हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संस्मरण – मेरी यादों में जालंधर – भाग-8 – जहाँ कदम बढ़े पत्रकारिता की ओर‌… ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ संस्मरण – मेरी यादों में जालंधर – भाग- 8 – जहाँ कदम बढ़े पत्रकारिता की ओर‌… ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

(प्रत्येक शनिवार प्रस्तुत है – साप्ताहिक स्तम्भ – “मेरी यादों में जालंधर”)

मित्रो! आप सोच रहे होंगे कि आखिर यह जालंधर में ऐसा क्या है जो बार बार वही जाता हूँ! जालंधर में मैने कलम पकड़नी सीखी और शायद पत्रकारिता का क, ख, ग, भी यहीं से सीखा और पहले सीखा प्रेसनोट लिखना! कैसे भला? ‘विचारधारा’ के जितने आयोजन होते, बाद में मेरी जिम्मेदारी हो गयी कि गोष्ठी की पूरी रिपोर्ट लिखकर अखबारों के कार्यालय में पहुंचाऊं, क्योंकि मेरी हिंदी की लिखावट थोड़ी अच्छी थी और उन दिनों फोटोस्टेट करवा कर प्रेसनोट बांटा जाता था! मुझे स्कूटर चलाना कभी नहीं आया तो कोई स्कूटर वाला सहयोगी अपने स्कूटर के पीछे बिठाकर हर अखबार के दफ्तर ले जाता और इस तरह प्रेसनोट लिखने का शऊर सीखा। हालांकि दूसरे दिन समाचार प्रकाशित होने पर उस खबर का पोस्टमार्टम किया जाता कि ऐसा क्यों लिखा, ऐसे क्यों नही लिखा? मतलब मुद्दे की बात कहाँ है? जो समाचार कोई संदेश लोगों के बीच  मुद्दा ही स्पष्ट न कर पाये, वह  समाचार कैसा? तो इस तरह अनजाने ही पत्रकारिता की ओर कदम बढ़ते गये!

अब आपका परिचय अपने एक और दोस्त व कथाकार सुरेंद्र मनन से करवाता हूँ जो जालंधर के होने के बावजूद , मेरे सम्पर्क में चंडीगढ़ में आये! वे चंडीगढ़ में नौकरी कर रहे थे और रमेश बतरा के साथ चंडीगढ़ में हमारी दोस्ती का सफर शुरू हुआ! जालंधर भी कुछ मुलाक़ातें हुईं लेकिन ज्यादा मुलाकातें चंडीगढ़ में हुईं। इनका पहला कथा संग्रह उठो लछमीनारायण आया! इसके बाद कैद में किताब, फिर ये चंडीगढ़ से भी उड़ान भर दिल्ली जा पहुंचे, वहां इनकी रूचि दस्तावेजी फिल्में बनाने में बढ़ती गयी और अनेक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते! पर फिर कहानी की ओर लौटे तब बर्षो बाद कथा संग्रह आया-अहमद अल हिल्लोल कहां हो? इतने बर्षों बाद मुझे याद रखा और वह कथा संग्रह हिसार के पते पर भेजा!

कैद में किताब और शिलाओं पर लिखे शब्द हिल्लोल भी आया! मैं इस दोस्त से जब फोन पर बात शुरू करता हूं तब हर बार कहता हूँ, हां भई सुरेंद्र मनन, नाम तो है मनन, भावें मेरी गल्ल मन्नन या न मन्नन ! फिर हम हंसते हुए नयी ताज़ी पूछते हैं, अपनी अपनी अपनी खैर खबर देते हैं! बेशक हमारी रूबरू मुलाक़ात पिछले कई सालों से नहीं हुई लेकिन दोस्ती बरकरार है! यह दोस्ती ज़िदाबाद! अब मिलने की इच्छा भी बलवती होती जा रही है!

जालंधर में मेरी एक लम्बे समय से महिला गीता डोगरा भी दोस्तों की सूची में शामिल हैं, जो सिमर सदोष और हिंदी मिलाप के माध्यम से परिचय के दायरे में आईं और‌ वैसे तो अमृतसर की थीं लेकिन विवाह जालंधर में हुआ तो समारोहों में मिलना जुलना होता रहा! ये वहां पहले पंजाब केसरी से जुड़ी रहीं  फिर दैनिक जागरण से! आजकल त्रिवेणी साहित्य मंच चला रही हैं और अनेक पुस्तकों‌ की रचना कर चुकी हैं, त्रिवेणी को कभी पालमपुर तो कभी मोगा तक ले जाती हैं। नाटक भी लिखा जो लूणा के दर्द पर केंद्रित है और पंजाब की श्रेष्ठ कहानियाँ का संपादन भी किया, जिसमें मेरी कहानी मंगवाकर सम्मानपूर्वक प्रकाशित की! बीच में साहित्यिक पत्रिका भी निकाली, उसमें भी मेरी रचनायें आती रहीं वैसे गीता डोगरा सबसे ज्यादा अमृता प्रीतम से प्रभावित हैं! इसीलिए इनकी पत्रिका भी  अमृता प्रीतम की पत्रिका नागमणि के आकार की है और‌ नाम भी है पारसमणि ! लघुकथा लेखन भी किया और बहुत ही भावुक कविताओं के संकलन भी इनके नाम हैं ‌आजकल थोडा़ अस्वस्थ रहती हैं, फिर भी साहित्य लेखन जारी है। संयोग देखिए की आज गीता का जन्मदिन है और अचानक इस ओर‌ मेरा ध्यान गया!इनकी स्वस्थता की दुआ करते आज जालंधर की यादों को यहीं पर विराम दे रहा हूँ। फिर मिलेंगे जालंधर की यादों के साथ!

क्रमशः…. 

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #226 – 113 – “माँ – अपने दामन ख़ुद काँटे रख…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “माँ – अपने दामन ख़ुद काँटे रख…” ।)

? ग़ज़ल # 113 – “माँ – अपने दामन ख़ुद काँटे रख…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

घर में इक माँ ही होती है,

जन्नत कदम तले होती है।

*

अपने दामन ख़ुद काँटे रख,

गुल तेरे जीवन में बोती है।

*

मुश्किल आन पड़े जो तुझपे,

पल्लू अश्क़ों  से  धोती  है।

*

भीगे ऑंख अश्क़ से तेरी,

वो आँसू ख़ून के रोती है।

*

आतिश को सूखा रखने वो,

ख़ुद  गीले  में ही सोती है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 105 ☆ ।। मुक्तक।। – ।।माँ,बहन,बेटी,पत्नी नारी तेरे रूपअनेक।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 105 ☆

☆ ।। मुक्तक।। – ।।माँ,बहन,बेटी,पत्नी नारी तेरे रूपअनेक।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

माँ से ही सवेरा और माँ से ही होती    रात है।

माँ की ममता और प्यार अनमोल   सौगात है।।

माँ पास में तो खुशी है दुनिया जहान  की।

माँ स्पर्श सुखद मानो प्रथम किरण प्रभात है।।

[2]

बेटियाँ  हरदम माँ बाप पर प्यार लुटाती हैं।

बेटियाँ एक नहीं दो वंशों का उद्धार कराती हैं।।

नारी जगतजननी है वो सृष्टि की रचनाकार।

प्रभु का बन प्रतिरूप बेटी जग में आती है।।

[3]

हर रिश्ते के मूलआधार में बेटी होती है।

अपनों की खुशी लिएअपना सुख खोती है।।

दो घरों में बराबर प्यार बाँटती है हर बेटी।

त्याग मूरत बेटी हर दुख में पहले रोती है।।

[4]

नसीब वालों के आंगन में सुंदर बेटी दिखती है।

भाग्यवालों कोही जन्म में पुत्री मिलती है।।

ईश्वर का अवतारऔर उपहार होती हैं बेटियाँ।

किस्मत वालोंआंगन में यह कली खिलती है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 167 ☆ हे सदा शिव शंभु शंकर, दुखहरण मंगल करण ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक अप्रतिम रचना  – “हे सदा शिव शंभु शंकर, दुखहरण मंगल करण..। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘हे सदा शिव शंभु शंकर, दुखहरण मंगल करण ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

 हे सदा शिव शंभु शंकर, दुखहरण मंगल करण

सुख, विभव, आनंद-दायक, शांतिप्रद प्रभु तवचरण।।

कामना तव कृपा की ले नाथ हम आये शरण

आशुतोष अपारदानी कीजिये सुख दुख हरण।।1।।

 *

हृदय की सब जानते हो भक्त के, भगवान तुम

तुम्हीं संरक्षक जगत के प्राणियों के प्राण तुम।।

विधि न मालूम अर्चना की भावना के हैं सुमन

नेह आलोकित हृदय है, धवल हिम सा शुद्ध मन।।2।।

 *

तमावृत हर पथ जगत का मोह के अंधियार से

बढ़ रहे हैं कष्ट नित नव स्वार्थ के विस्तार से।।

है भयावह रात काली, कहीं न दिखती है किरण

तव कृपा की कामना ले हैं बिछे पथ में नयन।।3।।

 *

दीजिये वर ‘’कल’’ बने सत्यं शिवं शुभ सुंदरम

मन में करूणा का उदय हो, क्लेश, प्रभु हो जायें कम।।

अश्रु- जल कर सके उठती द्वेष- लपटों का शमन

विनत तव चरणों में शंकर हमारा शत शत नमन।।4।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #222 ☆ गुफ़्तगू करना सीख ले… ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत अप्रतिम कविता  गुफ़्तगू करना सीख ले । यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 222 ☆

गुफ़्तगू करना सीख ले… ☆

चंद लम्हें अपनों की ख़ुशी के लिए

उनके अंग-संग गुज़ारना सीख ले

बदल जाएगा ज़माने का चलन

तू ख़ुद पर भरोसा करना सीख ले

आजकल दस्तूर-ए-दुनिया से

वाक़िफ़ होना है बहुत लाज़िम

कौन अपना, पराया कौन

तनिक यह पहचानना सीख ले

ज़िंदगी का क्या भरोसा

कब तक साथ निभाएगी

तू अपनों की ख़ुशी के लिए

उनका साथ निभाना सीख ले

मौसम का क्या भरोसा

कब कश्ती का रुख बदल जाए

अपने कब बेवफ़ा हो जाएं

इस तथ्य को स्वीकारना सीख ले

यह दुनिया बड़ी ज़ालिम है

मुखौटा लगा सबको छलती

भरोसा करना मत किसी पर

तू ख़ुद से गुफ़्तगू करना सीख ले

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

19 जनवरी 2024

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #222 ☆ – हाइकू … – ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  हाइकू)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 222 – साहित्य निकुंज ☆

हाइकू… ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

मन को भाया

पिया को अपनाया

मन का मीत।

 

लाया है चाँद

अपने सुहाग की

 जीवंत ख़ुशी।

 

करवा चौथ

आती है हर बार

जगती ख़ुशी

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #205 ☆ संतोष के दोहे… रामलला ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे .. रामललाआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 204 ☆

☆ संतोष के दोहे.. रामलला ☆ श्री संतोष नेमा ☆

राम लला के दरश बिन, हमें न आता चैन

लगी आस दिल में बहुत, चैन नहीं दिन-रैन

*

चैन नहीं दिन-रैन, अवध है हमको जाना

प्यासे हमरे नैन, दरश का दिल में ठाना

*

कहते कवि संतोष, बनें सबके काम भला

काम करो वह खूब, साथ सब के रामलला

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विजय साहित्य # 212 ☆ [1] नारी रूप [2] मानस पूजा ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 212 – विजय साहित्य ?

☆ [1] नारी रूप [2] मानस पूजा ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते  ☆

☆ [1] नारी रूप ☆

(जागतिक महिला दिनानिमित्ताने..)

घरा घरपण

जिच्यामुळे येते

पूर्ण रूप देते

नरा नारी…..! १

*

पती आणि पत्नी

शिव आणि शक्ती

प्रेम प्रिती भक्ती

भारवाही….! २

*

आई,बाई,दाई

वात्सल्य आगर

संसार सागर

नारी रुप….! ३

*

ताई,माई,अक्का

आज्जी,काकी,मामी,

गुणदोष नामी

सामावले….! ४

*

सखी,राज्ञी,माता

नारी शक्ती रूप

चैतन्य स्वरूप

ललना‌ ही…! ५

*

संस्कार जनक

माहेरचा वसा

सासरचा ठसा

निजरूपी…! ६

*

भाव भावनांचे

मूर्त रूप नारी

सुख, दुःख, हारी

आदिमाया….! ७

*

विश्व वंदनीय

भाग्यश्रीची छाया

कविराज माया

कवनात…! ८

☆ [2]  मानसपूजा ☆

*

नमो शंकरा जपात आहे,

कैलासाची माया

शिव स्वरूपी,भालचंद्र तू,

चैतन्याची छाया.

*

निळी निळाई, फणींद्र माथा

चराचरी वास

शंख डमरू,त्रिशूलधारी,

ओंकाराचा न्यास.

*

निलकंठ तू, त्रिनेत्रधारी,

शोभे सिद्धेश्वर

 ब्रम्हांडधीशा उमापती तू,

स्वामी विश्वेश्वर.

*

शिवपिंडीचा महादेव तू

नंदी भक्तगण

शिव नामाने,पहा व्यापिले

त्रैलोक्याचे मन.

*

पंचाक्षरीच्या,नाम जपाने

घेतो देवा नाम

पंचामृती ही,मानस पूजा

सेवा‌ ही निष्काम.

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

हकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ श्रीमद्‌भगवद्‌गीता — अध्याय सहावा — आत्मसंयमयोग — (श्लोक १ ते १०) – मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ श्रीमद्‌भगवद्‌गीता — अध्याय सहावा — आत्मसंयमयोग — (श्लोक १ ते १०) – मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

श्रीभगवानुवाच

अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः ।

स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः ॥ १ ॥

*

कथित भगवंत

मनुज जो केवळ अग्नी अन् क्रियांना त्यागी

नाही संन्यासी अथवा तो नच असतो योगी

आश्रय नाही कर्मफलाचा करितो कार्यकर्म

तोचि संन्यासी तो योगी जाणुन घे हे वर्म  ॥१॥

*

न संन्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव ।

न ह्यसंन्यस्तसङ्कल्पो योगी भवति कश्चन ॥ २ ॥

*

संन्यासासी योग अशी ही अन्य संज्ञा पांडवा

संकल्पासी जो न त्यागतो तो ना योगी भवा ॥२॥ 

*

आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते ।

योगारूढस्य तस्यैव शमः कारणमुच्यते ॥ ३ ॥

*

आरुढ व्हाया कर्मयोगे निष्काम करणे कर्म

होता योगारूढ अभाव सर्व संकल्प हे वर्म ॥३॥

*

यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते ।

सर्वसङ्कल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते ॥ ४ ॥

*

इंद्रियाच्या भोगामध्ये नसतो जो आसक्त 

संकल्पत्यागी मनुजा योगारुढ म्हणतात ॥४॥

*

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्‌ ।

आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥ ५ ॥

*

भवसागरातुनी अपुला आपण उद्धार करावा

अपुला बंधु आपण तैसा वैरीही जाणावा ॥५॥

*

बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः ।

अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्‌ ॥ ६ ॥

*

आत्म्यावरती विजय जयाचा आत्म्याला प्राप्त

बंथु त्याच्या आत्म्याचा आत्मा तयाचा होत

आत्मा नाही अधीन तुजसम अनात्मन राहतो 

वैरी होउन आत्मा त्याचा शत्रूसम वर्ततो ॥६॥

*

जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः ।

शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः ॥ ७ ॥

*

शीतोष्ण-सुखदुःखात जया न मानापमान

प्रशांति तयाच्या वृत्ती सुशांत अंतःकरण 

मन बुद्धी अन् देह इंद्रिये सदैव जया अधीन

प्रज्ञेत तयाच्या स्थित असते सच्चिदानंदघन ॥७॥

*

ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रियः ।

युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चनः ॥ ८ ॥

*

ज्ञान विज्ञानाने ज्याचे तृप्त अंतःकरण

स्थिती जयाची स्थिर असूनी विकारहीन

हेम अश्म मृत्तिका जयाला एक समान असती 

अद्वैत त्याचे भगवंताशी जितेंद्रिय त्या म्हणती ॥८॥

*

सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु ।

साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते ॥ ९ ॥

*

सुहृद असो वा मित्र वा वैरी मध्यस्थ वा उदासीन 

बंधु असो वा द्वेष्य साधु वा अनुसरतो पापाचरण

घृणा नाही कोणाही करिता सर्वांठायी भाव समान

श्रेष्ठत्व तयाचे विशेष थोर याची मनी ठेव सदा जाण ॥९॥

*

योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थितः ।

एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः ॥ १० ॥

*

मन आत्म्यासी वश करुनी

योगी निरंतर निरिच्छ राहुनी

एकांती एकाकी स्थित रहावे

आत्मा परमात्मे विलिन करावे ॥१०॥

अनुवादक : © डॉ. निशिकान्त श्रोत्री

एम.डी., डी.जी.ओ.

मो ९८९०११७७५४

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 136 ☆ लघुकथा – थाप ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा थाप। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 136 ☆

☆ लघुकथा – थाप ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

दिन भर मशीन की तरह वह एक के बाद एक घर के काम निपटाती जा रही थी। उसका चेहरा भावहीन था, सबसे बातचीत भले ही कर रही थी पर आवाज में कुछ उदासी थी। जैसे मन ही मन झुंझला रही हो। उसके छोटे भाई की शादी थी। घर में हँसी -मजाक चल रहा था लेकिन वह उसमें शामिल नहीं हो रही थी, शायद वह वहाँ रहना ही नहीं चाहती थी।‘कुमुद ऐसी तो नहीं थी, क्या हो गया इसे?’ मैंने उसकी अविवाहित बड़ी बहन से पूछा।‘अरे कोई बात नहीं है, बहुत मूडी है‘ कहकर उसने बात टाल दी। मुझे यह बात खटक रही थी कि शादी लायक दो बड़ी बहनों के रहते छोटे भाई की शादी की जा रही है। कहीं कुमुद की उदासी का यही तो कारण नहीं? लड़कियाँ खुद ही शादी करना ना चाहें तो बात अलग है पर जानबूझकर उनकी उपेक्षा करना? खैर छोड़ो,दूसरे के फटे में पैर क्यों  अड़ाना।

शादी के घर में रिश्तेदारों का जमावड़ा था। महिला संगीत चल रहा था और साथ में महिलाओं की खुसपुसाहट भी – ‘जवान बहनें बिनब्याही घर में बैठी हैं और छोटे भाई की शादी कर रहे हैं माँ–बाप। बड़ी तो अधेड़ हो गई है, पर कुमुद के लिए तो देखना चाहिए।‘  ढ़ोलक की थाप के साथ नाच –गाने तो चल ही रहे थे, निंदा रस भी खुलकर बरस रहा था। ‘अरे कुमुद! अबकी तू उठ,बहुत दिन से तेरा नाच नहीं देखा, ससुराल जाने के लिए थोड़ी प्रैक्टिस कर ले’ –बुआ ने हँसते हुए कहा। ‘भाभी अब कुमुद के लिए लड़का देखो, नहीं तो यह भी कोमल की तरह बुढ़ा जाएगी नौकरी करते- करते,फिर कोई दूल्हा ना मिलेगा इसे। ढ़ोलक की थाप थम गई और बात चटाक से लगी घरवालों को। नाचने के लिए उठते कुमुद के कदम मानों वहीं थम गए लेकिन चेहरा खिल गया। ऐसा लगा मानों किसी ने तो उसके दिल की बात कह दी हो। वह उठी और दिल खोलकर नाचने लगी।

कुमुद की माँ अपनी ननदरानी से उलझ रही थीं– ‘बहन जी! आपको रायता फैलाने की क्या जरूरत थी सबके सामने यह सब बात छेड़कर। इत्ता दान दहेज कहाँ से लाएं दो-दो लड़कियों के हाथ पीले करने को। ऐरे – गैरे घर में जाकर किसी दूसरे की जी- हजूरी करने से तो अच्छा है अपने छोटे भाई का परिवार पालें। छोटे को सहारा हो जाएगा, उसकी नौकरी भी पक्की ना है अभी। कोमल तो समझ गई है यह बात,पर इस कुमुद के दिमाग में ना बैठ रही। खैर समझ जाएगी यह भी’ —

ढ़ोलक की थाप और तालियों के बीच इन सब बातों से अनजान कुमुद मगन मन नाच रही थी।

© डॉ. ऋचा शर्मा

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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