हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 176 – गीत – सुबह सुबह देखा है सपना…. ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका एक अप्रतिम गीत – सुबह सुबह देखा है सपना।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 176 – गीत  – सुबह सुबह देखा है सपना…  ✍

सुबह सुबह देखा है सपना

तेरी गोदी में सिर अपना।

अवचेतन में जो कुछ होता

वही स्वप्न में ढल जाता है

अंधे को दिख जाती दुनिया

पगविहीन भी चल जाता है।

ऐसा ही कुछ किस्सा अपना

सुबह सुबह देखा है सपना।

 *

कहते सपने वे सच होते

जो भी देखे जायें सबेरे

कितनी आँखें सच्ची होंगी

कितने लोग तुम्हें हैं घेरे।

अपना तो जीवन ही सपना

सुबह सुबह देखा है सपना

 *

सुबह सुबह देखा है सपना

तेरी गोदी में सिर अपना।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 175 – “एक चित्र बादल का…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  “एक चित्र बादल का...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 173 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “एक चित्र बादल का...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

सूरज की किरनों को

ऐसे मत टाँक री

फिसल रहा हाथों से

ईश का पिनाक री

 *

खुद की परछाईं जो

दुबिधा में छोटी है

उसको इतना छोटा

ऐसे मत आँक री

 *

ऐंठ रही धूप  तनिक

खड़ी कमर हाथ धरे

देखती दुपहरी को

ऊँची कर नाक  री

 *

एक चित्र बादल का

ऐसे दिखाई दे

ज्यों दबा दशानन हो

बाली की काँख री

 *

छाया छत से छूटी

टँगी दिखी छींके पर

लगा छींट छप्पर की

जा गिरी छमाक री

 *

घिर आई शाम धूप

फुनगी पर पहुँच गई

पीली उम्मीद बची

एक दो छटाँक री

 *

हौले हौले नभ में

उतर रहा चन्द्रमा

लगता है लटक रही

मैंदा की गाँकरी

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

06-02-2024 

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈



हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पिरामिड ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पिरामिड  ? ?

जाने मुझमें

क्या नज़र आया;

मित्रों ने

पिरामिड बनाया,

मुझे फलदार

वृक्ष पर चढ़ाया;

मैं तोड़-तोड़कर

नीचे फेंकता रहा फल,

घनी पत्तियों से

देख भी नहीं

पा रहा था

किसे कितना मिला,

अब,

पेड़ पर

कोई फल नहीं बचा;

पत्तियों से

निकलकर देखा,

एक भी मित्र

नहीं था खड़ा,

पेड़ अब मेरी

दयनीयता पर हँस रहा था;

वृक्ष पर आकर भी

बिना फल चखे

लौटने पर

व्यंग्य कस रहा था,

कथित मित्र

चर्चा कर रहे थे;

आनेवाले अवसर

का नेता चुन रहे थे,

पेड़ अगले मौसम की

तैयारी कर रहा था;

मैं चुपचाप

पेड़ से उतर रहा था!

© संजय भारद्वाज 

(अपराह्न 12:28 बजे, 6 दिसंबर 2015)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




English Literature – Poetry ☆ – Apostle of Tolerance… – ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present his awesome poem ~ Apostle of Tolerance… ~We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji, who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages for sharing this classic poem.  

~ Apostle of Tolerance…  ~?

They clasped her viciously,

Like a sharp piercing spear

Tried  hard  to  free  them  off

But Alas! She couldn’t do so…!

*

Some unwanted ghastly thorns

audaciously  pricked  her feet

Tried  hard  to  pull  them out

But Alas! She couldn’t do so..!

*

Some  unwanted  pricks came

to  wrap  around  her  fingers,

Tried  hard  to  jerk  them  off

But Alas! She couldn’t do so…!

*

Yet her bleeding soul kept smiling

despite  the  repeated  lancinations,

That’s why for

enduring ever excruciating pain…

Woman is called ‘Apostle of Tolerance’..!

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈




हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 279 ⇒ अस्मिता… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “अस्मिता।)

?अभी अभी # 280 ⇒ अस्मिता… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

अहंकार, आसक्ति और अस्मिता तीनों एक ही परिवार के सदस्य हैं। वे हमेशा आपस में मिल जुलकर रहते हैं। अस्मिता सबसे बड़ी है, और अहंकार और आसक्ति जुड़वा भाई बहन हैं। वैसे तो जुड़वा में कोई बड़ा छोटा नहीं होता, फिर भी अहंकार अपने आपको आसक्ति से बड़ा ही मानता है। अहंकार को अपने भाई होने का घमंड है, जब कि आसक्ति अहंकार से बहुत प्रेम करती है, और उसके बिना रह नहीं सकती।

अहंकार आसक्ति को अकेले कहीं नहीं जाने देता। अहंकार जहां जाता है, हमेशा आसक्ति को अपने साथ ही रखता है।

अहंकार की बिना इजाजत के आसक्ति कहीं आ जा भी नहीं सकती।

अस्मिता को याद नहीं उसका जन्म कब हुआ।

कहते हैं अस्मिता की मां उसे जन्म देते समय ही गुजर गई थी। अस्मिता के पिता यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर सके और तीनों बच्चों यानी अस्मिता, अहंकार और आसक्ति को अकेला छोड़ कहीं चले गए। बड़ी बहन होने के नाते, अस्मिता ने ही अहंकार और आसक्ति का पालन पोषण किया।।

अब अस्मिता ही दोनों जुड़वा भाई बहनों की माता भी है और पिता भी। अहंकार स्वभाव का बहुत घमंडी भी है और क्रोधी भी। जब भी लोग उसे अनाथ कहते हैं उसकी अस्मिता और स्वाभिमान को चोट पहुंचती है और वह और अधिक उग्र और क्रोधित हो जाता है, जब कि आसक्ति स्वभाव से बहुत ही विनम्र और मिलनसार है। वह सबसे प्रेम करती है और अस्मिता और अहंकार के बिना नहीं रह सकती।

कभी कभी अहंकार छोटा होते हुए भी अस्मिता पर हावी हो जाता है। उसे अपने पुरुष होने पर भी गर्व होता है। रोज सुबह होते ही वह अस्मिता और आसक्ति को घर में अकेला छोड़ काम पर निकल जाता है। एक तरह से देखा जाए तो अहंकार ही अस्मिता और आसक्ति का पालन पोषण कर रहा है।।

अहंकार को अपनी बड़ी बहन अस्मिता और जुड़वा बहन आसक्ति की बहुत चिंता है। बड़ी बहन होने के नाते अस्मिता चाहती है अहंकार शादी कर ले और अपनी गृहस्थी बना ले, लेकिन अस्मिता और आसक्ति दोनों अहंकार की जिम्मेदारी है, वह इतना स्वार्थी और खुदगर्ज भी नहीं। वह चाहता है अस्मिता और आसक्ति के एक बार हाथ पीले कर दे, तो बाद में वह अपने बारे में भी कुछ सोचे।

लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर होता है। अचानक अस्मिता के जीवन में विवेक नामक व्यक्ति का प्रवेश होता है, और वह बिना किसी को बताए, चुपचाप, अहंकार और आसक्ति को छोड़कर विवेक का हाथ थाम लेती है। एक रात अस्मिता विवेक के साथ ऐसी गायब हुई, कि उसका आज तक पता नहीं चला।।

बस तब से ही आज तक अहंकार और आसक्ति अपनी अस्मिता को तलाश रहे हैं, लेकिन ना तो अस्मिता ही का पता चला है और ना ही विवेक का।

अस्मिता का बहुत मन है कि विवेक के साथ वापस अहंकार और आसक्ति के पास चलकर रहा जाए। लेकिन विवेक अस्मिता को अहंकार और आसक्ति से दूर ही रखना चाहता है। बेचारी अस्मिता भी मजबूर है।

उधर अस्मिता के वियोग में अहंकार बुरी तरह टूट गया और बेचारी आसक्ति ने तो रो रोकर मानो वैराग्य ही धारण कर लिया है।

अगर किसी को अस्मिता और विवेक का पता चले, तो कृपया सूचित करें।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सीता की व्यथा… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता ‘सीता की व्यथा…’।)

☆ कविता – सीता की व्यथा… ☆

मै,

भू पुत्री,

भू पर,

अबोध,असहाय,

पड़ी अकेली,

किसका दोष,

परिस्थिति,भाग्य,

सहलाया था,

हवा ने,

भाग्य था,

 पा लिया,

जनक ने,

पाल लिया,

महलों में,

पुत्री बनी,

जनक की,

बड़ी हुई,

चिंता हुई,

विवाह की,

शर्त रखी,

धनुष भंग,

जो करे,

वो जीते,

सीता को,

पुष्प वाटिका,

राम मिले,

सीता ने,

मन को,

वार दिया,

धनुषभंग कर,

जीत लिया,

पाया नहीं,

राम ने,

कई सपने,

कई अरमान,

अवध में,

 फिर वनवास,

 छाया बनकर,

साथ चली,

 पर क्या,

राम की,

हो पाई,

नारी पीड़ा,

हुई अपह्रत,

अशोक वाटिका,

केवल राम,

रावण वध,

सोच रही,

लेने आओगे,

नहीं आए,

संदेश आया,

पैदल आओ,

अग्नि परीक्षा,

देनी होगी,

नारी ही,

देती आई,

अग्नि परीक्षा,

पुरुष तो,

अहंकार में,

लिप्त है,

सह गई,

लोकाचार में,

अयोध्या में,

फिर परीक्षा,

फिर वनवास,

पुत्र जन्म,

बिन परीक्षा,

नहीं स्वीकार,

थक गई राम,

तुम्हें पाते पाते,

तुम मर्यादा पुरुषोत्तम,

की परिधि से,

बाहर नहीं निकले,

मै थक गई,

देवी बनते बनते,

तुमने मुझे जीता,

पाया नहीं राम,

मै लेती हूं राम,

पृथ्वी में विश्राम… 

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 164 ☆ # बसंत के आगमन पर # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# दिल और दिमाग #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 164 ☆

 # बसंत के आगमन पर #

जब सुबह की अल्हड़ किरणें

कलियों को चूमती है

तब यह सारी कायनात

प्रेम के रंग में डूबकर

मस्ती मे झूमती है

*

फूलों के मेले लगते हैं

स्वागत द्वार

हर तरफ सजते हैं

तरूणाई मदहोशी में

बहकती है

युवक युवतियां

उन्माद में चहकती हैं

हर तरफ

मनमोहक सुगंध है

हर काया में

मंत्र मुग्ध करती गंध है

ये विचरण करती

यौवन से लदी बालाएं

अंग अंग पर लिपटी

हुई मालाऐं

दिन-रात

प्रेम की मदिरा में डूबे हैं

आंखों ही आंखों में

छुपे हुए मंसूबे हैं

यह बयार हर दिल में

प्रीत जगाती है

बसंत के मादक मौसम में

बसंत सेना,  चारूलता

की याद दिलाती है

*

क्या यह ऋतु राज बसंत

अपने आगमन के साथ

बसंत सेना – चारूलता की

कहानी दोहरायेगा ?

क्या कोई वीर आर्यक

समस्थानक का मद

चूर कर पायेगा ?

या

पतझड़ के बाद आया हुआ

यह मदमस्त बसंत

ऋतु राज बसंत

इन रंगीनियों में डूबकर

झूठ और फरेब में छुपकर

मदिरा के मोह में

अप्सराओं की खोह में

माया से लिपटा हुआ

पद-प्रतिष्ठा के अहंकार से

चिपटा हुआ

हमेशा की तरह

चुपचाप चला जायेगा ?

या व्यवस्था के हाथों

बिक जायेगा ?

या जाते जाते

कोई परिवर्तन लायेगा ? /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




सूचनाएँ/Information ☆ प्रणेता साहित्य न्यास द्वारा श्रीमती एवं श्री खुशहाल सिंह पयाल स्मृति सम्मान 2024 हेतु प्रकाशित काव्य संग्रह आमंत्रित ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

श्री एस. जी. एस. सिसोदिया

🌹प्रणेता साहित्य न्यास द्वारा श्रीमती एवं श्री खुशहाल सिंह पयाल स्मृति सम्मान 2024 हेतु प्रकाशित काव्य संग्रह आमंत्रित 🌹

प्रणेता साहित्य न्यास द्वारा श्रीमती एवं श्री खुशहाल सिंह पयाल स्मृति सम्मान 2024 हेतु जनवरी 2020 से 31 दिसंबर 2023 तक प्रकाशित सभी पद्य रचनाओं की कृति आमंत्रित हैं।

1. रचनाएँ काव्य के किसी भी रूप (कविता, हाइकु, दोहे, खण्ड काव्य, महा काव्य, गीत, आदि) में हो सकती हैं।

2. इस सम्मान हेतु कृपया प्रणेता साहित्य न्यास के सदस्य ही अपनी कृति प्रेषित करें। जिन साहित्यकारों की सदस्यता नहीं है और इस सम्मान हेतु अपनी कृति प्रेषित करना चाहते हैं, वे संस्थान की सदस्यता ग्रहण करने के उपरांत अपनी कृति प्रेषित कर सकते हैं। इस हेतु वे संस्थान के महासचिव अथवा अध्यक्ष से सम्पर्क कर सकते हैं।

3. पुरस्कार प्राप्ति हेतु रचनाकार की उपस्थिति अनिवार्य है।

4. पुरस्कृत रचनाकार को प्रथम पुरस्कार के रूप में 2100/- व द्वितीय पुरस्कार के रूप में 1500 और तृतीय पुरस्कार के रूप में 1100 धनराशि, अंग वस्त्र तथा सम्मान पत्र से सम्मानित किया जाएगा।

5. दिल्ली या दिल्ली से बाहर के रचनाकारों को किसी प्रकार का यात्रा-भत्ता एवं निवास-स्थान संस्था द्वारा उपलब्ध नहीं करवाया जाएगा।

6. प्रत्येक कृति की दो प्रतियों के साथ, साहित्यकार का साहित्यिक परिचय, दो पासपोर्ट साइज़ फोटोग्राफ पुस्तक के साथ भेजना अनिवार्य है।

7. प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथि 31 मार्च, 2024 है।

8. प्रविष्टि भेजने का स्थान – अध्यक्ष, प्रणेता साहित्य संस्थान, 1654 – टाइप 4, दिल्ली आवासीय परिसर, गुलाबी बाग़, दिल्ली-110007

अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें-

1. एस. जी. एस. सिसोदिया, अध्यक्ष, मो. -9868917588 ईमेल – [email protected]

2. श्रीमती शकुंतला मित्तल, महासचिव, मो. 9910809231

 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ भोग… ☆ प्रा तुकाराम दादा पाटील ☆

श्री तुकाराम दादा पाटील

? कवितेचा उत्सव ?

☆ भोग☆ प्रा तुकाराम दादा पाटील ☆

फेकतो फेकू कुणीही जे नको ते बोलताना

आणखी गोत्यात येतो सत्य सारे झाकताना

*

जोडला होता जिव्हाळा स्वार्थ साधाया जरासा

द्वेष तो बाहेर आला संशयाने वागताना

*

प्रेम धागे बांधलेले घट्ट होते काय त्याचे ?

दु:ख झाले  फार नाही प्रेम त्याचे सोडताना   

*

माणसाने माणसाला पूर्णतेने ओळखावे

ध्येय साधे जीवनाचे आग्रहाने मांडताना

*

कोण येथे तत्ववेत्ता वर्तनाने सिद्ध झाला, ?

होवुनी लाचार गेला स्वार्थ त्याचा साधताना

*

जोडलेल्या संगतीचा सोडला हव्यास नाही

वासनांचे खेळ सारे स्वैरतेने खेळताना

*

कोणता आदर्श कोणी पाळला आहे कळेना

 लाख मोलांच्या रुढींचे स्तोम सारे तोडताना

*

अंतरी येथे कुणाच्या आस नाही ध्यास नाही

 लाज आहे सोडलेली भोग सारे भोगताना 

*

चोर बाजारात येथे बोलके पांडित्य मिळते

वाचपोथ्या नाचथोडा कीर्तनातच रंगताना

*

काय लाचारी करावी का कुणाचा दास व्हावे

कोण येतो वाचवाया श्वास अंती मोजताना?

© प्रा. तुकाराम दादा पाटील

मुळचा पत्ता  –  मु.पो. भोसे  ता.मिरज  जि.सांगली

सध्या राॅयल रोहाना, जुना जकातनाका वाल्हेकरवाडी रोड चिंचवड पुणे ३३

दुरध्वनी – ९०७५६३४८२४, ९८२२०१८५२६

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 160 ☆ हे शब्द अंतरीचे… अभंग… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 160 ? 

☆ हे शब्द अंतरीचे… अभंग… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆/

अखंड करावे, श्रीकृष्ण भजन

कदापि खंडण, नच व्हावे.!!

*

मनी ध्यास व्हावा, अप्राप्ती भावावी

आवडी धरावी, श्रीकृष्णाची.!!

*

सर्व तोचि देई, सर्व तोचि नेई

नाही नवलाई, या वेगळी.!!

*

कवी राज म्हणे, भावाचा भुकेला

हाकेला धावला, द्रौपदीच्या.!!

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈