मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्ना अमृतकर यांची कविता अभिव्यक्ती ☆ कोरडा डोह ☆ सुश्री स्वप्ना अमृतकर

सुश्री स्वप्ना अमृतकर

(सुप्रसिद्ध युवा कवियित्रि सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी का अपना काव्य संसार है । आपकी कई कवितायें विभिन्न मंचों पर पुरस्कृत हो चुकी हैं।  आप कविता की विभिन्न विधाओं में  दक्ष हैं और साथ ही हायकू शैली की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपने कविता के साप्ताहिक स्तम्भ के लिए हमारे आग्रह को स्वीकार किया, इसके लिए हम हृदय से आपके आभारी हैं। हम आपका  “साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्ना की कवितायें “ शीर्षक से प्रारम्भ कर रहे हैं। वर्षा ऋतु ने हमारे द्वार पर दस्तक दी है।  सुश्री स्वप्ना जी के ही शब्दों में  “पावसाळ्याची सुरुवात आहे.. आता सगळ्या कवींचे, लेखकांचे मन जागे होते लिखाणासाठी .. म्हणून ह्या वेळेसचे साहित्य “ ।  इस शृंखला में  प्रथम पाँच कवितायें वर्षा ऋतु पर आधारित हैं जो आप प्रत्येक शनिवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है सुश्री स्वप्ना जी की हायकू शैली में कविता “कोरडा डोह”।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्ना अमृतकर यांची कविता अभिव्यक्ती # -1 ☆ 

 

☆ हायकू शीर्षक : ” कोरडा डोह ” (७ रचना) ☆ 

 

उन्हाचा दाह

विराटच जंगले

डोळा भासले              १

 

सर्वत्र दिसे

साम्राज्य ओसाडाचे

हो निराशेचे                २

 

आपसुकच

भेगा पडे भुईला

घोर जीवाला               ३

 

कठिण किती

दुष्काळग्रस्त स्थिती

वाटते भीती                 ४

 

कोरडा डोह

यक्षप्रश्न केवढा

आपत्ती वेढा                 ५

 

अगणितच

पाण्याविना यातना

हो सोसवेना                 ६

 

कोरहा डोह

भुईवर अप्रुप

वाटतो मोह                  ७

 

© स्वप्ना अमृतकर (पुणे)

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सुजित साहित्य # 3 – शिकवण ☆ – श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं। श्री सुजित जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – सुजित साहित्य” के अंतर्गत  प्रत्येक गुरुवार को  आप पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता  शिकवण)

 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #3 ☆ 

 

☆ शिकवण ☆ 

काळ येतो, काळ जातो

नवी शिकवण देतो

संकटात झुंजताना

हात मदतीचा देतो. . . !

 

अनुभवी जगशाळा

अर्थ जीवनाला देते

माणसाला ओळखाया

माय बोली  शिकविते. . . . !

 

संसाराची सुखदुःख

बाप देऊनीया गेला

शिकवण  आयुष्याची

अनुभव झाला चेला ..

 

माझे माझे म्हणताना

राग लोभ  विसरावे

दोन हात जोडताना

जग  आपले करावे . . . !

 

© सुजित कदम, पुणे

मोबाइल 7276282626

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #3 – गझल गीत गाण्यासाठी ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है ।  साप्ताहिक स्तम्भ  अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है अप्रतिम मराठी गीत गझल गीत गाण्यासाठी जिसे प्रख्यात गायक एवं संगीतकार श्री  राजेश दातार जी ने स्वरबद्ध किया है। इसके साथ ही प्रस्तुत है स्थिर-चित्र आडियो /वीडियो  यूट्यूब लिंक । )

 

☆ अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 3 ☆

? गझल गीत गाण्यासाठी ?

 

 

(Please Click ⇑⇑⇑⇑  to hear song or click on YouTube Link  >> गझल गीत गाण्यासाठी

 

पाखरात कोकिळ गातो तसे गाऊ दे रे गजल गीत गाण्यासाठी सूर लावू दे रे

 

शब्दफुलांच्या या बागा नकोना पहारे तिच्या मोरपंखी ओळी आणती शहारे

अभिषेक कानावरती रोज होऊ दे रे

 

गोटीबंद आहे गजला परि जीव घेण्या एक एक शब्दांच्या या शेकडो कहाण्या दु:ख असे भळभळणारे मला पाहू दे रे

 

दु:ख सुखाच्या रे येथे किती येरझारा कधी शब्द घुसमटणारे कधी थंड वारा ब्रीद जीवनाचे सारे मला मांडू दे रे

 

शब्द कोण घेऊन आले पहाट पहाटे कोवळीच सुमने येथे नसे तिथे काटे

हाच वसा आनंदाचा मला घेऊ दे रे

 

रचना : अशोक श्रीपाद भांबुरे

गायक आणि संगीतकार : राजेश दातार

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ? रंजना जी यांचे साहित्य #-3 वृत्त  वियदगंगा ? – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना इस एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।   सुश्री रंजना  जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश  देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। अब आप उनकी अतिसुन्दर रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।  आज प्रस्तुत है  भावप्रवण गीत   – वृत्त  वियदगंगा )

 

? रंजना जी यांचे साहित्य #-3 ? 

 

☆ वृत्त  वियदगंगा   ☆

 

*लगागागा लगागागा लगागागा लगागागा*

 

मानवा

जरा परमार्थ जीवाचा ,

रुचेना  मानवा तुजला।

कसा बाजार मोहाचा,

कळेना मानवा तुजला।

 

कसा धुंदीत पैशाच्या ,

विसरला माय बापाला।

निरागस भाव का त्यांचा

दिसेना मानवा तुजला।

 

नको धावू  सुखामागे

जरी भुलवी दिखावा हा।

कसा रे बोध सत्याचा,

घडेना मानवा तुजाला।

 

जरी खडतर खरा आहे

कितीही मार्ग सौख्याचा।

इथे कष्टाविना काही

मिळेना मानवा तुजला।

 

असे सत्ता किती लोभस,

मनाला ओढ ती लावी ।

कसे हे पाश मोहाचे,

तुटेना मानवा तुजला।

 

पुरे कर खेळ स्वार्थाचा

जरा ये भूवरी थोडा ।

कुठे का बंध नात्यांचे

जुळेना मानवा तुजला।

 

अभ्यासक ✍

©  रंजना मधुकर लसणे✍

मार्गदर्शक सुश्री अर्चनाजी

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

 

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ पुष्प दुसरा #2 – ?? पर्यावरण नाते. ….!  ?? ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज संस्कृतिसाहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं  ।  अब आप प्रत्येक शुक्रवार को उनके मानवीय संवेदना के सकारात्मक साहित्य को पढ़ सकेंगे।  आज इस लेखमाला की शृंखला में पढ़िये “पुष्प दुसरा – पर्यावरण नाते  ….!” ।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – पुष्प दुसरा #-2 ☆

 

?? पर्यावरण नाते. ….!  ??

 

व्यक्ती  आणि निसर्गाचे, नाते कळी नी फुलांचे .

कधी होई पारिजात,  कधी पुष्प बकुळीचे . . . !

 

एका एका बिजापोटी, कुणी सर्वस्व वाहते.

कळी मरता मरता,  तिथे फूल जन्मा येते.

 

अन्न, वस्त्र, निवार्‍याचा , निसर्गाने दिला हात.

दान द्यावे, दान घ्यावे, रूजविले अंतरात. . . . !

 

जीवनाच्या वावरात,  सुखदुःख रेलचेल.

होई मौसमी वार्‍याने, उरामध्ये घालमेल. . . . !

 

रंग ढंग जीवनाचे, दुःख, दैन्य सहायचे.

मातीतून जन्मायाचे,मातीमध्ये मरायचे. . . . !

 

व्यक्ती आणि निसर्गाची, वाट चुकलेली वारी

जीवनाच्या फांदीसवे, घेती आकाश भरारी. . . . !

 

कधी वास्तवाचे जग, कधी नभ कल्पनेचे.

होई काळीज कागद, सूत जुळता दोघांचे. . . !

 

पाणी अडवा, जिरवा, झाडे लावा नी जगवा

समतोल सांभाळाया,नाते नाजूक फुलवा. . . . !

 

आसवांची झाली शाई, होता नात्यांची पेरण .

वसुंधरेच्या भाळाला,भावफुलांचे तोरण. . . !

 

कळी काय, फूल काय,एकमेकां जपायचे

पर्यावरणीय मेळ,सांधताना फुलायचे. . . !

 

✒  © विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकारनगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सुजित साहित्य #2 – प्रेम रेष …. ☆ – श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं। श्री सुजित जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – सुजित साहित्य” के अंतर्गत  प्रत्येक गुरुवार को  आप पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता   प्रेम रेष …. )

 

☆ सुजित साहित्य #2 ☆ 

 

☆ प्रेम रेष …. ☆ 

 

उधाणलेला सागर

मन येतं शहारून

तुझ्या प्रेमात ग सखे

कसं जातं मोहरून

 

खळाळत येती लाटा

फुटतात विरतात

शंख शिंपले किनारी

आठवण ठेवतात

 

वाट पाहून थकतो

निघतो मी परतीला

लाटा रेगांळत राही

आठवांच्या सोबतीला

 

पुसती पाऊल खूणा

दिसे फक्त ओली रेघ

कितीही पुसली तरी

उमटते प्रेम रेष..!!

 

© सुजित कदम, पुणे

मोबाइल 7276282626

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #2 – हिंदी आणि मराठीतली मिश्र रचना.. ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

 

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है ।  साप्ताहिक स्तम्भ  अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है  कविता में  – हिन्दी एवं मराठी  मिश्रित रचना  का  एक नया प्रयोग ।”हिन्दी आणि मराठीतली मिश्र रचना…”। )

 

☆ अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 2 ☆

 

☆ हिंदी आणि मराठीतली मिश्र रचना.. ☆ 

 

अभी बज गये रात के बारा

आल्या रिमझिम पाऊस धारा

 

चमकी बिजली खूब नजारा

मिठीचाच या तिला सहारा

 

समझ में आया उसे माजरा

अंगावरती तिच्या शहारा

 

कहां मिलेंगे फिर दोबारा

गाली होता भाव लाजरा

 

गगन के पिछे छुपा सवेरा

पदरा मागे जसा चेहरा

 

समझ न आया हमें दायरा

जागोजागी सक्त पहारा

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ? रंजना जी यांचे साहित्य #-2 गड किल्ले ? – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना इस एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।   सुश्री रंजना  जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश  देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। अब आप उनकी अतिसुन्दर रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।  आज प्रस्तुत है  ऐतिहासिक कविता  – गड किल्ले )

? रंजना जी यांचे साहित्य #-2 ? 

 

☆ गड किल्ले  ☆

 

गड कोट किल्ले सारे

शिवबांना जीवप्राण।

एक एक चिरा सांगे

माझ्या  मावळ्यांची आण।

 

घडे नवा इतिहास

साक्ष देई शिवनेरी।

येई जन्माला शिवबा

जणू पर्व हे सोनेरी।

 

ज्यांचे किल्ले त्यांचे राज्य

मंत्र आगळा स्मरून।

स्वराज्याचे बांधी तोरण

शाही थाट सांभाळून।

 

भासे वाघांची ती जाळी

असे मोऱ्यांची जावळी।

किल्ला रायरी शोभला

राजधानी ही आगळी।

 

कावा गनिमी साधला

किल्ले भक्कम बनून।

बसवी वचक गोऱ्यांना

किल्ले  सागरी बांधून।

 

प्राण पणाला लावले

प्रति शिवाजी बनून।

वार जीवाने झेलला

शिवा वाचावा म्हणून ।

 

चिरे  प्रतापगडाचे

सांगे प्रताप राजांचे ।

युक्तीवाद जिंकला रे

सैन्य हैराण लाखांचे।

 

करी रक्ताने पावन

खिंड  लढवय्या बाजी।

लाथाडतो शाही कौल

स्वामी निष्ठ वीर  बाजी।

 

सिंह गड नाव सार्थ

नरसिंह तानाजींचे।

लग्न रायबाचे सोडी

लग्न करी कोंढाण्याचे।

 

घोडदौड स्वराज्याची

गड शेकडो गाठीशी ।

माझ्या राजाच्या रक्षणा

उभा मावळा पाठीशी ।

 

असो त्रिवार नमन

माझ्या राजांच्या चरणी।

ज्याच्या पदस्पर्शाने ही

झाली पुनीत धरणी।

 

©  रंजना मधुकर लसणे✍

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ☆ व्रुत्त आनंदकंद ☆ – सुश्री विजया देव

सुश्री विजया देव

☆ व्रुत्त आनंदकंद ☆ – 

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार सुश्री विजया देव जी  की एक  भावप्रवण व्रुत्तबध्द  मराठी कविता।)

 

माझ्या घरी उन्हाने मुक्काम ठोकलेला

शोधून राहिलो मी

माझ्याच सावलीला

बेभान धावलो मी

वेडात वागलो मी

त्या आरशात जेव्हा

मी पाहिले स्वताला

 

ऊगाच मीळते कां

ती सांत्वना कुणाची

रक्तात पाय न्हाले

कुरवाळले दुखाला

नाकारले सदा मी

ते प्रेम दांभि कांचे

समजावले कितीदा

माझ्याच या मनाला

देहावरी भरोसा

कां ठेव लाच तेव्हा

आत्म्यास कांविसरलो

दुरावलो सुखाला

झोळीत आज माझ्या

ओतून चंद्रतारे

ये साजणी तु आता

घेवून दीपमाला

 

©  विजया देव, पुणे 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सुजित साहित्य #1 – राऊळ…. ☆ – श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं। श्री सुजित जी ने हमारे  इस स्तम्भ के आग्रह को स्वीकारा इसके लिए हम उनके आभारी हैं।  अब आप उनकी रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – सुजित साहित्य” के अंतर्गत  प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता  राऊळ….”)

 

☆ सुजित साहित्य #1 ☆ 

 

☆ राऊळ…. ☆ 

 

जाऊ नको खचूनीया

टाक पुढेच चाहूल

येते आहे मागावर

सुख शोधीत पाऊल. . . . !

 

सुख सोबती घेताना

नको जाऊ हुरळून

माय तुझी रे पाहते

यश तुझे दारातून. . . . !

 

फुलापरी वाढवले

काळजाच्या तुकड्याला

खाच खळगे पाहून

थोडा जप जीवनाला. . . . !

 

दोन घडीचे जीवन

जन्म मृत्यूचा प्रवास.

नको विसरू मायेचा

एका भाकरीचा घास. . . . !

 

खण जीवनाचा पाया

नको वाकडे पाऊल

यशोमंदिराचे तुझ्या

माय बोलके राऊळ.. . . !

 

© सुजित कदम, पुणे

मोबाइल 7276282626

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