाही तेंव्हा करियर म्हणायचं तरी कशाला आणि शिक्षण घेऊन करायचं तरी काय असा प्रश्न  सुशिक्षित बेरोजगार तरुणांना आणि पालकांना पडणं साहजिकच आहे. खरंतर शिक्षण घेत असतानाच करियरचा विचार व्हायला हवा. मार्कांवरती अवलंबून न राहता आपल्या आवडी निवडी वरही थोडा विश्वास ठेवायला हवा.

यशाची व्याख्येतील विविधता- प्रत्येकाची यशाची व्याख्या वेगळी असते. भरपूर पैसै मिळवण्यात एखाद्याला यश वाटत असेल. तर कुणाला प्रसिध्दीमधे यश वाटत असेल. एखादा रोजची कामं नीट झाली यातच यश समजत असेल. एखाद्याला आज पोटभर खायला मिळालं यातच यश वाटत असेल. आपलं यश आपण कशात मोजतो हे समजणं महत्वाचं आहे. त्यानुसार यशप्राप्तीसाठी नियोजन करणं आवश्यक आहे.

वेगळी वाट शोधलीच पाहिजे – इतरांनी शोधलेल्या मार्गावर जाणे सहज सोपे असले तरी त्याच मार्गावरून हजारो आधीच पोहोचलेले असतात. त्या गर्दीत हरवून जाण्यापेक्षा वेगळी पायवाट निर्माण करणं कधीही खडतरच असतं. परंतु त्या मार्गावरून हजारो आपल्या मागे येतात. आणि काहीच दिवसात या पायवाटेचा महामार्ग होऊ शकतो. हा विश्वास तरुणांमध्ये निर्माण करायला हवा.

अपयशातही साथ देणारेच खरे पालक- शिक्षणानंतरही मुलांना जेव्हा नोकरी मिळत नाही तेव्हा मुलांपेक्षा जास्त पालकच खचून जातात. चिडचिड करतात. मुलांना अपशब्द बोलतात. मुलांच्या भावना समजून घेण्यापेक्षा स्वत:च्या अनियंत्रित भावना मुलांवर लादतात. मुलांना अपयशाचा सामना करायचा असतो. तिथे पालक साथ देत नाहीत. 

‘स्व’ चा शोध घेता आला पाहिजे – स्वत: मधील क्षमता आणि कमतरता माहित असल्या पाहिजेत. कोणतंही व्यावसायिक क्षेत्र निवडताना आपण हे का निवडत आहोत याची स्पष्टता असायला हवी. कोणत्याही कारणास्तव हे क्षेत्र जबरदस्तीने निवडले गेले असेल तर त्यात जाणीवपुर्वक आवड निर्माण करता येऊ शकते.

भविष्याचा वेध- पैसा,नोकरी, छोकरी सगळं हवंय पण त्यापलीकडे जाऊन आपल्याला आपलं काम मनापासून स्विकारता येतंय का याचा वेध घ्यायला हवा. तर भविष्य सुरळीत होतं. 

कौशल्याधिष्ठीत शिक्षण –  नोकरीसाठी शिक्षण, त्यासाठीच अभ्यास ही संकल्पना बदलली पाहिजे. व्यवसाय, छोटा उद्योग करण्यासाठीचं शिक्षण उपलब्ध व्हायला हवं. आयटीआय, नर्सिंग, आॅटोमोबाईल्स सारख्या शिक्षण संधी मोठ्या प्रमाणात उपलब्ध व्हायला हव्यात.

अशा संधींचा विचार करायचा झाला तर फॅशन डिझाईनर,चामड्याच्या वस्तू, सौंदर्य प्रसाधन, घड्याळं, दागिने, फरफ्युम्स, गाड्या, मयक्रोसाॅफ्ट, गुगल, फेसबुक, वाॅल मार्ट, फार्मास्युटिकल, इव्हेंट मॅनेजमेंट, फाॅरेन्सिक सायन्स, इंटिरियर डिझाईन, फिजिओथेरपी, नर्सिंग, पत्रकारिता, फोटो पत्रकार, अॅनिमेटर, गुन्हेगारी शास्त्र, मानसशास्त्र, लेखक, खेळाडू, शुज डिझाईनर, चित्रपट, नाट्य,नृत्य, संगीत, खेळातील पंच,ओशियनग्राफी, डिजिटल मार्केटर,ग्राफिक डिझाईनर,आय टी आय अशी अनेक क्षेत्रं लाखो रुपयांची कमाई करुन देऊ शकतात. त्यासाठी आपल्या आवडीचं क्षेत्र निवडण्याचं धाडस करायला हवं. नेमकं करियर शोधायला हवं. स्वत:चं निरीक्षण केलं तर निश्चितंच करियर सापडू शकतं.त्याला पालकांची साथ असेल तर मुलांची प्रगती होतंच असते.

क -क करियर म्हणजे फक्त रोजगार मिळवणं नाही तर कोणतंही काम करताना जगण्याचा आनंद घेणं होय. करियर शोधताना योग्य मार्गदर्शन करुन तरुणांची ऊर्जा टिकवून ठेवणं हे आव्हान पालकांनी स्वीकारायला हवं. काॅलेजमधून बाहेर पडल्याबरोबर  सर्वोच्च पद, मान सन्मान लगेचच मिळत नाही हे लक्षात घ्यायला हवं. त्यासाठी कष्ट करणं, नविन गोष्टी शिकून घेणं, संबंधित कामाचं ज्ञान आत्मसात करणं, प्रश्न समजून घेण्याच्या क्षमतेचा विकास करणं अशा गोष्टी जमायला हव्यात. आपले विचार मुक्तपणे आणि ठामपणे मांडता यायला हवेत. भावनांक चांगला असायला हवा. तरुणांचा देश असणार्‍या भारतात तरुणांच्या हाताला काम देण्याची जबाबदारी सर्वानी मिळून घ्यायला हवी नाहीतर त्यांच्या हातात व्यसनाधिनतेचे पेले असतील. आणि त्यांचं डोकं मानसिकतेनं खचलेलं, अनेक छिद्र पडलेलं मडकं असेल.

© सुश्री अर्चना मुळे 

समुपदेशन तज्ज्ञ, सांगली

संपर्क – 21 ए बी,पार्श्व बंगला, श्रीवास्तुपूरम, धामणी रोड, सांगली – 416415

फोन – 9823787214 email : [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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