हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य #91 ☆ बाल कविता # संबंधों का मोल # ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की  एक भावप्रवण बाल कविता  “#संबंधों का मोल#। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# #91 ☆ बाल कविता # संबंधों का मोल # ☆

किसी समय में एक गांव में,

                       रहते थे दो भाई।

प्रेम न था उनमें आपस में ,

           बढ़ी दूरियां दिल की खाई।

अलगाव हुआ था उन दोनो में,

                      आपस में बंटवारा।

झगडे़ की जड़ थी एक अंगूठी,

            उनमें हुआ विवाद करारा।

 अपना झगड़ा लेकर वे,

               पहुंचे एक संत के पास।

संत ने उनकी सुनी समस्या,

          रखी अंगूठी खुद के पास।

बोले संत आज घर जाओ,

            तुम सब कल फिर आना।

आकर सुबह सबेरे तुम सब,

       अपनी अंगूठी लेकर जाना।।

 

जाते ही घर अपने उनके,

       संत ने सुनार बुलवाया।

वैसी दूसरी अंगूठी,

      उनने सुनार से बनवाया।

  क्यों? मोल चुकाया पास से अपने,

       ये भेद कीसी की समझ न आया।

 

जब सुबह को आये दोनों भाई,

      उनको अलग अलग बुलवाया।

 पा कर  एक एक  अंगूठी ,

                      दोनों संतुष्ट हुए थे।

थे प्रसन्न दोनों भाई,

    अब आपस में मिलजुल रहते थे।

 इक दिन बातों बातों में ,

       इस रहस्य की बात खुल गई।

जब एक अंगूठी झगडे़ की जड़ थी,

        फिर कैसे दो हमें मिल गई।

 जब इस सच का चला पता,

      फिर दोनों पहुंचे संत के पास।

क्यों दो  अंगूठी दिया हमें,

      सच सच बतलाएं समझ के दास।

 उनकी बातें सुन कर के,

             बाबा जी ने बतलाया।

 #संबंधों के मोल# की बातें,

               बाबा जी ने समझाया।

सोना तो है तुच्छ चीज,

        संबंधों के मोल बहुत है।

सोने से भी बढ़ करके,

          भाई में प्रेम अधिक है।

यही बताने की खातिर,

     दो अंगूठी तुम्हें दिया था।

 जीवन में संबंधों का मतलब,

          तुम सबको बता दिया था।

सुनकर बाबा की बातें,

                दोनों संतुष्ट हुए थे।

सदा सुखी रहने का मंतर,

                  दोनों समझ गये थे।

संबंधों के मोल बहुत हैं,

      नानाजी से सुनों कहानी।

सोने-चांदी का मोल न कोई,

         ये बतलाती बुढ़िया नानी।

 क्यों लड़ते तुम गहनों खातिर,

       सब बातें संत ने समझाया।

संबंधों की कीमत उनने ,

      अपनी युक्ति से बतलाया।।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

18-8-2021

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 5 (21-25)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #5 (21-25) ॥ ☆

 

पर मेरे फिर फिर दुराग्रह से क्रोधित हो, मेरी गरीबी को बिन ध्यान लाये –

दी चौदह विद्याओं को ध्यान रख मुझसे चौदह करोड़ स्वर्ण मुद्रा मँगाये ॥ 21॥

 

ऐसा मैं अर्ध्य हेतु मृदपात्र लख आपको सिर्फ प्रभुशब्द युत मानता हूँ

अतः आपसे चौदह कोटि मुद्रायें पाने का साहस नही बाँधता हूँ ॥ 22॥

 

तब चंद्रशोभी, उस अनुराग त्यागी नरपति ने सुन कौत्स्य का यह निवेदन

उस वेदज्ञाता, विद्वान ब्राहम्ण के प्रति किया अपने मन का प्रदर्शन ॥ 23॥

 

वेदांत पारंगत ऋषिवर को देने गुरूदक्षिणा हेतु आ कोई याचक

‘रघु से मनोरथ पूरा न पाया ‘ ऐसा न हो कोई अपवाद भ्रामक ॥ 24॥

 

अतः उचित यह आप दो – तीन दिन रूक मेरे अतिथिगृह में ही विश्राम पायें

जिससे कि गुरूदक्षिणा हेतु है श्रेष्ठ ! धन के लिये यत्न कुछ किये जायें ॥ 25॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सिक्का ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – सिक्का ?

मेरा शून्य,

मेरा संतृप्त,

समानांतर चलते हैं,

शून्य संभावनाओं को
खंगालता है..,

संतृप्त आशंकाओं को
नकारता है..,

सिक्के की विपरीत सतहें

किसने निर्धारित की ?

संभावना और आशंका

किसने परिभाषित की?

शिकारी की संभावना

शिकार के लिए आशंका है,

संतृप्त की आशंका

शून्य के लिए संभावना है,

जीवन परिस्थिति सापेक्ष होता है,

बस काल है जो निरपेक्ष होता है..!

©  संजय भारद्वाज

(विजयादशमी, 8.10.2019, प्रात: 9:27 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 49 ☆ बहा ले जाती नदी अपना ही किनारा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता “बहा ले जाती नदी अपना ही किनारा”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा # 49 ☆ बहा ले जाती नदी अपना ही किनारा ☆

अपनों से जा दूर बसने में कई मजबूरियां हैं

समय के संग मन को कई बदलाव देती दूरियां है

कब क्या  बदलाव होगा बता पाना तो कठिन है

पर नए परिवेश में बदलाव की कमजोरियां हैं

 

शुरू में बदलाव तो लगता सभी को है सुहाना

जानता कोई नहीं कल आयेगा कैसा जमाना

खुद के भी बदलाव को कोई समझ पाता कहां है

समय की धारा में मिल बहना जगत ने धर्म माना

 

दूरदर्शी सोच कि संसार में कीमत बड़ी है

क्योंकि नियमित समय से बदलाव की आती घड़ी है

आज जो दिखता जहां है कल कभी मिलता कहां वह

इसलिये नए निर्णयों में उचित नहीं कोई हड़बड़ी है

 

परिस्थितियों साथ नित बनता बिगड़ता विश्व सारा

जरूरी इससे बहुत सद्बुद्धि का शाश्वत सहारा

सदा रहते हरे ऊंचे वृक्ष जिनकी जड़ें गहरी

बहा ले जाती समय की नदी अपना ही किनारा

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 5 (16-20)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #5 (16-20) ॥ ☆

 

हो चक्रवर्ती महाराज भी यज्ञ कर दान दे स्वतः निर्धन उचित हो

जैसे कि सुरपीत कला हीन भी चंद्र पूर्णेन्द से दिखता प्यारा उदित हो ॥ 16॥

 

कोई नहीं कार्य गुरूदक्षिणा हेतु धन प्राप्ति से भिन्न मुझको किसी से

कल्याण हो याचना कभी चातक भी करता नहीं जल रहित बादलों से ॥ 17॥

 

कह ऐसा जाने लगे शिष्य गुरू के, को कुछ रोक रघु ने सहज भाव पूँछा

विद्वान वर ! गुरू को क्या देय है ? – और कितना बतायें तो दें रूपरेखा ॥ 18।

 

तब विश्वजिंत यज्ञ कर भी निरभिमान वर्णाश्रमों के प्रणेता रघु से

वह ब्रह्यचारी सब आशय औं वृतान्त अपना सुनाने लगा इस तरह से ॥ 19॥

 

कर पूर्ण अध्ययन मैंने पूज्य गुरू जी से गुरू दक्षिणा हेतु की प्रार्थना थी

पर उनको मेरी सतत भक्ति निष्ठा ही उनने कहा मेरी गुरू दक्षिणा थी ॥ 20॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कविता, गणित और आदमी! ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – कविता, गणित और आदमी! ?

बचपन में पढ़ा था-

X + X , 2X होता है,

X × X, X² होता है,

Y + Y, 2Y होता है,

Y + Y, Y² होता है..,

X और Y साथ आएँ तो

X + Y होते हैं,

एक-दूसरे से

गुणा किये जाएँ तो

XY होते हैं..,

X और Y चर राशि हैं,

कोई भी हो सकता है X,

कोई भी हो सकता है Y,

सूत्र हरेक पर, सब पर,

समान रूप से लागू होता है..,

फिर कैसे बदल गया सूत्र?

कैसे बदल गया चर का मान..?

X पुरुष हो गया,

Y स्त्री हो गई,

कायदे से X और Y का योग

X + Y होना चाहिए,

पर होने लगा X – Y,

सूत्र में Y – X भी होता है,

पर जीवन में कभी नहीं होता,

(X+Y)²= X² + 2 XY + Y²

का सूत्र जहाँ ठीक चला है,

वहाँ भी X का मूल्य

Y की अपेक्षा अधिक रहा है,

गणित का हर सूत्र

अपरिवर्तनीय है,

फिर किताब से

ज़िंदगी तक आते-आते

परिवर्तित कैसे हो जाता है.. ?

जीवन की इस असमानता को

किसी तरह सुलझाओ मित्रो,

इस प्रमेय को हल करने का

कोई सूत्र पता हो तो बताओ मित्रो!

©  संजय भारद्वाज

(संध्या 7.35 बजे, 13.9.2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Lekhan -the Authorship… ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem  “लेखन .  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)  

 ☆  Lekhan -the Authorship…?

The verbosity of life

got rendered speechless,

Death too

became dumbstruck

After listening

to my decision…

to go without hesitation

with the death…

Don’t know

what was the effect…

Together they both asked-

If something

is incomplete

We can wait

for a while

I smeared a ‘Tilak’ on the

forehead of the paper

with my pen

and said-

That’s all,

Just wrote today’s part…

Let’s go now..!

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 101 ☆ नवरात्रि पर्व विशेष – भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना के दोहे । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 101 – साहित्य निकुंज ☆

☆ नवरात्रि पर्व विशेष – भावना के दोहे ☆

 

मण्डप देखो सज गया, कलश स्थापना आज।

देवी का पूजन करो,  बनते    बिगड़े    काज।।

 

अदभुत प्रथम  स्वरूप है, शैल सुता का रूप ।

करते  हैं   आराधना,     देवी    बड़ी    अनूप।।

 

आए दिन नवरात्रि के, बना  आगमन    खास।

श्रद्धा से सब   पूजते,   पूरी    होती     आस।

 

मंगलमय उत्सव यही,   गाए मंगल   गान।

नौ देवी जो   पूजते,    हो जाता   कल्याण।।

 

जग जननी, जगदंबिका, नौ देवी अवतार।

आदिशक्ति वरदायनी,    पूजें    बारंबार।।

 

शक्ति स्वरूपा मातु श्री, करती है   उद्धार।

विनती करने आ गए, माता  के    दरबार।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 90 ☆ माँ के चरणों में भगवान  ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.  “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण कविता “माँ के चरणों में भगवान । आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 90 ☆

☆ माँ के चरणों में भगवान ☆

माँ की महिमा बड़ी महान

माँ के चरणों में भगवान

 

आँखों में जब नींद न आती

लोरी गाकर हमें सुलाती

थप-थपाती प्यार से सिर को

देकर मधुर सुरीली तान

माँ की महिमा बड़ी महान

 

संकट में वह साहस देती

नजर उतार बलैयां लेती

मुश्किलों के आगे भी वह

खड़ी रहे जो सीना तान

माँ की महिमा बड़ी महान

 

मंज़िल की माँ राह दिखाती

संस्कार अच्छे सिखलाती

परिवार की जननी बन कर

करे सदा सबका कल्यान

माँ की महिमा बड़ी महान

 

कहाँ हैं अब आँख के तारे

माँ  के  थे  जो  राजदुलारे

भूल गए वो अब यौवन में

अपनी माँ का भी सम्मान

माँ की महिमा बड़ी महान

 

घर में जब होता बंटवारा

माँ का दिल रोता बेचारा

अपनी ही खुशी में सारे

भूल गए माँ की मुस्कान

माँ की महिमा बड़ी महान

 

जिसने सबको पाला-पोसा

उसके लिए न किसने सोचा

बे-बस माँ सिसक कर कहती

बेटे   पूर्ण    करो    अरमान

माँ की महिमा बड़ी महान

 

माँ  से  बनते  रिश्ते  सारे

माँ से  ही घर में उजियारे

काम-काज दिन-रात करती

फिर भी आती नहीं थकान

माँ की महिमा बड़ी महान

 

गर्म किसी का माथा होता

माँ का दिल अंदर से रोता

बिन दवा के बन जाती है

माँ दुआओं की इक दुकान

माँ की महिमा बड़ी महान

 

माँ का दिल मत कभी दुखाना

वही है खुशियों का खजाना

कहता है “संतोष”सभी से

माँ की सेवा कर नादान

माँ की महिमा बड़ी महान

 

माँ   का   ऊँचा  है     स्थान

करिए माँ का सब  गुणगान

माँ के चरणों में भगवान

माँ की महिमा बड़ी महान

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 5 (11-15)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #5 (11-15) ॥ ☆

 

शुभ आगमन मात्र से आपके मन न संतुष्ट आदेश की कामना है

गुरू की या खुद की कृपा से आ वन से किया मुझे उपकृत कहें – प्रार्थना है। 11।

 

मृदापात्र से स्थिति अनुमान कर, कौत्स – वर तन्तु शिख ने सुनी जब ये वाणी

तो अपनी आशा – निराशा दबाकर, रघु को यो सादर सुनाई कहानी ॥ 12॥

 

हे नृप कुशल आप समझें सभी की, जहाँ आप स्वामी अमंगल कहाँ है ?

कभी रात काल दिखाती नहीं है, प्रभावन सूरज चमकता जहाँ है ॥ 13॥

 

महाभाग ! पूज्यों के प्रति इष्ट भक्ति यही आपके कुल की मानी प्रथा है

अधिक पूर्वजों से भी दर्शायी पर मैं समय गये आया यही अब व्यथा है ॥ 14॥

 

दे दान सत्पात्रों को आप राजन उसी भांति शोभित यहाँ हो रहे हैं

जैसे कि वनवासी मुनिवृंद को फल दे, नीवार डण्ठल बचे शोभते हैं ॥ 15॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares
image_print