हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 130 ☆ स्नेह की ताकत ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “स्नेह की ताकत। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 130 ☆

☆ स्नेह की ताकत ☆ 

वैसे तो हर दिन अपने आप में नया होता है किन्तु एक विशेष दिन का निर्धारण करना ही चाहिए, जो उसकी पहचान बनें। अभी हम लोग कैलेंडर नववर्ष को मना रहे हैं। इस समय अपने संकल्प को फलीभूत करने हेतु बहुत से वायदे करते हैं। जहाँ कुछ लोग समय के साथ चलकर इसे पूर्ण करते हैं तो वहीं अधिकांश लोग इसे केवल डायरी तक ही रख पाते हैं। खैर जितने कदम चलें, चलिए अवश्य क्योंकि आपकी यात्रा व्यर्थ नहीं जाएगी। उचित समय पर परिणाम मिलेगा। इस दौरान लोगों का स्नेह आपको शक्ति व संबल प्रदान करेगा।

प्रकृति में उसी व्यक्ति या वस्तु का अस्तित्व बना रहेगा जो समाज के लिए उपयोगी हो, समय के साथ अनुकूलन व परिवर्तन की कला में सुघड़ता हो। अक्सर लोग शिकायत करते हैं कि मुझे जो मिलना चाहिए वो नहीं मिला या मुझे लोग पसंद नहीं करते ।एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचने के दौरान आपको विभिन्न जलवायु, खानपान, वेशभूषा के लोगों का सानिध्य रहेगा। सबको समझने के लिए जुड़ाव होना बहुत जरूरी है।

यदि ऐसी परिस्थितियों का सामना आपको भी करना पड़ रहा है तो अभी  भी समय है अपना मूल्यांकन करें, ऐसे कार्यों को सीखें जो समाजोपयोगी हों, निःस्वार्थ भाव से किये गए कार्यों से अवश्य ही एक न एक दिन आप लोगों की दुआओं व दिल में अपनी जगह बना पायेंगे।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 186 ☆ आलेख – नए साल की चुनौतियां और हमारी जिम्मेदारी ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय   आलेख  – बदलते कहां हैं अब कैलेंडर?

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 186 ☆  

? आलेख – नए साल की चुनौतियां और हमारी जिम्मेदारी ?

नया साल प्रारंभ हो चुका है. आज जन मानस के जीवन  में मोबाईल इस कदर समा गया है कि अब साल बदलने पर कागज के कैलेंडर बदलते कहां हैं ?अब साल, दिन, महीने, तारीखें, समय सब कुछ टच स्क्रीन में कैद हाथो में सुलभ है. वैसे भी अंतर ही क्या होता है, बीतते साल की आखिरी तारीख और नए साल के पहले दिन में, आम लोगों की जिंदगी तो वैसी ही  बनी रहती है.

हां दुनियां भर में नए साल के स्वागत में जश्न, रोशनी, आतिशबाजी जरूर होती है. लोग नए संकल्प लेते तो हैं, पर निभा कहां पाते हैं?  कारपोरेट जगत में गिफ्ट का आदान प्रदान होता है, डायरी ली दी जाती है, पर सच यह है की अब भला डायरी लिखता भला कौन है ? सब कुछ तो मोबाइल के नोटपैड में सिमट गया है.देश का संविधान भी सुलभ है, गूगल से फरमाइश तो करें. समझना है की संविधान में केवल अधिकार ही नहीं कर्तव्य भी तो दर्ज हैं.  लोकतंत्र के नाम पर आज स्वतंत्रता को स्वच्छंद स्वरूप में बदल दिया गया है.

इधर मंच से स्त्री सम्मान की बातें होती हैं उधर भीड़ में कुत्सित लोलुप  दृष्टि मौका मिलते ही चीर हरण से बाज नहीं आती. स्त्री समानता और फैशन के नाम पर स्त्रियां स्वयं फिल्मी संस्कृति अपनाकर संस्कारों का उपहास करने में पीछे नहीं मिलती. 

देश का जन गण मन तो वह है, जहां फारूख रामायणी अपनी शेरो शायरी के साथ राम कथा कहते हैं. जहां मुरारी बापू के साथ ओस्मान मीर, गणेश और शिव वंदना गाते हैं. पर धर्म के नाम पर वोट के ध्रुवीकरण की राजनीति ने तिरंगे के नीचे भी जातिगत आंकड़े की भीड़ जमा कर रखी है.

इस समय में जब हम सब मोबाइल हो ही गए हैं, तो आओ नए साल के अवसर पर  टच करें हौले से अपने मन, अपने बिखर रहे संबंध, और अपडेट करें एक हंसती सेल्फी अपने सोशल मीडिया स्टेटस पर नए साल में, मन में स्व के साथ समाज वाले भाव भरे सूर्योदय के साथ.

यह शाश्वत सत्य है कि भीड़ का चेहरा नहीं होता पर चेहरे ही लोकतंत्र की शक्तिशाली भीड़ बनते हैं. सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर सेल्फी के चेहरों वाली  संयमित एक दिशा में चलने वाली भीड़ बहुत ताकतवर होती है. इस ताकतवर भीड़ को नियंत्रित करना और इसका रचनात्मक हिस्सा बनना आज हम सब की जिम्मेदारी है.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

न्यूजर्सी , यू एस ए

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #130 – लघुकथा – “गन्दगी” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा  “गंदगी।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 130 ☆

☆ लघुकथा – “गंदगी” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

” गंदगी तेरे घर के सामने हैं  इसलिए तू उठाएगी।”

” नहीं! मैं क्यों उठाऊं? आज घर के सामने की सड़क पर झाड़ू लगाने का नंबर तेरा है, इसलिए तू उठाएगी।”

” मैं क्यों उठाऊं! झाड़ू लगाने का नंबर मेरा है। गंदगी उठाने का नहीं। वह तेरे घर के नजदीक है इसलिए तू उठाएगी।”

अभी दोनों आपस में तू तू-मैं मैं करके लड़ रही थी। तभी एक लड़के ने नजदीक आकर कहा,” मम्मी! वह देखो दाल-बाटी बनाने के लिए उपले बेचने वाला लड़का गंदगी लेकर जा रहा है। क्या उसी गंदगी से दाल-बाटी बनती है?”

यह सुनते ही दोनों की निगाहें साफ सड़क से होते हुए गंदगी ले जा रहे लड़के की ओर चली गई। मगर, सवाल करने वाले लड़के को कोई जवाब नहीं मिला।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

28-11-21 

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 141 ☆ बाल गीत – धरा, गगन  है चिड़ियाघर… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 141 ☆

☆ बाल गीत – धरा, गगन  है चिड़ियाघर… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

धरा , गगन  है चिड़ियाघर।

अद्भुत जीवन नई डगर।।

 

बुलबुल करतीं रोज सवेरा।

पेड़ों पर उनका है डेरा।।

 

ठुमक – ठुमक कर गीत सुनातीं।

योग करें , मुस्काती जातीं।।

 

बत्तख़ तैर रही हैं जल में।

आशा देख रही हैं कल में।।

 

तैर – तैर कर मन हैं मोहतीं।

खुशियों की शबनम हैं बोतीं।।

 

बादल जी के ठाठ निराले।

चित्र बनाते अद्भुत माले।।

 

कभी शेर से बन जाते हैं।

पानी बर्षा उड़ जाते हैं।।

 

पल में भालू , पल में आलू।

देख – देख कर खुश है कालू।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #142 ☆ संत जनाबाई… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 142 ☆ संत जनाबाई… ☆ श्री सुजित कदम ☆

गोदावरी तीरावर

गंगाखेड जन्मगाव

दमा करूंडाची लेक

जनाबाई तिचे नाव. . . . ! १

 

दामाशेट शिंप्याकडे

जीवनास घाली टाके

झाली नामयाची  दासी

सार्थ अभिमान दाटे. . ! २

 

ओवी आणि अभंगात

जनाबाई जाणवते

घरा घरातली बाई

पहा दळण दळते…! ३

 

वात्सल्याची जणू ओवी

त्यागी, समर्पण वृत्ती

पूर्ण निष्काम होऊनी

विठू रूजविला चित्ती. . . . ! ४

 

तत्कालीन संतश्रेष्ठ

अभंगात आलंकृत

संत जीवन आढावा

काव्य पदी सालंकृत….! ५

 

प्रासादिक संकीर्तन

कधी देवाशी भांडण

संत जनाबाई करी

सहा रिपूंचे कांडण…! ६

 

संत सकल गाथेत

ओवी अभंगाचे देणे

संत जनाबाई जणू

काव्य शारदेचे लेणे…! ७

 

जनाबाई अभंगांने

मुक्तेश्वरा मिळे स्फूर्ती

भाव भावना निर्मळ

साकारती भावमूर्ती…! ८

 

बोली भाषा ग्रामस्थांची

जनाबाई वेचतसे

विठू तुझ्या दालनात

सुख दुःख सांगतसे….! ९

 

साडे तीनशे अभंग

कृष्णजन्म थाळीपाक

प्रल्हादाच्या चरीत्राने

दिली  ईश्वराला हाक. . . . ! १०

 

हरीश्चंद्र आख्यानाचा

आहे  आगळाच ठसा

बालक्रीडा अभंगात

जना पसरते पसा. . . . ! ११

 

द्रौपदीचे स्वयंवर

अभंगाने दिली कीर्ती

मुक्तेश्वर नाथनातू

तया लाभली रे स्फूर्ती. . . . ! १२

 

नामदेव गाथेमध्ये

जनाबाई एकरूप

अभंगात  भक्तीभाव

विठ्ठलाचे निजरूप.. . ! १३

 

परमार्थ वेचियेला

संत विचारांचा ठेवा

नामदेवा केले गुरू 

केली पांडुरंग सेवा …! १४

 

आषाढाची त्रयोदशी

पंढरीत महाद्वारी

समाधीस्त झाली जना

करे अंतरात वारी…! १५

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #163 – है सब कुछ अज्ञात… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज नव वर्ष पर प्रस्तुत हैं आपकी एक अतिसुन्दर, भावप्रवण एवं विचारणीय कविता  “है सब कुछ अज्ञात……”। )

☆  तन्मय साहित्य  #163 ☆

☆ है सब कुछ अज्ञात…

फिर से नया वर्ष इक आया

है सब कुछ अज्ञात

न जाने क्या सँग में

सौगातें  लाया।

 

विपदाओं की करुण कथाएँ

बार-बार स्मृतियों में आये

बिछुड़ गए जो संगी-साथी

कैसे उनको हम बिसराएँ

है अनुनय कि विगत समय की

पड़े न तुम पर काली छाया

 फिर से नया वर्ष……..।

 

स्वस्ति भाव उपकारी मन हो

बढ़े परस्पर प्रेम सघन हो

हर दिल में उजास तुम भरना

सुखी सृष्टि, हर्षित जन-जन हो

नहीं विषैली बहे हवाएँ

रहें निरोगी सब की काया

फिर से नया वर्ष ……..।

 

सद्भावों की सरिता अविरल

बहे नेह धाराएँ निर्मल

खेत और खलिहान धान्यमय

बनी रहे सुखदाई हलचल

स्वागत में नव वर्ष तुम्हारे

 

आशाओं का दीप जलाया

फिर से नया वर्ष ……..।

 

विश्वशांति साकार स्वप्न हों

नव निर्माणों के प्रयत्न हों

देवभूमि उज्ज्वल भारत में

नये-नये अनमोल रत्न हों

अभिनंदन आगत का है

आभार विगत से जो भी पाया

फिर से नया वर्ष ……..।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 51 ☆ गीत – नव वर्ष मुबारक हो… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण गीत “नव वर्ष मुबारक हो…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 51 ✒️

?  गीत – नव वर्ष मुबारक हो…  ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

पाहुने नव वर्ष

तुम आते हो प्रति वर्ष ।

बारह माह रह कर

चले जाते हो सहर्ष।।

 

फ़िर मानव वर्ष भर का

करता है लेखा-जोखा ।

कितना पाया सत्य

और कितना पाया धोखा।।

 

पिछले वर्ष ने हमें

झकझोर कर रख दिया ।

एक के बाद एक छति को

क्रियान्वित कर दिया।।

 

जाओ अतिथि अब

बहुत हो गया अहित ।

अतीत के क्रूर दृश्यों से

हृदय अब तक है व्यथित।।

 

स्थान करो रिक्त ताकि

नवागंतुक के स्वागत का ।

पांव – पखार टीका वंदन

सब करें तथागत का।।

 

हे बटोही आगामी वर्ष के

तुम कर्मयोगी बन कर आओ ।

देश की मां बहनों की

अस्मत लुटने से बचाओ ।।

 

छोटी दूधमुहीं

बच्चियां ना हो तार तार ।

निरीह माताएं

ना रोयें अब ज़ार ज़ार ।।

 

हे सृजन करता हो सके तो

यमदूत बनके आओ ।

मदिरा अपराध भ्रष्टाचार

बलात्कार को लील जाओ।।

 

आतंकवाद भाषावाद धर्मवाद

सांप्रदायिकता का करो अंत ।

ऐसा सुदर्शन चलाओ

मिटें सारे पाखंडी संत ।।

 

शिक्षा , संस्कार , मूल्य ,

ईमानदारी की हो स्थापना ।

हर युवा करें माता-पिता

एवं बुज़ुर्गों की उपासना ।।

 

जनता मिटा दे राजनीति

के झूठे व गंदे खेल ।

हिंदू-मुस्लिम सभी धर्मों की

संस्कृतियों का हो जाए मेल।।

 

भारत मां का रक्त से

करो श्रंगार टीका वंदन ।

कन्याओं के जन्म पर

हो उनका शत-शत अभिनंदन ।।

 

हे प्रिय नवागंतुक

तब लगेगा नववर्ष आया।

तुम्हारे स्वागत में हमने

पलक पांवड़ों को है बिछाया ।।

 

सलमा सभी को मुबारक

आया हुआ यह नूतन वर्ष ।

अंधेरों से निकलो दोस्तो

प्रकाश में नहाकर मनाओ हर्ष ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 63 – राजनीति… भाग – 2 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय  आलेख  “राजनीति…“।)   

☆ आलेख # 63 – राजनीति  – 2 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

राजनीति के दूसरे दौर में जो कुछ हद तक प्रारंभिक लक्ष्यप्राप्ति से प्रभावित था, इसे बदलाव का बहुत बड़ा कारक समय बना. जब सफलता की पुष्पमालाओं से सज्जित यात्रा, कर्मठता और निरंतरता से दूर जाने लगे तो ऐसी राजनीति का पहला पड़ाव हमेशा उपेक्षित नैतिकता ही होती है.

नेतृत्व जब सफलता के जश्न के शोर में अंतरात्मा की आवाज सुनने में चूकने लगे तो ये निमंत्रण होता है सामयिक बदलाव का जिसमें सभी प्रभावित होते हैं. इस बदलाव को जो पहचान लेते हैं वो सतर्क होकर बढ़ जाते हैं पर अधिकांश प्रारंभिक सफलता के मायाजाल में उलझ जाते हैं जैसे कि बालि वध के बाद सुग्रीव सब भूलकर राजरंग में मगन हो गये थे और अपने मित्र मर्यादा पुरुषोत्तम राम को भी विस्मृत कर गये थे. भ्राता लक्ष्मण और हनुमान हर युग में, हर दौर में नहीं मिलते जो पथभ्रष्ट राजा को सही मार्ग दिखा सकें. हो सकता है कि नेतृत्व के नैसर्गिक गुण के पैकेज में आत्मविश्लेषण नहीं आता हो या फिर प्रारंभिक सफलता के बाद आत्मविश्लेषण क्षमता में कमी आती हो, पर कारण जो भी हो यह तो तय है कि बदलाव तो आते ही हैं और नजरअंदाज भी होते हैं. सफल होने का एहसास नेतृत्व और सहयोगियों दोनों के नजरिए में बदलाव लाता है, अब कुछ देने और कुछ करने के अलावा कुछ पाने की नैसर्गिक भावना भी प्रविष्ट होती है.

असीमित अनंत में मानवक्षमतायें कहीं न कहीं सीमित होती ही हैं. अगर व्यक्ति के माइंड सेट में कुछ आ रहा है तो उसके लिए जगह खाली करने वाले तत्व या जीवनमूल्य भी होते हैं जो “त्याग, और निर्मोह “ही होते हैं. बहुजन हिताय के साथ साथ स्वयं और फिर स्वजन हिताय की दिशा में सोच बदलती है. शायद इसीलिये ही “Power corrupt leader and absolute power corrupt absolutely” जैसी लोकोक्ति चलती है. अमृत पाने की लालसा देवों में भी थी और असुरों में भी.

तो राजनीति इस दूसरे दौर में कर्मठता की जगह लालसा प्रबल होती जाती है. “हमने हर दौर में नेताओं को बदलते देखा, जो दिया करते थे बहुत कुछ सबको, उनको अक्सर ही कुछ लिये देखा”. राजनीति के इस दूसरे दौर में, सुधार और बदलाव की बयार के नाम पर उभरा नेतृत्व यथास्थिति को बरकरार करने में लगा रहता है. ये स्थिति और ये मनोस्थिति शायद अपरोक्ष रूप से नेतृत्व की अगली पीढ़ी के अंकुरित होने की संभावना भी बलवती करती है. जनमानस की असंतुष्टि, नेतृत्व की अगली पीढ़ी के लिये खाद का काम करती है. पहले दौर की निष्ठा, त्याग और सेवाभावना के बाद दूसरे दौर में लालसा और कुछ पाने कमाने की चाहत तो होती है पर नैतिकता बरकरार रहती है और नेतृत्व की आदत में शालीनता और सहजभाव बना रहता है. राजनीति के अगले दौर में आगाज होता है षडयंत्रों का.

राजनीति के इस तीसरे दौर की समीक्षा अगले चरण में

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 163 ☆ मनी दाटे हूरहूर ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 163 ?

☆ मनी दाटे हूरहूर ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

 

पक्षी जाता दूरदूर

मनी दाटे हूरहूर

 

चार दिसांसाठी येती

आणि उडुनिया जाती

 

लेक सून नातवंड

स्रोत प्रीतीचे अखंड

 

दूरदेशी राहण्यास

परी नित्य आसपास

 

   असो सुखात कुठेही

मोकळ्या या दिशा दाही

 

विस्तारल्या कक्षा आणि

   घरोघर ही कहाणी

 

मायबाप मायदेशी

पिले उडती आकाशी

 

असे क्षेम  दोन्ही कडे

आनंदच चोहिकडे

 

परी वाटे हूरहूर

परतून जाता दूर

© प्रभा सोनवणे

(३ जानेवारी २०२२)

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 33 – भाग 2 – ट्युलिप्सचे ताटवे – श्रीनगरचे ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 33 – भाग 2 ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆ 

✈️ट्युलिप्सचे ताटवे – श्रीनगरचे ✈️

वेरीनाग इथल्या निर्झरातून झेलमचा उगम होतो. ‘श्री’ च्या आकारात वाहणाऱ्या झेलमच्या दोन्ही तीरांवर श्रीनगर वसले आहे. श्रीनगरमध्ये फिरताना सफरचंद आणि अक्रोड यांचे पर्णहीन वृक्ष दिसत होते.  बदाम, जरदाळू यांची एकही पान नसलेली सुंदर मऊ पांढऱ्या मोतीया आणि गुलाबी रंगाच्या फुलांनी डवरलेली झाडे दिसत होती. लांबवर पसरलेली मोहरीची शेतं हळदी रंगाच्या फुलांनी डोलत होती तर अजून फुलं न आलेली शेतं काळपट हिरव्या रंगाची होती. थंडी खूपच होती.पायघोळ झग्याआड पोटाशी शेगडी घेऊन जाणारे स्त्री- पुरुष दिसत होते. सर्वत्र तणावपूर्ण शांतता जाणवत होती. रस्तोरस्ती लष्कराची वाहने आणि बंदूकधारी जवान मनातल्या अस्वस्थतेत भर घालीत होती. दुकानांमध्ये कलिंगडे, संत्री, केळी, कमलकाकडी, इतर भाज्या दिसत होत्या. कहावा किंवा कावा या काश्मिरी स्पेशल चहाची दुकाने जागोजागी होती. अस्सल काश्मिरी केशराच्या चार काड्या आणि दालचिनीच्या तुकडा असं उकळत ठेवायचं. त्यात साखर घालायची. एका कपाला एक सोललेला बदाम जाडसर कुटून घालायचा आणि त्यावर केशर दालचिनीचे उकळते मिश्रण ओतायचं. झाला कहावा तयार!

गाईडने दिलेल्या या माहितीमुळे ‘कावा’ पिण्याची इच्छा झाली पण बस मध्येच थांबविणे अशक्य होते.

जहांगीरच्या काळात साधारण चारशे वर्षांपूर्वी निशात बाग, शालीमार बाग, व चष्मेशाही अशा सुंदर बागा बांधण्यात आल्या. तळहाताएवढ्या सुगंधी गुलाबाच्या फुलांचा हंगाम अजून सुरू झाला नव्हता, पण वृक्षांसारखे झाड बुंधे असलेली गुलाबाची झाड लालसर पानांनी बहरून फुलण्याचा तयारीत होती. उंचावरून झऱ्यासारखे वाहणारे पाणी पायऱ्या- पायऱ्यांवरून घरंगळत होते. मध्येच कमळाच्या आकारातली दगडी कारंजी होती. सगळीकडे दुरुस्तीची कामे मोठ्या प्रमाणावर चालू होती.

चष्मेशाहीमध्ये मागच्या पीर- पांजाल पर्वतश्रेणीतून आलेले झऱ्याचे शुद्ध पाणी आरोग्यदायी असल्याचे सांगण्यात आले. डेरेदार काळपट- हिरव्या वृक्षांना चोचीच्या आकाराची पांढरी फुले लटकली होती. ती नासपतीची झाडे होती.  हिरवा पर्णसंभार असलेली मॅग्नेलियाची (एक प्रकारचा मोठा सुगंधी चाफा ) झाडे फुलण्याच्या तयारीत होती. निशात बागेजवळ ‘हजरत बाल श्राइन’ आहे. हजरत मोहमद साहेबांचा ‘पवित्र बाल’ इथे ठेवण्यात आला आहे. मशीद भव्य आणि इस्लामिक स्थापत्यकलेचा नमुना आहे.मशिदीच्या आत स्त्रियांना प्रवेश नव्हता. मागील बाजूने थोडा पडदा किलकिला करून स्टेनगनधारी पहारेकर्‍याने ‘पवित्र बाल’ ठेवलेल्या ठिकाणाचे ‘दूरदर्शन’ घडविले. स्वच्छ आवारात चिनारची झाडं होती. दल सरोवराच्या पश्चिमेकडील काठावर असलेल्या या मशिदीची पुनर्बांधणी करण्यात आली आहे.

श्रीनगरपासून तीन किलोमीटरवर पांडेथ्रान गाव आहे आणि साधारण १४ किलोमीटरवर परिहासपूर नावाचं गाव आहे. या दोन्ही ठिकाणी राजा ललितादित्याच्या कारकिर्दीत म्हणजे आठव्या शतकात उभारलेल्या बौद्ध स्तूपांचे अवशेष आहेत. अनंतनागपासून चार-पाच किलोमीटरवर मार्तंड देवालयांचा समूह आहे.  डावीकडचे कोणे एकेकाळी भव्य दिव्य असलेल्या सूर्यमंदिराचे भग्नावशेष  संगिनींच्या पहाऱ्यात सांभाळले आहेत.

पहेलगामच्या रस्त्यावर खळाळत अवखळ वाहणारी लिडार नदी आपली सतत सोबत करते. नदीपात्रातील खडक, गोल गुळगुळी दगड यावरून तिचा प्रवाह दौडत असतो. गाईड सांगत होता की मे महिन्यात पर्वत शिखरांवरील बर्फ वितळले की नदी तुडुंब पाण्याने उसळत वेगाने जाते. त्यावेळी तिच्यावरील राफ्टिंगचा थरार अनुभवण्यासाठी अनेक देशी-विदेशी प्रवासी येतात. तसेच नदीपलीकडील पर्वतराजीत ट्रेकिंगसाठी अनेक प्रवासी येतात. त्याशिवाय घोडदौड, ट्राउट माशांची मासेमारी अशी आकर्षणे आहेत. हिमालयाच्या पार्श्वभूमीवर पोपटी हिरवळीवर वर्ल्डक्लास गोल्फ कोर्टस आहेत. त्यासाठीही हौशी खेळाडू येतात.

पहलगाम रस्त्यावर प्राचीन काळापासून केशराच्या शेतीसाठी प्रसिद्ध असलेलं पांपूर( पूर्वीचं नाव पद्मपूर ) लागतं. साधारण ऑक्टोबर-नोव्हेंबर महिन्यात जमिनीलगत उगवलेल्या जांभळ्या सहा पाकळ्यांच्या फुलांनी शेतेच्या शेते बहरतात. या फुलांमधील सहा केसरांपैकी केसरिया रंगाचे तीन केसर हे अस्सल केशर असतं. उरलेले तीन हळदी रंगाचे केसर वेगळ्या पद्धतीने वापरले जातात.

श्रीनगर भाग २ समाप्त

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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