(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “कुछ शब्दचित्र”। )
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की अगली कड़ी में श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी की एक सार्थक कविता – महापौर। )
( डॉ निधि जैन जी भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “चाँद पाने का सफर”।)
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है। सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक भावप्रवण रचना “मास्क”। श्री श्याम खापर्डे जी ने इस कविता के माध्यम से मास्क के महत्व की चर्चा की है जो विचारणीय है।)
सम्मान – काव्य वर्तिका अलंकरण, प्रसंग काव्य शिरोमणि, मंथन साहित्यकार सम्मान, मां तुझे सलाम मुशायरा सम्मान, केंद्रीय हिंदी निदेशालय दिल्ली तथा हिंदी एवं भाषा विज्ञान विभाग रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर द्वारा राष्ट्रीय शोध गोष्ठी सम्मान, अखिल भारतीय कवि सम्मेलन प्रसंग अलंकरण सम्मान
☆ कविता ☆ हाँ मैं यशोधरा हूँ ……. ☆
( सिद्धार्थ (महात्मा बुद्ध) के गृह त्याग पर कवि श्री अलोक पाठक जी की काव्यात्मक अभिव्यक्ति)
हाँ मैं यशोधरा हूँ
एक रानी हूँ
हाँ मैं यशोधरा हूँ
एक रानी हूँ
हाँ मुझे याद है जब
सिद्धार्थ ब्याह कर लाए थे
मेरी नवजीवन में कितने
सुगंधित पुष्प खिलाए थे
यथार्थ के धरातल से हटकर
अनगिनत स्वप्न दिखाए थे
वैवाहिक जीवन में मेरे
तभी तो राहुल आए थे
शांत और निर्लिप्त भाव का
मैं निश्छल सा पानी हूँ ….1
हाँ मैं यशोधरा हूँ
एक रानी हूँ
हाँ मैंने देखा सिद्धार्थ को
जरा जन्म से उलझते हुए
हाँ मैंने देखा सिद्धार्थ के
अंतर्मन को सुलगते हुए
क्यों चाहा प्रश्नों का उत्तर
शाश्वत सत्य समझते हुए
नव पथ के लिए त्यागा वैभव
निज कर्तव्य भटकते हुए
कुटिल रात्रि के बाद खिली हूँ
ऐसी भोर सुहानी हूँ …….2
हाँ मैं यशोधरा हूँ
एक रानी हूँ
क्या दोष था राहुल का
जो तुमने उसको त्याग दिया
उसके कोमल मन में तुमने
कैसा वज्राघात किया
पितृ सुख और प्रेम ना देकर
तुमने क्यों अवसाद दिया
क्या कोई अक्षम्य भूल थी
जिसका यह प्रतिसाद किया
ना जग समझा ना मैं समझी
ऐसी अमिट कहानी हूँ…3
हाँ मैं यशोधरा हूँ
एक रानी हूँ
हाँ सोचो ऐसा मैं करती
क्या संसार समझ पाता
सामाजिक आक्षेपों से क्या
आँचल मेरा बच पाता
दोषों पर दोषों से मेरा
नाम कलंकित हो जाता
नारी के आदर्शों का भी
खंडन मंडन हो जाता
छली गई हूँ एक ज्ञानी से
ऐसी मैं अज्ञानी हूँ…. 4
हाँ मैं यशोधरा हूँ
एक रानी हूँ
सिद्धार्थ जी के मन में तीन प्रश्न थे कि जन्म क्यों होता है? बुढ़ापा क्यों होता है और मृत्यु क्या होती है? यह तीनों प्रश्न वास्तव में प्रकृति से जुड़े हुए थे और मनुष्य के जीवन में हो रही घटनाओं से इनको जोड़ा जा सकता है। इन प्रश्नों का उत्तर सिद्धार्थ के लिए गए निर्णय से हो गया और यशोधरा ने अपने अनुभव के आधार पर यह उत्तर दिया कि राहुल का जन्म एक प्राकृतिक तथ्य है, पिता शुद्धोधन को सिद्धार्थ के वनवास से जो दारण दुख हुआ वही वास्तव में उनका बुढ़ापा है। मनुष्य के जीवन में जब जीने की कोई चाह ना बचे तब वह वृद्धावस्था का ही द्योतक होता है अन्यथा आदमी कितना भी वृद्ध हो जाए यदि उसका मन युवा है तो वह युवा ही रहता है। तीसरा प्रश्न यशोधरा का स्वयं का जीते जी मर जाना क्योंकि सिद्धार्थ के जाने के बाद युवावस्था में हुए इस घटनाक्रम से उनके जीवन में कुछ भी शेष नहीं रहा। उनका सब कुछ सिद्धार्थ के होने पर ही था और जब वही चले गए तो वह महल वह विलास की वस्तु उनके लिए महत्वहीन थी। एक नारी के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यही है कि उसे अपने पति के सानिध्य में जीवन बिताने का अवसर प्राप्त हो यद्यपि सिद्धार्थ ने स्वयं के प्रश्नों के हल के लिए घर छोड़ा था किंतु उससे यशोधरा, राहुल और शुद्धोधन ही नहीं बल्कि पूरा साम्राज्य प्रभावित हुआ और एक परिवार में अनिश्चय की स्थिति निर्मित हुई। सिद्धार्थ अपने प्रश्नों का उत्तर तो पा सके किंतु राहुल यशोधरा और शुद्धोधन जो उन पर आश्रित थे उनके जीवन में आए झंझावात से उत्पन्न प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सके और अंततोगत्वा राहुल, यशोधरा और शुद्धोधन ने भी सन्यास धारण कर लिया। इस पूरे घटनाक्रम में यशोधरा के जीवन से सिद्धार्थ के तीन प्रश्नों का उत्तर रचना के अंतिम बंद में लिखने का प्रयास किया है –
☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 24 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 24) ☆
Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.
Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.
In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.
Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.
His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.
☆ English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media# 24☆
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी की एक रचना। )
हम ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह प्रतिदिन “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत एक रचना पाठकों के लिए लाने जा रहे हैं। लेखकों से हमारा आग्रह है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। हम सहयोगी “साहित्यम समूह” में “एकता शक्ति आयोजन” में प्राप्त चुनिंदा रचनाओं से इस का प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है श्री अमरेंद्र नारायण जी की कविता “ भारतवासी ”।