हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #163 ☆ भावना के दोहे – मीरा ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  “भावना के दोहे – मीरा ।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 163 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – मीरा ☆

धुन मुरली की बज रही, दिल में बजते साज।

मैं मीरा घनश्याम की, झूम रही है आज।।

नाच रही हूं मगन मैं, उर में है बस श्याम।

बजती है बस श्याम धुन, छाए है घन श्याम।।

मैं मोहन की माधुरी, मुरली की  मैं जान।

रोम रोम में बस रहे, मनमोहन में प्रान।।

जादू है घन श्याम का, चहुं ओर है उमंग।

मीरा रहती श्याममय, मन में उठी तरंग।।

कैसे तुझसे क्या कहूँ, हूँ तुझमें मैं लीन।

मैं मीरा राधा नहीं, मैं हूँ श्याम विलीन

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #150 ☆ एक पूर्णिका – “हमने देखे हैं अश्क़ तेरी आँखों में…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  एक पूर्णिका – “हमने देखे हैं अश्क़ तेरी  आँखों में…। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 150 ☆

☆ एक पूर्णिका – हमने देखे हैं अश्क़ तेरी  आँखों में… ☆ श्री संतोष नेमा ☆

बोल कर झूठ आँख चुराता क्यों है

मुझसे खफा है तो छुपाता क्यों है

वक्त के  साथ लोग  बदल जाते हैं

ये  जानते हैं मगर  बताता  क्यों है

रोशनी  जिससे  हो रही है  दिल में

चिराग वफ़ा का यूँ बुझाता क्यों  है

अगर डर है तुझको  इस जमाने से

तो दिल हमसे फिर लगाता  क्यों है

हमने देखे हैं  अश्क़ तेरी  आँखों में

छुपा के  गम तू  मुस्कराता  क्यों  है

पास रहके न पहचान सके जिसको

देख कर दूर से हाथ हिलाता क्यों है

जो करते  हैं  नाटक खुद  सोने  का

उनको  “संतोष”  तू  जगाता क्यों  है

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अपरिमेय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

श्री भास्कर साधना आरम्भ हो गई है। इसमें जाग्रत देवता सूर्यनारायण के मंत्र का पाठ होगा। मंत्र इस प्रकार है-

💥 ।। ॐ भास्कराय नमः।। 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – अपरिमेय  ??

संभावना क्षीण थी

आशंका घोर,

बायीं ओर से उठाकर

आशंका के सारे शून्य,

धर दिये संभावना के

दाहिनी ओर..,

गणना की

संभावना खो गई,

संभावना

अपरिमेय हो गई..!

© संजय भारद्वाज 

25.12.2021, सुबह 11:35 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 141 ☆ बाल गीत – धरा, गगन  है चिड़ियाघर… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 141 ☆

☆ बाल गीत – धरा, गगन  है चिड़ियाघर… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

धरा , गगन  है चिड़ियाघर।

अद्भुत जीवन नई डगर।।

 

बुलबुल करतीं रोज सवेरा।

पेड़ों पर उनका है डेरा।।

 

ठुमक – ठुमक कर गीत सुनातीं।

योग करें , मुस्काती जातीं।।

 

बत्तख़ तैर रही हैं जल में।

आशा देख रही हैं कल में।।

 

तैर – तैर कर मन हैं मोहतीं।

खुशियों की शबनम हैं बोतीं।।

 

बादल जी के ठाठ निराले।

चित्र बनाते अद्भुत माले।।

 

कभी शेर से बन जाते हैं।

पानी बर्षा उड़ जाते हैं।।

 

पल में भालू , पल में आलू।

देख – देख कर खुश है कालू।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #163 – है सब कुछ अज्ञात… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज नव वर्ष पर प्रस्तुत हैं आपकी एक अतिसुन्दर, भावप्रवण एवं विचारणीय कविता  “है सब कुछ अज्ञात……”। )

☆  तन्मय साहित्य  #163 ☆

☆ है सब कुछ अज्ञात…

फिर से नया वर्ष इक आया

है सब कुछ अज्ञात

न जाने क्या सँग में

सौगातें  लाया।

 

विपदाओं की करुण कथाएँ

बार-बार स्मृतियों में आये

बिछुड़ गए जो संगी-साथी

कैसे उनको हम बिसराएँ

है अनुनय कि विगत समय की

पड़े न तुम पर काली छाया

 फिर से नया वर्ष……..।

 

स्वस्ति भाव उपकारी मन हो

बढ़े परस्पर प्रेम सघन हो

हर दिल में उजास तुम भरना

सुखी सृष्टि, हर्षित जन-जन हो

नहीं विषैली बहे हवाएँ

रहें निरोगी सब की काया

फिर से नया वर्ष ……..।

 

सद्भावों की सरिता अविरल

बहे नेह धाराएँ निर्मल

खेत और खलिहान धान्यमय

बनी रहे सुखदाई हलचल

स्वागत में नव वर्ष तुम्हारे

 

आशाओं का दीप जलाया

फिर से नया वर्ष ……..।

 

विश्वशांति साकार स्वप्न हों

नव निर्माणों के प्रयत्न हों

देवभूमि उज्ज्वल भारत में

नये-नये अनमोल रत्न हों

अभिनंदन आगत का है

आभार विगत से जो भी पाया

फिर से नया वर्ष ……..।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 51 ☆ गीत – नव वर्ष मुबारक हो… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण गीत “नव वर्ष मुबारक हो…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 51 ✒️

?  गीत – नव वर्ष मुबारक हो…  ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

पाहुने नव वर्ष

तुम आते हो प्रति वर्ष ।

बारह माह रह कर

चले जाते हो सहर्ष।।

 

फ़िर मानव वर्ष भर का

करता है लेखा-जोखा ।

कितना पाया सत्य

और कितना पाया धोखा।।

 

पिछले वर्ष ने हमें

झकझोर कर रख दिया ।

एक के बाद एक छति को

क्रियान्वित कर दिया।।

 

जाओ अतिथि अब

बहुत हो गया अहित ।

अतीत के क्रूर दृश्यों से

हृदय अब तक है व्यथित।।

 

स्थान करो रिक्त ताकि

नवागंतुक के स्वागत का ।

पांव – पखार टीका वंदन

सब करें तथागत का।।

 

हे बटोही आगामी वर्ष के

तुम कर्मयोगी बन कर आओ ।

देश की मां बहनों की

अस्मत लुटने से बचाओ ।।

 

छोटी दूधमुहीं

बच्चियां ना हो तार तार ।

निरीह माताएं

ना रोयें अब ज़ार ज़ार ।।

 

हे सृजन करता हो सके तो

यमदूत बनके आओ ।

मदिरा अपराध भ्रष्टाचार

बलात्कार को लील जाओ।।

 

आतंकवाद भाषावाद धर्मवाद

सांप्रदायिकता का करो अंत ।

ऐसा सुदर्शन चलाओ

मिटें सारे पाखंडी संत ।।

 

शिक्षा , संस्कार , मूल्य ,

ईमानदारी की हो स्थापना ।

हर युवा करें माता-पिता

एवं बुज़ुर्गों की उपासना ।।

 

जनता मिटा दे राजनीति

के झूठे व गंदे खेल ।

हिंदू-मुस्लिम सभी धर्मों की

संस्कृतियों का हो जाए मेल।।

 

भारत मां का रक्त से

करो श्रंगार टीका वंदन ।

कन्याओं के जन्म पर

हो उनका शत-शत अभिनंदन ।।

 

हे प्रिय नवागंतुक

तब लगेगा नववर्ष आया।

तुम्हारे स्वागत में हमने

पलक पांवड़ों को है बिछाया ।।

 

सलमा सभी को मुबारक

आया हुआ यह नूतन वर्ष ।

अंधेरों से निकलो दोस्तो

प्रकाश में नहाकर मनाओ हर्ष ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 63 – मनोज के दोहे…अश्वगंधा  ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…अश्वगंधा । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 63 – मनोज के दोहे…अश्वगंधा 

1 भारत आयुर्वेद में, जनक-निपुण-विद्वान।

वेदों में यह वेद है, रखे स्वस्थ बलवान।।

 

2 आयुर्वेद की यात्रा, वर्ष सहस्त्रों पूर्व ।

योग ज्ञान विज्ञान में, विद्वत-जन से पूर्ण ।।

 

3 जड़ी बूटियों में छिपी, रोग हरण की शक्ति।

सनातनी युग में मिला, कर ब्रह्मा की भक्ति।।

 

4 धन्वंतरि जी ने किया, रोग हरण की खोज।

ब्रह्मा जी की कृपा से, आयुर्वेदी ओज।।

 

5 पद चिन्हों में चल पड़े, अनुसंधानी रोज। 

चरक चिकित्सक हो गए,कृतित्व रहा मनोज।।

 

6 संस्थापक ये ऋषि रहे , जग में है पहचान।

चरक-संहिता लिख गए , मानव का कल्यान।।

 

7 सर्जन सुश्रुत ने किया, बड़ा अनोखा काम।

सुश्रुत-संहिता को लिखा, खूब कमाया नाम।।

 

8 पेड़ छाल पौधे सभी, जड़ पत्ते अरु बीज।

प्रकृति जन्य उपहार हैं, शोध परक ताबीज।।

 

9 हरें-रोग जड़ी-बुटियाँ, आयुर्वेद विज्ञान।

मानव की रक्षा करें,  करतीं रोग निदान।।

 

10 पौधा है असगंध का, करता बड़ा कमाल।

अश्वगंधा के नाम से, इसने किया धमाल।।

 

11अश्वगंध के नाम से, जग में भी विख्यात।

नाम अनेकों हैं मगर, करे रोग संघात।।

 

12 गुणकारी पौधा सुखद,जिसका नहीं जवाब।

औषधि में सर्वश्रेष्ठ है, शोधक रखें हिसाब।।

 

13 लम्बे पत्ते शाख में, पतली टहनी देख ।

जड़ लंबी होती सदा, खेतों की है रेख।।

 

14 झाड़ी या पौधे कहें, हरित रहें सब पात।

मेढ़ पहाड़ी में उगें, दिखें सदा हर्षात।।

 

15 देश विदेशों में अलग,भाँति-भाँति के नाम ।

विंटर चेरि पॉयजनस, करे सभी सत्काम।।

 

16 तुख्मे हयात,अमुकुरम,कुष्ठगन्धिनि,पुनीर।

वराहकर्णि,अमनगुरा,तन-मन हरती पीर।।

 

17 घोडासोडा,अमुक्किरा,असकन्धा से नाम।

काकनजे,टिल्ली कहें, रोग हरण के काम।। 

 

18 शोध हो रहे नित्य प्रति, रोगों का उपचार।

लगता है अब निकट ही, होगा बिग बाजार।।

 

19  दिखने में छोटा बड़ा, पौधा है असगंध।

घोड़े के पेशाब सी, रगड़ो आती गंध।।

 

20 नेत्र ज्योति में वृद्धि कर, पीड़ा-हरती नेत्र।

जड़ी-बूटि है यह बड़ी, व्यापक इसका क्षेत्र ।।

 

21 हरे रोग गलगंड के, दाबे अपनी काँख।

विज्ञानी औषधि निपुण, खुली देखते आँख।।

 

22 स्वेत-बाल यदि हो रहे, मत घबराएँ आप।

अश्‍वगंधा सेवन करें, मिट जाते संताप।।

 

23 कब्ज समस्या हो अगर, करता रोग निदान।

अन्य उदर बीमारियाँ, निरोगी-समाधान।।

 

24 छाती में यदि दर्द हो, इसका बड़ा महत्व ।

गुम गठिया-उपचार में, यही इलाजी तत्व।।

 

25 क्षय-रोगों के लिए यह, अनुपम करे इलाज।

रोग मुक्त टी बी करे, आयुष को है नाज ।।

 

26 ल्यूकोरिया-इलाज में, अश्‍वगंध सरताज ।

असगंधा में छिपा है,इसका पूर्ण इलाज। ।

 

27 अश्‍वगंध के चूर्ण से, मिटता रक्त विकार।

त्वजा रोग में यह करे, महत्वपूर्ण उपचार।।

 

28 शारीरिक कमजोरियाँ, करता है यह दूर।

खाँसी और बुखार में, उपयोगी भरपूर।।

 

29 चोट लगे या कट लगे,करे शीघ्र उपचार।

अश्वगंध सेवन करें, तन-मन करे निखार ।।

 

30 राजस्थान प्रदेश में, स्थान प्रमुख नागौर ।

जलवायु अनुकूलता, उत्पाद श्रेष्ठ का दौर।।

 

31 नागौरी असगंध की, औषधि बड़ी महत्व।

इसके चूरण तेल में, रोग निवारक तत्व।।

 

32 रोज रात पीते रहें, जिनका तन अस्वस्थ ।

दूध सँग अश्वगंध लें, होती काया स्वस्थ।।

 

33 दो ग्राम असगंध सँग, आँवला लें समान।

एक मुलेठी पीसिए,आँखों का कल्यान।।

 

34 तन-कमजोरी में करे, हर रोगों पर घात।

वीर्य वृद्धि पुरुषार्थ में, होता यह निष्णात।।

 

35 अश्वगंध का चूर्ण यह, होता पूर्ण  सफेद।

चर्म रोग नाशक रहे, कष्ट निवारक श्वेद।।

 

36 तन-मन की रक्षा करे, खाएँ चियवनप्राश।

सम्मिश्रण अश्वगंध का, करे रोग का नाश।।

 

37 द्राक्षासव में सम्मिलित, असगंधा का योग।

उदर रोग से मुक्ति दे, करें नित्य  उपभोग।।

 

38 जोड़ों में आराम दे, असगंधा का तेल ।

करिए मालिस नित्य ही, हो खुशियों का मेल।।

 

39 वात पित्त कफ दोष से,बने मुक्ति का योग ।

तन मन हर्षित हो सदा, जो करता उपभोग।।

 

40 कैंसर जैसे रोग में, इसका है उपयोग।

शोध परक बूटी सुखद, हरण करे यह रोग।।

 

41जिसको देखो तृषित है,डायबिटिक का रोग।

मददगार मधुमेह में, तन-रक्षा का योग।।

 

42 अनिद्रा अरु अवसाद में, बैठा आँखें-मींद।

चिंताओं से मुक्त हो, सुख की देता नींद।।

 

43 शुक्रधातु को प्रबल कर पौरुष देता बल्य।

वात रोग का नाश कर, हटे पेट का मल्य।।

 

44 माँसपेशियाँ दुरुस्त कर, रक्त करे यह शुद्ध।

तन-मन को मजबूत कर, योगी ज्ञानी बुद्ध।।

 

45 हृदय रोगियों के लिए, जीवन-मरण सवाल।

शुद्ध रक्त बहता रहे,औषधि करे कमाल।।

 

46 बालों का झड़ना रुके, बढ़ें प्रकृति अनुरूप।

ओजस्वी मुखड़ा दिखे, सबको लगे अनूप।।

 

47 यौन विकारों के लिए, इसमें छिपी है शक्ति।

जीवन नव संचार कर, भर दे जीवन भक्ति।।

 

48 थाइराइड कंट्रोल कर,दुख का करे निदान।

अश्वगंध की दवा से, परिचित हुआ जहान।।

 

49 महिलाओं के लिए यह, गर्भावस्था वक्त।

परामर्श सेवन करें, स्वस्थ निरोगी रक्त।।

 

50 घटे मुटापा व्यक्ति का, जो खाता असगंध।

रोग भगाता है सभी, कर्मयोग अनुबंध।।

 

51 औषधि में मिलती घटक,शोधपूर्ण का मेल।

रोगों का यह शमन कर, दौड़े सुखमय रेल।।

 

52 जहरीले पौधे बहुत, पर होते गुण-खान।

जहर-जहर को काटता, सबको इसका भान।।

 

53 डाक्टर से परामर्श लें, तभी करें उपभोग।

मात्रा-मिश्रण हो सही, भागे तब ही रोग।।

 

54 आसव चूरण तेल सब, मिले दवा बाजार।

सोच समझ उपयोग कर, तभी करें उपचार।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि –  अन्यमनस्क.. ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

श्री भास्कर साधना आरम्भ हो गई है। इसमें जाग्रत देवता सूर्यनारायण के मंत्र का पाठ होगा। मंत्र इस प्रकार है-

💥 ।। ॐ भास्कराय नमः।। 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि –  अन्यमनस्क.. ??

पग-पग आगे बढ़ो

सफलता के सूत्र इनसे पढ़ो,

सदा परफेक्शन चुनो

मन से काम करना इनसे गुनो,

अपने परिचय पर

वह अचकचा गया,

जीवनभर जो

अन्यमनस्क रहा,

मन से काम करने का

रोल मॉडेल भला कैसे हुआ?

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 11:06 बजे, 1 जनवरी 2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 185 ☆ कविता – बदलते कहां हैं अब कैलेंडर? ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय   कविता – बदलते कहां हैं अब कैलेंडर?

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 183 ☆  

? कविता – बदलते कहां हैं अब कैलेंडर? ?

 मोबाईल इस कदर समा गया है जिंदगी में

कैलेंडर कागज के

बदलते कहां हैं अब

 

साल, दिन,महीने, तारीखें, 

समय सब कैद हैं टच स्क्रीन में

वैसे भी

अंतर क्या होता है

आखिरी तारीख में बीतते साल की 

और पहले दिन में नए साल के,

जिंदगी तो वैसी ही दुश्वार बनी रहती है।   

 हां दुनियां भर में

जश्न, रोशनी, आतिशबाजी

जरूर होती है

रस्म अदायगी की साल के स्वागत में

टूटने को नए संकल्प लिए जाते हैं

गिफ्ट का आदान प्रदान होता है,

ली दी जाती है डायरी बेवजह

 लिखता भला कौन है अब डायरी

सब कुछ तो मोबाइल के नोटपैड में सिमट गया है।   

जब हम मोबाइल हो ही गए हैं, तो आओ टच करें

हौले से मन

अपने बिसर रहे कांटेक्ट्स के

और अपडेट करें एक हंसती सेल्फी अपने स्टेटस पर

नए साल में सूर्योदय के साथ

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

न्यूजर्सी , यू एस ए

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “वन गंध की सुवास  पर…” ☆ श्रीमति प्रेमलता उपाध्याय ‘स्नेह’ ☆

श्रीमति प्रेमलता उपाध्याय ‘स्नेह’

(श्रीमति प्रेमलता उपाध्याय ‘स्नेह’ जी  द्वारा गणित विषय में शिक्षण कार्य के साथ ही हिन्दी, बुन्देली एवं अंग्रेजी में सतत लेखन। काव्य संग्रह अंतस घट छलका, देहरी पर दीप” काव्य संग्रह एवं 8 साझा संग्रह प्रकाशित। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने पाठकों से साझा करते रहेंगे।  आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “वन गंध की सुवास  पर…”।) 

☆ “वन गंध की सुवास  पर…” ☆ श्रीमति प्रेमलता उपाध्याय ‘स्नेह’ ☆

(गीतिका  –  2212      2212)

चलता रहा विकास पर ।

नव सूर्य के उजास पर ।।

 

जब लेखनी चली ढ़ली

रचना रची प्रयास पर ।।

 

बँधता गया निशब्द सा।

उस प्रेम के विलास पर।।

 

बौरा रहा मधुप सखी।

वन गंध की सुवास पर ।।

 

लाली धरी मधुर अधर ।

मुस्कान थी सुहास पर ।।

 

मुखरित हुआ उत्पात तब।

बातें रही समास पर।।

 

आकंठ मैं गई उतर।

सुन “स्नेह” की मिठास पर।। 

© प्रेमलता उपाध्याय ‘स्नेह’ 

संपर्क – 37 तथास्तु, सुरेखा कॉलोनी, केंद्रीय विद्यालय के सामने, बालाकोट रोड दमोह मध्य प्रदेश

ईमेल – plupadhyay1970@gmail:com  

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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