ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (9 जनवरी से 15 जनवरी 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (9 जनवरी से 15 जनवरी 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

महाकवि जयशंकर प्रसाद जी की कविता है

सब जीवन बीत जाता है

धूप छांव के खेल से  सदृश

सब जीवन बीत जाता है ।।

जीवन में कभी दुख के क्षण आते हैं और कभी सुख के । हमें यह मालूम नहीं होता कि  हमारे  जीवन की गाड़ी कब खराब रास्ते पर होगी और कब अच्छे रास्ते पर  । आप सभी को पंडित अनिल पाण्डेय का नमस्कार ।  आज मैं आप सभी के सामने 9 जनवरी से 15 जनवरी 2023 अर्थात विक्रम संवत 2079 शक संवत 1944 के माघ कृष्ण पक्ष की द्वितीया से माघ कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक के  सप्ताह में आपकी गाड़ी कब अच्छे रास्ते पर होगी और कब खराब रास्ते पर बताने के लिए प्रस्तुत हूं।

इस सप्ताह के प्रारंभ में चंद्रमा कर्क राशि में रहेंगे । सिंह और कन्या राशि से होते हुए 14 तारीख को 2:15 रात्रि से तुला राशि में प्रवेश करेंगे । सूर्य प्रारंभ में धनु राशि में रहेंगे अगर 14 तारीख को 3:10 रात्रि से मकर राशि में गमन करेंगे । मंगल प्रारंभ में विश्वास में बकरी रहेंगे और 13 तारीख के 3:12 दिन से वृष राशि में ही मार्गी हो जाएंगे । पूरे सप्ताह वक्री बुध  धनु राशि में  ,गुरु मीन राशि में शनि और शुक्र  मकर राशि में तथा राहु मेष राशि में रहेंगे ।

आइए अब हम राशिफल राशिफल की चर्चा करते हैं

मेष राशि

इस सप्ताह भी  भाग्य आपका अच्छा साथ देगा । कार्यालय में आपकी स्थिति उत्तम रहेगी ।  धन आने की योग है ।  भाई बहनों के साथ उत्तम संबंध रहेंगे ।  आपके स्वास्थ्य में परेशानी आ सकती है । व्यापार ठीक ठाक चलेगा । इस सप्ताह आप के लिए 9 और 15 जनवरी अनुकूल तथा उपयुक्त है । 13 और 14 जनवरी को आप कई कार्यों में असफल हो सकते हैं । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह काले कुत्ते को रोटी खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके सुख में वृद्धि हो सकती है ।मुकदमे में आपको सफलता मिलेगी । भाग्य आपका साथ देगा । आपके स्वयं का स्वास्थ्य ठीक रहेगा । माताजी और जीवनसाथी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा । पिताजी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा ।इस सप्ताह आपके लिए 10 ,11 और 12 जनवरी उत्तम एवं अनुकूल है । 15 जनवरी को आपको सचेत रहना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रातः काल स्नान के उपरांत तांबे के पात्र में जल ,अक्षत और लाल पुष्प लेकर भगवान सूर्य को सूर्य मंत्र के साथ जल अर्पण करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । आपके जीवनसाथी और पिताजी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। । माता जी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। । कचहरी के कार्यों में आपको सफलता नहीं मिल पाएगी । धन कम आने का योग है । रोगों से मुक्ति पाना संभव है । इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 जनवरी उत्तम और लाभप्रद हैं  । 9 जनवरी को आपको धन लाभ हो सकता है । इस सप्ताह  आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। । आज का शुभ दिन शुक्रवार है ।

कर्क राशि

अविवाहित जातकों के लिए बहुत सुंदर अवसर है । आपके विवाह की बात अच्छे रूप से चलेगी । प्रेम संबंधों में  भी वृद्धि होगी  । जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा  । आपके संतान का आपको सहयोग प्राप्त होगा । भाइयों से आपका संबंध खराब हो सकता है । अगर आप कर्मचारी हैं तो अधिकारी से बहस में उलझने से बचें। । थोड़ा बहुत धन आने का योग है ।  शत्रु परास्त होंगे । 9 और 15 जनवरी आपके लिए उपयुक्त हैं ।  इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंगलवार का व्रत करें और मंगलवार को ही हनुमान जी और मंगल देव की आराधना करें । सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

आपका आपके जीवन साथी का और आपके माताजी का स्वास्थ्य इस सप्ताह ठीक रहेगा । पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो आपको अपने कार्यालय में परेशानी आ सकती है । भाग्य  आपका बहुत कम साथ देगा । नये शत्रु बन सकते हैं । संतान को कष्ट हो सकता है । संतान के संबंध आपसे खराब हो सकते हैं । इस सप्ताह आपके लिए 10 ,11 और 12 जनवरी अनुकूल और लाभदायक हैं । 9 जनवरी को आपको सावधान रहना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप राहु की शांति हेतु उपाय करवाएं । सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

कन्या राशि

कन्या राशि के अविवाहित जातकों के लिए यह वर्ष  अच्छा है । आपके प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी ।आपके संतान के लिए यह सप्ताह उत्तम रहेगा ।संतान से आपके संबंध भी अच्छे होंगे ।  संतान की उन्नति भी होगी ।  मुकदमों में मामूली सफलता मिल सकती है ।  माताजी को मामूली कष्ट हो सकता है । आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । धन आने का अच्छा योग है । इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 जनवरी उत्तम और लाभप्रद है । 10, 11 और 12 जनवरी को आपको सावधान रहना चाहिए ।  इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गणेश अथर्वशीर्ष का पूरे सप्ताह पाठ करें ।  सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है ।

तुला राशि

इस सप्ताह  लोगों के बीच में आप को सम्मान प्राप्त होगा । माताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । सुख की कोई सामग्री आप खरीद सकते हैं । भाइयों से संबंध अच्छा रहेगा । एक बहन या एक भाई से संबंध खराब हो सकता है । आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य थोड़ा बहुत खराब हो सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 9 और 15 जनवरी उत्तम और  कार्य योग्य है। 13 और 14 जनवरी को आपको सावधान रहना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह भगवान शिव का दूध और पानी से अभिषेक करें ।  सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है ।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक हो  सकता है । आपके जीवनसाथी , माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा । इस सप्ताह आपके पास  धन आने का अच्छा योग है । भाई बहनों से संबंध अच्छे रहेंगे । संतान की उन्नति हो सकती है ।  संतान से आपको सहयोग भी प्राप्त होगा। । खर्चे बढ़ेंगे ।  इस सप्ताह आपके लिए 10 ,11 और 12 जनवरी उत्तम और परिणाम दायक है । 15 जनवरी को आपको सचेत रहकर  कार्य करना चाहिए ।  इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप पूरे सप्ताह रूद्राष्टक का पाठ करें और शिवजी का जल से अभिषेक करें । सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

धनु राशि

यह सप्ताह आपके लिए ठीक रहेगा ।  आपके संतान को कष्ट हो सकता है । आपके पास धन आने का अच्छा योग है । आपके सुख में वृद्धि होगी । आप सुख संबंधी कोई सामान क्रय कर सकते हैं ।  आपके घर में कोई शुभ कार्य होगा ।  इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 जनवरी उत्तम फलदायक है । 9 जनवरी को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

मकर राशि

मकर राशि के अविवाहित जातकों के विवाह तय होने का संबंध निकट आ रहा है । इस सप्ताह आपके पास उत्तम प्रस्ताव आएंगे । कचहरी के कार्यों में आपको सफलता मिलेगी । मुकदमे में आप जीत सकते हैं । आपके माताजी और पिताजी को कष्ट हो सकता है । भाइयों से संबंध अच्छे रहेंगे । भाइयों की उन्नति होगी । इस सप्ताह आपको अपनी संतान से सहयोग प्राप्त होगा  । इस सप्ताह आपके लिए 9 और 15 जनवरी शुभ लाभदायक है ।  10 ,11 और 12 जनवरी को आपको सावधान रहना चाहिए ।  इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौमाता को दें ।  सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

यह सप्ताह आपके लिए सामान्य है । धन की अच्छी प्राप्ति हो सकती है । व्यापार में उन्नति होगी । कचहरी के कार्यों में सफलता प्राप्त होगी । दूर देश की यात्रा भी हो सकती है । माताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा । पिताजी को थोड़ी परेशानी हो सकती है । आपकी मानसिक चिंताएं बढ़ सकती हैं । इस सप्ताह आपके लिए 10, 11 और 12 जनवरी उन्नतिदायक हैं । 9, 13 और 14 जनवरी को आप कई कार्यों में असफल हो सकते हैं ।  9, 13 और 14 जनवरी को आपको सावधान रहना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शनिवार के दिन दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम 3 बार हनुमान चालीसा का जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मीन राशि

यह सप्ताह आपके लिए उत्तम है । अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो आपको अपने कार्यालय में प्रतिष्ठा मिलेगी । आपको अच्छी सीट भी मिल सकती है । धन आने का अच्छा योग है ।आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । जीवनसाथी के पेट में कोई समस्या हो सकती है । भाइयों के साथ संबंध ठीक रहेंगे । आपके प्रेम संबंधों को बल मिलेगा । अगर आप अविवाहित हैं तो विवाह के अच्छे प्रस्ताव आएंगे । इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 जनवरी फलदाई है ।  10, 11 ,12 और 15 जनवरी को आपको सावधान रहना है । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

आपसे अनुरोध है कि इस पोस्ट का उपयोग करें और हमें इसके प्रभाव के बारे में बताएं ।

मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 134 – हा भास दो घडीचा ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 134 – हा भास दो घडीचा ☆

प्रेमात रंगलो मी । हा भास दो घडीचा।

खोटेच भाव सारे। आभास दो घडीचा।

 

हे स्वप्न भाव वेडे। देऊ नको कुणाला।

स्वप्नात रंगलेला हा रास दो घडीचा।

 

या भाबड्या मनाला। समजाविता कळेना।

या बेगडी फुलांचा। हा वास दो घडीचा।

 

भाळू नको उगा रे। खोट्याच कल्पनांना ।

संपेल हा कधीही ।सहवास दो घडीचा ।

 

जादूत धुंद  होशी।स्वप्नातल्या परीच्या।

येशील भूवरी रे। हा ध्यास दो घडीचा ।

 

सौंदर्य या मनाचे। जाणून घेई आता।

प्रेमास लाभलेला।विश्वास दो घडीचा

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – ☆ पुस्तकांवर बोलू काही ☆ “देव’ माणूस” – संकल्पना – सौ.ज्योत्स्ना तानवडे ☆ परिचय – सौ. राधिका भांडारकर ☆

सौ राधिका भांडारकर

? पुस्तकावर बोलू काही ?

☆ “देव’ माणूस” – संकल्पना – सौ.ज्योत्स्ना तानवडे ☆ परिचय – सौ. राधिका भांडारकर ☆ 

पुस्तक परिचय

पुस्तकाचे नाव – ‘देव’ माणूस

संकल्पना – सौ.ज्योत्स्ना तानवडे.

प्रकाशक – सोहम क्रिएशन अँड पब्लिकेशन

प्रकाशन – २९/०५/२०२२

सौ ज्योत्स्ना तानवडे यांच्या संकल्पनेतून साकारलेलला  *’देव’माणूस हा स्मृति संग्रह नुकताच वाचनात आला आणि त्याविषयी आवर्जून लिहावं असं वाटलं म्हणून —

सौ. ज्योत्स्ना तानवडे  यांनी अत्यंत कृतज्ञतापूर्वक भावनेने, त्यांचे  परमपूज्य वडील कै. श्री. बाळकृष्ण अनंत देव तथा श्री आप्पासाहेब देव, माळशिरस. यांच्या जन्मशताब्दी वर्षाच्या निमित्ताने या पुस्तक रूपाने एक आगळीवेगळी श्रद्धांजली त्यांना अर्पण केली आहे.

‘देव’माणूस ही स्मरणपुस्तिका आहे आणि या पुस्तकात जवळजवळ ५८ हितसंबंधितांनी कै. आप्पासाहेब देव यांच्या आठवणींना उजाळा दिला आहे.

ही भावांजली वाचताना कै. आप्पासाहेब देव या महान, ऋषीतुल्य, समाजाभिमुख, लोकमान्य व्यक्तीचे अलौकिक दर्शन होते. वास्तविक तसे म्हटले तर ही स्मरणपुस्तिका सौ. ज्योत्स्ना तानवडे यांचा समस्त परिवार, नातेवाईक, स्नेही, मित्रमंडळी अथवा त्यांच्या संबंधितांतल्या व्यक्तींचा स्मृती ठेवा असला तरी माझ्यासारख्या अनोळखी व्यक्तींसाठी सुद्धा हे पुस्तक जिव्हाळ्याचे ठरते हे विशेष आहे. अर्थातच त्याचे कारण म्हणजे या सर्वांच्या आठवणींच्या माध्यमातून झिरपणाऱ्या एका अलौकिक व्यक्तीच्या दिव्यत्वाच्या प्रचितीने खरोखरच आपलेही कर सहजपणे जुळले जातात. हा देवमाणूस सर्वांचाच होऊन जातो.

नित्य स्मरावा!

उरी जपावा !!

मनी पूजावा !!!

अशीच भावना वाचणाऱ्यांची होते.   म्हणूनच हे पुस्तक केवळ त्यांच्याच परिवाराचे न उरता ते सर्वांचेच होते.

नावातही देव आणि व्यक्तिमत्वातही देवच म्हणून हा ‘देव’माणूस!कै. बाळकृष्ण अनंत देव* तथा आप्पासाहेब देव  यांचा २९/०५/१९२२ ते १५/०२/१९८८ हा जीवन काल. त्यांचे बाळपण, वंशपरंपरा, शालेय जीवन, जडणघडण, सहजीवन, पारिवारिक, व्यावसायिक, सामाजिक जीवनाविषयीचा त्यांच्या कुटुंबीयांनी आणि संबंधितांनी स्मृतिलेखनातून घेतलेला हा आढावा अतिशय वाचनीय, हृद्य आणि मनाला भारावून टाकणारा आहे.

सोलापूर जिल्ह्यातल्या माळशिरस या गावी स्थित राहून वकिलीचा पेशा सांभाळून स्वतःच्या समाजाभिमुख, कलाप्रेमी, धार्मिक वृत्तीने  गाव आणि गावकरी यांच्या विकासासाठी अत्यंत तळमळीने झटणाऱ्या, धडपडणाऱ्या एका लोकप्रिय अनभिषिक्त राजाची, लोकनेत्याची एक सुंदर कहाणी,  निरनिराळ्या व्यक्तींनी सादर केलेल्या आठवणीतून साकार होत जाते.

सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

वडिलांच्या आठवणीत रमलेली ज्योत्स्ना लिहिते, “…तुमचे व्यक्तिमत्व होतेच चतुरस्त्र! किती रुपे आठवावी तुमची! वकिली कोट घालून कोर्टात बाजू मांडणारे तुम्ही, शाळेत झेंडावंदन करणारे! सोवळे नेसून खणखणीत आवाजात महिम्न म्हणणारे तुम्ही, पांढरा पोषाख, कपाळी बुक्का, गळ्यात टाळ घालून वारीत अभंग म्हणणारे तुम्ही,. मुलांनातवंडांच्या गराड्यात,चांदण्यात ओसरीवर पेटी वाजवणारे, कटाव गाणारे तुम्ही… तुमचे व्यक्तिमत्व खूपच खास होते…”

मोहिनी देव त्यांची सून सांगते,

” मला आयुष्यात कुठल्याही गोष्टीचा अभिमान वाटला नाही. वाटला फक्त ती. आप्पासाहेब यांची सून म्हणवून घेण्याचा…”

आप्पासाहेब एक दुर्मिळ व्यक्तिमत्व, एक आधुनिक धर्मात्मा, एक देव माणूस, एक स्वयंभू व्यक्तिमत्व, एक ऊर्जा स्त्रोत, अनाथांची माऊली, अशी भावपूर्ण संबोधने देऊन  अनेकांनी त्यांना भावांजली अर्पण केली आहे.  ते वाचताना मन हरखून जाते.

मोहन पंचवाघ त्यांच्याबद्दल म्हणतात,

“… त्यांचा पहाडी आवाज, बुद्धिमत्ता, कोर्ट कामाची एकूणच पद्धती यामुळे अख्ख्या माळशिरस मध्ये त्यांचा दरारा, दबदबा, वचक होता. पण त्यांच्याबद्दल सर्वांच्या मनात आदरयुक्त भावना होती.  त्यांच्याकडे समस्या घेऊन जाणारी व्यक्ती कधीही विन्मुख परत गेली नाही….”

मदन भास्करे म्हणतात,

” असंख्य पक्षकारांना धीर आणि न्याय देण्याचे महान पुण्य कर्म आप्पासाहेबांनी जीवनभर केले.  कित्येकांकडून त्यांनी एक पैसाही फी म्हणून घेतली नाही. उलट कोर्ट फी  सुद्धा वेळ आली तर ते स्वतःच भरत. असा हा महात्मा!….”

सर्वांच्या स्मृती लेखनामध्ये उत्स्फूर्तपणा जाणवतो. अत्यंत जिव्हाळ्यांने, आपलेपणाने आणि प्रामाणिकपणे व्यक्त झालेली शुद्ध मने इथे आढळतात. म्हणून हे पुस्तक म्हणजे विचारांची, आचारांची, संस्कारांची चालती बोलती गाथाच वाटते.

या पुस्तकात एका आदर्श व्यक्तीची कहाणी वाचत असताना, अदृश्यपणे त्यांच्या पाठीशी सावलीसारखी वावरणारी एक दिव्य व्यक्ती म्हणजे कै. मालतीबाई देव— या लोकनायकाची सहचारिणी. एक सुंदर, हसतमुख, प्रसन्न, कलाप्रेमी, सुसंस्कृत, धार्मिक, पतीपरायण, सामाजिक जाणीवा जपणारी, सुगरण आणि सुगृहिणी. अनेक  भूमिकांतून व्यक्त होणारं, *सौ. मालतीबाई देव हे व्यक्तिमत्वही तितकच मनावर बिंबतं . आणि प्रत्येकाच्या आठवणीतून त्याचा उल्लेख झाल्याशिवाय राहात नाही.एक शून्य पुढे टाकल्यानंतर संख्येची किंमत जशी वाढते तद्वतच *कै. मालतीबाई देव यांचं अस्तित्व कै. आप्पासो देव यांच्या जीवनात होतं.

हे पुस्तक वाचून झाल्यावर मी ज्योत्स्नाला म्हटले,

“ही स्मरणपुस्तिका केवळ तुमच्या पुरती नसून ती परिचित अपरिचित सर्वांसाठीच, आपली वाटणारी आहे”

हे स्मरण पुस्तक  प्रसिद्ध करण्यामागे ज्योत्स्नाची भूमिका, पुढच्या पिढीला या आदर्श व्यक्तिमत्त्वांची सदैव ओळख रहावी आणि त्यातून त्यांचीही मने संस्कारित व्हावीत ही तर आहेच. पण आज आपण  समाजातलं जे तुटलेपण, संवादाचं, नात्यांचं हरवलेपण अनुभवत आहोत त्यासाठीही अशा पुस्तकांचे  वाचन, माणसाला जीवनाविषयी, जगण्याविषयी विचार करायला लावणारं, मागे वळून पाहायला लावणारं, आपल्या संस्कृती, परंपरा याविषयीच्या  महानतेचा पुनर्विचार करायला लावणारं ठरतं.

आणि खरोखरच समारोपात जेव्हा ज्योत्स्ना म्हणते,

आठवताना स्मृती साऱ्या

कंठ पुन्हा दाटून येतो

त्यांच्या पोटी पुन्हा जन्म दे

 विठुरायाला विनवितो …

तेव्हा या ओळींवरच आपले श्रद्धांजली पूर्वक अश्रूही नकळत ओघळतात .

© सौ. राधिका भांडारकर

पुणे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #164 ☆ अपेक्षा व उपेक्षा ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख अपेक्षा व उपेक्षा । यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 164 ☆

☆ अपेक्षा व उपेक्षा ☆

‘अत्यधिक अपेक्षा मानव के जीवन को वास्तविक लक्ष्य से भ्रमित कर मानसिक रूप से दरिद्र बना देती है।’ महात्मा बुद्ध मन में पलने वाली अत्यधिक अपेक्षा की कामना को इच्छा की परिभाषा देते हैं। विलियम शेक्सपीयर के मतानुसार ‘अधिकतर लोगों के दु:ख एवं मानसिक अवसाद का कारण दूसरों से अत्यधिक अपेक्षा करना है। यह पारस्परिक रिश्तों में दरार पैदा कर देती है।’ वास्तव में हमारे दु:ख व मानसिक तनाव हमारी ग़लत अपेक्षाओं के परिणाम होते हैं। सो! दूसरों से अपेक्षा करना हमारे दु:खों का मूल कारण होता है, जब हम दूसरों की सोच को अपने अनुसार बदलना चाहते हैं। यदि वे उससे सहमत नहीं होते, तो हम तनाव में आ जाते हैं और हमारा मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है; जो हमारे विघटन का मूल कारण बनता है। इससे पारिवारिक संबंधों में खटास आ जाती है और हमारे जीवन से शांति व आनंद सदा के लिए नदारद हो जाते हैं। सो! मानव को अपेक्षा दूसरों से नहीं; ख़ुद से रखनी चाहिए।

अपेक्षा व उपेक्षा एक सिक्के के दो पहलू हैं। यह दोनों हमें अवसाद के गहरे सागर में भटकने को छोड़ देते हैं और मानव उसमें डूबता-उतराता व हिचकोले खाता रहता है। उपेक्षा अर्थात् प्रतिपक्ष की भावनाओं की अवहेलना करना; उसकी ओर तवज्जो व अपेक्षित ध्यान न देना दिलों में दरार पैदा करने के लिए काफी है। यह सभी दु:खों का कारण है। अहंनिष्ठ मानव को अपने सम्मुख सब हेय नज़र आते हैं और  इसीलिए पूरा समाज विखंडित हो जाता है।

मनुष्य इच्छाओं, अपेक्षाओं व कामनाओं का दास है तथा इनके इर्द-गिर्द चक्कर लगाता रहता है। अक्सर हम दूसरों से अधिक अपेक्षा व उम्मीद रखकर अपने मन की शांति व सुक़ून उनके आधीन कर देते हैं। अपेक्षा भिक्षाटन का दूसरा रूप है। हम उसके लिए कुछ करने के बदले में प्रतिदान की अपेक्षा रखते हैं और बदले में अपेक्षित उपहार न मिलने पर उसके चक्रव्यूह में फंस कर रह जाते हैं। वास्तव में यह एक सौदा है, जो हम भगवान से करने में भी संकोच नहीं करते। यदि मेरा अमुक कार्य सम्पन्न हो गया, तो मैं प्रसाद चढ़ाऊंगा या तीर्थ-यात्रा कर उनके दर्शन करने जाऊंगा। उस स्थिति में हम भूल जाते हैं कि वह सृष्टि-नियंता सबका पालनहार है; उसे हमसे किसी वस्तु की दरक़ार नहीं। हम पारिवारिक संबंधों से अपेक्षा कर उनकी बलि चढ़ा देते हैं, जिसका प्रमाण हम अलगाव अथवा तलाक़ों की बढ़ती संख्या को देखकर लगा सकते हैं। पति-पत्नी की एक-दूसरे से अपेक्षाओं की पूर्ति ना होने के कारण उनमें अजनबीपन का एहसास इस क़दर हावी हो जाता है कि वे एक-दूसरे का चेहरा तक देखना पसंद नहीं करते और तलाक़ ले लेते हैं। परिणामत: बच्चों को एकांत की त्रासदी को झेलना पड़ता है। सब अपने-अपने द्वीप में कैद रहते हुए अपने-अपने हिस्से का दर्द महसूसते हैं, जो धीरे-धीरे लाइलाज हो जाता है। इसका मूल कारण अपेक्षा के साथ-साथ हमारा अहं है, जो हमें झुकने नहीं देता। एक अंतराल के पश्चात् हमारी मानसिक शांति समाप्त हो जाती है और हम अवसाद के शिकार हो जाते हैं।

मानव को अपेक्षा अथवा उम्मीद ख़ुद से करनी चाहिए, दूसरों से नहीं। यदि हम उम्मीद ख़ुद से रखते हैं, तो हम निरंतर प्रयासरत रहते हैं और स्वयं को लक्ष्य की पूर्ति हेतू झोंक देते हैं। हम असफलता प्राप्त होने पर भी निराश नहीं होते, बल्कि उसे सफलता की सीढ़ी स्वीकारते हैं। विवेकशील पुरुष अपेक्षा की उपेक्षा करके अपना जीवन जीता है। अपेक्षाओं का गुलाम होकर दूसरों से उम्मीद ना रखकर आत्मविश्वास से अपने लक्ष्य की प्राप्ति करना चाहता है। वास्तव में आत्मविश्वास आत्मनिर्भरता का सोपान है।

क्षमा से बढ़ कर और किसी बात में पाप को पुण्य बनाने की शक्ति नहीं है। ‘क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात्’ अर्थात् क्षमा सबसे बड़ा धन है, जो पाप को पुण्य में परिवर्तित करने की क्षमता रखता है। क्षमा अपेक्षा और उपेक्षा दोनों से बहुत ऊपर होती है। यह जीने का सर्वोत्तम अंदाज़ है। हमारे संतजन व सद्ग्रंथ इच्छाओं पर अंकुश लगाने की बात कहते हैं। जब हम अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण कर लेंगे, तो हमें किसी से अपेक्षा भी नहीं रहेगी और ना ही नकारात्मकता का हमारे जीवन में कोई स्थान होगा। नकारात्मकता का भाव हमारे मन में निराशा व दु:ख का सबब जगाता है और सकारात्मक दृष्टिकोण हमारे जीवन को सुख-शांति व आनंद से आप्लावित करता है। सो! हमें इन दोनों मन:स्थितियों से ऊपर उठना होगा, क्योंकि हम अपना सारा जीवन लगा कर भी आशाओं का पेट नहीं भर सकते। इसलिए हमें अपने दृष्टिकोण व नज़रिए को बदलना होगा; चिंतन-मनन ही नहीं, मंथन करना होगा। वर्तमान स्थिति पर विभिन्न आयामों से दृष्टिपात करना होगा, ताकि हम अपनी संकीर्ण मनोवृत्तियों से ऊपर उठ सकें तथा अपेक्षा उपेक्षा के जंजाल से मुक्ति प्राप्त कर सकें। हर परिस्थिति में प्रसन्न रहें तथा निराशा को अपने हृदय मंदिर में प्रवेश ने पाने दें तथा प्रभु कृपा की प्रतीक्षा नहीं, समीक्षा करें, क्योंकि परमात्मा हमें वह देता है, जो हमारे लिए हितकर होता है। सो! हमें उसकी रज़ा में अपनी रज़ा मिला देनी चाहिए और सदा उसका शुक्रगुज़ार होना चाहिए। हमें हर घटना को एक नई सीख के रूप में लेना चाहिए, तभी हम मुक्तावस्था में रहते हुए जीते जी मुक्ति प्राप्त कर सकेंगे। इस स्थिति में हम केवल अपने ही नहीं, दूसरों के जीवन को भी सुख-शांति व अलौकिक आनंद से भर सकेंगे। ‘संत पुरुष दूसरों को दु:खों से बचाने के लिए दु:ख सहते हैं और दुष्ट लोग दूसरों को दु:ख में डालने का हर उपक्रम करते हैं।’ बाल्मीकि जी का यह कथन अत्यंत सार्थक है। सो! अपेक्षा व उपेक्षा का त्याग कर जीवन जीएं। आपके जीवन में दु:ख भूले से भी दस्तक नहीं देगा। आपका मन सदा प्रभु नाम की मस्ती में खोया रहेगा–मैं और तुम का भेद समाप्त हो जाएगा और जीवन उत्सव बन जाएगा।

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #163 ☆ भावना के दोहे – मीरा ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  “भावना के दोहे – मीरा ।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 163 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – मीरा ☆

धुन मुरली की बज रही, दिल में बजते साज।

मैं मीरा घनश्याम की, झूम रही है आज।।

नाच रही हूं मगन मैं, उर में है बस श्याम।

बजती है बस श्याम धुन, छाए है घन श्याम।।

मैं मोहन की माधुरी, मुरली की  मैं जान।

रोम रोम में बस रहे, मनमोहन में प्रान।।

जादू है घन श्याम का, चहुं ओर है उमंग।

मीरा रहती श्याममय, मन में उठी तरंग।।

कैसे तुझसे क्या कहूँ, हूँ तुझमें मैं लीन।

मैं मीरा राधा नहीं, मैं हूँ श्याम विलीन

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #150 ☆ एक पूर्णिका – “हमने देखे हैं अश्क़ तेरी आँखों में…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  एक पूर्णिका – “हमने देखे हैं अश्क़ तेरी  आँखों में…। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 150 ☆

☆ एक पूर्णिका – हमने देखे हैं अश्क़ तेरी  आँखों में… ☆ श्री संतोष नेमा ☆

बोल कर झूठ आँख चुराता क्यों है

मुझसे खफा है तो छुपाता क्यों है

वक्त के  साथ लोग  बदल जाते हैं

ये  जानते हैं मगर  बताता  क्यों है

रोशनी  जिससे  हो रही है  दिल में

चिराग वफ़ा का यूँ बुझाता क्यों  है

अगर डर है तुझको  इस जमाने से

तो दिल हमसे फिर लगाता  क्यों है

हमने देखे हैं  अश्क़ तेरी  आँखों में

छुपा के  गम तू  मुस्कराता  क्यों  है

पास रहके न पहचान सके जिसको

देख कर दूर से हाथ हिलाता क्यों है

जो करते  हैं  नाटक खुद  सोने  का

उनको  “संतोष”  तू  जगाता क्यों  है

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विजय साहित्य #156 ☆ संस्कार सावली…! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 156 – विजय साहित्य ?

☆ संस्कार सावली…! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

(4 जानेवारी – कै सिंधुताई सापकाल स्मृतीदिवस दिना निमित्त)

अनाथांची माय

करुणा सागर

आहे भोवताली

स्मृतींचा वावर…!

 

ममतेची माय

आदर्शाची वाट

सुख दुःख तिच्या

जीवनाचा घाट..!

 

परखड बोली

मायेची पाखर

आधाराचा हात

देतसे भाकर…!

 

जगूनीया दावी

एक एक क्षण

संकटाला मात

झिजविले तन…!

 

पोरकी जाहली

माय ही लेखणी

आठवात जागी

मूर्त तू देखणी…!

 

दु:ख पचवीत

झालीस तू माय

संस्कार सावली

शब्द दुजा नाय..!

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ गीत ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त १३ (आप्री सूक्त) ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ गीत ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त १३ (आप्री सूक्त) ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त १३ (आप्री सूक्त)

ऋषी – मेधातिथि कण्व : देवता – आप्री देवतासमूह 

ऋग्वेदातील पहिल्या मंडलातील बाराव्या सूक्तात मधुछन्दस वैश्वामित्र या ऋषींनी अग्निदेवतेला आवाहन केलेले आहे. त्यामुळे हे सूक्त अग्निसूक्त म्हणून ज्ञात आहे. 

मराठी भावानुवाद : डॉ. निशिकांत श्रोत्री

सुस॑मिद्धो न॒ आ व॑ह दे॒वाँ अ॑ग्ने ह॒विष्म॑ते । होतः॑ पावक॒ यक्षि॑ च ॥ १ ॥

यज्ञामध्ये अग्निदेवा हवी सिद्ध जाहला

प्रदीप्त होऊनी आता यावे स्वीकाराया हविला

हे हविर्दात्या सकल देवता घेउनी सवे यावे 

पुण्यप्रदा हे  अमुच्या यागा पूर्णत्वासी न्यावे ||१|| 

मधु॑मन्तं तनूनपाद्य॒ज्ञं दे॒वेषु॑ नः कवे । अ॒द्या कृ॑णुहि वी॒तये॑ ॥ २ ॥

प्रज्ञानी हे अग्निदेवा स्वयंजात असशी

अर्पण करण्या हवीस नेशी देवांच्यापाशी

मधुर सोमरस सिद्ध करुनिया यज्ञी ठेविला

यज्ञा नेवूनी देवतांप्रति सुपूर्द त्या करण्याला ||२||

नरा॒शंस॑मि॒ह प्रि॒यम॒स्मिन्य॒ज्ञ उप॑ ह्वये । मधु॑जिह्वं हवि॒ष्कृत॑म् ॥ ३ ॥

मधुर अतिमधुर जिव्हाधारी हा असा असे अग्नी

अमुच्या हृदया अतिप्रिय हा असा असे अग्नी

स्तुती करावी सदैव ज्याची असा असे अग्नी

पाचारण तुम्हाला करितो यज्ञा या हो अग्नी ||३||

अग्ने॑ सु॒खत॑मे॒ रथे॑ दे॒वाँ ई॑ळि॒त आ व॑ह । असि॒ होता॒ मनु॑र्हितः ॥ ४ ॥

आम्हि अर्पिल्या हवीस अग्ने देवताप्रती नेशी

तू तर साऱ्या मनुपुत्रांचा हितकर्ता असशी

सकल जनांनी तुझ्या स्तुतीला आर्त आळवीले

प्रशस्त ऐशा रथातुनी देवांना घेउनी ये ||४||

स्तृ॒णी॒त ब॒र्हिरा॑नु॒षग्घृ॒तपृ॑ष्ठं मनीषिणः । यत्रा॒मृत॑स्य॒ चक्ष॑णम् ॥ ५ ॥

लखलखत्या दर्भांची आसने समीप हो मांडा

सूज्ञ ऋत्विजांनो देवांना आवाहन हो करा

दर्शन घेऊनिया देवांचे व्हाल तुम्ही धन्य 

त्यांच्या ठायी दर्शन होइल अमृत चैतन्य ||५||

वि श्र॑यन्तामृता॒वृधो॒ द्वारो॑ दे॒वीर॑स॒श्चतः॑ । अ॒द्या नू॒नं च॒ यष्ट॑वे ॥ ६ ॥

उघडा उघडा यज्ञमंडपाची प्रशस्त द्वारे 

सिद्ध कराया यागाला उघडा विशाल दारे

त्यातुनि बहुतम ज्ञानी यावे यज्ञ विधी करण्या

पवित्र यज्ञाला या अपुल्या सिद्धीला नेण्या ||६||

नक्तो॒षासा॑ सु॒पेश॑सा॒स्मिन्य॒ज्ञ उप॑ ह्वये । इ॒दं नो॑ ब॒र्हिरा॒सदे॑ ॥ ७ ॥

सौंदर्याची खाण अशी ही निशादेवीराणी

उषादेवीही उजळत आहे सौंदर्याची राणी

आसन अर्पाया दोघींना दर्भ इथे मांडिले

पूजन करुनी यज्ञासाठी त्यांसी  आमंत्रिले ||७|| 

ता सु॑जि॒ह्वा उप॑ ह्वये॒ होता॑रा॒ दैव्या॑ क॒वी । य॒ज्ञं नो॑ यक्षतामि॒मम् ॥ ८ ॥

दिव्य मधुरभाषी जे सिद्ध अपुल्या प्रज्ञेने 

ऋत्विजांना हवनकर्त्या करितो बोलावणे

पूजन करितो ऋत्विग्वरणे श्रद्धा भावाने

हवन करोनी या यज्ञाला तुम्ही सिद्ध करावे ||८||

इळा॒ सर॑स्वती म॒ही ति॒स्रो दे॒वीर्म॑यो॒भुवः॑ । ब॒र्हिः सी॑दन्त्व॒स्रिधः॑ ॥ ९ ॥

यागकृती नियमन करणारी इळा मानवी देवी

ब्रह्मज्ञाना पूर्ण जाणते सरस्वती देवी

त्यांच्या संगे सौख्यदायिनी महीधरित्री देवी 

आसन घ्यावे दर्भावरती येउनीया त्रीदेवी ||९|| 

इ॒ह त्वष्टा॑रमग्रि॒यं वि॒श्वरू॑प॒मुप॑ ह्वये । अ॒स्माक॑मस्तु॒ केव॑लः ॥ १० ॥

विश्वकर्म्या सर्वदर्शी तुम्ही सर्वश्रेष्ठ

केवळ अमुच्यावरी असावी तुमची माया श्रेष्ठ

अमुच्या यागा पावन करण्या तुम्हास आवाहन

यज्ञाला या सिद्ध करावे झणी येथ येऊन ||१०|| 

अव॑ सृजा वनस्पते॒ देव॑ दे॒वेभ्यो॑ ह॒विः । प्र दा॒तुर॑स्तु॒ चेत॑नम् ॥ ११ ॥

वनस्पतिच्या देवा अर्पण देवांसी हवि  करी

प्रसन्नतेच्या त्यांच्या दाने कृतार्थ आम्हा करी 

यजमानाला यागाच्या या सकल पुण्य लाभो

ज्ञानप्राप्ति होवोनीया तो धन्य जीवनी होवो ||११||

स्वाहा॑ य॒ज्ञं कृ॑णोत॒नेन्द्रा॑य॒ यज्व॑नो गृ॒हे । तत्र॑ दे॒वाँ उप॑ ह्वये ॥ १२ ॥

यजमानाच्या गृहात यज्ञा इंद्रा अर्पण करा

ऋत्वीजांनो यज्ञकर्त्या प्रदान पुण्या करा 

सर्व देवतांना आमंत्रण यज्ञी साक्ष करा

देवांना पाचारुनि यजमानाला धन्य करा ||१२|| 

हे सूक्त व्हिडीओ  गीतरुपात युट्युबवर उपलब्ध आहे. या व्हिडीओची लिंक येथे देत आहे. हा व्हिडीओ ऐकावा, लाईक करावा आणि सर्वदूर प्रसारित करावा. कृपया माझ्या या चॅनलला सबस्क्राईब करावे.

https://youtu.be/U2ajyRxxd-E

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Rugved Mandal 1 Sukta 13 Marathi Geyanuvad :: ऋग्वेद मंडळ १ सुक्त १३ मराठी गेयानुवाद

© डॉ. निशिकान्त श्रोत्री

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

 

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मराठी साहित्य – प्रतिमेच्या पलिकडले ☆ अस्तित्व… ☆ श्री नंदकुमार पंडित वडेर ☆

श्री नंदकुमार पंडित वडेर

? प्रतिमेच्या पलिकडले ?

☆ अस्तित्व… ☆ श्री नंदकुमार पंडित वडेर ☆

“.. अगं तारामती !चल चल लवकर पाय उचलत राहा… अजून तालूक्याचं गाव आलं नाही!.. पाच सहा मैलाची रपेट करायची आपल्याला… आपल्या कनवाळू  मायबाप सरकारने यंदाच्या दिवाळी साठी दुर्बल कुटुंबांना दिवाळीसामानाचं पॅकेट देणारं आहेत फक्त शंभर रुपयात….त्या स्वस्त शिधावाटप दुकानातून… आपल्याला तिथं जाऊन नंबर लावला पाहिजे तरच ते आपल्याला मिळेल…त्यासाठी आधी बॅंकेत जाऊन हया महिन्याची स्वातंत्र्य सेनानी पेंशन योजनेतील जमा झालेली पेंशन काढायला हवी… तुला एक खादीची साडी आणि मला जमला तर खादीचा सदरा घ्यायला हवा…गेली दोन अडीच वर्षे कोरोना मुळे फाटकेच कपडे तसेच वापरले गेले आणि आता तेही घालण्याच्या उपयोगी नाही ठरले… यावर्षीची दिवाळी आपली खास जोरदार दिवाळी होणार आहे बघ… एक किलो रवा, एक किलो साखर, एक किलो तेल, एक किलो डाळ, अंगाचा साबण, सुवासिक तेलाची बाटली हे सगळं त्या पॅकेट मधे असणार आहे… ते आपल्याला मिळाले कि दिवाळीचा सणाचा आनंद होणार आहे… अगं चल चल लवकर… तिकडे बॅकेत किती गर्दी असते तुला ठाऊक नाही का? . मग पैसे मिळाले की त्या रेशन दुकानावर किती गर्दी उसळली असेल काही सांगता येत नाही… “

…बॅकेत पोहचल्यावर त्यांना सांगण्यात आलं…स्वातंत्र्य सेनानीं ची पेंशन मध्ये वाढ द्यायची का नाही यावर शासनाचा निर्णय प्रलंबित असल्याने निर्णय झाल्यावरच पेंशन खात्यावर जमा होईल… तेव्हा पेंशन धारकानी बॅकेत वारंवार चौकशी करू नये… खादीची साडी नि सदरा, दिवाळीचं पॅकेट दुकानात वाट बघत राहिलं… अन पेपरला बातमी आली… सरकारी दिवाळी पॅकेज कडे लाभार्थींनी पाठ फिरवली त्यामुळे सगळी पॅकेटची खुल्या बाजारात  विक्री करण्यास अनुमती दिली आहे…

… रेशन दुकानाच्या पायरीवर ते दोघे थकून भागून बसले.. पिशवीतून आणलेल्या पाण्याच्या बाटलीतले चार घोट पाणी पिऊन तरतरीत झाले…आजही स्वतःच्या अस्तित्व टिकविण्याच्या धावपळीत  त्यांना पंचाहत्तर वर्षापूर्वीचा स्वातंत्र्य लढ्यात केलेल्या धावपळीचा भूतकाळ आठवला… तन,मन,धन वेचून देश स्वतंत्र व्हावा म्हणून त्यांनी योगदान दिले होते… देश स्वतंत्र झाला पण…पण  स्वतंत्र देशाच्या अनुशासनाचे आजही  ते गुलामच राहिले आहेत…

©  नंदकुमार पंडित वडेर

विश्रामबाग, सांगली

मोबाईल-99209 78470.

ईमेल –[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 109 ☆ लघुकथा – वोट के बदले नोट ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  शिक्षा के क्षेत्र में राजनीतिक विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा ‘वोट के बदले नोट’। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 109 ☆

☆ लघुकथा – वोट के बदले नोट ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

हैलो रमेश ! क्या भाई,  चुनाव प्रचार कैसा चल रहा है ?

बस चल रहा है । कहने को तो शिक्षा क्षेत्र का  चुनाव है लेकिन कथनी और करनी का अंतर यहाँ भी दिखाई दे ही जाता है । कुछ तो अपने बोल का मोल होना चाहिए यार ? मुँह देखी बातें करते हैं सब, पीठ पीछे कौन क्या खिचड़ी पका  रहा है, पता ही नहीं  चलता ?

अरे छोड़ , चुनाव में तो यह सब चलता ही रहता है। जहाँ चुनाव है वहाँ राजनीति और जहाँ राजनीति आ गई वहाँ तो —–

पर यह तो विद्यापीठ का चुनाव है, शिक्षा क्षेत्र का! इसमें उम्मीदवारों का चयन उनकी अकादमिक योग्यता के आधार पर ही होना चाहिए ना !

रमेश किस दुनिया में रहता है तू ? अपनी आदर्शवादी सोच से बाहर निकल। अकादमिक योग्यता, कर्मनिष्ठा ये बड़ी – बड़ी बातें सुनने में ही अच्छी लगती हैं । तुझे पता है क्या कि अभय ने कई मतदाताओं के वोट पक्के कर लिए हैं ?

कैसे ? मुझे तो कुछ भी नहीं पता इस बारे में ।

इसलिए तो कहता हूँ अपने घेरे से बाहर निकल, आँख – कान खुले रख । खुलेआम वोट के बदले नोट का सौदा चल रहा है । बोल तो तेरी भी बात पक्की करवा दूं ? ठाठ से रहना फिर, हर कमेटी में तेरा नाम और जिसे तू चाहे उसका नाम डालना। चुनाव में खर्च किए पैसे तो यूँ वापस आ जाएंगे और सब तेरे आगे – पीछे भी रहेंगे ।

नहीं – नहीं यार,  शिक्षक हूँ मैं, वोट के बदले नोट के बल पर मैं जीत भी गया तो अपने विद्यार्थियों को क्या मुँह दिखाऊंगा। अपनी अंतरात्मा को क्या जवाब दूंगा ?

 

©डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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