हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पहाड़ी नदी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पहाड़ी नदी ? ?

सब कुछ जमा है

मेरे भीतर

पहाड़ी नदी की तरह

और तुम प्रवाह की

प्रतीक्षा में हो,

जबकि

पहाड़ी नदी

जमी हुई भी

होती है काँच-सी पारदर्शी

तल-अतल के बीच

कुछ छिपा नहीं पाती,

जाने दो

परदेसी हो न

नहीं समझोगे

पहाड़ की भाषा

और

जमे हुए

प्रवाह की परिभाषा!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक 💥

🕉️ श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – बेटी की बिदाई… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता बेटी की बिदाई…।)

☆ कविता – बेटी की बिदाई… ☆

इस दुनिया की रस्मों में,

एक ही है दुखदाई,

शादी के बाद, हो जब,

बेटी की बिदाई,

*

नाजों से पाला जिसको,

मेरा ही कलेजा है,

बाहों में खिलाया जिसको,

फूल सा सहेजा है,

दहलीज पार करना,

है बड़ा दुखदाई,

शादी के बाद हो जब,

बेटी की बिदाई.

*

जब वो हंसती थी,घर मे,

गुल खिलते थे सावन में,

जब चलती थी पग पग,

नुपूर बजते थे आंगन में,

जीवन पतझड़ सा हुआ,

बेटी हुई पराई,

शादी के बाद हो जब,

बेटी की बिदाई.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 177 ☆ # “जुमला” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “जुमला”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 177 ☆

☆ # “जुमला” #

एक उम्मीदवार से

उसके समर्थक ने पूछा -?

आपको इस बार

यह क्या सूझा ?

आप हर बार

एक नया नारा देते हो

हम को सम्मोहित कर

हमारा वोट लेते हो

आपने पिछली बार

जो कसमें खाई  हैं 

वो अब तक नहीं निभाईं हैं 

इस बार नयी ग्यारंटी

और नये नये वादे हैं 

क्या वाकई इसे

पूरा करने के इरादे हैं  ?

या यह भी हमेशा की तरह

मन लुभावना

हवा का झोंका है  ?

या हमारी भावनाओं के साथ

एक खूबसूरत धोका है ?

 

उम्मीदवार ने कहा – भाई!

आपका और हमारा

जनम जनम का साथ है

आपकी हमारी

आपस की बात है

जब तक आपका

हमारे हाथ में हाथ है

तब तक

हमारे सर पर ताज है

आपके बिना हमारी

क्या औकात है ?

कसमें, वादे, लगायें गये नारे

समय ने किये इजाद हैं 

चुनाव जीतने के बाद

किसको रहते याद है

पक्ष हो या विपक्ष

सब एक ही प्रवाह के धारे हैं 

चुनाव जीतने के फंडे सारे हैं 

जनकल्याण के सिध्दांत को, कानून को ,

मानता कौन है

खुद ही सिध्दांत, खुद ही कानून है

सब गिरगिट है यहां

इसलिए बस मौन है

 

भाई !

यहां सब दाग़दार हैं 

जिन्होंने वर्षों से

प्रजातंत्र को कुचला था

अगर आज आप

उनसे पूछोगे –

आपका कथन

कितना सही – कितना झूठ था ?

तो बेशर्मी से कहेंगे

भाई ,

वो तो एक जुमला था /

*

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 187 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 187 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 187) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 187 ?

☆☆☆☆☆

हम दोनों को

हम जैसे बहुत मिलेंगे,

बस हम दोनों को

हम दोनों नहीं मिलेंगे..

☆☆

We both will find

many like us,

It’s just that we won’t

find each other…

☆☆☆☆☆

खुद के सामने खड़े होके मैंने

खुद से ही माफ़ी माँग ली…

मैंने खुद अपना दिल दुखाया है

औरों को खुश करते करते

☆☆

Standing in front of myself

I apologized to myself

Since I kept others happy

by hurting my heart

☆☆☆☆☆

कैदी हैं सब यहाँ…

कोई ख्वाबों का..

तो कोई ख्वाहिशों का..

तो कोई ज़िम्मेदारियों का…

☆☆

Everyone is prisoner here,

Some of their dreams,

While some of their desires…

Others of responsibilities…

☆☆☆☆☆

होती तो हैं ख़ताएँ

हर एक से मगर…

कुछ जानते नहीं हैं

कुछ मानते नहीं…

☆☆

Committal of mistakes

Happens by everyone…

Some are not aware of it

While others don’t accept it…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 186 ☆ मुक्तिका – सृजन ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है मुक्तिका – सृजन)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 186 ☆

☆ मुक्तिका – सृजन ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

 

मेहनत अधरों की मुस्कान

मेहनत ही मेरा सम्मान

बहा पसीना, महल बना

पाया आप न एक मकान

वो जुमलेबाजी करते

जिनको कुर्सी बनी मचान

कंगन-करधन मिले नहीं

कमा बनाए सच लो जान

भारत माता की बेटी

यही सही मेरी पहचान

दल झंडे पंडे डंडे

मुझ बिन हैं बेदम-बेजान

उबटन से गणपति गढ़ दूँ

अगर पार्वती मैं लूँ ठान

सृजन ‘सलिल’ का है सार्थक

मेहनतकश का कर गुणगान

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२०-४-२१

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #236 – 121 – “मुहब्बत का  दस्तूर कुछ ऐसा है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल मुहब्बत का  दस्तूर कुछ ऐसा है…” ।)

? ग़ज़ल # 121 – “मुहब्बत का  दस्तूर कुछ ऐसा है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मैं तुम्हें  कुछ बताना चाहता हूँ,

मैं तुमसे कुछ छुपाना चाहता हूँ।

*

पशोपेश इस कदर दिमाग़ में है,

मुझे मालूम नहीं क्या चाहता हूँ।

*

मुहब्बत का  दस्तूर कुछ ऐसा है,

न हूँ मैं जो  जताना  चाहता हूँ।

*

जिसे  दुनिया  सरेआम  लूटती है,

मैं तेरे हुस्न को सजाना चाहता हूँ।

*

मुझे  आप  कह लें सौदाई आतिश,

तुझे  झूठ सच  बताना  चाहता हूँ।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – औरत कभी बूढ़ी नहीं होती ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – औरत कभी बूढ़ी नहीं होती ? ?

छुटपन से

पानी पकड़ाना,

चाय बनाना,

खाना पकाना,

खाना खिलाना,

बरतना माँजना,

चूल्हा-चौका

साफ-सफाई

झाड़ू-पोछा

कपड़े धुलाई,

सुबह आँख खुलने से

रात आँख लगने तक,

उम्र के हर मोड़ पर

अविराम और हमेशा

खटती रहती है औरत..,

 

खेल-पढ़ाई

मस्ती-हाथापाई

नौकरी-कमाई

लड़कपन

पुरुष में बदलता है

दाम्पत्य से

बुढ़ापे तक

यात्रा करता है,

निरंतर अविराम

थकता और थकता है..,

 

साठ के बाद

पुरुष के भीतर का

बचपना लौटता है

पर बचपन से

समझदार हुई

औरत का दिन-रात

जस का तस

बना रहता है..,

 

पति के काँधे

जाए न जाए

ढलती उम्र के बावज़ूद

उसी ढर्रे पर चलता रहता है..,

 

रिटायर होता है पुरुष

औरत रिटायर नहीं होती

बूढ़ा होता जाता है पुरुष

औरत कभी बूढ़ी नहीं होती..!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक 💥

🕉️ श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 114 ☆ गीत – ।। मेरी आपकी सबकी एक जैसी कहानी है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 114 ☆

☆ गीत – ।। मेरी आपकी सबकी एक जैसी कहानी है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

मेरी   आपकी  सबकी  एक  जैसी  कहानी  है।

हम सब के लिए उनकी आंख में आता पानी है।।

*

पत्नी  बहु भाभी मामी बनके जीवन में आती है।

आकर घर के हर कोने कोने में वह बस जाती है।।

आने से किलकारी गूंजती कोई बनता दादी नानी है।

मेरी   आपकी  सबकी  एक  जैसी  कहानी  है।

*

अन्नपूर्णा पूजन अर्चन भी जीवन का हिस्सा बनते हैं।

तू तू मैं मैं भी अब  जीवन   का एक किस्सा बनते हैं।।

उसके साथ ही बीतता सारा बुढ़ापा और जवानी है।

मेरी   आपकी  सबकी  एक  जैसी  कहानी  है।

*

आहार उपचार उपहार उसके बिन लगता अधूरा है।

उसके वाम अंग में आने पर ही युगल होता पूरा है।।

पत्नी बिन हर कण–कण क्षण-क्षण सब बेमानी है।

मेरी   आपकी  सबकी  एक  जैसी  कहानी  है।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 176 ☆ “मतदान करो !” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक प्रेरक रचना  – “मतदान करो !। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 176 ☆

☆ “मतदान करो !” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

जो कुछ जनहित कर सके , उसकी कर पहचान

मतदाता को चाहिये , निश्चित हो मतदान

 *

अगर है देश प्यारा तो , सुनो मत डालने वालों

सही प्रतिनिधि को चुनने के लिये ही अपना मत डालो

 *

सही व्यक्ति के गुण समझ , कर पूरी पहचान

मतदाताओ तुम करो , सार्थक निज मतदान

 *

सोच समझ कर , सही का करके इत्मिनान

भले आदमी के लिये , करो सदा मतदान

 *

जो अपने कर्तव्य  का , रखता पूरा ध्यान

मतदाता को चाहिये , करे उसे मतदान

 *

लोकतंत्र की व्यवस्था में , है मतदान प्रधान

चुनें उसे जो योग्य हो , समझदार इंसान

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सवाल तो बहुत हैं ☆ सौ. वृंदा गंभीर ☆

सौ. वृंदा गंभीर

कविता – सवाल तो बहुत हैं ☆ सौ. वृंदा गंभीर ☆

क्या लाजवान फर्माईश थी

आप कि जनाब

हम तो घायल हो गये

प्यार की ये किताब

हम पढते रहे। 

*

सवाल तो बहुत हैं

जवाब अभी तक मिला नहीं

दिल तो पागल है

मन को भाया नहीं

*

मुहब्बत की रफ्तार तेज है

रास्ता मिला नहीं

आप कि यादों में

रात भर हम सोये नहीं

*

कुछ दीवानापन है

कुछ नादानी है

मन कहता है उमर हो गई

अब तो जवानी भी नहीं

 – दत्तकन्या

सौ. वृंदा गंभीर

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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