हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 3 – सजल – कोई रहा नहीं हमदम है… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ ” मनोज साहित्य“ में आज प्रस्तुत है सजल “कोई रहा नहीं हमदम है…”। अब आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 3 – सजल – कोई रहा नहीं हमदम है … ☆ 

सजल

समांत-अम

पदांत-है

मात्राभार- १६

 

रोती आँखें सबको गम है।

लूट रहे उनमें दमखम है।।

 

अट्टहास वायरस है करता,

सबकी आँखों में डर-सम है।

 

आक्सीजन की नहीं व्यवस्था,

देख सिलेंडर में अब बम है।

 

धूम मची है नक्कालों की,

उखड़ी साँसें निकला दम है।

 

बन सौदागर खड़े हुए अब,

कोई रहा नहीं हमदम है ।

 

लाशों का अंबार लग रहा,

आँख हो रही सबकी नम है ।1

 

लोग अधिक हैं लगे पंक्ति में ।

वैक्सीन की डोजें कम है।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल ” मनोज “

18 मई 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 117 ☆ एक शब्द चित्र ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता ‘एक शब्द चित्र’। इस विचारणीय कविता के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 117 ☆

? कविता – एक शब्द चित्र  ?

 

मरीचिका मृग छौने की ,

प्रस्तर युग से कर रही ,

विभ्रमित उसे।

 

मकरन्द की,

अभिनव चाह,

संवेदन दे रही भ्रमर को नये नये ।

 

घरौंदे की तलाश में,

कीर्ति, यश की चाह में,

आकर्षण अमरत्व का,

पदचिन्ह खूबसूरत सा,

कोई बना पाने को,

मानव है भटक रहा ।

शुबहा शक नहीं,

इसमें कहीं,

भटकतों को मंजिल है,

मिलती नहीं ,

कामना है यही इसलिये,

मझधार में कोई न छूटे,

नाव खेने में जिंदगी की,

न साहस किसी का टूटे ।

 

ये विपदाओं से खेलने की शक्ति,

हर किसी को मिले,

कि जिससे हर कली,

फूल बन खिले ।।

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 5 (31-35)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #5 (31-35) ॥ ☆

 

गुरू दक्षिणा हेतु ही सिर्फ लेता औं याचक की इच्छा से अति दान दाता

कौत्स्य और रघु हुये दोनो सुविख्यात, अयोध्या के इतिहास से जिनका नाता। 31।

 

प्रसन्न मन हर्षित कौत्स्य ने तब अनेक उष्ट्राश्वों पै लदा धन

विनम्रता में झुके नृपति से कहा, बढ़ा हाथ औं छूते तन – मन ॥ 32॥

 

हे राजवृत रघु जो यह यह धरा तव हे कामदा तो विचित्र क्या है ?

प्रभाव ही है यह आपका जो सभीत नभ ने भी धन दिया हैं ॥ 33॥

 

समस्त कल्याण से युक्त है आप, कोई अन्य आशीष पुनरूक्ति होगी

वही खुशी पायें गुणी तनय पा, पिता ने जो पा तुम्हें है भोगी ॥ 34॥

 

आशीष दे कौत्स्य गुरू पास लौटे, रघु ने भी आशीष पा पुत्र पाया

सुत ऐसा जो सूर्य सा दीप्ति चमका, गुणों से जन जन के मन को भाया ॥ 35॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की#59 – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की #59 –  दोहे 

संताने हैं नयन की, रखना अश्रु संभाल ।

पढ़ना चाहो तो पढ़ो, भूत, भविष्यत काल।।

 

किसने कब कैसे किया, युद्ध का आव्हान।

युद्ध कथा का मूल है, आशु का अपमान।।

 

आंसू टपका आंख से, कहे हृदय का हाल ।

समझदार तो है वही, जो समझे तत्काल ।

 

आंसू बहे प्रसाद के,   रहे निराला मौन ।

बच्चन के मन की व्यथा, बांच सका है कौन ।

 

तुलसी सूर कबीर के, अश्रु बने इतिहास।

कौन कहे मीरा कथा, आंसू का उपवास।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 59 – कुटीरों में भूख का अध्याय है …. ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “कुटीरों में भूख का अध्याय है ….। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 59 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ कुटीरों में भूख का अध्याय है …. ☆

बुरे से हालात

हैं दृग के

तैरते डोरे

दिखे ड्रग के

 

उबरते तक नहीं

इस दृश्य से

अजनबी सन्दर्भ

हैं अदृश्य से

 

विप्लवी नशे

की मरीचिका –

में, पड़े छौने

किसी मृग के

 

कुटीरों में भूख

का अध्याय है

विवशता बैठी

जहाँ निरुपाय है

 

बहुत चिंतित

क्षुब्ध शुभ चिन्तक

कुयें में औंधे

पड़े नृग के

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

24-09-2021

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विदेह ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – विदेह ?

रतौंध की मारी

निकली पीड़ाएँ,

मुझे देह समझ

निशाना बनाती रहीं,

देह के आर-पार बसी

मेरी जिजीविषा

इस नादानी पर

मुस्कराती रही

©  संजय भारद्वाज

(बुधवार 20 सितम्बर 2017, प्रातः 6:37 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #49 ☆ नवरात्रि पर्व विशेष – माता रानी ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी नवरात्रि पर्व पर विशेष कविता “# माता रानी #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 49 ☆

☆ # नवरात्रि पर्व विशेष – माता रानी # ☆ 

अंधकार ही अंधकार है

दुःख दर्द तो अपार है

त्राहि त्राहि है जनमानस

व्याकुल सारा संसार है

पोंछने आंखों का पानी

आजा आजा माता रानी

 

भूख बेकारी गले पड़ गई

गरीबी जन्म से अड़ गई

अधनंगी काया लेकर घूमे

शर्म, हया

 कफन के साथ गड़ गई

छाया दे दे, तू हे दानी

आजा आजा माता रानी

 

न्याय तो अधमरा हो गया

सत्य तो डरा डरा सो गया

दुष्ट कर रहे हैं तांडव

कानून लाचार जार जार हो गया

तू चूर करदे इनकी अभिमानी

आजा आजा माता रानी

 

माता, पूजा पर तेरे पहरे है

मन पर घाव गहरे हैं

सच्चे है जो तेरे साधक

दूर कोने में ठहरे हैं

दर्शन देकर,

दूर कर इनकी ग्लानि

आजा आजा माता रानी

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 5 (26-30)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #5 (26-30) ॥ ☆

 

यह बात सुन ब्राहम्ण कौत्स्य ने, राजइच्छा ‘तथा हो ‘ कह स्वीकार कर ली

रघु ने भी पृथ्वी को निस्तार सा पा, कौबेर धन की ही बस कामना की ॥ 26॥

 

वशिष्ठ मत्रावेशित रघुरथ आकाश – सागर और पर्वतों पर

भी वायुगति से बढ़ता जल्द सा, था बढ़ रहा अपने पथ पर बिना डर ॥ 27॥

 

फिर रात्रि होते एक सामान्य सामन्त सा शयन रथ में किया धीरता से

था शस्त्र सज्जित अतः लिया निर्णय विजय पाने धनपति पै निज वीरता से । 28।

 

सविस्मय कहा कोषगृह सेवकों ने -ये प्रस्थान हित प्राप्त तैयार रघु से

हुई कोष के बीच वर्षा अकस्मात सोना गिरा बहुत सा सहज नभ से ॥ 29॥

 

बिना आक्रमण किये ही स्वर्ण पाने की सुन बात रघुको हुआ हर्ष अति तब

कुबेर से पाये सुमेरू के खण्ड सा दीप्त सोना दिया कौत्स्य को सब ॥ 30॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 61 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 61 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 61) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 61 ☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

गिले -शिकवे  तो  सिर्फ़

साँस लेने तक ही चलते हैं

बाद में तो पछतावे  तक की

गुंजाइश  नहीं   रह  जाती..!

 

Complaints and grouses last only till one is alive

Later only memories and painful repentance remain

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

वक़्त  सा

था  वो…

कभी  मिला

ही  नहीं…

 

He was

like time

Could never

find  him…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

अपनी आदतों में

तुम्हें शुमार करके

हमने  खुद  को

बहुत बिगाड़ा है…

 

By including you

in my habits

I have spoiled

myself a lot..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

दिलकश मुस्कुराहट पर तो

हजारों फिदा होते ही हैं….

बात तो तब बने जब कोई

आंसुओं का भी हिस्सेदार हो

 

Thousands are smitten

by a bewitching smile….

Creditable is when someone

shares the tears too….!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 61 ☆ मुक्तिका …. ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित भावप्रवण कविता ‘मुक्तिका ….। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 61 ☆ 

☆ मुक्तिका …. ☆ 

*

तेवर बिन तेवरी नहीं, ज्यों बिन धार प्रपात

शब्द-शब्द आघात कर, दे दर्दों को मात

*

तेवरीकार न मौन हो, करे चोट पर चोट

पत्थर को भी तोड़ दे, मार लात पर लात

*

निज पीड़ा सहकर हँसे, लगा ठहाके खूब

तम का सीना फाड़ कर, ज्यों नित उगे प्रभात

*

हाथ न युग के जोड़ना, हाथ मिला दे तोड़

दिग्दिगंत तक गुँजा दे, क्रांति भरे नग्मात

*

कंकर को शंकर करे, तेरा दृढ़ संकल्प

बूँद पसीने के बने, यादों की बारात

*

चाह न मन में रमा की, सरस्वती है इष्ट

फिर भी हमीं रमेश हैं, राज न चाहा तात

*

ब्रम्ह देव शर्मा रहे, क्यों बतलाये कौन?

पांसे फेंकें कर्म के, जीवन हुआ बिसात

*

लोहा सब जग मान ले, ऐसी ठोकर मार

आडम्बर से मिल सके, सबको ‘सलिल’ निजात

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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