(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय   आलेख – हिंदी नाटकों का अभाव।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 195 ☆  

? आलेख  – हिंदी नाटकों का अभाव?

आज नाटक अपेक्षकृत कम लिखे जा रहे हैं. लोगो की बदलती अभिरुचि के चलते जीवंत नाट्य प्रस्तुति की जगह कैमरे में कैद संपादित फिल्म या धारावाहिक ज्यादा लोकप्रिय हैं.

कथावस्तु, नाटक के पात्र, रस, तथा अभिनय नाटक के प्रमुख तत्व  होते हैं. पौराणिक, ऐतिहासिक, काल्पनिक या सामाजिक विषय  नाटक की कथावस्तु हो सकते हैं. कथा वस्तु को नाटक के माध्यम से दर्शको के सम्मुख प्रस्तुत करके नाटककार विषय को संप्रेषित करता है.ऐतिहासिक नाटको में कथावस्तु सामान्यतः ज्ञात होती है पर फिर भी दर्शक के लिये नाटक में जिज्ञासा बनी रहती है, और इसका कारण पात्रो का अभिनय तथा नाटक का निर्देशन होता है. नाटक की कथा वस्तु का दर्शको तक संप्रेषण तभी सजीव होता है जब नाटक के पात्रों व विशेष रूप से कथावस्तु के अनुरूप नायक व अन्य पात्रो का चयन किया जावे. यह दायित्व नाटक के निर्देशक का होता है. पात्रों की सजीव और प्रभावशाली प्रस्तुति ही नाटक की जान होती है. नाटक में नवरसों में से आठ का ही परिपोषण  होता है.  शांत रस नाटक के लिए निषिद्ध माना गया है,  वीर या श्रंगार में से कोई एक नाटक का प्रधान रस होता है. अभिनय  नाटक का प्रमुख तत्व है. इसकी श्रेष्ठता पात्रों के वाक्चातुर्य और अभिनय कला पर निर्भर है.

आज हिंदी में नाटक लेखन अत्यंत सीमित है, पर इस क्षेत्र में व्यापक संभावना है.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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