श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं।आज प्रस्तुत है श्री लक्ष्मण यादव ‘लक्ष्मण’ जी  की पुस्तक  गजल की संरचना और नेपाल की हिंदी गज़लें की समीक्षा।)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ ‘गजल की संरचना और नेपाल की हिंदी गज़लें’ – श्री लक्ष्मण यादव ‘लक्ष्मण’ ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’’ ☆

पुस्तक- गजल की संरचना और नेपाल की हिंदी गज़लें

रचनाकार- लक्ष्मण यादव ‘लक्ष्मण’

प्रकाशक- सुमन पुस्तक भंडार, सुखीपुर-5, लड़कन्हाँ, सिरहा नेपाल

पृष्ठ संख्या-152

मूल्य-₹250

समीक्षक ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

☆ समीक्षा – गजल संरचना की बेहतरीन पुस्तक ☆

गजल का अपना मिजाज होता है। इसी मिजाज के चलते इसके नियम दृढ़ होते हैं। जिसके परिपालन से गजल में वजन बढ़ जाता है। तभी जाकर बेहतरीन गजल का प्रत्येक शेर अपने आप में संपूर्ण होता है। इसे सुनने के बाद श्रोता आह और वाह कर उठते हैं।

इसी वजह से गजल लिखना, आरंभ में बहुत कठिन कार्य होता है। जब आप इसकी रग-रग से वाकिफ हो जाते हैं तब इससे सरल काव्य रचना कोई नहीं होती है। यही कारण है कि जो एक बार ग़ज़ल लिखना शुरु कर देता है तब वह दूसरी काव्य विधा की ओर नहीं जाता है।

यही वजह है कि प्रत्येक काव्य रचयिता अपने जीवन में एक ना एक बार गजल लिखने की कोशिश करता है। यदि वह इसमें कामयाब हो जाता है तो ग़ज़ल का होकर रह जाता है। यदि इस दौरान अन्य काव्य-रचना लिखता है तो उसमें भी वजन बढ़ जाता है।

इसी कारण से हरेक देश में गजल और उसकी संरचना पर अनेक पुस्तकें लिखी गई है। इसी तारतम्य में हमारे समक्ष नेपाल की एक पुस्तक- गजल की संरचना और नेपाल की हिंदी गज़लें, समीक्षार्थ रूप से रखी हुई है। इस पुस्तक को नेपाल की ग़ज़लकार लक्ष्मण यादव ‘लक्ष्मण’ ने लिखा है।

पुस्तक में नेपाल की हर छोटे-बड़े रचनाकार, हिंदी के समर्थक, कवि, कहानीकार आदि ने अपने पत्रों से इस पुस्तक को आशीर्वाद प्रदान किया है। जो इसके आरंभिक पृष्ठों पर प्रकाशित हैं। यह पुस्तक सात अध्याय और उसके पांच से अधिक उपाध्याय में विभक्त है।

नेपाल में हिंदी की पृष्ठभूमि कैसी है? वहां पर गजल का विकास क्रम किस प्रकार का हुआ है? इस प्रथम अध्याय में गजल, अर्थ, परिभाषा, अरबी, फारसी, उर्दू, हिंदी गजलों के बारे में जानकारी दी गई है।

गजल की बात हो और उसके प्रकार का उल्लेख न किया जाए, यह नहीं हो सकता है। दूसरा अध्याय इसी पर केंद्रित है। जहां पर भाव, तुकान्त, राग-विराग आदि अनेक आधारों पर ग़ज़ल के अंतर को बारीकी से समझाया गया है।

गजल की संरचना का उल्लेख किए बिना ग़ज़ल की पुस्तक अधूरी होती है। जब संरचना की बात हो तो उसकी विशेषता, आंतरिक और बाहरी संरचना का उल्लेख होना बहुत जरूरी होता है। इसे के द्वारा गजल के अंग- मतला, रदीफ काफिया, मिशरा, तखुल्लुम, शेर, मकता और गजल की जमीन को समझा जा सकता है।

गजल की अपनी भाषा है। यह भाषा गजल की संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसमें किन शब्दों का कब और कहां उपयोग किया जाता है, यह भी महत्वपूर्ण होता है। इसका भी बारीकी से उल्लेख किया गया है।

गजल का संविधान अलग होता है। इसमें हिंदी काव्य की तरह मात्रा की गणना करने का अपना विधान है। कब और कहां मात्रा को गिराया जाता है? वह किस बहर पर रची जाएगी और उसके बहर के प्रकार क्या है? यह एक ग़ज़लकार ही बता सकता है।

इन्हीं प्रवृत्तियों का प्रस्तुतीकरण इस पुस्तक में किया गया है। साथ ही नेपाल के प्रसिद्ध गजलकारों और उनकी गज़लों को भी इस पुस्तक में शामिल किया गया है। चूंकि इस पुस्तक का लेखक नेपाल का निवासी है इस कारण इस पुस्तक में नेपाल के कुछ विशिष्ट शब्दों का समावेश हो गया है। इसके कारण वे पढ़ते समय हमारे दिमाग में खटकने लगते हैं। क्योंकि वह हमारे लिए नए होते हैं। इसके बावजूद गजल की संरचना समझने व सीखने के लिए यह बेहतरीन पुस्तक है। इसमें दो राय नहीं है।

इस बेहतरीन ग़ज़ल संरचना की पुस्तक लिखने के लिए रचनाकार लक्ष्मण यादव बधाई के पात्र हैं। उन्हें हमारी ओर से हार्दिक साधुवाद।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

03-04-2023

मित्तल मोबाइल के पास, रतनगढ़,  जिला- नीमच (मध्य प्रदेश), पिनकोड-458226 

मोबाइल नंबर 7024047675, 8827985775

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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