श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख बिन पानी.! मुश्किल जिंदगानी..! आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 207 ☆

☆ आलेख – विश्व जल दिवस विशेष – बिन पानी.! मुश्किल जिंदगानी..! ☆ श्री संतोष नेमा ☆

विख्यात कवि रहिमन जी ने कहा है कि –

रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।

पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥

अर्थात पानी के बगैर सब कुछ बेकार सा है आजकल हम देख रहे हैं कि आदमी के अंदर का पानी तो खत्म हो ही रहा है.! पर ये बाहरी पानी भी ऑक्सीजन पर नजर आ रहा है.! प्रकृति ने यूं तो अपनी ओर से सभी को एक समान  प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध कराए हैं.! पर व्यावहारिक जीवन में हम देखते हैं कि इन संसाधनों का सबसे ज्यादा उपयोग धनवान लोग ही कर पा रहे हैं.! गरीब तो आज भी अपनी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहा है.? कहने को तो पृथ्वी के तीन चौथाई हिस्से में पानी है पर अफसोस यह पीने लायक नहीं है.! पेय जल मात्र तीन प्रतिशत ही है.! उसमें भी कुछ अंश ग्लेशियर एवं बर्फ के रूप में है.! इन परिस्थितियों के बावजूद भी कुछ लोग पानी पर अपना एकाधिकार समझते हैं.! और बेतरकीब ढंग से पानी का बेजा इस्तेमाल जैसे उनकी फितरत बन गई है.! गाड़ियों  की धुलाई,बाग़ बगीचों  की सिचाई, स्वीमिंग पुल की भराई, गैर जरूरी कार्यों में खर्च, जैसे रईसों की जरूरत बन गई है.! अब वो अपना देखें कि जरूरतमंदों, गरीबों के लिए सोचें.? आज यही सवाल सबसे बड़ा है.! आदमी इतना स्वार्थी एवं आत्मकेंद्रित हो गया है कि उसे अपने अलावा किसी की समस्याएं नजर आती ही नहीं.! आए दिन हम देखते हैं कि चाहे नगर हों, महानगर हों, गाँव हों,कस्बे हों हर जगह पेयजल की समस्याएं बिकराल रूप धारण किये हुए हैँ.! विगत वर्ष दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन को जल विहीन शहर घोषित किया गया.! यह आधुनिक युग की सबसे बड़ी त्रासदी एवं दुर्भाग्य है.? हम दूर क्यों जाएं अपने देश में भी तमाम ऐसे शहर एवं इलाके हैं जहां जहां पर पानी की समस्या सुरसा की तरह बढ़ रही है.! राजस्थान,महाराष्ट्र,आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्यप्रदेश झारखण्ड, आदि प्रदेशों में भूमिगत जल स्तर बहुत नीचे आता जा रहा है.! भूमिगत जल का दोहन बड़ी तेजी के साथ लगातार जारी है.! जल स्रोतों की भी अपनी एक सीमाएं हैं जो कहीं ना कहीं हम भूल रहे हैं.! वैसे तो राज्य सरकारें एवं भारत सरकार भी घर घर जल पंहुचाने तमाम योजनाओं पर काम कर रही हैँ. ! हर घर जल योजना जल जीवन मिशन का एक भाग है, जिसे भारत में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया है., पर यह सारी योजनाएं जल के स्रोतों पर ही तो आधारित हैं इसका भी हमें ध्यान रखना होगा.! जल के महत्व को दर्शाते हुए न जाने कितने कथन प्रचलित हैं  जिनमें जल ही जीवन है,जल है तो कल है,जल बचाओ जीवन बचाओ,पानी की रक्षा देश की सुरक्षा, पानी बचाओ पृथ्वी बचाओ, जल ही जीवन का आधार है, आओ हम जल रक्षक बनें आदि अनेकों प्रेरक कथन हम सबके लिए अनुकरणीय एवं प्रेरक तो हैँ. पर हम कितने गंभीर हैँ ये हमें सोचना होगा! सरकारों द्वारा भी जल शक्ति अभियान, जल संरक्षण योजनाएं, अटल भू जल योजना,जैसी अनेकों योजनाएं भी जल संरक्षण के लिए तेजी से काम कर रही हैँ.! जल सिर्फ मानव जीवन को ही प्रभावित नहीं करता बरन तमाम व्यवसाय,उद्योग धंधे, निवेश आदि भी इससे पूरी तरह प्रभावित होते हैं.! अभी हाल ही में आईटी हब बेंगलुरू में बढ़ती पानी की समस्या को देखते हुए तमाम बड़ी कंपनियां वहां से पलायन की मानसिकता से दूसरी जगह तलासने में लग गईं हैँ.? ये दूसरा  पहलू हमारे विकास की रफ़्तार को पीछे ढकेल सकता है.?

जल की प्रत्येक बूँद हमारे लिए कीमती है. इसे बचाने का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए.! यूँ तो पुरी दुनिया में 22 मार्च को जल संरक्षण के लिए विश्व जल दिवस मनाया जाता है. जिसकी शुरुआत  दरअसल 22 दिसंबर, 1992 को संयुक्त राष्ट्र असेंबली में प्रस्ताव लाया गया था, जिसमें ये घोषणा की गई कि 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाएगा. इसके बाद 1993 से दुनियाभर में 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. कैपटाउन जैसे शहर में तो प्रति व्यक्ति जल उपयोग करने की सीमाएं भी तय कर दी गई है जो जल की भयावह स्थिति को बयां करती हैँ.! कुछेक विश्लेषक तो यहाँ तक कहते हैं कि  तीसरा विश्व युद्ध भी जल को लेकर हो सकता है.!! परिस्थितियां  आपके सामने हैँ .! शासन अपने स्तर पर विभिन्न योजनाओं के माध्यम से काम कर रहा है पर इन सब के बावजूद यदि किसी की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है तो वह हैँ हम और आप.! जब तक हम उपभोक्ता अंदर से स्वयं जागरूक ना होंगे तब तक जल संरक्षण के सार्थक परिणाम मिलना मुश्किल है.! हम जल के संरक्षण का असली महत्व समझकर उसे अपने जीवन में शामिल करें और उसके प्रति कृतज्ञ रहें। जल संरक्षण के प्रति हमें सचेत करने के लिए ही तमाम सामाजिक,एवं शासकीय संस्थाएं तेजी से काम कर रही हैँ. ! ना जाने कितने कवि और शायर इस विषय को लेकर अपनी कलम के माध्यम से उद्वेलित हैं.! अब यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप कब जागेंगे.? वक्त रहते जागना ही हम सबके हित में है अन्यथा कैप्टाउन जैसी स्थिति हमारे यहाँ निर्मित होने में देर न लगेगी.! अब तो आँखों का पानी भी सूख रहा है.? अभी समय आ गया है अपने अंदर के एवं बाहर के पानी को बचाने का.!

“पानी खूब बचाइये,पानी है अनमोल

बिन पानी जीवन नहीं,समझें इसका मोल”

आइये हम सब यह प्रण करें कि हम व्यर्थ पानी न बहाएंगे,इसका समुचित उपयोग और बचत कर जल संवर्धन में सहायक बनेंगे.! ताकि हमारा भविष्य उज्जवल हो.अन्यथा हमें यही कहना पड़ेगा कि “बिन पानी..! मुश्किल ज़िंदगानी.”

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments