हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 265 ⇒ जाति और राजनीति… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “जाति और राजनीति।)

?अभी अभी # 265 ⇒ जाति और राजनीति… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

वैसे तो जाति कहीं आती जाती नहीं, लेकिन यह जहां भी होती है, इसके आसपास राजनीति को आसानी से देखा जा सकता है। जो राज करने की नीति को प्रभावित करे, उसे जाति कहते हैं।

अगर जाति का मूल वर्ण में है, तो राजनीति का मूल जाति में।

जात न पूछो साधु की, हरि को भजे सो हरि का होय।

यही हाल राजनीति का भी है। राजनीति में भी किसी की जाति नहीं पूछी जाती। राजनीति में एक वर्ग कार्यकर्ता का होता है, जिसकी उपयोगिता ही उसकी जाति होती है। जब भी सामाजिक एकता और वर्ग चेतना का जिक्र होगा, राजनीति में उसके योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता।।

लोकतंत्र में मूल रूप से एक आम आदमी को दो ही वर्गों में बांटा जा सकता है, अमीर और गरीब। कोई कितना अमीर है और कौन कितना गरीब, यह उसकी आमदनी पर निर्भर करता है। ईश्वर ने भी शायद दो ही जात बनाई होगी, अमीर जात और गरीब जात। लेकिन आखिर वर्ण व्यवस्था भी तो कोई चीज है। बताओ तुम कौन जात।

राजा अपनी प्रजा में भेदभाव नहीं कर सकता। ईश्वर भी पहले गरीब और दुखी की ही सुनता है। जो जितना वंचित और शोषित है, वह उतना ही अधिक सुविधा का पात्र है। जब अगलों, पिछड़ों से बात नहीं बनती, तो उन्हें भी विशेष वर्ग में बांटा जाता है। जरा देश की जनसंख्या और वंचित और शोषित का अनुपात देखिए।।

अगर पिछड़ों में भी सिर्फ ओबीसी यानी अन्य पिछड़े वर्ग की चर्चा करें, तो भारत की जनसंख्या में इनका अनुपात 40 % से कम नहीं। इनके उत्थान के लिए सरकारें सदा प्रयासरत रही हैं। वास्तव में इनका ऊपर उठना ही देश का ऊपर उठना है।

जातिगत राजनीति से ऊपर उठकर, जब तक यह वर्ग समाज के अन्य वर्ग से कंधे से कंधा मिलाकर आगे नहीं बढ़ेगा, हमारा विकास अधूरा ही रहेगा। अमीर गरीब और गांव और शहर के बीच बढ़ती खाई को आखिर कभी ना कभी तो कम से कमतर करते हुए पाटना पड़ेगा।।

अब तो अयोध्या में प्रभु श्री राम भी बिराज गए। तुलसी के राम तो वही धनुष बाण वाले वनवासी राम हैं, और उनकी अयोध्या में तो राम जी की पादुका ही सिंहासन पर विराजमान है और सेवक भ्राता भरत महाराज अपनी कुटिया से ही रामकाज और राजकाज को समर्पित है। जाति की राजनीति तो प्रजा ने देख की, अब त्याग और समर्पण की राजनीति भी राम जी की कृपा से देखने को मिलेगी। केवट, निषाद सहित सभी वनवासी बड़े हर्षित हैं। आखिर शबरी के प्रभु श्री राम जो अयोध्या पधारे हैं ..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गणतंत्र दिवस… ☆ सुश्री रुचिता तुषार नीमा ☆

सुश्री रुचिता तुषार नीमा

☆ कविता ☆ गणतंत्र दिवस…🇮🇳  ☆ सुश्री रुचिता तुषार नीमा ☆

दिन आज फिर शक्ति प्रदर्शन का आया,,

देखो गणतंत्र दिवस है आया

लागू हुआ था संविधान इसी दिन,

इसी दिन जनता के हाथ में अधिकार है आया,,

देखो गणतंत्र दिवस है आया।।

*

भीमराव का अखण्ड भारत का सपना,,

गणतंत्र में सरोकार हो आया,,,

अनेकता में एकता के सूत्र से,,

भारत देश है जगमगाया,,,

देखो गणतंत्र दिवस है आया।।

*

1950 से लेकर आज तक,,

हर जगह भारत का ध्वज है लहराया,,,

अध्यात्म हो, या मनोरंजक गतिविधियाँ,

हर जगह परचम है पहराया

देखो गणतंत्र दिवस है आया।।।

*

महामारी के इस दौर में भी,

जागरूकता से निजात है पाया,

देकर कोरोना वैक्सीन दुनिया को

एक बार फिर विश्व गुरु है कहलाया

देखो गणतंत्र दिवस है आया।।

*

जल,थल,और वायुसेना का

सर्वश्रेष्ठ सब साधन जुटाया,

ओलम्पिक में भी पाकर स्वर्ण

भारत माँ का गौरव बढ़ाया।।

देखो गणतंत्र दिवस है आया।।।

जय हिंद, जय भारत

© सुश्री रुचिता तुषार नीमा

इंदौर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (29 जनवरी से 4 फरवरी 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (29 जनवरी से 4 फरवरी 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिष शास्त्र अपने आप में एक अनोखी विद्या है। इस विद्या से हम व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह, देश दुनिया के संबंध में आने वाली घटनाओं के बारे में विचार करते हैं। इसी विद्या का एक अंग गोचर विज्ञान भी है। इसी गोचर विज्ञान से साप्ताहिक राशिफल बनाया जाता है। कहा गया है:-

भोग दशा गोचर का योग, जातक करता जीवन भोग।

आज साप्ताहिक राशिफल में हम 29 जनवरी 2024 से 4 फरवरी 2024 अर्थात विक्रम संवत 2080 शक संवत 1945 के माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी से माघ मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में चर्चा करेंगे।

इस सप्ताह के प्रारंभ में चंद्रमा सिंह राशि का रहेगा। 29 तारीख को 12:03 रात से कन्या राशि में प्रवेश करेगा। 1 फरवरी को 11:22 दिन से तुला राशि और 3 फरवरी को 8:49 रात से वृश्चिक राशि का हो जाएगा।

इस पूरे सप्ताह सूर्य मकर राशि में, तथा शुक्र, और मंगल ग्रह धनु राशि में रहेंगे। गुरु मेष राशि में गोचर करेगा। शनि कुंभ राशि में रहेगा। बक्री राहु पूरे सप्ताह मीन राशि में रहेगा। बुध ग्रह प्रारंभ में धनु राशि में तथा दिनांक 1 के 1:45 दिन से मकर राशि का हो जाएगा।

इस सप्ताह 29 तारीख को संकट चतुर्थी या तिल चतुर्थी जिसको की गणेश चतुर्थी भी कहते हैं का त्यौहार मनाया जाएगा।

इस सप्ताह के प्रत्येक दिन विवाह का मुहूर्त है इसके अलावा 31 तारीख को नामकरण अन्नप्राशन और मुंडन  मुहूर्त है। 31 जनवरी और 3 फरवरी को व्यापार मुहूर्त है। इस सप्ताह उपनयन गृहारम्भ और गृह प्रवेश के मुहूर्त नहीं हैं।

इस सप्ताह 31 जनवरी को सूर्योदय से लेकर 10:21 मिनट रात तक सर्वार्थ सिद्ध योग है।

आइये अब हम प्रत्येक राशि के साप्ताहिक राशिफल के बारे में चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपके कई कार्य आपके भाग्य के कारण हो सकते हैं। आप कार्य करने का प्रयास करें। भाग्य अपने आप आपकी मदद करेगा। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा सामान्य से थोड़ी कम रहेगी। धन आने के योग हैं परंतु धन एकाएक आएगा। कचहरी के कार्यों में रिस्क ना लें। अगर आप पूरी सावधानी पूर्वक कचहरी के कार्य करेंगे तो आपको सफलता मिल सकती है। शत्रुओं की मात्रा बढ़ेगी। माता जी को कष्ट हो सकता है। उनको ब्लड प्रेशर डायबिटीज या रक्त संबंधी कोई और बीमारी हो सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध थोड़ा तनाव पूर्ण हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 1 , 2 और 3 फरवरी शुभ है। एक, दो और तीन फरवरी को आप द्वारा अधिकांश कार्य जो किए जाएंगे उनमें आपको सफलता मिलेगी। 4 तारीख को आप दुर्घटनाओं से बच सकते हैं। 30 और 31 तारीख तथा 4 तारीख को आपको विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप आदित्य हृदय स्त्रोत का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

वृष राशि के जातकों का स्वास्थ्य इस सप्ताह सामान्य रहेगा। उनके जीवनसाथी का स्वास्थ्य भी ठीक-ठाक रहेगा। पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा परंतु माता जी के स्वास्थ्य में थोड़ी गड़बड़ी हो सकती है। माता जी को कमर या गरदन का दर्द या नस संबंधित कोई अन्य बीमारी हो सकती है। भाग्य के भरोसे ना बैठे। अपने परिश्रम पर विश्वास करें और अपना हक प्राप्त करें। इस सप्ताह आपके खर्चों में वृद्धि हो सकती है। स्थानांतरण का भी योग बन रहा है। धन लाभ में कमी आएगी। कार्यालय में आपकी यथास्थिति रहेगी। दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें। इस सप्ताह आपके लिए 29 जनवरी उत्तम है। आपको चाहिए कि आप 1, 2, 3 और 4 तारीख को सतर्क रहकर कोई कार्य करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मिथुन राशि

मिथुन राशि के जातकों के जीवनसाथी का स्वास्थ्य सप्ताह उत्तम रहेगा। उनके माता जी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी बहुत तकलीफ आ सकती है। अगर आप अधिकारी या कर्मचारी है तो कार्यालय में आपकी लड़ाई भी हो सकती है। भाग्य इस सप्ताह आपका एकाएक साथ देगा। भाग्य की साथ देने के कारण कोई व्यक्ति आपको इस सप्ताह नीचा नहीं दिखा पाएगा। इस सप्ताह आपके पास धन की कमी हो सकती है। इस सप्ताह आप मानसिक चिंता से ग्रस्त रहेंगे। आपको मानसिक तनाव रह सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 30 और 31 तारीख किसी भी कार्य करने को करने के लिए उचित है। 30 और 31 तारीख को आपके द्वारा किए गए अधिकांश कार्यों में आपको सफलता प्राप्त होगी। अगर आप पहले से प्रयास कर रहे हैं तो आप अपने शत्रु को 4 तारीख को परास्त कर सकते हैं। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन स्नान की उपरांत तांबे के पत्र में अक्षत जल और लाल पुष्प डालकर भगवान सूर्य को सूर्य मंत्रों के साथ में अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके जीवन साथी के स्वास्थ्य में थोड़ी गिरावट हो सकती है। पिताजी और माताजी दोनों का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। माता जी को पेट की समस्या हो सकती है। इस सप्ताह भाग्य से आपको कोई विशेष मदद नहीं मिलेगी। आपको अपने पुरुषार्थ पूरा विश्वास करना होगा। भाई बहनों के साथ सामान्य संबंध रहेंगे। छोटी-मोटी दुर्घटना का योग है। इस सप्ताह अगर आप प्रयास करेंगे तो अपने सभी शत्रुओं को पूरी तरह से परास्त कर सकते हैं। कुछ नए शत्रु बनेंगे। कार्यालय में आपकी स्थिति में इंप्रूवमेंट होगा। इस सप्ताह आपके लिए एक, दो और तीन फरवरी उत्तम तथा लाभदायक है। आपको चाहिए कि आप अपने बच्चों के प्रति 4 तारीख को सतर्क रहें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ बृहस्पतिवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपके माता-पिता और जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके कमर या गरदन में दर्द हो सकता है। आपको नसों की भी समस्या हो सकती है। भाग्य आपका भरपूर साथ देगा। दुश्मन आपका काम बिगड़ने का प्रयास करेंगे। संतान आपके साथ सहयोग करेंगे। भाई बहनों के साथ सामान्य संबंध रहेंगे। इस सप्ताह 4 फरवरी को आपके सुख में कमी आएगी। आपके माता जी को 4 फरवरी को कष्ट हो सकता है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह गरीबों के बीच में चावल का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपके सुख में वृद्धि होगी। आप कोई नई वस्तु खरीद सकते हैं। इस सप्ताह आपको अपने संतान से कोई विशेष सहयोग प्राप्त नहीं होगा। आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी गड़बड़ी हो सकती है। शत्रु आपके शांत रहेंगे। आपको पेट संबंधी कोई शिकायत हो सकती है। मामूली धन आने का योग है। कार्यालय में आपको परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 30 और 31 जनवरी उत्तम है। 30 और 31 जनवरी को आपके अधिकांश कार्य सफल रहेंगे। 29 जनवरी को आपको सावधानी पूर्वक कोई कार्य करना चाहिए। चार फरवरी को आपका अपने भाइयों-बहनों के साथ थोड़ा तनाव हो सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गेहूं और गुड़ का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपको अपने संतान से भरपूर मदद मिलेगी। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। माता जी के स्वास्थ्य में परेशानी आ सकती है। पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपको पेट का या पेट के अंदर कोई पीड़ा हो सकती है। इस सप्ताह भाग्य आपका एक सीमा तक साथ देगा। जीवनसाथी के कमर या गरदन दर्द हो सकता है। कार्यालय में आपको कुछ परेशानियां आ सकती हैं। अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो गलत रास्ते से धन लेने का प्रयास इस सप्ताह न करें। इस सप्ताह आपके लिए एक, दो और 3 फरवरी अनुकूल है। आपको 30 और 31 जनवरी को सावधान होकर के ही कोई कार्य करना चाहिए। 4 फरवरी को आपको धन के प्रति लालसा नहीं रखना चाहिए अन्यथा आप किसी जाल में फंस सकते हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शनिवार को शनि मंदिर में जाकर शनि देव को तेल चढ़ाएं और उनकी आराधना करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका व्यापार उत्तम रहेगा। धन आने की पूरी संभावना है। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। भाई बहनों के साथ संबंधों में तनाव आएगा। माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। पिताजी को परेशानी हो सकती है। बच्चों से आपको इस सप्ताह सहयोग प्राप्त नहीं होगा। छात्रों की पढ़ाई में बाधा आएगी। अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो कार्यालय में आपका विवाद हो सकता है। आप को या आपके जीवनसाथी को पेट में कुछ परेशानी हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 29 जनवरी अति उत्तम है। 29 जनवरी को आपके सभी कार्य सिद्ध हो सकते हैं। आपको एक, दो और तीन फरवरी को सावधान रहने की आवश्यकता है। 4 फरवरी को आपको अपने प्रति सतर्क रहना है अन्यथा आपको कोई दुर्घटना हो सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का जाप करें। मंगलवार को कम से कम पांच जाप करना सुनिश्चित करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

धनु राशि

अगर आप अविवाहित हैं तो इस सप्ताह आपके पास विवाह के कई प्रस्ताव आ सकते हैं। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। जीवनसाथी के ब्लड प्रेशर में या डायबिटीज में थोड़ा उछाल हो सकता है। माता जी के स्वास्थ्य में परेशानी आ सकती है। आपको दुर्घटनाओं से बचकर रहना चाहिए। आपको इस सप्ताह संतान का अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। आपका इस सप्ताह अपने भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेगा। धन आने के मार्ग में कई बाधाएं आएंगी परंतु आप अपनी तैयारी लगातार जारी रखें। जिससे आगे के सप्ताह में आपके पास धन आ सके। भाग्य से आपको इस सप्ताह कोई विशेष मदद प्राप्त नहीं होगी। इस सप्ताह आपके लिए 30 और 31 जनवरी अनुकूल है। आपके ऊपर अगर कोई ऋण है तो वह 4 फरवरी को कम हो सकता है या समाप्त हो सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर शनिवार को कम से कम सात बार हनुमान चालीसा का जाप करें। इस सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपको कचहरी के कार्यों में सफलता की काफी उम्मीद है। अगर आपके ऊपर कोई ऋण है तो उसमें या तो कमी आएगी या ऋण समाप्त हो जाएगा। भाग्य इस सप्ताह आपका साथ देगा। धन आने की उम्मीद है। आपके जीवन साथी को रक्त संबंधी कोई विकार हो सकता है। दुश्मनों का समूल नाश हो सकता है परंतु इसके लिए आपको बहुत अधिक प्रयास करना पड़ेगा। भाई बहनों के साथ संबंध में परेशानी आएगी। माता जी का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए एक, दो और तीन फरवरी उत्तम है। एक दो और तीन फरवरी को आपके अधिकांश कार्य सफल हो सकते हैं। इस सप्ताह आपको 29 जनवरी और 4 फरवरी को सतर्क रहना चाहिए। 4 फरवरी को आपको धन हानि हो सकती है। अतः 4 फरवरी को आप किसी भी लॉटरी आदि के चक्कर में ना पड़े। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप राम रक्षा स्त्रोत का प्रतिदिन जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह सामान्यतः आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक-ठाक रहेंगे। माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके एक भाई या बहन को तकलीफ हो सकती है या उससे आपका तनाव हो सकता है। जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आएगी। इस सप्ताह आपके संतान को परेशानी हो सकती है। परंतु यह निश्चित है की संतान उस परेशानी से शीघ्र ही बाहर आ जाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 29 जनवरी लाभदायक है। 30 और 31 जनवरी को आपको सतर्क होकर कोई कार्य करना चाहिए। 4 फरवरी को आपको अपने कार्यालय में सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप विष्णु सहस्त्रनाम का प्रतिदिन पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो यह सप्ताह आपके लिए निश्चित रूप से अच्छे फल लेकर आ रहा है। धन आने का योग है परंतु धन की मात्रा कम रहेगी। कचहरी के कार्यों को पूरी सावधानी से कार्य करें। सफलता मिल सकती है। भाग्य आपका कम साथ देगा। भाई बहनों के साथ संबंधों में तनाव हो सकता है। आपका या आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 30 और 31 जनवरी फलदायक है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। 4 फरवरी को आपको भाग्य के सहारे कोई कार्य नहीं करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन गुरुवार है।

आपसे अनुरोध है कि इस पोस्ट का उपयोग करें और हमें इस पोस्ट के बारे में बतायें।

मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ प्रजासत्ताक दिन ☆ श्री रवींद्र सोनावणी ☆

श्री रवींद्र सोनावणी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ प्रजासत्ताक दिन…🇮🇳 ☆ श्री रवींद्र सोनावणी ☆ 

जन्मलो देशात त्याचे

नाव हिंदुस्थान आहे 

फडकतो डौलात अमुचा

तो तिरंगा प्राण आहे

*

भिन्न भाषा वेशभूषा

संस्कृतीने एक आम्ही

प्राणाहूनीही प्रिय आम्हा

आमची ही हिंदभूमी

*

गतिमान हे विज्ञानयुग

आम्ही इथे आहोत राजे

 चिमटीत धरतो विश्व

 अनुशक्तीत आमुचे नाव गाजे

*

दूत आम्ही शांतीचे

आम्हा नको कधीही लढाई

मनगटे पोलादी परि ना

मारतो खोटी बढाई

*

आहेत आम्हाला समस्या

त्या आम्ही पाहून घेऊ

सदनात आमुच्या दुष्मनांनो

 तुम्ही नका चोरुन पाहू

*

रक्षिण्या स्वातंत्र्य येथे

वीरता बेबंद आहे

रक्तामध्ये एल्गार अन

श्वासामध्ये जयहिंद आहे

© श्री रवींद्र सोनावणी

निवास :  G03, भूमिक दर्शन, गणेश मंदिर रोड, उमिया काॅम्पलेक्स, टिटवाळा पूर्व – ४२१६०५

मो. क्र.८८५०४६२९९३

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ झपूर्झा म्युझियम…  ☆ सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे ☆

सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

? विविधा ?

झपूर्झा म्युझियम… ☆ सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे ☆

(एक सुंदर सहल….)

 “झपूर्झा “म्हणजे काय हे प्रथम खरोखरच माहिती नव्हतं! आधुनिक मराठी काव्याचे जनक म्हणून ओळखल्या जाणाऱ्या कवी केशवसुत यांची”झपूर्झा “ही लोकप्रिय व गाजलेली कविता!

‘झपूर्झा ‘  म्हणजे ‘झपाटले पणाने जगणे’ असा अर्थ घेतला जातो.

‘जा पोरी जा’ हे वाक्य झपाट्याने उच्चारल्यास ‘झपूर्झा’ असा शब्द ऐकल्याचा भास होतो, तसा ध्वनी होतो असे ट्रान्स लिटरेशन फाउंडेशन शब्दकोश नमूद करते.

अर्थाचे असे काही वाद असले तरी ‘झपूर्झा’  खरोखरच आपल्याला ‘जगणे कसे असावे’ हे तेथील प्रदर्शनीतून दाखवून देते. पुण्याजवळ कुडजे, या गावाजवळ हे म्युझियम  आहे. प्रसिद्ध सराफ व्यावसायिक अजित गाडगीळ यांनी जुन्या गोष्टींचा संग्रह करून हे म्युझियम उभे केले  आहे. राजा रविवर्म्याची चित्रं ,१००/१५० वर्षांपूर्वीचे दागिने, साड्या, पैठण्या यांचे आठ वेगवेगळ्या गॅलरींमध्ये प्रदर्शन  आहे. पु. ल. देशपांडे म्हणतात त्याप्रमाणे कला, चित्र, नाट्य, शिल्प या सर्वांशी इथे मैत्री जोडली जाते….

७ जानेवारीला योगा सेंटर ची *झपूर्झा*ला ट्रिप नेण्याचे ठरले आणि आम्ही दोघे त्यांंत सहभागी झालो.१७/१८ जणांची ट्रॅव्हलर गाडी बुक केली होती.. सकाळी १० वाजता निघालो.साधारणपणे पाऊण तासात आम्ही तिथे पोचलो.सकाळचे प्रसन्न वातावरण होते.घरून नाश्ता करून निघालो होतो, तरी वाटेत छोटे छोटेखाद्य पदार्थ खाणे चालूच होते.

‘झपूर्झा’ च्या गेटवर पोहोचल्यावर तिकिटे काढली आणि आत प्रवेश केला.( शनिवार/ रविवार रेट जास्त असतो) आत प्रवेश केल्यावर प्रथमच नटराजाच्या मोठ्या मूर्तीचे दर्शन झाले. केशवसुतांची एक कविता आपले स्वागत करताना दिसली. आणि लक्षात आले की हे नुसतेच प्रदर्शन नाही तर इथे चांगल्या वाचनीय अशाही बऱ्याच गोष्टी आहेत.

शिरीष बेरी या प्रसिद्ध आर्किटेक्टने साडेसात एकर जागेत हे संग्रहालय उभे केले आहे. अतिशय निसर्गरम्य असे वातावरण तिथे आहे. खडकवासला धरणाच्या बॅकवॉटर जवळ हे ठिकाण असल्यामुळे हवेमध्ये चांगला गारवा असतो!

म्युझियमचा एकूण नकाशा पाहता तिथे आठ गॅलरीज्, ॲम्फी थिएटर, कॅफेटेरिया, ऑडिटोरिअम,सुवेनिअर शाॅप अशी सर्व दालने आहेत.

हे सर्व पाहण्यासाठी तीन-चार तास वेळ लागतो. तसेच इथे” पूना गेस्ट हाऊस”चे नाश्ता आणि भोजन यासाठी चांगले उपहारगृह असल्याने बरोबर खाद्यपदार्थ न्यावे लागत नाहीत आणि तशी परवानगीही नाही.

‘लाईट ॲन्ड लाइफ’ या पहिल्या दालनात सर्व प्रकारचे दिवे बघायला मिळतात. पितळ्याचे, चांदीचे, देवापुढील दिवे, समया, असे विविध प्रकारचे दिवे तेथे बघायला मिळतात.

दुसऱ्या दालनास’ ‘प्रिंट अँड इन प्रिंट ‘असे म्हणतात. तेथे छपाई तंत्राचा शंभर वर्षाचा इतिहास तसेच प्रिंटिंग संबंधी सर्व माहिती आहे. राजा रविवर्म्याची पेंटिंग्ज आहेत. चॉकलेटचे डबे, ट्रे,फ्रेम्स अशा जुन्या वस्तूंचे असंख्य नमुने आहेत.

तिसऱ्या दालना मध्ये 1832 च्या दरम्यान असणाऱ्या चांदी सोन्याच्या वस्तू, दागिने, भातुकली, विविध प्रकारच्या फण्या, सौंदर्य प्रसाधनांचे डबे, अत्तर दाण्या, गुलाब दाण्या इत्यादींचे प्रकार पाहायला मिळतात.

चौथ्या दालनात दुर्मिळ पैठण्यांचा  संग्रह आहे. तिथे प्रवेश करताच इंदिरा संत यांची “पैठणी” कविता वाचायला मिळते. पेशवाईतील विविध पैठण्या तेथे संग्रहित केल्या आहेत.

स्थापत्य कलेशी संबंधित निसर्गाशी मेळ घालणारे असे पाचवे दालन आहे. तिथून जवळच कॅफेटेरिया  आहे. इथे सर्व प्रकारचे खाद्यपदार्थ तसेच उकडीचे मोदक, पुरणपोळी, खास पुणेरी अळू यासह असणारे जेवण मिळते ,त्यामुळे अशा सुंदर जेवणाचा आस्वाद घेऊन पुन्हा फिरायला आणि फोटोग्राफी करायला उत्साह येतो.

बसण्यासाठी सुंदर जागा, समोर दिसणारे धरणाचे पाणी, वाटेत असणारे कमळाचे पाॅड्स आणि शेवटी असणारे शंकराचे मंदिर असा सर्व परिसर बघता बघता वेळ कसा जातो ते कळतच नाही!

साॅव्हनेअर शॉप हे बायकांच्या खरेदीचे आवडते ठिकाण! तिथे विविध प्रकारच्या पिशव्या, टी-शर्टस्, मग्ज्, पेंटिंग्ज, अशा विविध प्रकारच्या वस्तू आहेत.  विंडो शॉपिंग आणि थोडीशी खरेदी तेथे होतेच!

एक दिवस निसर्गरम्य परिसरात आनंदात घालवण्यासाठी हे ठिकाण खरोखरच अप्रतिम आहे! अजित गाडगीळ यांनी  ‘झपाटलेपणाने जगणे’ हा अर्थ खरोखरच सार्थ केला आहे हे  म्युझियम उभारताना!

आमचा सहलीचा दिवस असाच अविस्मरणीय झाला.जेवण आणि फिरणे करून येताना ३ च्या दरम्यान आम्ही सर्वजण योगा सेंटर मधील मनीषा मॅडमच्या घरी चहा, बिस्किटे घेऊन फ्रेश झालो.

लहानशा खेड्यातील त्यांचे घर खूपच छान वाटले. घराभोवती फुलांची झाडे , शेवग्याचे झाड तसेच छोटी छोटी वांग्याची झाडे पाहून आनंद वाटला.. येताना ताजे ताजे मुळे,पालक, चाकवत, शेवगा अशा खास गावाकडच्या ताज्या भाज्या घेतल्या.

निसर्गाचे हे रूप पाहून वाटत होते की, शहराच्या कृत्रिम जीवनापेक्षा हे किती आकर्षक आहे आणि निसर्ग आपल्याला किती देत असतो!

“देता किती घेशील तो कराने..”

अशी आपली अवस्था होते!

संध्याकाळी एकमेकांचा निरोप घेऊन घरी आलो. कालचा   संस्मरणीय दिवस मनामध्ये कायमचा घर करून राहीला!

© सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ दमलेल्या बाबाची गोष्ट… – भाग-२ ☆ श्री प्रदीप केळूसकर ☆

श्री प्रदीप केळुस्कर

?जीवनरंग ?

☆ दमलेल्या बाबाची गोष्ट… – भाग-२ ☆ श्री प्रदीप केळूसकर

(दुसऱ्या दिवशी लग्नाचे रिसेप्शन ठेऊ. आपल्याला उसना उत्साह दाखवावाच लागेल.”) – इथून पुढे  

मी गप्प राहिले, मला चहा करण्याची सुद्धा इच्छा होत नव्हती, अरुण ने सकाळी चहा केला, आपल्यासाठी आणि माझ्यासाठी नाश्ता बनवला. मग अरुणने धावपळ करून एक छोटा हॉल ठरवला. 50 माणसांसाठी लग्नाची तयारी केली, जुहू मधील एका मोठ्या हॉटेलात रिसेप्शन ठेवले. शंभर पत्रिका छापल्या. जवळच्या नातेवाईकांना आणि मित्रमंडळींना पत्रिका आणि काहींना फोन करून आमंत्रण दिले. सर्वांनाच धक्का बसला, माझी आई, बहिणी, अरुणची बहीण, भाचा, भाची सर्वजण आश्चर्यचकित झाले. कोणाला काही अंदाजच नव्हता. अरुण गावी जाऊन देवांना आणि घरच्या माणसांना आमंत्रण देऊन आला.

लग्नाच्या आधी दोन दिवस अमिता आणि जॉन आले. जॉन मला भेटायला आला. मला तो मुळीच आवडला नाही. वाढवलेले केस, दाढी, ढगळ कपडे, तोंडात सतत इंग्लिश मध्ये शिव्या, भारताला कमी लेखणे. पण मी असाहाय्य होते, माझ्या मुलीने त्याच्याशी लग्न केले होते, अरुण ला पण तो आवडला नव्हता हे कळत होते, पण अरुण तोंड मिटून गप्प होता.

यावेळी माझी मुलगी मला अनोळखी वाटली, तिचे प्रेम आटून गेले की काय अशी मला शंका आली. ती तिच्या बाबांना स्पष्टपणे म्हणाली, “अमिता – बाबा, आता मी फारशी भारतात येणार नाही, तुम्हा दोघांना वाटल्यास तुम्ही अमेरिकेत या. जॉन हा अमेरिकेतील मोठा पॉप सिंगर आहे. त्याच्या गाण्याचे त्याला खूप पैसे मिळतात. मी पण नोकरी सोडणार नाही. मला अमेरिकेत डॉलर्स मध्ये पैसे मिळतात. त्यामुळे यापुढे माझ्यासाठी पैसे जमवू नका. आता दोघांनी आराम करा. व्यवसाय कोणाकडे तरी सोपवून मोकळे व्हा.” 

तिचे हे बोलणे ऐकून तिचा बाबा गप्पच झाला. आमच्या समाधानासाठी अमिता आणि जॉन यांचे आमच्या पद्धतीने छोटेसे लग्न लावले. दुसऱ्या दिवशी जुहू मधील मोठ्या हॉटेलमध्ये रिसेप्शन ठेवले. माझ्या माहेरील सर्वजण  हजर होते, अरुण च्या घरची मंडळी पण उपस्थित होती. सर्वजण अभिनंदन करत होते, कौतुक करत होते, पण मला कळत होतं काही काही लोकांच्या डोळ्यात कुचेष्टा होती, काहींच्या सहानभूती. प्रत्येकाच्या डोळ्यात मी वाचत होते, एकुलती एक मुलगी आई-वडिलांना न जुमानता निघाली असल्या धेंडा बरोबर लग्न करून.

दोन दिवस मुंबईत राहून अमिता आणि जॉन अमेरिकेला निघाले. मला वाटले होते जाताना तरी अमिता माझ्या गळ्यात पडेल, मला मिठी मारून रडेल, बाबाला सावरेल… पण तसे काहीच झाले नाही. ती अतिशय आनंदात तिच्या जॉन बरोबर अमेरिकेला गेली.

गाडीतून परत येताना अरुण गप्प गप्प होता. तो तसा मनस्वी, मनातील खळखळणारा समुद्र जाणवू न देणारा. मी मात्र सुन्न झाले होते. कशासाठी आणि कोणासाठी ही सर्व धडपड.?

घराचे दार उघडून आम्ही दोघे घरात आलो आणि अरुण ओक्साबोक्सी रडू लागला. “आपली लेक आपल्याला परकी झाली गं, मुंबईत आली चार दिवस पण परक्यासारखी वावरली. जन्म दिला आपण, लहानाचे मोठे केले आपण, शिक्षण दिले संस्कार दिले आपण आणि त्या जॉन पुढे आपण तिला परके झालो”.

मग मी पुढे झाले, त्याला जवळ घेत मी म्हणाले, “खूप धडपडलास तू आमच्यासाठी, मुंबईत आलास तेव्हा तुझ्याकडे काहीही नव्हतं. आपलं लग्न झालं तेव्हा तू मामाकडे राहत होतास. मग छोटासा व्यवसाय सुरू करून यश मिळवलंस. मग अमिताचा जन्म झाल्यानंतर तू आणखी धडपडलास, स्वतःची जागा घेतलीस, ऑफिस साठी जागा घेतलीस, मग पुण्याला एक फ्लॅट घेतलास, घर, गाडी, फर्निचर, सर्व झालं, पण हे कुणासाठी? माझ्यासाठी आणि त्यापेक्षा लाडक्या लेकीसाठी, किती धडपड करशील रे…? कुणाला त्याची काही किंमत तरी आहे का? ती आपली लेक सांगून गेली, ‘आता सर्व कमी करा’ मग करा ना कमी सर्व, आपणा दोघांसाठी कितीसं काही लागणार आहें?

तुमच्या गावात तुमच्या चुलत भावाबरोबर कोर्टात केस? दहा गुंठे जमिनीसाठी? दहा वर्षे झाली त्या केसला, अजून काही निकाल लागत नाही, कशाला हवी गावची जमीन? तुमचा चुलत भाऊ झाला तरी तो तुम्हा मांजरेकर कुटुंबापैकीच आहे ना? म्हणजे तुझे आणि त्याचे आजोबा एकच. मग मिळू दे त्या मांजरेकर कुटुंबातील माणसाला. दुसऱ्यांनी जमीन खाण्याऐवजी तुझ्या कुटुंबातील एकाला मिळाली तर का नको? घेऊन टाक ती केस मागे, सर्व मांजरेकर कुटुंब एक होऊ दे. 

तुझ्या मित्राचा मुलगा तुझ्याबरोबर व्यवसायात आहे, गेली कित्येक वर्षे इमाने इतबारे काम करतोय, हळूहळू त्याच्या हातात सर्व धंदा दे. पुण्यात तुझ्या बहिणीचा मुलगा अश्विन आहें, त्याला जागा नाही आहें, त्याला म्हणावं आपल्या फ्लॅटमध्ये राहा, हळूहळू सर्व काही कमी करायला हवं रे, जिच्यासाठी राखून ठेवलं होतं तिला त्याची गरज नाही, मग ज्यांना गरज आहे त्यांना का देऊ नये?

सांभाळ स्वतःला, आम्ही बायका रडत असलो तरी आतून खंबीर असतो, लहानपणापासून अनेक त्याग करायची सवय असते बायकांना.

आपल्या आई-वडिलांना, भावा बहिणींना सोडून आम्ही नवऱ्याच्या घरी जातो, आमचं नाव सुद्धा विसरतो आम्ही, पण तुम्ही पुरुष बाहेरून कणखर दाखवता पण मनातून मेणा सारखे मऊ असता. आपली लेक आपल्याला टाटा करून गेली, तिच्या मनातही आलं नाही की आपल्या आई-वडिलांच्या मनाची काय अवस्था झाली असेल. 

नटसम्राट नाटकात गणपतराव बेलवलकर बोलून गेलेत, “आपण उगाच समजतो, आपण आई झालो, बाप झालो, खरं तर आपण कुणीच नसतो. अंतराळात फिरणारा एखादा आत्मा वासनेच्या जिन्याने खाली उतरतो, आणि आम्ही समजतो आई झालो, बाबा झालो’.

अरुण, आपली पोर आपल्यासाठी तीस वर्षांपर्यतच होती असं म्हणायचं, आणि गप्प राहायचं. त्या पेक्षा तूझ्या ऑफिस मधील शरद सतत तुझी काळजी करतो, तुला किंवा मला बरं नसतं तर त्याचा जीव कासावीस होतो, तो जवळचा नाही का?

“अरुण, पुरे झालं हे शहर, इथे धड श्वास घायला मिळत नाही, पुरे झाले पैशासाठी धावणे…. आता इथला पसारा कमी करून तूझ्या गावी जावू, जुने घर आहें, ते नवीन बांधू, तुम्ही मांजरेकर एक व्हा, पुन्हा पूर्वी सारखे सण साजरे करूया.”

माझे बोलणे अरुणला पटले असावे बहुतेक, डोळे पुसत तो मान हलवत होता, मी त्याला थोपटता थोपटता सलील कुलकर्णी म्हणतो ते गाणे गुणगुणु लागले. 

“सांगायचे आहें माझ्या सानुल्या तुला,

दमलेल्या बाबाची कहाणी तुला,

तूझ्या जगातून बाबा हरवेल का गं,

मोठेपणी बाबा तुला आठवेल का गं 

ना.. ना… ना, ना.. ना.. ना…

– समाप्त – 

© श्री प्रदीप केळुसकर

मोबा. ९४२२३८१२९९ / ९३०७५२११५२

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ चिमुटभर आपुलकी… ☆ श्री मकरंद पिंपुटकर ☆

श्री मकरंद पिंपुटकर

? मनमंजुषेतून ?

☆ चिमूटभर आपुलकी… ☆ श्री मकरंद पिंपुटकर

रोजच्याप्रमाणेच आजही तो घाईघाईत कामावर निघाला. आणि दोनच मिनिटांत घरी परतला. बेल वाजल्यावर आईने दार उघडलं, तिला वाटलं – हा बहुधा डबा, किल्ली, पाकीट काहीतरी विसरला धांदरटपणे. पण तो घरात शिरलासुद्धा नाही. दारातूनच आईला म्हणाला, “मी निघालो तेव्हा तू आंघोळीला गेली होतीस. तुला टाटा केला नव्हता, म्हणून परतलो. टाटा. चल, मी पळतो.” म्हणत तो परत गेलापण. आज त्याची रोजची ९:१३ चुकणार होती. पण त्याच्या आईच्या चेहऱ्यावर आज दिवसभर हसू राहणार होतं.

आज ऑफिसासाठी डबा भरताना, तिनं एका छोट्या डबीत लिंबाचं लोणचं घेतलं होतं. तिच्या ऑफिसमधली स्मिता परवा दुसऱ्या कोणाला तरी सांगत होती, तिला सध्या लोणचं खावंसं वाटत होतं म्हणून. 

आज तो ऑफिसहून घरी येताना, गरमागरम बटाटेवडे घेऊन आला होता. त्याचे निवृत्त वडील चाळीतल्या त्यांच्या घरासमोरील व्हरांड्यात बसले होते. याने त्यांना ते वडे देऊ केले. हा शाळकरी असताना, त्याचे वडील ऑफिसमधून येताना, कधीकधी, त्याच्यासाठी असंच काहीतरी चटकमटक आणायचे. त्यांना ते आठवलं आणि मोतीबिंदू झालेले त्यांचे डोळे चष्म्याआडून लुकलुकले. 

त्याच्या गिरणीत – कंपनीत हडताळ चालू होता. खर्च भागवताना तो मेटाकुटीला आला होता. बायकोशी त्याचं यावरूनच बोलणं चाललं होतं. एवढ्यात त्यांचा दुसरीतला मुलगा आपली पिगी बँक घेऊन आला, त्याला दिली आणि म्हणाला, “बाबा, हे घ्या. माझ्याकडे चिक्कार पैसे आहेत.”

लेकीच्या कॉलेजमध्ये आज “साडी डे” होता. हिने आज तिच्या आईची आठवण असलेली तिची सर्वात लाडकी साडी लेकीला दिली.

ऑफिसमध्ये तो तसा कडक शिस्तीचा बॉस म्हणून ओळखला जाई, पण चहा पिऊन परतताना तो रोज वॉचमनसाठी चहा घेऊन येई, हे कोणालाच ठाऊक नव्हतं.

त्याचे वडील रस्त्यावरील एका अपघातात अचानक वारले. हा जेमतेम कॉलेजमधून बाहेर पडलेला. दोन वर्षांपूर्वी ज्या मित्राशी भांडण झाल्याने अबोला धरला होता, तो आला, आणि पैशाचं एक पाकीट त्याला देऊन गेला, “राहू देत, लागतील,” म्हणाला. 

आज ती एक नवी रेसिपी ट्राय करत होती. Sugar free टॅब्लेटस् घालून मिठाई करत होती. सासूबाईंना मधुमेह असल्याने, कालच एका बारशाला तिने त्यांना गोडधोड खाऊ दिलं नव्हतं.

माहेरी असताना लाडकं शेंडेफळ म्हणून खूप नखरे होते तिचे. आज ती आई झाली होती, लेकाला सर्दी झाली होती. रात्री झोपला की शेंबडानं नाक चोंदायचं लेकाचं. त्याला कडेवर उभं धरून, ही रात्ररात्र बसून रहायची. 

आज तिचा वाढदिवस होता. हा ऑफिसमधून येताना एक मस्त सुवासिक गजरा घेऊन आला तिच्यासाठी, आणि नाटकाची दोन तिकिटं.

या धकाधकीच्या जीवनात, सुख मिळवण्यासाठी दरवेळी वारेमाप पैसा खर्च करायची गरज नसते. ही चिमूटभर आपुलकी पुरते, घेणाऱ्यालाही आणि देणाऱ्यालाही.

© श्री मकरंद पिंपुटकर

चिंचवड

मो ८६९८०५३२१५   

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ तुझी राख धुंडाळताना !  ☆ श्री संभाजी बबन गायके ☆

श्री संभाजी बबन गायके

? इंद्रधनुष्य ?

तुझी राख धुंडाळताना ! ☆ श्री संभाजी बबन गायके 

त्यादिवशी रडता नाही आलं,राजा ! माझं बापाचं काळीज देहाच्या आत होतं… क्षत विक्षत. आणि माझा देह जबाबदारीच्या वस्त्रांनी पुरता झाकलेला होता. डोळ्यांवर कातडं नाही ओढून घेता येत. डोळ्यांना पहावंच लागलं तुझ्याकडे. आणि मी पहात राहिलोही एकटक…. आणखी काही क्षणानंतर हे पाहणंही थांबणार होतं.

तुझ्या पलटणीचा मी प्रमुख. पलटणीतील सारेच माझे बच्चे. माझ्या एका इशाऱ्यासरशी मरणावर झेप घेणारे सिंहाचे छावे… वाघाचे बछडे. तू तर माझ्या रक्ताचा अंश. माझ्याच पावलांवर हट्टाने पाऊल टाकीत टाकीत थेट माझ्याच पंखांखाली आला होतास. कोणतीही मोहिम असू देत… तुला कधी मागे रेंगाळताना पाहिलं नाही. उलट पलटणीच्या म्होरक्याचा पोरगा म्हणून तू पुढेच सरसावयचा सर्वांआधी… बापाला कुणी नावे ठेवू नये म्हणून. 

आतापर्यंत तू प्रत्येकवेळी परत आला होतास दुश्मनांना यमसदनी धाडून. एखाद्या मोहिमेत आपल्यातलं कुणी कामी आल्याची बातमी यायची तेंव्हा धस्स व्हायचं काळजात. गोळी काही नातं विचारून शिरत नाही शरीरात. असे अनेक प्रसंग आले आयुष्यात जेंव्हा सैनिकांच्या मृतदेहांवर पुष्पचक्र अर्पण करावे लागले…. पूर्ण गणवेशात ! तूही असायचास की मागच्या एखाद्या रांगेत. तुझ्याच एखाद्या साथीदाराच्या शवपेटीला तुलाही खांदा द्यावा लागायचा. 

मी समोर आलो की तू  मला अधिक त्वेषाने सॅल्यूट ठोकायचा…. आणि मला ‘सर’ म्हणायचा. तुझ्या तोंडून ‘पपा’ अशी हाक ऐकल्याला खूप वर्षे उलटून गेली होती. लहानपणी तुझा सहवास नाही मिळाला तसा… मी सतत सीमेवर असायचो आणि तू तुझ्या आईसोबत दूरच्या गावी. बढती झाली आणि पलटणीत कुटूंब आणायची मुभा मिळाली तर तू सैनिक व्हायला निघून गेलास. परत आलास ते रुबाबदार अधिकारी होऊनच. तुझ्याकडे पाहताना मी माझं मलाच आरशात न्याहाळतो आहे, असं वाटायचं. 

‘पपा, तुमच्याच पलटणीत पोस्टेड होतोय…’ तुझा निरोप आला आणि पाठोपाठ ” सेकंड लेफ्टनंट गुरदीप सिंग सलरिया रिपोर्टींग सर ! ” म्हणत तू  पुढ्यात हजर झालास. वाटलं पुढं होऊन तुला घट्ट मिठी मारावी. पण तुझ्यात आणि माझ्यात गणवेश होता…. वरिष्ठ अधिकारी आणि कनिष्ठ अधिकाऱ्यास पाऊलभर दूर उभं राहायला लावणारा. मात्र घट्ट हस्तांदोलन मात्र केलं मी. तू जन्मलास तेंव्हा तुझा एवलासा हात हाती घेतला होता… ते आठवलं. तोच हात आता सामर्थ्यशाली झाला आहे, या हातात आता अधिकार आलेला आहे… हे जाणवलं. मी म्हटलं होतं, ” वेलकम ऑफिसर ! ” यावर तुझ्या डोळ्यांत चमक दिसली होती. आज तुझे डोळे मिटलेत… ती चमक आता या म्हाताऱ्या होत चाललेल्या डोळ्यांना दिसणार नाही…. आणि आयुष्याच्या सायंकाळी मी कुणाच्या नजरेनं पाहणार? 

त्या दिवशीही तू नेहमीप्रमाणे मोहिमेवर गेला होतास. माझं सगळं लक्ष असायचं. पलटणीतली सारी पोरं माझीच तर होती. आणि तू त्यांच्यासोबत होतास, त्यामुळे तर ही भावना अधिकच तीव्र व्हायची. खरं तर तुझी इथली पोस्टींग आता जवळजवळ संपत आली होती. दुसऱ्या एखाद्या शांत ठिकाणी गेला असतास कदचित फार लवकर… तू गेलास खरा… पण कायमच्या शांत ठिकाणी. 

निरोप आला ! निघायला पाहिजे. सर्व तयारी झाली आहे. गाडी उभी आहे. मला तयार व्हायला पाहिजे. पूर्ण लष्करी गणवेश परिधान करायलाच पाहिजे… सैनिकाला अंतिम निरोप द्यायचा आहे. 

पण आज स्वत:चा मुलगा गेल्याची बातमी स्वत:तल्या बापाला सांगावी तरी कशी? एक कमांडिंग ऑफिसर म्हणून मुलाच्या आईला कसं सांगावं की तुझा मुलगा शहीद झालाय? आणि नवरा म्हणून बायकोला काय सांगावं? एवढा मोठा हल्ला तर कोणत्याही लढाईत झाला नव्हता माझ्यावर.

नेहमीच्या सफाईने आवरलं सगळं. तू फुलांच्या गालिच्यात पहुडलेला होतास. देहावर तिरंगा लपेटून. खरं तर तुझ्या जागी मी असायला हवं होतं. मीही मोहिमा गाजवल्या तरूणपणी. पण माझ्या वाटची गोळी नव्हती दुश्मनाच्या बंदुकीत. आणि असलीच तर तू आता तुझं नाव माझ्या नावाच्या आधी जोडलं होतं… गोळीला आपलं काम माहित होतं… ज्याचं नाव त्याच्यात देहात सामावून जायचं. 

छातीवर गोळ्या झेलल्याचं समजलं तुझ्या सोबत्यांकडून.. जे बचावले होते दुश्मनांच्या हल्ल्यातून. त्याआधी तू कित्येक दुश्मन उडवले असंही म्हणताहेत ही पोरं. छातीवर गोळी म्हणजे मानाचं मरण आपल्यात. इथं होणारी जखम जीवघेणी खरी पण जास्त शोभून दिसणारी. 

दोघा जवानांनी तालबद्ध पावलं टाकीत पुष्पचक्र पुढे नेलं. मी ठरलेल्या सवयीनुसार पावलं टाकीत तुझ्या देहाजवळ पोहोचलो. सर्वत्र शांतता… दूरवरच्या झाडांवर पाखरं काहीतरी सांगत होती एकमेकांना. कदाचित मोठं पाखरू लहान पाखराला… दूर कुठं जाऊ नकोस फार ! असं सांगत असावं…  हे मला आता तुला सांगता येणार नव्हतं.. तू श्रवणाच्या पल्याड जाऊन पोहोचला होतास… बेटा ! 

खाली वाकून ते पुष्पचक्र मी तुला अर्पण केलं… काळजीपूर्वक. एक पाऊल मागे सरकलो आणि खाडकन तुला सॅल्यूट बजावला… अखेरचा ! तुझ्या शवाला खांदा दिला. किती जड होतं ओझं म्हणून सांगू… साऱ्या पृथ्वीचा भार एकाच खांद्यावर आलेला. आणि मला खांदा द्यायला तू नसणार याची दुखरी जाणीव तर आणखीनच जड. 

पुढचं काही आठवत नाही. तुझ्या चितेच्या भगव्या ज्वाळांनी डोळे दिपून गेले… अमर रहेच्या घोषणांनी कान तुडुंब भरून गेलेले होते. आसवांना आज किमान सर्वांसमोर प्रकट व्हायला मनाई होती…. आसवं सुद्धा हुकुमाची ताबेदार. त्यांना माहित होतं एकांतात मी त्यांना काही अडवणार नव्हतो ! 

सकाळी तुझ्या राखेपाशी गेलो. एवढा देह आणि एवढीशी राख. मरण सर्व गोष्टी अशा लहान करून टाकते. अलगद हात ठेवला तुझ्या राखेवर…. अजूनही धग होती थोडीशी. असं वाटलं तुझ्या छातीवर तळवा ठेवलाय मी. असं वाटलं माझ्या या तळव्यावर तुझा हात आहे….. त्या मऊ राखेत माझा हात खोलवर गेला आपसूक… आणि हाताला काहीतरी लागलं ! 

तुझं काळीज भेदून गेलेली गोळी…. काळी ठिक्कर पडलेली आणि अजूनही तिच्यातली आग शाबूत असलेली. जणू पुन्हा एखादं हृदय भेदून जाईल अशी. तशीच मूठ बंद केली…. गोळीसह. 

तुला वीरचक्र मिळणार होतंच… आणि ते स्विकारायला मलाच जावं लागणार होतं.. तसा मी गेलोही. तुझ्या पलटणीचा प्रमुख म्हणून नव्हे तर तुझा बाप म्हणून. तोवर भरपूर रडून झालं होतं एकांतात… तुझी आई होतीच सोबतीला. शौर्यचक्र स्विकारताना हात किचिंत थरथरले पण सावरावं लागलं स्वत:ला. अनेक डोळे माझ्याकडे लागलेले होते…. सेकंड लेफ्टनंट गुरदीप सिंग सलारिया यांचे वडील त्यांना मरणोत्तर दिले गेलेले शौर्यचक्र स्विकारताना रडले असते तर पुढे ज्यांना सैन्यात जाऊन मर्दुमकी गाजवायची आहे… त्यांची पावलं नाही का अडखळणार? आणि माझ्या गुरूदीपलाही हे रुचलं नसतं ! 

आजही ते शौर्यचक्र आणि ती गोळी मी जपून ठेवली आहे… त्याची आठवण म्हणून. माझ्या पोराने निधड्या छातीनं दुश्मनांचा मुकाबला केलेला होता…. ती गोळी म्हणजे त्याच्या पराक्रमाची गाथा सांगणारा एक दस्तऐवज… तो जपून ठेवलाच पाहिजे ! 

(दहा जानेवारी, १९९६. पंजाब रेजिमेंटच्या जम्मू कश्मिरमध्ये तैनात असलेल्या तेविसाव्या बटालियनचे कमांडिंग ऑफिसर होते लेफ्ट.कर्नल एस. एस. अर्थात सागर सिंग सलारिया साहेब आणि त्याच बटालियनमध्ये सेकंड लेफ्टनंट म्हणून कार्यरत होते त्यांचे सुपुत्र गुरदीप सिंग सलारिया साहेब….. एकविसाव्या वर्षी सेनेत आले आणि तेविसाव्या वर्षी देशाच्या कामी आले. एका धाड्सी अतिरेकीविरोधी कारवाईत गुरदीप साहेबांनी प्राणपणाने लढून तीन अतिरेक्यांना टिपले परंतू दुसऱ्या एका अतिरेक्याने अगदी नेम धरून झाडलेली गोळी छातीत घुसून गुरदीपसिंग साहेब कोसळले आणि अमर झाले. त्यांना मरणोत्त्तर शौर्य चक्राने सन्मानित करण्यात आले. या शौर्यचक्रालाच ही गोळी बांधून ठेवलेली आहे साहेबांनी…..   सेनेतून निवृत्त झालेले लेफ़्ट. कर्नल सागर सिंग सलारिया आता मुलाच्या आठवणीत जीवन जगत आहेत. गुरदीप सिंग साहेबांच्या मातोश्री तृप्ता २०२१ मध्ये स्वर्गवासी झाल्या. त्यांची ही कहाणी नुकतीच वाचनात आली. ती आपणासाठी जमेल तशी मांडली. इतरांना सांगावीशी वाटली तर जरूर सांगा.) 

© श्री संभाजी बबन गायके 

पुणे

9881298260

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ इतके मला पुरे आहे – लेखक :अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सौ. सुचिता पंडित ☆

? वाचताना वेचलेले ?

इतके मला पुरे आहे लेखक :अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सौ. सुचिता पंडित ☆

बसायला आराम खुर्ची आहे

हातामध्ये पुस्तक आहे

डोळ्यावर चष्मा आहे

इतके मला पुरे आहे ।।१।।

*

निसर्गामध्ये सौंदर्य आहे

निळे आकाश आहे

हिरवी झाडी आहे

सूर्योदय, पाऊस, इंद्रधनुष्य आहे

इतके मला पुरे आहे ।।२।।

*

जगामध्ये संगीत आहे

स्वरांचे कलाकार आहेत

कानाला सुरांची जाण आहे

इतके मला पुरे आहे ।।३।।

*

बागांमध्ये फुले आहेत

फुलांना सुवास आहे

तो घ्यायला श्वास आहे

इतके मला पुरे आहे ।।४।।

*

साधे चवदार जेवण आहे

सुमधुर फळे आहेत

ती चाखायला रसना आहे

इतके मला पुरे आहे ।।५।।

*

जवळचे नातेवाईक आहेत,

मोबाईलवर संपर्कात आहेत

कधीतरी भेटत आहेत,

इतके मला पुरे आहे ।।६।।

*

डोक्यावरती छत आहे

कष्टाचे दोन पैसे आहेत

दोन वेळा दोन घास आहेत

इतके मला पुरे आहे ।।७।।

*

देहामध्ये प्राण आहे

चालायला त्राण आहे

शांत झोप लागत आहे

इतके मला पुरे आहे ।।८।।

*

याहून जास्त आपल्याला काय हवे आहे?

जगातील चांगले घेण्याचा

आनंदी आशावादी राहण्याचा

विवेक हवा आहे

इतके मला पुरे आहे ।।९।।

*

शरीर माझे योग्य साथ देते आहे,

स्मृतीची मला साथ आहे,

मी कुणावरही आज अवलंबून नाही

इतके मला पुरे आहे ll10ll

*

इतकेच मला पुरे आहे!

लेखक – अज्ञात 

प्रस्तुती : सौ. सुचिता पंडित

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ “चला बालीला…” – भाग – १ ☆ सौ राधिका भांडारकर ☆

सौ राधिका भांडारकर

☆ “चला बालीला…” – भाग – १ ☆ सौ राधिका भांडारकर 

२७/११/२३

बाली इंडोनेशियातील एक बेट.  जावा बेटाच्या पूर्वेकडचे हे बेट.  वास्तविक जावा, सुमित्रा, या हिंदी महासागरातल्या बेटांबद्दल शालेय जीवनात भूगोलातून अभ्यास केला होताच. बाली हेही याच बेटांपैकी असलेलं एक सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थळ.  कला, संगीत,  नृत्य,समुद्र किनारे आणि मंदिरे यासाठी प्रसिद्ध असलेलं एक नितांत सुंदर बेट आणि मित्र परिवारांच्या समवेत या बेटास प्रत्यक्ष भेट देण्याचे माझे एक बकेट लिस्ट मधले स्वप्न पूर्ण होण्याची संधी मला मिळाली.  जीवनातल्या अनेक भाग्य क्षणांच्या संग्रहात याही अनमोल क्षणाची भर पडली.

दिनांक २७ नोव्हेंबर २०२३ रोजी आम्ही चक्क सिंगापूर एअरलाइन्सच्या एस क्यू 423 या फ्लाईटने *मुंबई ते सिंगापूर (चांगी विमानतळ) ते डेन पसार (न्गुराह राय विमानतळ) असा प्रवास करून बाली या बेटावर येऊन पोहोचलो. आम्ही बुक केलेले रिसाॉर्ट कर्मा चांडीसार हे विमानतळापासून जवळजवळ दोन तासाच्या अंतरावर होते. पण ड्राईव्ह अतिशय रमणीय होता.  सुंदर रस्ते,सभोवती अथांग सागर, झाडी, डोंगर आणि चौकाचौकातले उंच, कलात्मक, रामायणातली कॅरेक्टर्स शिल्पे! भव्य बांधकाम असलेली प्रवेशद्वारे. कोणती कोणती छायाचित्रे टिपावीत हेच कळेनासं झालं होतं.  मग ठरवलं आजचा तर पहिलाच दिवस आहे. छायाचित्रे टिपायला आपल्याजवळ अजून पुढचे सहा दिवस आहेतच की.

पण डेनपसार शहरात प्रवेश करता क्षणीच जाणवले होते ते इथली हिंदू धर्मीय जीवन पद्धती.  रामायण या पवित्र ग्रंथांशी त्यांचं असलेलं जन्मजात खोल नातं.  कसं असतं ना माणसाचं ? धर्म, संस्कृती, कला यांचं एकात्म्य हे क्षणात आपल्याला आपुलकीच्या नाते बंधनात जोडतं. मग वातावरणातल्या बदलाशी आपण नकळत तुलनात्मक रित्या बांधले जातो.

मी पटकन म्हणाले,” मला तर इथे आल्यापासून गोव्यात आल्यासारखंच वाटतंय!  इथल्या बोगन वेली, जास्वंदी, चाफा, कर्दळ, शिवाय नारळ, केळी, बांबू हे तर सारं कोकण —केरळ यांचीच आठवण करून देत होतं.  भारत आणि इंडोनेशियाचं हे मनातल्या मनात केलेलं एकत्रीकरण अर्थातच खूप गंमतीदार होतं.

आमचा सहा जणांचा ग्रुप.  मी, विलास, सतीश, साधना, सुमन आणि प्रमोद.  सतीश चे कर्मा ग्रुपचे सदस्यत्व असल्यामुळे आम्हाला कर्मा चांडीसार या प्राॅपर्टी मध्ये एक सुंदर ऐसपैस बंगला मिळाला होता.  तोही अगदी समुद्रकिनाऱ्याला लागूनच.  हिंदी महासागराचं जवळून  झालेलं ते नयनरम्य दर्शन केवळ अप्रतिम! आमचा सहा जणांचा ग्रुप एकदम आनंदला.

आम्ही सारे पंच्याहत्तरी  पार केलेले, खूप वर्षांपासून मैत्रीच्या घट्ट बंधनात बांधलेले. क्षणात अक्षरशः केवढे तरी तरुण झालो आणि या सहलीत आपण काय काय साहसे करू शकतो याविषयीचे बेत आखू लागलो. चालू ,चढू, पोहू करू की सारं…!! अंतर्मन म्हणायचं,” वय विसरू नका.” पण निसर्गाच्या सानिध्यात माणूस वय विसरतो हे मात्र खरं.

२८/११/२३ 

बालीत (इंडोनेशिया) प्रवेश केल्यावर हवाई अड्ड्यावरच आपण एकदम मिलियाॅनिअर झाल्याचा भास का असेना पण सुखद अनुभव आला. 

पोहोचल्याबरोबरच आम्ही प्रथम व्हिसाची प्रक्रिया पूर्ण केली. इथे व्हिसा ऑन अरायव्हल असतो. व्हिसासाठी आम्हाला प्रत्येकी ३३ डॉलर भरावे लागले. नंतर मनी चेंजरकडून इंडोनेशियन रुपयाची (आयडीआर) करन्सी घेतली आणि काय सांगू अक्षरशः पैशांचा पाऊसच पडला. केवळ ५० हजारा.चे जवळजवळ ८८ लाख इंडोनेशियन रुपये हातात आले. एकेक लाखाच्या, पन्नास हजारांच्या, वीस हजारांच्या च्या भरपूर नोटा.  पर्समध्ये मावेनात. क्षणात खूप श्रीमंत झाल्याचा एक मजेशीर अनुभव मात्र घेतला.

पहिल्या दिवशी टॅक्सीने आम्ही आमच्या आरक्षित बंगल्यावर जेव्हा आलो तेव्हा टॅक्सीचे बिल साडेनऊ लाख इंडोनेशीयन  रुपये झाले होते, त्याचीही गंमत वाटली.

तसे आम्ही दुपारीच पोहोचलो होतो.  विमानात खाणे झालेच होते तरीही थोडे ताजेतवाने होत बरोबर आणलेल्या खाद्यपदार्थांचा आम्ही समाचार घेतला.  सोबत सॉफ्ट ड्रिंक्स, रेड वाइन वगैरे होतंच. 

आमचा बंगला अगदी वेल फर्निश्ड आणि सर्व सुविधायुक्त होता. सुरेख सजवलेले अद्ययावत किचनही  होते.

पहिल्या दिवशी थोडा आरामच करायचे ठरवले. बंगल्याजवळच स्विमिंग पूल होता व तेथे असणार्‍या रेस्टॉरंट पलीकडे अथांग पसरलेला शांत. गूढ, हिंदी महासागर. या सागरात ठिकठिकाणी मोठ मोठी  जहाजे दिसत होती.   काही व्यापारीही असतील कारण बाली हे सुप्रसिद्ध व्यापारी बेट आहे. काही पर्यटन बोटीही असतील तर काही मच्छीमारांच्या बोटी होत्या.  मच्छीमारी हा इथला महत्त्वाचा व्यवसाय आहे.बालीचं हे प्राथमिक दर्शन मनभावन होतं.

हळूहळू सूर्य क्षितिजा पलीकडे गेला. सोनेरी किरणांनी आकाश रंगले आणि मग त्यातूनच अंधाराची वाट पसरत गेली. मात्र मानवनिर्मित रोषणाईने संपूर्ण सागर किनारा चमकू लागला. परिसरातील संमीश्र शांतता, गुढता अनुभवत आम्ही परतलो.  सतीशने दुसऱ्या दिवशीचा साईट सीईंगचा कार्यक्रम आखलेला होताच.

– क्रमश: भाग पहिला 

© सौ. राधिका भांडारकर

ई ८०५ रोहन तरंग, वाकड पुणे ४११०५७

मो. ९४२१५२३६६९

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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