हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 119 – गीत – शिरोधार्य आदेश तुम्हारा… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – शिरोधार्य आदेश तुम्हारा…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 119 – गीत – शिरोधार्य आदेश तुम्हारा…  ✍

शिरोधार्य आदेश तुम्हारा

चाहे जो हो हाल हमारा।

 

बूँद बूँद को तरसा जीवन

पिया मरुस्थल सारा।

किरन किरन को हीँड़ा जीवन

पिया जिया अँधियारा।

 

औचक ही मिल गई चाँदनी

क्षण में किया किनारा।

 

सुरसरि सा पावन तट पाकर

चाहा प्यास बुझाना

देख परख कर रूप रश्मियाँ

चाह रहा था गाना।

 

कंठ रुद्ध हो गया अचानक

ज्यों निगला हो पारा।

 

करमजलों का जीना क्या है

साँसों की मजबूरी।

देह धरे का दंड भोगना

शायद बहुत जरूरी।

 

मेरी अपनी हस्ती क्या है

सपनों का बंजारा।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 121 – “झोंके छतनार कहीं…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “झोंके छतनार कहीं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 121 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “झोंके छतनार कहीं…” || ☆

ये पत्ते नीम के ।

कड़वे लगते जैसे

नुस्खे हक़ीम के।।

 

दुबले-पतले हिलते।

लगे, हाथ हैं मलते।

 

भूखे-प्यासे जैसे

बेटे यतीम के ।।

 

डाल-डाल लहराते ।

टहनी में फहराते ।

 

झूमते-मचलते

नशे में अफीम के ।।

 

हरे-भरे रहते हैं।

खरी-खरी कहते हैं।

 

जैसे कि  तकाजे

हवा के मुनीम के।

 

झोंके छतनार कहीं।

झुकते साभार वहीं ।

 

शाख पर सजे

जैसे दोहे रहीम के।।

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

 

29-12-2021

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – असीम ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

श्री भास्कर साधना आरम्भ हो गई है। इसमें जाग्रत देवता सूर्यनारायण के मंत्र का पाठ होगा। मंत्र इस प्रकार है-

💥 ।। ॐ भास्कराय नमः।। 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि –  असीम  ??

समुद्री लहरों का

कंपन-प्रकंपन,

प्रसरण-आकुंचन,

मशीन से

मापनेवालों की

आज हार हुई,

मेरे मन में

उमड़ती-घुमड़ती लहरें,

उनकी पकड़

और परख से दूर

सिद्ध हुईं..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 110 ☆ # नया वर्ष… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है दीप पर्व पर आपकी एक भावप्रवण कविता “#नया वर्ष …#”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 110 ☆

☆ # नया वर्ष … # ☆ 

बीत गया पुराना साल

लाल हुआ अंबर का भाल

अरुणोदय के संग

किरणों के रंग बिरंगे रंग

बिखेर रहे अपनी छटा

स्याह जुल्फों को हटा

आलोकित करते

फूल और कलियां

गुंजायमान करती

हुई गलियां

नव प्रभात के स्वागत गीत

गा रही है

नई सुबह अंगड़ाई लेकर

हौले-हौले आ रही है

 

वसुंधरा ने

शुभ्र शालू ओढ़ा है

ठंड ने अपना रिकॉर्ड तोड़ा है

जमे हुए पांव, कंपकंपाते हाथ

ठिठुरते हुए बदन

चुभती हुई सर्द हवाएं

अब ढूंढ रही है तपन

लिहाफ में दुबके हुए जिस्म

आंखें खोल रहे हैं

बाहरी ठंड के अहसास को

आलिंगन में तोल रहे हैं

सारी कायनात प्रेम में

खोई हुई है

सब पे दीवानगी सी

छाई हुई है

हर पल एक खुशनुमा

आहट है

नववर्ष आने की

शायद सुगबुगाहट है

बीते वर्ष की कड़वाहट को

भुलाने का समय

आ गया है

प्यार बांटने

खुशियां मनाने

नया वर्ष

अब आ गया है /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 121 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 121 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 121) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 121 ?

☆☆☆☆☆

फरियाद कर रही है

ये तरसी हुई निगाहें,

देखे हुए किसी को इक

ज़माना गुजर गया…!

Pleading are these

ever longing eyes…

An epoch has passed by

having seen someone!

☆☆☆☆☆ 

मुसकुराना बड़ी बात नहीं

गम छुपना बड़ी बात नहीं,

जिंदगी तेरा मिलना नहीं

इसका रास आना बड़ी बात है…!

Smiling is not a big deal

Hiding sorrow is not a big stuff

O’ Life It’s not meeting you

but liking yhou is the big thing…!

☆☆☆☆☆

है जिसको लगन जिसकी

वो उसको ढूंढ ही लेगा,

दरिया को कौन भला

समंदर का पता देता है…!

 

One who has the passion for

someone will find him anyways

Nobody ever gives the river

the address of the ocean…!

☆☆☆☆☆ 

उन्हें ये गुमान है कि

मेरी उड़ान कुछ कम है…

मुझे यकीं है कि ये

आसमां ही कुछ कम है…!

They think that my

flight is little short…

I trust resolutely that

sky is bit too small…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 121 ☆ ~ भोजपुरी दोहे – नेह-छोह रखाब सदा ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित “~ भोजपुरी दोहे – नेह-छोह रखाब सदा ~”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 121 ☆ 

☆ ~ भोजपुरी दोहे – नेह-छोह रखाब सदा ~ ☆

*

नेह-छोह राखब सदा, आपन मन के जोश.

सत्ता का बल पाइ त, ‘सलिल; न छाँड़ब होश..

*

कइसे बिसरब नियति के, मन में लगल कचोट.

खरे-खरे पीछे रहल, आगे आइल खोट..

*

जीए के सहरा गइल, आरच्छन के हाथ.

अनदेखी काबलियत कs, लख-हरि पीटल माथ..

*

आस बन गइल सांस के, हाथ न पड़ल नकेल.

खाली बतिय जरत बा, बाकी बचल न तेल..

*

दामन दोस्तन से बचा, दुसमन से मत भाग.

नहीं पराया आपना, मुला लगावल आग..

*

प्रेम बाग़ लहलहा के, क्षेम सबहिं के माँग.

सुरज सबहिं बर धूप दे, मुर्गा सब के बाँग..

*

शीशा के जेकर मकां, ऊहै पाथर फेंक.

अपने घर खुद बार के, हाथ काय बर सेंक?

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीत – स्वागतम् – 2023 ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ गीत – स्वागतम् – 2023 ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

नया   भास्कर   द्वारे   आया,  गूँजे   नये    तराने।

किरणों में है नवल ताज़गी, हर पल लगे सुहाने।।

 

मंज़िल अब तो दूर न होगी, बस हमको चलना है।

बहुत हो चुका,अब ना होगा,  हाथ नहीं मलना है।।

नया लक्ष्य अब वरना होगा, कोई नहीं बहाने।

किरणों में है नवल ताज़गी, हर पल लगे सुहाने।।

 

गहन तिमिर अब तो हारेगा, उजियारे का वंदन।

विजयघोष गूँजेगा अब तो, माथे सबके चंदन।।

स्वप्न नवीनीकृत हो जाएँ,भटकें नहीं पुराने।

किरणों में है नवल ताज़गी,हर पल लगे सुहाने।।

 

जीवन अब तो गतिमय होगा, अंतर में खुशहाली।

नहीं बंधु अब खाली होगी, नवल वर्ष में थाली।।

नगर-डगर से सबका परिचय,साथ रहें अंजाने।

किरणों में है नवल ताज़गी,हर पल लगे सुहाने।।

 

एक बार फिर सतयुग आए, यही कामना मेरी।

हर जन के लब पर मुस्कानें, यही भावना मेरी।।

अपनी बस्ती,नगर हमारा,हमको गाँव सजाने।

किरणों में है नवल ताज़गी,हर पल लगे सुहाने।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दिसंबर और जनवरी का रिश्ता? – अज्ञात ☆ संकलन – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे, संपादिका ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

☆ कविता ☆ दिसंबर और जनवरी का रिश्ता? – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे, संपादिका ई-अभिव्यक्ति (मराठी)

कितना अजीब है ना,

दिसंबर और जनवरी का रिश्ता?

जैसे पुरानी यादों और नए वादों का किस्सा…

 

दोनों काफ़ी नाज़ुक है

दोनो मे गहराई है,

दोनों वक़्त के राही है,

दोनों ने ठोकर खायी है…

 

यूँ तो दोनों का है

वही चेहरा-वही रंग,

उतनी ही तारीखें और

उतनी ही ठंड…

पर पहचान अलग है दोनों की

अलग है अंदाज़ और

अलग हैं ढंग…

 

एक अन्त है,

एक शुरुआत

जैसे रात से सुबह,

और सुबह से रात…

 

एक मे याद है

दूसरे मे आस,

एक को है तजुर्बा,

दूसरे को विश्वास…

 

दोनों जुड़े हुए है ऐसे

धागे के दो छोर के जैसे,

पर देखो दूर रहकर भी

साथ निभाते है कैसे…

 

जो दिसंबर छोड़ के जाता है

उसे जनवरी अपनाता है,

और जो जनवरी के वादे है

उन्हें दिसम्बर निभाता है…

 

कैसे जनवरी से

दिसम्बर के सफर मे

११ महीने लग जाते है…

लेकिन दिसम्बर से जनवरी बस

१ पल मे पहुंच जाते है!!

जब ये दूर जाते है

तो हाल बदल देते है,

और जब पास आते है

तो साल बदल देते है…

 

देखने मे ये साल के महज़

दो महीने ही तो लगते है,

लेकिन…

सब कुछ बिखेरने और समेटने

का वो कायदा भी रखते है…

 

दोनों ने मिलकर ही तो

बाकी महीनों को बांध रखा है,

अपनी जुदाई को

दुनिया के लिए

एक त्यौहार बना रखा है..!

😊

 संकलन – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

९८२२८४६७६२

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #170 – 56 – “आँखों में जल की बात करते हो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “आँखों में जल की बात करते हो…”)

? ग़ज़ल # 56 – “आँखों में जल की बात करते हो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

तुम दिल की जो बात करते हो।

बड़ी अकल की  बात करते हो।

मेरे तन मन में आग लगा कर,

तुम सँभल की बात करते हो।

छोड़ कर अनसुलझे सवाल कई।

बेबजह पहल की बात करते हो।

तेज़ रिमझिम में भीगी है फ़िज़ा,

आँखों में जल की बात करते हो।

मिलते हो जब भी ख़्वाबों में,

आतिश हल की बात करते हो।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अक्षर ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

श्री भास्कर साधना आरम्भ हो गई है। इसमें जाग्रत देवता सूर्यनारायण के मंत्र का पाठ होगा। मंत्र इस प्रकार है-

💥 ।। ॐ भास्कराय नमः।। 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि –  अक्षर ??

उद्भूत भावनाएँ

अबोध संभावनाएँ

परिस्थितिवश

थम जाती हैं,

कुछ देर के लिए

जम जाती हैं,

दुख, आक्रोश

अपने दाह से तपते हैं

मन की भट्टी में

अपनी आँच पर पकते हैं,

लोहे-सा पिघलते हैं

लावे-सा उफनते हैं

आकार, कहन लिए

कागज़ पर उतरते हैं,

भावनाओं का संभूता

चक्र पूरा होता है

साझा किए बिना

उत्कर्ष अधूरा होता है,

सुनो मित्र!

अभिव्यक्ति का कभी

मरण नहीं होता,

अक्षर का कभी

क्षरण नहीं होता।

 

© संजय भारद्वाज 

24.12.18, रात्रि 11:07बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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