हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ गणतंत्र दिवस विशेष – महानायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस – भाग – 4 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

Flag: India on WhatsApp 2.20.206.24  गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ Flag: India on WhatsApp 2.20.206.24

☆ साथी हाथ बढ़ाना ☆

(चार वर्ष पूर्व गणतंत्र दिवस पर लिखी एक पोस्ट साझा कर रहा हूँ।)

  • गण की रक्षा के लिए गांदरबल में कल भारी हिमपात के बीच आतंकियों से जूझते सैनिकों के चित्र देखे।
  • चौबीस घंटे पल-पल चौकन्ना सुरक्षातंत्र और उनकी कीमत पर राष्ट्रीय पर्व की छुट्टी मनाता गण अर्थात आप और हम।
  • विचार उठा क्यों न राष्ट्रीय पर्वो की छुट्टी रद्द कर उन्हें सामूहिक योगदान से जोड़ें!
  • बुजुर्गों तथा बच्चों को छोड़कर देश की आधी जनसंख्या लगभग पैंसठ करोड़ लोगों के एक सौ तीस करोड़ हाथ एक ही समय एक साथ आएँ तो कायाकल्प हो सकता है।
  • देश की सामूहिकता केवल डेढ़ घंटे में एक सौ तीस करोड़ पौधे लगा सकती है, लाखों टन कचरा हटा सकती है, कृषकों के साथ मिलकर अन्न उगाने में हाथ बँटा सकती है।
  • हो तो बहुत कुछ सकता है। ‘या क्रियावान स पंडितः’..। पूरे मन से साथी साथ आएँ तो ‘असंभव’ से ‘अ’ भी हटाया जा सकता है।

   – संजय भारद्वाज 

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☆ पराक्रम दिवस विशेष – महानायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस – भाग – 4 ☆

(केंद्र सरकार ने उनके जन्मदिवस को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया है। इस अवसर पर नेताजी पर लिखा अपना एक लेख साझा कर रहा हूँ। यह लेख राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की पुस्तक ‘ऊर्जावान विभूतियाँ’ में सम्मिलित है– संजय भारद्वाज )

अपने मिशन को आगे बढ़ाने के लिए 27 जुलाई 1943 को नेताजी सत्रह दिनों की यात्रा पर निकले। 10 अगस्त 1943 को वे रंगून में बर्मा के स्वतंत्रता समारोह में सम्मिलित हुए। फिर बैंकॉक पहुँचे। थाईलैंड से भारत के स्वाधीनता संग्राम के लिए समर्थन मांगा। तत्पश्चात वियतनाम और मलेशिया गये। भारत की आजादी के लिए सर्वस्व अर्पित करने के आह्वान के साथ सुभाषबाबू जहाँ भी जाते, हजारों भारतीयों की भीड़, उनको देखने-सुनने के लिए प्रतीक्षा कर रही होती।

21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर के कैथी सिनेमा हॉल के परिसर में आयोजित विशाल जनसभा में नेताजी ने हुकूमत-ए-आजाद हिंद (स्वतंत्र भारत की सरकार) की घोषणा कर दी। नेताजी को इस सरकार का प्रधानमंत्री, युद्ध और विदेशी मामलों का मंत्री एवं सर्वोच्च सेनापति घोषित किया गया। सरकार के प्रमुख के रूप में शपथ लेते हुए नेताजी ने कहा-

‘ईश्वर के नाम पर मैं यह पवित्र शपथ लेता हूँ कि मैं भारत को और अपने अड़तीस करोड़ देशवासियों को आजाद कराऊँगा। मैं सुभाषचन्द्र बोस, अपने जीवन की आखिरी साँस तक आजादी की इस पवित्र लड़ाई को जारी रखूँगा। मैं सदा भारत का सेवक बना रहूँगा और अपने अड़तीस करोड़ भारतीय भाई-बहनों की भलाई को अपना सबसे बड़ा कर्तव्य समझूँगा। आजादी प्राप्त करने के बाद भी, इस आजादी को बनाए रखने के लिए मैं अपने खून की आखिरी बूँद तक बहाने के लिए सदा तैयार रहूँगा।’

इस मंत्रिमंडल के परामर्शदाता के रूप में रासबिहारी बोस की नियुक्ति हुई। डॉ. लक्ष्मी विश्वनाथन, एस.ए.अय्यर, एस.जी.चटर्जी, अजीज अहमद, एन.एस.भगत, जे.के. भोसले, गुलजारासिंह, एम.जे. कियानी, ए.डी.लोकनाथन, शहनवाज खान, सी.एस.ढिल्लों, करीम गांधी, देबनाथ दास, डी.एम.खान, ए. थेलप्पा, जेधिवी, ईश्वरसिंह को मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया। भारत की इस अंतरिम सरकार को जापान, जर्मनी और इटली सहित विश्व के नौ देशों ने मान्यता भी प्रदान कर दी। दिसम्बर 1943 के अंत में जापानी नौसेना ने समारोहपूर्वक अंडमान और निकोबार आजाद हिंद फौज को सौंप दिये। नेताजी ने तुरंत प्रभाव से दोनों द्वीपों का नाम बदलकर क्रमशः शहीद और स्वराज रखा। ए.डी.लोकनाथन को आजाद हिन्द सरकार का ले.गर्वनर नियुक्त किया गया।

इस बीच नेताजी ने आजाद हिन्द फौज में तीन ब्रिगेडों का गठन किया। हर ब्रिगेड में दस हजार सैनिक थे। इन्हें गांधी, आजाद और नेहरु ब्रिगेड का नाम दिया। बाद में उन्होंने महिलाओं की एक रेजिमेंट ‘झांसी की रानी रेजिमेंट’ नाम से गठित की। 6 जुलाई 1944 को आजाद हिन्द रेडिओ के माध्यम से उन्होंने गांधीजी से संवाद स्थापित किया। अपने इस संबोधन में सुभाषबाबू ने विस्तार से आजाद हिन्द फौज की स्थापना के उद्देश्य, अंतरिम सरकार की स्थापना, और जापान से सहयोग जैसे मुद्दों पर चर्चा की। यही वह भाषण था जिसमें नेताजी ने गांधीजी को ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया था। गांधीजी का ‘राष्ट्रपिता’ नामकरण इस भाषण के बाद ही पड़ा। नेताजी ने कहा था, ‘एक बार देश आजाद हो जाए, फिर इसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी के हाथों सौंप दूँगा।’ आजाद हिंद फौज के सैनिकों को संबोधित करते हुए जून 1944 में नेताजी ने वह अमर नारा दिया, जिसकी अनुगूँज भारत की रग-रग में सदा सुनाई देती रहेगी। यह नारा था-‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।’ नेताजी के ऐतिहासिक भाषण के कुछ अंश इस प्रकार हैं-

‘अब जो काम हमारे सामने हैं, उन्हें पूरा करने के लिए कमर कस लें। मैंने आपसे; जवानों, धन और सामग्री की व्यवस्था करने के लिए कहा था। मुझे वे सब भरपूर मात्रा में मिल गए हैं। अब मैं आपसे कुछ और चाहता हूँ। जवान, धन और सामग्री अपने आप विजय या स्वतंत्रता नहीं दिला सकते। हमारे पास ऐसी प्रेरक शक्ति होनी चाहिए, जो हमें बहादुर व नायकोचित कार्यों के लिए प्रेरित करे।

सिर्फ इस कारण कि अब विजय हमारी पहुँच में दिखाई देती है, आपका यह सोचना कि आप जीते-जी भारत को स्वतंत्र देख ही पाएंगे, आपके लिए एक घातक गलती होगी। यहाँ मौजूद लोगों में से किसी के मन में स्वतंत्रता के मीठे फलों का आनंद लेने की इच्छा नहीं होनी चाहिए। एक लंबी लड़ाई अब भी हमारे सामने है। आज हमारी केवल एक ही इच्छा होनी चाहिए-मरने की इच्छा, ताकि भारत जी सके; एक शहीद की मौत मरने की इच्छा, जिससे स्वतंत्रता की राह शहीदों के खून से बनाई जा सके।

साथियो, स्वतंत्रता के युद्ध में मेरे साथियो ! आज मैं आपसे एक ही चीज मांगता हूँ; सबसे ऊपर मैं आपसे खून मांगता हूँ। यह खून ही उस का बदला लेगा, जो शत्रु ने बहाया है। खून से ही आजादी की कीमत चुकाई जा सकती है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।’

नेताजी के कदम तेजी से भारत की ओर बढ़ने लगे थे। जापानी सेना के साथ मिलकर आजाद हिन्द फौज इंफाल और कोहिमा तक आ पहुँची। तभी जापान ने पर्ल-हार्बर पर आक्रमण कर दिया। भारी संख्या में अमेरिकी युद्धपोत और सैनिक हताहत हुए। अमेरिका ने युद्ध में सीधे उतरने की घोषणा कर दी। अगस्त में जापान के क्रमशः हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका ने अणुबम डाल दिया। पलक झपकते ही लाखों लोग मारे गए। असंख्य विकलांग हो गए । मानवीय इतिहास की इस सर्वाधिक भयानक विभीषिका के बाद जापान ने घुटने टेक दिए।

इधर स्थितियाँ मित्र राष्ट्रों के पक्ष में झुकने लगी। मणिपुर-नागालैंड आ पहुँची जापानी सेना पीछे हटने लगी। अंग्रेजों ने आजाद हिंद फौज के सैनिकों का भीषण संहार किया। पर नेताजी हार माननेवालों में नहीं थे। वे किसी भी मूल्य पर भारत को स्वाधीन देखना चाहते थे। रूस को साथ लेने की दृष्टि से उन्होंने मंचुरिया जाने का फैसला किया। 18 अगस्त 1945 को वे एक युद्धयान से मंचुरिया के लिए रवाना भी हुए।

23 अगस्त 1945 को जापान की दोमेई न्यूज एजेंसी ने बताया कि 18 अगस्त को नेताजी का विमान ताइवान में दुर्घटना ग्रस्त हो गया था और दुर्घटना में बुरी तरह जले नेताजी का अस्पताल में निधन हो गया है। एजेंसी के अनुसार नेताजी की अस्थियाँ जापान के रेनकोजी बौद्ध मंदिर में रखी गई हैं।

तब से, अब तक नेताजी की मृत्यु को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। 1956 और 1977 में गठित जाँच आयोगों ने निष्कर्ष निकाला कि नेताजी की मृत्यु उस विमान दुर्घटना में ही हुई थी। जबकि 1999 में बने मुखर्जी आयोग ने नेताजी की विमान दुर्घटना में मृत्यु का कोई सबूत नहीं पाया। यह पहला आयोग था जिसने ताइवान सरकार से 18 अगस्त 1945 की दुर्घटना की अधिकृत रपट मांगी थी। ताइवान सरकार ने आयोग को बताया कि उस दिन ताइवान में कोई विमान दुर्घटना हुई ही नहीं थी। बाद में भारत सरकार ने मुखर्जी आयोग की रपट को अस्वीकार कर दिया।

18 अगस्त 1945 से 80 के दशक तक देश के विभिन्न भागों से नेताजी को देखे जाने की खबरें आती रहीं। गुमनामी बाबा और स्वामी शारदानंद के नेताजी होने के दावे भी किये गए पर अन्यान्य कारणों से प्रशासनिक स्तर पर इन दावों की कोई जाँच नहीं की गई।

1897 में जन्मे सुभाषबाबू अब नहीं हैं, यह तो निश्चित है। अपनी दैहिक मृत्यु के बाद भी अद्भुत व्यक्तित्व और अनन्य राष्ट्रप्रेम का यह उफनता ज्वालामुखी जनमानस की आँखों में निराकार से साकार हो उठता है। नेताजी को अमर और चेतन मानने का इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा कि उन्हें मरणोपरांत भारतरत्न देने की बात पर देश भर में विरोध की लहर उठी। भारतीय जनता इस योद्धा को मृत मानने को तैयार नहीं। फलतः सरकार को अपनी बात वापस लेनी पड़ी।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जीवन इस बात का अनन्य उदाहरण है कि अकेला व्यक्ति चाहे तो अदम्य साहस, धैर्य और प्रखर राष्ट्रवाद से महासत्ता को भी चुनौती दे सकता है। भारत की अधिकांश जनता मानती है कि यदि नेताजी होते तो विभाजन नहीं होता।

सुभाषबाबू ने अपने देश के स्वाधीनता संग्राम के यज्ञ की जैसी वेदी बनाई, जिस तरह समिधा तैयार की, विशाल जनसमर्थन जुटाया और फिर अपनी आहुति दे दी, यह भारत ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का असाधारण उदाहरण है। उन्होंने ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा’ का केवल नारा भर नहीं दिया बल्कि आजादी हासिल करने के लिए अपना रक्त अर्पित भी कर दिया। आजादी की लड़ाई के इस शीर्षस्थ महानायक को उसीके तय किये हुए अभिवादन में ‘जयहिंद !’

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 
संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 68 ☆ फ़कीरी ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं ।  सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “फ़कीरी”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 68 ☆

☆ फ़कीरी

कदम बोझिल भी नहीं, न ही उन्माद है

ये दिल उदास भी नहीं, न ही वो शाद है

 

नज़्म लिख रही हूँ कई, बिना रुके हुए

मांग रहा हर हर्फ़, कौन सी मुराद है?

 

साज़ से मन भर चुका, लगता है शोर सा

चटनी-अचार में भी, कहाँ अब स्वाद है?

 

टटोलना है जुस्तजू, कहीं तो मिलेगी वो

मिटती नहीं कभी वो, वही बुनियाद है

 

बहुत धनी हैं यूँ भी हम, क्यूँ भाये फ़कीरी

अलफ़ाज़ की पास हमारे, हसीं जायदाद है

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – मिलन ☆ श्री हरभगवान चावला

श्री हरभगवान चावला

( ई-अभिव्यक्ति में सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी का हार्दिक स्वागत है। आज प्रस्तुत है आपकी एक समसामयिक विषय पर आधारित लघुकथा ‘मिलन’। हम भविष्य में भी ई- अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आपकी विशिष्ट रचनाओं को साझा करने का प्रयास करेंगे।)

संक्षिप्त परिचय

प्रकाशन –

  • पाँच कविता संग्रह ‘कोई अच्छी ख़बर लिखना’, ‘कुंभ में छूटी औरतें’, ‘इसी आकाश में’, ‘जहाँ कोई सरहद न हो’, ‘इन्तज़ार की उम्र’ ; एक कहानी संग्रह ‘हमकूं मिल्या जियावनहारा ।
  • सारिका, जनसत्ता, हंस, कथादेश, वागर्थ, रेतपथ, अक्सर, जतन, कथासमय, दैनिक भास्कर, दैनिक ट्रिब्यून, हरिगंधा आदि में रचनाएँ प्रकाशित ।
  • कुछ संग्रहों में रचनाएँ शामिल ।

पुरस्कार/सम्मान –

  • एक बार कहानी तथा एक बार लघुकथा के लिए कथादेश द्वारा पुरस्कृत ।
  • कविता संग्रह ‘कुंभ में छूटी औरतें ‘ को वर्ष 2011-12 के लिए तथा कविता संग्रह ‘इसी आकाश में’ को 2016-17 के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान

सम्प्रति  :  राजकीय महिला महाविद्यालय, रतिया से बतौर प्राचार्य सेवानिवृत्ति के बाद स्वतंत्र लेखन ।

☆ लघुकथा – मिलन ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

अस्सी वर्षीय किसान पतराम दो महीने से राजधानी के बॉर्डर पर दिए जा रहे किसानों के धरने में शामिल था। आज उसकी अठहत्तर वर्ष की पत्नी भतेरी उससे मिलने पहुंँची थी। दोनों ने जैसे ही एक-दूसरे को देखा, उनकी चेहरे की झुर्रियों में पानी यूंँ बह आया, जैसे चट्टानों के बीच झरने बह आए हों। एक नम चट्टान ने पूछा, “कैसे हो सतपाल के बापू?”

“मैं मज़े में हूंँ, तू बता, पोता-पोती ठीक हैं?” दूसरी नम चट्टान ने जवाब दिया।

“वहांँ तो सब ठीक हैं, तुम ठीक नहीं लग रहे हो।”

“मुझे क्या हुआ है? हट्टा-कट्टा तो हूंँ।”

“दाढ़ी देखी है अपनी? फ़क़ीर जैसे दिख रहे हो।”

“देखो, गाली मत दो। दाढ़ी का क्या है, मुझे कौन सा ब्याह करना है?”

“करके तो देखो, फिर बताती हूंँ तुम्हें।” भतेरी की आंँखों में उतरी तरल लालिमा देख पतराम को अपने ब्याह का दिन बरबस याद आ गया। उसने महसूस किया कि भतेरी के कंधे पर रखा उसका हाथ कांँप रहा है।

“अच्छा, अब घर कब लौटोगे?”

“जंग जीतने के बाद ही लौटना होगा अब तो, या फिर शहीद हो जायेगा तुम्हारा बूढ़ा।” भतेरी ने पतराम के मुंँह पर हाथ रख दिया।

“अच्छा एक बात बताओ, अगर मैं शहीद हो गया तो तुम क्या करोगी?”

“करना क्या है, तुम्हारा बुत लगवा दूंँगी गांँव में और शान से रहूंँगी जैसे एक शहीद की विधवा रहती है।” कहते ही भतेरी बहुत ज़ोर से हंँसी। हंँसी के इस हरे पत्थर के पीछे पानी का एक सोता था जो पत्थर के हटते ही आह की तरह फूट पड़ा। भतेरी पानी में तरबतर एक छोटी सी चिड़िया ‌होकर पतराम के सीने में दुबकी थरथरा रही थी। पतराम उसकी पीठ को थपथपाते उसे सांत्वना दे रहा था। अचानक उसने भतेरी को अपने से अलग किया, “अब हट जाओ, देखो लोग हंँस रहे हैं।” झटके से अलग होकर दोनों ने देखा- कोई नहीं हंँस रहा था, सबके चेहरों पर गर्व और आंँखों में आँसू दिपदिपा रहे थे।

(इस लघुकथा का आधार एक सच्ची घटना है। इसमें प्रयुक्त कल्पना को मेरी असीम श्रद्धा ही मानें। पूरी विनम्रता के साथ इस लघुकथा को मैं उस महान योद्धा दम्पत्ति को सादर नमन करते हुए समर्पित करता हूंँ। )

© हरभगवान चावला

सम्पर्क –  406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ गणतंत्र दिवस विशेष – सैनिक को हर पल नमन करते हैं ☆ डॉ अ कीर्तिवर्धन

डॉ अ कीर्तिवर्धन

 ☆ गणतंत्र दिवस विशेष – सैनिक को हर पल नमन करते हैं ☆ डॉ अ कीर्तिवर्धन ☆

सीमा पर खड़ा है, नींद अपनी गंवाकर,

सुरक्षा मे देश की, निज परिवार भुलाकर,

बल की है शान, कर्तव्य की बातें,

देखता है हर पल, जो शांति के सपने,

सैनिक को हर पल नमन करते हैं।

 

चट्टानों को काटकर, जो नहरें बना देता है,

बाढ़ और सूखे मे, सहायता हेतु आता है,

मृत्यु के मुख से भी, जीवन छीन लाता है,

सीमा पर प्रहरी, सुरक्षा बल कहलाता है,

सैनिक को हम नमन करते हैं।

 

धार्मिक उन्माद मे, इंसान बनकर आता है,

असत्य पर सत्य की, विजय गाथा गाता है,

जाति-धर्म, छुआ छूत के, सारे बंधन तोड़कर,

राष्ट्र धर्म जिसके लिए, सर्वोपरि बन जाता है,

सैनिक को हम नमन करते हैं।

 

दुश्मन के वार को,तार तार करता है,

देश की सुरक्षा मे, जीवन वार देता है,

माता को जिसकी, अपने लाल पर गर्व है,

भारत का जन-जन, जिसे प्यार करता है,

सैनिक को हम नमन करते हैं।

 

राणा सा शौर्य जिसकी, शिराओं मे दौड़ता है,

पाक के नापाक इरादे, बूटों तले रौंदता है,

हिमालय भी जिसकी, विजय गाथा गता है,

सम्मान मे जिसके, राष्ट्र ध्वज झुक जाता है,

सैनिक को हम नमन करते हैं।

 

सीमा के सैनिक का, आओ हम सम्मान करें,

सुरक्षा मे परिवार की, हाथ सब तान दें,

बल प्रहरी की पत्नी को, सैनिक सा मान दें,

मात पिता को सैनिक के, हम सब प्रणाम करें,

सैनिक को हम सब हर पल नमन करें।

 

© डॉ अ कीर्तिवर्धन

संपर्क – विद्यालक्ष्मी निकेतन, 53 -महालक्ष्मी एन्क्लेव, मुज़फ्फरनगर -251001 ( उत्तर प्रदेश )

8 2 6 5 8 2 1 8 0 0

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #27 ☆ गणतंत्र दिवस विशेष – आओ गणतंत्र दिवस मनाये ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी की हकीकत बयां करती एक भावप्रवण कविता “गणतंत्र दिवस”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 27 ☆ 

☆ गणतंत्र दिवस विशेष  – आओ गणतंत्र दिवस मनाये ☆ 

26 जनवरी हमारे महान

गणतंत्र का पावन पर्व है

हमें हमारें संविधान पर

अत्यंत गर्व है

इसी दिन लागू हुआ था

यह महान संविधान

जिसके सपने देख रहा था

हर इंसान

गणतंत्र का अर्थ ही है

जनता के लिए

जनता द्वारा शासन

जनता की भागीदारी से

प्रशासन

जब सबको मिला पूर्ण स्वराज

ना किसी धर्म ना

किसी समुदाय का राज

सबने खुशियाँ बांटी

मिठाईयां बांटी

नाच रहा था हर व्यक्ति

और हर समाज

सबको मिले अपने अधिकार

शिक्षा, स्वास्थ और रोजगार

कहीं भी कर सकते हो व्यापार

सारा देश बना एक घर-बार

मिली अभिव्यक्ति की आज़ादी

पढ़ने-लिखने की आज़ादी

सुनने की, कहने की आज़ादी

न्याय पाने की,

ना कहने की आज़ादी

अब यह कैसा काल है आया

उमंगों पर मातम है छाया

जिव्हा पर ताले लगे हैं

आंखों में है एक डर समाया

आलोचना अपराध हो गया

सत्य कहना पाप हो गया

यह बलिदानों से मिली आजादी

क्या हम सबके लिए

श्राप हो गया ?

मिलकर इन जंजीरों को तोड़े

दिग्भ्रमित है बस कुछ थोड़े

हम सब है भाई-भाई

चलो संविधान से नाता जोड़े

आओ गणतंत्र दिवस मनाये

हर दुःखी पिड़ीत को गले लगाये

प्यार बांटे, खुशीयां बांटे

हर चेहरे पर मुस्कान लाये ।

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य #90 ☆ आलेख – हिंदी की समृद्धि में अभियंताओं का योगदान ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक  शोधपूर्ण आलेख ‘ हिंदी की समृद्धि में अभियंताओं का योगदान ’ इस सार्थकअतिसुन्दर कविता के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 90 ☆

☆ आलेख – हिंदी की समृद्धि में अभियंताओं का योगदान  ☆

आज हिन्दी भाषी विश्व के हर हिस्से में प्रत्यक्षतः या परोक्ष रूप में कार्यरत हैं. इस तरह अब हिन्दी विश्व भाषा बन चुकी है. किसी भी भाषा की समृद्धि में उसका तकनीकी पक्ष तथा साहित्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है. कम्प्यूटर के प्रयोग हेतु यूनीकोड लिपि व विभिन्न साफ्टवेयर में हिन्दी के उपयोग हेतु अभियंताओ ने महत्वपूर्ण तकनीकी योगदान दिया है. हिन्दी के अन्य भाषाओ में ट्रांसलेशन, हिन्दी के सर्च एंजिन के विकास में भी अभियंताओ के ही माध्यम से हिन्दी दिन प्रतिदिन और भी समृद्ध हो रही है. तकनीक ने ही हिन्दी को कम्प्यूटर से जोड़ कर वैश्विक रूप से प्रतिष्ठित कर दिया है.

हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि में उन साहित्यकारो का भी अप्रतिम योगदान है, जो व्यवसायिक रुप से मूलतः अभियंता रहे हैं. यथार्थ यह है कि साहित्य सृजन वही कर सकता है जो स्व के साथ साथ समाज के प्रति संवेदनशील होता है, तथा जिसमें अपने अनुभवो को सरलीकृत कर अभिव्यक्त करने की भाषाई क्षमता होती है. अभियंता विभिन्न परियोजनाओ के सिलसिले में सुदूर अंचलो में जाते आते हैं. परियोजनाओ के निर्माण कार्य में उनका आमना सामना अनेकानेक परिस्थितियो से होता है, इस तरह अभियंताओ का परिवेश व अनुभव क्षेत्र बहुत व्यापक होता है. जिन भी अभियंताओ में साहित्यिक रूप से उनके व्यक्तिगत अनुभवो के लोकव्यापीकरण व विस्तार का कौशल होता है वे किसी न किसी विधा में स्वयं को सक्षम रूप से अभिव्यक्त कर लेते हैं. जब पाठको का सकारात्मक प्रतिसाद मिलता है तो वे नियमित साहित्यिकार के रूप में स्थापित होते जाते हैं. स्वयं अपनी बात करूं तो मुझे तो पारिवारिक विरासत में साहित्यिक परिवेश मिला पर एक अभियंता के रूप में मेरे बहुआयामी कार्यक्षेत्र ने मुझे लेखन हेतु अनेकानेक तकनीकी विषयों सहित विस्तृत अनुभव संसार दिया है.

यद्यपि रचना को लेखक की व्यवसायिक योग्यता की अलग अलग खिड़कियों से नहीं देखा जाना चाहिये. साहित्य रचनाकार की जाति, धर्म, देश, कार्य, आयु, से अप्रभावित, पाठक के मानस को अपनी शब्द संपदा से ही स्पर्श कर पाता है. रचनाकार जब कागज कलम के साथ होता है तब वह केवल अपने समय को अपने पाठको के लिये अभिव्यक्त कर रहा होता है. यद्यपि समीक्षक की अन्वेषी दृष्टि से देखा जाये तो हिन्दी साहित्य में अभियंताओ का योगदान बहुत व्यापक रहा है. मूलतः इंजीनियर रहे चंद्रसेन विराट ने हिन्दी गजल में ऊंचाईयां अर्जित की हैं.

इंजीनियर नरेश सक्सेना हिन्दी कविता का पहचाना हुआ नाम है. इन दिवंगत महान अभियंता साहित्यकारो के अतिरिक्त अनेकानेक वर्तमान में सक्रिय साहित्यकारो में भी अलग अलग विधाओ में कई अभियंता रचनाकार लगातार बड़े कार्य कर रहे हैं.

मुझे गर्व है कि इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स जबलपुर द्वारा आयोजित यह वेबीनार इस विषय पर देश में पहला शोध कार्य है. इस शोध में भी तकनीक ने ही मेरी मदद की है. फेसबुक तथा व्हाट्सअप पर जब मैने यह सूचना दी कि अभियंता साहित्यकारो पर शोध पत्र तैयार कर रहा हूं तो मुझे अनेकानेक साहित्यिक अभियंता व गैर अभियंता मित्रो ने इस शोध कार्य की बहुत सारी जानकारी उपलब्ध करवाई है. गूगल सर्च एंजिन की सहायता से भी मैने काफी सामग्री जुटाई है.

यद्यपि कोई भी लेखक किसी विधा विशेष में बंधकर नही रहता सभी अपनी मूल विधा के साथ ही कभी न कभी संस्मरण, कविता, कहानी, लेख, साक्षात्कार में रचना लिखते मिलते हैं. व्यंग्य आज सबसे अधिक लोक प्रिय विधा है, जिसमें इंजी हरि जोशी जो तकनीकी शिक्षा से जुड़े रहे हैं, इंजी अरुण अर्णव खरे जो म. प्र. शासन के पी एच ई विभाग में मुख्य अभियंता होकर सेवानिवृत हुये हैं, इंजी अनूप शुक्ल  जो भारत सरकार की आयुध निर्माणी शाहजहांपुर में महा प्रबंधक हैं,इंजी श्रवण कुमार उर्मलिया जो पावर फाइनेंस कार्पोरेशन से सेवानिवृत महा प्रबंधक हैं, बी एस एन एल से सेवानिवृत इंजी राकेश सोहम व्यंग्य के जाने पहचाने चेहरे बन चुके हैं. इंजी शशांक दुबे बैंक सेवाओ में हैं पर मूलतः सिविल इंजीनियर हैं व व्यंग्य के साथ अन्य विधाओ में लेखन कर रहे हैं. इंजी मृदुल कश्यप इंदौर, इंजी अवधेश कुमार गोहाटी में प्लांट इंजीनियर हैं व व्यंग्य लिखते हैं. इंजी देवेन्द्र भारद्वाज झांसी से हैं तथा व्यंग्य लेखन में सक्रिय हैं. इंजी ललित शौर्य भी व्यंग्य का जाना पहचाना युवा नाम है.आत्म प्रवंचना न माना जावे तो स्वयं मैं इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव लगभग २० किताबो के प्रकाशन के साथ राष्ट्रीय स्तर पर लेखकीय ख्याति व पाठको का स्नेह पात्र हूं, मेरी कविता की किताब आक्रोश १९९२ में तारसप्तक अर्धशती समारोह में विमोचित हुई थी, कौआ कान ले गया, रामभरोसे, मेरे प्रिय व्यंग्य, धन्नो बसंती और बसंत, बकवास काम की, जय हो भ्रष्टाचार की, खटर पटर, समस्या का पंजीकरण व अन्य व्यंग्य आदि मेरी व्यंग्य की पुस्तकें चर्चित हैं. बिजली का बदलता परिदृश्य तकनीकी लेखो की किताब है, नाटको पर भी मेरा बहुत कार्य है, साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश ने मेरी नाटक की किताब हिंदोस्तां हमारा को पुरस्कृत भी किया, मेरी संपादित अनेक किताबें व पत्रिकायें बहुचर्चित रहीं हैं, नियमित समीक्षा का कार्य भि मेरी अभिरुचि है. विदेशो में कार्यरत इंजीनियर्स भी हिन्दी में लेखन कार्य कर रहे हैं, आस्ट्रेलिया में कार्यरत इंजी संजय अग्निहोत्री ऐसा ही नाम है, वे भी व्यंग्य लिख रहे हैं.

उपन्यास में इंजी अमरेन्द्र नारायण महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं वे सरदार पटेल पर चर्चित उपन्यास लिख चुके हैं तथा टेलीकाम क्षेत्र के जाने माने इंजीनियर हैं जो भारत का प्रतिनिधित्व विश्व संस्थाओ में कर चुके हैं, वे एकता व शक्ति के संदेश को लेकर राष्ट्रीय भावधारा पर गहरा कार्य कर रहे हैं.

म. प्र. पी डब्लू डी से सेवानिवृत इंजी संजीव वर्मा ने, छंद शास्त्र तथा व्याकरण में खूब काम किया है,हमने साथ साथ दिव्य नर्मदा ई पोर्टल बनाया है. संजीव जी ने अनेक किताबों का संपादन किया है. संपादन के क्षेत्र में व व्यंग्य तथा विविध विषयो पर लेखन में नर्मदा वैली डेवेलेपमेंट अथारिटी से सेवानिवृत इंजी सुरेंद्र सिंह पवार राष्ट्रीय स्तर पर पहचान अर्जित कर चुके हैं वे नियमित पत्रिका साहित्य परिक्रमा का प्रकाशन कर रहे हैं, उनके तकनीकी लेख इंस्टीट्यूशन से पुरस्कृत हैं.

विद्युत मण्डल से सेवानिवृत इंजी प्रहलाद गुप्ता ने विशेष रूप से भगवान कृष्ण पर केंद्रित कलम चलाई है. सिंचाई विभाग से सेवानिवृत इंजी उदय भानु तिवारी तथा स्व इंजी गोपालकृष्ण चौरसिया मधुर, ने भी प्रचुर धार्मिक काव्य रचनायें की हैं. विद्युत ट्रांसमिशन कंपनी में सेवारत इंजी संतोष मिश्र ने भी धार्मिक विषयो पर लेखन किया है.

गीत लेखन में कई नाम सक्रिय हैं इंजी निशीथ पांडे छत्तीसगढ़ के सिंचाई विभाग से सेवानिवृत हैं, वे लिखते भी हैं और गाते भी हैं, इसी तरह बी एस एन एल से सेवानिवृत इंजी दुर्गेश व्यवहार भी काव्य लेखन तथा गायन में सुस्थापित हैं, उनके कई एलबम आ चुके हैं. भोपाल के इंजी अशेष श्रीवास्तव भी गायन व गीत लेखन पर काम कर रहे हैं वे पवन ऊर्जा के क्षेत्र में इंजीनियरिंग विशेषज्ञ हैं. इंजी राम रज फौजदार मूलतः सिविल इंजीनियर हैं पर उनकी गजल तथा रागों की समझ और अभिव्यक्ति उल्लेखनीय है.

इंजी बृजेश सिंग बिलासपुर, इंजी अमरनाथ अग्रवाल लखनऊ, इंजी मनोज मानव, इंजी कोमल चंद जैन विविध विषयी लेखन कर रहे हैं वे अपने सेवाकाल में अनेक देशो में कार्यरत रहे हैं व अब जबलपुर में रह रहे हैं. विद्युत मण्डल में सेवारत इंजी अशोक कुमार तिवारी ने तकनीकी साहित्य पर हिन्दी में भी काम किया है. इंजी प्रो संजय वर्मा ने तकनीकी विषयो पर हिन्दी में लेखन कार्य किया है. तकनीकी हिन्दी आलेखो के संपादन से बनी इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स की पत्रिका अभियंता बंधु के संपादन के लिये इंजी शिवानंद राय रांची, इंजी विभूति नारायण सिंग लखनऊ, तथा तकनीकी विषयो पर हिन्दी लेखन के लिये प्रो जगदीश कुमार गहलावतदिल्ली, इंजी मलविंद्र सिंह बी एच ई एल हरिद्वार, इंजी नरेंद्र कुमार झा बेंगलोर, इंजी कृष्ण बिहारी अग्रवाल बरेली उप्र, इंजी डा सुधीर कुमार कल्ला पूर्व निदेशक राजस्थान विद्युत उत्पादन इकाई, इंजी डा एस एन विजयवर्गीय जीनस पावर जयपुर आदि तकनीकी लेखक हैं जो यद्यपि नियमित हिन्दी लेखक तो नही हैं किन्तु उन्होने जो भी कार्य किया है वह महत्वपूर्ण है.

कविता बहु रचित विधा है. जबलपुर के इंजी गजेंद्र कर्ण व इंजी हेमंत जैन म. प्र.शासन सिंचाई विभाग में कार्यरत थे, तथा सक्रिय रचनाकार हैं. इंजी हेमन्त जैन डाक टिकटो का संग्रह भी करते हैं, उनका टिकिट संग्रह बहुत विशाल है. उनके ही हम नाम उ प्र सिंचाई विभाग में सेवारत इंजी हेमन्त कुमार ग्राम फीना बिजनोर तकनीकी विषयो पर हिन्दी में सतत लेखन के लिये सम्मानित हो चुके हैं. इंजी महेश ब्रम्हेते विद्युत वितरण के क्षेत्र से जुड़े हुये हैं, इंजी प्रो अनिल कोरी, विविध विषयो पर काव्य, व्यंग्य स्फुट लेखन करते दिखते हैं. विद्युत मण्डल से सेवानिवृत इंजी सुधीर पाण्डे, इंजीनियर रामप्रताप खरेवर्तमान में रायपुर में रह रहे हैं, इंजी देवेन्द्र गोंटीया देवराज, जबलपुर, इंजी कमल मोहन वर्मा, इंजी सुनील कोठारी, नरसिंहपुर, म प्र सिंचाई विभाग से सेवा पूरी करके इंजी संजीव अग्निहोत्री, मंडला,म प्र सिंचाई विभाग से ही सेवा निवृत इंजी दिव्य कांत मिश्रा, मण्डला, इंजी मदन श्रीवास्तव, जबलपुर का नाम भी उल्लेखनीय है. विद्युत मण्डल सारणी में कार्यरत इंजी अनूप कुमार त्रिपाठी ‘अनुपम’ का उपन्यास आस्था की अनुगूँज आ चुका है,उनका भक्ति-गीत संकलन अमृत की बूंदें भी प्रकाशित है. इंजी अश्विनी कुमार दुबे,जल संसाधन विभाग इंदौर में कार्यरत थे, उनकी व्यंग्य, कहानी की लगभग १० किताबें प्रकाशित हैं उनका विश्वश्वरैय्या जी की जीवनी पर उपन्यास स्वप्नदर्शी चर्चित रहा है. इंजी अवधेश दुबे ने रेवा तरंग पत्रिका के सम्पादन का कार्य किया. इंजी अनिल लखेरा सेवानिवृत इंजीनियर हैं वे बड़े चित्रकार हैं स्फुट काव्य लेखन भी करते हैं. इंजी शरद देवस्थले पेट्रोलियम कार्पोरेशन से सेवानिवृत हुये हैं वे समीक्षा का अच्छा कार्य करते दिखते हैं. दिल्ली के इंजी ओम प्रकाश यति गजलकार हैं वे उप्र शासन सिंचाई विभाग में कार्यरत रहे हैं. इंजी सुनील कुमार वाजपेयी लखनऊ में हैं वे उ प्र लोकनिर्माण विभाग में कार्यरत थे, गीत छंद, कहानी आदि विधाओ में उनकी कई पुस्तके आ चुकी हैं. भोपाल के इंजी विनोद कुमार जैन भी विविध विषयी लेखक हैं. इंजी बृंदावन राय सरल म प्र शासन पी एच ई विभाग में सहायक अभियंता थे, सागर में रह रहे हें, गजल, कविता व बाल साहित्य की उनकी ५ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं. इंजी आई ए खान पी डब्लू डी मण्डला से सेवानिवृत होकर मण्डला में ही रह रहे हैं, उनकी गजलो की पुस्तक प्रकाशित है, उन्होने हिन्दी साहित्य के अंग्रेजी अनुवाद के कार्य भी किये हैं, चंद्रसेन विराट की गजलों, मेरे पिता प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव की गजलों तथा मेरे व्यंग्य लेखों का अंग्रेजी अनुवाद उन्होंने किया है.इंजी कपिल चौबे सागर युवा साथी इंजी हैं तथा विविध विषयो पर कवितायें कर रहे हैं.इंजी धीरेंद्र प्रसाद सिंग, बिहार से हैं वे भी विविध आयामी लेखन कर रहे हैं.

महिला इंजीनियर लेखिकायें बहुत कम हैं. इंजी अनुव्रता श्रीवास्तव ने संस्मरण व तकनीकी विषयो पर हिन्दी में लेखन किया है उनकी संस्मरणात्मक उपन्यासिका भगत सिंग पुस्तकाकार आ चुकी है, वे दुबई में मैनेजमेंट क्षेत्र में सेवारत हैं. इंजी स्मिता माथुर यू ट्यूबर कवि हैं.इंजी. आशा शर्मा, राजस्थान विद्युत विभाग में बीकानेर में पदस्थ हैं,उनकी किताबें अनकहे स्वप्न कविता, उजले दिन मटमैली शामें-लघुकथा, अंकल प्याज -बाल कविता, तस्वीर का दूसरा रुख-कहानी, गज्जू की वापसी- बाल कहानी संग्रह, डस्टबिन में पेड़ -बाल कहानी संग्रह, मुफ्त की कीमत-लघुकथा प्रकाशित हो चुकी हैं. इंजी. अनघा जोगलेकर, गुड़गांव भी विविध विषयी लेखन कार्य में जुड़ी हुई हैं.

मूलतः इंजीनियर न होते हुये भी तकनीक से जुड़े बहुत सारे हस्ताक्षर हैं जिनका महत्वपूर्ण साहित्यिक योगदान है, डा प्रकाश खरे भारत मौसम विभाग से सेवानिवृत वैज्ञानिक हैं उनकी कवितायें व लेख चर्चित हैं, श्री हेमंत बावनकर बैंक से सेवानिवृत कम्प्यूटर विज्ञ हैं, वे ई अभिव्यक्ति साहित्यिक पोर्टल के निर्माता व संपादक हैं, शांति लाल जैन कम्प्यूटर विशेषज्ञ हैं वे व्यंग्य के जाने पहचाने सशक्त हस्ताक्षर हैं. श्री अजेय श्रीवास्तव व श्री बसंत शर्मा रेलवे में तकनीकी रूप से सेवारत हैं व साहित्य सृजन कर रहे हैं.

अभिव्यक्ति के स्वसंपादित माध्यम फेस बुक, ब्लाग तथा अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्मस ने भी इंजीनियर्स को लेकक के रूप में स्थापित होने में मदद की है. इस आलेख में ही लगभग साठ नामों का उल्लेख यहां किया जा चुका है. इनमें से कई लेखको के कृतित्व पर विस्तार से लिखा जा सकता है, अनेको के विषय में गूगल सर्च से विकीपीडीया सहित कई पृष्ठ जानकारियां, किताबें व उनकी रचनायें सुलभ हैं, तो ढ़ेरो नाम ऐसे भी हैं जिनके विषय में उनसे संपर्क करके ही विवरण जुटाने होंगे. सम्मिलित अभियंता रचनाकारो के विस्तृत विवरण समाहित करना नियत शब्द व समय सीमा में संभव नही है. विशाल भव्य हिन्दी संसार में अनेकों अभियंता लगातार अपनी शब्द आहुतियां दे रहे हैं. इस आलेख को परिपूर्ण बनाने के लिये अभी बहुत सारे नाम जोड़े जाने शेष हैं, जो आप सबके सहयोग से ही संभव हो सकता है, अतः आपके सुझाव व सहयोग की आकांक्षा है।

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 76 – लघुकथा – लाल पालक…. ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत एकअतिसुन्दर सार्थक लघुकथा  “लाल पालक….। अपार्टमेंट्स  के परिवार प्रत्येक पर्व घर के पर्व जैसे मिल जुलकर मनाते हैं।  इस लघुकथा के माध्यम से रोजमर्रा की जिंदगी  के बीच उत्सव के माहौल का अत्यंत सुन्दर वर्णन किया है। एक ऐसी ही अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लेखनी को सादर नमन। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 76 ☆

? लघुकथा – लाल पालक …. ?

गणतंत्र दिवस के लिए अपार्टमेंट सज रहा हैं ।

अपार्टमेंट का बड़ा सुंदर नजारा रहता है और वह भी जहां लगभग चालिस  परिवार एक ही छत के नीचे फ्लैटों में रहते हैं।

एक पूरा परिवार बन चुका होता है। सुबह हुआ कि अलग-अलग पेपर वाले, दूध वाले, हार्न बजाते कोई मोबाइल में गाना बजाते और कामवाली बाईयों का आना-जाना।

बस इन सभी के बीच लगातार रद्दी वालों की आवाज वह भी नहीं चूका आने के लिए!! कोई आ रहा कोई जा रहा।

बच्चों की टोली धूप में क्रिकेट खेल रही कुछ बच्चे मोबाइल कान में लगाए छत पर धूप सेंकते नजर आते। कुछ पढ़ाई करते भी दिख जाते हैं।

साथ साथ बड़े बूढ़ों की हिदायत भी चलती रहती है। कहीं पेपर पढ़ रहे हैं। कहीं सब्जी भाजी लिया जा रहा है। कुल मिलाकर बहुत सुंदर माहौल रहता है।

जया कामवाली बाई। बहुत बात करती है। माता – पिता की गरीबी की वजह से किश्चन से शादी कर ईसाई धर्म अपना ली हैं। और बातें भी “आता है” “जाता है” करती है। अपार्टमेंट में एक रिटायर्ड अफसर के यहाँ काम करती है।

सब्जी वाला अपार्टमेंट के अंदर जैसे ही आया उसने आवाज लगाईं।  झाड़ू हाथ में लेकर जया बाहर निकली। बालकनी से सीधा झाड़ू लिए ही बोली “हरी पालक है क्या?”

सब्जी वाला कुछ परेशान था। (पता चला रात में कोई बीमार चल रहा था उसके घर) उसने जोर से बोला… “नहीं पीली पालक हैं चाहिए क्या??”

इतना सुनना था, आजू-बाजू की बालकनी से सभी के खिलखिलाने की आवाज जोर हो गई। “उडा़ लो हंसी” गुस्से से जया लाल पीली हो गई और भुनभुनाते जाने लगी।

गणतंत्र दिवस के लिए मानू बिटिया के साथ कुछ बच्चे अपार्टमेंट्स सजा रहे थे।

बिटिया ने हंसकर कहा.. “जया आंटी गुस्सा मत करो हरी पालक, पीली पालक और जब वह बनेगा तो उसका रंग लाल होगा। यही तो पालक का गुण है।”

जया भी हाँ में हाँ मिलाने लगी। सच ही तो है। आखिर पालक खून भी तो बढाता है।

एक बार फिर जया के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी। जय जय जया की लाल पालक!!!!!

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३१॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३१॥ ☆

 

प्राप्यावन्तीन उदयनकथाकोविदग्रामवृद्धान

पूर्वोद्दिष्टाम उपसर पुरीं श्रीविशालां विशालाम

स्वल्पीभूते सुचरितफले स्वर्गिणां गां गतानां

शेषैः पुण्यैर हृतम इव दिवः कान्तिमत खण्डम एकम॥१.३१॥

अवन्ती जहां वृद्धजन ग्राम वासी

कुशल हैं कथाकार उदयन कथा के

विशद पूर्व वर्णित पुरी , पूर्ण वैभव

परं रम्य विस्तीर्ण उज्जैन जा के

जिसे पुण्य के क्षीण होते स्वतः के

गये स्वर्गजन ने धरा पर उतारा

कि मानो बचे पुण्य को मोल देकर

लिया पा यहां स्वर्ग का खण्ड प्यारा

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ प्रजासत्ताक दिन विशेष – देशाभिमान ☆ श्रीशैल चौगुले

श्रीशैल चौगुले

☆ कवितेचा उत्सव ☆ प्रजासत्ताक दिन विशेष – देशाभिमान ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

ज्या देशाची हि पवित्र भूमी

त्याच देशाचा नागरीक मी

अभिमानाचा हा देश माझा

भारत देशाचा असे पाईक मी.

 

किती मिरवी गौरव गाथा

ज्ञान-विज्ञानाचा ध्यास नित्

वीर मनाची, वीर आकांक्षा

देशभक्तीचा तो नायक मी.

 

ध्वज चढवावा संविधानी

अन् माणूसकी जात खरी

फडके तिरंगा, स्वातंत्र्याचा

प्रजासत्ताकाचा लायक मी.

 

थोर महात्मे लढले तेंव्हा

अनेक शहीद मूर्ती झाले

कुणी सागरा पार करती

संस्काराचा असे आस्तिक मी.

 

शत्रूला नामोहरम केले

ते हसत फासावर गेले

हिंदुत्वाची अखंड गर्जना

त्याच सूताच्या सप्रतीक मी.

 

गांधी, नेहरू, सुभाषबाबू

वल्लभभाई, ते लजपत

टिळक, गोखले, ते अनेक

भारतमातेचा पुत्र एक मी.

 

ज्ञानज्योत ईतिहास तेवू

महानतेचे या गीत गाऊ

विश्व जिंकण्याचे स्वप्न पाहू

करेन कवणी ऊल्लेख मी.

 

© श्रीशैल चौगुले

९६७३०१२०९०

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 82 ☆ भिती ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 82 ☆

☆ भिती ☆

मला सूर्याची भिती वाटते

आग ओकत असतो डोक्यावर

पत्र्याच्या घरात जीव घाबरतो

बाहेर सावलीला जावं तर

झाडांची बेसुमार कत्तल झालेली

कुठल्याही लढाईखेरीज

आणि कत्तल करणारे पहुडलेल

एसी लावून गादीवर…

उष्माघाताने जीव जातात

तुमच्या माझ्यासारख्यांचे

आणि सूर्याला त्याचं देणं घेणंही नसतं…

 

तशीच ही थंडी, कुठून येते ते कळतच नाही

वाजते पण आवाज करत नाही

घरात हिटर आहे ना ?

मग काळजी कशाची ?

बाहेर थंडीत कुडकुडणाऱ्यांची काळजी करायला

परमेश्वर आहेच ना !

कधीकधी परमेश्वर, दानशूराच्या रुपात

वाटतो गरिबांना, काही शाली काही ब्लँकेट्स

तरी मरतातच काही कुडकुडून

या थंडीच्या त्रासदीने…

 

पाणी घुसतं झोपडपट्यांमधे

चाळीत आणि बंगल्यात सुद्धा

सुनामीच्या लाटा उध्वस्त करतात किनारे

वाहू लागतात निर्जीव वाहनांसोबत

प्राणी आणि माणसं सुद्धा

कशासाठी हा कोप, कशासाठी हे तांडव

अरे जीव जगवण्यासाठी हवी

थोडी मायेची उब,

तहान लागली तर घोटभर पाणी आणि

प्रसन्न राहण्यासाठी छान गुलाबी थंडी…

पण किती या दुःखाच्या डागण्या

फक्त सुखाची किंमत कळण्यासाठी…

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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