श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है । आज प्रस्तुत है एक व्यंग्य “कोहरे की करामत“। ) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 79

☆ व्यंग्य – कोहरे की करामत☆

मत कहो आकाश में कोहरा घना है…. क्यों न कहें भाई। कोहरे ने दिक्कत दे कर रखी है। ऐसा कोहरा तो कभी नहीं देखा।

गांव की सर्द कोहरे वाली सुबह में बाबू फूंक फूंक कर चाय पी रहा था और उधर गांव भर में हल्ला मच गया कि कोहरे के चक्कर में गंगू की बहू बदल गई। पांच-छै दिन पहले शादी के बाद बिदा हुई थी।शादी के नेंग- ढेंग निपटने के बाद बाबू को थोड़ा चैन आया था। कड़ाके की ठंड में अभी चार रात बीती थी, और पांचवें दिन सुबह सुबह शर्माते हुए गंगू ने ये बात बतायी कि बहू गैर जात की है, बाबू सुनके दंग रह गया ….. बाबू को याद आया कोहरे के चक्कर में सब गाड़ियां बीस – बाईस घंटे लेट चल रहीं थीं और कई तो रद्द हो गई थीं। स्टेशन पर धकापेल भीड़ और आठ – दस बरातों के बराती थे उस दिन…….

भड़भड़ा के गाड़ी आ गई थी तो जनरल बोगी में रेलमपेल भीड़ के रेले में घूंघट काढ़े तीन चार बहूएं भीड़ में फंस गई और गाड़ी चल दी…दौड़ कर गंगू बहू को पकड़ के शौचालय के पास बैठा दिया और खुद शर्माते हुए बाबू के पास बैठ गया । गांव की बारात और गांव की बहू। चार पांच स्टेशन के बाद गंगू की बारात उतर गई। क्या करे कोई यात्रियों और बारातियों की बेहिसाब भीड़ थी उस दिन…………

बाबू के काटो तो खून नहीं अपने आप को समझाया । खैर, अब क्या किया जा सकता है भगवान तो जोड़ी बनाकर भेजता है। अग्नि को साक्षी मानकर फैरे हुए थे 14 वचन हुए थे , हाय रे निर्लज्ज कोहरा तुमने ये क्या कर दिया….। अब क्या हो सकता है चार रात भी गुजर गईं…. हार कर बाबू घूंघट और कोहरे की कलाबाजी को कोसता रहा। गांव वालों ने कहा बेचारा गंगू भोला भाला है शादी के पहले गंगू को लड़की दिखाई नहीं गई, नाऊ और पंडित ने देखी रही अच्छा घर देख के जल्दबाजी में शादी हो गई गंगू की गलती नहीं है गंगू की हंसी नहीं उड़ाई जानी चाहिए। गंगू निर्दोष है।

थोड़ा सा कुहरा छटा तो सबने सलाह दी कि शहर के थाने में सारी बातें बता देनी उचित रहेगी…. सो बाबू गंगू को लेकर शहर तरफ चल दिए। थाने पहुंच कर सब हालचाल बताए तो पुलिस वाले ने गंगू को बहू चोरी के जुर्म में बंद कर दिया। बाबू ने ईमानदारी से बहुत सफाई दी कि कोहरे के कारण और सब ट्रेनों के लेट होने से ऐसा धोखा अनजाने में हुआ,  उस समय कोहरा और ठंड इतनी अधिक थी कि हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था। पुलिस वाला एक न माना कई धाराएं लगा दीं। बाबू बड़बड़ाया ईमानदारी का जमाना नहीं रह गया जे कोहरे ने अच्छी दिक्कत दे दी और नये लफड़ेबाजी में फंस गए, ऊपर से कई लाख के सोना चांदी पहने असली बहू भी न जाने कहाँ चली गई।

कोहरे के कुहासे में एक सिपाही बाबू को एक किनारे ले जाकर जेब के सब पैसे छुड़ा लिये। बाबू को फिर से पूछताछ के लिए इस बार थानेदार ने अपने चेम्बर में बुलाया।

इस तरफ अंगीठी में आग तापते कई सिपाही बतखाव लगाए थे कोहरा और ठंड के साथ सरकार को गालियां बक रहे थे। कोहरे की मार से सैकड़ों ट्रेनों के लेट होने की चर्चा चल रही थी रेल वाले सुपर फास्ट का पैसा लेकर गाड़ी पैदल जैसी चला रहे हैं हजारों बेरोजगार लड़के-लड़कियां इन्टरव्यू देने से चूक रहे थे, शादी विवाह के मुहूर्त निकल रहे थे, कोहरे से हजारों एक्सीडेंट से बहुत मर रहे थे और थाने में ज्यादा केस आने से काम बढ़ रहा था…. बाबू चुपचाप खड़ा सुन रहा था और गंगू अंगीठी की आग देखकर सुहागरात और रजाई की याद कर रहा था। बाबू से नहीं रहा गया तो दहाड़ मार के रोने लगा…… एक सिपाही ने उठकर बाबू को दो डण्डे लगाए और चिल्ला कर बोला – कोहरे की मार से सूरज तक नहीं बच पा रहा है और तुम कोहरे का बहाना करके अपराध से बचना चाहते हो, अपराधी और निर्दोष का अभी सवाल नहीं है फंसता वही है जो मौके पर हाथ आ जाए और ठंड में बड़े साहब का खुश होना जरूरी है हमें तुम्हारी परेशानी से मतलब नहीं है हमें तो साहब की खुशी से मतलब है। बाबू कुकर के चुपचाप बैठ गया।

शाम हो चुकी थी कोहरा और गहरा गया था, थानेदार मूंछों में ताव देकर खुश हो रहा था।  थानेदार ने सिपाही को आदेश दिया – भले रात को कितना कुहरा फैल जाए पर बहू को बयान देने के लिए बंगले में उपस्थित कराया जाय………..

कोहरा सिर्फ कोहरा नहीं होता, कोहरा जब किल्लत बन जाता है तो बहुत कुछ हो जाता है। बाबू कोहरे को लगातार कोसे जा रहा है और बड़बड़ाते हुए कह रहा है ये साला कोहरा तो हमारे लिए थानेदार बन गया। और थानेदार कोहरे और ठंड में रजाई के सपने देख रहा था बहू को बंगले में कोहरा और ठंड के साथ बुलवाने का बहाना कर रहा है। बयान देने के बहाने बहू को थानेदार के बंगले पहुंचाया गया। बाबू चुपचाप देखता रहा, गंगू मार खाने के डर से कुछ नहीं बोला …. बहुत देर बाद एक सिपाही से बाबू बोला – गरीबों का भगवान भी साथ नहीं देता, ऊपर वाला दुखियों की नहीं सुनता रे………..

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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Shyam Khaparde

जानदार व्यंग भाई, बधाई