हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 47 ☆ मुक्तक ।। मनोकामना ।। शुभकामना – 2023 ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।। मनोकामना ।। शुभकामना – 2023 ।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 47 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।। मनोकामना ।। शुभकामना – 2023 ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

बस  आदमी  को आदमी से प्यार हो  जाये।

हर नफ़रत की  जीवन  में हार  हो  जाये।।

इंसानियत का ही  हो  बोल बाला हर जगह।

हर व्यक्ति में मानवता का संचार हो जाये।।

[2]

हर किसी का हर किसी से सरोकार हो जाये।

हर सहयोग देने को आदमी तैयार हो जाये।।

अमनो चैन सुकून की हो अब सबकी जिंदगी।

खत्म हमारे बीच की हर तकरार हो  जाये।।

[3]

राष्ट्र का हित ही सबका कारोबार हो जाये।

देश की आन को हर बाजू तलवार हो जाये।।

दुश्मन नज़र उठा कर देख न सके हमको।

हर जुबां पर शत्रु के लिए ललकार हो जाये।।

[4]

माहमारी कॅरोना की करारी अब हार हो जाये।

पूर्ण स्वास्थ्य का स्वप्न दुनिया में साकार हो जाये।।

भय डर का यह जीवन अब हो जाये समाप्त।

यह विषाणु हर जीवन से अब बाहर हो जाये।।

[5]

हर बाग में  अब  गुल गुलशन बहार हो जाये।

जिंदगी का मेला वैसा ही फिर गुलज़ार हो जाये।।

यह नववर्ष खुशियां लेकर आये हज़ारों हज़ार।

हर ओर जीवन में सुख शांति बेशुमार हो जाये।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 112 ☆ ग़ज़ल – “जिंदगी…”☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “जिन्दगी …” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #112 ☆  ग़ज़ल  – “’जिन्दगी …” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

सुख दुखों की एक आकस्मिक रवानीं जिंदगी

हार-जीतों की की बड़ी उलझी कहानीं जिंदगी

व्यक्ति श्रम और समय को सचमुच समझता बहुत कम

इसी से संसार में धूमिल कई की जिंदगी ।।1।।

 

कहीं कीचड़ में फँसी सी फूल सी खिलती कहीं

कहीं उलझी उलझन में, दिखती कई की।

पर निराशा के तमस में भी है आशा की किरण

है इसीसे तो है सुहानी दुखभरी भी जिंदगी ।।2।।

 

कहीं तो बरसात दिखती कहीं जगमग चाँदनी 

कहीं हँसती खिल-खिलाती कहीं अनमन जिंदगी।

भाव कई अनुभूतियाँ कई, सोच कई, व्यवहार कई

पर रही नित भावना की राजधानी जिंदगी ।।3।।

 

 सह सके उन्होंने ही सजाई है कई की जिंदगी

कठिनाई से जो उनने नित रचा इतिहास

सुलभ या दुख की महत्ता कम, महत्ता है कर्म की

कर्म से ही सजी सँवरी हुई सबकी जिंदगी ।।4।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #162 ☆ आजाद हिन्द फ़ौज ध्वजारोहण दिवस विशेष – हे मां मातृभूमि तुझे नमन ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “हे मां मातृभूमि तुझे नमन।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 162 – साहित्य निकुंज ☆

☆ आजाद हिन्द फ़ौज ध्वजारोहण दिवस विशेष – हे मां मातृभूमि तुझे नमन ☆

(30 दिसंबर, 1943 को पहली बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पोर्ट ब्लेयर के रॉस द्वीप में आजाद हिंद फौज का झंडा फहराया था। अब इस स्थान को सुभाष दीप कहा जाता है।)

हे मां मातृभूमि तुझे नमन

शत शत नमन मेरे वतन

तेरे स्नेह में किए अर्पित

किए तुमने प्राण समर्पित।

 

सन तेतालीस पोर्ट ब्लेयर में

आजादी का झंडा लहराया।

भारत माता विजय दिवस

दिसंबर 30  याद आया।

 

याद आते हरदम सुभाष

उन्हें थी बस वतन की आस

पराक्रमी देशभक्त को था

आजादी मिलने का विश्वास।

 

 सुभाष पर वतन को गुमान

बच्चे बच्चे पर है इनका नाम

कहां खो गए ये भी भान नहीं

याद कर वतन करता सम्मान।

 

वतन आज आजाद नहीं

कहीं तबाही कहीं आतंकी

कहीं सुलगता है इन्सान

दे रहे कितने शहीद बलिदान।

 

तुम मुझे खून….किया जयघोष।

स्वाधीनता का किया उदघोष

वतन याद कर रहा आज भी

आजादी के लिए किया संघर्ष

 

तेरे लहू का कतरा कतरा

वतन के काम है आया ।

जो आप कह गए सुभाष

वहीं देश ने बार बार दोहराया।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शेड्स ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

श्री भास्कर साधना आरम्भ हो गई है। इसमें जाग्रत देवता सूर्यनारायण के मंत्र का पाठ होगा। मंत्र इस प्रकार है-

💥 ।। ॐ भास्कराय नमः।। 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – शेड्स ??

पहले आठ थे,

फिर बारह हुए,

सोलह, बत्तीस,

चौंसठ, एक सौ अट्ठाइस,

अब दो सौ चौंसठ होते हैं,

रंगों के इतने शेड

दुनिया में कहीं नहीं मिलते हैं,

रंगों की डिब्बी दिखाता

दुकानदार बता रहा था..,

मेरी आँखों में

आदमी के प्रतिपल बदलते

अगनित रंगों का प्रतिबिम्ब

आ रहा था, जा रहा था…!

© संजय भारद्वाज 

27.10.2018, प्रातः 8:44 बजे।

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #149 ☆ संतोष के दोहे – अहसास पर दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “संतोष के दोहे । आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 149 ☆

☆ संतोष के दोहे  – अहसास पर दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆

 

अपनों ने ही कर दिया, घायल जब अहसास

गैरों पर करते भला,  हम कैसे विश्वास

 

मुँह पर मीठा बोलते, मन कालिख भरपूर

ऐसे लोगों से रहें, सदा बहुत हम दूर

 

कथनी करनी में नहीं, जिनकी बात समान

कभी भरोसा न करें, उन पर हम श्रीमान

 

दिल के रिश्तों में सदा, कभी न होता स्वार्थ

मतलब के संबंध बस, होते हैं लाभार्थ

 

रिश्ते-नाते हो रहे, आज एक अनुबंध

जब दिल चाहा तोड़ते, रहा न अब प्रतिबंध

 

प्रेम समर्पण में रखा, शबरी ने विश्वास

कुटी पधारे राम जी, रख कायम अहसास

 

तकलीफें मिटतीं मगर, रह जाता अहसास

छीन सके न कोई भी, जो दिल के है पास

 

रहता है जो सामने, पर हो ना अहसास

उस ईश्वर को समझिए, जिसका दिल में वास

 

पकड़ न पायें जिसे हम, जिसकी ना पहचान

मैं अंदर की चीज हूँ, समझो तुम नादान

 

गलती को स्वीकारिये, हो जब भी अहसास

मिलता है संतोष तब, कभी न हो उपहास

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आपबीती ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

श्री भास्कर साधना आरम्भ हो गई है। इसमें जाग्रत देवता सूर्यनारायण के मंत्र का पाठ होगा। मंत्र इस प्रकार है-

💥 ।। ॐ भास्कराय नमः।। 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि –  आपबीती ??

मैं डुबकी लगाना

चाहता था गहरी,

सो गहरे लोगों की

संगत करने की सूझी,

फिर समय ने बताया,

अनुभव ने दोहराया,

आपबीती से पता चला था,

मैं उथला ही भला था..!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 7:20, 23 दिसम्बर 2022

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नई जनरेशन ☆ श्री अखिलेश श्रीवास्तव ☆

श्री अखिलेश श्रीवास्तव 

(ई-अभिव्यक्ति में श्री अखिलेश श्रीवास्तव जी का स्वागत। विज्ञान, विधि एवं पत्रकारिता में स्नातक। 1978 से वकालत, स्थानीय समाचार पत्रों में सम्पादन कार्य। स्वांतः सुखाय समसामयिक विषयों पर लेख एवं कविताओं की रचित / प्रकाशित। प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “नई जनरेशन”।)

☆ कविता  – नई जनरेशन ☆ श्री अखिलेश श्रीवास्तव ☆

रंग ढंग नई जनरेशन के

हमको समझ न आए ।

सदी बीस को छोड़ के

ये इक्कीसवीं सदी में आए ।।

 

देर रात तक जगने की

आदत इनके मन भाए ।

नौ बजे के बाद ही इनकी

गुडमॉर्निंग  हो पाए ।।

 

शर्ट-पेंट  ये नहीं पहनते

इन्हें टी शर्ट -जीन्स ही भाए ।

फटी जीन्स दाड़ी कपड़ों में

कूल लुक कहलाए ।।

 

चाचा -चाची बुआ -फूफा

कहने में ये शर्माएं ।

बोलकर अंकल -आंटी

 सबको ये मार्डन कहलाएं ।।

 

छोटी जगह में रहना

इनको बड़ा कष्ट पहुंचाए ।

देख शहर की चकाचौंध

इन्हें शहर में रहना भाए ।।

 

हिन्दी बोलन में शर्माएं

अंग्रेजी गले लगाएं ।

अपनी माता को छोड़ के

ये स्टेप मदर अपनाएं ।।

 

रिश्ते नाते नहीं मानते

दोस्त ही मन में भाए ।

अपनों से ये बात करें न

दूजों से बतयायें ।।

 

पापा-मम्मी नहीं बोलते

मोम डेड कहलाएं ।

भाई बहिन आपस में

सिस -ब्रो बन जाएं ।‌।

 

 घर परिवार के रिश्तों

और बूढ़ों से ये कतराएं ।

रिश्ते वही निभायें जो

इनके मन को भाएं।।

 

बड़ों के पैरों को छूने में

इनको शर्म है आए ।

हैलो हाय करके ये

अपना शिष्टाचार निभाएं ।।

 

बर्थ डे घर में नहीं मनाते

होटल में ये जाएं ।।

घर के देशी व्यंजन छोड़

 ये पिज़्ज़ा बर्गर खाएं ।।

 

चाय -छांछ पीने वाले तो

बेक वर्ड  कहलाएं ।

सिगरेट और शराब पियें

तो फारवर्ड बन जाएं ।।

 

खेलकूद इनको न भाए

इससे ये कतराएं

नेट -टेब मोबाइल में

ये अपना समय बिताऐं

 

बड़ी विडंबना है इनकी

अब इन्हें कौन समझाए।

विश्व में भारत की संस्कृति

 ही सर्वश्रेष्ठ श्रेष्ठ कहलाए ।।

© श्री अखिलेश श्रीवास्तव

जबलपुर, मध्यप्रदेश 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 140 ☆ बाल गीत – हँसी का छक्का… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 140 ☆

☆ बाल गीत – हँसी का छक्का… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

नयन लड़ावें चुन्ना – मुन्ना।

मिट्टी से लिखते किटकन्ना।।

 

प्यारी जोड़ी भोली – भाली।

खूब बजाते जमकर ताली।।

 

कभी ठुमककर लाड़ जतावें।

लप्पा – लोरी खूब सुनावें।।

 

खूब खेलते घोड़ा – घोड़ी।

मन को भाएँ सेव , पकोड़ी।।

 

गिनती करते एक दो तीन।

एबीसीडी बोल प्रवीन।।

 

कभी मारते हँसी का छक्का।

प्यार लुटाएं कक्की – कक्का।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #162 – जो नहीं कुछ भी… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी  एक अतिसुन्दर, भावप्रवण एवं विचारणीय कविता  “जो नहीं कुछ भी…”। )

☆  तन्मय साहित्य  #162 ☆

☆ जो नहीं कुछ भी…

जो, नहीं कुछ भी बोलते होंगे

दिल तो उनके भी खौलते होंगे।

 

हाथ में, जिनके न  तराजु है

सबको आँखों से तौलते होंगे।

 

जहर भरा है  द्वेष, ईर्ष्या का

विषधरों  से  वे  डोलते  होंगे।

 

बोल अमृत से हैं जिनके वे भी

विष  कहीं पर तो घोलते होंगे।

 

बातें  इतिहास की सुनाते जो

शब्द  उनके भूगोल  के  होंगे।

 

उनके भाषण सुनें तो पायेंगे

गरीब   के  मखौल के  होंगे।

 

है मजूरों के  पास जो कुछ भी

वो   पसीने  के  मोल  के  होंगे।

 

बाद, तकरार  के, बुलाया है

मन्सूबे  मेल – जोल  के  होंगे।

 

बेखबर  जो हैं, स्वयं अपने से

खुद  को  बाहर  टटोलते  होंगे।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 50 ☆ गीत – हो मुबारक नया साल… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण बुन्देली गीत “नाचो मोर…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 49 ✒️

?  गीत – हो मुबारक नया साल…  ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

दो हज़ार बाइस

आपको पुराना लगे ।

तेइस का सवेरा

सभी को सुहाना लगे ।।

 

गिरती हुई ईंट को

फ़िर से लगायें आओ ।

हमें बीती यादों का

हुज़ूम फ़साना लगे ।।

 

नव वर्ष से मिल जायें

सबको ख़ुशियों के अंबार ।

पिछले सारे ग़म

केवल एक बहाना लगें ।।

 

भुलाओ गिले-शिकवे

हो मुबारक नया साल ।

पुकारो सलमा सपनों

को जो तराना लगे ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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