हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 44 – प्रो. सरन घई – “मातृभूमि से दूर पर, है हिंदी से प्यार” ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में  हम आज प्रस्तुत कर रहे हैं  श्री मनोज जी द्वारा 30  जुलाई 2022 को कनाडा में आयोजित एक लघु द्वि-राष्ट्रीय कवि गोष्ठी में  विश्व हिन्दी संस्थान (कनाडा) के अध्यक्ष एवं लोकप्रिय साहित्यिक ई-पत्रिका “प्रयास” के सम्पादक प्रो. सरन घई जी को प्रदत्त प्रशस्ति पत्र में उल्लेखित कविता।

श्री सरन घई जी को उनकी हिंदी के प्रति अगाध प्रेम, निष्ठा और लगन को देखते हुए श्री मनोज कुमार शुक्ल, संस्थापक,मंथन संस्था, जबलपुर (मध्य प्रदेश) भारत की ओर से यह प्रशस्ति पत्र  भेंट किया गया। लगभग 50 पुस्तकों के रचयिता प्रो.सरन घई, कनाडा के काफी लोकप्रिय हिन्दी साहित्यकार हैं।

श्री सरन घई जी के निवास स्थान पर भारत से पधारे समाचार पत्र जनसत्ता के पूर्व सम्पादक श्री शंभूनाथ शुक्ला जी के मुख्य आतिथ्य एवं मनोजकुमार शुक्ल “मनोज” जबलपुर, श्री दिनेश रघुवंशी, श्रीमती सरोजिनी जौहर, के विशिष्ट आतिथ्य एवं कनाडा के योगाचार्य, लोकप्रिय कवि श्री संदीप त्यागी जी के कुशल संचालन में कनाडा के चुनिंदा कवियों का एक मिनि द्वि-राष्ट्रीय कवि गोष्ठी का आयोजन सम्पन्न हुआ। कनाडा के मुख्य कवि श्री भगवत शरण श्रीवास्तव, श्री डॉ विनोद भल्ला, श्री पाराशर गौड़, श्री युक्ता लाल, श्री श्याम सिंह, श्रीमती साधना जोशी, श्रीमती मीना चोपड़ा, श्री भूपेंद्र विरदी, डॉक्टर संतोष वैद, श्री रविंद्र लाल, श्री गौरव, श्री उत्कर्ष तिवारी, श्री राम भल्ला, कीर्ति शुक्ला एवं सरोज शुक्ला आदि कवियों ने अपनी एक से बढ़कर एक रचनाएं प्रस्तुत की इसके पश्चात कार्यक्रम में भारत से पधारे हुए कवियों का प्रो. सरन घई जी ने अंग वस्त्र, संस्था-स्मृति चिन्ह एवं अभिनंदन पत्र देकर सम्मानित किया। सभी ने आदरणीय डॉ सरन घई जी की मुक्त कंठ से प्रशंसा की।

आप प्रत्येक मंगलवार को श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी की भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं।)

✍ मनोज साहित्य # 44 – प्रो. सरन घई – “मातृभूमि से दूर पर, है हिंदी से प्यार” ☆

(प्रशस्ति पत्र – आदरणीय प्रो. सरन घई जी, विश्व हिन्दी संस्थान, कनाडा – ३० जुलाई  2022 )

“विश्व हिन्दी संस्थान”, अनुपम इसकी शान।

परचम है लहरा रहा, भारत का सम्मान।।

धन्य हुए हम आज हैं, मिला सुखद संजोग।

फिर अवसर है आ गया, कवि सम्मेलन योग।।

सात बरस के बाद का, लम्बा था वैराग्य।

पाया है सानिध्य अब , मुझे मिला सौभाग्य।।

मातृभूमि से दूर पर, है हिंदी से प्यार।

सरन घई की नाव है, खेते हैं पतवार।।

केनेडा की धरा में, अद्भुत बड़ा “प्रयास”।

हिन्दी दिल में है बसी, सुखद हुआ अहसास ।।

देश प्रेम की यह छटा, राष्ट्र भक्ति उद्गार ।

दिल में दीपक है जला, फैल रहा उजियार ।।

भारत की सरकार ने, हिन्दी का सम्मान।

राष्ट्रवाद की गूँज से, बनी जगत पहचान।।

आओ मिल वंदन करें, हिंदी का हम आज।

विश्व पटल पर छा गयी, भारत को है नाज।।

(श्री मनोज कुमार शुक्ल ” मनोज ” जी की फेसबुक वाल से साभार )

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्थापक, “मंथन” संस्था, जबलपुर म. प्र. (भारत)

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – भूमिकाएँ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

 ? संजय दृष्टि – भूमिकाएँ ??

नहीं देना चाहता

कोई दोष तुम्हें,

तुम न छलते तो

कोई और छलता,

एक साधन बना,

एक निमित्त हुआ,

देह की अवधि

बीत जाने पर

जब मिलेंगे विदेह,

अपने-अपने

अभिनय पर

आप इतराएँगे,

अपनी-अपनी

भूमिका के निर्वहन का

साझा उत्सव मनाएँगे..।

© संजय भारद्वाज

(प्रात: 5:50 बजे, 01 अगस्त, 2022)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 133 – कविता ☆ हर हर महादेव ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक विषय पर आधारित महादेव को समर्पित रचना “हर हर महादेव”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 133 ☆

☆ कविता  🌿 हर हर महादेव 🙏

घर घर पूजे सावन में, शिव भोले भंडारी।

आदि अनंत के देव हैं, इनकी महिमा न्यारी।

 

भांग धतूरा बिल्व पत्र, इनको लगती हैं प्यारी।

दूध दही मधु निर्मल जल से, अभिषेक हुआ भारी।

 

धूप कपूर करें आरती, बम बम कहे दूनिया सारी।

नंदीगण की करें सवारी, गौरा मैया लागे प्यारी ।

 

जटाजूट में गंग विराजे, गोद गणपति मूषकधारी।

देव देवालय पूजे जाते, पार्थिव रुप धरे त्रिपुरारी।

 

शिव शंकर अवघर दानी, त्रिभुवन के अधिकारी।

प्रलय कर्ता कहलाते शंभु, महाकाल त्रिनेत्र धारी ।

 

सावन का है रुप निराला, शंकर हैं डमरु धारी।

रिमझिम बादल बरस रहे, जन जन के हितकारी।

 

भक्त लेकर चले कांवरिया, शिव शंकर के धाम ।

मन में श्रद्धा लेकर पहुंचे, सफल हुए सब काम।

 

भोले शंकर अविनाशी, कैलाश पति के वासी।

जनम जनम से करु तपस्या, शीलू तुम्हारी दासी।

 

🌿 हर हर महादेव 🌿

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 99 – गीत – याद तुम्हारी… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – याद तुम्हारी…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 99 – गीत – याद तुम्हारी✍

आती-जाती याद तुम्हारी

जैसे कोई राजकुमारी।

 

याद ,याद को नयन तुम्हारे जिन्हें प्यार छलकता है

होठों में रहता है जो कुछ उसको भी दे तरसता है

भाव भंगिमा ऐसी लगती

जैसे कोई राजकुमारी।

 

कोमल नरम अंगुलियां जैसे रेशम ,चंदन डूबा हो

बिखरे बिखरे केश कि जैसे मनसिब का मंसूबा हो।

गंधवती है देह तुम्हारी

जैसे कोई फूल कुमारी।

 

बंद बंद आंखों से देखा लगा कि कोई अपना है

खुली खुली आँखों से देखा लगा के दिन का सपना है।

यों आती है याद तुम्हारी

जैसे कोई किरन कुँवारी।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 101 – “…वे खत आज मिले…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “…वे खत आज मिले…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 101 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “वे खत आज मिले”|| ☆

खोंसे गये कभी छप्पर में

वे खत आज मिले

जिनमें धन की विनती के

निर्मित थे कई किले

 

मेरी फीस और कपड़ो की

जिदें भरी जिनमें

जूते फटे नही अच्छे लगते

पहनूँ दिन में

 

भरे हुये थे सारे खत

मेरी फरमाइश से

याफिर अमें भरे हुये थे

शिकवे और गिले

 

मगर पिता का मेरे प्रति

कुछ आग्रह था ऐसा

बिना किसी शंका-संशय

के भिजवाते पैसा

 

जीवन भर वे खटते आये

पथ पर अडिग रहे

फर्ज निभाते आये  अपना

प्रण से नहीं हिले

 

और पढाई कर के यों  तो

कमा रहा खासा

पर कर पाया ना पूरी

मैं बापू की आसा

 

जीवन भर जिसकी

एवज में मिले उन्हें छाले

अब भी उनके सभी

अंग दिखते है छिले- छिले

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

19-07-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ऊहापोह ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – ऊहापोह ??

ऐसी लबालब

क्यों भर दी

रचनात्मकता तूने?

बोलता हूँ

तो चर्चा होती है,

मौन रहता हूँ तो

और अधिक

चर्चा होती है..!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 92 ☆ # मै बलिवेदी पर नहीं चढ़ूँगी… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# मै बलिवेदी पर नहीं चढ़ूँगी…  #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 92 ☆

☆ # मै बलिवेदी पर नहीं चढ़ूँगी… # ☆ 

आँखों से बहती हुई

अश्रुओं की धार है

आँचल है तार तार

ज़ख्म बेशुमार हैं

 

बचपन से आज तक

तंज ही तो पाये हैं

जिन्हें अपना समझा

वे ही तो रूलाये हैं

 

यौवन देखकर मेरा

आसमां भी हिल गया

इस बहार में मोहक फूल

मुझ पर ही खिल गया

 

चारों तरफ महक है

भ्रमरों में चहक है

और मैं डरी-डरी

सीने में दहक है

 

राह में दुश्वारियां हैं

घूरती आँखों में चिंगारियां हैं

भेड़िये हैं ताक पर

मेरी भी कमजोरीयां है

 

मैंने यह मान लिया है

मन ही मन ठान लिया है

डर के जीना क्या जीना

लड़ के जीना जान लिया है

 

अब मैं गुमनाम नहीं जलूंगी

छल से बचकर सदा चलूंगी

चाहे कुछ भी कर ले ज़माना

मैं बलिवेदी पर नहीं चढ़ूँगी

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 103 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 103 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 103) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 103 ?

☆☆☆☆☆

जिंदगी में ख़्वाब, ख़्वाहिश

और ख़ादिम कम ही रखिए

यकीं मानिए, ज़िंदगी उतनी

ही कम दुशवार होती जाएगी…!

Keep lesser number of dreams,

desires and people in the life,

Believe me, life will become

that much less complicated…!

☆☆☆☆☆

गूँजता हूँ जो दिल में

तो  हैराँ  क्यों  हो

मैं तुम्हारे ही दिल की

तो  आवाज़  हूँ..!

If I echo in the heart

why are you surprised

I am just the voice

of your heart only…

☆☆☆☆☆

मेरे  प्यार  का  ज़रा

असर  तो  देखो…

लोग मिलते हैं मुझसे,

और हाल तेरा पूछते हैं..!

Just  look  at  the

impact  of  my  love

People keep meeting me

but enquire about you only..!

☆☆☆☆☆ 

चला गया था तेरी महफ़िल से

मगर फिर भी मौजूद था,

होता रहा तमाम शब मेरा

ज़िक्र मेरे जाने के बाद भी…

Had left your gathering but

was still present there only,

As I was discussed throughout

the night even after my departure…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 103 ☆ सॉनेट ~ छंद सलिला- प्रदोष  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित सॉनेट ~ छंद सलिला– प्रदोष )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 103 ☆ 

☆ सॉनेट – छंद सलिला – प्रदोष  ☆

(अभिनव प्रयोगः प्रदोष सॉनेट)

प्रदोष रहिए खुशी से

हमेशा करें व्रत-कथा

जीतें हर बाधा-व्यथा

आशीष मिले शिवा से

 

प्रदोष रचिए हमेशा

अठ-पच कल मिल खेलिए

सुख-दुख सम चुप झेलिए

विनम्र रहिए हमेशा

 

गुरु लघु हो न पदांत में

आस्था मिले न भ्रांत में

रखिए शांति दिनांत में

 

चौदह पद सॉनेट  में

चौ चौ चौ दो या रहे

चौ चौ त्रै त्रै पद सदा

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२२-७-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #150 – ग़ज़ल-36 – “स्वर्ग भी मंज़ूर नरक भी क़बूल…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “स्वर्ग भी मंज़ूर नरक भी क़बूल …”)

? ग़ज़ल # 36 – “स्वर्ग भी मंज़ूर नरक भी क़बूल…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

सच की बाँह थामे चलता रहा झूठ को थोड़ा निहार लिया।

नौतपा धूप में जलता रहा यारों की अमराई बुहार लिया।

 

ईमान की चादर भी बिछाई बेईमान गमछा उधार लिया।

वैसे तो काफ़ी संयम में रहा थोड़ा मज़ा दयार-ए-यार लिया।

 

बहादुरी भी यारो खूब दिखाई थोड़ा डरते हुए वार लिया।

नफ़रत की भी हुई कमाई साथ में थोड़ा सा प्यार लिया। 

 

धर्म की दुकाने भी खूब घूमा पुराना माल तैयार लिया,

आँखें खोलकर देखीं जब दिल खोल कर दिलदार लिया। 

 

स्वर्ग भी मंज़ूर नरक भी क़बूल हँस कर स्वीकार लिया।

बचपन नहीं छोड़ा ‘आतिश’ ने गुलों के साथ ख़ार लिया।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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