☆ पाऊस केव्हाचा पडतो… ☆ श्री नंदकुमार पंडित वडेर ☆
पाऊस केव्हाचा पडतो… काळ्या ढगातून जलाचे घड्यावर घडे आज तो रिते करतो… वाऱ्यालाही त्यानं तंबी दिलीय खबरदार आज माझ्या वाट्याला आलास तर कोसळणाऱ्या सरींवर सरीच्या भिंतीना हादरवून गेलास तर…वारा मग पावसाच्या वाऱ्यालाही उभा राहण्यास धजला नाही.. दुतर्फा झाडांची दाट राईचीं अंगे अंगे भिजली जलधारानी.. ओंथबलेले पानं न पान नि सरी वर सरीच्या माऱ्याने झाडांची झुकली मान…इवलीशी तृणपाती, नाजुक कोमल लतावेली चिंब चिंब भिजून जाण्यानं काया त्यांची शहारली… हिंव भरल्या सारखे थरथर कापे पान न पान.. खळखळ पाण्याचा लोट धावे वाट फुटे तसे मनास भावे… जीर्ण शिर्ण पिवळी पानं, काटक्या,काड्या, कागदाचा कपटा, सारं सारं मिळालेल्या प्रवाहात जाई पुढे पुढे ते वाहात.. सरली तुमची सद्दी उचला तुमची जुनीपुराणी रद्दी. आता नव्हाळीची असे गादी…स्वच्छ झाले शहर नगर, स्वच्छ झाले भवताल… चकचकीत झाले रस्ते… दर्पणाला देखिल त्यात स्वताला निरखून पाहावेसे वाटले…घन अंधार दाटला भवताल त्यात बुडाला.. रस्तावरचे पथदिवे आपल्या मिणमिणत्या प्रकाशाने रस्ता रस्ता उजळून टाकला… निराशेच्या वाटेवर असतो आशेचाही एक किरण आणि तो शोधून सापडण्यास करावी खारीची मदत असा होता त्यांचा एक मनसुबा…दारं खिडक्या कडेकोट झाली बंद माणसा माणसांनी कोंडूनी जोडूनी घेतला घरोबा… स्थानबद्ध झाले सगळेच जीवबध्द…चिटपाखरू न धजे विहराया बसे घरटयात आपुल्या पिलांच्या कोंडाळ्यात… दाणा गोटा कुठे मिळावा त्यांना अश्या प्रलयंकारी पावसात…हतबल झाले सारे एका निर्सागा समोरी… पुरे पुरे बा पावसा कोसळणे तुझे हे.. शरणागत आलो तव पायी कळून आली आमची माजोरी…खाऊ देशील का कोरडी सुखी भाकरी… नको नको असा उतु मातू नको दावू ओला दुष्काळ तो… प्रसन्न तू सदा असावे म्हणून आरती तुझी आम्ही नित्य गातो…
गडगडाटी हास्य पावसानं केलं कडकडाटासह कोरडा चपलाने तो ओढला… नि पाऊस हळूहळू कमी होत गेला… पाऊस शांत शांत झाला..
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श आधारित एक विचारणीय लघुकथा ‘दुख में सुख’। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 124 ☆
☆ लघुकथा – दुख में सुख ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆
गर्मी की छुट्टियों में मायके गयी तो देखा कि माँ थोड़ी ही देर पहले कही बात भूल रही है। अलमारी की चाभी और रुपए पैसे रखकर भूलना तो आम बात हो गयी। कई बार वह खुद ही झुंझलाकर कह उठती— ‘पता नहीं क्या हो गया है ? कुछ याद ही नहीं रहता- कहाँ- क्या रख दिया ?’ झुकी पीठ के साथ वह दिन भर काम में लगी रहती। सुबह की एक चाय ही बस आराम से पीना चाहती। उसके बाद घर के कामों का जो सिलसिला शुरू होता वह रात ग्यारह बजे तक चलता रहता। रात में सोती तो बिस्तर पर लेटते ही झुकी पीठ में टीस उठती।
माँ की पीठ अब पहले से भी अधिक झुक गयी थी पर बेटियों के मायके आने पर वह सब कुछ भूलकर और तेजी से काम में जुट जाती। उसे चिंता रहती कि मायके से अच्छी यादें लेकर ही जाएं बेटियां। माहौल खुशनुमा बनाने के लिए वह हँसती-गुनगुनाती, नाती-नातिन के साथ खेलती, खिलखिलाती…?
गर्मी की रात, थकी-हारी माँ नाती – पोतों से घिरी छत पर लेटी है। इलाहाबाद की गर्मी, हवा का नाम नहीं। वह बच्चों से जोर-जोर से बुलवा रही है- ‘चिडिया, कौआ, तोता सब उड़ो, उड़ो, उड़ो, हवा चलो, चलो, चलो,’ बच्चे चिल्ला- चिल्लाकर बोलने लगे, उनके लिए यह अच्छा खेल था।
माँ उनींदे स्वर में बोली – ‘बेटी, जब से थोड़ा भूलने लगी हूँ, मन बड़ा शांत है। किसी की तीखी बात थोड़ी देर असर करती है फिर किसने क्या ताना मारा……. कुछ याद नहीं। हम औरतों के लिए बहुत जरूरी है यह।’ ठंडी हवा चलने लगी थी। माँ कब सो गयी पता ही नहीं चला। चाँदनी उसके चेहरे पर पसर गयी।
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जीद्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “संगी साथी राह निहारे…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 162 ☆
☆ संगी साथी राह निहारे… ☆
गुरु जी सत्संग के दौरान अपने शिष्यों से कह रहे थे, स्नेह की दौलत आपको कमानी पड़ती है, इस दौलत को पाने हेतु सच्चे हृदय से कार्य करें, मैं का परित्याग कर बसुधैव कुटुम्बकम के अनुयायी बनें।
धन की देवी लक्ष्मी की आराधना कर दौलतमंद बन सकते हैं, बल बुद्धि आप गौरी सुत की कृपा से पा सकते हैं, विद्या व सप्तसुरों का ज्ञान आप माँ शारदे की कृपा से पा सकते हैं किन्तु…स्नेह रूपी दौलत बिना परिश्रम व त्याग के नहीं मिलेगी। नश्वर जगत में सब कुछ यहीं रह जायेगा, जायेंगे तो केवल सत्कर्म, ऐसा प्रवचन करते हुए गुरुजी भाव विभोर हो भक्तों को देखने लगे।
एक शिष्य ने कहा कई बार अति स्नेह में हम दूसरा पक्ष नहीं सोचते। मैं तो आप लोगों की वजह से आश्वस्त रहता हूँ। क्लीन चिट दी थी आपके प्रमुख शिष्य ने अपने कार्यकाल की। बस बेलगाम का घोड़ा मन है जो भागता रहता है।
आर्थिक अभाव दिमाग़ घुमा देता है, सारे सच धरे के धरे रह जाते हैं एक भक्त सत्संग में बोल उठा।
किसे… नहीं …नहीं कहीं मेरी ओर इशारा तो नहीं एक शिष्य ने कहा।
मुझे एक सीध में सोचना आता है, गुरुदेव भक्तों व शिष्यों की ओर देखते हुए गम्भीर मुद्रा बना कर कहने लगे। जो दायित्व है उसे साम दाम दंड भेद कैसे भी पूरा करना मानव का उद्देश्य बनता जा रहा है। अब इसके लिए कोई भी कुर्बानी क्यों न देनी पड़े।
इतने दिनों में सभी एक दूसरे के स्वभाव से परिचित हो चुके हैं, सब सही है – प्रमुख शिष्य ने कहा।
अभी समय के अनुसार, रेस्ट लेना तो सही है पर पद त्याग नहीं, ये रिश्ते नाते यहीं धरे रह जाएँगे, पुण्य कर्मों के क्षेत्र में संगम जैसा जीवन हो, जो भी आये समाहित करते चलो, भगवान का अस्तित्व कायम कर देते हैं तो सारी दुनिया रिश्ते जोड़ने के लिए लालायित दिखेगी।
आज ही आदरणीय सोमेश जी के कितने रिश्तेदार दिखे सोशल मीडिया पर।
हम व्यवस्थित हो सकते हैं, यदि योजना अच्छे से बनाकर फिर उसे विभिन्न लोगो को सौंप कर लागू करें गुरुदेव ने कहा। मैं कई दफा हतोत्साहित हुआ इस साल, जब भक्त कम होने लगते हैं तो सारा ज्ञान धरा का धरा रह जाता है।
प्रिय शिष्य ने कहा क्योंकि समय के साथ -साथ हमें नीति व योजना निर्माण में व्यवस्था बनानी होगी। कीजिए कुछ, बड़ा हौच-पौच हो रहा है। विज्ञापन में पचासों हजार खर्च हुए थे, बंद होने की कगार पर है अपना धंधा। समाचार पत्र बंद हो गया।
एक चेली की ओर मुख़ातिब होते हुए गुरुदेव ने कहा आप के दर्शन तो अब होते ही नहीं किसी नए भगवान की तलाश में तो नहीं हैं।
जी…मैं अधिकतर समय पढ़ती रहती हूँ या तो फेसबुक पर अच्छी पोस्ट या पुस्तक।
आर्थिक उन्नति बहुत हो चुकी, अब दर्शन से जुड़ने की वज़ह, जीवन को अधिक से अधिक जानना व समझना।
दरबार की रोज हाजिरी लगाइए चारो धाम यहीं हैं, कोई प्रश्न नहीं जिसका उत्तर न मिले प्रिय शिष्य ने कहा।
यही तो घर में सुनने मिलता है दिनभर करती क्या हूँ ???? इसी प्रश्न का उत्तर खोजने में व्यस्त हूँ कि कुछ ऐसा करूँ जिससे देर से ही सही ये लगे कि मैंने समय बर्बाद नहीं किया।
मुझे ऐसा लगने लगा है कि ये पद बाद में विवादित हो सकता है इसलिए मुक्त होकर अपना एक आश्रम खोलना चाहती हूँ।
व्यंग्य के लिए विषय मिल गया जिस प्रश्न को लेकर आध्यात्म के रथ पर सवार हुई आज भी वही प्रश्न, वर्ष और जगह बदल रही है पर प्रश्न वही करती क्या हूँ ??
सही कहते हैं… हठहठहठह…ये तो मैंने भी पकड़ लिया।
वो ऐसा करने वाला काम गुरु सेवा ही है। अब क्या खोज़ रही हैं ? एक बात ध्यान रखनी है कि भगवानौ आकर प्रवचन देगें तो भी कोई नहीं सुनेगें।
प्रजातंत्र का समय है, जब तक आप दूसरों को रिकोग्नाइज नहीं करेंगी तब तक आपको कोई पूछने वाला नहीं। यहाँ बड़े-बड़े लोग घूम रहे हैं कि कोई तो ध्यान दे। लाखों रुपए की धार्मिक किताबें छपवाकर दीमको को खिलाने को मज़बूर हैं लोग। आप कितना भी अच्छा लिख लें या कितना भी अच्छा पढ़ लें। आप अन्यों को प्रोत्साहित करें तभी अन्य आपको पढ़ने सुनने को तैयार होंगे।
सही है गंभीर होते हुए सभी ने सिर हिलाया।
गुरु माँ आप अवश्य सफल होंगी। और इस प्रश्न का जवाब संपूर्ण विश्व को मिलेगा कि आप करती क्या हैं। एक भक्त ने दीदी माँ की ओर हाथ जोड़ कहा – फिर वही प्रश्न कौन हूँ मैं
शब्द मूर्छित हैं मौन हूँ मैं ?
आज के सत्संग से जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने का साक्षात्कार हुआ हहहहहहहह…।
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी
इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – ॐ नमः शिवाय साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “किताब और कैलेण्डर”।)
अभी अभी # 121 ⇒ आँखें आई… श्री प्रदीप शर्मा
Eye Eye
अगर एकाएक आपकी आँख आ गई तो आप यूरेका यूरेका भी नहीं कह सकते, क्योंकि आप तो जन्म से ही दो दो आँख वाले हैं। यह भी सच है कि जब आँख से आँख मिलती है, तब वे चार जरूर होती हैं, लेकिन नजर हटते ही फिर वही दो ही रह जाती हैं।
भले ही कोई व्यक्ति कभी आपको फूटी आंखों नहीं सुहाया हो, लेकिन आपने कभी अपनी आँखों को आँच नहीं आने दी। बस नजरें फेरकर काम चला लिया।।
सबकी तरह बचपन में हमारी भी दो ही आँखें थीं, लेकिन नजर कमजोर होने से डॉक्टर ने हमारी आँखों पर चश्मा चढ़ाकर दो आँखें और बढ़ा दी। अगर हमारे हरि हजार हाथ वाले हैं, तो उनका हरि का यह जन भी तब से ही चार आँखों वाला हो गया।।
आंख को नजर भी कहते हैं। हम पहले इस भ्रम में थे कि नजर वाला चश्मा लगाने के बाद हमें किसी की नजर नहीं लगेगी, लेकिन जब से हमें चश्मे बद्दूर शब्द का अर्थ पता चला, हमारी आँखें खुल गई। अब हमारी किसी से आँखें चार ही नहीं होती, नजर क्या लगेगी।जिसकी खुद की ही चार आँखें हों, उसकी आँखें मिलकर या तो छः हो जाएगी और अगर वह भी चार आँखों वाला या वाली निकली, तो दो दो हाथ होने से तो रहे, लेकिन आठ आठ आँखें जरूर हो जाएंगी।
हमारी मां ने कई बार हमारी नज़र उतारी, लेकिन फिर भी नजर का चश्मा नहीं उतार पाई। खूब दूध बादाम और धनिये के लड्डू हमें खिलाए, त्रिफला के पानी से आंखे भी धोई और डाबर का च्यवनप्राश खाया, डाबर आंवला का तेल भी लगाया, आसन प्राणायाम भी किए, लेकिन डॉक्टर ने साफ कह दिया, आप हाईली मायोपिक हो, बस आंख बचाकर रखो।।
इस बार गुजरते सावन और अधिक मास में, न तो बरसात का पता है, और न ही बरसाती मेंढकों का। लेकिन लोग हैं कि उनकी आंख आ रही है। आँखों के डॉक्टर इसे कंजेक्टिवाइटिस और सरल हिंदी भाषा में नेत्रश्लेष्मलाशोथ कहते हैं। आप जब डॉक्टर को आंख दिखाते हैं, तो वह कहता है, भूलकर भी किसी और को आंख मत दिखाना, आपकी आंख आई हुई है। गोरे गोरे गालों पर काला चश्मा यूं ही नहीं चढ़ाया जाता।
अपनी आँखों का प्रताप तो देखिए, ऐसी हालत में दुश्मन को बस आंख दिखाना ही काफी है। किसी को ऐसी स्थिति में आंख मारना खतरे से खाली नहीं।जहां कभी आँखों आँखों में बात हुआ करती थी, वहां आज परदा है जी पर्दा।।
जब तक आपकी आंख आई हुई है, अपनी भी सुरक्षा रखें और सामने वाले की भी। डॉक्टरों के लिए भले ही यह सालाना उत्सव हो, हमारे लिए एक संक्रमित रोग है। यह अतिरिक्त आंख है, इसका सावधानीपूर्वक विशेष खयाल रखना पड़ेगा। इसका उचित इलाज करवाएं।
शायर सही कह गया है; तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है। स्विस बैंक में रखा पैसा किस काम का। समझदार इंसान वह, जो समय रहते अपनी आंखें आई बैंक में जमा करा दे। नेत्रदान महा कल्याण। आपको इसके लिए जीते जी कुछ नहीं करना है, बस एक फॉर्म भरकर आपकी आँखें दान कर दीजिए। कल खेल में जब हम ना होंगे, तो आपकी ही आँखों से कोई खेल रहा होगा, यह दुनिया देख रहा होगा। किसी के जीवन का उजाला बनें, अपना लोक और परलोक दोनों सुधारें।।
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक आलेख – निष्पक्ष परीक्षा के लिए ए आई…।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 224 ☆
आलेख – निष्पक्ष परीक्षा के लिए ए आई…
जीवन हर पल एक परीक्षा ही होती है। गुणवत्ता बनाए रखने के लिए शिक्षा से लेकर नौकरी के लिए भी पारदर्शी तरीके से तटस्थ भाव से परीक्षा संपन्न करवाना भी एक बड़ा कार्य है। कभी पेपर आउट, कभी नकल, तो कभी कभी जांच कार्य में पक्षपात के आरोप लगते हैं। परीक्षाओं को सुसंपन्न करना एक चुनौती है।
इसके लिए कम्प्यूटर और अब ए आई का सदुपयोग किया जाना चाहिए।
इंस्टिट्यूशन आफ इंजीनियर्स इंडिया देश की 100 वर्षो से पुरानी संस्था है। इंस्टिट्यूशन सदैव से नवाचारी रही है। AMIE हेतु परीक्षा में नवाचार अपनाते हुए, हमने प्रश्नपत्र जियो लोकेशन, फेस रिक्गनीशन, ओ टी पी के तेहरे सुरक्षा कवच के साथ ठीक परीक्षा के समय पर आन लाइन भेजने की अद्भुत व्यवस्था की। सात दिनों, सुबह शाम की दो पारियों में लगभग 50 से ज्यादा पेपर्स, होते है।
मैने भोपाल स्टेट सेंटर से नवाचारी साफ्टवेयर से परीक्षा में केंद्र अध्यक्ष की भूमिकाओं का सफलता से संचालन किया।
इंस्टिट्यूशन के चुनाव तथा परीक्षा के ये दोनो साफ्टवेयर अन्य संस्थाओं के अपनाने योग्य हैं, इससे समय और धन की स्पष्ट बचत होती है। पेपर डाक से भेजने नही होते, रियल टाइम पर पेपर कम्प्यूटर पर डाउन लोड किए जाते हैं। नकल रोकने कैमरे हैं। रिकार्डिंग रखी जाती है।
इस तरह पारदर्शी तरीके से अन्य शैक्षिक तथा नौकरी में भर्ती आदि परीक्षा संपन्न कराने में टेकनालजी के प्रयोग को और बढ़ाने की जरूरत है।
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जीका हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक शिक्षाप्रद आलेख –“बच्चों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के उपयोग का विश्लेषण”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 147 ☆
☆ आलेख – “बच्चों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के उपयोग का विश्लेषण” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) एक शक्तिशाली उपकरण है जिसका उपयोग बच्चों के जीवन को कई तरह से बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, एआई का उपयोग बच्चों को व्यक्तिगतकृत शिक्षा प्रदान करने, उन्हें नए कौशल सीखने में मदद करने और उन्हें दुनिया के बारे में अधिक जानने में मदद करने के लिए किया जा सकता है.
हालांकि, एआई का उपयोग बच्चों के लिए कुछ जोखिमों के साथ भी जुड़ा हुआ है. उदाहरण के लिए, एआई का उपयोग बच्चों को ऑनलाइन धोखाधड़ी और उत्पीड़न के लिए किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त, एआई का उपयोग बच्चों को आपत्तिजनक सामग्री तक पहुंच प्रदान करने के लिए किया जा सकता है.
कुल मिलाकर, एआई एक शक्तिशाली उपकरण है जिसका उपयोग बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है. हालांकि, एआई के उपयोग से जुड़े जोखिमों से अवगत होना महत्वपूर्ण है और बच्चों को सुरक्षित रूप से एआई का उपयोग करने के लिए शिक्षित करना महत्वपूर्ण है.
यहां कुछ विशिष्ट उदाहरण दिए गए हैं कि एआई का उपयोग कैसे किया जा सकता है ताकि बच्चों के जीवन को बेहतर बनाया जा सके:
व्यक्तिगतकृत शिक्षा: एआई का उपयोग बच्चों को व्यक्तिगतकृत शिक्षा प्रदान करने के लिए किया जा सकता है जो उनकी व्यक्तिगत जरूरतों और रुचियों को पूरा करता है. उदाहरण के लिए, एआई का उपयोग बच्चों को उनकी गतिविधियों के आधार पर पाठ्यक्रम सामग्री प्रदान करने के लिए किया जा सकता है, या उन्हें उनके कौशल के स्तर के अनुसार प्रश्न पूछने के लिए किया जा सकता है.
नए कौशल सीखना: एआई का उपयोग बच्चों को नए कौशल सीखने में मदद करने के लिए किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, एआई का उपयोग बच्चों को भाषा सीखने, संगीत बजाने या कंप्यूटर प्रोग्रामिंग करने में मदद करने के लिए किया जा सकता है.
दुनिया के बारे में जानना: एआई का उपयोग बच्चों को दुनिया के बारे में जानने में मदद करने के लिए किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, एआई का उपयोग बच्चों को दुनिया के विभिन्न देशों के बारे में जानकारी प्रदान करने, या उन्हें दुनिया के विभिन्न संस्कृतियों के बारे में जानने में मदद करने के लिए किया जा सकता है.
यहां कुछ विशिष्ट उदाहरण दिए गए हैं कि एआई का उपयोग कैसे किया जा सकता है ताकि बच्चों को जोखिम हो सकते हैं:
ऑनलाइन धोखाधड़ी: एआई का उपयोग बच्चों को ऑनलाइन धोखाधड़ी के लिए किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, एआई का उपयोग बच्चों को उन वेबसाइटों पर भेजने के लिए किया जा सकता है जो उनसे व्यक्तिगत जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करती हैं, या उन्हें उन उत्पादों या सेवाओं को खरीदने के लिए प्रेरित करने के लिए किया जा सकता है जो वे वास्तव में नहीं चाहते हैं.
उत्पीड़न: एआई का उपयोग बच्चों को उत्पीड़न के लिए किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, एआई का उपयोग बच्चों को अपमानजनक या आपत्तिजनक संदेश भेजने के लिए किया जा सकता है, या उन्हें ऑनलाइन बदनाम करने के लिए किया जा सकता है.
आपत्तिजनक सामग्री तक पहुंच: एआई का उपयोग बच्चों को आपत्तिजनक सामग्री तक पहुंच प्रदान करने के लिए किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, एआई का उपयोग बच्चों को अश्लील सामग्री, हिंसक सामग्री या नफ़रत फैलाने वाली सामग्री तक पहुंच प्रदान करने के लिए किया जा सकता है.
यह महत्वपूर्ण है कि माता-पिता अपने बच्चों को एआई के जोखिमों से अवगत कराएं और उन्हें सुरक्षित रूप से एआई का उपयोग करने के लिए शिक्षित करें. माता-पिता अपने बच्चों को एआई का उपयोग करते समय कुछ बातों का ध्यान रख सकते हैं, जैसे कि:
अपने बच्चों को यह समझाएं कि –
एआई एक उपकरण है, और इसका उपयोग अच्छे या बुरे के लिए किया जा सकता है.
वे ऑनलाइन क्या साझा कर रहे हैं, इस बारे में सावधान रहें.
वे ऑनलाइन किसी से भी बातचीत करते समय सावधान रहें.
वे ऑनलाइन आपत्तिजनक सामग्री देखते हैं, तो क्या करें.
माता-पिता अपने बच्चों को एआई के जोखिमों से अवगत कराकर और उन्हें सुरक्षित रूप से एआई का उपयोग करने के लिए शिक्षित करके, वे अपने बच्चों को ऑनलाइन सुरक्षित रहने में मदद कर सकते हैं.
(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।
आप “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 171 ☆
☆ बाल कविता – खट – मिट्ठे हैं काले – काले☆ डॉ राकेश ‘चक्र’☆