हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #203 – 89 – “तुम मेरा ये संसार तो देखो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “तुम मेरा ये संसार तो देखो…”)

? ग़ज़ल # 89 – “तुम मेरा ये संसार तो देखो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

कमरे का विस्तार तो देखो,

तुम मेरा ये संसार तो देखो।

फ़ालतू  खबरों  से भरा है,

आज का अख़बार तो देखो।

बंद घरों में पार्टियाँ हो रहीं,

पल रहा व्यभिचार तो देखो।

धन जमा होता कंपनियों में,

नियोजित भ्रष्टाचार तो देखो।

शेर ऊलजलूल लिखे जा रहा,

‘आतिश’ का अचार तो देखो।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 129 ⇒ सफेद झूठ… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सफेद झूठ”।)  

? अभी अभी # 129 ⇒ सफेद झूठ? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

 

क्या सच और झूठ को भी रंग से पहचाना जा सकता है, पानी का तो कोई रंग नहीं होता, इसीलिए दूध में पानी मिलाया जाता है। अगर झूठ भी सफेद रंग का हुआ, तो उसमें भी मिलावट की संभावना है।

अगर झूठ में भी मिलावट होने लगी तो फिर सच का तो भगवान ही मालिक है, यकीन मानिए, आपको खाने को कभी असली जहर भी नसीब नहीं होगा।

लहू का रंग एक है, अमीर क्या गरीब क्या, तो सुना था, रात के अंधेरे में भी आसानी से पहचान लिया जाए, वह सफेद झूठ ! चलो जी, यह भी मान लिया, तो फिर सच की भी तो कुछ पहचान होगी। सच सच बता, सच ! तेरा रंग कैसा ?

सच में मिलावट कोई बर्दाश्त नहीं करता। असली घी, खरा सोना, और तराशा हुआ हीरा होता है सच, सच का कोई रंग नहीं होता, सच, सोलहों आने सच होता है।।

अगर आपकी जेब में सिर्फ चार आने हैं, तो आप कितना सच खरीद पाएंगे। आने कब, दशमलव में नये पैसे हो गए, पैसा काला और सफेद धन हो गया, सबसे बड़ा रुपया हो गया और पैसा भी बाजार से गायब हो गया। जी हां, और यही सच है कि सच भी सोलहों आने सच, बाजार से आने और नये पैसे की तरह चलन से बाहर हो गया।

अब सभी ओर सफेद झूठ का कारोबार जोर शोर से चल रहा है। हम तो नहीं कहते लेकिन दुनिया तो कहती है, झूठे का बोलबाला, सच्चे का मुंह काला। इधर सच को अपनी सूरत दिखाने में भी शर्म आ रही है और उधर सफेद झूठ दिन में दस बार सर्फ से धुले साफ सफेद कपड़े पहनकर रोड शो कर रहा है।।

सच और झूठ दोनों का कारोबार चल रहा है। अब सच ने सफेद धन का चोला पहन लिया है और झूठ ने काले धन का। एक नंबर को हमने सच मान लिया है और दो नंबर को दस नंबरी। एक नंबर वाला दूध से धुला है, और दो नंबरी काला बाजारी।

चारों ओर काले धन और सफेद झूठ की जुगलबंदी चल रही है। कड़वा सच कहीं खामोश सिसकियों और आक्रोश में अपना दम तोड़ रहा है। सच की रोशनी से भी कहीं सफेद झूठ की आँखें चौंधियाई हैं ! लगता है सच को ही मोतियाबिंद हो गया है और आँखों के डॉक्टर ने भी feko सर्जरी के पश्चात् जो लैंस लगाया है, उससे भी अब सफेद झूठ ही नजर आ रहा है। सच में कहां आ गए हैं हम लोग।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – साथ-साथ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – साथ-साथ ??

चलो कहीं साथ मिल बैठें,

न कोई शब्द बुनें,

न कोई शब्द गुनें,

बस खामोशी कहें,

बस खामोशी सुनें..!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9:43 बजे, 25.08.22

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 80 ☆ मुक्तक ☆ ।। मैं उसकी बात करूँ, वो मेरी बात करे ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ मुक्तक ☆ ।। मैं उसकी बात करूँ, वो मेरी बात करे ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

हाथों में   सब के  ही सब  का हाथ  हो।

एक    दूजे के लिए मन   से साथ  हो।।

जियो और जीने दो, एक ईश्वर की संतानें।

बात यह   दिल  में हमेशा ही  याद हो।।

[2]

सुख सुकून हर    किसी   का  आबाद  हो।

हर किसी के लिए संवेदना यही फरियाद हो।।

हर किसीके लिए सहयोग बस ये हो सरोकार।

मानवीय   रूपी ही एक दूसरे से  संवाद हो।।

[3]

हर दिल में बस स्नेह नेह  का ही  लगाव हो।

दिल के भीतर  तक बसता प्रेम का भाव हो।।

प्रभाव नहीं हो किसी  पर   घृणा के दंश का।

आपस में मीठे बोल का नहीं कहीं अभाव हो।।

[4]

हर कोई दूसरे के   जज्बात    की ही बात करे।

हो विश्वास का बोलबाला ना घात प्रतिघात करे।।

स्वर्ग सा  ही हिल मिल  कर रहें धरती पर हम।

मैं बस   तेरी बात करूं, और तू  मेरी बात करे।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 144 ☆ बाल गीतिका से – “हमारा वतन 🇮🇳” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित बाल साहित्य ‘बाल गीतिका ‘से एक बाल गीत  – “हमारा वतन…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

 ☆ बाल गीतिका से – “हमारा वतन 🇮🇳” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

हमको प्यारा है भारत हमारा वतन

सारी दुनिया का सबसे सुहाना चमन

हम हैं पंछी ये गुलशन यहाँ बैठ मन

चैन पाता सजाता नये नित सपन ।

इसकी माटी में खुशबू है एक आब है

जैसे काश्मीर, दो आब, पंजाब है

इसकी धरती है चंदन, सुहाना गगन

धन भरे खेत खलिहान, मैदान, वन।

इसकी तहजीब का कोई सानी नहीं

जो पुरानी  होकर भी पुरानी नहीं

हर डगर-बिखरा मिलता यहाँ अपनापन

 प्रेम, सद्भाव संतोष है जिसके धन ।

हवा पानी में मीठी मोहब्बत घुली

 जिंदगी यहाँ है गंगाजल में घुली

फूल सा है खिला मन, खुला आचरण

सद् समझ, ईद होली बैसाखी मिलन ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ – “सिपाही…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ लघुकथा – “सिपाही…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

“अनिल भाई, आजकल दिखते नहीं हो ।कहां, बिजी रहते हो ?”

“राकेश जी, नौकरी की ड्युटी में लगा रहता हूं ।”

“अरे, तो इसका मतलब, क्या हम नौकरी नहीं कर रहे ?”

“ऐसी बात नहीं, आप भी कर रहे हैं, पर ऑफिस की बाबूगिरी और पुलिस के सिपाही की नौकरी में बहुत अंतर है ?”

“क्या मतलब ?”

“मतलब यह कि इस समय हम इमर्जेंसी सेवा में लगे हुए हैं, हमारी ज़रा सी लापरवाही देश और लोगों के लिए मंहगी पड़ जाएगी ।”

“अरे अनिल, बहाना बनाकर छुट्टी लो, और ऐश करो ।”

“नहीं जी, यह मुसीबत का काल है, तो क्या हमें पूरी ज़िम्मेदारी के साथ अपनी ड्युटी से न्याय नहीं करना चाहिए ।”

“अरे,छोड़ो तुम भी । अब तुम मुझे ही ज्ञान बांटने लगे ।”

” नहीं भाई, इसमें ज्ञान की क्या बात है, मैं तो अपने दिल की बात कह रहा हूं ।”

दो दोस्त मोबाइल पर ये बातें कर ही रहे थे कि तभी सड़क पर दो मोटरसाइकिलें ज़बरदस्त ढ़ंग से एक-दूसरे से भिड़ गईं ।दोनों गाड़ियों के सवार छिटककर दूर जा गिरे । एक तो, जो अधिक घायल नहीं हुआ था, तत्काल खड़ा हो गया, पर दूसरा जो बहुत घायल हुआ था, वह अचेत हो चुका था। तत्काल ही एम्बुलेंस को बुलाकर ड्युटी पर तैनात सिपाही अनिल उसे अस्पताल लेकर पहुंचा । उसकी जांच करते ही डॉक्टर ने कहा कि घायल को लाने में अगर थोड़ी देर और हो गई होती,तो उसे बचाना मुश्किल होता।

घायल विवेक के पर्स में रखे आधार कार्ड से उसके पेरेंट्स का कॉन्टेक्ट नंबर लेकर जब पेरेंट्स को बुलाया गया, और उसके पिता आये, तो अनिल ने पाया कि विवेक तो उसके उसी दोस्त राकेश का ही बेटा है, जो कुछ देर पहले ही उसे मोबाइल से अपनी ड्युटी से बचने के उपाय बता रहा  था।

सच्चाई जानकर राकेश अनिल से आंखें मिलाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था, वह बगलें झांकने लगा था ।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद ☆ FeedSpot की श्रेष्ठ 90 मराठी ब्लॉग सूची में ई-अभिव्यक्ती (मराठी) एवं अन्य विशिष्ट उपलब्धियां ☆ हेमन्त बावनकर ☆

हेमन्त बावनकर

☆  FeedSpot की श्रेष्ठ 90 मराठी ब्लॉग सूची में ई-अभिव्यक्ती (मराठी) एवं अन्य विशिष्ट उपलब्धियां ☆ हेमन्त बावनकर ☆

प्रिय मित्रो,

सर्वप्रथम ई-अभिव्यक्ति के सभी एवं प्रबुद्ध लेखकगण तथा पाठकगण के आत्मीय स्नेह के लिए हृदय से आभार।

इस वर्ष अक्तूबर २०२३ में आपकी प्रिय वैबसाइट के सफल ५ वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं एवं १५ अगस्त २०२३ को ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ने अपने सफल ३ वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। 

अगस्त माह हम सब के लिए कई विशिष्ट उपलब्धियां ले कर आया है। मुझे इन उपलब्धियों को आपसे साझा करने में अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।

यह ई-अभिव्यक्ती(मराठी) के संपादक मण्डल के सतत प्रयासों एवं प्रबुद्ध लेखकगण एवं पाठकगण के आत्मीय स्नेह का ही परिणाम है कि आपकी प्रिय वेबसाइट को FeedSpot की श्रेष्ठ 90 मराठी ब्लॉग सूची में स्थान प्राप्त हुआ है। FeedSpot के संस्थापक श्री अनुज अग्रवाल जी के ईमेल संदेश के अनुसार आपकी प्रिय वेबसाइट का चयन उनकी स्वतंत्र समिति के सदस्यों द्वारा  किया गया है, जिसे आप इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं 👉 Top 90 Marathi Blogs 

  • FeedSpot की श्रेष्ठ 90 मराठी ब्लॉग सूची में ई-अभिव्यक्ति (मराठी) के लेखक एवं सुप्रसिद्ध मराठी व्यंग्यकार श्री अमोल अनंत केळकर के व्यक्तिगत ब्लॉग  माझी टवाळखोरी !!!! ….. को भी स्थान मिला है। 
  • ई-अभिव्यक्ती (मराठी) के निम्नलिखित साहित्यकारों को तितिक्षा इंटरनॅशनल संस्था द्वारा साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए राष्ट्रीय ग्रंथ पुरस्कार २०२३ श्रेणी में सम्मानित किया गया है। 
    1. डाॅ.सोनिया कस्तुरे – सर्वोत्कृष्ट काव्यसंग्रह : नाही उमगत ती अजूनही.
    2. सुश्री वीणा रारावीकर – उत्कृष्ट काव्यसंग्रह : गुजगोष्टी शतशब्दांच्या.
    3. श्री रवींद्र सोनवणे – गझलसंग्रह : प्रथम पुरस्कार : जाणीवांची आवर्तने.
    4. श्री विश्वास विष्णु देशपांडे –  विशेष प्रेरणादायी व्यक्तीकथा: अष्टदीप.
    5. सुश्री राधिका भांडारकर  – जीजी : आत्मानुभव व्यक्तीकथा.
    6. सुश्री वंदना हुळबत्ते – बालकथासंग्रह : गांडुळाशी मैत्री.
    7. श्री सुजीत कदम – बालकाव्यसंग्रह : अरे अरे ढगोबा 
    8. सुश्री संध्या बेडेकर – सहज मनातलं शब्दात.
  • स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर ई-अभिव्यक्ति (अँग्रेजी) के संपादक एवं प्रतिष्ठित साहित्यकार कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को प्रतिष्ठित ग्लोबल राइटर्स एकेडमी द्वारा बेस्ट पोएट (श्रेष्ठ कवि) के सम्मान से सम्मानित किया गया।
  • स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर ई-अभिव्यक्ति (हिन्दी) के संपादक एवं प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी को प्रतिष्ठित १०० अंतरराष्ट्रीय साहित्यकारों की सूची राही  रेंकिंग २०२३ में स्थान देकर सम्मानित किया गया ।
  • हिन्दी आंदोलन परिवार, पुणे द्वारा हिन्दी उत्सव २३ अप्रैल २०२३ को वर्ष २०२२ के हिन्दीश्री सम्मान से मुझे अलंकृत किया गया। इसके लिए हिन्दी आंदोलन परिवार के अध्यक्ष श्री संजय भारद्वाज जी का हार्दिक आभार।  

इन पंक्तियों के लिखे जाते तक 18,340 रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं एवं 5,23,300 से अधिक विजिटर्स आपकी प्रिय वैबसाइट www.e-abhivyakti.com पर विजिट कर चुके हैं।

इन सभी उपलब्धियों से ई-अभिव्यक्ति परिवार गौरवान्वित अनुभव करता है। आप सभी का यह अपूर्व आत्मीय स्नेह एवं प्रतिसाद इसी प्रकार हमें मिलता रहेगा। 

आपसे सस्नेह विनम्र अनुरोध है कि आप ई-अभिव्यक्ति में प्रकाशित साहित्य को आत्मसात करें एवं अपने मित्रों से सोशल मीडिया पर साझा करें। 

आपके विचारों एवं सुझावों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।

एक बार पुनः आप सभी का हृदय से आभार ।

सस्नेह

हेमन्त बावनकर

पुणे (महाराष्ट्र)   

१९ अगस्त २०२३ 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ ‘भारतीय मी, भारत माझा 🇮🇳’ ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

सुश्री प्रणिता प्रशांत खंडकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ ‘भारतीय मी, भारत माझा 🇮🇳‘ ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

भारत देश महान, अमुचा भारत देश महान!

‘सत्यमेव जयते’, आमच्या राष्ट्राची हो शान!

 

 भारतभूच्या पोटी जन्मले,

 सुपुत्र लाखो महान!

 स्वातंत्र्यास्तव लढले घेऊन ,

  तळहातावर प्राण!

 सदा राखली जगात त्यांनी,

  राष्ट्राची या शान!

 म्हणून गाठले स्वातंत्र्याने

 पाऊणशे वयमान! ||१||

 

 स्वेच्छेने होती, भरती येथे,

  लाखो वीर जवान,

 मातृभूमीस्तव, सुहास्यवदने,

  प्राणांचे देती बलिदान!

 नागरिकांचे संरक्षण अन्

  नारीचा सन्मान,

 सीमेवरती अहोरात्र हे

  सशस्त्र उभे जवान! ||२||

 

 वाळवंटीचे प्रखर ऊन वा,

  वादळ सागरीचे ,

  तांडव जलधारांचे अथवा,

   हिम-दंशही सियाचीनचे,

 तहान-भूक, विसरूनी सारे,

  निभवित कर्तव्याला,

 विसरू नका हो भारतवासी,

  त्यांच्या समर्पणाला! ||३||

 

 झोप सुखाची आम्ही घेतां,

   दिनरात ते, देती पहारा,

 आठवत नसेल का हो त्यांना,

 माय-बाप अन् कुटुंब-कबिला?

  चला शोधूनी आपण त्यांना,

   हात मदतीचा देऊ,

  ओलाव्याने आपुलकीच्या,

   आश्वस्त जवानां करू! ||४||

 

  कार्यक्षेत्र जरी भिन्न आपुले,

    प्रामाणिकता जपू,

   नागरिकांच्या कर्तव्याचे,

      यथार्थ पालन करू!

    राष्ट्रध्वज,तिरंगा अमुचा,

     सन्मान तयाचा ठेवू,  

     विश्वशांतीचा  घेऊनी वसा,

     दहशतवादा उखडू!

    देशहिताच्या संस्काराचे,

     स्वयं उदाहरण बनू,

    भारतभूच्या विकासाचे,

     शिल्प मनोहर घडवू!    ||५||               

© सुश्री प्रणिता खंडकर

संपर्क – सध्या वास्तव्य… डोंबिवली, जि. ठाणे.

ईमेल [email protected] केवळ वाॅटसप संपर्क.. 98334 79845.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ मातृभूमी वंदना 🇮🇳 ☆ सौ. मुग्धा कानिटकर ☆

? कवितेचा उत्सव ?

☆ मातृभूमी वंदना 🇮🇳 ☆ सौ. मुग्धा कानिटकर ☆

वंदन त्रिवार भारतमाते 

शत शत नमन तुला //धृ//

 

भाषा, प्रांत, विभिन्नतेचे

सूर उमटती इथे एकतेचे

भूषणे हीच तुझी माते

वंदन त्रिवार भारतमाते 

शत शत नमन तुला..//१//

सस्यशालिनी विशालतेचे

सागर -नद्यांच्या संगमांचे

अनुपम रूपे तुझी माते

वंदन त्रिवार भारतमाते 

शत शत नमन तुला..//२//

सकल हृदयांत देशसेवेचे

बीजारोपण हे सुसंस्कारांचे

स्वप्ने साकार होती तुझी माते

वंदन त्रिवार भारतमाते 

शत शत नमन तुला..//३//

विज्ञानाचे अन् अध्यात्माचे

ज्ञान मिळे इथे शाश्वततेचे

प्रेमभावना ही तुझी माते

वंदन त्रिवार भारतमाते 

शत शत नमन तुला..//४//

तरुणाईला पंख दे प्रतिभेचे

स्थान लाभो तुज विश्वगुरुचे

साक्षात्कार देती तुझी माते

वंदन त्रिवार भारतमाते 

शत शत नमन तुला..//५//

© सौ. मुग्धा कानिटकर

विश्रामबाग, सांगली – मो. 9403726078

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 166 – आई अंबाबाई ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 166 – आई अंबाबाई ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

अगं आई ,अंबाबाई 

तुझा घालीन गोंधळ ।

डफ तुण तुण्यासवे

भक्त वाजवी संबळ।

 

सडा कुंकवाचा घालू

नित्य आईच्या मंदिरी।

धूप दीप कापूराचा

गंध दाटला अंबरी.

 

 

ताट भोगीचे सजले

केळी, मध साखरेने।

दही मोरव्याचा मान

फोडी लिंबाच्या कडेने .

 

ओटी लिंबू  नारळाची

संगे शालू  बुट्टेदार।

केली अलंकार पूजा

सवे शेवंतीचा हार.

 

धावा ऐकुनिया माझा

 आई संकटी धावली।

निज सौख्य देऊनिया

धरी कृपेची सावली।

 

माळ कवड्यांची सांगे

मोल माझ्या जीवनाचे।

परडीत मागते मी

तुज दान कुंकवाचे।

 

असे दैवत जागृत

उभ्या ब्रह्मांडात नाही।

भक्त कल्याणाची देते

साऱ्या जगतास ग्वाही।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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