मराठी साहित्य – मराठी कविता – ☆ अमलताश ☆ – सुश्री ज्योति हसबनीस

सुश्री ज्योति हसबनीस

?अमलताश?

 

(सुश्री ज्योति हसबनीस जी का पुष्पों एवं प्रकृति के प्रति अपार स्नेह की साक्षी है । इसके पूर्व हमने सुश्री ज्योति जी की “कदंब के फूल” एवं “गुलमोहर ” पर कवितायें  प्रकाशित की थी जिसे पाठको का अपार स्नेह प्राप्त हुआ था। )

 

संपली शिशिराची पानगळ,

नवोन्मेषांनी बहरले भंवताल ।

 

रृतुबदलाचे संकेत देत,

मंद वाहे पहाट वारा ।

शिरीषाच्या फांदीतून ऊसळे,

अत्तर कुपीचा गोड फवारा ।

 

मंगलमय सृष्टीची शुचिता रेखी,

धवल शुभ्र वलयांकित अनंत हा

लालकेशरी पखरण करी,

गुलमोहोर राजस,अग्नीशिखेसम पलाश हा ।

 

घेत होते भरूनी गंध

मी श्वासाश्वासांत ,

धुंद पाऊले वाट चालती,

सृष्टीच्या स्पंदनांत ।

 

अवचित एका वळणावरती,

पाऊले मग अडखळली ।

देखोनि सुवर्णचित्र ते ,

नजर तयावरच खिळली ।

 

भार तोलत, लय साधत ,

फांदी फांदीही लवली ।

सोनपुटे लेऊन दैवी ,

हंड्या झुंबरे सजली ।

 

नेत्र अनिमिष टिपे

दृष्य हे लडिवाळ,

मति होई कुंठीत ,

बघूनी कांचन झळाळ ।

 

जणू चैत्रगौरीच्या स्वागता ,

चित्रकार तो सरसावला ।

फांदीफांदीतून झुंबरांचा ,

सुवर्ण साज हा अवतरला ।

 

अधोवदना ही सालंकृत तरुणी,

जणू पुढ्यात ऊभी साक्षात् ।

घरंदाज हे , अवनत रूप सोनसळी,

ठसले मम अंतर्मनांत  ।

 

उधळून सारे ऐश्व़र्य आपले,

अमलताश हा पुढ्यात उभा ।

ऐश्वर्यसंपन्न होई परिसर सारा,

लेऊन त्याची कांचन आभा ।

 

©  सौ. ज्योति हसबनीस

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हिन्दी साहित्य- पुस्तक समीक्षा – * भारत में जल की समस्या एवं समाधान  * श्री रमेश चंद्र तिवारी – (समीक्षक – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र‘)

भारत में जल की समस्या एवं समाधान –  श्री रमेश चन्द्र तिवारी

न्यायालय के आदेश के परिपालन में लिखी गई किताब – भारत में जल की समस्या एवं समाधान

लेखक – रमेश चंद्र तिवारी

मूल्य – २८० रु पृष्ठ २७४

शकुंतला प्रकाशन, २१७६, राइट टाउन , जबलपुर

टिप्पणीकार – इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव , मो ७०००३७५७९८ जबलपुर

 

सामान्यतः किताबें लेखक के मनोभावो की अभिव्यक्ति स्वरूप लिखी जाती हैं, जिन्हें वह सार्वजनिक करते हुये सहेजना चाहता है जिससे समाज उनसे लम्बे समय तक अनुप्राणित होता रह सके. पर्यावरण पर अनेक विद्वानो ने समय समय पर चिंता जताई है. मैंने भी मेरी किताब जल जंगल और जमीन भी इसी परिप्रेक्ष्य में लिखी थी. भारत में जल की समस्या एवं समाधान श्री रमेश चंद्र तिवारी की पुस्तक इस मामले में अनोखी है कि यह किताब माननीय उच्च न्यायालय के एक निर्णय के परिपालन में लिखी गई है.

पृष्ठभूमि यह है कि श्री रमेश चंद्र तिवारी वन विभाग में सेवारत थे, उनके सेवाकाल में उन्हें विभिन्न पदो पर अवसर मिले कि वे धरती के गिरते जल स्तर, पर्यावरण परिवर्तन से सुपरिचित होते रहे. सेवानिवृति के बाद उन्होने हाई कोर्ट में एड्वोकेट के रूप में कार्य शुरू किया, तथा अपनी पर्यावरण सजगता के चलते उन्होने समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाते हुये मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका क्र डब्लू पी ५१७८ वर्ष २००८ आर सी तिवारी विरुद्ध भारत सरकार व अन्य दायर की. याचिका में गिरते भू जल स्तर पर चिंता व्यक्त करते हुये वैधानिक आधार पर न्यायालय के समक्ष रखा गया. यहां यह लिखना प्रासंगिक है कि वर्तमान में सरकारो की जो स्थितियां हैं उनसे ऐसा लगने लगा है कि देश न्यायालय ही चला रहे हैं. लगभग हर छोटी बड़ी राष्ट्रीय समस्या से संबंधित जनहित याचिकायें या प्रकरण न्यायालय में लंबित हैं. यह स्थिति जहां एक ओर जागरूखता का परिचय देती हैं वही सरकारो की कार्य प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह भी खड़े करती है . यह स्वस्थ्य लोकतंत्र की दृष्टि से चिंतनीय कही जा सकती है. अस्तु, माननीय न्यायालय ने आर सी तिवारी जी की याचिका पर निर्णय देते हुये २८ जुलाई २०१५ को निर्देश दिये  कि जल समस्या के समाधान हेतु शासन को प्रस्ताव बनाकर भेजा जावे. और इस परिपालन में इस किताब की रचना श्री आर सी तिवारी द्वारा की गई है.

 

ब्रम्हाण्ड के अनेकानेक ग्रहो में से केवल पृथ्वी पर जीवन है, और जीवन के लिये जल, वायु, पर्यावरण के महत्व से सभि सुपरिचित हैं. जल का प्रबंधन केवल मनुष्य कर रहा है पर धरती के समस्त प्राणी, व वनस्पतियां भी जीवन के लिये जल पर निर्भर हैं. अतः भावी पीढ़ीयो के लिये जल के समुचित संरक्षण व उपयोग की मानवीय जबाबदारी कही ज्यादा है. जल संचय  मानवीय विकास हेतु जरुरी है, इसलिये बांध बनाये जा रहे हैं.  बड़े बांधो से जल संग्रहण में डूब क्षेत्र की समस्या के विकल्प के रूप में मैंने जल संग्रहण हेतु ऊंचे बांधो की अपेक्षा धरती पर नदियो की तलहटी में चम्मच की तरह के जल संग्रहण का सुझाव दिया है, जिसे व्यापक सराहना मिली, किन्तु मैदानी स्तर पर कोई अमल परिलक्षित नही हुआ है. आम नागरिक  सुझाव ही तो दे सकते हैं, परिपालन सरकार के हाथ में है, अतः सरकार पर इन सुझावो के क्रियांवयन का दबाव बनाने के लिये समाज में जल चेतना का वातावरण बनाना आवश्यक है. भारत में जल की समस्या एवं समाधान जैसी किताबें और रमेश चंद्र तिवारी जैसे एक्टिविस्ट इस दिसा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं जिनकी सराहना जरूरी है. प्रस्तुत किताब में जल का महत्व, जल की उपलब्धता, वर्तमान जल समस्या, प्राचीन भारत की जल आपूर्ति व्यवस्थायें, तो वर्णित हैं ही, न्यायालय के आदेश के परिपालन में जल समस्या समाधान के उपाय व कार्यविधि, राष्ट्रीय जल नीति, तथा जल की उपलब्धता व आर्थिक विकास को जोरते आंकड़े भी प्रस्तु किये गये हैं, जिसके लिये सेंटर फार साइंस एण्ड इंवार्नमेंट की पुस्तक बूंदो की संस्कृति से सहयोग लिया गया है. श्री रमेश चंद्र तिवारी ने इस न्यायालयीन प्रकरण तथा फिर इस किताब के रूप में एक पर्यावरण प्रहरी की अपने हिस्से की सजग नागरिक की जबाबदारी निभाई है, जो सराहनीय है, पर देखना है कि  जमीनी स्तर पर वास्तविलक बदलाव लाने में इस तरह के प्रयासो को कब सफलता मिलती है, जो ऐसे एक्टिविस्ट का वास्तविक उद्देश्य है.

 

टिप्पणीकार .. श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव  “विनम्र”

ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो ७०००३७५७९८

 

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हिन्दी साहित्य- कथा-कहानी – लघुकथा – ☆ वृद्धाश्रम ☆ – सुश्री ऋतु गुप्ता

सुश्री ऋतु गुप्ता

☆ वृद्धाश्रम ☆

(प्रस्तुत है सुश्री ऋतु गुप्ता जी की जीवन में मानवीय अपेक्षाओं और बच्चों के प्रति कर्तव्य तथा बच्चों से अपेक्षाओं के मध्य हमारी के कटु सत्य पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा।)

मुझे गठिया की दिक्कत हो गई। मैं अपने घर से 10-12 किलोमीटर की दूरी पर एक केरल की आयुर्वेदिक दवाओं के लिए प्रसिद्ध आयुर्वेदिक अस्पताल से इलाज कराने लगी। सर्दियों का वक्त था। मैं वहाँ जब भी जाती, देखती कि बुजुर्गों की एक टोली अस्पताल के प्रांगण में धूप सेंकती मिलती। सब एक-दूसरे के साथ परिवार के लोगों की तरह घुल मिल कर बातें करते दिखते। शुरुआत में लगता की इनका भी इलाज चल रहा होगा। पर जब देखती की वो लोग सामने बने कमरों से निकल कर आ रहे हैं। उनके वहाँ बैठने पर एक-दो अटेंडेंट साथ रहते हैं। फिर वहाँ धार्मिक संगीत चला दिया जाता। मुझे ऑब्जर्वर के बाद मामला कुछ अलग लगा। मुझ से रहा न गया मैनें अस्पताल के एक कर्मचारी से पूछ ही लिया कि यह लोग कौन हैं? उसने जो बताया उसके बाद मेरी वहाँ जाने की हिम्मत जवाब देने लगी।

उसने बताया “मैम, अस्पताल के उस सामने वाले हिस्से में डॉक्टर साहब के भाई ने वृद्धाश्रम खोला हुआ है। वे लोग जो आप देख रही हैं न बेहद पैसे वाले घरों से हैं । इनके बच्चे इनको यहाँ रखने की मोटी रकम देकर जाते हैं । पैसा तो जरूर है पर दिल नहीं है कैसे अपने बड़ों को यहाँ पटक गये । आजकल बुजुर्गों से भीड़ हो जाती है घर में न ही उनके पास इन लोगों के लिए वक्त।” वह तो अपनी बात कह गया घृणा उसके चेहरे पर भी साफ झलक रही थी पर दर्द की मानो आदत हो गई थी। मेरी आँखें डबडबा आई सोचने पर विवश हो गई कि क्या माँ-बाप इसी दिन के लिए बच्चों को बड़ा करते हैं? क्या वे कभी वृद्ध नहीं होगें? जिन बच्चों को उंगली पकड़ कर चलना सिखाते हैं,तब थोड़ा सा हड़बड़ाते ही घबरा जाते हैं। अपनी सारी जमा पूंजी अपने लिए कंजूसी कर-कर बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए खर्च कर देते हैं वे ही बच्चे वक्त पड़ने पर उनकी सेवा की जगह उनको वृद्धाश्रम पहुंचा आते हैं । बच्चों की तरह मासूमियत लिए उन बुजुर्गों की इस दयनीय दशा को देखना मेरे वश में न था। मेरा वहाँ और खड़ा होना मुश्किल हो गया । मैं भारी कदमों से गाड़ी में जा बैठी।

© ऋतु गुप्ता

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ खारा प्रश्न ☆ – श्रीमति सुजाता काले

श्रीमति सुजाता काले

☆ खारा प्रश्न ☆
(प्रस्तुत है श्रीमति सुजाता काले जी  की एक भावप्रवण कविता । यह सच है कि सिर्फ समुद्र का पानी ही खारा नहीं होता। आँखों का पानी भी खारा होता है। हाँ, यह एक प्रश्नचिन्ह है कि स्त्री और पुरुष दोनों की आँखों का खारा पानी क्या  क्या कहता है? किन्तु, एक स्त्री की आँखों के खारे पानी  के पीछे की पीड़ा  एक स्त्री ही समझ सकती है।  इस तथ्य पर कल ई-अभिव्यक्ति संवाद में चर्चा करूंगा । ) 

 

प्रिय,
तुम्हारा मुझसे प्रश्न पूछना,
“तुम कैसी हो?”
और मेरा
आँखों का खारा पानी
छिपाकर कहना,
“मैं ठीक हूं।”

तब तुम्हारी व्यंग्य भरी
हँसी चुभ जाती थी
और गहरा छेद करती थी
हृदय में।

आज उसी प्रश्न का
उत्तर देने के लिए
आँखें डबडबा रही हैं।

प्रिय,
अब पुछो ना
तुम कैसी हो?

 

© सुजाता काले ✍

पंचगनी, महाराष्ट्र।

9975577684

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Yoga – A Divine Life Skill ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Laughter Yoga – A Divine Life Skill

The compliment that I cherish most came from Anurag, my 24-year old son. He loves adventure sports and takes care of fire and safety hazards at Nestle. I was visiting Gurgaon, the town where he works, and was suddenly asked to do a presentation on Laughter Yoga. When I told him about it, he remarked, “Papa, this is a unique life skill you have acquired. You can do it anytime, anywhere, for anyone. Now, you have the heavenly gift of giving joy to other beings. That is really wonderful.”

This insight coming from a youngster is amazing. I had gone to attend a workshop on leadership skills at the State Bank Academy. It was an awfully cold morning – the earlier day was the coldest in the last 46 years. There were 44 participants, all senior officials of the Bank, in the workshop. When the Principal of the Academy came to address the participants, he observed, “The energy level appears to be low. I have never witnessed something like this at the beginning of any programme. What’s the reason?”

One of us responded,” It is terribly cold and foggy, sir. We are not used to such a climate. Our flights landed very late in the night. It was chilling cold and windy. We have not had enough sleep. Moreover, we carry a lot of stress in our roles as such.”

As the class didn’t appear to take-off convincingly, I requested for a 5-minute slot and assured that the class would cheer up in a while. The Principal was magnanimous enough. I asked everyone to clap and chant ‘hoho-hahaha’ and ‘very good very good yay’ and followed it up with a few laughter exercises. The atmosphere brightened instantly and there was warmth all around.

Thereafter, we did some laughter exercises every morning before the start of sessions and everyone relished it. I also did a presentation on Laughter Yoga in the auditorium where several officers of the Bank, senior and junior, from all over India were present. The presentation was well received. After a few months, I went there again with my wife, Radhika, to give one more presentation before a much bigger audience.

We have done sessions for school children, housewives and elders. Everyone loves it. We are regularly invited to a reputed yoga and naturopathy centre in our town for laughter therapy. The feedback from patients is very positive.

One of the members of our laughter club told us that her parents stayed at a remote place far away and felt lonely. She learned the steps of laughter yoga from us and jotted down some exercises which would be more suitable for them. Now, she has gone to them and would be spreading some good cheer in the neighbourhood.

Laughter Yoga can be done for those in the orphanages, hospitals and prisons. The educational institutions are very conducive to Laughter Yoga. It takes stress out of workplaces and makes life vibrant for those who feel lonely.

We were curiously watching sunrise with many tourists in a hill station recently. As the sun came up, everyone was thrilled and clicked their cameras vigorously. Then, after introducing ourselves as Laughter Yoga trainers to the crowd, we requested them to join us for a brief session of laughter exercises before moving back. All agreed readily. A short but sweet session followed and the joy of watching the sun rise was enhanced manifold.

Laughter Yoga is truly an invaluable life skill which we can use to bring joy to all around us anytime, anywhere. It is Divine!

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (61) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः ।

वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ।।61।।

 

वश में कर के इंद्रियाँ,हो मुझसे लवलीन

इंद्रियाँ जिसके वश में है,वही मुनष्य प्रवीण।।61।।

 

भावार्थ :   इसलिए साधक को चाहिए कि वह उन सम्पूर्ण इन्द्रियों को वश में करके समाहित चित्त हुआ मेरे परायण होकर ध्यान में बैठे क्योंकि जिस पुरुष की इन्द्रियाँ वश में होती हैं, उसी की बुद्धि स्थिर हो जाती है।।61।।

 

Having restrained them all he should sit steadfast, intent on Me; his wisdom is steady whose senses are under control. ।।61।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 30 – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–30              

आज मई दिवस है, आप छुट्टियाँ माना रहे होंगे। वैसे तो मई दिवस मनाने के कई  कारण हैं । विश्व के विभिन्न भागों में कई लोग इसलिए भी मई दिवस मनाते हैं  क्योंकि वे  इस वसंत ऋतु की शुरुआत मानते हैं । किन्तु , मैंने जब से होश संभाला और जाना तब से मुझे पता चला कि मई दिवस को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। जब मैंने इसके तह में जाने की कोशिश की तो पता चला कि कई परेडों और हड़ताल के बात फ़ैडरेशन ऑफ ओर्गेनाइज्ड ट्रेड एंड लेबर यूनियनों नें अनौपचारिक रूप से अक्तूबर 1886  में तय किया कि काम का समय प्रतिदिन आठ घंटे निर्धारित किया जाए ताकि मजदूर पूरे दिन के कार्य में अत्यधिक श्रम और तनाव से स्वयम को बचा सके।

अभी अभी प्राप्त श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी की कविता आपसे साझा करना चाहूँगा।

“मजदूर दिवस ”

यदि पेट पीठ से मिला
यदि बंडी में छेद मिला
चिलचिलाती धूप में मिला
भूख में हड़बड़या वो मिला
उधारी से वो सरोबार मिला
दवाई को तड़फता मिला
पसीने की गंध लिए मिला
ठेकेदार से मार खाता मिला
उधर नूनरोटी लिए मिला
दर्द को गले लगाता मिला
वोट डालते हुए डरते मिला
जहाँ भी मिला मैं ही मैं मिला

– जय प्रकाश पांडेय

आज के इस ऐतिहासिक दिवस पर आपका  अपार स्नेह और मेरा थोड़ा सा श्रम रंग लाया। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक जब मैं e-abhivyakti के डेश बोर्ड  का अवलोकन कर रहा था तो पाया कि हमने अब तक अनवरत 198 दिनों में 755 रचनाएँ प्रकाशित की एवं उनपर 610 कमेंट्स पाये हैं साथ ही विजिटर्स की संख्या 15,000 पार कर गई है। आप सभी का आभार। इसके अतिरिक्त और कई ऊंचाइयों को स्पर्श किया है जिन्हें मैं आपसे अलग से शेयर करूंगा। 

आज के अंक में आप पाएंगे  प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी का  भगवतगीता के पद्यानुवाद में द्वितीय अध्याय का 60 वें श्लोक का पद्यानुवाद, हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी में भावार्थ।  श्री जगत सिंह बिष्ट जी की हास्य योग (Laughter Yoga) की यात्रा के दो पड़ाव भारतीय स्टेट बैंक सिटीजन कार्यक्रम एवं भारतीय स्टेट बैंक के प्रशिक्षण केन्द्रों में उनका हास्य योग का प्रवेश। डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव जी का देश को प्रगतिपथ पर ले जाने का काव्यात्मक आह्वान। श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे  जी की  मातृभाषा एवं देशप्रेम से ओतप्रोत मराठी कविता  “भुपाळी” । श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी का चुनाव चिन्हों एवं पुराने दिनों के चुनावों  पर आधारित राजनीतिक व्यंग्य  “वो दिन हवा हुए” । सुश्री निशा नंदिनी जी की रोलर कोस्टर “यूरोप यात्रा” जो आपको निश्चित ही यूरोप की सजीव यात्रा कराने में सक्षम है।

आपके सुझावों की सदैव प्रतीक्षा रहेगी।

आज बस इतना ही।

हेमन्त बवानकर 

1 मई 2019

10.50 AM

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यात्रा-संस्मरण – मेरी यूरोप यात्रा – सुश्री निशा नंदिनी भारतीय

सुश्री निशा नंदिनी भारतीय 

☆ यात्रा संस्मरण – मेरी यूरोप यात्रा

(आज प्रस्तुत है सुदूर पूर्व  भारत की प्रख्यात  लेखिका/कवियित्री सुश्री निशा नंदिनी जी का  यूरोप यात्रा संस्मरण। यह संस्मरण निश्चित ही आपको आपकी यूरोप यात्रा की याद दिला देगा। यदि आपने अब तक यह यात्रा नहीं की है तो आपको यात्रा पर जाने के लिए अवश्य प्रेरित करेगा।  एक बेहतरीन यात्रा संस्मरण।)

यदि इब्न बतूता के कथन, “यात्रा वो होती है। जो आपको कहने के लिये कुछ न छोड़े, सिर्फ आपको एक कहानी सुनाने वाले व्यक्ति के रूप में बदल दे। जिसे सुनाते जाना चाहिए।”  यूरोप एक कहानी की तरह है। जिसे सुनाते हुए कभी नहीं थकेंगे। एक बेहतरीन गंतव्य है। यूरोप की यात्रा एक रोलर कोस्‍टर की सैर जैसी होती है। जो दमदार है। मंत्रमुग्‍ध कर देने वाली है और कभी न भुलायी जाने वाली है।

मेरी यूरोप यात्रा बहुत ही रोमांचक व जिज्ञासा पूर्ण थी। जब मैं 55 वर्ष की और मेरे पति महाशय 60 वर्ष के थे। तब अपने बच्चों के आग्रह पर हमने यूरोप यात्रा करने का निर्णय लिया। इससे पहले अमेरिका व अन्य बहुत से देशों की विदेश यात्राएं हम कर चुके थे। पर इस यात्रा की उत्सुकता कुछ अधिक थी। जिसका पहला कारण हमारी जुड़वा बेटियों में से एक बेटी भी जर्मनी के म्यूनिख शहर में रहकर पढ़ाई कर रही थी। उससे मिलने की चाह थी और दूसरा कारण इतिहास में यूरोपीय देशों के बारे में बहुत पढ़ा था। ऐन फ्रैंक की डायरी पढ़ने के बाद तो हिटलर की जगह देखने की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी । रोम के राजाओं की बहुत सी कहानियाँ पढ़ी थी। शेक्सपियर, जूलियट, सीजर पढ़ा था। स्विट्जरलैंड की प्राकृतिक सुंदरता को पुस्तकों में पढ़ा व चित्रों में देखा था। नेपोलियन बोनापार्ट के विषय में इतिहास में पढ़ा था। नीदरलैंड का तो कहना ही क्या?

कुल मिलाकर यूरोप यात्रा की लालसा घनिष्ठ होती जा रही थी।

अत: बच्चों ने हमारे विवाह की 33 वीं सालगिरह पर यूरोप यात्रा पर भेजने का निर्णय लिया।”अंधा क्या चाहे दो आँखें” हम बहुत खुश और उत्साहित थे। मैंने तो अपने लेखक धर्म के नाते सबसे पहले अपनी एक नई डायरी और तीन-चार अच्छी नस्ल के कलम रख लिये थे। हमारी यूरोप यात्रा प्रारंभ से अंत तक 25 दिनों की रखी गई थी।

हम 5 मई 2018 को सुबह 10:30 बजे तिनसुकिया असम से स्पाइजेट के जहाज से दिल्ली के लिए रवाना हुए। 5 मई की रात दिल्ली से कुछ जरूरी खरीददारी की व विश्राम किया। फिर 6 मई 2018 की सुबह 3:40 पर एलिटालिया एयरवेज से रोम (इटली) के लिए रवाना हुए। यह सफर सात घंटे का था। रोम के समयानुसार सुबह 8:30 बजे रोम पहुंच गए। वहां से टर्मिनल-1 में पहुंच कर 3:30 बजे म्यूनिख (जर्मनी)के लिए रवाना हुए। 7 मई 2018 शाम 5:30 बजे हम म्यूनिख पहुंच गए थे। एयरपोर्ट से आठ बजे हम पाँच सितारा होटल “लीमेरिडियन” में पहुंचे। यहां का मौसम बहुत ही मनमोहक था। न अधिक गर्मी, न अधिक सर्दी। वैसे यहां ठंड के समय में बहुत अधिक ठंड पड़ती है। तापमान माइनस 12-15 तक चला जाता है। बरफ गिरती है।

जर्मनी की धरती पर जहां नजर उठाओ। वहां सिर्फ हरे-भरे वृक्ष पेड़-पौधे व रंग बिरंगे फूल ही फूल दिखाई देते थे। साफ सुथरी और चौड़ी सड़कें थीं। यहां ईमानदारी लोगों के खून में रहती है। मैट्रो या ट्रम के टिकट का कहीं कोई चैकिंग सिस्टम नहीं है, लेकिन मजाल है कि कोई बिना टिकट सफर कर ले। यह सब कारण ही देश की उन्नति में सहायक होते हैं। यहाँ हमने मरियम चर्च देखी। वहाँ स्ट्रीट पर रूमानिया नृत्य हो रहा था। गीत संगीत का कार्यक्रम चल रहा था। यहां के लोगों से परिचय प्राप्त किया।यहाँ के लोग बहुत मेहनती होते हैं। यहाँ सभी लोग अपनी राष्ट्र भाषा यानि जर्मन का प्रयोग ही करते हैं। यहां अंग्रेजी भाषा का प्रयोग न के बराबर ही होता है। अंग्रेजी जानते हैं पर बोलते नहीं हैं। जर्मन भाषा की लिपि रोमन ही है। पर भाषा अलग है। अधिकतर लोग साइकिल का प्रयोग करते हैं या पैदल चलते हैं। यहाँ गर्मियों में रात 8:30 बजे तक धूप रहती है। दुकानें ठीक आठ बजे बंद हो जाती हैं। पर होटल रात 12:00 बजे तक खुले रहते हैं। और मैट्रो ट्रेन रात के 2:00 बजे तक चलती हैं। सिर्फ दो घंटे के लिए बंद होकर फिर सुबह चार बजे से चलने लगती हैं। यहाँ रात में किसी प्रकार का कोई डर नहीं है। चोरी चपाटी, मार पीट, हिंसा आदि सभी बुराइयों से जर्मनी पूरी तरह सुरक्षित है। यहाँ बच्चे, लड़कियाँ पूरी तरह सुरक्षित हैं।

11 मई 2018 को रात आठ बजे हम लोग म्यूनिख से ज्यूरिख यानि स्वीट्जरलैंड के लिए निकल पड़े।

यह सफर बस का था,पर सड़कें खुली और अच्छी होने के कारण बस इस तरह चल रही थी कि हमें लग रहा था कि हम हवाई यात्रा कर रहे हैं। बस में शौचालय आदि की भी सुविधा थी। एक कैंटीन भी थी। जिसमें चाय, कॉफी, सैंडविच आदि खरीदे जा सकते थे । दो सीट पर एक यात्री को बैठाया गया था। सभी लोग आराम से सोते हुए जा रहे थे। बस द्वारा जर्मनी की हरी-भरी धरती का आनंद लेते जा रहे थे। दूर तक ऐसा लगता था कि सुंदर स्वच्छ हरे रंग का कालीन बिछा है। दो घंटे के सफर के बाद बस को “लिम्बाट” नदी के एक बड़े से जहाज पर चढ़ाया गया था। इस पानी के जहाज में रेस्टोरेंट भी था। हम लोगों ने यहां कॉफी पी। जहाज की यात्रा लगभग बीस मिनट की थी। इसके बाद नदी पर ब्रिज बना हुआ था। चारों तरफ बस्ती थी। उस ब्रिज पर करीब बीस मिनट बस चली।

यह सारा दृश्य अद्भुत था। कोंचलेगेन वह सीमा थी। जहां पर हमारा पासपोर्ट चैक किया गया था। कोंचलेगेन जर्मनी की अंतिम सीमा थी। इसके बाद से हम दूसरे देश में प्रवेश कर रहे थे। इस तरह बस द्वारा सिर्फ चार घंटे के सफर के बाद रात 12:10 बजे एक दूसरे देश में पहुंच गए थे,और वह देश था स्विट्जरलैंड।

स्विटजरलैंड एक ऐसा देश है। जिसे पर्यटन की दृष्टि से आदर्श माना जाता है। इसलिए यह पर्यटकों में खासा लोकप्रिय है। आल्प्स पर्वत श्रृंखला के करीब स्थित इस देश के प्राकृतिक नजारे, नदियाँ, झीलें और संस्कृति पर्यटकों को खासा लुभाती हैं। कला और संस्कृति से समृद्घ इस देश में बहुत से म्यूजियम और ऐतिहासिक स्थल हैं।

स्विट्जरलैंड मध्य यूरोप का एक देश है। इसकी 60 % ज़मीन आल्प्स पहाड़ों से ढकी हुई है। सो इस देश में बहुत ही ख़ूबसूरत पर्वत, गाँव, सरोवर झील और चारागाह हैं। स्विस लोगों का जीवन स्तर दुनिया में सबसे ऊँचे जीवन स्तरों में से एक है। यहाँ की स्विस घड़ियाँ, चीज़, चॉकलेट आदि बहुत मशहूर हैं।

इस देश की तीन राजभाषाएँ हैं-जर्मन ,फ़्रांसिसी और इतालवी।  स्विट्स़रलैण्ड एक लोकतन्त्र है। जहाँ आज भी प्रत्यक्ष लोकतन्त्र देखने को मिल सकता है। यहाँ कई बॉलीवुड फ़िल्म के गानों की शूटिंग होती है। लगभग 20 % स्विस लोग विदेशी मूल के हैं। इसके मुख्य शहर और पर्यटक स्थल ज्यूरिख, बर्न,  बासल, इंटरलाकेन, लुगानो,  लूत्सर्न, इत्यादि हैं।

यहाँ बर्फ के सुंदर ग्लेशियर हैं। ये ग्लेशियर साल में आठ महीने बर्फ की सुंदर चादर से ढके रहते हैं। तो वहीं दूसरी तरफ सुंदर वादियाँ हैं। जो सुंदर फूलों और रंगीन पत्तियों वाले पेड़ों से ढकी रहती हैं। भारतीय निर्देशक यश चोपड़ा की फिल्मों में इस खूबसूरत देश के कई नयनाभिराम दृश्य देखने को मिलते हैं। स्विट्जरलैंड में भी हमारे लिए पाँच सितारा होटल “पार्क रेडिशन”बुक था। यह सारा कार्य हमारे बच्चों द्वारा ही किया गया था।

यहां हम रिगि की पहाड़ियों पर ट्रेन द्वारा ऊपर गए। इसकी हाइट पाँच हजार चार सौ फीट थी। यहां लोगों ने भेड़, बकरी और गाय पाल रखी थी। मौसम बहुत अच्छा था। रिगि की पहाड़ी के ऊपर का तापमान 10 डिग्री था। ऊपर पहुंचने में 40 मिनट का समय लगा। हम पाँच हजार चार सौ फीट की ऊँचाई पर ख़ड़े थे। नीचे घर आदि सभी कुछ बहुत छोटे नजर आ रहे थे। मेरा मस्तिष्क बहुत तरोताजा होकर बहुत तेजी से चल रहा था। ईश्वर प्रदत्त प्राकृतिक सुंदरता को देख कर हमने मन ही मन उस सर्वशक्तिमान को प्रणाम किया।

पानी के जहाज द्वारा लुसर्ण लेक से लुसर्ण शहर में गए।

इस तरह तीन दिन हमने स्विट्जरलैंड की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लिया और फिर 13 मई को वापस म्यूनिख आ गए। हमने म्यूनिख में रैंट पर एक फ्लेट ले लिया था। जिसमें सभी प्रकार की सुविधाएं थी। हम अपनी पसंद का भोजन बना खा सकते थे। हमारे फ्लेट के नीचे बाजार था। इस बाजार में 90% प्रतिशत दुकानें टर्किश लोगों की थी। यह टर्किश लोग द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद काम के लिए जर्मनी आकर बस गए थे। इस बाजार में सभी प्रकार का सामान उपलब्ध था। भारतीय भोजन की सामग्री भी उपलब्ध थी।

अब एक दिन म्यूनिख में रहकर हम लोग 15 मई शाम को 9:00 बजे हवाई यात्रा द्वारा नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम के लिए निकल पड़े। दो घंटे की हवाई यात्रा के बाद हम लोग रात के 11:00 बजे एम्सटर्डम पहुंच गए थे।

नीदरलैंड यूरोप महाद्वीप का एक प्रमुख देश है। यह उत्तरी-पूर्वी यूरोप में स्थित है। इसकी उत्तरी तथा पश्चिमी सीमा पर उत्तरी समुद्र स्थित है। दक्षिण में बेल्जियम एवं पूर्व में जर्मनी है। नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम है।

नीदरलैंड को अक्सर हॉलैंड के नाम से भी संबोधित किया जाता है एवं सामान्यतः नीदरलैंड के निवासियों तथा इनकी भाषा दोनों के लिए डच शब्द का उपयोग किया जाता है।

फ्रांस की क्रांति द्वारा उत्पन्न नवीन विचारों से जर्मनी प्रभावित हुआ था। नेपोलियन ने अपनी विजय द्वारा विभिन्न जर्मन-राज्यों को राईन-संघ के अंतर्गत संगठित किया। जिससे जर्मन-राज्यों को एक साथ रहने का एहसास हुआ। इससे जर्मनी में एकता की भावना का प्रसार हुआ। यही कारण था कि जर्मन-राज्यों ने वियना कांग्रेस के समक्ष उन्हें एक सूत्र में संगठित करने की पेशकश की। पर उस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

इसकी कई स्मारकीय इमारतें प्राचीन शहर के लंबे इतिहास को दर्शाती हैं।

एम्सटर्डम नीदरलैंड का सबसे महत्वपूर्ण शहर माना जाता था।

एम्सटर्डम ने जिस समय  डच स्वर्ण युग इस शीर्षक का पदभार संभाला था तब यह नीदरलैंड का सांस्कृतिक केंद्र बन गया था।

एम्सटर्डम में संग्रहालयों का अपना एक उचित स्तर है।

सेंट्रल म्यूजियम कला और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है।

“कैसल डी हार” एम्सटर्डम स्थित है और पूरे सप्ताह दर्शकों के लिए खुला रहता है।

शहर में विशाल “डोम टॉवर” है।  नीदरलैंड में सबसे ज्यादा चर्च और टॉवर है। यह 14वीं सदी के बने हुए हैं।

एम्सटर्डम देश की सबसे बड़ी प्रदर्शनी और सम्मेलन का केंद्र  है।

यह बिल्कुल सेंट्रल स्टेशन के बगल में स्थित है और एक साल में लगभग एक लाख से अधिक आगंतुकों का स्वागत करता है।

यहां साल में एक बार एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय पर्यटन और अवकाश मेला आयोजित किया जाता है।

17 मई 2018 को रात 9:30  बजे एम्सटर्डम से ट्रेन द्वारा हमारी यात्रा बेल्जियम के लिए प्रारंभ हुई थी। प्रति व्यक्ति 26 यूरो का टिकट था। (भारतीय रूपए अनुसार दो हजार अस्सी रुपए) ट्रेन बहुत ही सुविधा जनक थी। रेलवे स्टेशन  भीड़ रहित व सभी प्रकार की सुविधाओं से पूर्ण था। रेलवे स्टेशन पर भी एयरपोर्ट जैसा आभास हो रहा था। स्टेशन पर बड़ी बड़ी ब्रांड के शो रूम थे। हमने एम्सटर्डम के स्टेशन से यहां के प्रसिद्ध रंग-बिरंगे नकली टुलिप के कुछ फूल खरीदे। यह लकड़ी के बने बहुत सुंदर फूल थे।टुलिप के फूल के बगीचे यहां की मुख्य विशेषता है। ट्रेन की सीट बहुत बड़ी-बड़ी व खुली खुली थी।पूरी ट्रेन में बहुत कम यात्री थे। सभी सीट खाली पड़ी थी। यात्रा बहुत ही आरामदायक थी।

ट्रेन काफी खाली थी। यह चेयर कार थी। ट्रेन से दूर दूर तक खेत दिखाई दे रहे थे। यूरोप के सभी देशों में खेती मुख्य व्यवसाय है।

चारों तरफ के सुंदर नजारे को देखते देखते केवल तीन घंटे की ट्रेन यात्रा के बाद 12:30 बजे हम लोग बेल्जियम के “मिडी स्टेशन” पर पहुंच गए थे।

यूरोप में बेल्जियम एक छोटा सा देश है जो स्पेन, इटली, जर्मनी, फ्रांस, यू.के जैसे कुछ बड़े देशों की तुलना में काफी छोटा है, लेकिन इसके छोटे आकार के बावजूद, इस जगह में कई चीजें हैं जैसे वफ़ल, चॉकलेट, हीरे, फ्रेंच फ्राइज़ और कई अनगिनत चीजें शामिल हैं जो यहाँ मिलती हैं।बेल्जियम अपने मध्ययुगीन पुराने शहरों, फ्लेमिश पुनर्जागरण वास्तुकला और यूरोपीय संघ और नाटो के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय के लिए जाना जाता है।

बेल्जियम देश के अनोखे रोचक तथ्य यह हैं कि बेल्जियम का आधिकारिक नाम”बेल्जियम का साम्राज्य” है। और बेल्जियम के राजा फिलिप वर्तमान शासक हैं।

बेल्जियम में तीन आधिकारिक भाषा हैं और उनमें से कोई भी बेल्जियन नहीं है लोग देश के विभिन्न हिस्सों में डच, फ्रेंच और जर्मन बोलते हैं।

बेल्जियम अलग-अलग प्रकार की 800 से अधिक बियर बनाता है।बेल्जियम प्रत्येक व्यक्ति प्रति वर्ष 150 लीटर बीयर औसतन पीता है। दुनिया का मुख्य हीरा केंद्र  और दूसरा सबसे बड़ा पेट्रोकेमिकल केंद्र बेल्जियम में है। दुनिया में लगभग 90% कच्चे हीरे बेच दिए जाते हैं।पॉलिश किए जाते हैं। और एंटवर्प,बेल्जियम में वितरित किए जाते हैं।

बेल्जियम में 18 वर्ष की आयु तक अनिवार्य शिक्षा है। यह दुनिया की सर्वोच्चतम शिक्षा में से एक है।

बेल्जियम नीदरलैंड के साथ उत्तर की ओर, पूर्व में जर्मनी, दक्षिण पूर्व में लक्ज़मबर्ग और दक्षिण और पश्चिम में फ्रांस का हिस्सा है। उत्तर-पश्चिम में उत्तरी सागर के किनारे समुद्र तट भी हैं।

“स्पा” शब्द, जो कि कई जगहों के बारे में बात करने और कल्याण उपचार पाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। बेल्जियम के शहर स्पा से आता है।

बेल्जियम की फुटबॉल टीम – रेड डेविल्स – फीफा रैंकिंग में दुनिया में नंबर एक है।फुटबॉल (सॉकर) ही एकमात्र चीज है जो सभी बेल्जियम के लोगों को एकजुट कर सकती है। और उन्हें सभी मतभेदों और असहमति को भुला सकती है। भले ही थोड़े समय के लिए।

बेल्जियम प्रति वर्ष 220,000 टन चॉकलेट का उत्पादन करता है।यह बेल्जियम में प्रत्येक व्यक्ति के लिए लगभग 22 किलो चॉकलेट है।

ब्रुसेल्स केवल बेल्जियम की राजधानी नहीं है, बल्कि यूरोपीय संघ की राजधानी भी है। (ईयू) और नाटो का मुख्यालय है। यही कारण है कि ब्रसेल्स को “यूरोप का दिल” कहा जाता है।

यूरोप का पहला कैसीनो “ला रेडॉउट” साल 1763 में बेल्जियम में खोला गया था।

बेल्जियम में 11,787 वर्ग मील (30,528 वर्ग किलोमीटर) का क्षेत्रफल है।

नेपोलियन, ब्रुसेल्स के दक्षिण में एक शहर “वाटरलू” में हार गया था।

बेल्जियम के लोगों का कहना है कि वे ‘अपने पेट में एक ईंट के साथ पैदा’ हुए हैं इसलिए हर बेल्जियम वासी एक घर खरीदने या बनाने की कोशिश करता है। जिसे वे जल्दी से जल्दी कर लेते हैं।

बेल्जियम में दुनिया भर की सड़कों और रेलमार्ग का उच्चतम घनत्व है। यह नीदरलैंड और जापान के बाद प्रति वर्ग किलोमीटर के तीसरे सबसे ज्यादा वाहनों वाला देश है। सभी प्रकार की रोशनी सहित बेल्जियम की राजमार्ग व्यवस्था ही एकमात्र मानव निर्मित संरचना है। जो रात में अंतरिक्ष सी दिखाई देती है।

ब्रुसेल्स का रॉयल पैलेस, बकिंघम पैलेस से 50% बड़ा है।

मार्च 2003 में इलेक्ट्रॉनिक आईडी कार्ड पेश करने के लिए बेल्जियम, इटली के साथ, दुनिया का पहला देश था। यह पूरी आबादी के लिए ई-आईडी जारी करने वाला पहला यूरोपीय देश होगा। बेल्जियम में मतदान अनिवार्य है और इस कानून को लागू किया गया है। बेल्जियम में  टेलीविजन को 1953 में दो चैनलों के साथ पेश किया गया था। एक डच में और एक फ्रेंच में।

80% बिलियर्ड खिलाड़ियों ने  बेल्जियम-निर्मित गेंदों का उपयोग किया है।

विश्व का सबसे बड़ा चॉकलेट बिक्री बिंदु ब्रसेल्स राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। देश के उद्योग में रसायन, संसाधित खाद्य और पेय पदार्थ, इंजीनियरिंग, धातु उत्पाद और मोटर वाहन  असेंबलिंग शामिल हैं।

बेल्जियम की कोस्टल ट्राम दुनिया की सबसे लंबी ट्राम लाइन है। जो 68 किमी लंबी है। पूरी दुनिया में बेल्जियम के घरों में “केवल टी.वी” का सबसे अधिक प्रतिशत है। जो की 97% है।

बेल्जियम के लोगों की औसतन आयु 78-81 वर्ष की है।

यूरोप के लगभग सभी देशों में गर्मी के समय जून जुलाई में रात दस बजे तक दिन रहता है।

यहां पर बाजार ठीक आठ बजे बंद हो जाते हैं। होटल रात के बारह बजे तक खुले रहते हैं।

यहां के सभी रेलवे स्टेशन सुव्यवस्थित,आधुनिक सुविधाओं से पूर्ण व पूर्णता स्वच्छ हैं।

19 मई 2018 को शाम के 7:45 पर हम लोग बस द्वारा ब्रसेल्स से पेरिस के लिए निकल पड़े। बस सभी प्रकार की सुविधाओं से पूर्ण थी। बस में एक कैंटीन तथा शौचालय की व्यवस्था भी थी।लगभग तीन घंटे की बस यात्रा के बाद 11:15 पर हम लोग पेरिस पहुंच चुके थे। जैसा की पेरिस के बारे में सुन रखा था। पेरिस उससे भी कहीं अधिक था।

फ्रांस के उत्तर में सीन नदी के तट पर बसा कल्पनाओं का शहर है पेरिस। फ्रांस की राजधानी पेरिस को ‘रोशनी का शहर’ और ‘फैशन की राजधानी’ भी कहा जाता है। 105.4 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले इस शहर की जनसंख्या 22 लाख है। पूरा पेरिस 20 भागों में बंटा है। जिन्हें अरौंडिसमैंट कहते हैं। 6,100 गलियों, 1,124 बार और 1,784 बेकरियों वाले इस शहर के बनने की कहानी बड़ी रोचक है। वर्ष 1852 तक यह आम शहर जैसा ही था। उसी वर्ष नेपोलियन बोनापार्ट का भतीजा लुई नेपोलियन तृतीय राजा बना और उस ने बड़े ही जोरशोर से शहर का नवीनीकरण करना शुरू किया। बैरन हौसमैन नामक इंजीनियर को उस ने यह जिम्मेदारी सौंपी थी।

हौसमैन ने न सिर्फ सौंदर्यीकरण का काम किया, बल्कि शहर को अभिजात्य वर्ग में ला खड़ा करने की भी पुरजोर कोशिश की। शहर में जितनी भी गरीब लोगों की बस्तियां थीं। उन्हें उजाड़ कर जनता को जबरदस्ती शहर के बाहरी हिस्सों में भेज दिया गया था। और फिर चौड़ी खूबसूरत सड़कों, बड़े-बड़े खुले ब्लौक्स और महंगे बाजारों तथा सुंदर घरों का निर्माण किया गया। हरियाली की कमी न हो। इस बात का पूरा ध्यान रखा गया। 17 साल तक यह सारा काम चलता रहा। और जनता हौसमैन को कोसती, गालियां देती रही।गरीब तो गरीब, अमीरों ने भी उस का विरोध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

1870 तक जो पेरिस बन कर तैयार हुआ।उस ने सब की आंखें चौंधिया दीं थीं और कुछ ही समय में यह शहर पूरे यूरोप के गर्व का कारण बन गया।आज पूरे संसार में पेरिस की जो छवि है।उस का मुख्य श्रेय हौसमैन को ही जाता है।

घूमने के लिहाज से वैसे तो पूरे पेरिस शहर में कहीं भी चले जाइए। हर जगह खूबसूरती बिखरी मिलेगी।फिर भी कुछ जगहें ऐसी हैं। जिन्हें देखे बिना पेरिस यात्रा अधूरी ही कहलाएगी।

एफिल टावर फ्रांस की क्रांति की एक शताब्दी पूरी होने का जश्न मनाने के लिए 1889 में पेरिस में एक वर्ल्ड फेयर का आयोजन किया जा रहा था। इस के मुख्यद्वार के रूप में एक बड़ा और भव्य टावर बनाने का प्लान बनाया गया।जिसे बाद में तोड़ दिया जाना था। जिस कंपनी ने इस का निर्माण किया था। उस के मुख्य इंजीनियर एलैक्जैंडर गुस्ताव एफिल के नाम पर इस का नाम एफिल टावर रखा गया।लोहे के जालदार काम से बनी इस संरचना की ऊंचाई 1,063 फुट है। जिस में 3 लैवल हैं और 1,665 सीढि़यां हैं। हर लैवल पर जाने के लिए अलग-अलग लिफ्ट की व्यवस्था है। पहली 2 मंजिलों पर रैस्टोरैंट आदि की भी सुविधा है। हर मंजिल से पूरे शहर का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। जैसा कि पहले से तय था। वर्ष 1909 में इसे नष्ट करने के बारे में सोचा गया था।लेकिन तब तक यह जनता और सरकार, सब के दिलों में घर कर चुका था।इसलिए इसे एक बड़े रेडियो एंटीना की तरह प्रयोग करने का निश्चय किया गया।आज यह टावर पेरिस की पहचान और शान है।

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जब हिटलर पेरिस में घुसा। तो लोगों ने एफिल टावर की लिफ्ट के केवल काट दिए थे। ताकि हिटलर उन के शहर की इस शान पर न चढ़  सके। हिटलर कुछ सीढि़यां चढ़ा, लेकिन फिर हार मान कर लौट गया।आज यहां पूरे संसार से हर साल 60-70 लाख लोग आते हैं। रात के समय जब पूरे टावर पर लगी 20 हजार लाइटें जगमगाने लगती हैं। तब तो इस की शोभा देखते ही बनती है। इस से जुड़ा एक मजेदार तथ्य है कि मैटल से बना होने के कारण इस की लंबाई सूर्य की गरमी से प्रभावित होती है और मौसम के अनुसार 15 सैंटीमीटर तक घटती बढ़ती रहती है।

डिज्नीलैंड पार्क वाल डिज्नी के पात्रों और फिल्मों की थीम पर बना यह विशाल और भव्य पार्क शहर के मध्य भाग से 32 किलोमीटर पूर्व में स्थित है. 4,800 एकड़ में फैला यह पार्क 1992 में शुरू हुआ था। वर्ष 2002 में इसी के साथ डिज्नी स्टूडियोज का निर्माण किया गया। इन दोनों पार्कों में कुल मिला कर 57 झूले, राइड्स आदि हैं।इन के अलावा यहां रंगबिरंगी परेड, लेजर शो और तरहतरह की अन्य गतिविधियां भी होती रहती हैं। पूरे डिज्नी पार्क को 5 भागों–मेन स्ट्रीट यूएसए, फैंटेसीलैंड, एडवैंचरलैंड, फ्रंटियरलैंड और डिस्कवरीलैंड में बांटा गया है।एक भाग से दूसरे तक जाने के लिए पैदल चलने के अलावा ट्रेन से जाने की भी सुविधा है। एलिस इन वंडरलैंड, पाइरेट्स, स्नोवाइट, पीटर पैन, टौय स्टोरी आदि की थीम पर बने झूले आप को एक अलग ही दुनिया में ले जाते हैं।स्लीपिंग ब्यूटी का महल तो इतना सुंदर है कि देखने वाला मानो सचमुच स्वप्नलोक में ही विचरण करने लगता है। 7 रिजौर्ट, 6 होटल, कई रैस्टोरैंट, शौपिंग सैंटर और एक गोल्फ कोर्स वाले इस थीम पार्क में हर साल एक से डेढ़ करोड़ लोग आते हैं।

फ्रांस की क्रांति और अन्य युद्धों में मारे गए शहीदों की याद में “आर्क औफ ट्रायम्फ” नामक गेट बनाया गया है।रोमन वास्तुकला पर आधारित इस गेट को 1806 में जीन कैलग्रिन ने डिजाइन किया था।कुछ युद्धों और शहीदों के नाम इस की दीवारों पर खुदे हुए हैं।नीचे एक चैंबर बना है। जिस में ‘अनजाने सैनिक का मकबरा’ है। जो पहले विश्वयुद्ध में मारे गए थे। उन सैनिकों को समर्पित है।

नौत्रे डेम कैथेड्रल-

यह एक रोमन कैथोलिक चर्च है। जो फ्रैंच गोथिक शैली में बना है। पूरी दुनिया के कुछ अत्यंत मशहूर चर्चों में से यह एक है। यहां जीसस क्राइस्ट के क्रौस का एक छोटा हिस्सा क्राउन औफ थौर्न तथा उन के कुछ अन्य स्मृतिचिह्न भी रखे गए हैं। नेपोलियन बोनापार्ट के राज्याभिषेक के अलावा अन्य कई बड़ी ऐतिहासिक घटनाओं का यह चर्च गवाह रहा है। यहां कुल 10 बड़ेबड़े घंटे हैं। जिन में से सब से बड़ा 13 टन से भी ज्यादा भारी है और उस का नाम इमैन्युअल है।

“लुव्र म्यूजियम” यह संसार के सब से बड़े म्यूजियमों में से एक है।शहर के पश्चिमी भाग में सीन नदी के दाहिने तट पर स्थित यह इमारत लगभग 60,600 वर्ग मीटर में फैली है।12वीं शताब्दी में फिलिप द्वितीय ने इस का निर्माण एक किले के रूप में करवाया था। कई राजाओं ने इसे अपना निवास बनाया। अनेक स्वरूप और नाम बदलते हुए 10 अगस्त, 1793 को पहली बार 537 पेंटिंग्स और 184 कलाकृतियों के साथ इसे म्यूजियम का रूप दिया गया। आज इस का इतना विस्तार हो चुका है कि अगर यहां की हरेक कलाकृति को सिर्फ 4 सैकंड देख कर ही आगे बढ़ जाएं तो हमें को पूरा म्यूजियम देखने के लिए 3 महीने का समय चाहिए होगा।

इस तरह फ्रांस और इटली घूमते हुए हम लोग 22 मई को वापस म्यूनिख आ गया। दो दिन म्यूनिख का आनंद लेकर हम लोग 25 मई को अपने प्रिय देश भारत के लिए चल दिए। इस यूरोप यात्रा का एक एक पल अविस्मरणीय है और रहेगा। किसी ने ठीक ही कहा है –

सैर कर दुनिया के गाफिल

जिंदगानी फिर कहाँ ।

जिंदगानी गर रही

तो नौजवानी फिर कहाँ।

 

© निशा नंदिनी भारतीय

तिनसुकिया, असम

9435533394

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ वे दिन हवा हुए☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

 

 

 

 

☆ वे दिन हवा हुए☆

 

गॉव के चौपाल में चुनाव की चर्चा जोरों पर है। बैल जोड़ी का एक जमाना था, चुनाव बैलजोड़ी के लिए होता था, तब सबके घरों में कम से कम एक बैलजोड़ी तो होती ही थी। बैलजोड़ी का एक बैल इमानदार चुस्त दुरुस्त तो था, पर दूसरा बैल बात – बात में चिंतन-मनन करने लगता था फिलासफर जैसा व्यवहार करने लगता, प्रेम – वेम के चक्कर में पड़ गया था और निकम्मा हो गया था। ऐसे में कैसे चलती बैलजोड़ी और कैसे चलती बैलगाड़ी……… निकम्मा इसलिए हो गया था कि एक गाय पर उसका दिल दरिया की तरह बह गया था, गाय से चुपके-चुपके मिलता-जुलता था।

ऐसे तो निकम्मा हर कोई होता है और चुनाव के समय निकम्मेपन पर खूब बहसें होती हैं। कुछ जन्मजात निकम्मे होते हैं और कई लोग “निकम्मा ” शब्द का राजनैतिक इस्तेमाल करने लगते हैं, जब राजनीति में इसका प्रयोग बढ़ जाता है तो शब्द नये अर्थ ग्रहण कर लेता है।जैसे अच्छे दिन बाजार में अच्छे अच्छे नामों से खूब चला, ज्यादा चलने से नये-नये शब्दों का अविष्कार हुआ। इन दिनों चौकीदार और चोर शब्दों के दिन फिरे हैं सबको समझ आ रहा है कि सब के सब चौकीदार भी हैं और चोर भी…….. यहां बैल के निकम्मे हो जाने की बात इसलिए चली कि बैलजोड़ी टूट गई, तब पहला बैल अपनी

वफादारी और इमानदारी पर धार धार रोया और रेडियो में गाना बजा……

“दो हंसों का जोड़ा

बिछड़ गयो रे,

गजब भयो रामा जुलम

भयो रे,”

गाने की आवाज पर दूसरा बैल आकर पहले बैल से लिपटकर रोया और बोला –

“इश्क ने हमको निकम्मा कर दिया,

वरना हम भी बैल थे

काम के,”

खैर… जो हुआ तो हुआ, गाय बैल के इश्क में बैल जोड़ी टूट गई। कुछ दिन बाद गाय का बछड़ा हुआ, बछड़ा भी निकम्मा निकला, वह अपने निकम्मेपन को दूसरों पर देखने लगा। कुछ लोग अपने आप निकम्मे हो जाते हैं कुछ बन जाते हैं कुछ बना दिये जाते हैं कई के स्वाभाव में निकम्मापन आ जाता है।

“अजगर करे न चाकरी…. दास मलूका कह गए सबके दाता राम”

ऐसे लोगों पर लोग दया करने लगते हैं दया से कई काम बन जाते हैं चुनाव में वोट भी पड़ जाते हैं, और गरीबी हटाओ के नारे भी लगने लगते हैं। बछड़ा निकम्मा जरुर था पर निकम्मेपन को अपनी उपलब्धि मानता था एक दिन अचानक बछड़ा गायब हो गया। गाय अपना दुखड़ा प्रगट करने संतों के पास दौड़ती रही बड़े संत ने हाथ उठाकर आशीर्वाद दे दिया, हाथ सपने में आया और “हाथ “बन गया। दीपक टिमटिमाता फिर बुझने का नाटक करता, अंधेरे में आधी रात के बाद महत्वपूर्ण निर्णय होते हाहाकार मचने लगा, उन्हीं दिनों कन्याएं फिल्मी स्टार कमल हसन की फिल्में खूब देखने लगीं थीं कन्याओं और महिलाओं का कमल के के प्रति पसंद बढ़ गई थी, अचानक राजनीति में कमल की मांग बहुत बढ़ गई थी।

एक नेता ने चुनाव की सभा में कमल की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में लड़ा गया था, क्रांति हुई थी क्रांति के आयोजक अपना संदेश ‘रोटी और कमल’ का संदेश घुमाकर सुना देते थे, हिन्दू धर्म के अलावा बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म के लोगों ने उस समय कमल को महत्व दिया था। क्या करोगे कमल सुंदर होता है कोमल होता है। सुंदरी के मुखमण्डल का विकास खिले कमल जैसा होता है।

कुछ लोग कीचड़ में घुसकर कमल तोड़ लाए और चुनाव आयोग की सुंदरी को भेंट कर दिया,

“फूल लाये हैं कमल के

पसारें आप आंचल,”

कमल काम का हो गया। धीरे-धीरे फैलने लगा कमल के अच्छे दिन आ गए मांग बढ़ गई शहरों के पोखर तालाबों में जहां कमल खिलते थे वहां कमल प्रेमियों ने कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए थे।

नकली कमल खिलाने के ठेके दिये गये नकली रासायनिक कमल की सुगंध डालकर नकली कमल बाजार में छा गया बैनरों में, झण्डों में, होर्डिंग में। ऐसे में चुनाव के समय लोग कीचड़ में खिले कमल को याद करने लगे। चुनाव और उपचुनाव में सबके हाथ कमल में दबने लगे फिर कमल वाले अहंकार में चूर होकर मूर्तियां तोड़ने लगे, झटकेबाजी करने लगे, और दोनों हाथों से धन लुटा कर विदेश भगाने लगे। अटल कृष्ण ने आम लगाए थे फल नीरव मोदी जैसे लोगों ने खाए। पता नहीं क्या हो गया ये नयी पीढ़ी को चुनाव में भरोसा नहीं रहा फेसबुक से डाटा चुराकर अब चुनाव जीते जा रहे हैं, आजकल के भाई-बहन कमल शब्द से अचानक चिढ़ने लगे हैं हर बात पर अगले चुनाव में देख लेने की बात करते हैं।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

 

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ? भुपाळी? –श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? भुपाळी ?

 

(प्रस्तुत है श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी की एक  अतिसुन्दर रचना ।  निःसन्देह  मातृभाषा का कोई भी पर्याय नहीं है। )

 

किती छान गातो मराठी भुपाळी

मला जाग येते सकाळी सकाळी

 

मराठीत राजा जगी एक आहे

भले नाव त्याचे शिवाजी शिवाजी

 

मराठीच वाणी मराठीच भाषा

अरे जात माझी मराठी मराठी

 

मराठीत गीता लिही ज्ञानराजा

तुला ज्ञानराजा नमामी नमामी

 

मराठीत द्यावे इथे ज्ञान सारे

नको इंग्रजीची गुलामी गुलामी

 

© अशोक भांबुरेधनकवडी

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

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