हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #199 ☆ व्यंग्य – ‘स्वर्ग में कुपात्र’ ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य ‘स्वर्ग में कुपात्र’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 199 ☆

☆ व्यंग्य ☆ ‘स्वर्ग में कुपात्र’

उस रात मल्लू मेरे सपने में आ गया। मैंने उसे देखकर पूछा, ‘कैसा है भैया? नरक में मज़े में तो है?

मेरा सवाल सुनकर वह तरह तरह के मुँह बनाने लगा। लगा, अभी रो देगा। थोड़ा सँभल कर बोला, ‘भैया, मैं तो बुरा फँस गया। मेरे साथ धोखा हो गया। मुझे पक्का भरोसा था कि मुझे मौत के बाद नरक में जगह मिलेगी, वहाँ अपने जैसे लोगों के साथ अच्छी कटेगी, लेकिन यहाँ आने पर पता चला कि मुझे स्वर्ग भेज दिया गया। अब मैं बहुत परेशान हूँ।’

मल्लू दो महीने पहले सड़क पर एक्सीडेंट में चोट खाकर दुनिया से रवाना हुआ था। उसकी फितरत को देखकर हम समझ गए थे कि वह सड़क पर अपने आसपास चलती महिलाओं को घूरने के चक्कर में किसी गाड़ी से टकराया होगा। हम जब तक अस्पताल पहुँचे तब तक वह रुखसत हो चुका था। हमने ज़िन्दगी भर उसे नरक का ‘मटीरियल’ ही समझा था। इसीलिए अभी उसके स्वर्ग पहुँचने की जानकारी पाकर ताज्जुब हुआ।

उसकी बात सुनकर मैंने कहा, ‘यह तो अच्छा ही हुआ कि सारे दुर्गुणों के बावजूद तू स्वर्ग में प्रवेश पा गया। इसमें दुखी होने की क्या बात है? तुझे तो खुश होना चाहिए।’

वह बोला, ‘नहीं भैया, ये स्वर्ग अपने को जमता नहीं। यहाँ कोई अपने जैसा आदमी नहीं, जिससे मन की बात हो सके। सब तरफ साधु- सन्त टाइप लोग, पेड़ों के नीचे आँखें मूँदे बैठे, माला जपते रहते हैं। कुछ देवता-टाइप लोग, मुकुट पहने, रथों पर दौड़ते फिरते हैं। कहीं पढ़ा था कि यहाँ अप्सराओं के दर्शन होंगे, लेकिन यहाँ तो सैकड़ों साल की वृद्धाओं के ही दर्शन होते हैं, जिन्हें देखते ही चरण छूने की इच्छा होती है। यह भी पढ़ा था कि यहाँ दूध, शहद और सोमरस की  नहरें बहती हैं, लेकिन अभी तक कुछ दिखायी नहीं पड़ा। दूध और शहद से तो हमें कुछ लेना- देना नहीं, सोमरस की नहर मिल जाती तो उसी के किनारे पड़े रहते। वक्त अच्छा कट जाता। अभी तो कष्ट ही कष्ट है।’

मैंने कहा, ‘वहाँ कुछ बखेड़ा कर ले तो शायद नरक का नंबर लग जाए।’

वह लंबी साँस लेकर बोला, ‘कोई फायदा नहीं है। मैंने यहाँ एक दो लोगों से बात की तो बताया गया कि मुझे पुण्य क्षय होने तक यहीं रहना पड़ेगा। अब मैंने कोई पुण्य किया ही नहीं है तो क्षय क्या होगा?’

दो दिन बाद वह फिर मेरे सपने में प्रकट हो गया। बोला, ‘भैया, मुझे पता चल गया है कि मुझे स्वर्ग क्यों भेजा गया। दरअसल मैं एक्सीडेंट के बाद बड़ी देर तक ‘मरा मरा’ चिल्लाता रहा। उसी में स्वर्ग-नरक के प्रबंधकों को कुछ ‘कनफ्यूज़न’ हो गया और मुझे राम-भक्त समझकर स्वर्ग भेज दिया गया। मुझे लगता है कि जैसे धरती पर हमारे देश में बड़े बॉस का नाम जपते जपते लोग परम पद प्राप्त कर लेते हैं, वैसे ही यहाँ भी बॉस का नाम सुनते ही स्वर्ग का टिकट पक्का हो जाता है, भले ही उसमें गलतफहमी हो। मैंने कभी अजामिल की कथा पढ़ी थी जो सिर्फ इसलिए स्वर्ग का अधिकारी हो गया था कि वह अपने बेटे को बुलाता रहता था। बेटे का नाम नारायण था। कुछ वैसा ही मेरे साथ हुआ। अब जो हुआ सो हुआ। पुण्य क्षय होने तक इंतज़ार करने के सिवा कोई रास्ता नहीं है।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – लघुकथा ☆ “सेलीब्रेशन…” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ लघुकथा ☆ “सेलीब्रेशन…” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

प्रीतेश ,साढ़े तीन सौ का फेंग शुई वाला “लकी बाम्बू” लेकर आया। वह पक्का वामपंथी है पर —- मानव मन की थाह पाना इतना आसान भी नहीं।

घर आते ही उसने ज़िन्दगी का फलसफा समझाने वाला वीडिओ देखा। उसे देख सुनकर उसकी आँखें भर आईं। जिसमें एक हताश व्यक्ति को उसका मेन्टोर बाम्बू के प्रतीक से समझा रहा था। बांबू को पाँच वर्ष तक लगातार खाद पानी देना होता है। उम्मीद का कोई चेहरा नज़र नहीं आता फिर देखते ही देखते वह छः सप्ताह में नब्बे फीट बढ़ जाता है।

कामयाबी बड़ा ही करिश्माई जुमला है। लोग सतह के नीचे की कारीगरी याद नहीं रखते। सिर्फ छः सप्ताह याद रखते हैं। हमें पूरी ईमानदारी से काम करते रहना चाहिए।

प्रीतेश को सहसा ओशो कम्यून याद आ गया। उसने पत्नी मीता से कहा- पता है तुम्हें बांबू की जिन्दगी में सिर्फ एक बार फूल आते है, फूल आते ही वह मर जाता है ।

“नियति” —- मीता ने उदास होकर कहा।

—- “मुझे लगता है फूल यानी रंग, सौंदर्य और सार्थकता–“! उन लोगों की तरह जिन्हें मृत्यु के निकट पहुंचने पर सफलता मिलती है———–

यह प्रीतेश का स्वर था।

—– “हां इसे दूसरी तरह से कहना हो तो ये भी कह सकते हैं —– बहुत संभव है बाँस अपनी मौत को सेलीब्रेट करना चाहता हो।”

प्रीतेश मीता को एकटक देखता ही रह गया।।

****

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 197 ☆ गुरु पूर्णिमा विशेष- सच्चा गुरु ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

? संजय उवाच # 197 गुरु पूर्णिमा विशेष –  सच्चा गुरु ??

मनुष्य अशेष विद्यार्थी है। प्रति पल कुछ घट रहा है, प्रति पल मनुष्य बढ़ रहा है। घटने का मुग्ध करता विरोधाभास यह कि  प्रति पल, पल भी घट रहा है।

हर पल के घटनाक्रम से मनुष्य कुछ ग्रहण कर रहा है। हर पल अनुभव में वृद्धि हो रही है, हर पल वृद्धत्व समृद्ध हो रहा है।

समृद्धि की इस यात्रा में प्रायः हर पथिक सन्मार्ग का संकेत कर सकने वाले मील के पत्थर को तलाशता है। इसे गुरु, शिक्षक, माँ, पिता, मार्गदर्शक,  सखा, सखी कोई भी नाम दिया जा सकता है।

विशेष बात यह कि जैसे हर पिता किसी का पुत्र भी होता है, उसी तरह अनुयायी या शिष्य,  मार्गदर्शक भी होता है। गुरु वह नहीं जो कहे कि बस मेरे दिखाये मार्ग पर चलो अपितु वह है जो तुम्हारे भीतर अपना मार्ग ढूँढ़ने की प्यास जगा सके। गुरु वह है जो तुम्हें ‘एक्सप्लोर’ कर सके, समृद्ध कर सके। गुरु वह है जो तुम्हारी क्षमताओं को सक्रिय और विकसित कर सके।

एक संत थे जिनके लिए कहा जाता था कि वे ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग जानते हैं। स्वाभाविक था कि उनके शिष्यों की संख्या में उतरोत्तर वृद्धि होती गई। हरेक के मन में ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग जानने की सुप्त इच्छा थी। एक दिन दैनिक साधना के उपरांत उनके परम शिष्य ने इस बाबत पूछ ही लिया। गुरुजी बोले, मैं तुम्हें ईश्वर तक पहुँचने के मार्गदर्शक तत्व बता सकता हूँ पर अपना मार्ग तुम्हें स्वयं ढूँढ़ना होगा।

ज्ञानी जानता है कि पुल पार करने से नदी पार नहीं होती। नदी पार करने के लिए उसमें कूदना पड़ता है। लहरों के थपेड़ों के साथ अन्य सभी आशंकाओं को भी तैरकर परास्त करना होता है। तैराकी के गुर सिखाये जा सकते हैं पर तैरते समय हरेक को अपने हिस्से की चुनौतियों से स्वयं दो-दो हाथ करने पड़ते हैं।

आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समझना चाहें तो जीपीएस लगाकर गंतव्य तक पहुँचा तो जा सकता है पर रास्ते का ज्ञान नहीं होता। रास्ता समझने के लिए स्वयं भटकना होता है। अपना रास्ता स्वयं ढूँढ़ना होता है। स्वयं की क्षमताओं को सक्रिय करना होता है।  स्वयं को स्वयं ही अपना शोध करना होता है, स्वयं को स्वयं ही अपना बोध  करना होता है।

ध्यान रहे कि पथ तो पहले से ही है। तुम उसका अनुसंधान भर करते हो, आविष्कार नहीं। यह भी भान रहे कि पथ का अनुसंधान करनेवाले तुम अकेले नहीं हो, असंख्य दूसरे भी अपने-अपने तरीके से अनुसंधान कर रहे हैं। सारे मार्गों का अंतिम लक्ष्य एक ही है। अत: यह एकाकार का मार्ग है।

सच्चा गुरु वह है जो  तुम्हें एकल नहीं एकाकार की यात्रा कराये। एकाकार ऐसा कि पता ही न चले कि तुम गुरु के साथ यात्रा पर हो या तुम्हारे साथ गुरु यात्रा पर है। दोनों साथ तो चलें पर कोई किसी की उंगली न पकड़े।

यदि ऐसा गुरु तुम्हारे जीवन में है तो तुम धन्य हो। तुम्हारा मार्ग प्रशस्त है।

जिनकी गुरुता ने जीवन का मार्ग सुकर किया, उनका वंदन। जिन्होंने मेरी लघुता में गुरुता देखी, उन्हें नमन।

गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएँ।

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ चार दिवस गुरु साधना- यह साधना शुक्रवार  30 जून से आरम्भ होकर 3 जुलाई तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ श्री गुरवे नमः।।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 146 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 146 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 146) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 146 ?

☆☆☆☆☆

☆ Self Assessment… ☆

बाजार जाके खुद का

दाम भी कभी पूछना,

तुम्हारे जैसे समान हर

दुकानों में भरे पड़े हैं…!

☆☆ 

Sometime go to the market and

inquire about your own price,

Every shop is abundantly

filled with goods like you…!

☆☆☆☆☆ 

 ☆ Loyalty Bond… ☆

 अंदाजे इश्क़ तो देखा है तुमने

पर फितरत-ए-वफा नहीं देखी,

पिंजरे खोल दो मगर, फिर भी

कुछ परिंदे उड़ा नहीं करते…

☆☆

You’ve seen the love, but not

the  true  nature  of   loyalty,

Even  if  you  open  the  cage, 

still some birds do not fly off…

☆☆☆☆☆

 ☆ Zestful Rains… 

Zestfully humming drops

keep falling from the sky,

As if an ecstatic cloud has

bumped into your anklet…

☆☆

 गुनगुनाती हुई आती हैं

फ़लक से मदमस्त बूंदें,

लगता है कोई बदली तेरी

पाजेब से टकराई है…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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English Literature – Poetry ☆ The Grey Lights# 05 – “Judgement…” ☆ Shri Ashish Mulay ☆

Shri Ashish Mulay

? The Grey Lights# 05 ?

☆ – “Judgement…” – ☆ Shri Ashish Mulay 

You will be judged

not by men not by God

not on a judgement day

but on a goddamn everyday

 

but…you “won’t be judged” for :

 

if were you a weak man

or a strong woman

a devoted vegetarian

or follower of a food chain

 

if were you an atheist

or a decorated priest

a good follower

or a bad believer

 

if you went to the temple

or went to the brewery

just loved one

or loved many

 

but…you will be “judged” for :

 

if you didn’t use the voice

or said as intended

if kept all in dark

or said truth even in lying

 

if you played on a dice

or made logical choice

if were just the life

or a ‘humane’ life…

© Shri Ashish Mulay

Sangli 

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 144 ☆ नवगीत – जीवन तन-मन-धन का स्वामी… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण नवगीत जीवन तन-मन-धन का स्वामी)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 144 ☆

☆ नवगीत – जीवन तन-मन-धन का स्वामी ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

मन की

मत ढीली लगाम कर

.

मन मछली है फिसल जायेगा

मन घोड़ा है मचल जायेगा

मन नादां है भटक जाएगा

मन नाज़ुक है चटक जायेगा

मन के

संयम को सलाम कर

.

तन माटी है लोहा भी है

तन ने तन को मोहा भी है

तन ने पाया – खोया भी है

तन विराग का दोहा भी है

तन की

सीमा को गुलाम कर

.

धन है मैल हाथ का कहते

धन को फिर क्यों गहते रहते?

धनाभाव में जीवन दहते

धनाधिक्य में भी तो ढहते

धन को

जीते जी अनाम कर

.

जीवन तन-मन-धन का स्वामी

रखे समन्वय तो हो नामी

जो साधारण वह ही दामी

का करे पर मत हो कामी

जीवन

जी ले, सुबह-शाम कर

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

९-२-२०१५, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ साहित्य की दुनिया ☆ प्रस्तुति – श्री कमलेश भारतीय ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 साहित्य की दुनिया – श्री कमलेश भारतीय  🌹

(साहित्य की अपनी दुनिया है जिसका अपना ही जादू है। देश भर में अब कितने ही लिटरेरी फेस्टिवल / पुस्तक मेले / साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाने लगे हैं । यह बहुत ही स्वागत् योग्य है । हर सप्ताह आपको इन गतिविधियों की जानकारी देने की कोशिश ही है – साहित्य की दुनिया)

☆ लेखकों का सम्मान व शिमला पुस्तक मेला — कमलेश भारतीय

इस बार मित्रों को सम्मान मिलने के समाचारों ने प्रसन्न कर दिया। 

इस बार का साहित्य अकादेमी बाल साहित्य पुरस्कार सूर्यनाथ सिंह को उनके उपन्यास कौतुक ऐप के लिए घोषित किया गया है। यह उपन्यास विज्ञान कथा है, जिसमें बच्चे एक एप के जरिए कुछ खेल करते हैं। किसी आदमी को किसी ऐतिहासिक चरित्र में बदल देते हैं, जैसे किसी को हिटलर के रूप में तो किसी को लॉर्ड माउंट बेटन के रूप में परिवर्तित कर देते हैं। इस तरह नाटक चलता रहता है। मगर उस एप में कुछ गड़बड़ी आ जाती है और फिर पूरे देश की संचार व्यवस्था ठप्प पड़ जाती है। चारों ओर अफरातफरी का माहौल पैदा हो जाता है। उससे निपटने के उपाय तलाशे जाते हैं। इस तरह इस उपन्यास में मनोरंजन के साथ साथ बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और उनकी कल्पना शक्ति को विकसित करने की भरपूर सामग्री है।

उत्तर प्रदेश के सवाना गांव में जन्मे सूर्यनाथ सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम ए और फिर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से एम फिल और पी एच डी की है। उन्हें अकादमी सम्मान देने की घोषणा पर बधाई।

विनोद शाही को आधार सम्मान :  इसी प्रकार पंजाब से पुराने मित्र डाॅ विनोद शाही को आधार सम्मान दिये जाने की घोषणा हुई है। यह समाचार  भी बहुत खुशी दे गया। डाॅ विनोद शाही एक समय अपनी कहानियों के लिये चर्चित रहे तो आजकल आलोचना के क्षेत्र में ज्यादा सक्रिय हैं। वे कहते हैं कि आलोचना रचनात्मक है मेरी ! परम्परागत आलोचना का तेवर नहीं अपनाया। वैसे कहानी लेखन भी जारी है और दो  नयी व ताजा कहानियां हंस में आई हैं। प्राध्यापन पंजाब में करने के बाद आजकल गुरुग्राम में परिवार के साथ ठिकाना है। दोनों को बहुत बहुत बधाई।

देवेंद्र गुप्ता को सम्मान : शिमला के हिमालय साहित्य व संस्कृति मंच के संचालक व प्रसिद्ध कथाकार एस आर हरनोट भी शिमला में लगातार सक्रियता बनाये हुए हैं। इन दिनों शिमला में चल रहे पुस्तक मेले में भी उनका ही योगदान है। इसी प्रकार माॅल रोड पर एक साहित्यिक समारोह आयोजित कर सेतु पत्रिका के संपादक देवेंद्र गुप्ता को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर सांसद प्रतिभा सिंह और वरिष्ठ पत्रकार नरेश कौशल विशिष्ठ अतिथि रहे। खचाखच भरे रोटरी सभागार ने शिमला में साहित्य के महत्त्व को रेखांकित किया। बधाई देवेंद्र गुप्ता !

मेरठ की लेखिका पूनम मनु  सम्मानित : मेरठ की लेखिका पूनम मनु के उपन्यास द ब्लैंक पेपर को जयपुर साहित्य सम्मान मिला। मानसरोवर जयपुर साहित्य सम्मान एवं साहित्योत्सव का प्रायोजन दीवान कृष्ण गोपाल माथुर बहरोड़ स्मृति परिवार मंडल द्वारा किया गया। इस समारोह में देश भर से विभिन्न विधाओं के कुल 45 लेखकों को उनकी रचनाओं के लिए सम्मानित किया गया।सम्मान में एक शील्ड, सम्मान पत्र एवं नेग स्वरूप एक छोटी राशि भी दी जाती है। जयपुर साहित्य संगीति के संयोजक श्री अरविंद कुमारसंभव और सम्मानित रचनाकारों ने अपनी पुरस्कृत कृतियों पर विस्तार से चर्चा की। हमारी ओर से बधाई पूनम मनु व सभी पैंतालीस रचनाकारों को !

किस्सा पत्रिका को अमलतास धरोहर सम्मान : भागलपुर के साहित्य संस्कृति मंच की ओर से प्रकाशित की जा रही चर्चित पत्रिका ‘किस्सा’ को लखनऊ की संस्था अमलतास की ओर से पिछले दिनों ‘अमलतास धरोहर सम्मान’ प्रदान किया गया। इसकी संपादिका व प्रतिष्ठित रचनाकार अनामिका शिव ने बताया कि यह पत्रिका उनके पिता विव कुमार शिव द्वारा शुरू की गयी थी जिसे उन्होंने उनकी स्मृति में लगातार प्रकाशित करने का प्रयास किया। अनामिका शिव और किस्सा को इस उपलब्धि के लिये हमारी ओर से बधाई।

अनूप श्रीवास्तव की कृति का विमोचन : लखनऊ में वरिष्ठ व्यंग्यकार एवं अट्टहास के संपादक अनूप श्रीवास्तव की व्यंग्य कृति ‘अंतरात्मा का जंतर मंतर’ का विमोचन कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर प्रसिद्ध लेखक सुभाष चंदर ने कहा कि यह कृति सरोकारों के स्तर पर बेहद समृद्ध है और पाठकों से पढ़े जाने की मांग करती है। कृति पर सर्वश्री आलोक शुक्ल, राजेंद्र वर्मा, संजीव जायसवाल संजय, शबाहत हुसैन ,अलंकार रस्तोगी, सुश्री इंद्रजीत कौर, सुश्री वीना सिंह, डॉ.शिव प्रकाश, श्रीमती मंजू श्रीवास्तव आदि ने भाग लिया।

साभार – श्री कमलेश भारतीय, पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क – 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

(आदरणीय श्री कमलेश भारतीय जी द्वारा साहित्य की दुनिया के कुछ समाचार एवं गतिविधियां आप सभी प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का सामयिक एवं सकारात्मक प्रयास। विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)  

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विठुमाऊली… ☆ सुश्री अरूणा मुल्हेरकर☆

सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

? कवितेचा उत्सव ?

विठुमाऊली ☆ सुश्री अरूणा मुल्हेरकर ☆

नाचत नाचत वारी आली

विठ्ठलाच्या द्वारी

कोसळती सरीवर सरी

भक्त रंगला नाम गजरी

 

पांडुरंग सखा भेटला

भक्तीरसात चिंब भिजला

देहभान नाही उरले

ओलेत्याने नाचू लागला

 

हाक ऐकली भक्ताची

कृपा जाहली भगवंताची

नभ मेघांनी भरून आले

अवघे जीवन तृप्त झाले

 

दिन आजचा एकादशी

जलद वाजविती टाळ

सौदामिनीचा पदन्यास

भक्तीत नाचते आभाळ

 

विठुमाऊली भक्तांची

असे भुकेली भावाची

तिचीच आम्ही असू लेकरे

उदरभरणही तीच करे

 

तिच्या कृपेने पाऊस आला

धरणी माता प्रसवली

तिने ठेविला हस्त शिरावर

बीजातून रोपे अंकूरली

 

©  सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

डेट्राॅईट (मिशिगन) यू.एस्.ए.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ “रान…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ “रान …” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

राखून राखून थकशील हे रान

वाकून अन वाकवून

जाईल जळून हिरवे पान

 

राखून राखून थकशील हे रान

अजुन किती निभवशील

कधी-काळीची आन

 

राखून राखून थकशील हे रान

मारून अन् मरुन

खरंच मिळते का जान?

 

राखून राखून थकशील हे रान

वाटे सोडून सगळे

नुसते बागडावे छान

 

राखून राखून थकशील हे रान

कोण रंक अन राव

राखेतच आहे विस्तवाचा मान

 

राखून राखून थकशील हे रान….

© श्री आशिष मुळे

(टीप: रान ही जुनाट प्रथा, परंपरा, भाकड कथा, अंधश्रद्धा यांचं जे रान माजलं आहे त्याला उद्देशून वापरलेली उपमा आहे)

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ गौरव गाथा श्वानांची… ☆ सौ. पुष्पा नंदकुमार प्रभुदेसाई ☆

सौ. पुष्पा नंदकुमार प्रभुदेसाई

?  विविधा ?

☆ गौरव गाथा श्वानांची… ☆ सौ. पुष्पा नंदकुमार प्रभुदेसाई ☆

अनादी ,अनंत काळापासून कुत्रा हा प्राणी ज्याला माणसाने सर्वप्रथम पाळीव प्राणी बनविले. तो माणसाळला आणि माणसाचा उपकार कर्ता झाला .कुत्रा हा इमानदार आणि स्वामिनिष्ठ असा प्राणी आहे .माणसाच्या प्रेमाच्या मोबदल्यात, तो आपले सारे इमान आणि निष्ठा आपल्या मालकाला अर्पण करतो. त्याच्या इमानदार आणि प्रामाणिक स्वभावामुळे तो माणसाच्या जास्त जवळ आला. कुत्रा, ज्याला आपण श्वान असेही म्हणतो. त्याला माणसाच्या डोळ्यांकडे पाहून माणसाचे हावभाव ओळखता येतात. त्याची वासाची क्षमता माणसाच्या 1000 पट आणि ऐकण्याची क्षमता माणसाच्या पाचपट जास्त असते. त्यामुळे गुन्हे शोधून काढण्यासाठी ,कुत्र्यांना शिकवून तयार केले जाते. श्वानांची हुशारी, कर्तृत्व , पराक्रम आणि त्यांनी गाजविलेल्या मर्दुमकीची उदाहरणे किती सांगू तितकी कमीच ! पहिल्या आणि दुसऱ्या महायुद्धातले , आणखी इतरही ठिकाणचे पराक्रम ऐकून त्या श्वानांना खरोखरच मनोमन सलाम करावासा वाटतो. सलाम.

अमेरिकन नाविक सैनिक “डिन मार्क” हा अडीच वर्षानंतर घरी परतला. त्याने आनंदाने आणि गहिवरत आईला मिठी मारली .आईला म्हणाला, ” आज मी तुझ्यासमोर दिसतोय तो केवळ परमेश्वरी कृपा .म्हणजे मूर्तीमंत परमेश्वरी कुत्र्यामुळे. आईला उलगडा होईना . तेव्हा त्याने घडलेल्या गोष्टी सांगायला सुरुवात केली. अमेरिकन नाविक सैनिकांनी जपानने जिंकलेल्या न्यू गीनीतील एका बेटावर पाय ठेवला .तो “सिझर ” या अल्सेशियन कुत्र्याला सोबत घेऊनच .एका पायवाटेवर शत्रूने भूसुरुंग पेरून ठेवलेले होते .त्याच वाटेने  “सिझर ” पुढे आणि सैनिक मागे असे चालू लागले. सुरुंग ठेवलेल्या जागा सीझर नाकपुड्या फुगवून पुन्हा, पुन्हा  हुंगायला लागला. तत्परतेने असे सुरुंग काढून टाकून सैनिकांना पुढे जाणे सोपे झाले. एका ठिकाणी एका  झुडूपात दबा धरून बसलेल्या जपानी सैनिकाची ” सिझरला” चाहूल लागली. गुरगुरत त्या बाजूला तो पाहायला लागला. अमेरिकन सैनिकांनी मशीन गन आणि हँड ग्रेनेडचा, त्या दिशेने भडीमार केला .नंतर पाहतात तो कितीतरी जपानी सैनिक शस्त्रांसह मरून पडलेले दिसले. एक आश्चर्य सांगायचे म्हणजे, एक जपानी सैनिक हातातील मशीन गन टाकून शरण आला. ( जपानी सैनिक शरण येत नाहीत, तर हाराकिरी करतात .) शरण येण्याचे कारण त्याला विचारले, तेव्हा त्याने उत्तर दिले ,”तुमचा हा इतका देखणा आणि सुंदर कुत्रा कदाचित मरेल. म्हणून मी गोळीबार केला नाही. यालाच म्हणतात श्वानप्रेम .! ‘डिन मार्क’ ने “माझे प्राण कुत्र्यामुळे , ‘ सीझर’ मुळे वाचले .तोच खरा  माझा प्राण दाता असे उद्गार काढले .

‘ चिप्स ‘ नावाचा हा असाच एक कुत्रा . दुसऱ्या महायुद्धात असामान्य कामगिरी आणि धीटपणाबद्दल खूप गाजला. अमेरिकेच्या तिसऱ्या पायदळ तुकडी बरोबर उत्तर आफ्रिकेत  ‘कैसा ब्लांका ‘ या बंदरावर उतरला. पुढे दोस्त सैन्य जर्मनीने व्यापलेल्या, इटली देशाच्या दक्षिण प्रांतातील , सिसेलीत उतरले. जर्मन सैन्या बरोबर झालेल्या लढाईत, ‘ चिप्स ‘ चे काम अत्यंत महत्त्वाचे होते. रणधुमाळीत एका जर्मन सैनिकाला ,त्याने मशीनगन सह पकडून आणले .आणि त्याच्या संपूर्ण  प्लॅटूनला शरण येण्यास भाग पाडले .रात्रीच्या काळोखात पुढे येणाऱ्या जर्मन सैनिकांची चाहूल घेऊन ,त्याच्या मूक भाषेत तो इशारा देत असे .आणि अनेक जर्मन सैनिक पकडले जात असत. पुढे 1943 मध्ये अमेरिकेचे अध्यक्ष रुझवेल्ट आणि इंग्लंडचे पंतप्रधान चर्चिल यांची ‘कैसाब्लांका ‘येथे बैठक झाली. तेव्हा हाच  ‘ चिप्स ‘, बाहेर इतर सैनिकांच्या बरोबर खडा पहारा देत होता .आणि आपले काम चोख बजावत होता.

‘ डिक’ हा असाच एक गाजलेला कुत्रा. पॅसिफिक मधील एका बेटावर ,अमेरिकन सैन्याबरोबर उतरला. 53 दिवसांच्या लढाईत , 48 दिवस त्याच्या कामगिरीची लष्करात प्रशंसा केली गेली. दाट जंगलात लपून असलेल्या जपानी चौक्या त्याने दाखवून दिल्यामुळे, त्या नष्ट करणे अमेरिकन सैन्याला शक्य आणि सोपे झाले. विशेष म्हणजे या लढाईत ,एकही अमेरिकन सैनिक जखमी सुद्धा झाला नाही. त्याचं श्रेय  ‘ डिकला ‘नक्कीच जातं.

‘अँड्री ‘  हा डॉबरमॅन कुत्रा, ‘ओकिनावा’  च्या लढाईत अमेरिकन सैन्याबरोबर दाखल होता .या लढाईत बरेच अमेरिकन सैनिक मारले गेले .पण  ‘अँड्री ‘न घाबरता ,न डगमगता सर्वात पुढे जाऊन धोका हेरत असे . तीक्ष्ण नाकामुळे त्याला शत्रूची चाहूल हल्ला होण्यापूर्वीच लागत असे. त्यामुळे अनेक सैनिकांचे प्राण वाचले .अनेक सैनिकांचे प्राण वाचविणाऱ्या त्याच लढाईत एका गोळीने वीर मरण आले. सलाम त्या रणवीराला ! सलाम.

   ‘ फिप्का ‘ , हा एक जवान ( कुत्रा ) दुसऱ्या महायुद्धात, पाचव्या अमेरिकन दलाबरोबर, फ्रान्सच्या रणांगणावर उतरला. शत्रूची धोक्याची हालचाल नाकाच्या साहाय्याने दर्शविण्यात तो निष्णात होता. मातीत लपवून ठेवलेली विजेचे तार त्याला दिसताच ,त्याने दुरूनच भुंकून भुंकून धोका नजरेस आणून दिला. लगेच तो धोका नष्ट करण्यात आला. नंतर असे आढळून आले की, त्या तारेला जोडलेले तीन सुरूंग एकदम उडवून अनेक सैनिक गारद झाले असते .पण शेकडो सैनिकांचे प्राण वाचविणाऱ्या, ‘फिप्का” ला एका हात बॉम्ब मुळे प्राण गमवावा लागला . तो शहीद झाला .सलाम त्याच्या कर्तव्य पुर्तीला .नुकतंच वाचनात आलं करटणी बडझिन (अमेरिका ) नावाच्या महिलेचा ‘ टकर ‘ नावाच्या गोल्डन रिट्रीवर जातीच्या कुत्र्याची वार्षिक कमाई, आठ कोटी रुपयांपेक्षा जास्त आहे .तो एका जाहिरात कंपनीसाठी मॉडेलिंग करतो. त्यासाठी त्याला एक लाख डॉलर मिळतात. त्याला एका जाहिरातीसाठी पोज देण्याचे 6656 ते अकरा हजार 94 डॉलर (अंदाजे 55 ते 92) लाख रुपये मिळतात .इतके प्रचंड कमाई करणारा हा जगातील एकमेव कुत्रा आहे. तो आठ महिन्याचा असल्यापासून जाहिरात कंपनीसाठी मॉडेलिंग करतो.

©  सौ. पुष्पा नंदकुमार प्रभुदेसाई

बुधगावकर मळा रस्ता, मिरज.

मो. ९४०३५७०९८७

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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